प्रस्तावना - HariOmGroup · 2019. 5. 6. · आपका मंत्र...

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Page 1: प्रस्तावना - HariOmGroup · 2019. 5. 6. · आपका मंत्र हैुः 'आओ, सरल रास्ता ददखाऊाँ, राम क

परसतावना आज तक पजयशरी क समपकक म आकर असखय लोगो न अपन पतनोनमख जीवन को

यौवन सरकषा क परयोगो दवारा ऊरधवकगामी बनाया ह वीयकनाश और सवपनदोष जसी बीमाररयो की चपट म आकर हतबल हए कई यवक-यवततयो क ललए अपन तनराशापरक जीवन म पजयशरी की सतज अनभवयकत वारी एव उनका पववतर मागकदशकन डबत को ततनक का ही नही बलकक नाव का सहारा बन जाता ह

समाज की तजलसवता का हरर करन वाला आज क ववलालसतापरक कलससत और वासनामय वातावरर म यौवन सरकषा क ललए पजयशरी जस महापरषो क ओजसवी मागकदशकन की असयत आवशयकता ह

उस आवशयकता की पतत क हत ही पजयशरी न जहाा अपन परवचनो म lsquoअमकय यौवन-धन की सरकषाrsquo ववषय को छआ ह उस सकललत करक पाठको क सममख रखन का यह अकप परयास ह

इस पसतक म सतरी-परष गहसथी-वानपरसथी ववदयाथी एव वदध सभी क ललए अनपम सामगरी ह सामानय दतनक जीवन को ककस परकार जीन स यौवन का ओज बना रहता ह और जीवन ददवय बनता ह उसकी भी रपरखा इसम सलननदहत ह और सबस परमख बात कक योग की गढ परकियाओ स सवय पररचचत होन क कारर पजयशरी की वारी म तज अनभव एव परमार का सामजसय ह जो अचधक परभावोसपादक लसदध होता ह

यौवन सरकषा का मागक आलोककत करन वाली यह छोटी सी पसतक ददवय जीवन की चाबी ह इसस सवय लाभ उठाय एव औरो तक पहाचाकर उनह भी लाभालनवत करन का पणयमय कायक कर

शरी योग वदानत सवा समितत अिदावाद आशरि

वीययवान बनो पालो बरहमचयक ववषय-वासनाएा सयाग ईशवर क भकत बनो जीवन जो पयारा ह

उदठए परभात काल रदहय परसननचचतत तजो शोक चचनताएा जो दःख का वपटारा ह

कीलजए वयायाम तनसय भरात शलकत अनसार नही इन तनयमो प ककसी का इजारा1 ह

दखखय सौ शरद औrsquoकीलजए सकमक वपरय सदा सवसथ रहना ही कततकवय तमहारा ह

लााघ गया पवनसत बरहमचयक स ही लसध मघनाद मार कीततक लखन कमायी ह

लका बीच अगद न जााघ जब रोप दई हटा नही सका लजस कोई बलदायी ह

पाला वरत बरहमचयक राममतत क गामा न भी दश और ववदशो म नामवरी2 पायी ह

भारत क वीरो तम ऐस वीयकवान बनो बरहमचयक मदहमा तो वदन म गायी ह

1- एकाचधकार 2- परलसदचध

ॐॐॐॐॐॐ

बरहिचयय रकषा हत ितर

एक कटोरी दध म तनहारत हए इस मतर का इककीस बार जप कर | तदपशचात उस दध को पी ल बरहमचयक रकषा म सहायता लमलती ह | यह मतर सदव मन म धारर करन योगय ह

ॐ निो भगवत िहाबल पराकरिाय

िनोमभलाषित िनः सतभ कर कर सवाहा |

अनकरि

यौवन सरकषा

परसतावना

वीयकवान बनो

बरहमचयक रकषा हत मतर

परमपजय बाप जी की कपा-परसाद स लाभालनवत हदयो क उदगार

महामसयजय मतर

मगली बाधा तनवारक मतर

1 ववदयाचथकयो माता-वपता-अलभभावको व राषटर क करकधारो क नाम बरहमतनषटठ सत शरी आसारामजी बाप का सदश

2 यौवन-सरकषा

बरहमचयक कया ह

बरहमचयक उसकषटट तप ह

वीयकरकषर ही जीवन ह

आधतनक चचककससको का मत

वीयक कस बनता ह

आकषकक वयलकतसव का कारर

माली की कहानी

सलषटट िम क ललए मथन एक पराकततक वयवसथा

सहजता की आड़ म भरलमत न होव

अपन को तोल

मनोतनगरह की मदहमा

आसमघाती तकक

सतरी परसग ककतनी बार

राजा ययातत का अनभव

राजा मचकनद का परसग

गलत अभयास का दषटपररराम

वीयकरकषर सदव सतसय

अजकन और अगारपरक गधवक

बरहमचयक का तालववक अथक

3 वीयकरकषा क उपाय

सादा रहन-सहन बनाय

उपयकत आहार

लशशनलनिय सनान

उचचत आसन एव वयायाम करो

बरहममहतक म उठो

दवयकसनो स दर रहो

सससग करो

शभ सककप करो

तरतरबनधयकत परारायाम और योगाभयास करो

नीम का पड चला

सतरी-जातत क परतत मातभाव परबल करो

लशवाजी का परसग

अजकन और उवकशी

वीयकसचय क चमसकार

भीषटम वपतामह और वीर अलभमनय

पथवीराज चौहान कयो हारा

सवामी रामतीथक का अनभव

यवा वगक स दो बात

हसतमथन का दषटपररराम

अमररका म ककया गया परयोग

कामशलकत का दमन या ऊरधवकगमन

एक साधक का अनभव

दसर साधक का अनभव

योगी का सककपबल

कया यह चमसकार ह

हसतमथन व सवपनदोष स कस बच

सदव परसनन रहो

वीयक का ऊरधवकगमन कया ह

वीयकरकषा का महववपरक परयोग

दसरा परयोग

वीयकरकषक चरक

गोद का परयोग

बरहमचयक रकषा हत मतर

पादपलशचमोततानासन

पादागषटठानासन

बदचधशलकतवधकक परयोगः

हमार अनभव

महापरष क दशकन का चमसकार

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगक क ललय एक अमकय भट ह

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक नही अवपत एक लशकषा गरनथ ह

बरहमचयक ही जीवन ह

शासतरवचन

भसमासर िोध स बचो

बरहमाचयक-रकषा का मतर

सख-शातत व सवासथय का परसाद बााटन क ललए ही बाप जी का अवतरर हआ ह

हर वयलकत जो तनराश ह उस आसाराम जी की जररत ह

बाप तनसय नवीन तनसय वधकनीय आनदसवरप ह

पणय सचय व ईशवर की कपा का फलः बरहमजञान का ददवय सससग

बाप जी का सालननरधय गगा क पावन परवाह जसा ह

भगवननाम का जाद

पजयशरी क सससग म परधानमतरी शरी अटल तरबहारी वाजपयीजी क उदगार

प बापः राषटरसख क सवधकक

राषटर उनका ऋरी ह

गरीबो व वपछड़ो को ऊपर उठान क कायक चाल रह

सराहनीय परयासो की सफलता क ललए बधाई

आपन ददवय जञान का परकाशपज परसफदटत ककया ह

आप समाज की सवाागीर उननतत कर रह ह

योग व उचच ससकार लशकषा हत भारतवषक आपका चचर-आभारी रहगा

आपन जो कहा ह हम उसका पालन करग

जब गर क साकषात दशकन हो गय ह तो कछ बदलाव जरर आयगा

बापजी सवकतर ससकार धरोहर को पहाचान क ललए अथक तपशचयाक कर रह ह

आपक दशकनमातर स मझ अदभत शलकत लमलती ह

हम सभी का कतकवय होगा कक आपक बताय रासत पर चल

आपका मतर हः आओ सरल रासता ददखाऊा राम को पान क ललए

सतो क मागकदशकन म दश चलगा तो आबाद होगा

ससय का मागक कभी न छट ऐसा आशीवाकद दो

पणयोदय पर सत समागम

बापजी जहाा नही होत वहाा क लोगो क ललए भी बहत कछ करत ह

जीवन की सचची लशकषा तो पजय बापजी ही द सकत ह

आपकी कपा स योग की अरशलकत पदा हो रही ह

धरती तो बाप जस सतो क कारर दटकी ह

म कमनसीब हा जो इतन समय तक गरवारी स वचचत रहा

इतनी मधर वारी इतना अदभत जञान

सससग शरवर स मर हदय की सफाई हो गयी

जञानरपी गगाजी सवय बहकर यहाा आ गयी

बाप जी क सससग स ववशवभर क लोग लाभालनवत

परी डडकशनरी याद कर ववशव ररकॉडक बनाया

मतरदीकषा व यौचगक परयोगो स बदचध का अपरततम ववकास

सससग व मतरदीकषा न कहाा स कहाा पहाचा ददया

5 वषक क बालक न चलायी जोखखम भरी सड़को पर कार

ऐस सतो का लजतना आदर ककया जाय कम ह

मझ तनवयकसनी बना ददया

गरजी की तसवीर न परार बचा ललय

सदगर लशषटय का साथ कभी नही छोड़त

गरकपा स अधापन दर हआ

और डकत घबराकर भाग गय

मतर दवारा मतदह म परार-सचार

सदगरदव की कपा स नतरजयोतत वापस लमली

बड़दादा की लमटटी व जल स जीवनदान

पजय बाप न फ का कपा-परसाद

बटी न मनौती मानी और गरकपा हई

और गरदव की कपा बरसी

गरदव न भजा अकषयपातर

सवपन म ददय हए वरदान स पतरपरालपत

शरी आसारामायर क पाठ स जीवनदान

गरवारी पर ववशवास स अवरीय लाभ

सवफल क दो टकड़ो स दो सतान

साइककल स गरधाम जान पर खराब टााग ठीक हो गयी

अदभत रही मौनमददर की साधना

असारधय रोग स मलकत

कसट का चमसकार

पजयशरी की तसवीर स लमली परररा

नतरतरबद का चमसकार

मतर स लाभ

काम िोध पर ववजय पायी

जला हआ कागज पवक रप म

नदी की धारा मड़ गयी

सदगर-मदहमा

लडी मादटकन क सहाग की रकषा करन अफगातनसतान म परकट लशवजी

सखपवकक परसवकारक मतर

सवाागीर ववकास की कलजयाा

ॐॐॐॐॐॐ

(अनिम)

िहाितयजय ितर

ॐ हौ ज सः ॐ भ भयवः सवः ॐ तरयमबक यजािह सगध पषटिव यनि उवायरकमिव

बन नानितयोियकषकषय िाितात सवः भवः भ ः ॐ सः ज हौ ॐ

भगवान लशव का यह महामसयजय मतर जपन स अकाल मसय तो टलती ही ह आरोगयता की भी परालपत होती ह सनान करत समय शरीर पर लोट स पानी डालत वकत इस मतर का जप करन स सवासथय लाभ होता ह दध म तनहारत हए इस मतर का जप करक दध पी ललया जाय तो यौवन की सरकषा म भी सहायता लमलती ह आजकल की तज रफतार वाली लजदगी क कहाा उपिव दघकटना हो जाय कहना मलशकल ह घर स तनकलत समय एक बार यह मतर जपन वाला उपिवो स सरकषकषत

रहता ह और सरकषकषत लौटता ह (इस मतर क अनषटठान की परक जानकारी क ललए आशरम की आरोगयतनध पसतक पढ

शरीिदभागवत क आठव सक ि तीसर अधयाय क शलोक 1 स 33 तक ि वरणयत गजनर िोकष सतोतर का पाठ करन स तिाि षवघन द र होत ह

िगली बा ा तनवारक ितर

अ रा अ इस मतर को 108 बार जपन स िोध दर होता ह जनमकणडली म मगली दोष होन स लजनक वववाह न हो रह हो व 27 मगलवार इसका 108 बार जप करत हए वरत रख क हनमान जी पर लसदर का चोला चढाय तो मगल बाधा का कषय होता ह

1 षवदयाधथययो िाता-षपता-अमभभावको व राटर क कणय ारो क नाि बरहितनटठ सत शरी आसारािजी बाप का सदश

हमार दश का भववषटय हमारी यवा पीढी पर तनभकर ह ककनत उचचत मागकदशकन क अभाव म वह

आज गमराह हो रही ह |

पाशचासय भोगवादी सभयता क दषटपरभाव स उसक यौवन का हरास होता जा रहा ह | ववदशी चनल

चलचचतर अशलील सादहसय आदद परचार मारधयमो क दवारा यवक-यवततयो को गमराह ककया जा रहा ह

| ववलभनन सामतयको और समाचार-पतरो म भी तथाकचथत पाशचासय मनोववजञान स परभाववत मनोचचककससक और lsquoसकसोलॉलजसटrsquo यवा छातर-छातराओ को चररतर सयम और नततकता स भरषटट करन पर तल हए ह |

तरबरतानी औपतनवलशक ससकतत की दन इस वततकमान लशकषा-परराली म जीवन क नततक मकयो क परतत उदासीनता बरती गई ह | फलतः आज क ववदयाथी का जीवन कौमायकवसथा स ही ववलासी और असयमी हो जाता ह |

पाशचासय आचार-वयवहार क अधानकरर स यवानो म जो फशनपरसती अशदध आहार-ववहार क

सवन की परववतत कसग अभिता चलचचतर-परम आदद बढ रह ह उसस ददनोददन उनका पतन होता जा रहा ह | व तनबकल और कामी बनत जा रह ह | उनकी इस अवदशा को दखकर ऐसा लगता ह कक व बरहमचयक की मदहमा स सवकथा अनलभजञ ह |

लाखो नही करोड़ो-करोड़ो छातर-छातराएा अजञानतावश अपन तन-मन क मल ऊजाक-सरोत का वयथक म अपकषय कर परा जीवन दीनता-हीनता-दबकलता म तबाह कर दत ह और सामालजक अपयश क भय

स मन-ही-मन कषटट झलत रहत ह | इसस उनका शारीररक-मानलसक सवासथय चौपट हो जाता ह

सामानय शारीररक-मानलसक ववकास भी नही हो पाता | ऐस यवान रकताकपता ववसमरर तथा दबकलता स पीडड़त होत ह |

यही वजह ह कक हमार दश म औषधालयो चचककससालयो हजारो परकार की एलोपचथक दवाइयो इनजकशनो आदद की लगातार वदचध होती जा रही ह | असखय डॉकटरो न अपनी-अपनी दकान खोल

रखी ह कफर भी रोग एव रोचगयो की सखया बढती ही जा रही ह |

इसका मल कारर कया ह दवयकसन तथा अनततक अपराकततक एव अमयाकददत मथन दवारा वीयक की कषतत ही इसका मल कारर ह | इसकी कमी स रोगपरततकारक शलकत घटती ह जीवनशलकत का हरास होता ह |

इस दश को यदद जगदगर क पद पर आसीन होना ह ववशव-सभयता एव ववशव-ससकतत का लसरमौर बनना ह उननत सथान कफर स परापत करना ह तो यहाा की सनतानो को चादहए कक व बरहमचयक क महसव को समझ और सतत सावधान रहकर सखती स इसका पालन कर |

बरहमचयक क दवारा ही हमारी यवा पीढी अपन वयलकतसव का सतललत एव शरषटठतर ववकास कर सकती ह | बरहमचयक क पालन स बदचध कशागर बनती ह रोगपरततकारक शलकत बढती ह तथा महान-

स-महान लकषय तनधाकररत करन एव उस समपाददत करन का उससाह उभरता ह सककप म दढता आती ह मनोबल पषटट होता ह |

आरधयालसमक ववकास का मल भी बरहमचयक ही ह | हमारा दश औदयोचगक तकनीकी और आचथकक

कषतर म चाह ककतना भी ववकास कर ल समदचध परापत कर ल कफर भी यदद यवाधन की सरकषा न हो पाई तो यह भौततक ववकास अत म महाववनाश की ओर ही ल जायगा कयोकक सयम सदाचार

आदद क पररपालन स ही कोई भी सामालजक वयवसथा सचार रप स चल सकती ह | भारत का सवाागीर ववकास सचचररतर एव सयमी यवाधन पर ही आधाररत ह |

अतः हमार यवाधन छातर-छातराओ को बरहमचयक म परलशकषकषत करन क ललए उनह यौन-सवासथय

आरोगयशासतर दीघाकय-परालपत क उपाय तथा कामवासना तनयतरतरत करन की ववचध का सपषटट जञान परदान करना हम सबका अतनवायक कततकवय ह | इसकी अवहलना करना हमार दश व समाज क दहत म नही ह | यौवन सरकषा स ही सदढ राषटर का तनमाकर हो सकता ह |

(अनिम)

2 यौवन-सरकषा शरीरिादय खल ियसा नि |

धमक का साधन शरीर ह | शरीर स ही सारी साधनाएा समपनन होती ह | यदद शरीर कमजोर ह तो उसका परभाव मन पर पड़ता ह मन कमजोर पड़ जाता ह |

कोई भी कायक यदद सफलतापवकक करना हो तो तन और मन दोनो सवसथ होन चादहए | इसीललय

कई बढ लोग साधना की दहममत नही जटा पात कयोकक वषतयक भोगो स उनक शरीर का सारा ओज-तज नषटट हो चका होता ह | यदद मन मजबत हो तो भी उनका जजकर शरीर परा साथ नही द पाता | दसरी ओर यवक वगक साधना करन की कषमता होत हए भी ससार की चकाचौध स परभाववत

होकर वषतयक सखो म बह जाता ह | अपनी वीयकशलकत का महसव न समझन क कारर बरी आदतो म पड़कर उस खचक कर दता ह कफर लजनदगी भर पछताता रहता ह |

मर पास कई ऐस यवक आत ह जो भीतर-ही भीतर परशान रहत ह | ककसीको व अपना दःख-ददक सना नही पात कयोकक बरी आदतो म पड़कर उनहोन अपनी वीयकशलकत को खो ददया ह | अब मन

और शरीर कमजोर हो गय गय ससार उनक ललय दःखालय हो गया ईशवरपरालपत उनक ललए असभव हो गई | अब ससार म रोत-रोत जीवन घसीटना ही रहा |

इसीललए हर यग म महापरष लोग बरहमचयक पर जोर दत ह | लजस वयलकत क जीवन म सयम

नही ह वह न तो सवय की ठीक स उननतत कर पाता ह और न ही समाज म कोई महान कायक कर पाता ह | ऐस वयलकतयो स बना हआ समाज और दश भी भौततक उननतत व आरधयालसमक उननतत म वपछड़ जाता ह | उस दश का शीघर पतन हो जाता ह |

(अनिम)

बरहिचयय कया ह

पहल बरहमचयक कया ह- यह समझना चादहए | lsquoयाजञवककय सदहताrsquo म आया ह

कियणा िनसा वाचा सवायसथास सवयदा |

सवयतर िथनतआगो बरहिचय परचकषत ||

lsquoसवक अवसथाओ म मन वचन और कमक तीनो स मथन का सदव सयाग हो उस बरहमचयक कहत ह |rsquo

भगवान वदवयासजी न कहा ह

बरहिचय गपतषनरसयोपसथसय सयिः |

lsquoववषय-इलनियो दवारा परापत होन वाल सख का सयमपवकक सयाग करना बरहमचयक ह |rsquo

भगवान शकर कहत ह

मसद बबनदौ िहादषव कक न मसद यतत भ तल |

lsquoह पावकती तरबनद अथाकत वीयकरकषर लसदध होन क बाद कौन-सी लसदचध ह जो साधक को परापत नही हो सकती rsquo

साधना दवारा जो साधक अपन वीयक को ऊरधवकगामी बनाकर योगमागक म आग बढत ह व कई

परकार की लसदचधयो क माललक बन जात ह | ऊरधवकरता योगी परष क चररो म समसत लसदचधयाा दासी बनकर रहती ह | ऐसा ऊरधवकरता परष परमाननद को जकदी पा सकता ह अथाकत आसम-साकषासकार जकदी कर सकता ह |

दवताओ को दवसव भी इसी बरहमचयक क दवारा परापत हआ ह

बरहिचयण तपसा दवा ितयिपाघनत |

इनरो ह बरहिचयण दवभयः सवराभरत ||

lsquoबरहमचयकरपी तप स दवो न मसय को जीत ललया ह | दवराज इनि न भी बरहमचयक क परताप स ही दवताओ स अचधक सख व उचच पद को परापत ककया ह |rsquo

(अथवकवद 1519)

बरहमचयक बड़ा गर ह | वह ऐसा गर ह लजसस मनषटय को तनसय मदद लमलती ह और जीवन क सब

परकार क खतरो म सहायता लमलती ह |

(अनिम)

बरहिचयय उतकटि तप ह

ऐस तो तपसवी लोग कई परकार क तप करत ह परनत बरहमचयक क बार म भगवान शकर कहत ह

न तपसतप इतयाहबरयहिचय तपोततिि |

ऊधवयरता भवदयसत स दवो न त िानिः ||

lsquoबरहमचयक ही उसकषटट तप ह | इसस बढकर तपशचयाक तीनो लोको म दसरी नही हो सकती | ऊरधवकरता परष इस लोक म मनषटयरप म परसयकष दवता ही ह |rsquo

जन शासतरो म भी इस उसकषटट तप बताया गया ह |

तवस वा उतति बभचरि |

lsquoबरहमचयक सब तपो म उततम तप ह |rsquo

वीययरकषण ही जीवन ह

वीयक इस शरीररपी नगर का एक तरह स राजा ही ह | यह वीयकरपी राजा यदद पषटट ह बलवान ह

तो रोगरपी शतर कभी शरीररपी नगर पर आिमर नही करत | लजसका वीयकरपी राजा तनबकल ह उस

शरीररपी नगर को कई रोगरपी शतर आकर घर लत ह | इसीललए कहा गया ह

िरण बबनदोपातन जीवन बबनद ारणात |

lsquoतरबनदनाश (वीयकनाश) ही मसय ह और तरबनदरकषर ही जीवन ह |rsquo

जन गरथो म अबरहमचयक को पाप बताया गया ह

अबभचररय घोर पिाय दरहहठहठयि |

lsquoअबरहमचयक घोर परमादरप पाप ह |rsquo (दश वकाललक सतर 617)

lsquoअथवदrsquo म इस उसकषटट वरत की सजञा दी गई ह

वरति व व बरहिचययि |

वदयकशासतर म इसको परम बल कहा गया ह

बरहिचय पर बलि | lsquoबरहमचयक परम बल ह |rsquo

वीयकरकषर की मदहमा सभी न गायी ह | योगीराज गोरखनाथ न कहा ह

कत गया क कामिनी झ र | बबनद गया क जोगी ||

lsquoपतत क ववयोग म कालमनी तड़पती ह और वीयकपतन स योगी पशचाताप करता ह |rsquo

भगवान शकर न तो यहाा तक कह ददया कक इस बरहमचयक क परताप स ही मरी ऐसी महान मदहमा हई ह

यसय परसादानिहहिा ििापयतादशो भवत |

(अनिम)

आ तनक धचककतसको का ित

यरोप क परततलषटठत चचककससक भी भारतीय योचगयो क कथन का समथकन करत ह | डॉ तनकोल

कहत ह

ldquoयह एक भषलजक और ददहक तथय ह कक शरीर क सवोततम रकत स सतरी तथा परष दोनो ही जाततयो म परजनन तवव बनत ह | शदध तथा वयवलसथत जीवन म यह तवव पनः अवशोवषत हो जाता ह | यह सकषमतम मलसतषटक सनाय तथा मासपलशय ऊततको (Tissue) का तनमाकर करन क ललय तयार

होकर पनः पररसचारर म जाता ह | मनषटय का यह वीयक वापस ऊपर जाकर शरीर म ववकलसत होन पर उस तनभीक बलवान साहसी तथा वीर बनाता ह | यदद इसका अपवयय ककया गया तो यह उसको सतरर दबकल कशकलवर एव कामोततजनशील बनाता ह तथा उसक शरीर क अगो क कायकवयापार को ववकत एव सनायततर को लशचथल (दबकल) करता ह और उस लमगी (मगी) एव अनय अनक रोगो और

मसय का लशकार बना दता ह | जननलनिय क वयवहार की तनवतत स शारीररक मानलसक तथा अरधयालसमक बल म असाधारर वदचध होती ह |rdquo

परम धीर तथा अरधयवसायी वजञातनक अनसधानो स पता चला ह कक जब कभी भी रतःसराव को सरकषकषत रखा जाता तथा इस परकार शरीर म उसका पनवकशोषर ककया जाता ह तो वह रकत को समदध तथा मलसतषटक को बलवान बनाता ह |

डॉ डडओ लई कहत ह ldquoशारीररक बल मानलसक ओज तथा बौदचधक कशागरता क ललय इस तवव

का सरकषर परम आवशयक ह |rdquo

एक अनय लखक डॉ ई पी लमलर ललखत ह ldquoशिसराव का सवलचछक अथवा अनलचछक अपवयय

जीवनशलकत का परसयकष अपवयय ह | यह परायः सभी सवीकार करत ह कक रकत क सवोततम तवव

शिसराव की सरचना म परवश कर जात ह | यदद यह तनषटकषक ठीक ह तो इसका अथक यह हआ कक

वयलकत क ककयार क ललय जीवन म बरहमचयक परम आवशयक ह |rdquo

पलशचम क परखयात चचककससक कहत ह कक वीयककषय स ववशषकर तररावसथा म वीयककषय स ववववध परकार क रोग उसपनन होत ह | व ह शरीर म वरर चहर पर माहास अथवा ववसफोट नतरो क चतददकक नीली रखाय दाढी का अभाव धास हए नतर रकतकषीरता स पीला चहरा समततनाश दलषटट की कषीरता मतर क साथ वीयकसखलन अणडकोश की वदचध अणडकोशो म पीड़ा दबकलता तनिालता आलसय उदासी हदय-कमप शवासावरोध या कषटटशवास यकषमा पषटठशल कदटवात शोरोवदना सचध-पीड़ा दबकल वकक तनिा म मतर तनकल जाना मानलसक अलसथरता ववचारशलकत का अभाव दःसवपन

सवपन दोष तथा मानलसक अशातत |

उपरोकत रोग को लमटान का एकमातर ईलाज बरहमचयक ह | दवाइयो स या अनय उपचारो स य रोग सथायी रप स ठीक नही होत |

(अनिम)

वीयय कस बनता ह

वीयक शरीर की बहत मकयवान धात ह | भोजन स वीयक बनन की परकिया बड़ी लमबी ह | शरी सशरताचायक न ललखा ह

रसारकत ततो िास िासानिदः परजायत |

िदसयाषसथः ततो िजजा िजजाया शकरसभवः ||

जो भोजन पचता ह उसका पहल रस बनता ह | पााच ददन तक उसका पाचन होकर रकत बनता ह | पााच ददन बाद रकत म स मास उसम स 5-5 ददन क अतर स मद मद स हडडी हडडी स मजजा और मजजा स अत म वीयक बनता ह | सतरी म जो यह धात बनती ह उस lsquoरजrsquo कहत ह |

वीयक ककस परकार छः-सात मलजलो स गजरकर अपना यह अततम रप धारर करता ह यह सशरत क इस कथन स जञात हो जाता ह | कहत ह कक इस परकार वीयक बनन म करीब 30 ददन व 4 घणट लग जात ह | वजञतनक लोग कहत ह कक 32 ककलोगराम भोजन स 700 गराम रकत बनता ह और 700

गराम रकत स लगभग 20 गराम वीयक बनता ह |

(अनिम)

आकियक वयषकततव का कारण

इस वीयक क सयम स शरीर म एक अदभत आकषकक शलकत उसपनन होती ह लजस पराचीन वदय धनवतरर न lsquoओजrsquo नाम ददया ह | यही ओज मनषटय को अपन परम-लाभ lsquoआसमदशकनrsquo करान म सहायक बनता ह | आप जहाा-जहाा भी ककसी वयलकत क जीवन म कछ ववशषता चहर पर तज वारी म बल कायक म उससाह पायग वहाा समझो इस वीयक रकषर का ही चमसकार ह |

यदद एक साधारर सवसथ मनषटय एक ददन म 700 गराम भोजन क दहसाब स चालीस ददन म 32

ककलो भोजन कर तो समझो उसकी 40 ददन की कमाई लगभग 20 गराम वीयक होगी | 30 ददन अथाकत

महीन की करीब 15 गराम हई और 15 गराम या इसस कछ अचधक वीयक एक बार क मथन म परष

दवारा खचक होता ह |

िाली की कहानी

एक था माली | उसन अपना तन मन धन लगाकर कई ददनो तक पररशरम करक एक सनदर बगीचा तयार ककया | उस बगीच म भाातत-भाातत क मधर सगध यकत पषटप खखल | उन पषटपो को चनकर

उसन इकठठा ककया और उनका बदढया इतर तयार ककया | कफर उसन कया ककया समझ आप hellip उस

इतर को एक गदी नाली ( मोरी ) म बहा ददया |

अर इतन ददनो क पररशरम स तयार ककय गय इतर को लजसकी सगनध स सारा घर महकन वाला था उस नाली म बहा ददया आप कहग कक lsquoवह माली बड़ा मखक था पागल था helliprsquo मगर अपन आपम ही झााककर दख | वह माली कही और ढाढन की जररत नही ह | हमम स कई लोग ऐस ही माली ह |

वीयक बचपन स लकर आज तक यानी 15-20 वषो म तयार होकर ओजरप म शरीर म ववदयमान

रहकर तज बल और सफततक दता रहा | अभी भी जो करीब 30 ददन क पररशरम की कमाई थी उस या ही सामानय आवग म आकर अवववकपवकक खचक कर दना कहाा की बदचधमानी ह

कया यह उस माली जसा ही कमक नही ह वह माली तो दो-चार बार यह भल करन क बाद ककसी क समझान पर साभल भी गया होगा कफर वही-की-वही भल नही दोहराई होगी परनत आज तो कई लोग वही भल दोहरात रहत ह | अत म पशचाताप ही हाथ लगता ह |

कषखरक सख क ललय वयलकत कामानध होकर बड़ उससाह स इस मथनरपी कसय म पड़ता ह परनत कसय परा होत ही वह मद जसा हो जाता ह | होगा ही | उस पता ही नही कक सख तो नही लमला कवल सखाभास हआ परनत उसम उसन 30-40 ददन की अपनी कमाई खो दी |

यवावसथा आन तक वीयकसचय होता ह वह शरीर म ओज क रप म लसथत रहता ह | वह तो वीयककषय स नषटट होता ही ह अतत मथन स तो हडडडयो म स भी कछ सफद अश तनकलन लगता ह

लजसस असयचधक कमजोर होकर लोग नपसक भी बन जात ह | कफर व ककसी क सममख आाख

उठाकर भी नही दख पात | उनका जीवन नारकीय बन जाता ह |

वीयकरकषर का इतना महसव होन क कारर ही कब मथन करना ककसस मथन करना जीवन म ककतनी बार करना आदद तनदशन हमार ॠवष-मतनयो न शासतरो म द रख ह |

(अनिम)

सषटि करि क मलए िथन एक पराकततक वयवसथा

शरीर स वीयक-वयय यह कोई कषखरक सख क ललय परकतत की वयवसथा नही ह | सनतानोसपवतत क ललय इसका वासतववक उपयोग ह | यह परकतत की वयवसथा ह |

यह सलषटट चलती रह इसक ललए सनतानोसपवतत होना जररी ह | परकतत म हर परकार की वनसपतत व परारीवगक म यह काम-परववतत सवभावतः पाई जाती ह | इस काम- परववतत क वशीभत होकर हर परारी मथन करता ह और उसका रततसख भी उस लमलता ह | ककनत इस पराकततक वयवसथा को ही बार-बार कषखरक सख का आधार बना लना कहाा की बदचधमानी ह पश भी अपनी ॠत क अनसार ही इस

कामवतत म परवत होत ह और सवसथ रहत ह तो कया मनषटय पश वगक स भी गया बीता ह पशओ म तो बदचधतसव ववकलसत नही होता परनत मनषटय म तो उसका परक ववकास होता ह |

आहारतनराभयिथन च सािानयिततपशमभनयराणाि |

भोजन करना भयभीत होना मथन करना और सो जाना यह तो पश भी करत ह | पश शरीर म रहकर हम यह सब करत आए ह | अब यह मनषटय शरीर लमला ह | अब भी यदद बदचध और

वववकपरक अपन जीवन को नही चलाया और कषखरक सखो क पीछ ही दौड़त रह तो कस अपन मल

लकषय पर पहाच पायग

(अनिम)

सहजता की आड़ ि भरमित न होव कई लोग तकक दन लग जात ह ldquoशासतरो म पढन को लमलता ह और जञानी महापरषो क

मखारववनद स भी सनन म आता ह कक सहज जीवन जीना चादहए | काम करन की इचछा हई तो काम ककया भख लगी तो भोजन ककया नीद आई तो सो गय | जीवन म कोई lsquoटनशनrsquo कोई तनाव

नही होना चादहए | आजकल क तमाम रोग इसी तनाव क ही फल ह hellip ऐसा मनोवजञातनक कहत ह | अतः जीवन सहज और सरल होना चादहए | कबीरदास जी न भी कहा ह सा ो सहज सिाध भली |rdquo

ऐसा तकक दकर भी कई लोग अपन काम-ववकार की तलपत को सहमतत द दत ह | परनत यह अपन आपको धोखा दन जसा ह | ऐस लोगो को खबर ही नही ह कक ऐसा सहज जीवन तो महापरषो का होता ह लजनक मन और बदचध अपन अचधकार म होत ह लजनको अब ससार म अपन ललय पान को कछ भी शष नही बचा ह लजनह मान-अपमान की चचनता नही होती ह | व उस आसमतवव म लसथत हो जात ह जहाा न पतन ह न उसथान | उनको सदव लमलत रहन वाल आननद म अब ससार क ववषय न तो वदचध कर सकत ह न अभाव | ववषय-भोग उन महान परषो को आकवषकत करक अब बहका या भटका नही सकत | इसललए अब उनक सममख भल ही ववषय-सामचगरयो का ढर लग जाय ककनत उनकी चतना इतनी जागत होती ह कक व चाह तो उनका उपयोग कर और चाह तो ठकरा द |

बाहरी ववषयो की बात छोड़ो अपन शरीर स भी उनका ममसव टट चका होता ह | शरीर रह अथवा न रह- इसम भी उनका आगरह नही रहता | ऐस आननदसवरप म व अपन-आपको हर समय अनभव

करत रहत ह | ऐसी अवसथावालो क ललय कबीर जी न कहा ह

सा ो सहज सिाध भली |

(अनिम)

अपन को तोल हम यदद ऐसी अवसथा म ह तब तो ठीक ह | अनयथा रधयान रह ऐस तकक की आड़ म हम अपन को धोखा दकर अपना ही पतन कर डालग | जरा अपनी अवसथा की तलना उनकी अवसथा स कर | हम तो कोई हमारा अपमान कर द तो िोचधत हो उठत ह बदला तक लन को तयार हो जात ह | हम

लाभ-हातन म सम नही रहत ह | राग-दवष हमारा जीवन ह | lsquoमरा-तराrsquo भी वसा ही बना हआ ह | lsquoमरा धन hellip मरा मकान hellip मरी पसनी hellip मरा पसा hellip मरा लमतर hellip मरा बटा hellip मरी इजजत hellip मरा पद helliprsquo

य सब ससय भासत ह कक नही यही तो दहभाव ह जीवभाव ह | हम इसस ऊपर उठ कर वयवहार कर सकत ह कया यह जरा सोच |

कई साध लोग भी इस दहभाव स छटकारा नही पा सक सामानय जन की तो बात ही कया कई

साध भी lsquoम लसतरयो की तरफ दखता ही नही हा hellip म पस को छता ही नही हा helliprsquo इस परकार की अपनी-अपनी मन और बदचध की पकड़ो म उलझ हए ह | व भी अपना जीवन अभी सहज नही कर पाए ह और हम hellip

हम अपन साधारर जीवन को ही सहज जीवन का नाम दकर ववषयो म पड़ रहना चाहत ह | कही लमठाई दखी तो माह म पानी भर आया | अपन सबधी और ररशतदारो को कोई दःख हआ तो भीतर स हम भी दःखी होन लग गय | वयापार म घाटा हआ तो माह छोटा हो गया | कही अपन घर स जयादा ददन दर रह तो बार-बार अपन घरवालो की पसनी और पतरो की याद सतान लगी | य कोई सहज जीवन क लकषर ह लजसकी ओर जञानी महापरषो का सकत ह नही |

(अनिम)

िनोतनगरह की िहहिा आज कल क नौजवानो क साथ बड़ा अनयाय हो रहा ह | उन पर चारो ओर स ववकारो को भड़कान वाल आिमर होत रहत ह |

एक तो वस ही अपनी पाशवी ववततयाा यौन उचछखलता की ओर परोससादहत करती ह और दसर

सामालजक पररलसथततयाा भी उसी ओर आकषकर बढाती ह hellip इस पर उन परववततयो को वौजञातनक

समथकन लमलन लग और सयम को हातनकारक बताया जान लग hellip कछ तथाकचथत आचायक भी फरायड जस नालसतक एव अधर मनोवजञातनक क वयलभचारशासतर को आधार बनाकर lsquoसभोग स सिाध rsquo का उपदश दन लग तब तो ईशवर ही बरहमचयक और दामपसय जीवन की पववतरता का रकषक ह |

16 लसतमबर 1977 क lsquoनययॉकक टाइमस म छपा था

ldquoअमररकन पनल कहती ह कक अमररका म दो करोड़ स अचधक लोगो को मानलसक चचककससा की आवशयकता ह |rdquo

उपरोकत परररामो को दखत हए अमररका क एक महान लखक समपादक और लशकषा ववशारद शरी मादटकन गरोस अपनी पसतक lsquoThe Psychological Societyrsquo म ललखत ह ldquoहम लजतना समझत ह उसस कही जयादा फरायड क मानलसक रोगो न हमार मानस और समाज म गहरा परवश पा ललया ह |

यदद हम इतना जान ल कक उसकी बात परायः उसक ववकत मानस क ही परतततरबमब ह और उसकी मानलसक ववकततयो वाल वयलकतसव को पहचान ल तो उसक ववकत परभाव स बचन म सहायता लमल

सकती ह | अब हम डॉ फरायड की छाया म तरबककल नही रहना चादहए |rdquo

आधतनक मनोववजञान का मानलसक ववशलषर मनोरोग शासतर और मानलसक रोग की चचककससा hellip

य फरायड क रगर मन क परतततरबमब ह | फरायड सवय सफदटक कोलोन परायः सदा रहन वाला मानलसक

अवसाद सनायववक रोग सजातीय समबनध ववकत सवभाव माईगरन कबज परवास मसय और धननाश भय साईनोसाइदटस घरा और खनी ववचारो क दौर आदद रोगो स पीडडत था |

परोफसर एडलर और परोफसर सी जी जग जस मधकनय मनोवजञातनको न फरायड क

लसदधातो का खडन कर ददया ह कफर भी यह खद की बात ह कक भारत म अभी भी कई मानलसक

रोग ववशषजञ और सकसोलॉलजसट फरायड जस पागल वयलकत क लसदधातो को आधार लकर इस दश क जवानो को अनततक और अपराकततक मथन (Sex) का सभोग का उपदश वततकमान पतरो और

सामयोको क दवारा दत रहत ह | फरायड न तो मसय क पहल अपन पागलपन को सवीकार ककया था लककन उसक लककन उसक सवय सवीकार न भी कर तो भी अनयायी तो पागल क ही मान जायग |

अब व इस दश क लोगो को चररतरभरषटट करन का और गमराह करन का पागलपन छोड़ द ऐसी हमारी नमर पराथकना ह | यह lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक पााच बार पढ और पढाएा- इसी म सभी का ककयार तनदहत ह |

आाकड़ बतात ह कक आज पाशचासय दशो म यौन सदाचार की ककतनी दगकतत हई ह इस दगकतत

क परररामसवरप वहाा क तनवालसयो क वयलकतगत जीवन म रोग इतन बढ गय ह कक भारत स 10

गनी जयादा दवाइयाा अमररका म खचक होती ह जबकक भारत की आबादी अमररका स तीन गनी जयादा ह | मानलसक रोग इतन बढ ह कक हर दस अमररकन म स एक को मानलसक रोग होता ह | दवाकसनाएा इतनी बढी ह कक हर छः सकणड म एक बलासकार होता ह और हर वषक लगभग 20 लाख कनयाएा वववाह क पवक ही गभकवती हो जाती ह | मकत साहचयक (free sex) का दहमायती होन क कारर शादी क पहल वहाा का परायः हर वयलकत जातीय सबध बनान लगता ह | इसी वजह स लगभग 65 शाददयाा तलाक म बदल जाती ह | मनषटय क ललय परकतत दवारा तनधाकररत ककय गय सयम का उपहास करन क कारर परकतत न उन लोगो को जातीय रोगो का लशकार बना रखा ह | उनम मखयतः एडस (AIDS) की बीमारी ददन दनी रात चौगनी फलती जा रही ह | वहाा क पाररवाररक व सामालजक जीवन म िोध

कलह असतोष सताप उचछखलता उदयडता और शतरता का महा भयानक वातावरर छा गया ह |

ववशव की लगभग 4 जनसखया अमररका म ह | उसक उपभोग क ललय ववशव की लगभग 40

साधन-सामगरी (जस कक कार टी वी वातानकललत मकान आदद) मौजद ह कफर भी वहाा अपराधवतत

इतनी बढी ह की हर 10 सकणड म एक सधमारी होती ह हर लाख वयलकतयो म स 425 वयलकत

कारागार म सजा भोग रह ह जबकक भारत म हर लाख वयलकत म स कवल 23 वयलकत ही जल की सजा काट रह ह |

कामकता क समथकक फरायड जस दाशकतनको की ही यह दन ह कक लजनहोन पशचासय दशो को मनोववजञान क नाम पर बहत परभाववत ककया ह और वही स यह आाधी अब इस दश म भी फलती जा रही ह | अतः इस दश की भी अमररका जसी अवदशा हो उसक पहल हम सावधान रहना पड़गा | यहाा क कछ अववचारी दाशकतनक भी फरायड क मनोववजञान क आधार पर यवानो को बलगाम सभोग की तरफ उससादहत कर रह ह लजसस हमारी यवापीढी गमराह हो रही ह | फरायड न तो कवल मनोवजञातनक

मानयताओ क आधार पर वयलभचार शासतर बनाया लककन तथाकचथत दाशकतनक न तो lsquoसभोग स सिाध rsquo की पररककपना दवारा वयलभचार को आरधयालसमक जामा पहनाकर धालमकक लोगो को भी भरषटट ककया ह | सभोग स सिाध नही होती सतयानाश होता ह | lsquoसयम स ही समाचध होती ह helliprsquo इस भारतीय मनोववजञान को अब पाशचासय मनोववजञानी भी ससय मानन लग ह |

जब पलशचम क दशो म जञान-ववजञान का ववकास परारमभ भी नही हआ था और मानव न ससकतत क कषतर म परवश भी नही ककया था उस समय भारतवषक क दाशकतनक और योगी मानव मनोववजञान क ववलभनन पहलओ और समसयाओ पर गमभीरता पवकक ववचार कर रह थ | कफर भी पाशचासय ववजञान की छतरछाया म पल हए और उसक परकाश स चकाचौध वततकमान भारत क मनोवजञातनक भारतीय

मनोववजञान का अलसतवव तक मानन को तयार नही ह | यह खद की बात ह | भारतीय मनोवजञातनको न चतना क चार सतर मान ह जागरत सवपन सषलपत और तरीय | पाशचासय मनोवजञातनक परथम तीन सतर को ही जानत ह | पाशचासय मनोववजञान नालसतक ह | भारतीय मनोववजञान ही आसमववकास

और चररतर तनमाकर म सबस अचधक उपयोगी लसदध हआ ह कयोकक यह धमक स असयचधक परभाववत ह | भारतीय मनोववजञान आसमजञान और आसम सधार म सबस अचधक सहायक लसदध होता ह | इसम बरी आदतो को छोड़न और अचछी आदतो को अपनान तथा मन की परकियाओ को समझन तथा उसका तनयतरर करन क महसवपरक उपाय बताय गय ह | इसकी सहायता स मनषटय सखी सवसथ और

सममातनत जीवन जी सकता ह |

पलशचम की मनोवजञातनक मानयताओ क आधार पर ववशवशातत का भवन खड़ा करना बाल की नीव पर भवन-तनमाकर करन क समान ह | पाशचासय मनोववजञान का पररराम वपछल दो ववशवयदधो क रप म ददखलायी पड़ता ह | यह दोष आज पलशचम क मनोवजञातनको की समझ म आ रहा ह | जबकक

भारतीय मनोववजञान मनषटय का दवी रपानतरर करक उसक ववकास को आग बढाना चाहता ह | उसक

lsquoअनकता म एकताrsquo क लसदधात पर ही ससार क ववलभनन राषटरो सामालजक वगो धमो और परजाततयो

म सदहषटरता ही नही सकिय सहयोग उसपनन ककया जा सकता ह | भारतीय मनोववजञान म शरीर और

मन पर भोजन का कया परभाव पड़ता ह इस ववषय स लकर शरीर म ववलभनन चिो की लसथतत

कणडललनी की लसथतत वीयक को ऊरधवकगामी बनान की परकिया आदद ववषयो पर ववसतारपवकक चचाक की गई ह | पाशचासय मनोववजञान मानव-वयवहार का ववजञान ह | भारतीय मनोववजञान मानस ववजञान क साथ-साथ आसमववजञान ह | भारतीय मनोववजञान इलनियतनयतरर पर ववशष बल दता ह जबकक पाशचासय मनोववजञान कवल मानलसक कियाओ या मलसतषटक-सगठन पर बल दता ह | उसम मन दवारा मानलसक जगत का ही अरधययन ककया जाता ह | उसम भी परायड का मनोववजञान तो एक रगर मन क दवारा अनय रगर मनो का ही अरधययन ह जबकक भारतीय मनोववजञान म इलनिय-तनरोध स मनोतनरोध और मनोतनरोध स आसमलसदचध का ही लकषय मानकर अरधययन ककया जाता ह | पाशचासय मनोववजञान म मानलसक तनावो स मलकत का कोई समचचत साधन पररलकषकषत नही होता जो उसक वयलकतसव म तनदहत तनषधासमक पररवशो क ललए सथायी तनदान परसतत कर सक | इसललए परायड क लाखो बदचधमान अनयायी भी पागल हो गय | सभोग क मागक पर चलकर कोई भी वयलकत योगलसदध महापरष नही हआ | उस मागक पर चलनवाल पागल हए ह |

ऐस कई नमन हमन दख ह | इसक ववपरीत भारतीय मनोववजञान म मानलसक तनावो स मलकत क ववलभनन उपाय बताय गय ह यथा योगमागक साधन-चतषटटय शभ-ससकार सससगतत अभयास

वरागय जञान भलकत तनषटकाम कमक आदद | इन साधनो क तनयलमत अभयास स सगदठत एव समायोलजत वयलकतसव का तनमाकर सभव ह | इसललय भारतीय मनोववजञान क अनयायी पाखरतन और महाकवव काललदास जस परारमभ म अकपबदचध होन पर भी महान ववदवान हो गय | भारतीय मनोववजञान न इस ववशव को हजारो महान भकत समथक योगी तथा बरहमजञानी महापरष ददय ह |

अतः पाशचासय मनोववजञान को छोड़कर भारतीय मनोववजञान का आशरय लन म ही वयलकत कटमब समाज राषटर और ववशव का ककयार तनदहत ह |

भारतीय मनोववजञान पतजलल क लसदधातो पर चलनवाल हजारो योगालसदध महापरष इस दश म हए ह अभी भी ह और आग भी होत रहग जबकक सभोग क मागक पर चलकर कोई योगलसदध महापरष हआ हो ऐसा हमन तो नही सना बलकक दबकल हए रोगी हए एड़स क लशकार हए अकाल मसय क लशकार हए खखनन मानस हए अशात हए | उस मागक पर चलनवाल पागल हए ह ऐस कई नमन हमन दख ह |

फरायड न अपनी मनःलसथतत की तराज पर सारी दतनया क लोगो को तौलन की गलती की ह | उसका अपना जीवन-िम कछ बतक ढग स ववकलसत हआ ह | उसकी माता अमललया बड़ी खबसरत थी | उसन योकोव नामक एक अनय परष क साथ अपना दसरा वववाह ककया था | जब फरायड जनमा तब वह २१ वषक की थी | बचच को वह बहत पयार करती थी |

य घटनाएा फरायड न सवय ललखी ह | इन घटनाओ क अधार पर फरायड कहता ह ldquoपरष बचपन स ही ईडडपस कॉमपलकस (Oedipus Complex) अथाकत अवचतन मन म अपनी माा क परतत यौन-आकाकषा स आकवषकत होता ह तथा अपन वपता क परतत यौन-ईषटयाक स गरलसत रहता ह | ऐस ही लड़की अपन बाप क परतत आकवषकत होती ह तथा अपनी माा स ईषटयाक करती ह | इस इलकरा कोऊमपलकस (Electra Complex) कहत ह | तीन वषक की आय स ही बचचा अपनी माा क साथ यौन-समबनध सथावपत करन क ललय लालातयत रहता ह | एकाध साल क बाद जब उस पता चलता ह कक उसकी माा क साथ तो बाप का वसा सबध पहल स ही ह तो उसक मन म बाप क परतत ईषटयाक और घरा जाग पड़ती ह | यह ववदवष उसक अवचतन मन म आजीवन बना रहता ह | इसी परकार लड़की अपन बाप क परतत सोचती ह और माा स ईषटयाक करती ह |

फरायड आग कहता ह इस मानलसक अवरोध क कारर मनषटय की गतत रक जाती ह |

ईडडपस कोऊमपलकस उसक सामन तरह-तरह क अवरोध खड़ करता ह | यह लसथतत कोई अपवाद नही ह वरन साधाररतया यही होता ह |

यह ककतना घखरत और हासयासपद परततपादन ह छोटा बचचा यौनाकाकषा स पीडडत होगा सो भी अपनी माा क परतत पश-पकषकषयो क बचच क शरीर म भी वासना तब उठती ह जब उनक शरीर परजनन क योगय सदढ हो जात ह | तो मनषटय क बालक म यह ववतत इतनी छोटी आय म कस पदा हो सकती ह और माा क साथ वसी तलपत करन कक उसकी शाररररक-मानलसक लसथतत भी नही होती | कफर तीन वषक क बालक को काम-किया और माा-बाप क रत रहन की जानकारी उस कहाा स हो जाती ह कफर वह यह कस समझ लता ह कक उस बाप स ईषटयाक करनी चादहए

बचच दवारा माा का दध पीन की किया को ऐस मनोववजञातनयो न रततसख क समककष बतलाया ह | यदद इस सतनपान को रततसख माना जाय तब तो आय बढन क साथ-साथ यह उसकठा भी परबलतर होती जानी चादहए और वयसक होन तक बालक को माता का दध ही पीत रहना चादहए | ककनत यह ककस परकार सभव ह

तो य ऐस बतक परततपादन ह कक लजनकी भससकना ही की जानी चादहए | फरायड न अपनी मानलसक ववकततयो को जनसाधारर पर थोपकर मनोववजञान को ववकत बना ददया |

जो लोग मानव समाज को पशता म चगरान स बचाना चाहत ह भावी पीढी का जीवन वपशाच होन स बचाना चाहत ह यवानो का शारीररक सवासथय मानलसक परसननता और बौदचधक सामथयक बनाय रखना चाहत ह इस दश क नागररको को एडस (AIDS) जसी घातक बीमाररयो स गरसत होन स रोकना चाहत ह सवसथ समाज का तनमाकर करना चाहत ह उन सबका यह नततक कववयक ह कक व हमारी गमराह यवा पीढी को यौवन सरकषा जसी पसतक पढाय |

यदद काम-ववकार उठा और हमन यह ठीक नही ह इसस मर बल-बदचध और तज का नाश होगा ऐसा समझकर उसको टाला नही और उसकी पतत क म लमपट होकर लग गय तो हमम और पशओ म अतर ही कया रहा पश तो जब उनकी कोई ववशष ऋत होती ह तभी मथन करत ह बाकी ऋतओ म नही | इस दलषटट स उनका जीवन सहज व पराकततक ढग का होता ह | परत मनषटय

मनषटय तो बारहो महीन काम-किया की छट लकर बठा ह और ऊपर स यह भी कहता ह कक यदद काम-वासना की पतत क करक सख नही ललया तो कफर ईशवर न मनषटय म जो इसकी रचना की ह उसका कया मतलब आप अपन को वववकपरक रोक नही पात हो छोट-छोट सखो म उलझ जात हो- इसका तो कभी खयाल ही नही करत और ऊपर स भगवान तक को अपन पापकमो म भागीदार बनाना चाहत हो

(अनिम)

आतिघाती तकय अभी कछ समय पवक मर पास एक पतर आया | उसम एक वयलकत न पछा था ldquoआपन सससग म कहा और एक पलसतका म भी परकालशत हआ कक lsquoबीड़ी लसगरट तमबाक आदद मत वपयो | ऐस वयसनो स बचो कयोकक य तमहार बल और तज का हरर करत ह helliprsquo यदद ऐसा ही ह तो भगवान न तमबाक आदद पदा ही कयो ककया rdquo

अब उन सजजन स य वयसन तो छोड़ नही जात और लग ह भगवान क पीछ | भगवान न गलाब क साथ कााट भी पदा ककय ह | आप फल छोड़कर कााट तो नही तोड़त भगवान न आग भी पदा की ह | आप उसम भोजन पकात हो अपना घर तो नही जलात भगवान न आक (मदार) धतर बबल आदद भी बनाय ह मगर उनकी तो आप सबजी नही बनात इन सब म तो आप अपनी बदचध का उपयोग करक वयवहार करत हो और जहाा आप हार जात हो जब आपका मन आपक कहन म नही होता तो आप लगत हो भगवान को दोष दन अर भगवान न तो बादाम-वपसत भी पदा ककय ह दध भी पदा ककया ह | उपयोग करना ह तो इनका करो जो आपक बल और बदचध की वदचध कर | पसा ही खचकना ह तो इनम खचो | यह तो होता नही और लग ह तमबाक क पीछ | यह बदचध का सदपयोग नही ह दरपयोग ह | तमबाक पीन स तो बदचध और भी कमजोर हो जायगी |

शरीर क बल बदचध की सरकषा क ललय वीयकरकषर बहत आवशयक ह | योगदशकन क lsquoसाधपादrsquo म बरहमचयक की महतता इन शबदो म बतायी गयी ह

बरहिचययपरततटठाया वीययलाभः ||37||

बरहमचयक की दढ लसथतत हो जान पर सामथयक का लाभ होता ह |

(अनिम)

सतरी परसग ककतनी बार

कफर भी यदद कोई जान-बझकर अपन सामथयक को खोकर शरीहीन बनना चाहता हो तो यह यनान

क परलसदध दाशकतनक सकरात क इन परलसदध वचनो को सदव याद रख | सकरात स एक वयलकत न पछा

ldquoपरष क ललए ककतनी बार सतरी-परसग करना उचचत ह rdquo

ldquoजीवन भर म कवल एक बार |rdquo

ldquoयदद इसस तलपत न हो सक तो rdquo

ldquoतो वषक म एक बार |rdquo

ldquoयदद इसस भी सतोष न हो तो rdquo

ldquoकफर महीन म एक बार |rdquo

इसस भी मन न भर तो rdquo

ldquoतो महीन म दो बार कर परनत मसय शीघर आ जायगी |rdquo

ldquoइतन पर भी इचछा बनी रह तो कया कर rdquo

इस पर सकरात न कहा

ldquoतो ऐसा कर कक पहल कबर खदवा ल कफर कफन और लकड़ी घर म लाकर तयार रख | उसक

पशचात जो इचछा हो सो कर |rdquo

सकरात क य वचन सचमच बड़ परररापरद ह | वीयककषय क दवारा लजस-लजसन भी सख लन का परयास ककया ह उनह घोर तनराशा हाथ लगी ह और अनत म शरीहीन होकर मसय का गरास बनना पड़ा

ह | कामभोग दवारा कभी तलपत नही होती और अपना अमकय जीवन वयथक चला जाता ह | राजा ययातत की कथा तो आपन सनी होगी |

(अनिम)

राजा ययातत का अनभव

शिाचायक क शाप स राजा ययातत यवावसथा म ही वदध हो गय थ | परनत बाद म ययातत क पराथकना करन पर शिाचायक न दयावश उनको यह शलकत द दी कक व चाह तो अपन पतरो स यवावसथा लकर अपना वाधककय उनह द सकत थ | तब ययातत न अपन पतर यद तवकस िहय और अन स उनकी जवानी माागी मगर व राजी न हए | अत म छोट पतर पर न अपन वपता को अपना यौवन दकर उनका बढापा ल ललया |

पनः यवा होकर ययातत न कफर स भोग भोगना शर ककया | व ननदनवन म ववशवाची नामक अपसरा क साथ रमर करन लग | इस परकार एक हजार वषक तक भोग भोगन क बाद भी भोगो स

जब व सतषटट नही हए तो उनहोन अपना बचा हआ यौवन अपन पतर पर को लौटात हए कहा

न जात कािः कािानािपभोगन शामयतत |

हषविा कटणवतिव भ य एवामभव यत ||

ldquoपतर मन तमहारी जवानी लकर अपनी रचच उससाह और समय क अनसार ववषटयो का सवन ककया लककन ववषयो की कामना उनक उपभोग स कभी शात नही होती अवपत घी की आहतत पड़न पर अलगन की भाातत वह अचधकाचधक बढती ही जाती ह |

रसनो स जड़ी हई सारी पथवी ससार का सारा सवरक पश और सनदर लसतरयाा व सब एक परष को लमल जाय तो भी व सबक सब उसक ललय पयाकपत नही होग | अतः तषटरा का सयाग कर दना चादहए |

छोटी बदचधवाल लोगो क ललए लजसका सयाग करना असयत कदठन ह जो मनषटय क बढ होन पर

भी सवय बढी नही होती तथा जो एक परारानतक रोग ह उस तषटरा को सयाग दनवाल परष को ही सख लमलता ह |rdquo (महाभारत आददपवाकखर सभवपवक 12)

ययातत का अनभव वसततः बड़ा मालमकक और मनषटय जातत ल ललय दहतकारी ह | ययातत आग

कहत ह

ldquoपतर दखो मर एक हजार वषक ववषयो को भोगन म बीत गय तो भी तषटरा शात नही होती और आज भी परततददन उन ववषयो क ललय ही तषटरा पदा होती ह |

प ण वियसहसर ि षवियासकतचतसः |

तथापयनहदन तटणा िितटवमभजायत ||

इसललए पतर अब म ववषयो को छोड़कर बरहमाभयास म मन लगाऊा गा | तनदकवनदव तथा ममतारदहत होकर वन म मगो क साथ ववचरा गा | ह पतर तमहारा भला हो | तम पर म परसनन हा | अब तम अपनी जवानी पनः परापत करो और म यह राजय भी तमह ही अपकर करता हा |

इस परकार अपन पतर पर को राजय दकर ययातत न तपसया हत वनगमन ककया | उसी राजा पर स पौरव वश चला | उसी वश म परीकषकषत का पतर राजा जनमजय पदा हआ था |

(अनिम)

राजा िचकनद का परसग

राजा मचकनद गगाकचायक क दशकन-सससग क फलसवरप भगवान का दशकन पात ह | भगवान स सततत करत हए व कहत ह

ldquoपरभो मझ आपकी दढ भलकत दो |rdquo

तब भगवान कहत ह ldquoतन जवानी म खब भोग भोग ह ववकारो म खब डबा ह | ववकारी जीवन

जीनवाल को दढ भलकत नही लमलती | मचकनद दढ भलकत क ललए जीवन म सयम बहत जररी ह |

तरा यह कषतरतरय शरीर समापत होगा तब दसर जनम म तझ दढ भलकत परापत होगी |rdquo

वही राजा मचकनद कललयग म नरलसह महता हए |

जो लोग अपन जीवन म वीयकरकषा को महसव नही दत व जरा सोच कक कही व भी राजा ययातत का तो अनसरर नही कर रह ह यदद कर रह हो तो जस ययातत सावधान हो गय वस आप भी सावधान हो जाओ भया दहममत करो | सयान हो जाओ | दया करो | हम पर दया न करो तो अपन-आप पर तो दया करो भया दहममत करो भया सयान हो जाओ मर पयार जो हो गया उसकी चचनता न करो | आज स नवजीवन का परारभ करो | बरहमचयकरकषा क आसन पराकततक औषचधयाा इसयादद जानकर वीर बनो | ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

(अनिम)

गलत अभयास का दटपररणाि

आज ससार म ककतन ही ऐस अभाग लोग ह जो शगार रस की पसतक पढकर लसनमाओ क कपरभाव क लशकार होकर सवपनावसथा या जागरतावसथा म अथवा तो हसतमथन दवारा सपताह म ककतनी बार वीयकनाश कर लत ह | शरीर और मन को ऐसी आदत डालन स वीयाकशय बार-बार खाली होता रहता ह | उस वीयाकशय को भरन म ही शारीररक शलकत का अचधकतर भाग वयय होन लगता ह

लजसस शरीर को काततमान बनान वाला ओज सचचत ही नही हो पाता और वयलकत शलकतहीन

ओजहीन और उससाहशनय बन जाता ह | ऐस वयलकत का वीयक पतला पड़ता जाता ह | यदद वह समय पर अपन को साभाल नही सक तो शीघर ही वह लसथतत आ जाती ह कक उसक अणडकोश वीयक बनान म असमथक हो जात ह | कफर भी यदद थोड़ा बहत वीयक बनता ह तो वह भी पानी जसा ही बनता ह

लजसम सनतानोसपवतत की ताकत नही होती | उसका जीवन जीवन नही रहता | ऐस वयलकत की हालत मतक परष जसी हो जाती ह | सब परकार क रोग उस घर लत ह | कोई दवा उस पर असर नही कर पाती | वह वयलकत जीत जी नकक का दःख भोगता रहता ह | शासतरकारो न ललखा ह

आयसतजोबल वीय परजञा शरीशच िहदयशः |

पणय च परीततितव च हनयतऽबरहिचयाय ||

lsquoआय तज बल वीयक बदचध लकषमी कीततक यश तथा पणय और परीतत य सब बरहमचयक का पालन न करन स नषटट हो जात ह |rsquo

(अनिम)

वीययरकषण सदव सततय

इसीललए वीयकरकषा सतसय ह | lsquoअथवकवद म कहा गया ह

अतत सटिो अपा विभोऽततसटिा अगनयो हदवया ||1||

इद तितत सजामि त िाऽभयवतनकषकष ||2||

अथाकत lsquoशरीर म वयापत वीयक रपी जल को बाहर ल जान वाल शरीर स अलग कर दन वाल काम

को मन पर हटा ददया ह | अब म इस काम को अपन स सवकथा दर फ कता हा | म इस आरोगयता बल-बदचधनाशक काम का कभी लशकार नही होऊा गा |rsquo

hellip और इस परकार क सककप स अपन जीवन का तनमाकर न करक जो वयलकत वीयकनाश करता रहता ह उसकी कया गतत होगी इसका भी lsquoअथवकवदrsquo म उकलख आता ह

रजन परररजन िणन पररिणन |

मरोको िनोहा खनो तनदायह आतिद षिसतन द षिः ||

यह काम रोगी बनान वाला ह बहत बरी तरह रोगी करन वाला ह | मरन यानी मार दन वाला ह |

पररमरन यानी बहत बरी तरह मारन वाला ह |यह टढी चाल चलता ह मानलसक शलकतयो को नषटट कर दता ह | शरीर म स सवासथय बल आरोगयता आदद को खोद-खोदकर बाहर फ क दता ह | शरीर की सब धातओ को जला दता ह | आसमा को मललन कर दता ह | शरीर क वात वपतत कफ को दवषत करक उस तजोहीन बना दता ह |

बरहमचयक क बल स ही अगारपरक जस बलशाली गधवकराज को अजकन न परालजत कर ददया था |

(अनिम)

अजयन और अगारपणय ग वय अजकन अपन भाईयो सदहत िौपदी क सवयवर-सथल पाचाल दश की ओर जा रहा था तब बीच म गगा तट पर बस सोमाशरयार तीथक म गधवकराज अगारपरक (चचतररथ) न उसका रासता रोक ददया | वह गगा म अपनी लसतरयो क साथ जलकिड़ा कर रहा था | उसन पााचो पाडवो को कहा ldquoमर यहाा रहत हए

राकषस यकष दवता अथवा मनषटय कोई भी इस मागक स नही जा सकता | तम लोग जान की खर चाहत हो तो लौट जाओ |rdquo

तब अजकन कहता ह

ldquoम जानता हा कक समपरक गधवक मनषटयो स अचधक शलकतशाली होत ह कफर भी मर आग तमहारी दाल नही गलगी | तमह जो करना हो सो करो हम तो इधर स ही जायग |rdquo

अजकन क इस परततवाद स गधवक बहत िोचधत हआ और उसन पाडवो पर तीकषर बार छोड़ | अजकन

न अपन हाथ म जो जलती हई मशाल पकड़ी थी उसीस उसक सभी बारो को तनषटफल कर ददया | कफर गधवक पर आगनय असतर चला ददया | असतर क तज स गधवक का रथ जलकर भसम हो गया और

वह सवय घायल एव अचत होकर माह क बल चगर पड़ा | यह दखकर उस गधवक की पसनी कममीनसी बहत घबराई और अपन पतत की रकषाथक यचधलषटठर स पराथकना करन लगी | तब यचधलषटठर न अजकन स उस गधवक को अभयदान ददलवाया |

जब वह अगारपरक होश म आया तब बोला

ldquoअजकन म परासत हो गया इसललए अपन पवक नाम अगारपरक को छोड़ दता हा | म अपन ववचचतर

रथ क कारर चचतररथ कहलाता था | वह रथ भी आपन अपन परािम स दगध कर ददया ह | अतः अब

म दगधरथ कहलाऊा गा |

मर पास चाकषषी नामक ववदया ह लजस मन न सोम को सोम न ववशवावस को और ववशवावस न मझ परदान की ह | यह गर की ववदया यदद ककसी कायर को लमल जाय तो नषटट हो जाती ह | जो छः महीन तक एक पर पर खड़ा रहकर तपसया कर वही इस ववदया को पा सकता ह | परनत अजकन म आपको ऐसी तपसया क तरबना ही यह ववदया परदान करता हा |

इस ववदया की ववशषता यह ह कक तीनो लोको म कही भी लसथत ककसी वसत को आाख स दखन की इचछा हो तो उस उसी रप म इस ववदया क परभाव स कोई भी वयलकत दख सकता ह | अजकन

इस ववदया क बल पर हम लोग मनषटयो स शरषटठ मान जात ह और दवताओ क तकय परभाव ददखा सकत ह |rdquo

इस परकार अगारपरक न अजकन को चाकषषी ववदया ददवय घोड़ एव अनय वसतएा भट की |

अजकन न गधवक स पछा गधवक तमन हम पर एकाएक आिमर कयो ककया और कफर हार कयो गय rdquo

तब गधवक न बड़ा ममकभरा उततर ददया | उसन कहा

ldquoशतरओ को सताप दनवाल वीर यदद कोई कामासकत कषतरतरय रात म मझस यदध करन आता तो ककसी भी परकार जीववत नही बच सकता था कयोकक रात म हम लोगो का बल और भी बढ जाता ह |

अपन बाहबल का भरोसा रखन वाला कोई भी परष जब अपनी सतरी क सममख ककसीक दवारा अपना ततरसकार होत दखता ह तो सहन नही कर पाता | म जब अपनी सतरी क साथ जलिीड़ा कर

रहा था तभी आपन मझ ललकारा इसीललय म िोधाववषटट हआ और आप पर बारवषाक की | लककन यदद आप यह पछो कक म आपस परालजत कयो हआ तो उसका उततर ह

बरहिचय परो ियः स चाषप तनयतसवततय |

यसिात तसिादह पाथय रणऽषसि षवषजतसतवया ||

ldquoबरहमचयक सबस बड़ा धमक ह और वह आपम तनलशचत रप स ववदयमान ह | ह कनतीनदन

इसीललय यदध म म आपस हार गया हा |rdquo (महाभारत आददपवकखर चतररथ पवक 71)

हम समझ गय कक वीयकरकषर अतत आवशयक ह | अब वह कस हो इसकी चचाक करन स पवक एक बार

बरहमचयक का तालववक अथक ठीक स समझ ल |

(अनिम)

बरहिचयय का ताषततवक अथय lsquoबरहमचयकrsquo शबद बड़ा चचतताकषकक और पववतर शबद ह | इसका सथल अथक तो यही परलसदध ह कक

लजसन शादी नही की ह जो काम-भोग नही करता ह जो लसतरयो स दर रहता ह आदद-आदद | परनत यह बहत सतही और सीलमत अथक ह | इस अथक म कवल वीयकरकषर ही बरहमचयक ह | परनत रधयान रह

कवल वीयकरकषर मातर साधना ह मलजल नही | मनषटय जीवन का लकषय ह अपन-आपको जानना अथाकत

आसम-साकषासकार करना | लजसन आसम-साकषासकार कर ललया वह जीवनमकत हो गया | वह आसमा क

आननद म बरहमाननद म ववचरर करता ह | उस अब ससार स कछ पाना शष नही रहा | उसन आननद का सरोत अपन भीतर ही पा ललया | अब वह आननद क ललय ककसी भी बाहरी ववषय पर

तनभकर नही ह | वह परक सवततर ह | उसकी कियाएा सहज होती ह | ससार क ववषय उसकी आननदमय आलसमक लसथतत को डोलायमान नही कर सकत | वह ससार क तचछ ववषयो की पोल को समझकर अपन आननद म मसत हो इस भतल पर ववचरर करता ह | वह चाह लागोटी म हो चाह बहत स कपड़ो म घर म रहता हो चाह झोपड़ म गहसथी चलाता हो चाह एकानत जगल म ववचरता हो ऐसा महापरष ऊपर स भल कगाल नजर आता हो परनत भीतर स शहशाह होता ह कयोकक उसकी सब

वासनाएा सब कततकवय पर हो चक ह | ऐस वयलकत को ऐस महापरष को वीयकरकषर करना नही पड़ता सहज ही होता ह | सब वयवहार करत हए भी उनकी हर समय समाचध रहती ह | उनकी समाचध सहज

होती ह अखणड होती ह | ऐसा महापरष ही सचचा बरहमचारी होता ह कयोकक वह सदव अपन बरहमाननद म अवलसथत रहता ह |

सथल अथक म बरहमचयक का अथक जो वीयकरकषर समझा जाता ह उस अथक म बरहमचयक शरषटठ वरत ह

शरषटठ तप ह शरषटठ साधना ह और इस साधना का फल ह आसमजञान आसम-साकषासकार | इस

फलपरालपत क साथ ही बरहमचयक का परक अथक परकट हो जाता ह |

जब तक ककसी भी परकार की वासना शष ह तब तक कोई परक बरहमचयक को उपलबध नही हो सकता | जब तक आसमजञान नही होता तब तक परक रप स वासना तनवतत नही होती | इस वासना की तनववतत क ललय अतःकरर की शदचध क ललय ईशवर की परालपत क ललय सखी जीवन जीन क ललय

अपन मनषटय जीवन क सवोचच लकषय को परापत करन क ललय या कहो परमाननद की परालपत क ललयhellip कछ भी हो वीयकरकषररपी साधना सदव अब अवसथाओ म उततम ह शरषटठ ह और आवशयक ह

|

वीयकरकषर कस हो इसक ललय यहाा हम कछ सथल और सकषम उपायो की चचाक करग |

(अनिम)

3 वीययरकषा क उपाय

सादा रहन-सहन बनाय काफी लोगो को यह भरम ह कक जीवन तड़क-भड़कवाला बनान स व समाज म ववशष मान जात ह | वसततः ऐसी बात नही ह | इसस तो कवल अपन अहकार का ही परदशकन होता ह | लाल रग क भड़कील एव रशमी कपड़ नही पहनो | तल-फलल और भाातत-भाातत क इतरो का परयोग करन स बचो | जीवन म लजतनी तड़क-भड़क बढगी इलनियाा उतनी चचल हो उठगी कफर वीयकरकषा तो दर की बात ह |

इततहास पर भी हम दलषटट डाल तो महापरष हम ऐस ही लमलग लजनका जीवन परारभ स ही सादगीपरक था | सादा रहन-सहन तो बडपपन का दयोतक ह | दसरो को दख कर उनकी अपराकततक व

अचधक आवशयकताओवाली जीवन-शली का अनसरर नही करो |

उपयकत आहार

ईरान क बादशाह वहमन न एक शरषटठ वदय स पछा

ldquoददन म मनषटय को ककतना खाना चादहएrdquo

ldquoसौ ददराम (अथाकत 31 तोला) | ldquoवदय बोला |

ldquoइतन स कया होगाrdquo बादशाह न कफर पछा |

वदय न कहा ldquoशरीर क पोषर क ललय इसस अचधक नही चादहए | इसस अचधक जो कछ खाया जाता ह वह कवल बोझा ढोना ह और आयषटय खोना ह |rdquo

लोग सवाद क ललय अपन पट क साथ बहत अनयाय करत ह ठास-ठासकर खात ह | यरोप का एक बादशाह सवाददषटट पदाथक खब खाता था | बाद म औषचधयो दवारा उलटी करक कफर स सवाद लन क

ललय भोजन करता रहता था | वह जकदी मर गया |

आप सवादलोलप नही बनो | लजहवा को तनयतरर म रखो | कया खाय कब खाय कस खाय और

ककतना खाय इसका वववक नही रखा तो पट खराब होगा शरीर को रोग घर लग वीयकनाश को परोससाहन लमलगा और अपन को पतन क रासत जान स नही रोक सकोग |

परमपवकक शात मन स पववतर सथान पर बठ कर भोजन करो | लजस समय नालसका का दादहना सवर (सयक नाड़ी) चाल हो उस समय ककया भोजन शीघर पच जाता ह कयोकक उस समय जठरालगन बड़ी परबल होती ह | भोजन क समय यदद दादहना सवर चाल नही हो तो उसको चाल कर दो | उसकी ववचध यह ह वाम ककषकष म अपन दादहन हाथ की मठठी रखकर ककषकष को जोर स दबाओ या बाायी (वाम) करवट लट जाओ | थोड़ी ही दर म दादहना यान सयक सवर चाल हो जायगा |

रातरतर को बाायी करवट लटकर ही सोना चादहए | ददन म सोना उचचत नही ककनत यदद सोना आवशयक हो तो दादहनी करवट ही लटना चादहए |

एक बात का खब खयाल रखो | यदद पय पदाथक लना हो तो जब चनि (बााया) सवर चाल हो तभी लो | यदद सयक (दादहना) सवर चाल हो और आपन दध काफी चाय पानी या कोई भी पय पदाथक ललया तो वीयकनाश होकर रहगा | खबरदार सयक सवर चल रहा हो तब कोई भी पय पदाथक न वपयो | उस

समय यदद पय पदाथक पीना पड़ तो दादहना नथना बनद करक बााय नथन स शवास लत हए ही वपयो |

रातरतर को भोजन कम करो | भोजन हकका-सपाचय हो | बहत गमक-गमक और दर स पचन वाला गररषटठ भोजन रोग पदा करता ह | अचधक पकाया हआ तल म तला हआ लमचक-मसालयकत तीखा खटटा चटपटदार भोजन वीयकनाडड़यो को कषबध करता ह | अचधक गमक भोजन और गमक चाय स दाात कमजोर होत ह | वीयक भी पतला पड़ता ह |

भोजन खब चबा-चबाकर करो | थक हए हो तो तसकाल भोजन न करो | भोजन क तरत बाद

पररशरम न करो |

भोजन क पहल पानी न वपयो | भोजन क बीच म तथा भोजन क एकाध घट क बाद पानी पीना दहतकर होता ह |

रातरतर को सभव हो तो फलाहार लो | अगर भोजन लना पड़ तो अकपाहार ही करो | बहत रात गय भोजन या फलाहार करना दहतावह नही ह | कबज की लशकायत हो तो 50 गराम लाल कफटकरी तव पर

फलाकर कटकर कपड़ स छानकर बोतल म भर लो | रातरतर म 15 गराम सौफ एक चगलास पानी म लभगो दो | सबह उस उबाल कर छान लो और ड़ढ गराम कफटकरी का पाउडर लमलाकर पी लो | इसस कबज व बखार भी दर होता ह | कबज तमाम तरबमाररयो की जड़ ह | इस दर करना आवशयक ह |

भोजन म पालक परवल मथी बथआ आदद हरी तरकाररयाा दध घी छाछ मकखन पक हए फल

आदद ववशष रप स लो | इसस जीवन म सालववकता बढगी | काम िोध मोह आदद ववकार घटग | हर कायक म परसननता और उससाह बना रहगा |

रातरतर म सोन स पवक गमक-गमक दध नही पीना चादहए | इसस रात को सवपनदोष हो जाता ह |

कभी भी मल-मतर की लशकायत हो तो उस रोको नही | रोक हए मल स भीतर की नाडड़याा कषबध होकर वीयकनाश कराती ह |

पट म कबज होन स ही अचधकाशतः रातरतर को वीयकपात हआ करता ह | पट म रका हआ मल

वीयकनाडड़यो पर दबाव डालता ह तथा कबज की गमी स ही नाडड़याा कषलभत होकर वीयक को बाहर

धकलती ह | इसललय पट को साफ रखो | इसक ललय कभी-कभी तरतरफला चरक या lsquoसतकपा चरकrsquo या lsquoइसबगलrsquo पानी क साथ ललया करो | अचधक ततकत खटटी चरपरी और बाजार औषचधयाा उततजक होती ह उनस बचो | कभी-कभी उपवास करो | पट को आराम दन क ललय कभी-कभी तनराहार भी रह सकत हो तो अचछा ह |

आहार पचतत मशखी दोिान आहारवषजयतः |

अथाकत पट की अलगन आहार को पचाती ह और उपवास दोषो को पचाता ह | उपवास स

पाचनशलकत बढती ह |

उपवास अपनी शलकत क अनसार ही करो | ऐसा न हो कक एक ददन तो उपवास ककया और दसर ददन लमषटठानन-लडड आदद पट म ठास-ठास कर उपवास की सारी कसर तनकाल दी | बहत अचधक

भखा रहना भी ठीक नही |

वस उपवास का सही अथक तो होता ह बरहम क परमासमा क तनकट रहना | उप यानी समीप और

वास यानी रहना | तनराहार रहन स भगवदभजन और आसमचचतन म मदद लमलती ह | ववतत अनतमकख

होन स काम-ववकार को पनपन का मौका ही नही लमल पाता |

मदयपान पयाज लहसन और मासाहार ndash य वीयककषय म मदद करत ह अतः इनस अवशय बचो |

(अनिम)

मशशनषनरय सनान

शौच क समय एव लघशका क समय साथ म चगलास अथवा लोट म ठड़ा जल लकर जाओ और उसस लशशनलनिय को धोया करो | कभी-कभी उस पर ठड़ पानी की धार ककया करो | इसस कामववतत का शमन होता ह और सवपनदोष नही होता |

उधचत आसन एव वयायाि करो

सवसथ शरीर म सवसथ मन का तनवास होता ह | अगरजी म कहत ह A healthy mind

resides in a healthy body

लजसका शरीर सवसथ नही रहता उसका मन अचधक ववकारगरसत होता ह | इसललय रोज परातः वयायाम एव आसन करन का तनयम बना लो |

रोज परातः काल 3-4 लमनट दौड़न और तजी स टहलन स भी शरीर को अचछा वयायाम लमल

जाता ह |

सयकनमसकार 13 अथवा उसस अचधक ककया करो तो उततम ह | इसम आसन व वयायाम दोनो का समावश होता ह |

lsquoवयायामrsquo का अथक पहलवानो की तरह मासपलशयाा बढाना नही ह | शरीर को योगय कसरत लमल जाय ताकक उसम रोग परवश न कर और शरीर तथा मन सवसथ रह ndash इतना ही उसम हत ह |

वयायाम स भी अचधक उपयोगी आसन ह | आसन शरीर क समचचत ववकास एव बरहमचयक-साधना क ललय असयत उपयोगी लसदध होत ह | इनस नाडड़याा शदध होकर सववगर की वदचध होती ह | वस तो शरीर क अलग-अलग अगो की पलषटट क ललय अलग-अलग आसन होत ह परनत वीयकरकषा की दलषटट स मयरासन पादपलशचमोततानासन सवाागासन थोड़ी बहत सावधानी रखकर हर कोई कर सकता ह |

इनम स पादपलशचमोततानासन तो बहत ही उपयोगी ह | आशरम म आनवाल कई साधको का यह तनजी अनभव ह |

ककसी कशल योग-परलशकषक स य आसन सीख लो और परातःकाल खाली पट शदध हवा म ककया करो | शौच सनान वयायाम आदद क पशचात ही आसन करन चादहए |

सनान स पवक सख तौललय अथवा हाथो स सार शरीर को खब रगड़ो | इस परकार क घषकर स शरीर

म एक परकार की ववदयत शलकत पदा होती ह जो शरीर क रोगो को नषटट करती ह | शवास तीवर गतत

स चलन पर शरीर म रकत ठीक सचरर करता ह और अग-परसयग क मल को तनकालकर फफड़ो म लाता ह | फफड़ो म परववषटट शदध वाय रकत को साफ कर मल को अपन साथ बाहर तनकाल ल जाती ह | बचा-खचा मल पसीन क रप म सवचा क तछिो दवारा बाहर तनकल आता ह | इस परकार शरीर पर घषकर करन क बाद सनान करना अचधक उपयोगी ह कयोकक पसीन दवारा बाहर तनकला हआ मल उसस धल जाता ह सवचा क तछि खल जात ह और बदन म सफततक का सचार होता ह |

(अनिम)

बरहििह तय ि उठो

सवपनदोष अचधकाशतः रातरतर क अततम परहर म हआ करता ह | इसललय परातः चार-साढ चार बज यानी बरहममहतक म ही शया का सयाग कर दो | जो लोग परातः काल दरी तक सोत रहत ह उनका जीवन तनसतज हो जाता ह |

दवययसनो स द र रहो

शराब एव बीड़ी-लसगरट-तमबाक का सवन मनषटय की कामवासना को उदयीपत करता ह |

करान शरीफ क अकलाहपाक तरतरकोल रोशल क लसपारा म ललखा ह कक शतान का भड़काया हआ

मनषटय ऐसी नशायकत चीजो का उपयोग करता ह | ऐस वयलकत स अकलाह दर रहता ह कयोकक यह काम शतान का ह और शतान उस आदमी को जहननम म ल जाता ह |

नशीली वसतओ क सवन स फफड़ और हदय कमजोर हो जात ह सहनशलकत घट जाती ह और

आयषटय भी कम हो जाता ह | अमरीकी डॉकटरो न खोज करक बतलाया ह कक नशीली वसतओ क सवन स कामभाव उततलजत होन पर वीयक पतला और कमजोर पड़ जाता ह |

(अनिम)

सतसग करो

आप सससग नही करोग तो कसग अवशय होगा | इसललय मन वचन कमक स सदव सससग का ही सवन करो | जब-जब चचतत म पततत ववचार डरा जमान लग तब-तब तरत सचत हो जाओ और वह सथान छोड़कर पहाच जाओ ककसी सससग क वातावरर म ककसी सलनमतर या ससपरष क सालननरधय म | वहाा व कामी ववचार तरबखर जायग और आपका तन-मन पववतर हो जायगा | यदद ऐसा नही ककया तो व पततत ववचार आपका पतन ककय तरबना नही छोड़ग कयोकक जो मन म होता ह दर-सबर उसीक अनसार बाहर की किया होती ह | कफर तम पछताओग कक हाय यह मझस कया हो गया

पानी का सवभाव ह नीच की ओर बहना | वस ही मन का सवभाव ह पतन की ओर सगमता स बढना | मन हमशा धोखा दता ह | वह ववषयो की ओर खीचता ह कसगतत म सार ददखता ह लककन

वह पतन का रासता ह | कसगतत म ककतना ही आकषकर हो मगरhellip

षजसक पीछ हो गि की कतार भ लकर उस खशी स न खलो |

अभी तक गत जीवन म आपका ककतना भी पतन हो चका हो कफर भी सससगतत करो | आपक उसथान की अभी भी गजाइश ह | बड़-बड़ दजकन भी सससग स सजजन बन गय ह |

शठ स रहह सतसगतत पाई |

सससग स वचचत रहना अपन पतन को आमतरतरत करना ह | इसललय अपन नतर करक सवचा आदद सभी को सससगरपी गगा म सनान करात रहो लजसस कामववकार आप पर हावी न हो सक |

(अनिम)

शभ सकलप करो

lsquoहम बरहमचयक का पालन कस कर सकत ह बड़-बड़ ॠवष-मतन भी इस रासत पर कफसल पड़त हhelliprsquo ndash इस परकार क हीन ववचारो को ततलाजलल द दो और अपन सककपबल को बढाओ | शभ सककप करो | जसा आप सोचत हो वस ही आप हो जात हो | यह सारी सलषटट ही सककपमय ह |

दढ सककप करन स वीयकरकषर म मदद होती ह और वीयकरकषर स सककपबल बढता ह | षवशवासो फलदायकः | जसा ववशवास और जसी शरदधा होगी वसा ही फल परापत होगा | बरहमजञानी महापरषो म यह सककपबल असीम होता ह | वसततः बरहमचयक की तो व जीती-जागती मततक ही होत ह |

(अनिम)

बतरबन यकत पराणायाि और योगाभयास करो

तरतरबनध करक परारायाम करन स ववकारी जीवन सहज भाव स तनववककाररता म परवश करन लगता ह | मलबनध स ववकारो पर ववजय पान का सामथयक आता ह | उडडडयानबनध स आदमी उननतत म ववलकषर उड़ान ल सकता ह | जालनधरबनध स बदचध ववकलसत होती ह |

अगर कोई वयलकत अनभवी महापरष क सालननरधय म तरतरबनध क साथ परततददन 12 परारायाम कर तो परसयाहार लसदध होन लगगा | 12 परसयाहार स धाररा लसदध होन लगगी | धाररा-शलकत बढत ही परकतत क रहसय खलन लगग | सवभाव की लमठास बदचध की ववलकषरता सवासथय की सौरभ आन लगगी | 12 धाररा लसदध होन पर रधयान लगगा सववककप समाचध होन लगगी | सववककप समाचध का 12 गना समय पकन पर तनववकककप समाचध लगगी |

इस परकार छः महीन अभयास करनवाला साधक लसदध योगी बन सकता ह | ररदचध-लसदचधयाा उसक आग हाथ जोड़कर खड़ी रहती ह | यकष गधवक ककननर उसकी सवा क ललए उससक होत ह | उस

पववतर परष क तनकट ससारी लोग मनौती मानकर अपनी मनोकामना परक कर सकत ह | साधन करत समय रग-रग म इस महान लकषय की परालपत क ललए धन लग जाय|

बरहमचयक-वरत पालन वाला साधक पववतर जीवन जीनवाला वयलकत महान लकषय की परालपत म सफल हो सकता ह |

ह लमतर बार-बार असफल होन पर भी तम तनराश मत हो | अपनी असफलताओ को याद करक हार हए जआरी की तरह बार-बार चगरो मत | बरहमचयक की इस पसतक को कफर-कफर स पढो | परातः तनिा स उठत समय तरबसतर पर ही बठ रहो और दढ भावना करो

ldquoमरा जीवन परकतत की थपपड़ खाकर पशओ की तरह नषटट करन क ललए नही ह | म अवशय

परषाथक करा गा आग बढागा | हरर ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

मर भीतर परबरहम परमासमा का अनपम बल ह | हरर ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

तचछ एव ववकारी जीवन जीनवाल वयलकतयो क परभाव स म अपनको ववतनमककत करता जाऊा गा | हरर ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

सबह म इस परकार का परयोग करन स चमसकाररक लाभ परापत कर सकत हो | सवकतनयनता सवशवर को कभी पयार करो hellip कभी पराथकना करो hellip कभी भाव स ववहवलता स आतकनाद करो | व अनतयाकमी परमासमा हम अवशय मागकदशकन दत ह | बल-बदचध बढात ह | साधक तचछ ववकारी जीवन पर ववजयी होता जाता ह | ईशवर का असीम बल तमहार साथ ह | तनराश मत हो भया हताश मत हो | बार-बार कफसलन पर भी सफल होन की आशा और उससाह मत छोड़ो |

शाबाश वीर hellip शाबाश hellip दहममत करो दहममत करो | बरहमचयक-सरकषा क उपायो को बार-बार पढो सकषमता स ववचार करो | उननतत क हर कषतर म तम आसानी स ववजता हो सकत हो |

करोग न दहममत

अतत खाना अतत सोना अतत बोलना अतत यातरा करना अतत मथन करना अपनी सषपत

योगयताओ को धराशायी कर दता ह जबकक सयम और परषाथक सषपत योगयताओ को जगाकर

जगदीशवर स मलाकात करा दता ह |

(अनिम)

नीि का पड चला

हमार सदगरदव परम पजय लीलाशाहजी महाराज क जीवन की एक घटना बताता हा

लसध म उन ददनो ककसी जमीन की बात म दहनद और मसलमानो का झगड़ा चल रहा था | उस जमीन पर नीम का एक पड़ खड़ा था लजसस उस जमीन की सीमा-तनधाकरर क बार म कछ

वववाद था | दहनद और मसलमान कोटक-कचहरी क धकक खा-खाकर थक | आखखर दोनो पकषो न यह तय ककया कक यह धालमकक सथान ह | दोनो पकषो म स लजस पकष का कोई पीर-फकीर उस सथान पर

अपना कोई ववशष तज बल या चमसकार ददखा द वह जमीन उसी पकष की हो जायगी |

पजय लीलाशाहजी बाप का नाम पहल lsquoलीलारामrsquo था | लोग पजय लीलारामजी क पास पहाच और बोल ldquoहमार तो आप ही एकमातर सत ह | हमस जो हो सकता था वह हमन ककया परनत

असफल रह | अब समगर दहनद समाज की परततषटठा आपशरी क चररो म ह |

इसा की अजि स जब द र ककनारा होता ह |

त फा ि ि िी ककशती का एक भगवान ककनारा होता ह ||

अब सत कहो या भगवान कहो आप ही हमारा सहारा ह | आप ही कछ करग तो यह धमकसथान

दहनदओ का हो सकगा |rdquo

सत तो मौजी होत ह | जो अहकार लकर ककसी सत क पास जाता ह वह खाली हाथ लौटता ह

और जो ववनमर होकर शररागतत क भाव स उनक सममख जाता ह वह सब कछ पा लता ह | ववनमर और शरदधायकत लोगो पर सत की कररा कछ दन को जकदी उमड़ पड़ती ह |

पजय लीलारामजी उनकी बात मानकर उस सथान पर जाकर भलम पर दोनो घटनो क बीच लसर नीचा ककय हए शात भाव स बठ गय |

ववपकष क लोगो न उनह ऐसी सरल और सहज अवसथा म बठ हए दखा तो समझ ललया कक य

लोग इस साध को वयथक म ही लाय ह | यह साध कया करगा hellip जीत हमारी होगी |

पहल मलसलम लोगो दवारा आमतरतरत पीर-फकीरो न जाद-मतर टोन-टोटक आदद ककय | lsquoअला बााधा बला बााधाhellip पथवी बााधाhellip तज बााधाhellip वाय बााधाhellip आकाश बााधाhellip फऽऽऽlsquo आदद-आदद ककया | कफर पजय लीलाराम जी की बारी आई |

पजय लीलारामजी भल ही साधारर स लग रह थ परनत उनक भीतर आसमाननद दहलोर ल रहा था | lsquoपथवी आकाश कया समगर बरहमाणड म मरा ही पसारा हhellip मरी सतता क तरबना एक पतता भी नही दहल सकताhellip य चााद-लसतार मरी आजञा म ही चल रह हhellip सवकतर म ही इन सब ववलभनन रपो म ववलास कर रहा हाhelliprsquo ऐस बरहमाननद म डब हए व बठ थ |

ऐसी आसममसती म बठा हआ ककनत बाहर स कगाल जसा ददखन वाला सत जो बोल द उस घदटत होन स कौन रोक सकता ह

वलशषटठ जी कहत ह ldquoह रामजी तरतरलोकी म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उकलघन कर

सक rdquo

जब लोगो न पजय लीलारामजी स आगरह ककया तो उनहोन धीर स अपना लसर ऊपर की ओर

उठाया | सामन ही नीम का पड़ खड़ा था | उस पर दलषटट डालकर गजकना करत हए आदशासमक भाव स बोल उठ

ldquoऐ नीम इधर कया खड़ा ह जा उधर हटकर खड़ा रह |rdquo

बस उनका कहना ही था कक नीम का पड lsquoसरकरकhellip सरकरकhelliprsquo करता हआ दर जाकर पवकवत खड़ा हो गया |

लोग तो यह दखकर आवाक रह गय आज तक ककसी न ऐसा चमसकार नही दखा था | अब

ववपकषी लोग भी उनक परो पड़न लग | व भी समझ गय कक य कोई लसदध महापरष ह |

व दहनदओ स बोल ldquoय आपक ही पीर नही ह बलकक आपक और हमार सबक पीर ह | अब स य

lsquoलीलारामrsquo नही ककत lsquoलीलाशाहrsquo ह |

तब स लोग उनका lsquoलीलारामrsquo नाम भल ही गय और उनह lsquoलीलाशाहrsquo नाम स ही पकारन लग |

लोगो न उनक जीवन म ऐस-ऐस और भी कई चमसकार दख |

व 93 वषक की उमर पार करक बरहमलीन हए | इतन वदध होन पर भी उनक सार दाात सरकषकषत थ

वारी म तज और बल था | व तनयलमत रप स आसन एव परारायाम करत थ | मीलो पदल यातरा करत थ | व आजनम बरहमचारी रह | उनक कपा-परसाद दवारा कई पतरहीनो को पतर लमल गरीबो को धन लमला तनरससादहयो को उससाह लमला और लजजञासओ का साधना-मागक परशसत हआ | और भी कया-कया हआ

यह बतान जाऊा गा तो ववषयानतर होगा और समय भी अचधक नही ह | म यह बताना चाहता हा कक

उनक दवारा इतन चमसकार होत हए भी उनकी महानता चमसकारो म तनदहत नही ह | उनकी महानता तो उनकी बरहमतनषटठता म तनदहत थी |

छोट-मोट चमसकार तो थोड़ बहत अभयास क दवारा हर कोई कर लता ह मगर बरहमतनषटठा तो चीज ही कछ और ह | वह तो सभी साधनाओ की अततम तनषटपतत ह | ऐसा बरहमतनषटठ होना ही तो वासतववक बरहमचारी होना ह | मन पहल भी कहा ह कक कवल वीयकरकषा बरहमचयक नही ह | यह तो बरहमचयक की साधना ह | यदद शरीर दवारा वीयकरकषा हो और मन-बदचध म ववषयो का चचतन चलता रह

तो बरहमतनषटठा कहाा हई कफर भी वीयकरकषा दवारा ही उस बरहमाननद का दवार खोलना शीघर सभव होता ह | वीयकरकषर हो और कोई समथक बरहमतनषटठ गर लमल जाय तो बस कफर और कछ करना शष नही रहता | कफर वीयकरकषर करन म पररशरम नही करना पड़ता वह सहज होता ह | साधक लसदध बन जाता ह | कफर तो उसकी दलषटट मातर स कामक भी सयमी बन जाता ह |

सत जञानशवर महाराज लजस चबतर पर बठ थ उसीको कहा lsquoचलhelliprsquo तो वह चलन लगा | ऐस ही पजयपाद लीलाशाहजी बाप न नीम क पड़ को कहा lsquoचलhelliprsquo तो वह चलन लगा और जाकर दसरी जगह खड़ा हो गया | यह सब सककप बल का चमसकार ह | ऐसा सककप बल आप भी बढा सकत ह |

वववकाननद कहा करत थ कक भारतीय लोग अपन सककप बल को भल गय ह इसीललय गलामी का दःख भोग रह ह | lsquoहम कया कर सकत हhelliprsquo ऐस नकारासमक चचतन दवारा व सककपहीन हो गय ह जबकक अगरज का बचचा भी अपन को बड़ा उससाही समझता ह और कायक म सफल हो जाता ह

कयोकक व ऐसा ववचार करता ह lsquoम अगरज हा | दतनया क बड़ भाग पर हमारी जातत का शासन रहा ह | ऐसी गौरवपरक जातत का अग होत हए मझ कौन रोक सकता ह सफल होन स म कया नही कर

सकता rsquo lsquoबस ऐसा ववचार ही उस सफलता द दता ह |

जब अगरज का बचचा भी अपनी जातत क गौरव का समरर कर दढ सककपवान बन सकता ह तो आप कयो नही बन सकत

ldquoम ॠवष-मतनयो की सतान हा | भीषटम जस दढपरततजञ परषो की परमपरा म मरा जनम हआ ह |

गगा को पथवी पर उतारनवाल राजा भगीरथ जस दढतनशचयी महापरष का रकत मझम बह रहा ह |

समि को भी पी जानवाल अगससय ॠवष का म वशज हा | शरी राम और शरीकषटर की अवतार-भलम

भारत म जहाा दवता भी जनम लन को तरसत ह वहाा मरा जनम हआ ह कफर म ऐसा दीन-हीन

कयो म जो चाहा सो कर सकता हा | आसमा की अमरता का ददवय जञान का परम तनभकयता का सदश सार ससार को लजन ॠवषयो न ददया उनका वशज होकर म दीन-हीन नही रह सकता | म अपन रकत क तनभकयता क ससकारो को जगाकर रहागा | म वीयकवान बनकर रहागा |rdquo ऐसा दढ सककप हरक भारतीय बालक को करना चादहए |

(अनिम)

सतरी-जातत क परतत िातभाव परबल करो शरी रामकषटर परमहस कहा करत थ ldquo ककसी सदर सतरी पर नजर पड़ जाए तो उसम माा जगदमबा क दशकन करो | ऐसा ववचार करो कक यह अवशय दवी का अवतार ह तभी तो इसम इतना सौदयक ह | माा परसनन होकर इस रप म दशकन द रही ह ऐसा समझकर सामन खड़ी सतरी को मन-ही-मन परराम करो | इसस तमहार भीतर काम ववकार नही उठ सकगा |

िातवत परदारि पररवयि लोटिवत |

पराई सतरी को माता क समान और पराए धन को लमटटी क ढल क समान समझो |

(अनिम)

मशवाजी का परसग

लशवाजी क पास ककयार क सबदार की लसतरयो को लाया गया था तो उस समय उनहोन यही आदशक उपलसथत ककया था | उनहोन उन लसतरयो को lsquoमााrsquo कहकर पकारा तथा उनह कई उपहार दकर

सममान सदहत उनक घर वापस भज ददया | लशवाजी परम गर समथक रामदास क लशषटय थ |

भारतीय सभयता और ससकतत म माता को इतना पववतर सथान ददया गया ह कक यह मातभाव मनषटय को पततत होत-होत बचा लता ह | शरी रामकषटर एव अनय पववतर सतो क समकष जब कोई सतरी कचषटटा करना चाहती तब व सजजन साधक सत यह पववतर मातभाव मन म लाकर ववकार क फद स बच जात | यह मातभाव मन को ववकारी होन स बहत हद तक रोक रखता ह | जब भी ककसी सतरी को दखन पर मन म ववकार उठन लग उस समय सचत रहकर इस मातभाव का परयोग कर ही लना चादहए |

(अनिम)

अजयन और उवयशी

अजकन सशरीर इनि सभा म गया तो उसक सवागत म उवकशी रमभा आदद अपसराओ न नसय ककय | अजकन क रप सौनदयक पर मोदहत हो उवकशी रातरतर क समय उसक तनवास सथान पर गई और

पररय-तनवदन ककया तथा साथ ही इसम कोई दोष नही लगता इसक पकष म अनक दलील भी की | ककनत अजकन न अपन दढ इलनियसयम का पररचय दत हए कह

गचछ मरधनाक परपननोऽलसम पादौ त वरवखरकनी | सव दह म मातवत पजया रकषयोऽह पतरवत सवया ||

( महाभारत वनपवकखर इनिलोकालभगमनपवक ४६४७)

मरी दलषटट म कनती मािी और शची का जो सथान ह वही तमहारा भी ह | तम मर ललए माता क समान पजया हो | म तमहार चररो म परराम करता हा | तम अपना दरागरह छोड़कर लौट जाओ

| इस पर उवकशी न िोचधत होकर उस नपसक होन का शाप द ददया | अजकन न उवकशी स शावपत होना सवीकार ककया परनत सयम नही तोड़ा | जो अपन आदशक स नही हटता धयक और सहनशीलता को अपन चररतर का भषर बनाता ह उसक ललय शाप भी वरदान बन जाता ह | अजकन क ललय भी ऐसा ही हआ | जब इनि तक यह बात पहाची तो उनहोन अजकन को कहा तमन इलनिय सयम क दवारा ऋवषयो को भी परालजत कर ददया | तम जस पतर को पाकर कनती वासतव म शरषटठ पतरवाली ह |

उवकशी का शाप तमह वरदान लसदध होगा | भतल पर वनवास क १३व वषक म अजञातवास करना पड़गा उस समय यह सहायक होगा | उसक बाद तम अपना परषसव कफर स परापत कर लोग | इनि क

कथनानसार अजञातवास क समय अजकन न ववराट क महल म नतकक वश म रहकर ववराट की

राजकमारी को सगीत और नसय ववदया लसखाई थी और इस परकार वह शाप स मकत हआ था | परसतरी क परतत मातभाव रखन का यह एक सदर उदाहरर ह | ऐसा ही एक उदाहरर वाकमीकककत

रामायर म भी आता ह | भगवान शरीराम क छोट भाई लकषमर को जब सीताजी क गहन पहचानन को कहा गया तो लकषमर जी बोल ह तात म तो सीता माता क परो क गहन और नपर ही पहचानता हा जो मझ उनकी चररवनदना क समय दलषटटगोचर होत रहत थ | कयर-कणडल आदद दसर

गहनो को म नही जानता | यह मातभाववाली दलषटट ही इस बात का एक बहत बड़ा कारर था कक

लकषमरजी इतन काल तक बरहमचयक का पालन ककय रह सक | तभी रावरपतर मघनाद को लजस इनि भी नही हरा सका था लकषमरजी हरा पाय | पववतर मातभाव दवारा वीयकरकषर का यह अनपम उदाहरर ह जो बरहमचयक की महतता भी परकट करता ह |

(अनिम)

सतसाहहतय पढ़ो

जसा सादहसय हम पढत ह वस ही ववचार मन क भीतर चलत रहत ह और उनहीस हमारा सारा वयवहार परभाववत होता ह | जो लोग कलससत ववकारी और कामोततजक सादहसय पढत ह व कभी ऊपर नही उठ सकत | उनका मन सदव काम-ववषय क चचतन म ही उलझा रहता ह और इसस व अपनी वीयकरकषा करन म असमथक रहत ह | गनद सादहसय कामकता का भाव पदा करत ह | सना गया ह कक पाशचासय जगत स परभाववत कछ नराधम चोरी-तछप गनदी कफकमो का परदशकन करत ह जो अपना और अपन सपकक म आनवालो का ववनाश करत ह | ऐस लोग मदहलाओ कोमल वय की कनयाओ तथा ककशोर एव यवावसथा म पहाच हए बचचो क साथ बड़ा अनयाय करत ह | बकय कफकम दखन-ददखानवाल महा अधम कामानध लोग मरन क बाद शकर ककर आदद योतनयो म जनम लकर अथवा गनदी नाललयो क कीड़ बनकर छटपटात हए दख भोगग ही | तनदोष कोमलवय क नवयवक उन दषटटो क लशकार न बन इसक ललए सरकार और समाज को सावधान रहना चादहए |

बालक दश की सपवतत ह | बरहमचयक क नाश स उनका ववनाश हो जाता ह | अतः नवयवको को मादक िवयो गनद सादहसयो व गनदी कफकमो क दवारा बबाकद होन स बचाया जाय | व ही तो राषटर क भावी करकधार ह | यवक-यवततयाा तजसवी हो बरहमचयक की मदहमा समझ इसक ललए हम सब लोगो का कततकवय ह कक सकलो-कालजो म ववदयाचथकयो तक बरहमचयक पर ललखा गया सादहसय पहाचाय | सरकार का यह नततक कततकवय ह कक वह लशकषा परदान कर बरहमचयक ववशय पर ववदयाचथकयो को

सावधान कर ताकक व तजसवी बन | लजतन भी महापरष हए ह उनक जीवन पर दलषटटपात करो तो उन पर ककसी-न-ककसी सससादहसय की छाप लमलगी | अमररका क परलसदध लखक इमसकन क गर थोरो बरहमचयक का पालन करत थ | उनहो न ललखा ह म परततददन गीता क पववतर जल स सनान करता हा | यदयवप इस पसतक को ललखनवाल दवताओ को अनक वषक वयतीत हो गय लककन इसक बराबर की कोई पसतक अभी तक नही तनकली ह |

योगशवरी माता गीता क ललए दसर एक ववदशी ववदवान इगलणड क एफ एच मोलम कहत ह बाइतरबल का मन यथाथक अभयास ककया ह | जो जञान गीता म ह वह ईसाई या यदही बाइतरबलो म नही ह | मझ यही आशचयक होता ह कक भारतीय नवयवक यहाा इगलणड तक पदाथक ववजञान सीखन कयो आत ह तनसदह पाशचासयो क परतत उनका मोह ही इसका कारर ह | उनक भोलभाल हदयो न तनदकय और अववनमर पलशचमवालसयो क ददल अभी पहचान नही ह | इसीललए उनकी लशकषा स लमलनवाल पदो की लालच स व उन सवाचथकयो क इनिजाल म फसत ह | अनयथा तो लजस दश या समाज को गलामी स छटना हो उसक ललए तो यह अधोगतत का ही मागक ह |

म ईसाई होत हए भी गीता क परतत इतना आदर-मान इसललए रखता हा कक लजन गढ परशनो का हल पाशचासय वजञातनक अभी तक नही कर पाय उनका हल इस गीता गरथ न शदध और सरल

रीतत स द ददया ह | गीता म ककतन ही सतर आलौककक उपदशो स भरपर दख इसी कारर गीताजी मर ललए साकषात योगशवरी माता बन गई ह | ववशव भर म सार धन स भी न लमल सक भारतवषक का यह ऐसा अमकय खजाना ह |

सपरलसदध पतरकार पॉल तरबरलनटन सनातन धमक की ऐसी धालमकक पसतक पढकर जब परभाववत हआ तभी वह दहनदसतान आया था और यहाा क रमर महवषक जस महासमाओ क दशकन करक धनय हआ था | दशभलकतपरक सादहसय पढकर ही चनिशखर आजाद भगतलसह वीर सावरकर जस रसन अपन जीवन को दशादहत म लगा पाय |

इसललय सससादहसय की तो लजतनी मदहमा गाई जाय उतनी कम ह | शरीयोगवलशषटठ

महारामायर उपतनषद दासबोध सखमतन वववकचड़ामखर शरी रामकषटर सादहसय सवामी रामतीथक क

परवचन आदद भारतीय ससकतत की ऐसी कई पसतक ह लजनह पढो और उनह अपन दतनक जीवन का अग बना लो | ऐसी-वसी ववकारी और कलससत पसतक-पलसतकाएा हो तो उनह उठाकर कचर ल ढर पर फ क दो या चकह म डालकर आग तापो मगर न तो सवय पढो और न दसर क हाथ लगन दो |

इस परकार क आरधयालसमक सदहसय-सवन म बरहमचयक मजबत करन की अथाह शलकत होती ह |

परातःकाल सनानादद क पशचात ददन क वयवसाय म लगन स पवक एव रातरतर को सोन स पवक कोई-न-कोई आरधयालसमक पसतक पढना चादहए | इसस व ही सतोगरी ववचार मन म घमत रहग जो पसतक म होग और हमारा मन ववकारगरसत होन स बचा रहगा |

कौपीन (लगोटी) पहनन का भी आगरह रखो | इसस अणडकोष सवसथ रहग और वीयकरकषर म मदद लमलगी |

वासना को भड़कान वाल नगन व अशलील पोसटरो एव चचतरो को दखन का आकषकर छोड़ो | अशलील शायरी और गान भी जहाा गाय जात हो वहाा न रको |

(अनिम)

वीययसचय क चितकार

वीयक क एक-एक अर म बहत महान शलकतयाा तछपी ह | इसीक दवारा शकराचायक महावीर कबीर

नानक जस महापरष धरती पर अवतीरक हए ह | बड़-बड़ वीर योदधा वजञातनक सादहसयकार- य सब वीयक की एक बाद म तछप थ hellip और अभी आग भी पदा होत रहग | इतन बहमकय वीयक का सदपयोग जो वयलकत नही कर पाता वह अपना पतन आप आमतरतरत करता ह |

वीय व भगयः | (शतपथ बराहिण )

वीयक ही तज ह आभा ह परकाश ह |

जीवन को ऊरधवकगामी बनान वाली ऐसी बहमकय वीयकशलकत को लजसन भी खोया उसको ककतनी हातन उठानी पड़ी यह कछ उदाहररो क दवारा हम समझ सकत ह |

(अनिम)

भीटि षपतािह और वीर अमभिनय महाभारत म बरहमचयक स सबचधत दो परसग आत ह एक भीषटम वपतामह का और दसरा वीर अलभमनय का | भीषटम वपतामह बाल बरहमचारी थ इसललय उनम अथाह सामथयक था | भगवान शरी कषटर का यह वरत था कक lsquoम यदध म शसतर नही उठाऊा गा |rsquo ककनत यह भीषटम की बरहमचयक शलकत का ही चमसकार था कक उनहोन शरी कषटर को अपना वरत भग करन क ललए मजबर कर ददया | उनहोन अजकन पर ऐसी बार वषाक की कक ददवयासतरो स ससलजजत अजकन जसा धरनधर धनधाकरी भी उसका परततकार

करन म असमथक हो गया लजसस उसकी रकषाथक भगवान शरी कषटर को रथ का पदहया लकर भीषटम की ओर दौड़ना पड़ा |

यह बरहमचयक का ही परताप था कक भीषटम मौत पर भी ववजय परापत कर सक | उनहोन ही यह सवय तय ककया कक उनह कब शरीर छोड़ना ह | अनयथा शरीर म परारो का दटक रहना असभव था परनत भीषटम की तरबना आजञा क मौत भी उनस परार कस छीन सकती थी भीषटम न सवचछा स शभ महतक म अपना शरीर छोड़ा |

दसरी ओर अलभमनय का परसग आता ह | महाभारत क यदध म अजकन का वीर पतर अलभमनय चिवयह का भदन करन क ललए अकला ही तनकल पड़ा था | भीम भी पीछ रह गया था | उसन जो शौयक ददखाया वह परशसनीय था | बड़-बड़ महारचथयो स तघर होन पर भी वह रथ का पदहया लकर

अकला यदध करता रहा परनत आखखर म मारा गया | उसका कारर यह था कक यदध म जान स पवक वह अपना बरहमचयक खलणडत कर चका था | वह उततरा क गभक म पाणडव वश का बीज डालकर आया था | मातर इतनी छोटी सी कमजोरी क कारर वह वपतामह भीषटम की तरह अपनी मसय का आप

माललक नही बन सका |

(अनिम)

पथवीराज चौहान कयो हारा

भारात म पथवीराज चौहान न मोहममद गोरी को सोलह बार हराया ककनत सतरहव यदध म वह खद हार गया और उस पकड़ ललया गया | गोरी न बाद म उसकी आाख लोह की गमक सलाखो स

फड़वा दी | अब यह एक बड़ा आशचयक ह कक सोलह बार जीतन वाला वीर योदधा हार कस गया

इततहास बताता ह कक लजस ददन वह हारा था उस ददन वह अपनी पसनी स अपनी कमर कसवाकर

अथाकत अपन वीयक का ससयानाश करक यदधभलम म आया था | यह ह वीयकशलकत क वयय का दषटपररराम |

रामायर महाकावय क पातर रामभकत हनमान क कई अदभत परािम तो हम सबन सन ही ह जस- आकाश म उड़ना समि लााघना रावर की भरी सभा म स छटकर लौटना लका जलाना यदध म रावर को मकका मार कर मतछकत कर दना सजीवनी बटी क ललय परा पहाड़ उठा लाना आदद | य सब बरहमचयक की शलकत का ही परताप था |

फरास का समराट नपोललयन कहा करता था असभव शबद ही मर शबदकोष म नही ह |

परनत वह भी हार गया | हारन क मल काररो म एक कारर यह भी था कक यदध स पवक ही उसन सतरी क आकषकर म अपन वीयक का कषय कर ददया था |

समसन भी शरवीरता क कषतर म बहत परलसदध था | बाइतरबल म उसका उकलख आता ह | वह

भी सतरी क मोहक आकषकर स नही बच सका और उसका भी पतन हो गया |

(अनिम)

सवािी राितीथय का अनभव

सवामी रामतीथक जब परोफसर थ तब उनहोन एक परयोग ककया और बाद म तनषटकषकरप म बताया कक जो ववदयाथी परीकषा क ददनो म या परीकषा क कछ ददन पहल ववषयो म फस जात ह व

परीकषा म परायः असफल हो जात ह चाह वषक भर अपनी ककषा म अचछ ववदयाथी कयो न रह हो | लजन ववदयाचथकयो का चचतत परीकषा क ददनो म एकागर और शदध रहा करता ह व ही सफल होत ह | काम ववकार को रोकना वसततः बड़ा दःसारधय ह |

यही कारर ह कक मन महाराज न यहा तक कह ददया ह

माा बहन और पतरी क साथ भी वयलकत को एकानत म नही बठना चादहय कयोकक मनषटय की इलनियाा बहत बलवान होती ह | व ववदवानो क मन को भी समान रप स अपन वग म खीच ल जाती ह |

(अनिम)

यवा वगय स दो बात

म यवक वगक स ववशषरप स दो बात कहना चाहता ह कयोकक यही वह वगक ह जो अपन दश क सदढ भववषटय का आधार ह | भारत का यही यवक वगक जो पहल दशोसथान एव आरधयालसमक

रहसयो की खोज म लगा रहता था वही अब कालमतनयो क रग-रप क पीछ पागल होकर अपना अमकय जीवन वयथक म खोता जा रहा ह | यह कामशलकत मनषटय क ललए अलभशाप नही बलकक

वरदान सवरप ह | यह जब यवक म खखलन लगती ह तो उस उस समय इतन उससाह स भर दती ह

कक वह ससार म सब कछ कर सकन की लसथतत म अपन को समथक अनभव करन लगता ह लककन आज क अचधकाश यवक दवयकसनो म फा सकर हसतमथन एव सवपनदोष क लशकार बन जात ह |

(अनिम)

हसतिथन का दटपररणाि

इन दवयकसनो स यवक अपनी वीयकधारर की शलकत खो बठता ह और वह तीवरता स नपसकता की ओर अगरसर होन लगता ह | उसकी आाख और चहरा तनसतज और कमजोर हो जाता ह |

थोड़ पररशरम स ही वह हााफन लगता ह उसकी आखो क आग अधरा छान लगता ह | अचधक कमजोरी स मचछाक भी आ जाती ह | उसकी सककपशलकत कमजोर हो जाती ह |

अिररका ि ककया गया परयोग

अमररका म एक ववजञानशाला म ३० ववदयाचथकयो को भखा रखा गया | इसस उतन समय क

ललय तो उनका काम ववकार दबा रहा परनत भोजन करन क बाद उनम कफर स काम-वासना जोर पकड़न लगी | लोह की लगोट पहन कर भी कछ लोग कामदमन की चषटटा करत पाए जात ह | उनको लसकडडया बाबा कहत ह | व लोह या पीतल की लगोट पहन कर उसम ताला लगा दत ह | कछ ऐस भी लोग हए ह लजनहोन इस काम-ववकार स छटटी पान क ललय अपनी जननलनिय ही काट दी और

बाद म बहत पछताय | उनह मालम नही था कक जननलनिय तो काम ववकार परकट होन का एक साधन ह | फल-पसतत तोड़न स पड़ नषटट नही होता | मागकदशकन क अभाव म लोग कसी-कसी भल करत ह ऐसा ही यह एक उदाहरर ह |

जो यवक १७ स २४ वषक की आय तक सयम रख लता ह उसका मानलसक बल एव बदचध बहत तजसवी हो जाती ह | जीवनभर उसका उससाह एव सफततक बनी रहती ह | जो यवक बीस वषक की आय परी होन स पवक ही अपन वीयक का नाश करना शर कर दता ह उसकी सफततक और होसला पसत हो जाता ह तथा सार जीवनभर क ललय उसकी बदचध कलणठत हो जाती ह | म चाहता हा कक यवावगक वीयक क सरकषर क कछ ठोस परयोग सीख ल | छोट-मोट परयोग उपवास भोजन म सधार आदद तो ठीक ह परनत व असथाई लाभ ही द पात ह | कई परयोगो स यह बात लसदध हई ह |

(अनिम)

कािशषकत का दिन या ऊधवयगिन

कामशलकत का दमन सही हल नही ह | सही हल ह इस शलकत को ऊरधवकमखी बनाकर शरीर म ही इसका उपयोग करक परम सख को परापत करना | यह यलकत लजसको आ गई उस सब आ गया

और लजस यह नही आई वह समाज म ककतना भी सततावान धनवान परततशठावान बन जाय अनत म मरन पर अनाथ ही रह जायगा अपन-आप को नही लमल पायगा | गौतम बदध यह यलकत जानत थ

तभी अगलीमाल जसा तनदकयी हसयारा भी सार दषटकसय छोड़कर उनक आग लभकषक बन गया | ऐस महापरषो म वह शलकत होती ह लजसक परयोग स साधक क ललए बरहमचयक की साधना एकदम सरल हो जाती ह | कफर काम-ववकार स लड़ना नही पड़ता ह बलकक जीवन म बरहमचयक सहज ही फललत होन लगता ह |

मन ऐस लोगो को दखा ह जो थोड़ा सा जप करत ह और बहत पज जात ह | और ऐस लोगो को भी दखा ह जो बहत जप-तप करत ह कफर भी समाज पर उनका कोई परभाव नही उनम आकषकर नही | जान-अनजान हो-न-हो जागत अथवा तनिावसथा म या अनय ककसी परकार स उनकी वीयक शलकत अवशय नषटट होती रहती ह |

(अनिम)

एक सा क का अनभव

एक साधक न यहाा उसका नाम नही लागा मझ सवय ही बताया सवामीजी यहाा आन स पवक म महीन म एक ददन भी पसनी क तरबना नही रह सकता था इतना अचधक काम-ववकार म फा सा हआ था परनत अब ६-६ महीन बीत जात ह पसनी क तरबना और काम-ववकार भी पहल की भाातत नही सताता |

द सर सा क का अनभव

दसर एक और सजजन यहाा आत ह उनकी पसनी की लशकायत मझ सनन को लमली ह | वह

सवय तो यहाा आती नही मगर लोगो स कहा ह कक ककसी परकार मर पतत को समझाय कक व आशरम म नही जाया कर |

वस तो आशरम म जान क ललए कोई कयो मना करगा मगर उसक इस परकार मना करन का कारर जो उसन लोगो को बताया और लोगो न मझ बताया वह इस परकार ह वह कहती ह इन बाबा न मर पतत पर न जान कया जाद ककया ह कक पहल तो व रात म मझ पास म सलात थ परनत अब मझस दर सोत ह | इसस तो व लसनमा म जात थ जस-तस दोसतो क साथ घमत रहत थ वही ठीक था | उस समय कम स कम मर कहन म तो चलत थ परनत अब तो

कसा दभाकगय ह मनषटय का वयलकत भल ही पतन क रासत चल उसक जीवन का भल ही ससयानाश होता रह परनत वह मर कहन म चल यही ससारी परम का ढााचा ह | इसम परम दो-पाच परततशत हो सकता ह बाकी ९५ परततशत तो मोह ही होता ह वासना ही होती ह | मगर मोह भी परम का चोला ओढकर कफरता रहता ह और हम पता नही चलता कक हम पतन की ओर जा रह ह या उसथान की ओर |

(अनिम)

योगी का सकलपबल

बरहमचयक उसथान का मागक ह | बाबाजी न कछ जाद-वाद नही ककया| कवल उनक दवारा उनकी यौचगक शलकत का सहारा उस वयलकत को लमला लजसस उसकी कामशलकत ऊरधवकगामी हो गई | इस कारर उसका मन ससारी काम सख स ऊपर उठ गया | जब असली रस लमल गया तो गदी नाली दवारा लमलन वाल रस की ओर कोई कयो ताकगा ऐसा कौन मखक होगा जो बरहमचयक का पववतर और

असली रस छोड़कर घखरत और पतनोनमख करन वाल ससारी कामसख की ओर दौड़गा

कया यह चितकार ह

सामानय लोगो क ललय तो यह मानो एक बहत बड़ा चमसकार ह परनत इसम चमसकार जसी कोई बात नही ह | जो महापरष योगमागक स पररचचत ह और अपनी आसममसती म मसत रहत ह

उनक ललय तो यह एक खल मातर ह | योग का भी अपना एक ववजञान ह जो सथल ववजञान स भी सकषम और अचधक परभावी होता ह | जो लोग ऐस ककसी योगी महापरष क सालननरधय का लाभ लत ह उनक ललय तो बरहमचयक का पालन सहज हो जाता ह | उनह अलग स कोई महनत नही करनी पड़ती |

(अनिम)

हसतिथन व सवपनदोि स कस बच

यदद कोई हसत मथन या सवपनदोष की समसया स गरसत ह और वह इस रोग स छटकारा पान को वसततः इचछक ह तो सबस पहल तो म यह कहागा कक अब वह यह चचता छोड़ द कक मझ

यह रोग ह और अब मरा कया होगा कया म कफर स सवासथय लाभ कर सका गा इस परकार क

तनराशावादी ववचारो को वह जड़मल स उखाड़ फ क |

सदव परसनन रहो

जो हो चका वह बीत गया | बीती सो बीती बीती ताही बबसार द आग की सध लय | एक तो रोग कफर उसका चचतन और भी रगर बना दता ह | इसललय पहला काम तो यह करो कक दीनता क

ववचारो को ततलाजलल दकर परसनन और परफलकलत रहना परारभ कर दो |

पीछ ककतना वीयकनाश हो चका ह उसकी चचता छोड़कर अब कस वीयकरकषर हो सक उसक ललय उपाय करन हत कमर कस लो |

धयान रह वीयकशलकत का दमन नही करना ह उस ऊरधवकगामी बनाना ह | वीयकशलकत का उपयोग हम ठीक ढग स नही कर पात | इसललय इस शलकत क ऊरधवकगमन क कछ परयोग हम समझ ल |

(अनिम)

वीयय का ऊधवयगिन कया ह

वीयक क ऊरधवकगमन का अथक यह नही ह कक वीयक सथल रप स ऊपर सहसरार की ओर जाता ह

| इस ववषय म कई लोग भरलमत ह | वीयक तो वही रहता ह मगर उस सचाललत करनवाली जो कामशलकत ह उसका ऊरधवकगमन होता ह | वीयक को ऊपर चढान की नाड़ी शरीर क भीतर नही ह |

इसललय शिार ऊपर नही जात बलकक हमार भीतर एक वदयततक चमबकीय शलकत होती ह जो नीच की ओर बहती ह तब शिार सकिय होत ह |

इसललय जब परष की दलशट भड़कील वसतरो पर पड़ती ह या उसका मन सतरी का चचतन करता ह

तब यही शलकत उसक चचतनमातर स नीच मलाधार कनि क नीच जो कामकनि ह उसको सकिय कर

वीयक को बाहर धकलती ह | वीयक सखललत होत ही उसक जीवन की उतनी कामशलकत वयथक म खचक हो जाती ह | योगी और तातरतरक लोग इस सकषम बात स पररचचत थ | सथल ववजञानवाल जीवशासतरी और डॉकटर लोग इस बात को ठीक स समझ नही पाय इसललय आधतनकतम औजार होत हए भी कई गभीर रोगो को व ठीक नही कर पात जबकक योगी क दलषटटपात मातर या आशीवाकद स ही रोग ठीक होन क चमसकार हम परायः दखा-सना करत ह |

आप बहत योगसाधना करक ऊरधवकरता योगी न भी बनो कफर भी वीयकरकषर क ललय इतना छोटा-सा परयोग तो कर ही सकत हो

(अनिम)

वीययरकषा का िहततवप णय परयोग

अपना जो lsquoकाम-ससथानrsquo ह वह जब सकिय होता ह तभी वीयक को बाहर धकलता ह | ककनत तनमन परयोग दवारा उसको सकिय होन स बचाना ह |

जयो ही ककसी सतरी क दशकन स या कामक ववचार स आपका रधयान अपनी जननलनिय की तरफ खखचन लग तभी आप सतकक हो जाओ | आप तरनत जननलनिय को भीतर पट की तरफ़ खीचो | जस पप का वपसटन खीचत ह उस परकार की किया मन को जननलनिय म कलनित करक करनी ह | योग की भाषा म इस योतनमिा कहत ह |

अब आाख बनद करो | कफर ऐसी भावना करो कक म अपन जननलनिय-ससथान स ऊपर लसर म लसथत सहसरार चि की तरफ दख रहा हा | लजधर हमारा मन लगता ह उधर ही यह शलकत बहन लगती ह | सहसरार की ओर ववतत लगान स जो शलकत मलाधार म सकिय होकर वीयक को सखललत

करनवाली थी वही शलकत ऊरधवकगामी बनकर आपको वीयकपतन स बचा लगी | लककन रधयान रह यदद आपका मन काम-ववकार का मजा लन म अटक गया तो आप सफल नही हो पायग | थोड़ सककप और वववक का सहारा ललया तो कछ ही ददनो क परयोग स महववपरक फायदा होन लगगा | आप सपषटट

महसस करग कक एक आाधी की तरह काम का आवग आया और इस परयोग स वह कछ ही कषरो म शात हो गया |

(अनिम)

द सरा परयोग

जब भी काम का वग उठ फफड़ो म भरी वाय को जोर स बाहर फ को | लजतना अचधक बाहर फ क सको उतना उततम | कफर नालभ और पट को भीतर की ओर खीचो | दो-तीन बार क परयोग स ही काम-ववकार शात हो जायगा और आप वीयकपतन स बच जाओग |

यह परयोग ददखता छोटा-सा ह मगर बड़ा महववपरक यौचगक परयोग ह | भीतर का शवास कामशलकत को नीच की ओर धकलता ह | उस जोर स और अचधक मातरा म बाहर फ कन स वह मलाधार चि म कामकनि को सकिय नही कर पायगा | कफर पट व नालभ को भीतर सकोचन स वहाा खाली जगह बन जाती ह | उस खाली जगह को भरन क ललय कामकनि क आसपास की सारी शलकत जो वीयकपतन म

सहयोगी बनती ह खखचकर नालभ की तरफ चली जाती ह और इस परकार आप वीयकपतन स बच जायग |

इस परयोग को करन म न कोई खचक ह न कोई ववशष सथान ढाढन की जररत ह | कही भी बठकर कर सकत ह | काम-ववकार न भी उठ तब भी यह परयोग करक आप अनपम लाभ उठा सकत ह | इसस जठरालगन परदीपत होती ह पट की बीमाररयाा लमटती ह जीवन तजसवी बनता ह और वीयकरकषर

सहज म होन लगता ह |

(अनिम)

वीययरकषक च णय

बहत कम खचक म आप यह चरक बना सकत ह | कछ सख आावलो स बीज अलग करक उनक तछलको को कटकर उसका चरक बना लो | आजकल बाजार म आावलो का तयार चरक भी लमलता ह |

लजतना चरक हो उसस दगनी मातरा म लमशरी का चरक उसम लमला दो | यह चरक उनक ललए भी दहतकर

ह लजनह सवपनदोष नही होता हो |

रोज रातरतर को सोन स आधा घटा पवक पानी क साथ एक चममच यह चरक ल ललया करो | यह

चरक वीयक को गाढा करता ह कबज दर करता ह वात-वपतत-कफ क दोष लमटाता ह और सयम को मजबत करता ह |

(अनिम)

गोद का परयोग

6 गराम खरी गोद रातरतर को पानी म लभगो दो | इस सबह खाली पट ल लो | इस परयोग क दौरान अगर भख कम लगती हो तो दोपहर को भोजन क पहल अदरक व नीब का रस लमलाकर लना चादहए |

तलसी एक अदभत औषचध

परनच डॉकटर ववकटर रसीन न कहा ह ldquoतलसी एक अदभत औषचध ह | तलसी पर ककय गय

परयोगो न यह लसदध कर ददया ह कक रकतचाप और पाचनततर क तनयमन म तथा मानलसक रोगो म तलसी असयत लाभकारी ह | इसस रकतकरो की वदचध होती ह | मलररया तथा अनय परकार क बखारो म तलसी असयत उपयोगी लसदध हई ह |

तलसी रोगो को तो दर करती ही ह इसक अततररकत बरहमचयक की रकषा करन एव यादशलकत बढान म भी अनपम सहायता करती ह | तलसीदल एक उसकषटट रसायन ह | यह तरतरदोषनाशक ह | रकतववकार

वाय खाासी कलम आदद की तनवारक ह तथा हदय क ललय बहत दहतकारी ह |

(अनिम)

बरहिचयय रकषा हत ितर

एक कटोरी दध म तनहारत हए इस मतर का इककीस बार जप कर | तदपशचात उस दध को पी ल बरहमचयक रकषा म सहायता लमलती ह | यह मतर सदव मन म धारर करन योगय ह

ॐ निो भगवत िहाबल पराकरिाय

िनोमभलाषित िनः सतभ कर कर सवाहा |

पादपषशचिोततानासन

षवध जमीन पर आसन तरबछाकर दोनो पर

सीध करक बठ जाओ | कफर

दोनो हाथो स परो क अगाठ पकड़कर झकत हए लसर को दोनो घटनो स लमलान का परयास करो | घटन जमीन पर सीध रह | परारभ म घटन

जमीन पर न दटक तो कोई हजक नही | सतत अभयास स यह आसन लसदध हो जायगा | यह आसन करन क 15 लमनट बाद एक-दो कचची लभणडी खानी चादहए | सवफल का सवन भी फायदा करता ह |

लाभ इस आसन स नाडड़यो की ववशष शदचध होकर हमारी कायककषमता बढती ह और शरीर की बीमाररयाा दर होती ह | बदहजमी कबज जस पट क सभी रोग सदी-जकाम कफ चगरना कमर का ददक दहचकी सफद कोढ पशाब की बीमाररयाा सवपनदोष वीयक-ववकार अपलनडकस साईदटका नलो की सजन पाणडरोग (पीललया) अतनिा दमा खटटी डकार जञानततओ की कमजोरी गभाकशय क रोग

मालसकधमक की अतनयलमतता व अनय तकलीफ नपसकता रकत-ववकार दठगनापन व अनय कई

परकार की बीमाररयाा यह आसन करन स दर होती ह |

परारभ म यह आसन आधा लमनट स शर करक परततददन थोड़ा बढात हए 15 लमनट तक कर सकत ह | पहल 2-3 ददन तकलीफ होती ह कफर सरल हो जाता ह |

इस आसन स शरीर का कद लमबा होता ह | यदद शरीर म मोटापन ह तो वह दर होता ह और यदद दबलापन ह तो वह दर होकर शरीर सडौल तनदरसत अवसथा म आ जाता ह | बरहमचयक पालनवालो क ललए यह आसन भगवान लशव का परसाद ह | इसका परचार पहल लशवजी न और बाद म जोगी गोरखनाथ न ककया था |

(अनिम)

पादागटठानासन

इसम शरीर का भार कवल पााव क अागठ पर आन स इस पादाागषटठानासन कहत ह वीयक की रकषा व ऊरधवकगमन हत महववपरक होन स सभी को ववशषतः बचचो व यवाओ को यह आसन अवशय करना चादहए

लाभः अखणड बरहमचयक की लसदचध वजरनाड़ी (वीयकनाड़ी) व मन पर तनयतरर तथा वीयकशलकत को ओज म रपातररत करन म उततम ह मलसतषटक सवसथ रहता ह व बदचध की लसथरता व परखरता शीघर परापत होती ह रोगी-नीरोगी सभी क ललए लाभपरद ह

रोगो ि लाभः सवपनदोष मधमह नपसकता व समसत वीयोदोषो म लाभपरद ह

षवध ः पजो क बल बठ जाय बाय पर की एड़ी लसवनी (गदा व जननलनिय क बीच का सथान) पर लगाय दोनो हाथो की उगललयाा जमीन पर रखकर दायाा पर बायी जघा पर रख सारा भार बाय पज पर (ववशषतः अागठ पर) सतललत करक हाथ कमर पर या नमसकार की मिा म रख परारमभ म कछ ददन आधार लकर कर सकत ह कमर सीधी व शरीर लसथर रह शवास सामानय दलषटट आग ककसी तरबद पर

एकागर व रधयान सतलन रखन म हो यही किया पर बदल कर भी कर

सियः परारभ म दोनो परो स आधा-एक लमनट दोनो परो को एक समान समय दकर

यथासभव बढा सकत ह

साव ानीः अततम लसथती म आन की शीघरता न कर िमशः अभयास बढाय इस ददन भर म दो-तीन बार कभी भी कर सकत ह ककनत भोजन क तरनत बाद न कर

बदध शषकतव यक परयोगः लाभः इसक तनयलमत अभयास स जञानतनत पषटट होत ह चोटी क सथान

क नीच गाय क खर क आकार वाला बदचधमडल ह लजस पर इस परयोग का ववशष परभाव पड़ता ह और बदचध ब धारराशलकत का ववकास होता ह

षवध ः सीध खड़ हो जाय हाथो की मटदठयाा बद करक हाथो को शरीर स सटाकर रख लसर पीछ की तरफ ल जाय दलषटट आसमान की ओर हो इस लसथतत म 25 बार गहरा शवास ल और छोड़ मल लसथती म आ जाय

ि ाशषकतव यक परयोगः

लाभः इसक तनयलमत अभयास स मधाशलकत बढती ह

षवध ः सीध खड़ हो जाय हाथो की मटदठयाा बद करक हाथो को शरीर स सटाकर रख

आाख बद करक लसर को नीच की तरफ इस तरफ झकाय कक ठोढी कठकप स लगी रह और कठकप पर हलका-सा दबाव पड़ इस लसथती म 25 बार गहरा शवास ल और

छोड़ मल लसथती म आ जाय

ववशषः शवास लत समय मन म ॐ का जप कर व छोड़त समय उसकी चगनती कर

रधयान द- परसयक परयोग सबह खाली पट 15 बार कर कफर धीर-धीर बढात हए 25 बार तक कर सकत ह

(अनिम)

हिार अनभव

िहापरि क दशयन का चितकार

ldquoपहल म कामतलपत म ही जीवन का आननद मानता था | मरी दो शाददयाा हई परनत दोनो पलसनयो क दहानत क कारर अब तीसरी शादी 17 वषक की लड़की स करन को तयार हो गया | शादी स पवक म परम पजय सवामी शरी लीलाशाहजी महारज का आशीवाकद लन डीसा आशरम म जा पहाचा |

आशरम म व तो नही लमल मगर जो महापरष लमल उनक दशकनमातर स न जान कया हआ कक मरा सारा भववषटय ही बदल गया | उनक योगयकत ववशाल नतरो म न जान कसा तज चमक रहा था कक म अचधक दर तक उनकी ओर दख नही सका और मरी नजर उनक चररो की ओर झक गई | मरी कामवासना ततरोदहत हो गई | घर पहाचत ही शादी स इनकार कर ददया | भाईयो न एक कमर म उस 17 वषक की लड़की क साथ मझ बनद कर ददया |

मन कामववकार को जगान क कई उपाय ककय परनत सब तनरथकक लसदध हआ hellip जस कामसख

की चाबी उन महापरष क पास ही रह गई हो एकानत कमर म आग और परोल जसा सयोग था कफर भी

मन तनशचय ककया कक अब म उनकी छतरछाया को नही छोड़ागा भल ककतना ही ववरोध सहन

करना पड़ | उन महापरष को मन अपना मागकदशकक बनाया | उनक सालननरधय म रहकर कछ यौचगक

कियाएा सीखी | उनहोन मझस ऐसी साधना करवाई कक लजसस शरीर की सारी परानी वयाचधयाा जस मोटापन दमा टीबी कबज और छोट-मोट कई रोग आदद तनवत हो गय |

उन महापरष का नाम ह परम पजय सत शरी आसारामजी बाप | उनहीक सालननरधय म म अपना जीवन धनय कर रहा हा | उनका जो अनपम उपकार मर ऊपर हआ ह उसका बदला तो म अपना समपरक लौककक वभव समपकर करक भी चकान म असमथक हा |rdquo

-महनत चदीराम ( भतपवक चदीराम कपालदास )

सत शरी आसारामजी आशरम साबरमतत अमदावाद |

मरी वासना उपासना म बदली

ldquoआशरम दवारा परकालशत ldquoयौवन सरकषाrdquo पसतक पढन स मरी दलषटट अमीदलषटट हो गई | पहल परसतरी को एव हम उमर की लड़ककयो को दखकर मर मन म वासना और कदलषटट का भाव पदा होता था लककन यह पसतक पढकर मझ जानन को लमला कक lsquoसतरी एक वासनापतत क की वसत नही ह परनत शदध परम

और शदध भावपवकक जीवनभर साथ रहनवाली एक शलकत ह |rsquo सचमच इस lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक को पढकर मर अनदर की वासना उपासना म बदल गयी ह |rdquo

-मकवारा रवीनि रततभाई

एम क जमोड हाईसकल भावनगर (गज)

(अनिम)

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगय क मलय एक अि लय भि ह

ldquoसवकपरथम म पजय बाप का एव शरी योग वदानत सवा सलमतत का आभार परकट करता हा |

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगक क ललय अमकय भट ह | यह पसतक यवानो क ललय सही ददशा ददखानवाली ह |

आज क यग म यवानो क ललय वीयकरकषर अतत कदठन ह | परनत इस पसतक को पढन क बाद

ऐसा लगता ह कक वीयकरकषर करना सरल ह | lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगक को सही यवान

बनन की परररा दती ह | इस पसतक म मन lsquoअनभव-अमतrsquo नामक पाठ पढा | उसक बाद ऐसा लगा कक सत दशकन करन स वीयकरकषर की परररा लमलती ह | यह बात तनतात ससय ह | म हररजन जातत का हा | पहल मास मछली लहसन पयाज आदद सब खाता था लककन lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक पढन क बाद मझ मासाहार स सखत नफरत हो गई ह | उसक बाद मन इस पसतक को दो-तीन बार पढा ह |

अब म मास नही खा सकता हा | मझ मास स नफरत सी हो गई ह | इस पसतक को पढन स मर मन पर काफी परभाव पड़ा ह | यह पसतक मनषटय क जीवन को समदध बनानवाली ह और वीयकरकषर की शलकत परदान करन वाली ह |

यह पसतक आज क यवा वगक क ललय एक अमकय भट ह | आज क यवान जो कक 16 वषक स 17

वषक की उमर तक ही वीयकशलकत का वयय कर दत ह और दीन-हीन कषीरसककप कषीरजीवन होकर अपन ललए व औरो क ललए भी खब दःखद हो जात ह उनक ललए यह पसतक सचमच परररादायक ह

| वीयक ही शरीर का तज ह शलकत ह लजस आज का यवा वगक नषटट कर दता ह | उसक ललए जीवन म ववकास करन का उततम मागक तथा ददगदशकक यह lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक ह | तमाम यवक-यवततयो को यह पसतक पजय बाप की आजञानसार पााच बार अवशय पढनी चादहए | इसस बहत लाभ होता ह |rdquo

-राठौड तनलश ददनशभाई

(अनिम)

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक नही अषपत एक मशकषा गरनथ ह

ldquoयह lsquoयौवन सरकषाrsquo एक पसतक नही अवपत एक लशकषा गरनथ ह लजसस हम ववदयाचथकयो को सयमी जीवन जीन की परररा लमलती ह | सचमच इस अनमोल गरनथ को पढकर एक अदभत परररा तथा उससाह लमलता ह | मन इस पसतक म कई ऐसी बात पढी जो शायद ही कोई हम बालको को बता व समझा सक | ऐसी लशकषा मझ आज तक ककसी दसरी पसतक स नही लमली | म इस पसतक को जनसाधारर तक पहाचान वालो को परराम करता हा तथा उन महापरष महामानव को शत-शत परराम करता हा लजनकी परररा तथा आशीवाकद स इस पसतक की रचना हई |rdquo

हरपरीत लसह अवतार लसह

ककषा-7 राजकीय हाईसकल सकटर-24 चणडीगढ

बरहिचयय ही जीवन ह

बरहमचयक क तरबना जगत म नही ककसीन यश पाया |

बरहमचयक स परशराम न इककीस बार धररी जीती |

बरहमचयक स वाकमीकी न रच दी रामायर नीकी |

बरहमचयक क तरबना जगत म ककसन जीवन रस पाया

बरहमचयक स रामचनि न सागर-पल बनवाया था |

बरहमचयक स लकषमरजी न मघनाद मरवाया था |

बरहमचयक क तरबना जगत म सब ही को परवश पाया |

बरहमचयक स महावीर न सारी लका जलाई थी |

बरहमचयक स अगदजी न अपनी पज जमाई थी |

बरहमचयक क तरबना जगत म सबन ही अपयश पाया |

बरहमचयक स आकहा-उदल न बावन ककल चगराए थ |

पथवीराज ददकलीशवर को भी रर म मार भगाए थ |

बरहमचयक क तरबना जगत म कवल ववष ही ववष पाया |

बरहमचयक स भीषटम वपतामह शरशया पर सोय थ |

बरहमचारी वर लशवा वीर स यवनो क दल रोय थ |

बरहमचयक क रस क भीतर हमन तो षटरस पाया |

बरहमचयक स राममतत क न छाती पर पसथर तोड़ा |

लोह की जजीर तोड़ दी रोका मोटर का जोड़ा |

बरहमचयक ह सरस जगत म बाकी को करकश पाया |

(अनिम)

शासतरवचन

राजा जनक शकदवजी स बोल

ldquoबाकयावसथा म ववदयाथी को तपसया गर की सवा बरहमचयक का पालन एव वदारधययन करना चादहए |rdquo

तपसा गरवततया च बरहिचयण वा षवभो |

- िहाभारत ि िोकष िय पवय

सकलपाजजायत कािः सवयिानो षवव यत |

यदा पराजञो षवरित तदा सदयः परणशयतत ||

ldquoकाम सककप स उसपनन होता ह | उसका सवन ककया जाय तो बढता ह और जब बदचधमान परष

उसस ववरकत हो जाता ह तब वह काम तसकाल नषटट हो जाता ह |rdquo

-िहाभारत ि आपद िय पवय

ldquoराजन (यचधलषटठर) जो मनषटय आजनम परक बरहमचारी रहता ह उसक ललय इस ससार म कोई भी ऐसा पदाथक नही ह जो वह परापत न कर सक | एक मनषटय चारो वदो को जाननवाला हो और दसरा परक बरहमचारी हो तो इन दोनो म बरहमचारी ही शरषटठ ह |rdquo

-भीटि षपतािह

ldquoमथन सबधी य परवततयाा सवकपरथम तो तरगो की भाातत ही परतीत होती ह परनत आग चलकर य

कसगतत क कारर एक ववशाल समि का रप धारर कर लती ह | कामसबधी वाताकलाप कभी शरवर न कर |rdquo

-नारदजी

ldquoजब कभी भी आपक मन म अशदध ववचारो क साथ ककसी सतरी क सवरप की ककपना उठ तो आप

lsquoॐ दगाय दवय निःrsquo मतर का बार-बार उचचारर कर और मानलसक परराम कर |rdquo

-मशवानदजी

ldquoजो ववदयाथी बरहमचयक क दवारा भगवान क लोक को परापत कर लत ह कफर उनक ललय ही वह सवगक ह | व ककसी भी लोक म कयो न हो मकत ह |rdquo

-छानदोगय उपतनिद

ldquoबदचधमान मनषटय को चादहए कक वह वववाह न कर | वववादहत जीवन को एक परकार का दहकत हए

अगारो स भरा हआ खडडा समझ | सयोग या ससगक स इलनियजतनत जञान की उसपवतत होती ह

इलनिजतनत जञान स तससबधी सख को परापत करन की अलभलाषा दढ होती ह ससगक स दर रहन पर जीवासमा सब परकार क पापमय जीवन स मकत रहता ह |rdquo

-िहातिा बद

भगवशी ॠवष जनकवश क राजकमार स कहत ह

िनोऽपरततक लातन परतय चह च वाछमस |

भ ताना परततक लभयो तनवतयसव यतषनरयः ||

ldquoयदद तम इस लोक और परलोक म अपन मन क अनकल वसतएा पाना चाहत हो तो अपनी इलनियो को सयम म रखकर समसत पराखरयो क परततकल आचररो स दर हट जाओ |rdquo

ndashिहाभारत ि िोकष िय पवय 3094

(अनिम)

भसिासर करो स बचो काम िोध लोभ मोह अहकार- य सब ववकार आसमानदरपी धन को हर लनवाल शतर ह |

उनम भी िोध सबस अचधक हातनकतताक ह | घर म चोरी हो जाए तो कछ-न-कछ सामान बच जाता ह

लककन घर म यदद आग लग जाय तो सब भसमीभत हो जाता ह | भसम क लसवा कछ नही बचता |

इसी परकार हमार अतःकरर म लोभ मोहरपी चोर आय तो कछ पणय कषीर होत ह लककन िोधरपी आग लग तो हमारा तमाम जप तप पणयरपी धन भसम हो जाता ह | अतः सावधान होकर

िोधरपी भसमासर स बचो | िोध का अलभनय करक फफकारना ठीक ह लककन िोधालगन तमहार

अतःकरर को जलान न लग इसका रधयान रखो |

25 लमनट तक चबा-चबाकर भोजन करो | सालववक आहर लो | लहसन लाल लमचक और तली हई चीजो स दर रहो | िोध आव तब हाथ की अागललयो क नाखन हाथ की गददी पर दब इस परकार

मठठी बद करो |

एक महीन तक ककय हए जप-तप स चचतत की जो योगयता बनती ह वह एक बार िोध करन स नषटट हो जाती ह | अतः मर पयार भया सावधान रहो | अमकय मानव दह ऐस ही वयथक न खो दना |

दस गराम शहद एक चगलास पानी तलसी क पतत और सतकपा चरक लमलाकर बनाया हआ

शबकत यदद हररोज सबह म ललया जाए तो चचतत की परसननता बढती ह | चरक और तलसी नही लमल तो कवल शहद ही लाभदायक ह | डायतरबदटज क रोचगयो को शहद नही लना चादहए |

हरर ॐ

बरहिाचयय-रकषा का ितर

ॐ निो भगवत िहाबल पराकरिाय िनोमभलाित िनः सतभ कर कर सवाहा

रोज दध म तनहार कर 21 बार इस मतर का जप कर और दध पी ल इसस बरहमचयक की रकषा होती ह सवभाव म आसमसात कर लन जसा यह तनयम ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐ

(अनिम)

पावन उदगार

पावन उदगार

सख-शातत व सवासथय का परसाद बािन क मलए ही बाप जी का अवतरण हआ ह

मर असयनत वपरय लमतर शरी आसाराम जी बाप स म पवककाल स हदयपवकक पररचचत हा ससार म सखी रहन क ललए समसत जनता को शारीररक सवासथय और मानलसक शातत दोनो आवशयक ह सख-शातत व सवासथय का परसाद बााटन क ललए ही इन सत का महापरष का अवतरर हआ ह आज क सतो-महापरषो म परमख मर वपरय लमतर बापजी हमार भारत दश क दहनद जनता क आम जनता क ववशववालसयो क उदधार क ललए रात-ददन घम-घमकर सससग

भजन कीतकन आदद दवारा सभी ववषयो पर मागकदशकन द रह ह अभी म गल म थोड़ी तकलीफ ह तो उनहोन तरनत मझ दवा बताई इस परकार सबक सवासथय और मानलसक शातत दोनो क ललए उनका जीवन समवपकत ह व धनभागी ह जो लोगो को बापजी क सससग व सालननरधय म लान का दवी कायक करत ह

काची कािकोहि पीठ क शकराचायय जगदगर शरी जयनर सरसवती जी िहाराज

(अनिम) पावन उदगार

हर वयषकत जो तनराश ह उस आसाराि जी की जररत ह

शरदधय-वदनीय लजनक दशकन स कोदट-कोदट जनो क आसमा को शातत लमली ह व हदय उननत हआ ह ऐस महामनीवष सत शरी आसारामजी क दशकन करक आज म कताथक हआ लजस महापरष न लजस महामानव न लजस ददवय चतना स सपनन परष न इस धरा पर धमक ससकतत अरधयासम और भारत की उदातत परपराओ को परी ऊजाक (शलकत) स सथावपत ककया ह

उस महापरष क म दशकन न करा ऐसा तो हो ही नही सकता इसललए म सवय यहाा आकर अपन-आपको धनय और कताथक महसस कर रहा हा मर परतत इनका जो सनह ह यह तो मझ पर इनका आशीवाकद ह और बड़ो का सनह तो हमशा रहता ही ह छोटो क परतत यहाा पर म आशीवाकद लन क ललए आया हा

म समझता हा कक जीवन म लगभग हर वयलकत तनराश ह और उसको आसारामजी की जररत ह दश यदद ऊा चा उठगा समदध बनगा ववकलसत होगा तो अपनी पराचीन परपराओ नततक मकयो और आदशो स ही होगा और वह आदशो नततक मकयो पराचीन सभयता धमक-दशकन

और ससकतत का जो जागरर ह वह आशाओ क राम बनन स ही होगा इसललए शरदधय वदनीय महाराज शरी आसाराम जी की सारी दतनया को जररत ह बाप जी क चररो म पराथकना करत हए कक आप ददशा दत रहना राह ददखात रहना हम भी आपक पीछ-पीछ चलत रहग और एक ददन मलजल लमलगी ही पनः आपक चररो म वदन

परमसद योगाचायय शरी रािदव जी िहाराज

(अनिम) पावन उदगार

बाप तनतय नवीन तनतय व यनीय आनदसवरप ह परम पजय बाप क दशकन करक म पहल भी आ चका हा दशकन करक हदन-हदन नव-नव

परततकषण व यनाि अथाकत बाप तनसय नवीन तनसय वधकनीय आनदसवरप ह ऐसा अनभव हो रहा ह और यह सवाभाववक ही ह पजय बाप जी को परराम

सपरमसद कथाकार सत शरी िोरारी बाप

(अनिम) पावन उदगार

पणय सचय व ईशवर की कपा का फलः बरहिजञान का हदवय सतसग

ईशवर की कपा होती ह तो मनषटय जनम लमलता ह ईशवर की अततशय कपा होती ह तो ममकषसव का उदय होता ह परनत जब अपन पवकजनमो क पणय इकटठ होत ह और ईशवर की परम कपा होती ह तब ऐसा बरहमजञान का ददवय सससग सनन को लमलता ह जसा पजयपाद बापजी क शरीमख स आपको यहाा सनन को लमल रहा ह

परमसद कथाकार सशरी कनकशवरी दवी

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी का साषननधय गगा क पावन परवाह जसा ह कल-कल करती इस भागीरथी की धवल धारा क ककनार पर पजय बाप जी क सालननरधय

म बठकर म बड़ा ही आहलाददत व परमददत हा आनददत हा रोमााचचत हा

गगा भारत की सषमना नाड़ी ह गगा भारत की सजीवनी ह शरी ववषटरजी क चररो स तनकलकर बरहमाजी क कमणडल व जटाधर क माथ पर शोभायमान गगा तरयोगलसदचधकारक ह ववषटरजी क चररो स तनकली गगा भलकतयोग की परतीतत कराती ह और लशवजी क मसतक पर लसथत गगा जञानयोग की उचचतर भलमका पर आरढ होन की खबर दती ह मझ ऐसा लग रहा ह कक आज बापजी क परवचनो को सनकर म गगा म गोता लगा रहा हा कयोकक उनका परवचन

उनका सालननरधय गगा क पावन परवाह जसा ह

व अलमसत फकीर ह व बड़ सरल और सहज ह व लजतन ही ऊपर स सरल ह उतन ही अतर म गढ ह उनम दहमालय जसी उचचता पववतरता शरषटठता ह और सागरतल जसी गमभीरता ह व राषटर की अमकय धरोहर ह उनह दखकर ऋवष-परमपरा का बोध होता ह गौतम कराद जलमतन कवपल दाद मीरा कबीर रदास आदद सब कभी-कभी उनम ददखत ह

र भाई कोई सतगर सत कहाव जो ननन अलख लखाव

रती उखाड़ आकाश उखाड़ अ र िड़इया ाव

श नय मशखर क पार मशला पर आसन अचल जिाव

र भाई कोई सतगर सत कहाव

ऐस पावन सालननरधय म हम बठ ह जो बड़ा दलकभ व सहज योगसवरप ह ऐस महापरष क ललए पलकतयाा याद आ रही ह- ति चलो तो चल रती चल अबर चल दतनया

ऐस महापरष चलत ह तो उनक ललए सयक चि तार गरह नकषतर आदद सब अनकल हो जात ह ऐस इलनियातीत गरातीत भावातीत शबदातीत और सब अवसथाओ स पर ककनही महापरष क शरीचररो म जब बठत ह तो भागवत कहता हः सा ना दशयन लोक सवयमसदध कर परि साधओ क दशकनमातर स ववचार ववभतत ववदवता शलकत सहजता तनववकषयता परसननता लसदचधयाा व आसमानद की परालपत होती ह

दश क महान सत यहाा सहज ही आत ह भारत क सभी शकराचायक भी आत ह मर मन म भी ववचार आया कक जहाा सब आत ह वहाा जाना चादहए कयोकक यही वह ठौर-दठकाना ह जहाा मन का अलभमान लमटाया जा सकता ह ऐस महापरषो क दशकन स कवल आनद व मसती ही नही बलकक वह सब कछ लमल जाता ह जो अलभलवषत ह आकाकषकषत ह लकषकषत ह यहाा म कररा कमकठता वववक-वरागय व जञान क दशकन कर रहा हा वरागय और भलकत क रकषर पोषर व सवधकन क ललए यह सपतऋवषयो का उततम जञान जाना जाता ह आज गगा अगर कफर स साकार ददख रही ह तो व बाप जी क ववचार व वारी म ददख रही ह अलमसतता सहजता उचचता शरषटठता पववतरता तीथक-सी शचचता लशश-सी सरलता तररो-सा जोश वदधो-सा गाभीयक और ऋवषयो जसा जञानावबोध मझ जहाा हो रहा ह वह पडाल ह इस आनदगर कहा या परमनगर कररा का सागर कहा या ववचारो का समनदर लककन इतना जरर कहागा कक मर मन का कोना-कोना आहलाददत हो रहा ह आपलोग बड़भागी ह जो ऐस महापरष क शरीचररो म बठ ह जहाा भागय का ददवय वयलकतसव का तनमाकर होता ह जीवन की कतकसयता जहाा परापत हो सकती ह वह यही दर ह

मिल ति मिली िषजल मिला िकसद और िददा भी

न मिल ति तो रह गया िददा िकसद और िषजल भी

आपका यह भावराजय व परमराजय दखकर म चककत भी हा और आनद का भी अनभव कर रहा हा मझ लगता ह कक बाप जी सबक आसमसयक ह आपक परतत मरा ववशवास व अटट तनषटठा बढ इस हत मरा नमन सवीकार कर

सवािी अव शानदजी िहाराज हररदवार

(अनिम) पावन उदगार

भगवननाि का जाद सतशरी आसारामजी बाप क यहाा सबस अचधक जनता आती ह कारर कक इनक पास भगवननाम-सकीतकन का जाद सरल वयवहार परमरसभरी वारी तथा जीवन क मल परशनो का उततर भी ह

षवरकतमशरोिरण शरी वािदवजी िहाराज

सवामी आसारामजी क पास भरातत तोड़न की दलषटट लमलती ह

यगपरि सवािी शरी परिानदजी िहाराज

आसारामजी महाराज ऐसी शलकत क धनी ह कक दलषटटपातमातर स लाखो लोगो क जञानचकष खोलन का मागक परशसत करत ह

लोकलाडल सवािी शरी बरहिानदधगरीजी िहाराज

हमार पजय आसारामजी बाप बहत ही कम समय म ससकतत का जतन और उसथान करन वाल सत ह आचायय शरी धगरीराज ककशोरजी षवशवहहनद पररिद

(अनिम) पावन उदगार

प जयशरी क सतसग ि पर ानितरी शरी अिल बबहारी वाजपयीजी क उदगार

पजय बापजी क भलकतरस म डब हए शरोता भाई-बहनो म यहाा पर पजय बापजी का अलभनदन करन आया हा उनका आशीवकचन सनन आया हा भाषर दन य बकबक करन नही आया हा बकबक तो हम करत रहत ह बाप जी का जसा परवचन ह कथा-अमत ह उस

तक पहाचन क ललए बड़ा पररशरम करना पड़ता ह मन पहल उनक दशकन पानीपत म ककय थ वहाा पर रात को पानीपत म पणय परवचन समापत होत ही बापजी कटीर म जा रह थ तब उनहोन मझ बलाया म भी उनक दशकन और आशीवाकद क ललए लालातयत था सत-महासमाओ क दशकन तभी होत ह उनका सालननरधय तभी लमलता ह जब कोई पणय जागत होता ह

इस जनम म मन कोई पणय ककया हो इसका मर पास कोई दहसाब तो नही ह ककत जरर यह पवक जनम क पणयो का फल ह जो बाप जी क दशकन हए उस ददन बापजी न जो कहा वह अभी तक मर हदय-पटल पर अककत ह दशभर की पररिमा करत हए जन-जन क मन म अचछ ससकार जगाना यह एक ऐसा परम राषटरीय कतकवय ह लजसन हमार दश को आज तक जीववत रखा ह और इसक बल पर हम उजजवल भववषटय का सपना दख रह ह उस सपन को साकार करन की शलकत-भलकत एकतर कर रह ह

पजय बापजी सार दश म भरमर करक जागरर का शखनाद कर रह ह सवकधमक-समभाव की लशकषा द रह ह ससकार द रह ह तथा अचछ और बर म भद करना लसखा रह ह

हमारी जो पराचीन धरोहर थी और हम लजस लगभग भलन का पाप कर बठ थ बाप जी हमारी आाखो म जञान का अजन लगाकर उसको कफर स हमार सामन रख रह ह बापजी न कहा कक ईशवर की कपा स कर-कर म वयापत एक महान शलकत क परभाव स जो कछ घदटत होता ह उसकी छानबीन और उस पर अनसधान करना चादहए

पजय बापजी न कहा कक जीवन क वयापार म स थोड़ा समय तनकाल कर सससग म आना चादहए पजय बापजी उजजन म थ तब मरी जान की बहत इचछा थी लककन कहत ह न

कक दान-दान पर खान वाल की मोहर होती ह वस ही सत-दशकन क ललए भी कोई महतक होता ह आज यह महतक आ गया ह यह मरा कषतर ह पजय बाप जी न चनाव जीतन का तरीका भी बता ददया ह

आज दश की दशा ठीक नही ह बाप जी का परवचन सनकर बड़ा बल लमला ह हाल म हए लोकसभा अचधवशन क कारर थोड़ी-बहत तनराशा हई थी ककनत रात को लखनऊ म पणय परवचन सनत ही वह तनराशा भी आज दर हो गयी बाप जी न मानव जीवन क चरम लकषय मलकत-शलकत की परालपत क ललए परषाथक चतषटटय भलकत क ललए समपकर की भावना तथा जञान

भलकत और कमक तीनो का उकलख ककया ह भलकत म अहकार का कोई सथान नही ह जञान अलभमान पदा करता ह भलकत म परक समपकर होता ह 13 ददन क शासनकाल क बाद मन कहाः मरा जो कछ ह तरा ह यह तो बाप जी की कपा ह कक शरोता को वकता बना ददया और वकता को नीच स ऊपर चढा ददया जहाा तक ऊपर चढाया ह वहाा तक ऊपर बना रहा इसकी चचता भी बाप जी को करनी पड़गी

राजनीतत की राह बड़ी रपटीली ह जब नता चगरता ह तो यह नही कहता कक म चगर गया बलकक कहता हः हर हर गग बाप जी का परवचन सनकर बड़ा आनद आया म लोकसभा

का सदसय होन क नात अपनी ओर स एव लखनऊ की जनता की ओर स बाप जी क चररो म ववनमर होकर नमन करना चाहता हा

उनका आशीवाकद हम लमलता रह उनक आशीवाकद स परररा पाकर बल परापत करक हम कतकवय क पथ पर तनरनतर चलत हए परम वभव को परापत कर यही परभ स पराथकना ह

शरी अिल बबहारी वाजपयी पर ानितरी भारत सरकार

परि प जय बाप सत शरी आसारािजी बाप क कपा-परसाद स पररपलाषवत हदयो क उदगार

(अनिम) पावन उदगार

प बाप ः राटरसख क सव यक

पजय बाप दवारा ददया जान वाला नततकता का सदश दश क कोन-कोन म लजतना अचधक परसाररत होगा लजतना अचधक बढगा उतनी ही मातरा म राषटरसख का सवधकन होगा राषटर की परगतत होगी जीवन क हर कषतर म इस परकार क सदश की जररत ह

(शरी लालकटण आडवाणी उपपर ानितरी एव कनरीय गहितरी भारत सरकार)

(अनिम) पावन उदगार

राटर उनका ऋणी ह भारत क भतपवक परधानमतरी शरी चनिशखर ददकली क सवरक जयनती पाकक म 25 जलाई

1999 को बाप जी की अमतवारी का रसासवादन करन क पशचात बोलः

आज पजय बाप जी की ददवय वारी का लाभ लकर म धनय हो गया सतो की वारी न हर यग म नया सदश ददया ह नयी परररा जगायी ह कलह वविोह और दवष स गरसत वतकमान वातावरर म बाप लजस तरह ससय कररा और सवदनशीलता क सदश का परसार कर रह ह इसक ललए राषटर उनका ऋरी ह (शरी चनरशखर भ तप वय पर ानितरी भारत सरकार)

(अनिम) पावन उदगार

गरीबो व षपछड़ो को ऊपर उठान क कायय चाल रह गरीबो और वपछड़ो को ऊपर उठान का कायक आशरम दवारा चलाय जा रह ह मझ

परसननता ह मानव-ककयार क ललए ववशषतः परम व भाईचार क सदश क मारधयम स ककय जा रह ववलभनन आरधयालसमक एव मानवीय परयास समाज की उननतत क ललए सराहनीय ह

डॉ एपीजअबदल कलाि राटरपतत भारत गणततर

(अनिम) पावन उदगार

सराहनीय परयासो की सफलता क मलए ब ाई मझ यह जानकर बड़ी परसननता हई ह कक सत शरी आसारामजी आशरम नयास जन-जन

म शातत अदहसा और भरातसव का सदश पहाचान क ललए दश भर म सससग का आयोजन कर रहा ह उसक सराहनीय परयासो की सफलता क ललए म बधाई दता हा

शरी क आर नारायणन ततकालीन राटरपतत भारत गणततर नई हदलली

(अनिम) पावन उदगार

आपन ददवय जञान का परकाशपज परसफदटत ककया ह

आरधयालसमक चतना जागत और ववकलसत करन हत भारतीय एव वलशवक समाज म ददवय जञान का जो परकाशपज आपन परसफदटत ककया ह सपरक मानवता उसस आलोककत ह मढता जड़ता दवदव और तरतरतापो स गरसत इस समाज म वयापत अनासथा तथा नालसतकता का ततलमर समापत कर आसथा सयम सतोष और समाधान का जो आलोक आपन तरबखरा ह सपरक

समाज उसक ललए कतजञ ह शरी किलनाथ वारणजय एव उदयोग ितरी भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

आप सिाज की सवागीण उननतत कर रह ह आज क भागदौड़ भर सपधाकसमक यग म लपतपराय-सी हो रही आलसमक शातत का आपशरी

मानवमातर को सहज म अनभव करा रह ह आप आरधयालसमक जञान दवारा समाज की सवाागीर उननतत कर रह ह व उसम धालमकक एव नततक आसथा को सदढ कर रह ह

शरी कषपल मसबबल षवजञान व परौदयोधगकी तथा िहासागर षवकास राजयितरी भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

योग व उचच ससकार मशकषा हत भारतविय आपका धचर-आभारी रहगा

दश ववदश म भारतीय ससकतत की जञानगगाधारा बचच-बचच क ददल-ददमाग म बाप जी क तनदश पर पररचाललत होना शभकर ह ववदयाचथकयो म ससकार लसचन दवारा हमारी ससकतत और नततक लशकषा सदढ बन जायगी दश को ससकाररत बनान क ललए चलाय जान वाल योग व उचच ससकार लशकषा कायकिम हत भारतवषक आप जस महासमाओ का चचरआभारी रहगा

शरी चनरशखर साह गरािीण षवकास राजयिनतरी भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

आपन जो कहा ह हि उसका पालन करग

आज तक कवल सना था कक तरा साई तझि ह लककन आज पजय बाप जी क सससग सनकर आज लगा - िरा साई िझि ह बापजी आपको दखकर ही शलकत आ गयी

आपको सनकर भलकत परकट हो गयी और आपक दशकन और आशीवाकद स मलकत अब सतनलशचत हो गयी पराथकना करता हा कक यही बस जाओ हम बार-बार आपक दशकन करत रह और भलकत

शलकत परापत करत हए मलकत की ओर बढत रह अब हरदय स कभी तनकल न पाओग बाप जी जो भलकत रस की सररता और जञान की गगा आपन बहायी ह वह मरधय परदश वालसयो को हमशा परररा दती रहगी हम तो भकत ह लशषटय ह आपन जो कछ बात कही ह हम उनका पालन करग हम ववशषरप स रधयान रखग कक आपन जो आजञा की ह नीम पीपल आावला जगह-जगह लग और तलसी मया का पौधा हर घर म लहराय उस आजञा का पालन हो कफर मरधय-परदश नदनवन की तरह महकगा

तीन चीज आपस माागता हा ndash सत बदचध सत मागक और सामथयक दना ताकक जनता की सचार रप स सवा कर सका शरी मशवराजमसह चौहान िखयितरी िधयपरदश

(अनिम) पावन उदगार

जब गर क साकषात दशयन हो गय ह तो कछ बदलाव जरर आयगा

राजमाता की वजह स महाराज बापजी स हमारा बहत पराना ररशता ह आज रामनवमी क ददन म तो मानती हा कक म तो धनय हो गयी कयोकक सबह स लकर दशकन हो रह ह महाराज आपका आशीवाकद बना रह कयोकक म राज करन क ललए नही आयी धमक और कमक को एक साथ जोड़कर म सवा करन क ललए आयी हा और वह म करती रहागी आप आत रहोग आशीवाकद दत रहोग तो हमम ऊजाक भी पदा होगी आप रासता बतात रहो और इस राजयरपी पररवार की सवा करन की शलकत दत रहो

म माफी चाहती हा कक आपक चररो म इतनी दर स पहाची लककन म मानती हा कक जब गर क साकषात दशकन हो गय ह तो कछ बदलाव जरर आयगा राजय की समसयाएा हल होगी व हम लोग जनसवा क काम कर सक ग वसन राराज मसध या िखयितरी राजसथान

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी सवयतर ससकार रोहर को पहचान क मलए अथक तपशचयाय कर रह ह

पजय बाप जी आप दश और दतनया ndash सवकतर ऋवष-परमपरा की ससकार-धरोहर को पहाचान क ललए अथक तपशचयाक कर रह ह अनक यगो स चलत आय मानव-ककयार क इस तपशचयाक-यजञ म आप अपन पल-पल की आहतत दत रह ह उसम स जो ससकार की ददवय जयोतत परकट हई ह उसक परकाश म म और जनता ndash सब चलत रह ह म सतो क आशीवाकद स जी रहा हा म यहाा इसललए आया हा कक लासनस ररनय हो जाय जस नवला अपन घर म जाकर औषचध साघकर ताकत लकर आता ह वस ही म समय तनकाल कर ऐसा अवसर खोज लता हा

शरी नरनर िोदी िखयितरी गजरात

(अनिम) पावन उदगार

आपक दशयनिातर स िझ अदभत शषकत मिलती ह पजय बाप जी क ललए मर ददल म जो शरदधा ह उसको बयान करन क ललए मर पास

कोई शबद नही ह आज क भटक समाज म भी यदद कछ लोग सनमागक पर चल रह ह तो यह इन महापरषो क अमतवचनो का ही परभाव ह बापजी की अमतवारी का ववशषकर मझ पर तो बहत परभाव पड़ता ह मरा तो मन करता ह कक बाप जी जहाा कही भी हो वही पर उड़कर उनक दशकन करन क ललए पहाच जाऊा व कछ पल ही सही उनक सालननरधय का लाभ ला आपक दशकनमातर स ही मझ एक अदभत शलकत लमलती ह शरी परकाश मसह बादल िखयितरी पजाब

(अनिम) पावन उदगार

हि सभी का कतयवय होगा कक आपक बताय रासत पर चल हम सबका परम सौभागय ह कक बाप जी क दशकन हए कल आपस मलाकात हई

आशीवाकद लमला मागकदशकन भी लमला और इशारो-इशारो म आपन वह सब कछ जो सदगरदव एक लशषटय को बता सकत ह मर जस एक लशषटय को आशीवाकद रप म परदान ककया आपक आशीवाकद

व कपादलषटट स छततीसगढ म सख-शातत व समदचध रह यहाा क एक-एक वयलकत क घर म ववकास की ककरर आय

आपन जो जञानोपदश ददया ह हम सभी का कतकवय होगा कक उस रासत पर चल बापजी स खासतौर स पीपल नीम आावला व तलसी क वकष लगान क बार म कहा ह हम इस पर ववशषरप स रधयान रखग डॉ रिन मसह िखयितरी छततीसगढ़

(अनिम) पावन उदगार

आपका ितर हः आओ सरल रासता हदखाऊ राि को पान क मलए

पजय बाबा आसारामजी बाप आपका नाम आसारामजी बाप इसललए तनकला ह कयोकक आपका यही मतर ह कक आओ सरल रासता ददखाऊा राम को पान क ललए आज हम धनय ह कक सससग म आय सससग उस कहत ह लजसक सग म हम सत हो जाय पजय बाप जी न हम भगवान को पान का सरल रासता ददखाया ह इसललए म जनता की ओर स बापजी का धनयवाद करता हा शरी ईएसएल नरमसमहन राजयपाल छततीसगढ़

(अनिम) पावन उदगार

सतो क िागयदशयन ि दश चलगा तो आबाद होगा पजय बाप जी म कमकयोग भलकतयोग तथा जञानयोग तीनो का ही समावश ह आप

आज करोड़ो-करोड़ो भकतो का मागकदशकन कर रह ह सतो क मागकदशकन म दश चलगा तो आबाद होगा म तो बड़-बड़ नताओ स यही कहता हा कक आप सतो का आशीवाकद जरर लो इनक चररो म अगर रहग तो सतता रहगी दटकगी तथा उसी स धमक की सथापना होगी

शरी अशोक मसघल अधयकष षवशव हहनद पररिद

(अनिम) पावन उदगार

सतय का िागय कभी न छ ि ऐसा आशीवायद दो

हम आपक मागकदशकन की जररत ह वह सतत लमलता रह आपन हमार कधो पर जो जवाबदारी दी ह उस हम भली परकार तनभाय बर मागक पर न जाय ससय क मागक पर चल लोगो की अचछ ढग स सवा कर ससकतत की सवा कर ससय का मागक कभी न छट ऐसा आशीवाकद दो

शरी उद व ठाकर काययकारी अधयकष मशवसना

(अनिम) पावन उदगार

पणयोदय पर सत सिागि

जीवन की दौड़-धप स कया लमलता ह यह हम सब जानत ह कफर भी भौततकवादी ससार म हम उस छोड़ नही पात सत शरी आसारामजी जस ददवय शलकतसमपनन सत पधार और हमको आरधयालसमक शातत का पान कराकर जीवन की अधी दौड़ स छड़ाय ऐस परसग कभी-कभी ही परापत होत ह य पजनीय सतशरी ससार म रहत हए भी परकतः ववशवककयार क ललए चचनतन करत ह कायक करत ह लोगो को आनदपवकक जीवन वयतीत करन की कलाएा और योगसाधना की यलकतयाा बतात ह

आज उनक समकष थोड़ी ही दर बठन स एव सससग सनन स हमलोग और सब भल गय ह तथा भीतर शातत व आनद का अनभव कर रह ह ऐस सतो क दरबार म पहाचना पणयोदय का फल ह उनह सनकर हमको लगता ह कक परततददन हम ऐस सससग क ललए कछ समय अवशय तनकालना चादहए पजय बाप जी जस महान सत व महापरष क सामन म अचधक कया कहा चाह कछ भी कहा वह सब सयक क सामन चचराग ददखान जसा ह

शरी िोतीलाल वोरा अरखल भारतीय कागरस कोिाधयकष प वय िखयितरी (िपर) प वय राजयपाल (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी जहा नही होत वहा क लोगो क मलए भी बहत कछ करत ह

सार दश क लोग पजय बापजी क आशीवकचनो की पावन गगा म नहा कर धनय हो रह ह आज बापजी यहाा उड़ीसा म सससग-अमत वपलान क ललए उपलसथत ह व जब यहाा नही होत

ह तब भी उड़ीसा क लोगो क बहत कछ करत ह उनको सब समय याद करत ह उड़ीसा क दररिनारायरो की तन-मन-धन स सवा दर-दराज म भी चलात ह

शरी जानकीवललभ पिनायक िखयितरी उड़ीसा

(अनिम) पावन उदगार

जीवन की सचची मशकषा तो प जय बाप जी ही द सकत ह बापजी ककतन परमदाता ह कक कोई भी वयलकत समाज म दःखी न रह इसललए सतत

परयसन करत रहत ह म हमशा ससकार चनल चाल करक आपक आशीवाकद लन क बाद ही सोती हा जीवन की सचची लशकषा तो हम भी नही द पा रह ह ऐसी लशकषा तो पजय सत शरी आसारामजी बाप जस सत लशरोलमरी ही द सकत ह

आनदीबहन पिल मशकषाितरी (प वय) राजसव एव िागय व िकान ितरी (वतयिान) गजरात

(अनिम) पावन उदगार

आपकी कपा स योग की अणशषकत पदा हो रही ह अनक परकार की ववकततयाा मानव क मन पर सामालजक जीवन पर ससकार और

ससकतत पर आिमर कर रही ह वसततः इस समय ससकतत और ववकतत क बीच एक महासघषक चल रहा ह जो ककसी सरहद क ललए नही बलकक ससकारो क ललए लड़ा जा रहा ह इसम ससकतत को लजतान का बम ह योगशलकत ह गरदव आपकी कपा स इस योग की ददवय अरशलकत लाखो लोगो म पदा हो रही ह य ससकतत क सतनक बन रह ह

गरदव म आपस पराथकना करता हा कक शासन क अदर भी धमक और वरागय क ससकार उसपनन हो आपस आशीवाकद परापत करन क ललए म आपक चररो म आया हा

(शरी अशोकभाई भटि कान नितरी गजरात राजय)

(अनिम) पावन उदगार

रती तो बाप जस सतो क कारण हिकी ह

मझ सससग म आन का मौका पहली बार लमला ह और पजय बापजी स एक अदभत बात मझ और आप सब को सनन को लमली ह वह ह परम की बात इस सलषटट का जो मल तवव ह वह ह परम यह परम नाम का तवव यदद न हो तो सलषटट नषटट हो जाएगी लककन ससार म कोई परम करना नही जानता या तो भगवान पयार करना जानत ह या सत पयार करना जानत ह लजसको ससारी लोग अपनी भाषा म परम कहत ह उसम तो कही-न-कही सवाथक जड़ा होता ह लककन भगवान सत और गर का परम ऐसा होता ह लजसको हम सचमच परम की पररभाषा म बााध सकत ह म यह कह सकती हा कक साध सतो को दश की सीमाएा नही बााधती जस नददयो की धाराएा दश और जातत की सीमाओ म नही बााधती उसी परकार परमासमा का परम और सतो का आशीवाकद भी कभी दश जातत और सपरदाय की सीमाओ म नही बधता कललयग म हदय की तनषटकपटता तनःसवाथक परम सयाग और तपसया का कषय होन लगा ह कफर भी धरती दटकी ह तो बाप इसललए कक आप जस सत भारतभलम पर ववचरर करत ह बाप की कथा म ही मन यह ववशषता दखी ह कक गरीब और अमीर दोनो को अमत क घाट एक जस पीन को लमलत ह यहाा कोई भदभाव नही ह

(सशरी उिा भारती िखयितरी िधयपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

ि किनसीब ह जो इतन सिय तक गरवाणी स वधचत रहा परम पजय गरदव क शरी चररो म सादर परराम मन अभी तक महाराजशरी का नाम भर

सना था आज दशकन करन का अवसर लमला ह लककन म अपन-आपको कमनसीब मानता हा कयोकक दर स आन क कारर इतन समय तक गरदव की वारी सनन स वचचत रहा अब मरी कोलशश रहगी कक म महाराजशरी की अमतवारी सनन का हर अवसर यथासमभव पा सका म ईशवर स यही पराथकना करता हा कक व हम ऐसा मौका द कक हम गर की वारी को सनकर अपन-आपको सधार सक गर जी क शरी चररो म सादर समवपकत होत हए मरधयपरदश की जनता की ओर स पराथकना करता हा कक गरदव आप इस मरधयपरदश म बार-बार पधार और हम लोगो को आशीवाकद दत रह ताकक परमाथक क उस कायक म जो आपन पर दश म ही नही दश क बाहर भी फलाया ह मरधयपरदश क लोगो को भी जड़न का जयादा-स-जयादा अवसर लमल

(शरी हदषगवजय मसह ततकालीन िखयितरी िधयपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

इतनी ि र वाणी इतना अदभत जञान म अपनी ओर स तथा यहाा उपलसथत सभी महानभावो की ओर स परम शरदधय

सतलशरोमखर बाप जी का हाददकक सवागत करता हा मन कई बार टीवी पर आपको दखा सना ह और ददकली म एक बार आपका परवचन भी सना ह इतनी मधर वारी इतना मधर जञान अगर आपक परवचन पर गहराई स ववचार करक अमल ककया जाय तो इनसान को लजदगी म सही रासता लमल सकता ह व लोग धन भागी ह जो इस यग म ऐस महापरष क दशकन व सससग स अपन जीवन-समन खखलात ह

(शरी भजनलाल ततकालीन िखयितरी हररयाणा)

(अनिम) पावन उदगार

सतसग शरवण स िर हदय की सफाई हो गयी पजयशरी क दशकन करन व आशीवाकद लन हत आय हए उततरपरदश क तसकालीन राजयपाल

शरी सरजभान न कहाः समशानभलम स आन क बाद हम लोग शरीर की शदचध क ललए सनान कर लत ह ऐस ही ववदशो म जान क कारर मझ पर दवषत परमार लग जात थ परत वहाा स लौटन क बाद यह मरा परम सौभागय ह कक यहाा महाराज शरी क दशकन व पावन सससग-शरवर करन स मर चचतत की सफाई हो गयी ववदशो म रह रह अनको भारतवासी पजय बाप क परवचनो को परसयकष या परोकष रप स सन रह ह मरा यह सौभागय ह कक मझ यहाा महाराजशरी को सनन का सअवसर परापत हआ

(शरी स रजभान ततकालीन राजयपाल उततरपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

जञानरपी गगाजी सवय बहकर यहा आ गयी उततराचल राजय का सौभागय ह कक इस दवभमी म दवता सवरप पजय बापजी का आशरम बन रहा ह | आप ऐसा आशरम बनाय जसा कही भी न हो | यह हम लोगो का सौभागय ह कक अब पजय बापजी की जञानरपी गगाजी सवय बहकर यहा आ गयी ह | अब गगा जाकर दशकन करन व सनान करन की उतनी आवशयकता नही ह लजतनी सत शरी आसारामजी बाप क चररो म बठकर

उनक आशीवाकद लन की ह |

-शरी तनतयानद सवािीजी

ततकालीन िखयितरी उततराचल

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी क सतसग स षवशवभर क लोग लाभाषनवत भारतभलम सदव स ही ऋवष-मतनयो तथा सत-महासमाओ की भलम रही ह लजनहोन ववशव

को शातत एव अरधयासम का सदश ददया ह आज क यग म पजय सत शरी आसारामजी अपनी अमतवारी दवारा ददवय आरधयालसमक सदश द रह ह लजसस न कवल भारत वरन ववशवभर म लोग लाभालनवत हो रह ह

(शरी सरजीत मसह बरनाला राजयपाल आनरपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

प री डडकशनरी याद कर षवशव ररकॉडय बनाया ऑकसफोडक एडवास लनकसक डडकशनरी (अगरजी छठा ससकरर) क 80000 शबदो को उनकी

पषटठ सखया सदहत मन याद कर ललया जो कक समसत ववशव क ललए ककसी चमसकार स कम नही ह फलसवरप मरा नाम ललमका बक ऑफ वकडक ररकॉडकस म दजक हो गया यही नही जी टीवी पर ददखाय जान वाल ररयाललटी शो म शाबाश इडडया म भी मन ववशव ररकॉडक बनाया द वीक पतरतरका क एक सवकषर म भी मरा नाम 25 अदभत वयलकतयो की सची म ह

मझ पजय गरदव स मतरदीकषा परापत होना भरामरी परारायाम सीखन को लमलना तथा अपनी कमजोरी को ही महानता परापत करन का साधन बनान की परररा कला बल एव उससाह परापत होना ndash यह सब तो गरदव की अहतकी कपा का ही चमसकार ह गरकपा ही कवल मशटयसय पर िगलि

षवरनर िहता अजयन नगर रोहतक (हरर)

(अनिम) पावन उदगार

ितरदीकषा व यौधगक परयोगो स बदध का अपरतति षवकास

पहल म एक साधारर छातर था मझ लगभग 50-55 परततशत अक ही लमलत थ 11वी ककषा म तो ऐसी लसथतत हई कक सकल का नाम खराब न हो इसललए परधानारधयापक न मर अलभभावको को बलाकर मझ सकल स तनकाल दन तक की बात कही थी बाद म मझ पजय बाप जी स सारसवसय मतर की दीकषा लमली इस मतर क जप व बापजी दवारा बताय गय परयोगो क अभयास स कछ ही समय म मरी बदचधशलकत का अपरततम ववकास हआ तसपशचात नोककया मोबाइल कपनी म गलोबल सववकसस परोडकट मनजर क पद पर मरी तनयलकत हई और मन एक पसतक ललखी जो अतराकषटरीय कपतनयो को सकयलर नटवकक की डडजाईन बनान म उपयोगी हो रही ह एक ववदशी परकाशन दवारा परकालशत इस पसतक की कीमत 110 डॉलर (करीब 4500 रपय) ह इसक परकाशन क बाद मरी पदोननती हई और अब ववशव क कई दशो म मोबाइल क कषतर म परलशकषर दन हत मझ बलात ह कफर मन एक और पसतक ललखी लजसकी 150 डॉलर (करीब 6000 रपय) ह यह पजयशरी स परापत सारसवसय मतरदीकषा का ही पररराम ह

अजय रजन मिशरा जनकपरी हदलली

(अनिम) पावन उदगार

सतसग व ितरदीकषा न कहा स कहा पहचा हदया पहल म भस चराता था रोज सबह रात की रखी रोटी पयाज नमक और मोतरबल ऑयल

क डडबब म पानी लकर तनकालता व दोपहर को वही खाता था आचथकक लसथतत ठीक न होन स टायर की ढाई रपय वाली चपपल पहनता था

12वी म मझ कवल 60 परततशत अक परापत हए थ उसक बाद मन इलाहाबाद म इजीतनयररग म परवश ललया तब म अजञानवश सतो का ववरोध करता था सतो क ललए जहर उगलन वाल मखो क सग म आकर म कछ-का-कछ बकता था लककन इलाहाबाद म पजय बाप जी का सससग आयोलजत हआ तो सोचा 5 लमनट बठत ह वहाा बठा तो बठ ही गया कफर मझ बापजी दवारा सारसवसय मतर लमला मरी सझबझ म सदगर की कपा का सचार हआ मन सववचध मतर-अनषटठान ककया छठ ददन मर आजञाचि म कमपन होन लगा था म एक साल तक

एकादशी क तनजकल वरत व जागरर करत हए शरी आसारामायर शरी ववषटर सहसरनाम गजनिमोकष का पाठ व सारसवसय मतर का जप करता था रात भर म यही पराथकना करता था बस परभ मझ गर जी स लमला दो

परभकपा स अब मरा उददशय परा हो गया ह इस समय म गो एयर (हवाई जहाज कमपनी) म इजीतनयर हा महीन भर का करीब एक लाख 80 हजार पाता हा कछ ददनो म तनखवाह ढाई लाख हो जायगी गर जी न भस चरान वाल एक गरीब लड़क को आज लसथतत म पहाचा ददया ह

कषकषततज सोनी (एयरकराफि इजीतनयर) हदलली

(अनिम) पावन उदगार

5 विय क बालक न चलायी जोरखि भरी सड़को पर कार

मन पजय बापजी स सारसवसय मतर की दीकषा ली ह जब म पजा करता हा बापजी मरी तरफ पलक झपकात ह म बापजी स बात करता हा म रोज दस माला करता हा म बापजी स जो माागता हा वह मझ लमल जाता ह मझ हमशा ऐसा एहसास होता ह कक बापजी मर साथ ह

5 जलाई 2005 को म अपन दोसतो क साथ खल रहा था मरा छोटा भाई छत स नीच चगर गया उस समय हमार घर म कोई बड़ा नही था इसललए हम सब बचच डर गय इतन म पजय बापजी की आवाज आयी कक ताश इस वन म तरबठा और वन चलाकर हॉलसपटल ल जा उसक बाद मन अपनी दीददयो की मदद स दहमाश को वन म ललटाया गाड़ी कसी चली और असपताल कस पहाची मझ नही पता मझ रासत भर ऐसा एहसास रहा कक बापजी मर साथ बठ ह और गाड़ी चलवा रह ह (घर स असपताल का 5 ककमी स अचधक ह)

ताश बसोया राजवीर कॉलोनी हदलली ndash 16

(अनिम) पावन उदगार

ऐस सतो का षजतना आदर ककया जाय कि ह

ककसी न मझस कहा थाः रधयान की कसट लगाकर सोयग तो सवपन म गरदव क दशकन होगrsquo

मन उसी रात रधयान की कसट लगायी और सनत-सनत सो गया उस वकत रातरतर क बारह-साढ बारह बज होग वकत का पता नही चला ऐसा लगा मानो ककसी न मझ उठा ददया म गहरी नीद स उठा एव गर जी की लपवाल फोटो की तरफ टकटकी लगाकर एक-दो लमनट तक दखता रहा इतन म आशचयक टप अपन-आप चल पड़ी और कवल य तीन वाकय सनन को लमलः lsquoआसमा चतनय ह शरीर जड़ ह शरीर पर अलभमान मत करोrsquo

टप सवतः बद हो गयी और पर कमर म यह आवाज गाज उठी दसर कमर म मरी पसनी की भी आाख खल गयी और उसन तो यहाा तक महसस ककया जस कोई चल रहा ह व गरजी क लसवाय और कोई नही हो सकत

मन कमर की लाइट जलायी और दौड़ता हआ पसनी क पास गया मन पछाः lsquoसनाrsquo वह बोलीः lsquoहााrsquo

उस समय सबह क ठीक चार बज थ सनान करक म रधयान म बठा तो डढ घणट तक बठा रहा इतना लबा रधयान तो मरा कभी नही लगा इस घटना क बाद तो ऐसा लगता ह कक गरजी साकषात बरहमसवरप ह उनको जो लजस रप म दखता ह वस व ददखत ह

मरा लमतर पाशचासय ववचारधारावाला ह उसन गरजी का परवचन सना और बोलाः lsquoमझ तो य एक बहत अचछ लकचरर लगत हrsquo

मन कहाः lsquoआज जरर इस पर गरजी कछ कहगrsquo

यह सरत आशरम म मनायी जा रही जनमाषटटमी क समय की बात ह हम कथा म बठ गरजी न कथा क बीच म ही कहाः lsquoकछ लोगो को म लकचरर ददखता हा कछ को lsquoपरोफसरrsquo ददखता हा कछ को lsquoगरrsquo ददखता हा और वसा ही वह मझ पाता हrsquo

मर लमतर का लसर शमक स झक गया कफर भी वह नालसतक तो था ही उसन हमार तनवास पर मजाक म गरजी क ललए कछ कहा तब मन कहाः यह ठीक नही ह अबकी बार मान जा नही तो गर जी तझ सजा दग

15 लमनट म ही उसक घर स फोन आ गया कक बचच की तबीयत बहत खराब ह उस असपताल म दाखखल करना पड़ रहा ह

तब मर लमतर की सरत दखन लायक थी वह बोलाः गकती हो गयी अब म गर जी क ललए कछ नही कहागा मझ चाह ववशवास हो या न हो

अखबारो म गर जी की तनदा ललखनवाल अजञानी लोग नही जानत कक जो महापरष भारतीय ससकतत को एक नया रप द रह ह कई सतो की वाखरयो को पनजीववत कर रह ह लोगो क शराब-कबाब छड़वा रह ह लजनस समाज का ककयार हो रहा ह उनक ही बार म हम हलकी बात ललख रह ह यह हमार दश क ललए बहत ही शमकजनक बात ह ऐस सतो का तो लजतना आदर ककया जाय वह कम ह गरजी क बार म कछ भी बखान करन क ललए मर पास शबद नही ह

(डॉ सतवीर मसह छाबड़ा बीबीईएि आकाशवाणी इनदौर)

(अनिम) पावन उदगार

िझ तनवययसनी बना हदया म वपछल कई वषो स तमबाक का वयसनी था और इस दगकर को छोड़न क ललए मन

ककतन ही परयसन ककय पर म तनषटफल रहा जनवरी 1995 म पजय बाप जब परकाशा आशरम (महा) पधार तो म भी उनक दशकनाथक वहाा पहाचा और उनस अनऱोध ककयाः

बाप ववगत 32 वषो स तमबाक का सवन कर रहा हा अनक परयसनो क बाद भी इस दगकर स म मकत न हो सका अब आप ही कपा कीलजएrsquo

पजय बाप न कहाः lsquoलाओ तमबाक की डडबबी और तीन बार थककर कहो कक आज स म तमबाक नही खाऊा गाrsquo

मन पजय बाप जी क तनदशानसार वही ककया और महान आशचयक उसी ददन स मरा तमबाक खान का वयसन छट गया पजय बाप की ऐसी कपादलषटट हई कक वषक परा होन पर भी मझ कभी तमबाक खान की तलब नही लगी

म ककन शबदो म पजय बाप का आभार वयकत करा मर पास शबद ही नही ह मझ आननद ह कक इन राषटरसत न बरबाद व नषटट होत हए मर जीवन को बचाकर मझ तनवयकसनी ददया

(शरी लखन भिवाल षज मलया िहाराटर)

(अनिम) पावन उदगार

गरजी की तसवीर न पराण बचा मलय

कछ ही ददनो पहल मरा दसरा बटा एम ए पास करक नौकरी क ललय बहत जगह घमा बहत जगह आवदन-पतर भजा ककनत उस नौकरी नही लमली | कफर उसन बापजी स दीकषा ली | मन आशरम का कछ सामान कसट सतसादहसय लाकर उसको दत हए कहा शहर म जहाा मददर ह जहाा मल लगत ह तथा जहाा हनमानजी का परलसदध दकषकषरमखी मददर ह वहा सटाल लगाओ | बट न सटाल लगाना शर ककया | ऐस ही एक सटाल पर जलगाव क एक परलसदध वयापारी अगरवालजी आय बापजी की कछ कसट खरीदी और ईशवर की ओर नामक पसतक भी साथ म ल गय पसतक पढी और कसट सनी | दसर ददन व कफर आय और कछ सतसादहसय खरीद कर ल गय व पान क थोक वविता ह | उनको पान खान की आदत ह | पसतक पढकर उनह लगा म पान छोड़ दा | उनकी दकान पर एक आदमी आया | पाचसौ रपयो का सामान खरीदा और उनका फोन नमबर ल गया | एक घट क बाद उसन दकान पर फोन ककया सठ अगरवालजी मझ आपका खन करन का काम सौपा गया था | काफी पस (सपारी) भी ददय गय थ और म तयार भी हो गया था पर जब म आपकी दकान पर पहचा तो परम पजय सत शरी आसारामजी बाप क चचतर पर मरी नजर पड़ी | मझ ऐसा लगा मानो साकषात बाप बठ हो और मझ नक इनसान बनन की परररा द रह हो गरजी की तसवीर न (तसवीर क रप म साकषात गरदव न आकर) आपक परार बचा ललय | अदभत चमसकार ह ममबई की पाटी न उसको पस भी ददय थ और वह आया भी था खन करन क इराद स परनत जाको राख साइयाा चचतर क दवार भी अपनी कपा बरसान वाल ऐस गरदव क परसयकष दशकन करन क ललय वह यहाा भी आया ह |

-बालकटण अगरवाल

जलगाव िहाराटर

(अनिम) पावन उदगार

सदगर मशटय का साथ कभी नही छोड़त एक रात म दकान स सकटर दवारा अपन घर जा रहा था | सकटर की डडककी म काफी

रपय रख हए थ | जयो ही घर क पास पहचा तो गली म तीन बदमाश लमल | उनहोन मझ घर ललया और वपसतौल ददखायी | सकटर रकवाकर मर लसर पर तमच का बट मार ददया और धकक मार कर मझ एक तरफ चगरा ददया | उनहोन सोचा होगा कक म अकला ह पर लशषटय जब सदगर स मतर लता ह शरदधा-ववशवास रखकर उसका जप करता ह तब सदगर उसका साथ नही छोड़त |

मन सोचा डडककी म बहत रपय ह और य बदमाश तो सकटर ल जा रह ह | मन गरदव स पराथकना की | इतन म व तीनो बदमाश सकटर छोड़कर थला ल भाग | घर जाकर खोला होगा तो सबजी और खाली दटकफ़न दखकर लसर कटा पता नही पर बड़ा मजा आया होगा | मर पस बच गयउनका सबजी का खचक बच गया |

-गोकलचनर गोयल

आगरा

(अनिम) पावन उदगार

गरकपा स अ ापन द र हआ

मझ गलकोमा हो गया था | लगभग पतीस साल स यह तकलीफ़ थी | करीब छः साल तक तो म अधा रहा | कोलकाता चननई आदद सब जगहो पर गया शकर नतरालय म भी गया ककनत वहा भी तनराशा हाथ लगी | कोलकाता क सबस बड़ नतर-ववशषजञ क पास गया | उसन भी मना कर ददया और कहा | धरती पर ऐसा कोई इनसान नही जो तमह ठीक कर सक | लककन सरत आशरम म मझ गरदव स मतर लमला | वह मतर मन खब शरदधा-ववशवासपवकक जपा कयोकक सकषात बरहमसवरप गरदव स वह मतर लमला था | करीब छः-सात महीन ही जप हआ था कक मझ थोड़ा-थोड़ा ददखायी दन लगा | डॉकटर कहत थ कक तमको भरातत हो गयी ह पर मझ तो अब भी अचछी तरह ददखता ह | एक बार एक अनय भयकर दघकटना स भी गरदव न मझ बचाया था |

ऐस गरदव का ॠर हम जनमो-जनमो तक नही चका सकत |

-शकरलाल िहशवरी कोलकाता

(अनिम) पावन उदगार

और डकत घबराकर भाग गय

१४ जलाई ९९ को करीब साढ तीन बज मर मकान म छः डकत घस आय और उस समय दभाकगय स बाहर का दरवाजा खला हआ था | दो डकत बाहर मारतत चाल रखकर खड़ थ |

एक डकत न धकका दकर मरी माा का माह बद कर ददया और अलमारी की चाबी माागन लगा |

इस घटना क दौरान म दकान पर था | मरी पसनी को भी डकत धमकान लग और आवाज न करन को कहा | मरी पसनी न पजय बापजी क चचतर क सामन हाथ जोड़कर पराथकना की अब आप ही रकषा करो इतना ही कहा तो आशचयक आशचयक परम आशचयक व सब डकत घबराकर भागन लग | उनकी हड़बड़ाहट दखकर ऐसा लग रहा था मानो उनह कछ ददखायी नही द रहा था | व भाग गय | मरा पररवार गरदव का ॠरी ह | बापजी क आशीवाकद स सब सकशल ह |

हमन १५ नवमबर ९८ को वारारसी म मतरदीकषा ली थी |

-िनोहरलाल तलरजा

४ झललाल नगर मशवाजी नगर

वाराणसी

(अनिम) पावन उदगार

ितर दवारा ितदह ि पराण-सचार

म शरी योग वदानत सवा सलमतत आमट स जीप दवारा रवाना हआ था | ११ जलाई १९९४ को मरधयानह बारह बज हमारी जीप ककसी तकनीकी तरदट क कारर तनयतरर स बाहर होकर तीन पलकटयाा खा गयी | मरा परा शरीर जीप क नीच दब गया | ककसी तरह मझ बाहर तनकाला गया |

एक तो दबला पतला शरीर और ऊपर स परी जीप का वजन ऊपर आ जान क कारर मर शरीर क परसयक दहसस म असहय ददक होन लगा | मझ पहल तो कसररयाजी असपताल म दाखखल कराया गया | जयो-जयो उपचार ककया गया कषटट बढता ही गया कयोकक चोट बाहर नही शरीर क भीतरी दहससो म लगी थी और भीतर तक डॉकटरो का कोई उपचार काम नही कर रहा था | जीप क नीच दबन स मरा सीना व पट ववशष परभाववत हए थ और हाथ-पर म कााच क टकड़ घस गय थ | ददक क मार मझ साास लन म भी तकलीफ हो रही थी | ऑकसीजन ददय जान क बाद भी दम घट रहा था और मसय की घडडयाा नजदीक ददखायी पड़न लगी | म मररासनन लसथतत म

पहाच गया | मरा मसय-परमारपतर बनान की तयाररयाा कक जान लगी व मझ घर ल जान को कहा गया | इसक पवक मरा लमतर पजय बाप स फ़ोन पर मरी लसथतत क समबनध म बात कर चका था | परारीमातर क परम दहतषी दयाल सवभाव क सत पजय बाप न उस एक गपत मतर परदान करत हए कहा था कक पानी म तनहारत हए इस मतर का एक सौ आठ बार (एक माला) जप करक वह पानी मनोज को एव दघकटना म घायल अनय लोगो को भी वपला दना | जस ही वह अलभमतरतरत जल मर माह म डाला गया मर शरीर म हलचल होन क साथ ही वमन हआ | इस अदभत चमसकार स ववलसमत होकर डॉकटरो न मझ तरत ही ववशष मशीनो क नीच ल जाकर ललटाया |

गहन चचककससकीय परीकषर क बाद डॉकटरो को पता चला कक जीप क नीच दबन स मरा परा खन काला पड़ गया था तथा नाड़ी-चालन (पकस) हदयगतत व रकत परवाह भी बद हो चक थ |

मर शरीर का समपरक रकत बदल ददया गया तथा आपरशन भी हआ | उसक ७२ घट बाद मझ होश आया | बहोशी म मझ कवल इतना ही याद था की मर भीतर पजय बाप दवारा परदतत गरमतर का जप चल रहा ह | होश म आन पर डॉकटरो न पछा तम आपरशन क समय बापबाप पकार रह थ | य बाप कौन ह मन बताया व मर गरदव परातः समररीय परम पजय सत शरी असारामजी बाप ह | डॉकटरो न पनः मझस परशन ककया कया तम कोई वयायाम करत हो मन कहा म अपन गरदव दवारा लसखायी गयी ववचध स आसन व परारायाम करता हा | व बोल इसीललय तमहार इस दबल-पतल शरीर न यह सब सहन कर ललया और तम मरकर भी पनः लजनदा हो उठ दसरा कोई होता तो तरत घटनासथल पर ही उसकी हडडडयाा बाहर तनकल जाती और वह मर जाता | मर शरीर म आठ-आठ नललयाा लगी हई थी | ककसीस खन चढ रहा था तो ककसी स कतरतरम ऑकसीजन ददया जा रहा था | यदयवप मर शरीर क कछ दहससो म अभी-भी कााच क टकड़ मौजद ह लककन गरकपा स आज म परक सवसथ होकर अपना वयवसाय व गरसवा दोनो कायक कर रह हा | मरा जीवन तो गरदव का ही ददया हआ ह | इन मतरदषटटा महवषक न उस ददन मर लमतर को मतर न ददया होता तो मरा पनजीवन तो समभव नही था | पजय बाप मानव-दह म ददखत हए भी अतत असाधारर महापरष ह | टललफ़ोन पर ददय हए उनक एक मतर स ही मर मत शरीर म पनः परारो का सचार हो गया तो लजन पर बाप की परसयकष दलषटट पड़ती होगी व लोग ककतन भागयशाली होत होग ऐस दयाल जीवनदाता सदगर क शरीचररो म कोदट-कोदट दडवत परराम

-िनोज किार सोनी

जयोतत िलसय लकषिी बाजार आिि राजसथान

(अनिम) पावन उदगार

सदगरदव की कपा स नतरजयोतत वापस मिली मरी दादहनी आाख स कम ददखायी दता था तथा उसम तकलीफ़ भी थी | रधयानयोग

लशववर ददकली म पजय गरदव मवा बााट रह थ तब एक मवा मरी दादहनी आाख पर आ लगा |

आाख स पानी तनकलन लगा | पर आशचयक दसर ही ददन स आाख की तकलीफ लमट गयी और अचछी तरह ददखायी दन लगा | -राजकली दवी

असनापर लालगज अजारा षज परतापगढ़ उततर परदश

(अनिम) पावन उदगार

बड़दादा की मिटिी व जल स जीवनदान

अगसत ९८ म मझ मलररया हआ | उसक बाद पीललया हो गया | मर बड़ भाई न आशरम स परकालशत आरोगयतनचध पसतक म स पीललया का मतर पढकर पीललया तो उतार ददया परत कछ ही ददनो बाद अगरजी दवाओ क ररएकषन स दोनो ककडतनयाा फल (तनलषटिय) हो गई | मरा हाटक (हदय) और लीवर (यकत) भी फल होन लग | डॉकटरो न तो कह ददया यह लड़का बच नही सकता | कफर मझ गोददया स नागपर हॉलसपटल म ल जाया गया लककन वहाा भी डॉकटरो न जवाब द ददया कक अब कछ नही हो सकता | मर भाई मझ वही छोड़कर सरत आशरम आय

वदयजी स लमल और बड़दादा की पररिमा करक पराथकना की तथा वहाा की लमटटी और जल ललया | ८ तारीख को डॉकटर मरी ककडनी बदलन वाल थ | जब मर भाई बड़दादा को पराथकना कर रह थ तभी स मझ आराम लमलना शर हो गया था | भाई न ७ तारीख को आकर मझ बड़दादा कक लमटटी लगाई और जल वपलाया तो मरी दोनो ककडनीयाा सवसथ हो गयी | मझ जीवनदान लमल गया | अब म तरबककल सवसथ हा |

-परवीण पिल

गोहदया िहाराटर

(अनिम) पावन उदगार

प जय बाप न फ का कपा-परसाद

कछ वषक पवक पजय बाप राजकोट आशरम म पधार थ | मझ उन ददनो तनकट स दशकन करन का सौभागय लमला | उस समय मझ छाती म एनजायना पकसटोररस क कारर ददक रहता था | सससग परा होन क बाद कछ लोग पजय बाप क पास एक-एक करक जा रह थ | म कछ फल-फल नही लाया था इसललए शरदधा क फल ललय बठा था | पजय बाप कपा-परसाद फ क रह थ कक इतन म एक चीक मरी छाती पर आ लगा और छाती का वह ददक हमशा क ललए लमट गया |

-अरषवदभाई वसावड़ा

राजकोि

(अनिम) पावन उदगार

बिी न िनौती िानी और गरकपा हई

मरी बटी को शादी ककय आठ साल हो गय थ | पहली बार जब वह गभकवती हई तब बचचा पट म ही मर गया | दसरी बार बचची जनमी पर छः महीन म वह भी चल बसी | कफर मरी पसनी न बटी स कहा अगर त सककप कर कक जब तीसरी बार परसती होगी तब तम बालक की जीभ पर बापजी क बतान क मतातरबक lsquoॐrsquo ललखोगी तो तरा बालक जीववत रहगा ऐसा मझ ववशवास ह कयोकक ॐकार मतर म परमानदसवरप परभ ववराजमान ह | मरी बटी न इस परकार मनौती मानी और समय पाकर वह गभकवती हई | सोनोगराफ़ी करवायी गयी तो डॉकटरो न बताया गभक म बचची ह और उसक ददमाग म पानी भरा हआ ह | वह लजदा नही रह सकगी |

गभकपात करवा दो | मरी बटी न अपनी माा स सलाह की | उसकी माा न कहा गभकपात का महापाप नही करवाना ह | जो होगा दखा जायगा | गरदव कपा करग | जब परसती हई तो तरबककल पराकततक ढग स हई और उस बचची की जीभ पर शहद एव लमशरी स ॐ ललखा गया | आज वह तरबककल ठीक ह | जब उसकी डॉकटरी जााच करवायी गयी तो डॉकटर आशचयक म पड़ गय सोनोगराफ़ी म जो बीमाररयाा ददख रही थी व कहाा चली गयी ददमाग का पानी कहाा चला गया

दहनदजा हॉलसपटलवाल यह कररशमा दखकर दग रह गय अब घर म जब कोई दसरी कोई कसट चलती ह तो वह बचची इशारा करक कहती ह ॐवाली कसट चलाओ | वपछली पनम को हम मबई स टाटा समो म आ रह थ | बाढ क पानी क कारर रासता बद था | हम सोच म पड़ गय कक पनम का तनयम टटगा | हमन गरदव का समरर ककया | इतन म हमार डराइवर न हमस पछा जान दा हमन भी गरदव का समरर करक कहा जान दो और हरर हरर ॐ कीतकन की कसट लगा दो | गाड़ी आग चली | इतना पानी कक हम जहाा बठ थ वहाा तक पानी आ गया |

कफर भी हम गरदव क पास सकशल पहाच गय और उनक दशकन ककय|

-िरारीलाल अगरवाल

साताकर ज िबई

(अनिम) पावन उदगार

और गरदव की कपा बरसी जबस सरत आशरम की सथापना हई तबस म गरदव क दशकन करत आ रहा हा उनकी

अमतवारी सनता आ रहा हा | मझ पजयशरी स मतरदीकषा भी लमली ह | परारबधवश एक ददन मर साथ एक भयकर दघकटना घटी | डॉकटर कहत थ आपका एक हाथ अब काम नही करगा | म अपना मानलसक जप मनोबल स करता रहा | अब हाथ तरबककल ठीक ह | उसस म ७० ककगरा वजन उठा सकता हा | मरी समसया थी कक शादी होन क बाद मझ कोई सतान नही थी | डॉकटर कहत थ कक सतान नही हो सकती | हम लोगो न गरकपा एव गरमतर का सहारा ललया रधयानयोग लशववर म आय और गरदव की कपा बरसी | अब हमारी तीन सतान ह दो पतरतरयाा और एक पतर | गरदव न ही बड़ी बटी का नाम गोपी और बट का नाम हररककशन रखा ह | जय हो सदगरदव की

-हसिख काततलाल िोदी

५७ अपना घर सोसायिी सदर रोड़ स रत

(अनिम) पावन उदगार

गरदव न भजा अकषयपातर

हम परचारयातरा क दौरान गरकपा का जो अदभत अनभव हआ वह अवरकनीय ह | यातरा की शरआत स पहल ददनाक ८-११-९९ को हम पजय गरदव क आशीवाकद लन गय | गरदव न कायकिम क ववषय म पछा और कहा पचड़ आशरम (रतलाम) म भडारा था | उसम बहत सामान बच गया ह | गाड़ी भजकर मागवा लना गरीबो म बााटना | हम झाबआ लजल क आस-पास क

गरीब आददवासी इलाको म जानवाल थ | वहाा स रतलाम क ललए गाड़ी भजी | चगनकर सामान भरा गया | दो ददन चल उतना सामान था | एक ददन म दो भडार होत थ | अतः चार भडार का सामान था | सबन खकल हाथो बतकन कपड़ साडड़याा धोती आदद सामान छः ददनो तक बााटा कफर भी सामान बचा रहा | सबको आशचयक हआ हम लोग सामान कफर स चगनन लग परत गरदव की लीला क ववषय म कया कह कवल दो ददन चल उतना सामान छः ददनो तक खकल हाथो बााटा कफर भी अत म तीन बोर बतकन बच गय मानो गरदव न अकषयपातर भजा हो एक ददन शाम को भडारा परा हआ तब दखा कक एक पतीला चावल बच गया ह | करीब १००-१२५ लोग खा सक उतन चावल थ | हमन सोचा चावल गााव म बाट दत ह | परत गरदव की लीला दखो एक गााव क बदल पााच गाावो म बााट कफर भी चावल बच रह | आखखर रातरतर म ९ बज क बाद सवाधाररयो न थककर गरदव स पराथकना की कक गरदव अब जगल का ववसतार ह हम पर कपा करो | और चावल खसम हए | कफर सवाधारी तनवास पर पहाच |

-सत शरी आसारािजी भकतिडल

कतारगाि स रत

(अनिम) पावन उदगार

सवपन ि हदय हए वरदान स पतरपराषपत

मर गरहसथ जीवन म एक-एक करक तीन कनयाएा जनमी | पतरपरालपत क ललए मरी धमकपसनी न गरदव स आशीवाकद परापत ककया था | चौथी परसतत होन क पहल जब उसन वलसाड़ म सोनोगराफ़ी करवायी तो ररपोटक म लड़की बताया गया | यह सनकर हम तनराश हो गय | एक रात पसनी को सवपन म गरदव न दशकन ददय और कहा बटी चचता मत कर | घबराना मत धीरज रख | लड़का ही होगा | हमन सरत आशरम म बड़दादा की पररिमा करक मनौती मानी थी वह भी फ़लीभत हई और गरदव का बरहमवाकय भी ससय सातरबत हआ जब परसतत होन पर लड़का हआ | सभी गरदव की जय-जयकार करन लग |

-सनील किार रा शयाि चौरमसया

दीपकवाड़ी ककलला पारड़ी षज वलसाड़

(अनिम) पावन उदगार

शरी आसारािायण क पाठ स जीवनदान

मरा दस वषीय पतर एक रात अचानक बीमार हो गया | साास भी मलशकल स ल रहा था |

जब उस हॉलसपटल म भती ककया तब डॉकटर बोल | बचचा गभीर हालत म ह | ऑपरशन करना पड़गा | म बचच को हॉलसपटल म ही छोड़कर पस लन क ललए घर गया और घर म सभी को कहा ldquoआप लोग शरी आसारामायर का पाठ शर करो |rdquo पाठ होन लगा | थोड़ी दर बाद म हॉलसपटल पहाचा | वहाा दखा तो बचचा हास-खल रहा था | यह दख मरी और घरवालो की खशी का दठकाना न रहा यह सब बापजी की असीम कपा गर-गोववनद की कपा और शरी आसारामायर-पाठ का फल ह |

-सनील चाडक

अिरावती िहाराटर

(अनिम) पावन उदगार

गरवाणी पर षवशवास स अवणीय लाभ

शादी होन पर एक पतरी क बाद सात साल तक कोई सतान नही हई | हमार मन म पतरपरालपत की इचछा थी | १९९९ क लशववर म हम सतानपरालपत का आशीवाकद लनवालो की पलकत म बठ | बापजी आशीवाकद दन क ललए साधको क बीच आय तो कछ साधक नासमझी स कछ ऐस परशन कर बठ जो उनह नही करन चादहए थ | गरदव नाराज होकर यह कहकर चल गय कक तमको सतवारी पर ववशवास नही ह तो तम लोग यहाा कयो आय तमह डॉकटर क पास जाना चादहए था | कफर गरदव हमार पास नही आय | सभी पराथकना करत रह पर गरदव वयासपीठ स बोल दबारा तीन लशववर भरना | म मन म सोच रहा था कक कछ साधको क कारर मझ आशीवाकद नही लमल पाया परत वजरादषप कठोरारण िदतन कसिादषप बाहर स वजर स भी कठोर ददखन वाल सदगर भीतर स फल स भी कोमल होत ह | तरत गरदव ववनोद करत हए बोल दखो य लोग सतानपरालपत का आशीवाकद लन आय ह | कस ठनठनपाल-स बठ ह अब जाओ झला-झनझना लकर घर जाओ | मन और मरी पसनी न आपस म ववचार ककया दयाल गरदव न आखखर आशीवाकद द ही ददया | अब गरदव न कहा ह कक झला-झनझना ल जाओ |

तो मन गरवचन मानकर रलव सटशन स एक झनझना खरीद ललया और गवाललयर आकर गरदव क चचतर क पास रख ददया | मझ वहाा स आन क १५ ददन बाद डॉकटर दवारा मालम हआ

कक पसनी गभकवती ह | मन गरदव को मन-ही-मन परराम ककया | इस बीच डॉकटरो न सलाह दी कक लड़का ह या लड़की इसकी जााच करा लो | मन बड़ ववशवास स कहा कक लड़का ही होगा |

अगर लड़की भी हई तो मझ कोई आपवतत नही ह | मझ गभकपात का पाप अपन लसर पर नही लना ह | नौ माह तक मरी पसनी भी सवसथ रही | हररदवार लशववर म भी हम लोग गय | समय आन पर गरदव दवारा बताय गय इलाज क मतातरबक गाय क गोबर का रस पसनी को ददया और ददनाक २७ अकतबर १९९९ को एक सवसथ बालक का जनम हआ |

-राजनर किार वाजपयी अचयना वाजपयी

बलवत नगर ढाढीपर िरारा गवामलयर

(अनिम) पावन उदगार

सवफल क दो िकड़ो स दो सतान मन सन १९९१ म चटीचड लशववर अमदावाद म पजय बापजी स मतरदीकषा ली थी | मरी

शादी क १० वषक तक मख कोई सतान नही हई | बहत इलाज करवाय लककन सभी डॉकटरो न बताया कक बालक होन की कोई सभावना नही ह | तब मन पजय बापजी क पनम दशकन का वरत ललया और बाासवाड़ा म पनम दशकन क ललए गया | पजय बापजी सबको परसाद द रह थ | मन मन म सोचा | कया म इतना पापी हा कक बापजी मरी तरफ दखत तक नही इतन म पजय बापजी कक दलषटट मझ पर पड़ी और उनहोन मझ दो लमनट तक दखा | कफर उनहोन एक सवफल लकर मझ पर फ का जो मर दाय कध पर लगकर दो टकड़ो म बाट गया | घर जाकर मन उस सवफल क दोनो भाग अपनी पसनी को खखला ददय | पजयशरी का कपापरक परसाद खान स मरी पसनी गभकवती हो गयी | तनरीकषर करान पर पता चला कक उसको दो लसर वाला बालक उसपनन होगा |

डॉकटरो न बताया उसका लसजररयन करना पड़गा अनयथा आपकी पसनी क बचन की समभावना नही ह | लसजररयन म लगभग बीस हजार रपयो का खचक आयगा | मन पजय बापजी स पराथकना की ह बापजी आपन ही फल ददया था | अब आप ही इस सकट का तनवारर कीलजय | कफर मन बड़ बादशाह क सामन भी पराथकना की जब म असपताल पहाचा तो मरी पसनी की परसती सकशल हो जाय | उसक बाद जब म असपताल पहाचा तो मरी पसनी एक पतर और एक पतरी को जनम द चकी थी | पजयशरी क दवारा ददय गय फल स मझ एक की जगह दो सतानो की परालपत हई |

-िकशभाई सोलकी

शारदा िहदर सक ल क पीछ

बावन चाल वड़ोदरा

(अनिम) पावन उदगार

साइककल स गर ाि जान पर खराब िाग ठीक हो गयी

मरी बाायी टााग घटन स उपर पतली हो गयी थी | ऑल इखरडया मडडकल इनसटीटयट

ददकली म म छः ददन तक रहा | वहाा जााच क बाद बतलाया गया कक तमहारी रीढ की हडडी क पास कछ नस मर गयी ह लजसस यह टााग पतली हो गयी ह | यह ठीक तो हो ही नही सकती |

हम तमह ववटालमन ई क कपसल द रह ह | तम इनह खात रहना | इसस टाग और जयादा पतली नही होगी | मन एक साल तक कपसल खाय | उसक बाद २२ जन १९९७ को मजफ़फ़रनगर म मन गरजी स मतरदीकषा ली और दवाई खाना बद कर दी | जब एक साधक भाई राहल गपता न कहा कक सहारनपर स साइककल दवारा उततरायर लशववर अमदावाद जान का कायकिम बन रहा ह

तब मन टााग क बार म सोच तरबना साइककल यातरा म भाग लन क ललए अपनी सहमतत द दी |

जब मर घर पर पता चला कक मन साइककल स गरधाम अमदावाद जान का ववचार बनाया ह

अतः तम ११५० ककमी तक साइककल नही चला पाओग | लककन मन कहा म साइककल स ही गरधाम जाऊा गा चाह ककतनी भी दरी कयो न हो और हम आठ साधक भाई सहारनपर स २६ ददसमबर ९७ को साइककलो स रवाना हए | मागक म चढाई पर मझ जब भी कोइ ददककत होती तो ऐसा लगता जस मरी साइककल को कोई पीछ स धकल रहा ह | म मड़कर पीछ दखता तो कोई ददखायी नही पड़ता | ९ जनवरी को जब हम अमदावाद गरआशरम म पहाच और मन सबह अपनी टााग दखी तो म दग रह गय जो टााग पतली हो गयी थी और डॉकटरो न उस ठीक होन स मना कर ददया था वह टााग तरबककल ठीक हो गयी थी | इस कपा को दखकर म चककत रह गया मर साथी भी दग रह गय यह सब गरकपा क परसाद का चमसकार था | मर आठो साथी मरी पसनी तथा ऑल इखरडया मडडकल इनसटीटयट ददकली दवारा जााच क परमारपतर इस बात क साकषी ह |

-तनरकार अगरवाल

षवटणपरी नय िा ोनगर सहारनपर (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

अदभत रही िौनिहदर की सा ना परम पजय सदगरदव की कपा स मझ ददनाक १८ स २४ मई १९९९ तक अमदावाद

आशरम क मौनमददर म साधना करन का सअवसर लमला | मौनमददर म साधना क पााचव ददन यानी २२ मई की रातरतर को लगभग २ बज नीद म ही मझ एक झटका लगा | लट रहन कक लसथतत म ही मझ महसस हआ कक कोई अदशय शलकत मझ ऊपर बहत ऊपर उड़य ल जा रही ह | ऊपर उड़त हए जब मन नीच झााककर दखा तो अपन शरीर को उसी मौनमददर म चचतत लटा हआ बखबर सोता हआ पाया | ऊपर जहाा मझ ल जाया गया वहाा अलग ही छटा थी अजीब और अवरीय आकाश को भी भदकर मझ ऐस सथान पर पहाचाया गया था जहाा चारो तरफ कोहरा-ही-कोहरा था जस शीश की छत पर ओस फली हो इतन म दखता हा कक एक सभा लगी ह तरबना शरीर की कवल आकततयो की | जस रखाओ स मनषटयरपी आकततयाा बनी हो | यह सब कया चल रहा था समझ स पर था | कछ पल क बाद व आकततयाा सपषटट होन लगी | दवी-दवताओ क पज क मरधय शीषक म एक उचच आसन पर साकषात बापजी शकर भगवान बन हए कलास पवकत पर ववराजमान थ और दवी-दवता कतार म हाथ बााध खड़ थ | म मक-सा होकर अपलक नतरो स उनह दखता ही रहा कफर मतरमगध हो उनक चररो म चगर पड़ा | परातः क ४ बज थ | अहा मन और शरीर हकका-फ़कका लग रहा था यही लसथतत २४ मई की मरधयरातरतर म भी दोहरायी गयी | दसर ददन सबह पता चला कक आज तो बाहर तनकलन का ददन ह यानी रवववार २५ मई की सबह | बाहर तनकलन पर भावभरा हदय गदगद कठ और आखो म आास यो लग रहा था कक जस तनजधाम स बघर ककया जा रहा हा | धनय ह वह भलम मौनमददर म साधना की वह वयवसथा जहा स परम आनद क सागर म डबन की कजी लमलती ह जी करता ह भगवान ऐसा अवसर कफर स लाय लजसस कक उसी मौनमददर म पनः आतररक आनद का रसपान कर पाऊा |

-इनरनारायण शाह

१०३ रतनदीप-२ तनराला नगर कानपर

(अनिम) पावन उदगार

असाधय रोग स िषकत

सन १९९४ म मरी पतरी दहरल को शरद पखरकमा क ददन बखार आया | डॉकटरो को ददखाया तो ककसीन मलररया कहकर दवाइयाा दी तो ककसीन टायफायड कहकर इलाज शर ककया तो ककसीन टायफायड और मलररया दोनो कहा | दवाई की एक खराक लन स शरीर नीला पड़ गया और सज गया | शरीर म खन की कमी स उस छः बोतल खन चढाया गया | इजकषन दन स पर शरीर को लकवा मार गया | पीठ क पीछ शयावरर जसा हो गया | पीठ और पर का एकस-र ललया गया | पर पर वजन बााधकर रखा गया | डॉकटरो न उस वाय का बखार तथा रकत का क सर बताया और कहा कक उसक हदय तो वाकव चौड़ा हो गया ह | अब हम दहममत हार गय |

अब पजयशरी क लसवाय और कोई सहारा नही था | उस समय दहरल न कहा मममी मझ पजय बाप क पास ल चलो | वहाा ठीक हो जाऊगी | पााच ददन तक दहरल पजयशरी की रट लगाती रही |

हम उस अमदावाद आशरम म बाप क पास ल गय | बाप न कहा इस कछ नही हआ ह | उनहोन मझ और दहरल को मतर ददया एव बड़दादा की परदकषकषरा करन को कहा | हमन परदकषकषरा की और दहरल पनिह ददन म चलन-कफ़रन लगी | हम बाप की इस कररा-कपा का ॠर कस चकाय अभी तो हम आशरम म पजयशरी क शरीचररो म सपररवार रहकर धनय हो रह ह |

-परफलल वयास

भावनगर

वतयिान ि अिदावाद आशरि ि सपररवार सिषपयत

(अनिम) पावन उदगार

कसि का चितकार

वयापार उधारी म चल जान स म हताश हो गया था एव अपनी लजदगी स तग आकर आसमहसया करन की बात सोचन लगा था | मझ साध-महासमाओ व समाज क लोगो स घरा-सी हो गयी थी धमक व समाज स मरा ववशवास उठ चका था | एक ददन मरी साली बापजी क सससग कक दो कसट ववचध का ववधान एव आखखर कब तक ल आयी और उसन मझ सनन क ललए कहा | उसक कई परयास क बाद भी मन व कसट नही सनी एव मन-ही-मन उनह ढोग

कहकर कसटो क डडबब म दाल ददया | मन इतना परशान था कक रात को नीद आना बद हो गया था | एक रात कफ़कमी गाना सनन का मन हआ | अाधरा होन की वजह स कसट पहचान न सका और गलती स बापजी क सससग की कसट हाथ म आ गयी | मन उसीको सनना शर ककया | कफर कया था मरी आशा बाधन लगी | मन शाात होन लगा | धीर-धीर सारी पीड़ाएा दर

होती चली गयी | मर जीवन म रोशनी-ही-रोशनी हो गयी | कफर तो मन पजय बापजी क सससग की कई कसट सनी और सबको सनायी | तदनतर मन गालजयाबाद म बापजी स दीकषा भी गरहर की | वयापार की उधारी भी चकता हो गयी | बापजी की कपा स अब मझ कोई दःख नही ह | ह गरदव बस एक आप ही मर होकर रह और म आपका ही होकर रहा |

-ओिपरकाश बजाज

हदलली रोड़ सहारनपर उततर परदश

(अनिम) पावन उदगार

िझ पर बरसी सत की कपा

सन १९९५ क जन माह म म अपन लड़क और भतीज क साथ हररदवार रधयानयोग लशववर म भाग लन गया | एक ददन जब म हर की पौड़ी पर सनान करन गया तो पानी क तज बहाव क कारर पर कफसलन स मरा लड़का और भतीजा दोनो अपना सतलन खो बठ और गगा म बह गय | ऐसी सकट की घड़ी म म अपना होश खो बठा | कया करा म फट-फटकर रोन लगा और बापजी स पराथकना करन लगा कक ह नाथ ह गरदव रकषा कीलजय मर बचचो को बचा लीलजय | अब आपका ही सहारा ह | पजयशरी न मर सचच हदय स तनकली पकार सन ली और उसी समय मरा लड़का मझ ददखायी ददया | मन झपटकर उसको बाहर खीच ललया लककन मरा भतीजा तो पता नही कहाा बह गया म तनरतर रो रहा था और मन म बार-बार ववचार उठ रहा था कक बापजी मरा लड़का बह जाता तो कोई बात नही थी लककन अपन भाई की अमानत क तरबना म घर कया माह लकर जाऊा गा बापजी आपही इस भकत की लाज बचाओ | तभी गगाजी की एक तज लहर उस बचच को भी बाहर छोड़ गयी | मन लपककर उस पकड़ ललया |

आज भी उस हादस को समरर करता हा तो अपन-आपको साभाल नही पाता हा और मरी आाखो स तनरतर परम की अशरधारा बहन लगती ह | धनय हआ म ऐस गरदव को पाकर ऐस सदगरदव क शरीचररो म मर बार-बार शत-शत परराम

-सिालखा

पानीपत हररयाणा

(अनिम) पावन उदगार

गरकपा स जीवनदान

ददनाक १५-१-९६ की घटना ह | मन धात क तार पर सखन क ललए कपड़ फला रख थ |

बाररश होन क कारर उस तार म करट आ गया था | मरा छोटा पतर ववशाल जो कक ११ वी ककषा म पढता ह आकर उस तार स छ गया और तरबजली का करट लगत ही वह बहोश हो गया शव क समान हो गया | हमन उस तरत बड़ असपताल म दाखखल करवाया | डॉकटर न बचच की हालत गभीर बतायी | ऐसी पररलसथतत दखकर मरी आाखो स अशरधाराएा बह तनकली | म तनजानद की मसती म मसत रहन वाल पजय सदगरदव को मन-ही-मन याद ककया और पराथकना कक ह गरदव अब तो इस बचच का जीवन आपक ही हाथो म ह | ह मर परभ आप जो चाह सो कर सकत ह | और आखखर मरी पराथकना सफल हई | बचच म एक नवीन चतना का सचार हआ एव धीर-धीर बचच क सवासथय म सधार होन लगा | कछ ही ददनो म वह परकतः सवसथ हो गया |

डॉकटर न तो उपचार ककया लककन जो जीवनदान उस पयार परभ की कपा स सदगरदव की कपा स लमला उसका वरकन करन क ललए मर पास शबद नही ह | बस ईशवर स म यही पराथकना करता हा कक ऐस बरहमतनषटठ सत-महापरषो क परतत हमारी शरदधा म वदचध होती रह | -

डॉ वाय पी कालरा

शािलदास कॉलज भावनगर गजरात

(अनिम) पावन उदगार

प जय बाप जस सत दतनया को सवगय ि बदल सकत ह

मई १९९८ क अततम ददनो म पजयशरी क इदौर परवास क दौरान ईरान क ववखयात कफ़लजलशयन शरी बबाक अगरानी भारत म अरधयालसमक अनभवो की परालपत आय हए थ | पजयशरी क दशकन पाकर जब उनहोन अरधयालसमक अनभवो को फलीभत होत दखा तो व पचड़ आशरम म आयोलजत रधयानयोग लशववर म भी पहाच गय | शरी अगरानी जो दो ददन रककर वापस लौटन वाल थ व पर गयारह ददन तक पचड़ आशरम म रक रह | उनहोन ववधाथी लशववर म सारसवसय मतर की दीकषा ली एव ववलशषटट रधयानयोग साधना लशववर (४ -१० जन १९९८) का भी लाभ ललया | लशववर क दौरान शरी अगरानी न पजयशरी स मतरदीकषा भी ल ली | पजयशरी क सालननरधय म सपरापत अनभततयो क बार म कषतरतरय समाचार पतर चतना को दी हई भटवाताक म शरी अगरानी कहत ह यदद पजय बाप जस सत हर दश म हो जाय तो यह दतनया सवगक बन सकती ह | ऐस शातत स बठ पाना हमार ललए कदठन ह लककन जब पजय बापजी जस महापरषो क शरीचररो म बठकर

सससग सनत ह तो ऐसा आनद आता ह कक समय का कछ पता ही नही चलता | सचमच पजय बाप कोई साधारर सत नही ह |

-शरी बबाक अगरानी

षवशवषवखयात किषजमशयन ईरान

(अनिम) पावन उदगार

भौततक यग क अ कार ि जञान की जयोतत प जय बाप

मादक तनयतरर बयरो भारत सरकार क महातनदशक शरी एचपी कमार ९ मई को अमदावाद आशरम म सससग-कायकिम क दौरान पजय बाप स आशीवाकद लन पहाच | बड़ी ववनमरता एव शरदधा क साथ उनहोन पजय बाप क परतत अपन उदगार म कहा लजस वयलकत क पास वववक नही ह वह अपन लकषय तक नही पहाच सकता ह और वववक को परापत करन का साधन पजय आसारामजी बाप जस महान सतो का सससग ह | पजय बाप स मरा परथम पररचय टीवी क मारधयम स हआ | तसपशचात मझ आशरम दवार परकालशत ॠवष परसाद मालसक परापत हआ | उस समय मझ लगा कक एक ओर जहाा इस भौततक यग क अधकार म मानव भटक रहा ह वही दसरी ओर शातत की मद-मद सगचधत वाय भी चल रही ह | यह पजय बाप क सससग का ही परभाव ह | पजयशरी क दशकन करन का जो सौभागय मझ परापत हआ ह इसस म अपन को कतकसय मानता हा | पजय बाप क शरीमख स जो अमत वषाक होती ह तथा इनक सससग स करोड़ो हदयो म जो जयोतत जगती ह व इसी परकार स जगती रह और आन वाल लब समय तक पजयशरी हम सब का मागकदशकन करत रह यही मरी कामना ह | पजय बाप क शरीचररो म मर परराम

-शरी एचपी किार

िहातनदशक िादक तनयतरण बय रो भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

िषसलि िहहला को पराणदान

२७ लसतमबर २००० को जयपर म मर तनवास पर पजय बाप का आसम-साकषासकार ददवस

मनाया गया लजसम मर पड़ोस की मलसलम मदहला नाथी बहन क पतत शरी मााग खाा न भी पजय बाप की आरती की और चररामत ललया | ३-४ ददन बाद ही व मलसलम दपतत खवाजा सादहब क उसक म अजमर चल गय | ददनाक ४ अकटबर २००० को अजमर क उसक म असामालजक तसवो न परसाद म जहर बााट ददया लजसस उसक मल म आय कई दशकनाथी असवसथ हो गय और कई मर भी गय | मर पड़ोस की नाथी बहन न भी वह परसाद खाया और थोड़ी दर म ही वह बहोश हो गयी | अजमर म उसका उपचार ककया गया ककत उस होश न आया | दसर ददन ही उसका पतत उस अपन घर ल आया | कॉलोनी क सभी तनवासी उसकी हालत दखकर कह रह थ कक अब इसका बचना मलशकल ह | म भी उस दखन गया | वह बहोश पड़ी थी | म जोर-जोर स हरर ॐ हरर ॐ का उचचारर ककया तो वह थोड़ा दहलन लगी | मझ परररा हई और म पनः घर गया | पजय बाप स पराथकना की | ३-४ घट बाद ही वह मदहला ऐस उठकर खड़ी हो गयी मानो सोकर उठी हो | उस मदहला न बताया कक मर चाचा ससर पीर ह और उनहोन मर पतत क माह स बोलकर बताया कक तमन २७ लसतमबर २००० को लजनक सससग म पानी वपया था उनही सफद दाढीवाल बाबा न तमह बचाया ह कसी कररा ह गरदव की

-जएल परोहहत

८७ सलतान नगर जयपर (राज)

उस िहहला का पता ह -शरीिती नाथी

पतनी शरी िाग खा

१०० सलतान नगर

गजयर की ड़ी

नय सागानर रोड़

जयप र (राज)

(अनिम) पावन उदगार

हररनाि की पयाली न छड़ायी शराब की बोतल

सौभागयवश गत २६ ददसमबर १९९८ को पजयशरी क १६ लशषटयो की एक टोली ददकली स हमार गााव म हररनाम का परचार-परसार करन पहाची | म बचपन स ही मददरापान धमरपान व लशकार करन का शौकीन था | पजय बाप क लशषटयो दवारा हमार गााव म जगह-जगह पर तीन ददन तक लगातार हररनाम का कीतकन करन स मझ भी हररनाम का रग लगता जा रहा था |

उनक जान क एक ददन क पशचात शाम क समय रोज की भातत मन शराब की बोतल तनकाली | जस ही बोतल खोलन क ललए ढककन घमाया तो उस ढककन क घमन स मझ हरर ॐ हरर ॐ की रधवतन सनायी दी | इस परकार मन दो-तीन बार ढककन घमाया और हर बार मझ हरर ॐ

की रधवतन सनायी दी | कछ दर बाद म उठा तथा पजयशरी क एक लशषटय क घर गया | उनहोन थोड़ी दर मझ पजयशरी की अमतवारी सनायी | अमतवारी सनन क बाद मरा हदय पकारन लगा कक इन दवयकसनो को सयाग दा | मन तरत बोतल उठायी तथा जोर-स दर खत म फ क दी | ऐस समथक व परम कपाल सदगरदव को म हदय स परराम करता हा लजनकी कपा स यह अनोखी घटना मर जीवन म घटी लजसस मरा जीवन पररवततकत हआ |

-िोहन मसह बबटि

मभखयासन अलिोड़ा (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

प र गाव की कायापलि

पजयशरी स ददनाक २७६९१ को दीकषा लन क बाद मन वयवसनमलकत क परचार-परसार का लकषय बना ललया | म एक बार कौशलपर (लज शाजापर) पहाचा | वहाा क लोगो क वयवसनी और लड़ाई-झगड़ यकत जीवन को दखकर मन कहा आप लोग मनषटय-जीवन सही अथक ही नही समझत ह | एक बार आप लोग पजय बापजी क दशकन कर ल तो आपको सही जीवन जीन की कजी लमल जायगी | गााव वालो न मरी बात मान ली और दस वयलकत मर गााव ताजपर आय |

मन एक साधक को उनक साथ जनमाषटटमी महोससव म सरत भजा | पजय बापजी की उन पर कपा बरसी और सबको गरदीकषा लमल गयी | जब व लोग अपन गााव पहाच तो सभी गााववालसयो को बड़ा कौतहल था कक पजय बापजी कस ह बापजी की लीलाएा सनकर गााव क अनय लोगो म भी पजय बापजी क परतत शरदधा जगी | उन दीकषकषत साधको न सभी गााववालो को सववधानसार पजय बापजी क अलग-अलग आशरमो म भजकर दीकषा ददलवा दी | गााव क सभी वयलकत अपन

पर पररवार सदहत दीकषकषत हो चक ह | परसयक गरवार को पर गााव म एक समय भोजन बनता ह | सभी लोग गरवार का वरत रखत ह | कौशलपर गााव क परभाव स आस-पास क गााववाल एव उनक ररशतदारो सदहत १००० वयलकतयो शराब छोड़कर दीकषा ल ली ह | गााव क इततहास म तीन-तीन पीढी स कोई मददर नही था | गााववालो न ५ लाख रपय लगाकर दो मददर बनवाय ह | परा गााव वयवसनमकत एव भगवतभकत बन गया ह यह पजय बापजी की कपा नही तो और कया ह सबक ताररहार पजय बापजी क शरीचररो म कोदट-कोदट परराम

-शयाि परजापतत (सपरवाइजर ततलहन सघ) ताजपर

उजजन (िपर)

(अनिम) पावन उदगार

प जयशरी की तसवीर स मिली पररणा सवकसमथक परम पजय शरी बापजी क चररकमलो म मरा कोदट-कोदट नमन १९८४ क

भकप स समपरक उततर तरबहार म काफी नकसान हआ था लजसकी चपट म हमारा घर भी था |

पररलसथततवश मझ नौवी ककषा म पढायी छोड़ दनी पड़ी | ककसी लमतर की सलाह स म नौकरी ढाढन क ललए ददकली गया लककन वहाा भी तनराशा ही हाथ लगी | म दो ददन स भखा तो था ही ऊपर स नौकरी की चचता | अतः आसमहसया का ववचार करक रलव सटशन की ओर चल पड़ा | रानीबाग बाजार म एक दकान पर पजयशरी का सससादहसय कसट आदद रखा हआ था एव पजयशरी की बड़ आकार की तसवीर भी टागी थी | पजयशरी की हासमख एव आशीवाकद की मिावाली उस तसवीर पर मरी नजर पड़ी तो १० लमनट तक म वही सड़क पर स ही खड़-खड़ उस दखता रहा | उस वकत न जान मझ कया लमल गया म काम भल मजदरी का ही करता हा लककन तबस लकर आज तक मर चचतत म बड़ी परसननता बनी हई ह | न जान मरी लजनदगी की कया दशा होती अगर पजय बापजी की यवाधन सरकषा ईशवर की ओर तनलशचनत जीवन पसतक और ॠवष परसाद पतरतरका हाथ न लगती पजयशरी की तसवीर स लमली परररा एव उनक सससादहसय न मरी डबती नया को मानो मझदार स बचा ललया | धनभागी ह सादहसय की सवा करन वाल लजनहोन मझ आसमहसया क पाप स बचाया |

-िहश शाह

नारायणपर दिरा षज सीतािढ़ी (बबहार)

(अनिम) पावन उदगार

नतरबबद का चितकार

मरा सौभागय ह कक मझ सतकपा नतरतरबद (आई डरॉपस) का चमसकार दखन को लमला |

एक सत बाबा लशवरामदास उमर ८० वषक गीता कदटर तपोवन झाड़ी सपतसरोवर हररदवार म रहत ह | उनकी दादहनी आाख क सफद मोततय का ऑपरशन शााततकज हररदवार आयोलजत कमप म हआ | कस तरबगड़ गया और काल मोततया बन गया | ददक रहन लगा और रोशनी घटन लगी |

दोबारा भमाननद नतर चचककससालय म ऑपरशन हआ | एबसकयट गलकोमा बतात हए कहा कक ऑपरशन स लसरददक ठीक हो जायगा पर रोशनी जाती रहगी | परत अब व बाबा सत शरी आसारामजी आशरम दवार तनलमकत सतकपा नतरतरबद सबह-शाम डाल रह ह | मन उनक नतरो का परीकषर ककया | उनकी दादहनी आाख म उागली चगनन लायक रोशनी वापस आ गयी ह | काल मोततय का परशर नॉमकल ह | कोतनकया म सजन नही ह | व काफी सतषटट ह | व बतात ह आाख पहल लाल रहती थी परत अब नही ह | आशरम क नतरतरबद स ककपनातीत लाभ हआ | बायी आाख म भी उनह सफद मोततया बताया गया था और सशय था कक शायद काला मोततया भी ह |

पर आज बायी आाख भी ठीक ह और दोनो आाखो का परशर भी नॉमकल ह | सफद मोततया नही ह और रोशनी काफी अचछी ह | यह सतकपा नतरबद का ववलकषर परभाव दखकर म भी अपन मरीजो को इसका उपयोग करन की सलाह दागा |

-डॉ अननत किार अगरवाल (नतररोग षवशिजञ)

एिबीबीएस एिएस (नतर) डीओएिएस (आई)

सीतापर सहारनपर (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

ितर स लाभ

मरी माा की हालत अचानक पागल जसी हो गयी थी मानो कोई भत-परत-डाककनी या आसरी तसव उनम घस गया | म बहत चचततत हो गया एव एक साचधका बहन को फोन ककया |

उनहोन भत-परत भगान का मतर बताया लजसका वरकन आशरम स परकालशत आरोगयतनचध पसतक म भी ह | वह मतर इस परकार ह

ॐ निो भगवत रर भरवाय भ तपरत कषय कर कर ह फि सवाहा |

इस मतर का पानी म तनहारकर १०८ बार जप ककया और वही पानी माा को वपला ददया |

तरत ही माा शातत स सो गयी | दसर ददन भी इस मतर की पााच माला करक माा को वह जल वपलाया तो माा तरबककल ठीक हो गयी | ह मर साधक भाई-बहनो भत-परत भगान क ललए अला बााधा बला बााधा ऐसा करक झाड़-फ़ा क करनवालो क चककर म पड़न की जररत नही ह |

इसक ललए तो पजय बापजी का मतर ही ताररहार ह | पजय बापजी क शरीचररो म कोदट-कोदट परराम

-चपकभाई एन पिल (अिररका)

(अनिम) पावन उदगार

काि करो पर षवजय पायी एक ददन मबई मल म दटकट चककग करत हए म वातानकललत बोगी म पहाचा | दखा तो

मखमल की गददी पर टाट का आसन तरबछाकर सवामी शरी लीलाशाहजी महाराज समाचधसथ ह |

मझ आशचयक हआ कक लजन परथम शररी की वातानकललत बोचगयो म राजा-महाराजा यातरा करत ह ऐसी बोगी और तीसरी शररी की बोगी क बीच इन सत को कोई भद नही लगता | ऐसी बोचगयो म भी व समाचधसथ होत ह यह दखकर लसर झक जाता ह | मन पजय महाराजशरी को परराम करक कहा आप जस सतो क ललए तो सब एक समान ह | हर हाल म एकरस रहकर आप मलकत का आनद ल सकत ह | लककन हमार जस गरहसथो को कया करना चादहए ताकक हम भी आप जसी समता बनाय रखकर जीवन जी सक पजय महाराजजी न कहा काम और िोध को त छोड़ द तो त भी जीवनमकत हो सकता ह | जहाा राम तहा नही काम जहाा काम तहा नही राम | और िोध तो भाई भसमासर ह | वह तमाम पणय को जलाकर भसम कर दता ह

अतःकरर को मललन कर दता ह | मन कहा परभ अगर आपकी कपा होगी तो म काम-िोध को छोड़ पाऊा गा | पजय महाराजजी न कहा भाई कपा ऐस थोड़ ही की जाती ह सतकपा क साथ तरा परषाथक और दढता भी चादहए | पहल त परततजञा कर कक त जीवनपयकनत काम और िोध स दर रहगा तो म तझ आशीवाकद दा | मन कहा महाराजजी म जीवनभर क ललए परततजञा तो करा लककन उसका पालन न कर पाऊा तो झठा माना जाऊा गा | पजय महाराजजी न कहा अचछा पहल त मर समकष आठ ददन क ललए परततजञा कर | कफर परततजञा को एक-एक ददन बढत जाना | इस परकार त उन बलाओ स बच सकगा | ह कबल मन हाथ जोड़कर कबल

ककया | पजय महाराजजी न आशीवाकद दकर दो-चार फल परसाद म ददय | पजय महाराजजी न मरी जो दो कमजोररयाा थी उन पर ही सीधा हमला ककया था | मझ आशचयक हआ कक अनय कोई भी दगकर छोड़न का न कहकर इन दो दगकरो क ललए ही उनहोन परततजञा कयो करवायी बाद म म इस राज स अवगत हआ |

दसर ददन म पसनजर रन म कानपर स आग जा रहा था | सबह क करीब नौ बज थ |

तीसरी शररी की बोगी म जाकर मन यातरतरयो क दटकट जााचन का कायक शर ककया | सबस पहल बथक पर सोय हए एक यातरी क पास जाकर मन एक यातरी क पास जाकर मन दटकट ददखान को कहा तो वह गससा होकर मझ कहन लगा अधा ह दखता नही कक म सो गया हा मझ नीद स जगान का तझ कया अचधकार ह यह कोई रीत ह दटकट क बार म पछन की ऐसी ही अकल ह तरी ऐसा कछ-का-कछ वह बोलता ही गया बोलता ही गया | म भी िोधाववषटट होन लगा ककत पजय महाराजजी क समकष ली हई परततजञा मझ याद थी अतः िोध को ऐस पी गया मानो ववष की पडड़या मन उस कहा महाशय आप ठीक ही कहत ह कक मझ बोलन की अकल नही ह भान नही ह | दखो मर य बाल धप म सफद हो गय ह | आपम बोलन की अकल अचधक ह नमरता ह तो कपा करक लसखाओ कक दटकट क ललए मझ ककस परकार आपस पछना चादहए | म लाचार हा कक डयटी क कारर मझ दटकट चक करना पड़ रहा ह इसललए म आपको कषटट द रहा हा| और कफ़र मन खब परम स हाथ जोड़कर ववनती की भया कपा करक कषटट क ललए मझ कषमा करो | मझ अपना दटकट ददखायग मरी नमरता दखकर वह ललजजत हो गया एव तरत उठ बठा | जकदी-जकदी नीच उतरकर मझस कषमा माागत हए कहन लगा मझ माफ करना | म नीद म था | मन आपको पहचाना नही था | अब आप अपन माह स मझ कह कक आपन मझ माफ़ ककया यह दखकर मझ आनद और सतोष हआ | म सोचन लगा कक सतो की आजञा मानन म ककतनी शलकत और दहत तनदहत ह सतो की कररा कसा चमसकाररक पररराम लाती ह वह वयलकत क पराकततक सवभाव को भी जड़-मल स बदल सकती ह | अनयथा मझम िोध को तनयतरर म रखन की कोई शलकत नही थी | म परकतया असहाय था कफर भी मझ महाराजजी की कपा न ही समथक बनाया | ऐस सतो क शरीचररो म कोदट-कोदट नमसकार

-शरी रीजिल

ररिायडय िीिी आई कानपर

(अनिम) पावन उदगार

जला हआ कागज प वय रप ि पवक रप म एक बार परमहस ववशदधानदजी स आनदमयी माा की तनकटता पानवाल

सपरलसदध पडडत गोपीनाथ कववराज न तनवदन ककया तररीकानत ठाकर को अलौककक लसदचध परापत हई ह | व तरबना दख या तरबना छए ही कागज म ललखी हई बात पढ लत ह | गरदव बोल तम एक कागज पर कछ ललखो और उसम आग लगाकर जला दो | कववराजजी न कागज पर कछ ललखा और परी तरह कागज जलाकर हवा म उड़ा ददया | उसक बाद गरदव न अपन तककय क नीच स वही कागज तनकालकर कववराजजी क आग रख ददया | यह दखकर उनह बड़ा आशचयक हआ कक यह कागज वही था एव जो उनहोन ललखा था वह भी उस पर उनही क सलख म ललखा था और साथ ही उसका उततर भी ललखा हआ दखा |

जड़ता पशता और ईशवरता का मल हमारा शरीर ह | जड़ शरीर को म-मरा मानन की ववतत लजतनी लमटती ह पाशवी वासनाओ की गलामी उतनी हटती ह और हमारा ईशवरीय अश लजतना अचधक ववकलसत होता ह उतना ही योग-सामथयक ईशवरीय सामथयक परकट होता ह | भारत क ऐस कई भकतो सतो और योचगयो क जीवन म ईशवरीय सामथयक दखा गया ह अनभव ककया गया ह उसक ववषय म सना गया ह | धनय ह भारतभलम म रहनवाल भारतीय ससकतत म शरदधा-ववशवास रखनवाल अपन ईशवरीय अश को जगान की सवा-साधना करनवाल सवामी ववशदधानदजी वषो की एकात साधना और वषो-वषो की गरसवा स अपना दहारधयास और पाशवी वासनाएा लमटाकर अपन ईशवरीय अश को ववकलसत करनवाल भारत क अनक महापरषो म स थ | उनक जीवन की और भी अलौककक घटनाओ का वरकन आता ह | ऐस ससपरषो क जीवन-चररतर और उनक जीवन म घदटत घटनाएा पढन-सनन स हम लोग भी अपनी जड़ता एव पशता स ऊपर उठकर ईशवरीय अश को उभारन म उससादहत होत ह | बहत ऊा चा काम ह बड़ी शरदधा बड़ी समझ बड़ा धयक चादहए ईशवरीय सामथयक को परक रप स ववकलसत करन म |

(अनिम) पावन उदगार

नदी की ारा िड़ गयी आदय शकराचायक की माता ववलशषटटा दवी अपन कलदवता कशव की पजा करन जाती थी

| व पहल नदी म सनान करती और कफ़र मददर म जाकर पजन करती | एक ददन व परातःकाल ही पजन-सामगरी लकर मददर की ओर गयी ककत सायकाल तक घर नही लौटी | शकराचायक की आय अभी सात-आठ वषक क मरधय म ही थी | व ईशवर क परम भकत और तनषटठावान थ | सायकाल

तक माता क वापस न लौटन पर आचायक को बड़ी चचनता हई और व उनह खोजन क ललए तनकल पड़ | मददर क तनकट पहाचकर उनहोन माता को मागक म ही मलचछकत पड़ दखा | उनहोन बहत दर तक माता का उपचार ककया तब व होश म आ सकी | नदी अचधक दर थी | वहाा तक पहाचन म माता को बड़ा कषटट होता था | आचायक न भगवान स मन-ही-मन पराथकना की कक परभो ककसी परकार नदी की धारा को मोड़ दो लजसस कक माता तनकट ही सनान कर सक | व इस परकार की पराथकना तनसय करन लग | एक ददन उनहोन दखा कक नदी की धारा ककनार की धरती को काटती-काटती मड़न लगी ह तथा कछ ददनो म ही वह आचायक शकर क घर क पास बहन लगी | इस घटना न आचायक का अलौककक शलकतसमपनन होना परलसदध कर ददया |

(अनिम) पावन उदगार

सदगर-िहहिा गर बबन भव तनध तर न कोई |

जौ बरधच सकर सि होई ||

-सत तलसीदासजी

हररहर आहदक जगत ि प जयदव जो कोय |

सदगर की प जा ककय सबकी प जा होय ||

-तनशचलदासजी महाराज

सहजो कारज ससार को गर बबन होत नाही |

हरर तो गर बबन कया मिल सिझ ल िन िाही ||

-सत कबीरजी सत

सरतन जो जन पर सो जन उ रनहार |

सत की तनदा नानका बहरर बहरर अवतार ||

-गर नानक दवजी

गरसवा सब भागयो की जनमभलम ह और वह शोकाकल लोगो को बरहममय कर दती ह | गररपी सयक अववदयारपी रातरतर का नाश करता ह और जञानाजञान रपी लसतारो का लोप करक बदचधमानो को आसमबोध का सददन ददखाता ह |

-सत जञानशवर महाराज

ससय क कटकमय मागक म आपको गर क लसवाय और कोई मागकदशकन नही द सकता |

- सवामी लशवानद सरसवती

ककतन ही राजा-महाराजा हो गय और होग सायजय मलकत कोई नही द सकता | सचच राजा-महाराज तो सत ही ह | जो उनकी शरर जाता ह वही सचचा सख और सायजय मलकत पाता ह |

-समथक शरी रामदास सवामी

मनषटय चाह ककतना भी जप-तप कर यम-तनयमो का पालन कर परत जब तक सदगर की कपादलषटट नही लमलती तब तक सब वयथक ह |

-सवामी रामतीथक

पलटो कहत ह कक सकरात जस गर पाकर म धनय हआ |

इमसकन न अपन गर थोरो स जो परापत ककया उसक मदहमागान म व भावववभोर हो जात थ |

शरी रामकषटर परमहस परकता का अनभव करानवाल अपन सदगरदव की परशसा करत नही अघात थ |

पजयपाद सवामी शरी लीलाशाहजी महाराज भी अपन सदगरदव की याद म सनह क आास बहाकर गदगद कठ हो जात थ |

पजय बापजी भी अपन सदगरदव की याद म कस हो जात ह यह तो दखत ही बनता ह | अब हम उनकी याद म कस होत ह यह परशन ह | बदहमकख तनगर लोग कछ भी कह साधक को अपन सदगर स कया लमलता ह इस तो साधक ही जानत ह |

(अनिम) पावन उदगार

लडी िाहियन क सहाग की रकषा करन अफगातनसतान ि परकि मशवजी

सा सग ससार ि दलयभ िनटय शरीर |

सतसग सषवत ततव ह बतरषव ताप की पीर ||

मानव-दह लमलना दलकभ ह और लमल भी जाय तो आचधदववक आचधभौततक और आरधयालसमक य तीन ताप मनषटय को तपात रहत ह | ककत मनषटय-दह म भी पववतरता हो सचचाई हो शदधता हो और साध-सग लमल जाय तो य तरतरववध ताप लमट जात ह |

सन १८७९ की बात ह | भारत म तरबरदटश शासन था उनही ददनो अगरजो न अफगातनसतान पर आिमर कर ददया | इस यदध का सचालन आगर मालवा तरबरदटश छावनी क ललफ़टनट कनकल मादटकन को सौपा गया था | कनकल मादटकन समय-समय पर यदध-कषतर स अपनी पसनी को कशलता क समाचार भजता रहता था | यदध लबा चला और अब तो सदश आन भी बद हो गय | लडी मादटकन को चचता सतान लगी कक कही कछ अनथक न हो गया हो अफगानी सतनको न मर पतत को मार न डाला हो | कदाचचत पतत यदध म शहीद हो गय तो म जीकर कया करा गी -यह सोचकर वह अनक शका-कशकाओ स तघरी रहती थी | चचनतातर बनी वह एक ददन घोड़ पर बठकर घमन जा रही थी | मागक म ककसी मददर स आती हई शख व मतर रधवतन न उस आकवषकत ककया | वह एक पड़ स अपना घोड़ा बााधकर मददर म गयी | बजनाथ महादव क इस मददर म लशवपजन म तनमगन पडडतो स उसन पछा आप लोग कया कर रह ह एक वरदध बराहमर न कहा हम भगवान लशव का पजन कर रह ह | लडी मादटकन लशवपजन की कया महतता ह

बराहमर बटी भगवान लशव तो औढरदानी ह भोलनाथ ह | अपन भकतो क सकट-तनवारर करन म व ततनक भी दर नही करत ह | भकत उनक दरबार म जो भी मनोकामना लकर क आता ह उस व शीघर परी करत ह ककत बटी तम बहत चचलनतत और उदास नजर आ रही हो कया बात ह लडी मादटकन मर पततदव यदध म गय ह और ववगत कई ददनो स उनका कोई समाचार नही आया ह | व यदध म फा स गय ह या मार गय ह कछ पता नही चल रहा | म उनकी ओर स बहत चचलनतत हा | इतना कहत हए लडी मादटकन की आाख नम हो गयी | बराहमर तम चचनता मत करो बटी लशवजी का पजन करो उनस पराथकना करो लघरिी करवाओ |

भगवान लशव तमहार पतत का रकषर अवशय करग |

पडडतो की सलाह पर उसन वहाा गयारह ददन का ॐ नमः लशवाय मतर स लघरिी अनषटठान परारभ ककया तथा परततददन भगवान लशव स अपन पतत की रकषा क ललए पराथकना करन लगी कक ह भगवान लशव ह बजनाथ महादव यदद मर पतत यदध स सकशल लौट आय तो म आपका लशखरबद मददर बनवाऊा गी | लघरिी की पराकहतत क ददन भागता हआ एक सदशवाहक लशवमददर म आया और लडी मादटकन को एक ललफाफा ददया | उसन घबरात-घबरात वह ललफाफा खोला और पढन लगी |

पतर म उसक पतत न ललखा था हम यदध म रत थ और तम तक सदश भी भजत रह लककन

आक पठानी सना न घर ललया | तरबरदटश सना कट मरती और म भी मर जाता | ऐसी ववकट पररलसथतत म हम तघर गय थ कक परार बचाकर भागना भी असयाचधक कदठन था | इतन म मन दखा कक यदधभलम म भारत क कोई एक योगी लजनकी बड़ी लमबी जटाएा ह हाथ म तीन नोकवाला एक हचथयार (तरतरशल) इतनी तीवर गतत स घम रहा था कक पठान सतनक उनह दखकर भागन लग | उनकी कपा स घर स हम तनकलकर पठानो पर वार करन का मौका लमल गया और हमारी हार की घडड़याा अचानक जीत म बदल गयी | यह सब भारत क उन बाघामबरधारी एव तीन नोकवाला हचथयार धारर ककय हए (तरतरशलधारी) योगी क कारर ही समभव हआ | उनक महातजसवी वयलकतसव क परभाव स दखत-ही-दखत अफगातनसतान की पठानी सना भाग खड़ी हई और व परम योगी मझ दहममत दत हए कहन लग | घबराओ नही | म भगवान लशव हा तथा तमहारी पसनी की पजा स परसनन होकर तमहारी रकषा करन आया हा उसक सहाग की रकषा करन आया हा |

पतर पढत हए लडी मादटकन की आाखो स अववरत अशरधारा बहती जा रही थी उसका हदय अहोभाव स भर गया और वह भगवान लशव की परततमा क सममख लसर रखकर पराथकना करत-करत रो पड़ी | कछ सपताह बाद उसका पतत कनकल मादटकन आगर छावनी लौटा | पसनी न उस सारी बात सनात हए कहा आपक सदश क अभाव म म चचलनतत हो उठी थी लककन बराहमरो की सलाह स लशवपजा म लग गयी और आपकी रकषा क ललए भगवान लशव स पराथकना करन लगी | उन दःखभजक महादव न मरी पराथकना सनी और आपको सकशल लौटा ददया | अब तो पतत-पसनी दोनो ही तनयलमत रप स बजनाथ महादव क मददर म पजा-अचकना करन लग | अपनी पसनी की इचछा पर कनकल मादटकन म सन १८८३ म पिह हजार रपय दकर बजनाथ महादव मददर का जीरोदवार करवाया लजसका लशलालख आज भी आगर मालवा क इस मददर म लगा ह | पर भारतभर म अगरजो दवार तनलमकत यह एकमातर दहनद मददर ह |

यरोप जान स पवक लडी मादटकन न पडड़तो स कहा हम अपन घर म भी भगवान लशव का मददर बनायग तथा इन दःख-तनवारक दव की आजीवन पजा करत रहग |

भगवान लशव म भगवान कषटर म माा अमबा म आसमवतता सदगर म सतता तो एक ही ह | आवशयकता ह अटल ववशवास की | एकलवय न गरमतत क म ववशवास कर वह परापत कर ललया जो

अजकन को कदठन लगा | आरखर उपमनय धरव परहलाद आदद अनय सकड़ो उदारहर हमार सामन परसयकष ह | आज भी इस परकार का सहयोग हजारो भकतो को साधको को भगवान व आसमवतता सदगरओ क दवारा तनरनतर परापत होता रहता ह | आवशयकता ह तो बस कवल ववशवास की |

(अनिम) पावन उदगार

सखप वयक परसवकारक ितर

पहला उपाय

ए ही भगवतत भगिामलतन चल चल भरािय भरािय पटप षवकासय षवकासय सवाहा |

इस मतर दवारा अलभमतरतरत दध गलभकरी सतरी को वपलाय तो सखपवकक परसव होगा |

द सरा उपाय

गलभकरी सतरी सवय परसव क समय जमभला-जमभला जप कर |

तीसरा उपाय

दशी गाय क गोबर का १२ स १५ लमली रस ॐ नमो नारायराय मतर का २१ बार जप करक पीन स भी परसव-बाधाएा दर होगी और तरबना ऑपरशन क परसव होगा |

परसतत क समय अमगल की आशका हो तो तनमन मतर का जप कर

सवयिगल िागलय मशव सवायथय साध क |

शरणय तरयमबक गौरी नारायणी निोSसतत ||

(दगायसपतशती)

(अनिम) पावन उदगार

सवागीण षवकास की कषजया यादशषकत बढ़ान हतः परततददन 15 स 20 लमली तलसी रस व एक चममच चयवनपराश

का थोड़ा सा घोल बना क सारसवसय मतर अथवा गरमतर जप कर पीय 40 ददन म चमसकाररक लाभ होगा

भोजन क बाद एक लडड चबा-चबाकर खाय

100 गराम सौफ 100 गराम बादाम 200 गराम लमशरी तीनो को कटकर लमला ल सबह यह लमशरर 3 स 5 गराम चबा-चबाकर खाय ऊपर स दध पी ल (दध क साथ भी ल सकत ह) इसस भी यादशलकत बढगी

पढ़ा हआ पाठ याद रह इस हतः अरधययन क समय पवक या उततर की ओर माह करक सीध बठ

सारसवसय मतर का जप करक कफर जीभ की नोक को ताल म लगाकर पढ

अरधययन क बीच-बीच म अत म शात हो और पढ हए का मनन कर ॐ शातत रामराम या गरमतर का समरर करक शात हो

कद बढ़ान हतः परातःकाल दौड़ लगाय पल-अपस व ताड़ासन कर तथा 2 काली लमचक क टकड़ करक मकखन म लमलाकर तनगल जाय दशी गाय का दध कदवदचध म ववशष सहायक ह

शरीरपषटि हतः भोजन क पहल हरड़ चस व भोजन क साथ भी खाय

रातरतर म एक चगलास पानी म एक नीब तनचोड़कर उसम दो ककशलमश लभगो द सबह पानी छानकर पी जाय व ककशलमश चबाकर खा ल

नतरजयोतत बढ़ान हतः सौफ व लमशरी 1-1 चममच लमलाकर रात को सोत समय खाय यह परयोग तनयलमत रप स 5-6 माह तक कर

नतररोगो स रकषा हतः परो क तलवो व अागठो की सरसो क तल स माललश कर ॐ अरणाय ह फट सवाहा इस जपत हए आाख धोन स अथाकत आाखो म धीर-धीर पानी छााटन स आाखो की असहय पीड़ा लमटती ह

डरावन बर सवपनो स बचाव हतः ॐ हरय निः मतर जपत हए सोय लसरहान आशरम की तनःशकक परसादी गरहदोष-बाधा तनवारक यतर रख द

दःख िसीबत एव गरहबा ा तनवारण हतः जनमददवस क अवसर पर महामसयञजय मतर का जप करत हए घी दध शहद और दवाक घास क लमशरर की आहततयाा डालत हए हवन कर इसस जीवन म दःख आदद का परभाव शात हो जायगा व नया उससाह परापत होगा

घर ि सख सवासथय व शातत हतः रोज परातः व साय दशी गाय क गोबर स बन कणड का एक छोटा टकड़ा जला ल उस पर दशी गौघत लमचशरत चावल क कछ दान डाल द ताकक व जल जाय इसस घर म सवासथय व शातत बनी रहती ह तथा वासतदोषो का तनवारर होता ह

आधयाषतिक उननतत हतः चलत कफरत दतनक कायक करत हए भगवननाम का जप सब म भगवननाम हर दो कायो क बीच थोड़ा शात होना सबकी भलाई म अपना भला मानना मन क ववचारो पर तनगरानी रखना आदरपवकक सससग व सवारधयाय करना आदद शीघर आरधयालसमक उननतत क उपाय ह

(अनिम) पावन उदगार

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परातः समररीय परम पजय

सत शरी आसारामजी बाप

क सससग परवचनो म स नवनीत

ईशवर की ओर

ईशवर की ओर

मोहतनशा स जागो

कवल तनचध

जञानयोग

जञानगोषटठी

दतत और लसदध का सवाद

चचनतन कखरका

पराथकना

ईशवर की ओर

(माचक 1982 म आशरम म चदटचड चत शकल दज का रधयान योग लशववर चल रहा ह परात काल म साधक भाई बहन पजय शरी क मधर और पावन सालननरधय म रधयान कर रह ह पजय शरी उनह रधयान दवारा जीवन और मसय की गहरी सतहो म उतार रह ह | जीवन क गपत रहसयो का अनभव करा रह ह साधक लोग रधयान म पजयशरी की धीर गमभीर मधर वारी क तत क सहार अपन अनतर म उतरत जा रह ह पजय शरी कह रह ह)

इलनियाथष वरागय अनहकार एव च

जनममसयजरावयाचधदखदोषानदशकनम

lsquoइलनिय ववषयो म ववरकत अहकार का अभाव जनम मसय जरा और रोग आदद म दख और दोषो को दखना (यह जञान ह) rsquo

आज तक कई जनमो क कटमब और पररवार तमन सजाय धजाय मसय क एक झटक स व सब छट गय अत अभी स कटमब का मोह मन ही मन हटा दो

यदद शरीर की इजजत आबर की इचछा ह शरीर क मान मरतब की इचछा ह तो वह आरधयालसमक राह म बड़ी रकावट हो जायगी फ क दो शरीर की ममता को तनदोष बालक जस हो जाओ

इस शरीर को बहत साभाला कई बार इसको नहलाया कई बार खखलाया वपलाया कई बार घमाया लककनhellip लककन यह शरीर सदा फररयाद करता ही रहा कभी बीमारी कभी अतनिा कभी जोड़ो म ददक कभी लसर म ददक कभी पचना कभी न पचना शरीर की गलामी बहत कर ली

मन ही मन अब शरीर की यातरा कर लो परी शरीर को कब तक म मानत रहोग बाबाhellip

अब दढतापवकक मन स ही अनभव करत चलो कक तमहारा शरीर दररया क ककनार घमन गया बच पर बठा सागर क सौनदयक को तनहार रहा ह आ गया कोई आखखरी झटका तमहारी गरदन झक गयी तम मर गयhellip

घर पर ही लसरददक हआ या पट म कछ गड़बड़ हई बखार आया और तम मर गयhellip

तम ललखत-ललखत अचानक हकक बकक हो गय हो गया हाटकफल तम मर गयhellip

तम पजा करत करत अगरबतती करत करत एकदम सो गय आवाज लगायी लमतरो को कटलमबयो को पसनी को व लोग आय पछा कया हआhellip कया हआ कछ ही लमनटो म तम चल बसhellip

तम रासत पर चल रह थ अचानक कोई घटना घटी दघकटना हई और तम मर गयhellip

तनलशचत ही कछ न कछ तनलमतत बन जायगा तमहारी मौत का तमको पता भी न चलगा अत चलन स पहल एक बार चलकर दखो मरन स पहल एक बार मरकर दखो तरबखरन स पहल एक बार तरबखरकर दखो

दढतापवकक तनशचय करो कक तमहारी जो ववशाल काया ह लजस तम नाम और रप स lsquoमrsquo करक साभाल रह हो उस काया का अपन दह का अरधयास आज तोड़ना ह साधना क आखखरी लशखर पर पाहचन क ललए यह आखखरी अड़चन ह इस दह की ममता स पार होना पड़गा जब तक यह दह की ममता रहगी तब तक ककय हए कमक तमहार ललए बधन बन रहग जब तक दह म

आसलकत बनी रहगी तब तक ववकार तमहारा पीछा न छोड़गा चाह तम लाख उपाय कर लो लककन जब तक दहारधयास बना रहगा तब तक परभ क गीत नही गाज पायग जब तक तम अपन को दह मानत रहोग तब तक बरहम-साकषासकार न हो पायगा तम अपन को हडडी मास सवचा रकत मलमतर ववषटटा का थला मानत रहोग तब तक दभाकगय स वपणड न छटगा बड़ स बड़ा दभाकगय ह जनम लना और मरना हजार हजार सववधाओ क बीच कोई जनम ल फकक कया पड़ता ह दख झलन ही पड़त ह उस बचार को

हदयपवकक ईमानदारी स परभ को पराथकना करो कक

lsquoह परभ ह दया क सागर तर दवार पर आय ह तर पास कोई कमी नही त हम बल द त हम दहममत द कक तर मागक पर कदम रख ह तो पाहचकर ही रह ह मर परभ दह की ममता को तोड़कर तर साथ अपन ददल को जोड़ ल |rsquo

आज तक अगल कई जनमो म तमहार कई वपता रह होग माताएा रही होगी कई नात ररशतवाल रह होग उसक पहल भी कोई रह होग तमहारा लगाव दह क साथ लजतना परगाढ होगा उतना य नात ररशतो का बोझ तमहार पर बना रहगा दह का लगाव लजतना कम होगा उतना बोझ हकका होगा भीतर स दह की अहता टटी तो बाहर की ममता तमह फा सान म समथक नही हो सकती

भीतर स दह की आसालकत टट गयी तो बाहर की ममता तमहार ललए खल बन जायगी तमहार जीवन स कफर जीवनमलकत क गीत तनकलग

जीवनमकत परष सबम होत हए सब करत हए भी सखपवकक जीत ह सखपवकक खात पीत ह सखपवकक आत जात ह सखपवकक सवसवरप म समात ह

कवल ममता हटाना ह दहारधयास हट गया तो ममता भी हट गई दह की अहता को हटान क ललए आज समशानयातरा कर लो जीत जी मर लो जरा सा डरना मत आज मौत को बलाओ lsquoह मौत त इस शरीर पर आज उतर rsquo

ककपना करो कक तमहार शरीर पर आज मौत उतर रही ह तमहारा शरीर ढीला हो गया ककसी तनलमतत स तमहार परार तनकल गय तमहारा शव पड़ा ह लोग लजसको आज तक lsquoफलाना भाईhellip फलाना सठhellip फलाना साहब helliprsquo कहत थ उसक परार पखर आज उड़ गय अब वह लोगो की नजरो म मदाक होकर पड़ा ह हकीम डॉकटरो न हाथ धो ललय ह लजसको तम इतना पालत पोसत थ लजसकी इजजत आबर को साबालन म वयसत थ वह शरीर आज मरा पड़ा ह सामन तम उस दख रह हो भीड़ इकठठी हो गयी कोई सचमच म आास बहा रहा ह कोई झठमठ का रो रहा ह

तम चल बस शव पड़ा ह लोग आय लमतर आय पड़ोसी आय साथी आय सनही आय टललफोन की घलणटयाा खटख़टायी जा रही ह टललगराम ददय जा रह ह मसय होन पर जो होना चादहए वह सब ककया जा रहा ह

यह आखखरी ममता ह दह की लजसको पार ककए तरबना कोई योगी लसदध नही बन सकता कोई साधक ठीक स साधना नही कर सकता ठीक स सौभागय को उपलबध नही हो सकता यह अततम अड़चन ह उस हटाओ

ि अर िोर तोर की िाया

बश कर दीनही जीवन काया

तमहारा शरीर चगर गया ढह गया हो गया lsquoरामनाम सत हrsquo तम मर गय लोग इकटठ हो गय अथी क ललए बाास मागवाय जा रह ह तमह नहलान क ललए घर क अदर ल जा रह ह लोगो न उठाया तमहारी गरदन झक गयी हाथ पर लथड़ रह ह लोग तमह साभालकर ल

जा रह ह एक बड़ थाल म शव को नहलात ह लककन hellip

लककन वह चमसकार कहााhellip वह परकाश कहााhellip वह चतना कहााhellip

लजस शरीर न ककतना ककतना कमाया ककतना ककतना खाया लजसको ककतना ककतना सजाया ककतना ककतना ददखाया वह शरीर आज शव हो गया एक शवास लना आज उसक बस की बात नही लमतर को धनयवाद दना उसक हाथ की बात नही एक सत फकीर को हाथ जोड़ना उसक बस की बात नही

आज वह पराचशरत शरीर बचारा शव बचारा चला कच करक इस जाहा स लजस पर इतन lsquoटनशन (तनाव) थ लजस जीवन क ललए इतना खखचाव तनाव था उस जीवन की यह हालत लजस शरीर क ललए इतन पाप और सनताप सह वह शरीर आज इस पररलसथतत म पड़ा ह दख लो जरा मन की आाख स अपन शरीर की हालत लाचार पड़ा ह आज तक जो lsquoम hellip म helliprsquo कर रहा था अपन को उचचत समझ रहा था सयाना समझ रहा था चतर समझ रहा था दख लो उस चतर की हालत परी चतराई खाक म लमल गई परा known unknown( जञात अजञात ) हो गया परा जञान एक झटक म समापत हो गया सब नात और ररशत टट गय धन और पररवार पराया हो गया

लजनक ललए तम रातरतरयाा जग थ लजनक ललए तमन मसतक पर बोझ उठाया था व सब अब पराय हो गय बाबाhellip लजनक ललए तमन पीड़ाएा सही व सब तमहार कछ नही रह तमहार इस पयार शरीर की यह हालत hellip

लमतरो क हाथ स तम नहलाय जा रह हो शरीर पोछा न पोछा तौललया घमाया न घमाया और तमह वसतर पहना ददय कफर उस उठाकर बाासो पर सलात ह अब तमहार शरीर की यह हालत लजसक ललए तमन बड़ी बड़ी कमाइयाा की बड़ी बड़ी ववधाएा पढी कई जगह लाचाररयाा की तचछ जीवन क ललए गलामी की कईयो को समझाया साभाला वह लाचार शरीर परार पखर क तनकल जान स पड़ा ह अथी पर

जीत जी मरन का अनभव कर लो तमहारा शरीर वस भी तो मरा हआ ह इसम रखा भी कया ह

अथी पर पड़ हए शव पर लाल कपड़ा बााधा जा रहा ह चगरती हई गरदन को साभाला जा रहा ह परो को अचछी तरह रससी बााधी जा रही ह कही रासत म मदाक चगर न जाए गरदन क इदकचगदक भी रससी क चककर लगाय जा रह ह परा शरीर लपटा जा रहा ह अथी बनानवाला बोल रहा ह lsquoत उधर स खीचrsquo दसरा बोलता ह lsquoमन खीचा ह त गााठ मार rsquo

लककन यह गााठ भी कब तक रहगी रलससयाा भी कब तक रहगी अभी जल जाएागीhellip और रलससयो स बााधा हआ शव भी जलन को ही जा रहा ह बाबा

चधककार ह इस नशवर जीवन को hellip चधककार ह इस नशवर दह की ममता कोhellip चधककार ह इस शरीर क अरधयास और अलभमान कोhellip

अथी को कसकर बााधा जा रहा ह आज तक तमहारा नाम सठ साहब की ललसट (सची) म था अब वह मद की ललसट म आ गया लोग कहत ह lsquoमद को बााधो जकदी स rsquo अब ऐसा नही कहग कक lsquoसठ को साहब को मनीम को नौकर को सत को असत को बााधोhelliprsquo पर कहग lsquoमद को बााधो rsquo

हो गया तमहार पर जीवन की उपललबधयो का अत आज तक तमन जो कमाया था वह तमहारा न रहा आज तक तमन जो जाना था वह मसय क एक झटक म छट गया तमहार lsquoइनकमटकसrsquo (आयकर) क कागजातो को तमहार परमोशन और ररटायरमनट की बातो को तमहारी उपललबध और अनपललबधयो को सदा क ललए अलववदा होना पड़ा

हाय र हाय मनषटय तरा शवास हाय र हाय तरी ककपनाएा हाय र हाय तरी नशवरता हाय र

हाय मनषटय तरी वासनाएा आज तक इचछाएा कर रहा था कक इतना पाया ह और इतना पााऊगा इतना जाना ह और इतना जानागा इतना को अपना बनाया ह और इतनो को अपना बनााऊगा इतनो को सधारा ह औरो को सधारागा

अर त अपन को मौत स तो बचा अपन को जनम मरर स तो बचा दख तरी ताकत दख तरी कारीगरी बाबा

तमहारा शव बााधा जा रहा ह तम अथी क साथ एक हो गय हो समशानयातरा की तयारी हो रही ह लोग रो रह ह चार लोगो न तमह उठाया और घर क बाहर तमह ल जा रह ह पीछ-पीछ अनय सब लोग चल रह ह

कोई सनहपवकक आया ह कोई मातर ददखावा करन आय ह कोई तनभान आय ह कक समाज म बठ ह तोhellip

दस पााच आदमी सवा क हत आय ह उन लोगो को पता नही क बट तमहारी भी यही हालत होगी अपन को कब तक अचछा ददखाओग अपन को समाज म कब तक lsquoसटrsquo करत रहोग सट करना ही ह तो अपन को परमासमा म lsquoसटrsquo कयो नही करत भया

दसरो की शवयातराओ म जान का नाटक करत हो ईमानदारी स शवयातराओ म जाया करो अपन मन को समझाया करो कक तरी भी यही हालत होनवाली ह त भी इसी परकार उठनवाला ह इसीपरकार जलनवाला ह बईमान मन त अथी म भी ईमानदारी नही रखता जकदी करवा रहा ह घड़ी दख रहा ह lsquoआकफस जाना हhellip दकान पर जाना हhelliprsquo अर आखखर म तो समशान म जाना ह ऐसा भी त समझ ल आकफस जा दकान पर जा लसनमा म जा कही भी जा लककन आखखर तो समशान म ही जाना ह त बाहर ककतना जाएगा

ऐ पागल इनसान ऐ माया क खखलौन सददयो स माया तझ नचाती आयी ह अगर त ईशवर क ललए न नाचा परमासमा क ललए न नाचा तो माया तर को नचाती रहगी त परभपरालपत क ललए न नाचा तो माया तझ न जान कसी कसी योतनयो म नचायगी कही बनदर का शरीर लमल जायगा तो कही रीछ का कही गधवक का शरीर लमल जाएगा तो कही ककननर का कफर उन शरीरो को त अपना मानगा ककसी को अपनी माा मानगा तो ककसी को बाप ककसी को बटा मानगा तो ककसी को बटी ककसी को चाचा मानगा तो ककसी को चाची उन सबको अपना बनायगा कफर वहाा भी एक झटका आयगा मौत काhellip और उन सबको भी छोड़ना पड़गा पराया बनना पड़गा त ऐसी यातराएा ककतन यगो स करता आया ह र ऐस नात ररशत त ककतन समय स बनाता आया ह

lsquoमर पतर की शादी हो जायhellip बह मर कहन म चलhellip मरा नौकर वफादार रहhellip दोसतो का पयार बना रहhelliprsquo यह सब ऐसा हो भी गया तो आखखर कब तक rsquo परमोशन हो जाएhellip हो गया कफर कया शादी हो जाएhellip हो गई शादी कफर कया बचच हो जाय hellip हो गय बचच भी कफर कया करोग आखखर म तम भी इसी परकार अथी म बााध जाओग इसी परकार कनधो पर उठाय जाओग तमहार दह की हालत जो सचमच होनवाली ह उस दख लो इस सनातन ससय स कोई बच नही सकता तमहार लाखो रपय तमहारी सहायता नही कर सकत तमहार लाखो पररचय तमह बचा नही सकत इस घटना स तमह गजरना ही होगा अनय सब घटनाओ स तम बच सकत हो लककन इस घटना स बचानवाला आज तक पथवी पर न कोई ह न हो पाएगा अत इस अतनवायक मौत को तम अभी स जञान की आाख दवारा जरा तनहार लो

तमहारी परारहीन दह को अथी म बााधकर लोग ल जा रह ह समशान की ओर लोगो की आाखो म आास ह लककन आास बहानवाल भी सब इसी परकार जानवाल ह आास बहान स जान न छटगी आास रोकन स भी जान न छटगी शव को दखकर भाग जान स भी जान न छटगी शव को ललपट जान स भी जान न छटगी जान तो तमहारी तब छटगी जब तमह आसम साकषासकार होगा जान तो तमहारी तब छटगी जब सत का कपा परसाद तमह पच जाएगा जान तमहारी तब छटगी जब ईशवर क साथ तमहारी एकता हो जाएगी

भया तम इस मौत की दघकटना स कभी नही बच सकत इस कमनसीबी स आज तक कोई

नही बच सका

आया ह सो जाएगा राजा रक फकीर

ककसीकी अथी क साथ 50 आदमी हो या 500 आदमी हो ककसीकी अथी क साथ 5000 आदमी हो या मातर मातरासमक आदमी हो इसस फकक कया पड़ता ह आखखर तो वह अथी अथी ह शव शव ही ह

तमहारा शव उठाया जा रहा ह ककसीन उस पर गलाल तछड़का ह ककसीन गद क फल रख ददय ह ककसीन उस मालााए पहना दी ह कोई तमस बहत तनभा रहा ह तो तम पर इतर तछड़क रहा ह सपर कर रहा ह परनत अब कया फकक पड़ता ह इतर स सपर तमह कया काम दगी बाबाhellip

शव पर चाह ईट पसथर डाल दो चाह सवरक की इमारत खड़ी कर दो चाह फल चढा दो चाह हीर जवाहरात नयोछावर कर दो फकक कया पड़ता ह

घर स बाहर अथी जा रही ह लोगो न अथी को घरा ह चार लोगो न उठाया ह चार लोग साथ म ह रामhellip बोलो भाई राम hellip तमहारी यातरा हो रही ह उस घर स तम ववदा हो रह हो लजसक ललए तमन ककतन ककतन पलान बनाय थ उस दवार स तम सदा क ललए जा रह हो बाबा hellip लजस घर को बनान क ललए तमन ईशवरीय घर का सयाग कर रखा था लजस घर को तनभान क ललए तमन अपन पयार क घर का ततरसकार कर रखा था उस घर स तम मद क रप म सदा क ललए ववदा हो रह हो घर की दीवार चाह रो रही हो चाह हास रही हो लककन तमको तो जाना ही पड़ता ह

समझदार लोग कह रह ह कक शव को जकदी ल जाओ रात का मरा हआ ह hellip इस जकदी ल

जाओ नही तो इसक lsquoवायबरशनrsquo hellip इसक lsquoबकटीररयाrsquo फल जायग दसरो को बीमारी हो जायगी अब तमह घड़ीभर रखन की ककसीम दहममत नही चार ददन साभालन का ककसीम साहस नही सब अपना अपना जीवन जीना चाहत ह तमह तनकालन क ललए उससक ह समझदार लोग जकदी करो समय हो गया कब पाहचोग जकदी करो जकदी करो भाईhellip

तम घर स कब तक चचपक रहोग आखखर तो लोग तमह बााध बाधकर जकदी स समशान ल जायग

दह की ममता तोड़नी पड़गी इस ममता क कारर तम जकड़ गय हो पाश म इस ममता क कारर तम जनम मरर क चककर म फा स हो यह ममता तमह तोड़नी पड़गी चाह आज तोड़ो चाह एक जनम क बाद तोड़ो चाह एक हजार जनमो क बाद तोड़ो

लोग तमह कनध पर उठाय ल जा रह ह तमन खब मकखन घी खाया ह चरबी जयादा ह तो लोगो को पररशरम जयादा ह चरबी कम ह तो लोगो को पररशरम कम ह कछ भी हो तम अब अथी पर आरढ हो गय हो

यारो हि बवफाई करग

ति पदल होग हि क चलग

हि पड़ रहग ति कलत चलोग

यारो हि बवफाई करग

तम कनधो पर चढकर जा रह हो जाहा सभी को अवशय जाना ह राम hellip बोलो भाई hellip राम राम hellipबोलो भाई hellip राम राम hellip बोलो भाई राम hellip

अथीवाल तजी स भाग जा रह ह पीछ 50-100 आदमी जा रह ह व आपस म बातचीत कर रह ह कक lsquoभाई अचछ थ मालदार थ सखी थ rsquo (अथवा) lsquoगरीब थ दखी थhellip बचार चल बसhellip

rsquo

उन मखो को पता नही कक व भी ऐस ही जायग व तम पर दया कर रह ह और अपन को शाशवत समझ रह ह नादान

अथी सड़क पर आग बढ रही ह बाजार क लोग बाजार की तरफ भाग जा रह ह नौकरीवाल नौकरी की तरफ भाग जा रह ह तमहार शव पर ककसीकी नजर पड़ती ह वह lsquoओ hellip हो helliprsquo

करक कफर अपन काम की तरफ अपन वयवहार की तरफ भागा जा रहा ह उसको याद भी नही आती कक म भी इसी परकार जानवाला हा म भी मौत को उपलबध होनवाला हा साइककल सकटर मोटर पर सवार लोग शवयातरा को दखकर lsquo आहाhellip उहhelliprsquo करत आग भाग जा रह ह उस वयवहार को साभालन क ललए लजस छोड़कर मरना ह उन मखो को कफर भी सब उधर ही जा रह ह

अब तम घर और समशान क बीच क रासत म हो घर दर सरकता जा रहा हhellip समशान पास आ रहा ह अथी समशान क नजदीक पहाची एक आदमी सकटर पर भागा और समशान म लकडड़यो क इनतजाम म लगा समशानवाल स कह रहा ह lsquoलकड़ी 8 मन तौलो 10 मन तौलो 16 मन तौलो आदमी अचछ थ इसललए लकड़ी जयादा खचक हो जाए तो कोई बात नही rsquo

जसी लजनकी हलसयत होती ह वसी लकडड़याा खरीदी जाती ह लककन अब शव 8 मन म जल या 16 मन म इसस कया फकक पड़ता ह धन जयादा ह तो 10 मन लकड़ी जयादा आ जाएगी धन कम ह तो दो-पााच मन लकड़ी कम आ जाएगी कया फकक पड़ता ह इसस तम तो बाबा हो गय पराय

अब समशान तरबककल नजदीक आ गया ह शकन करन क ललए वहाा बचचो क बाल तरबखर जा रह ह लडड लाय थ साथ म व कततो को खखलाय जा रह ह

लजसको बहत जकदी ह व लोग वही स खखसक रह ह बाकी क लोग तमह वहाा ल जात ह जहाा सभी को जाना होता ह

लकडड़याा जमानवाल लकडड़याा जमा रह ह दो-पााच मन लकडड़याा तरबछा दी गयी अब तमहारी अथी को व उन लकडड़यो पर उतार रह ह बोझा कधो स उतरकर अब लकडड़यो पर पड़ रहा ह लककन वह बोझा भी ककतनी दर वहाा रहगा

घास की गडडडयाा नाररयल की जटाय माचचस घी और बतती साभाली जा रही ह तमहारा अततम सवागत करन क ललए य चीज यहाा लायी गयी ह अततम अलववदाhellip

अपन शरीर को तमन हलवा-परी खखलाकर पाला या रखी सखी रोटी खखलाकर दटकाया इसस अब कया फकक पड़ता ह गहन पहनकर लजय या तरबना गहनो क लजय इसस कया फकक पड़ता ह आखखर तो वह अलगन क दवारा ही साभाला जायगा माचचस स तमहारा सवागत होगा

इसी शरीर क ललए तमन ताप सताप सह इसी शरीर क ललए तमन लोगो क ददल दखाय इसी शरीर क ललए तमन लोकशवर स समबनध तोड़ा लो दखो अब कया हो रहा ह चचता पर पड़ा ह वह शरीर उसक ऊपर बड़ बड़ लककड़ जमाय जा रह ह जकदी जल जाय इसललए छोटी लकडड़याा साथ म रखी जा रही ह

सब लकडड़याा रख दी गयी बीच म घास भी लमलाया गया ह ताकक कोई दहससा कचचा न रह जाय एक भी मास की लोथ बच न जाय एक आदमी दख रख करता ह lsquoमनजमनटrsquo कर रहा ह वहाा भी नताचगरी नही छटती नताचगरी की खोपड़ी उसकी चाल ह lsquoऐसा करो hellip

वसा करो hellip lsquo वह सचनाय ददय जा रहा ह

ऐ चतराई ददखानवाल तमको भी यही होनवाला ह समझ लो भया मर शव को जलान म

भी अगवानी चादहए कछ मखय ववशषतााए चादहए वहाा भी वाह hellipवाह hellip

ह अजञानी मनषटय त कया कया चाहता ह ह नादान मनषटय तन कया कया ककया ह ईशवर क लसवाय तन ककतन नाटक ककय ईशवर को छोड़कर तन बहत कछ पकड़ा मगर आज तक मसय क एक झटक स सब कछ हर बार छटता आया ह हजारो बार तझस छड़वाया गया ह और इस जनम म भी छड़वाया जायगा त जरा सावधान हो जा मर भया

अथी क ऊपर लकड़ lsquoकफटrsquo हो गय ह तमहार पतर तमहार सनही मन म कछ भाव लाकर आास बहा रह ह कछ सनदहयो क आास नही आत ह इसललए व शरलमदा हो रह ह बाकी क लोग गपशप लगान बठ गय ह कोई बीड़ी पीन लगा ह कोई सनान करन बठ गया ह कोई सकटर की सफाई कर रहा ह कोई अपन कपड़ बदलन म वयसत ह कोई दकान जान की चचनता म ह कोई बाहरगााव जान की चचनता म ह तमहारी चचनता कौन करता ह कब तक करग लोग तमहारी चचनता तमह समशान तक पाहचा ददया चचतता पर सला ददया दीया-सलाई दान म दी बात परी हो गयी

लोग अब जान को आतर ह lsquoअब चचता को आग लगाओ बहत दर हो गई जकदी करोhellip

जकदी करोhelliprsquo इशार हो रह ह व ही तो लमतर थ जो तमस कह रह थ lsquoबठ रहो तम मर साथ रहो तमहार तरबना चन नही पड़ता rsquo अब व ही कह रह ह lsquoजकदी करोhellip आग लगाओhellip

हम जायhellip जान छोड़ो हमारीhelliprsquo

वाह र वाह ससार क लमतरो वाह र वाह ससार क ररशत नात धनयवादhellip धनयवादhellip तमहारा पोल दख ललया

परभ को लमतर न बनाया तो यही हाल होनवाला ह आज तक जो लोग तमह सठ साहब कहत थ जो तमहार लगोदटया यार थ व ही जकदी कर रह ह उन लोगो को भख लगी ह खलकर तो नही बोलत लककन भीतर ही भीतर कह रह ह कक अब दर नही करो जकदी सवगक पाहचाओ

लसर की ओर स आग लगाओ ताकक जकदी सवगक म जाय

वह तो कया सवगक म जाएगा उसक कमक और मानयतााए जसी होगी ऐस सवगक म वह जायगा लककन तम रोटी रप सवगक म जाओग तमको यहाा स छटटी लमल जायगी

नाररयल की जटाओ म घी डालत ह जयोतत जलात ह तमहार बझ हए जीवन को सदा क ललए नषटट करन क हत जयोतत जलायी जा रही ह यह बरहमजञानी गर की जयोतत नही ह यह सदगर की जयोतत नही ह यह तमहार लमतरो की जयोतत ह

लजनक ललए परा जीवन तम खो रह थ व लोग तमह यह जयोतत दग लजनक पास जान क ललए तमहार पास समय न था उन सदगर की जयोतत तमन दखी भी नही ह बाबा

लोग जयोतत जलात ह लसर की तरफ लकडड़यो क बीच जो घास ह उस जयोतत का सपशक करात ह घास की गडडी को आग न घर ललया ह परो की तरफ भी एक आदमी आग लगा रहा ह भभक hellip भभक hellip अलगन शर हो गयी तमहार ऊपर ढाक हए कपड़ तक आग पाहच गयी ह लकड़ धीर धीर आग पकड़ रह ह अब तमहार बस की बात नही कक आग बझा लो तमहार लमतरो को जररत नही कक फायर तरबरगड बला ल अब डॉकटर हकीमो को बलान का मौका नही ह जररत भी नही ह अब सबको घर जाना ह तमको छोड़कर ववदा होना ह

धआा तनकल रहा ह आग की जवालाएा तनकल रही ह जो जयादा सनही और साथी थ व भी आग की तपन स दर भाग रह ह चारो और अलगन क बीच तमह अकला जलना पड़ रहा ह लमतर सनही समबनधी बचपन क दोसत सब दर खखसक रह ह

अब hellip कोई hellip ककसीकाhellip नही सार समबनध hellip ममता क समबनध ममता म जरा सी आाच सहन की ताकत कहाा ह तमहार नात ररशतो म मौत की एक चचनगारी सहन की ताकत कहाा

ह कफर भी तम सबध को पकक ककय जा रह हो तम ककतन भोल महशवर हो तम ककतन नादान हो अब दख लो जरा सा

अथी को आग न घरा ह लोगो को भख न घरा ह कछ लोग वहाा स खखसक गय कछ लोग बच ह चचमटा ललए हए समशान का एक नौकर भी ह वह साभाल करता ह कक लककड़ इधर उधर न चला जाए लककड़ चगरता ह तो कफर चढाता ह तमहार लसर पर अब आग न ठीक स घर ललया ह चारो तरफ भभक hellip भभक hellip आग जल रही ह लसर की तरफ आग hellip परो की तरफ आग hellip बाल तो ऐस जल मानो घास जला मडी को भी आग न घर ललया ह माह म घी डाला हआ था बतती डाली हई थी आाखो पर घी लगाया हआ था

ित कर र भाया गरव गिान गलाबी रग उड़ी जावलो

ित कर र भाया गरव गिान जवानीरो रग उड़ी जावलो

उड़ी जावलो र फीको पड़ी जावलो र काल िर जावलो

पाछो नही आवलोhellip ित कर र गरव hellip

जोर र जवानी थारी कफर को नी र वलाhellip

इणन जाता नही लाग वार गलाबी रग उड़ी जावलो

पतगी रग उड़ी जावलोhellip ित कर र गरव

न र दौलत थारा िाल खजाना रhellip

छोड़ी जावलो र पलिा उड़ी जावलो

पाछो नही आवलोhellip ित कर र गरव

कई र लायो न कई ल जावलो भायाhellip

कई कोनी हाल थार साथ गलाबी रग उड़ी जावलो

पतगी रग उड़ी जावलोhellip ित कर र गरव

तमहार सार शरीर को समशान की आग न घर ललया ह एक ही कषर म उसन अपन भोग का सवीकार कर ललया ह सारा शरीर काला पड़ गया कपड़ जल गय कफन जल गया चमड़ी जल गई परो का दहससा नीच लथड़ रहा ह चगर रहा ह चरबी को आग सवाहा कर रही ह मास क टकड़ जलकर नीच चगर रह ह हाथ क पज और हडडडयाा चगर रही ह खोपड़ी तड़ाका दन को उससक हो रही ह उसको भी आग न तपाया ह शव म फल हए lsquoबकटीररयाrsquo तथा बचा हआ गस था वह सब जल गया

ऐ गाकफल न सिझा था मिला था तन रतन तझको

मिलाया खाक ि तन ऐ सजन कया कह तझको

अपनी वज दी हसती ि त इतना भ ल िसताना hellip

अपनी अहता की िसती ि त इतना भ ल िसताना hellip

करना था ककया वो न लगी उलिी लगन तझको

ऐ गाकफल helliphellip

षजनहोक पयार ि हरदि िसतक दीवाना थाhellip

षजनहोक सग और साथ ि भया त सदा षविोहहत थाhellip

आरखर व ही जलात ह करग या दफन तझको

ऐ गाकफल hellip

शाही और गदाही कया कफन ककसित ि आरखर

मिल या ना खबर पखता ऐ कफन और वतन तझको

ऐ गाकफल helliphellip

पहनी हई टरीकोटन पहन हए गहन तर काम न आए तर व हाथ तर व पर सदा क ललए अलगन क गरास हो रह ह लककड़ो क बीच स चरबी चगर रही ह वहाा भी आग की लपट उस भसम कर रही ह तमहार पट की चरबी सब जल गई अब हडडडयाा पसललयाा एक एक होकर जदा हो रही ह

ओhellip होhellip ककतना साभाला था इस शरीर को ककतना पयारा था वह जरा सी ककडनी तरबगड़ गई तो अमररका तक की दौड़ थी अब तो परी दह तरबगड़ी जा रही ह कहाा तक दौड़ोग कब तक दौड़ोग जरा सा पर दखता था हाथ म चोट लगती थी तो सपशयललसटो स घर जात थ अब कौन सा सपशयललसट यहाा काम दगा ईशवर क लसवाय कोई यहाा सहाय न कर सकगा आसमजञान क लसवाय इस मौत की आग स तमह सदा क ललए बचान का सामथयक डॉकटरो सपशयललसटो क पास कहाा ह व लोग खद भी इस अवसथा म आनवाल ह भल थोकबनध फीस ल ल पर कब तक रखग भल जााच पड़ताल मातर क ललय थपपीबद नोटो क बडल ल ल पर लकर जायग कहाा उनह भी इसी अवसथा स गजरना होगा

शाही और गदाही कया कफन ककसित ि आरखर hellip

कर लो इकटठा ल लो लमबी चौड़ी फीस लककन याद रखो यह िर मौत तमह सामयवादी बनाकर छोड़ दगी सबको एक ही तरह स गजारन का सामथयक यदद ककसीम ह तो मौत म ह मौत सबस बड़ी सामयवादी ह परकतत सचची सामयवादी ह

तमहार शरीर का हाड़वपजर भी अब तरबखर रहा ह खोपड़ी टटी उसक पााच सात टकड़ हो गय चगर रह ह इधर उधर आhellip हाhellip हाhellipहडडी क टकड़ ककसक थ कोई साहब क थ या चपरासी क थ सठ क थ या नौकर क थ सखी आदमी क थ या दखी आदमी क थ भाई क थ या माई क थ कछ पता नही चलता

अब आग धीर-धीर शमन को जा रही ह अचधकाश लमतर सनान म लग ह तयाररयाा कर रह ह जान की ककतन ही लोग तरबखर गय बाकी क लोग अब तमहारी आखखरी इजाजत ल रह ह आग को जल की अजलल दकर आाखो म आास लकर ववदा हो रह ह

कह रहा ह आसिा यह सिा कछ भी नही

रोती ह शबनि कक नरग जहा कछ भी नही

षजनक िहलो ि हजारो रग क जलत थ फान स

झाड़ उनकी कबर पर ह और तनशा कछ भी नही

षजनकी नौबत स सदा ग जत थ आसिा

दि बखद ह कबर ि अब ह न हा कछ भी नही

तखतवालो का पता दत ह तखत गौर क

खोज मिलता तक नही वाद अजा कछ भी नही

समशान म अब कवल अगारो का ढर बचा तम आज तक जो थ वह समापत हो गय अब हडडडयो स मालम करना असभव ह कक व ककसकी ह कवल अगार रह गय ह तमहारी मौत हो गई हडडडयाा और खोपड़ी तरबखर गयी तमहार नात और ररशत टट गय अपन और पराय क समबनध कट गय तमहार शरीर की जातत और सापरदातयक समबनध टट गय शरीर का कालापन और गोरापन समापत हो गया तमहारी तनदरसती और बीमारी अलगन न एक कर दी

ऐ गाकफल न सिझा था hellip

आग अब धीर धीर शात हो रही ह कयोकक जलन की कोई चीज बची नही कटमबी सनही

लमतर पड़ोसी सब जा रह ह समशान क नौकर स कह रह ह lsquoहम परसो आयग फल चनन क ललए दखना ककसी दसर क फल लमचशरत न हो जाए rsquo कइयो क फल वहाा पड़ भी रह जात ह लमतर अपनवालो क फल समझकर उठा लत ह

कौन अपना कौन पराया कया फल और कया बफल lsquoफलrsquo जो था वह तो अलववदा हो गया अब हडडडयो को फल कहकर भी कया खशी मनाओग फलो का फल तो तमहारा चतनय था उस चतनय स समबनध कर लत तो तम फल ही फल थ

सब लोग घर गय एक ददन बीता दसरा ददन बीता तीसर ददन व लोग पहाच समशान म चचमट स इधर उधर ढाढकर अलसथयाा इकटठी कर ली डाल रह ह तमह एक डडबब म बाबा खोपड़ी क कछ टकड़ जोड़ो की कछ हडडडयाा लमल गई जो पककी पककी थी व लमली बाकी सब भसम हो गई

करीब एकाध ककलो फल लमल गय उनह डडबब म डालकर लमतर घर ल आए ह समझानवालो न कहा lsquoहडडडयाा घर म न लाओ बाहर रखो दर कही ककसी पड़ की डाली पर बााध दो जब हररदवार जायग तब वहाा स लकर जायग उस घर म न लाओ अपशकन ह rsquo

अब तमहारी हडडडयाा अपशकन ह घर म आना अमगल ह वाह र वाह ससार तर ललए परा जीवन खचक ककया था इन हडडडयो को कई वषक बनान म और साभालन म लग अब अपशकन हो रहा ह बोलत ह इस डडबब को बाहर रखो पड़ोसी क घर ल जात ह तो पड़ोसी नाराज होता ह कक यह कया कर रह हो तमहार लजगरी दोसत क घर ल जात ह तो वह इनकार कर दता ह कक इधर नही hellip दर hellip दर hellipदर hellip

तमहारी हडडडयाा ककसीक घर म रहन लायक नही ह ककसीक मददर म रहन लायक नही ह लोग बड़ चतर ह सोचत ह अब इसस कया मतलब ह दतनयाा क लोग तमहार साथ नाता और ररशता तब तक साभालग जब तक तमस उनको कछ लमलगा हडडडयो स लमलना कया ह

दतनयाा क लोग तमह बलायग कछ लन क ललए तमहार पास अब दन क ललए बचा भी कया ह व लोग दोसती करग कछ लन क ललए सदगर तमह पयार करग hellip परभ दन क ललए दतनयाा क लोग तमह नशवर दकर अपनी सववधा खड़ी करग लककन सदगर तमह शाशवत दकर अपनी सववधा की परवाह नही करग ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

लजसम चॉकलट पड़ी थी तरबलसकट पड़ थ उस छोट स डडबब म तमहारी अलसथयाा पड़ी ह तमहार सब पद और परततषटठा इस छोट स डडबब म पराचशरत होकर अतत तचछ होकर पड़ पर लटकाय जा रह ह जब कटलमबयो को मौका लमलगा तब जाकर गगा म परवादहत कर दग

दख लो अपन कीमती जीवन की हालत

जब तरबकली ददखती ह तब कबतर आाख बद करक मौत स बचना चाहता ह लककन तरबकली उस चट कर दती ह इसी परकार तम यदद इस ठोस ससय स बचना चाहोग lsquoमरी मौत न होगीrsquo ऐसा ववचार करोग अथवा इस सससग को भल जाओग कफर भी मौत छोड़गी नही

इस सससग को याद रखना बाबा मौत स पार करान की कजी वह दता ह तमह तमहारी अहता और ममता तोड़न क ललय यलकत ददखाता ह ताकक तम साधना म लग जाओ इस राह पर कदम रख ही ददय ह तो मलजल तक पाहच जाओ कब तक रक रहोग हजार-हजार ररशत और नात तम जोड़त आय हो हजार हजार सबचधयो को तम ररझात आय हो अब तमहारी अलसथयाा गगा म पड़ उसस पहल अपना जीवन जञान की गगा म बहा दना तमहारी अलसथयाा पड़ पर टाग उसस पहल तम अपन अहकार को टााग दना परमासमा की अनकपा म परमासमारपी पड़ पर अपना अहकार लटका दना कफर जसी उस पयार की मजी होhellip नचा ल जसी उसकी मजी होhellip दौड़ा ल

तरी िजी प रन होhellip

ऐसा करक अपन अहकार को परमासमारपी पड़ तक पाहचा दो

तीसरा ददन मनान क ललए लोग इकटठ हए ह हासनवाल शतरओ न घर बठ थोड़ा हास ललया रोनवाल सनदहयो न थोड़ा रो ललया ददखावा करनवालो न औपचाररकताएा परी कर ली

सभा म आए हए लोग तमहारी मौत क बार म कानाफसी कर रह ह

मौत कस हई लसर दखता था पानी माागा पानी ददया और पीत पीत चल बस

चककर आय और चगर पड़ वापस नही उठ

पट दखन लगा और व मर गय

सबह तो घमकर आय खब खश थ कफर जरा सा कछ हआ बोल lsquoमझ कछ हो रहा ह डॉकटर को बलाओ rsquo हम बलान गय और पीछ यह हो गया

हॉलसपटल म खब उपचार ककय बचान क ललए डॉकटरो न खब परयसन ककय लककन मर गय रासत पर चलत चलत लसधार गय कछ न कछ तनलमतत बन ही गया

तीसरा ददन मनात वकत तमहारी मौत क बार म बात हो गई थोड़ी दर कफर समय हो गया पााच स छ उठकर सब चल ददय कब तक याद करत रहग लोग लग गय अपन-अपन काम धनध म

अलसथयो का डडबबा पड़ पर लटक रहा ह ददन बीत रह ह मौका आया वह डडबबा अब हररदवार ल जाया जा रहा ह एक थली म डडबबा डालकर रन की सीट क नीच रखत ह लोग पछत ह lsquoइसम कया हrsquo तमहार लमतर बतात ह lsquoनही नही कछ नही सब ऐस ही ह अलसथयाा ह इसमhelliprsquo ऐसा कहकर व पर स डडबब को धकका लगात ह लोग चचकलात ह

lsquoयहाा नहीhellip यहाा नही hellip उधर रखो rsquo

वाह र वाह ससार तमहारी अलसथयाा लजस डडबब म ह वह डडबबा रन म सीट क नीच रखन क लायक नही रहा वाह र पयारा शरीर तर ललए हमन कया कया ककया था तझ साभालन क ललए हमन कया कया नही ककया ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

लमतर हररदवार पहाच ह पणड लोगो न उनह घर ललया लमतर आखखरी ववचध करवा रह ह अलसथयाा डाल दी गगा म परवादहत हो गयी पणड को दकषकषरा लमल गई लमतरो को आास बहान थ दो चार बहा ललय अब उनह भी भख लगी ह अब व भी अपनी हडडडयाा साभालग कयोकक उनह तो सदा रखनी ह व खात ह पीत ह गाड़ी का समय पछत ह

जकदी वापस लौटना ह कयोकक आकफस म हालजर होना ह दकान साभालनी ह व सोचत ह lsquoवह तो मर गया उस ववदा द दी म मरनवाला थोड़ हा rsquo

लमतर भोजन म जट गय ह

आज तमन अपनी मौत की यातरा दखी अपन शव की अपनी हडडडयो की लसथतत दख ली तम एक ऐसी चतना हो कक तमहारी मौत होन पर भी तम उस मौत क साकषी हो तमहारी हडडडयाा जलन पर भी तम उसस पथक रहनवाली जयोतत हो

तमहारी अथी जलन क बाद भी तम अथी स पथक चतना हो तम साकषी हो आसमा हो तमन आज अपनी मौत को भी साकषी होकर दख ललया आज तक तम हजारो-हजारो मौत की यातराओ को दखत आय हो

जो मौत की यातरा क साकषी बन जात ह उनक ललय यातरा यातरा रह जाती ह साकषी उसस पर हो जाता ह

मौत क बाद अपन सब पराय हो गय तमहारा शरीर भी पराया हो गया लककन तमहारी आसमा आज तक परायी नही हई

हजारो लमतरो न तमको छोड़ ददया लाखो कटलमबयो न तमको छोड़ ददया करोड़ो-करोड़ो शरीरो न तमको छोड़ ददया अरबो-अरबो कमो न तमको छोड़ ददया लककन तमहारा आसमदव तमको कभी नही छोड़ता

शरीर की समशानयातरा हो गयी लककन तम उसस अलग साकषी चतनय हो तमन अब जान ललया कक

lsquoम इस शरीर की अततम यातरा क बाद भी बचता हा अथी क बाद भी बचता हा जनम स पहल भी बचता हा और मौत क बाद भी बचता हा म चचदाकाश hellip जञानसवरप आसमा हा मन छोड़ ददया मोह ममता को तोड़ ददया सब परपच rsquo

इस अभयास को बढात रहना शरीर की अहता और ममता जो आखखरी ववघन ह उस इस परकार तोड़त रहना मौका लमल तो समशान म जाना ददखाना अपनको वह दशय

म भी जब घर म था तब समशान म जाया करता था कभी-कभी ददखाता था अपन मन को कक lsquoदख तरी हालत भी ऐसी होगी rsquo

समशान म वववक और वरागय होता ह तरबना वववक और वरागय क तमह बरहमाजी का उपदश भी काम न आयगा तरबना वववक और वरागय क तमह साकषासकारी परक सदगर लमल जाया कफर भी तमह इतनी गतत न करवा पायग तमहारा वववक और वरागय न जगा हो तो गर भी कया कर

वववक और वरागय जगान क ललए कभी कभी समशान म जात रहना कभी घर म बठ ही मन को समशान की यातरा करवा लना

िरो िरो सब कोई कह िरना न जान कोय

एक बार ऐसा िरो कक कफर िरना न होय

जञान की जयोतत जगन दो इस शरीर की ममता को टटन दो शरीर की ममता टटगी तो अनय नात ररशत सब भीतर स ढील हो जायग अहता ममता टटन पर तमहारा वयवहार परभ का वयवहार हो जाएगा तमहारा बोलना परभ का बोलना हो जाएगा तमहारा दखना परभ का दखना हो जाएगा तमहारा जीना परभ का जीना हो जाएगा

कवल भीतर की अहता तोड़ दना बाहर की ममता म तो रखा भी कया ह

दहामभिान गमलत षवजञात परिातितन

यतर यतर िनो यातत ततर ततर सिा य

दह छता जनी दशा वत दहातीत

त जञानीना चरणिा हो वनदन अगरणत

भीतर ही भीतर अपन आपस पछो कक

lsquoमर ऐस ददन कब आयग कक दह होत हए भी म अपन को दह स पथक अनभव करागा मर ऐस ददन कब आयग कक एकात म बठा बठा म अपन मन बदचध को पथक दखत-दखत अपनी आसमा म तपत होऊा गा मर ऐस ददन कब आयग कक म आसमाननद म मसत रहकर ससार क वयवहार म तनलशचनत रहागा मर ऐस ददन कब आयग कक शतर और लमतर क वयवहार को म खल समझागा rsquo

ऐसा न सोचो कक व ददन कब आयग कक मरा परमोशन हो जाएगाhellip म परलसडनट हो जाऊा गा hellip म पराइम लमतनसटर हो जाऊा गा

आग लग ऐस पदो की वासना को ऐसा सोचो कक म कब आसमपद पाऊा गा कब परभ क साथ एक होऊा गा

अमररका क परलसडनट लम कललज वहाइट हाउस म रहत थ एक बार व बगीच म घम रह थ ककसी आगनतक न पछा lsquoयहाा कौन रहता ह rsquo

कललज न कहा lsquoयहाा कोई रहता नही ह यह सराय ह धमकशाला ह यहाा कई आ आकर चल गय कोई रहता नही rsquo

रहन को तम थोड़ ही आय हो तम यहाा स गजरन को आय हो पसार होन को आय हो यह जगत तमहारा घर नही ह घर तो तमहारा आसमदव ह फकीरो का जो घर ह वही तमहारा घर ह जहाा फकीरो न डरा डाला ह वही तमहारा डरा सदा क ललए दटक सकता ह अनयतर नही अनय कोई भी महल चाह कसा भी मजबत हो तमह सदा क ललए रख नही सकता

ससार तरा घर नही दो चार हदन रहना यहा

कर याद अपन राजय की सवराजय तनटकिक जहा

कललज स पछा गया lsquo I have come to know that Mr Coolidge President of

America lives here rsquo

( lsquoमझ पता चला ह कक अमररका क राषटरपतत शरी कललज यहाा रहत ह rsquo)

कललज न कहा lsquoNo Coolidge doesnot live here Nobody lives here Everybody

is passing throughrsquo (lsquoनही कललज यहाा नही रहता कोई भी नही रहता सब यहाा स गजर रह ह rsquo)

चार साल पर हए लमतरो न कहा lsquoकफर स चनाव लड़ो समाज म बड़ा परभाव ह अपका कफर स चन जाओग rsquo

कललज बोला lsquoचार साल मन वहाइट हाउस म रहकर दख ललया परलसडनट का पद साभालकर दख ललया कोई सार नही अपन आपस धोखा करना ह समय बरबाद करना ह I have no

time to waste अब मर पास बरबाद करन क ललए समय नही ह rsquo

य सार पद और परततषटठा समय बरबाद कर रह ह तमहारा बड़ बड़ नात ररशत तमहारा समय बरबाद कर रह ह सवामी रामतीथक पराथकना ककया करत थ

lsquoह परभ मझ लमतरो स बचाओ मझ सखो स बचाओrsquo

सरदार परनलसह न पछा lsquoकया कह रह ह सवामीजी शतरओ स बचना होगा लमतरो स कया बचना ह rsquo

रामतीथक lsquoनही शतरओ स म तनपट लागा दखो स म तनपट लागा दख म कभी आसलकत नही होती ममता नही होती ममता आसलकत जब हई ह तब सख म हई ह लमतरो म हई ह सनदहयो म हई ह rsquo

लमतर हमारा समय खा जात ह सख हमारा समय खा जाता ह व हम बहोशी म रखत ह जो करना ह वह रह जाता ह जो नही करना ह उस साभालन म ही जीवन खप जाता ह

तथाकचथत लमतरो स हमारा समय बच जाए तथाकचथत सखो स हमारी आसलकत हट जाए सख म होत हए भी परमासमा म रह सको लमतरो क बीच रहत हए भी ईशवर म रह सको - ऐसी समझ की एक आाख रखना अपन पास

ॐ शातत शातत शातत ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

तमहार शरीर की यातरा हो गई परी मौत को भी तमन दखा मौत को दखनवाल तम दषटटा कस मर सकत हो तम साकषात चतनय हो तम आसमा हो तम तनभकय हो तम तनशक हो मौत कई बार आकर शरीर को झपट गई तमहारी कभी मसय नही हई कवल शरीर बदलत आय एक योतन स दसरी योतन म यातरा करत आय

तम तनभकयतापवकक अनभव करो कक म आसमा हा म अपनको ममता स बचाऊा गा बकार क नात और ररशतो म बहत हए अपन जीवन को बचाऊा गा पराई आशा स अपन चचतत को बचाऊा गा आशाओ का दास नही लककन आशाओ का राम होकर रहागा

ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

म तनभकय रहागा म बपरवाह रहागा जगत क सख दख म म ससार की हर पररलसथतत म तनलशचनत रहागा कयोकक म आसमा हा ऐ मौत त शरीरो को तरबगाड़ सकती ह मरा कछ नही कर सकती त कया डराती ह मझ

ऐ दतनयाा की रगीतनयाा ऐ ससार क परलोभन तम मझ अब कया फा साओग तमहारी पोल मन जान ली ह ह समाज क रीतत ररवाज तम कब तक बााधोग मझ ह सख और दख तम कब तक नचाओग मझ अब म मोहतनशा स जाग गया हा

तनभकयतापवकक दढतापवकक ईमानदारी और तनशकता स अपनी असली चतना को जगाओ कब तक तम शरीर म सोत रहोग

साधना क रासत पर हजार हजार ववघन होग लाख लाख कााट होग उन सबक ऊपर तनभकयतापवकक पर रखग

व कााट फल न बन जााए तो हमारा नाम lsquoसाधकrsquo कस

ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

हजारो हजारो उसथान और पतन क परसगो म हम अपनी जञान की आाख खोल रहग हो होकर

कया होगा इस मद शरीर का ही तो उसथान और पतन चगना जाता ह हम तो अपनी आसमा मसती म मसत ह

बबगड़ तब जब हो कोई बबगड़नवाली शय

अकाल अछघ अभघ को कौन वसत का भय

मझ चतनय को मझ आसमा को कया तरबगड़ना ह और कया लमलना ह तरबगड़ तरबगड़कर ककसका तरबगड़गा इस मद शरीर का ही न लमल लमलकर भी कया लमलगा इस मद शरीर को ही लमलगा न इसको तो म जलाकर आया हा जञान की आग म अब लसकड़न की कया जररत ह बाहर क दखो क सामन परलोभनो क सामन झकन की कया जररत ह

अब म समराट की नाई लजऊा गा hellip बपरवाह होकर लजऊा गा साधना क मागक पर कदम रखा ह तो अब चलकर ही रहागा ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip ऐस वयलकत क ललए सब सभव ह

एक िररणयो सोन भार

आखखर तो मरना ही ह तो अभी स मौत को तनमतरर द दो साधक वह ह कक जो हजार ववघन आय तो भी न रक लाख परलोभन आएा तो भी न फा स हजार भय क परसग आएा तो भी भयभीत न हो और लाख धनयवाद लमल तो भी अहकारी न हो उसका नाम साधक ह साधक का अनभव होना चादहए कक

हि रोक सक य जिान ि दि नही

हि स जिाना ह जिान स हि नही

परहलाद क वपता न रोका तो परहलाद न वपता की बात को ठकरा दी वह भगवान क रासत चल पड़ा मीरा को पतत और पररवार न रोका तो मीरा न उनकी बात को ठकरा ददया राजा बलल को तथाकचथत गर न रोका तो राजा बलल न उनकी बात को सनी अनसनी कर दी

ईशवर क रासत पर चलन म यदद गर भी रोकता ह तो गर की बात को भी ठकरा दना पर ईशवर को नही छोड़ना

ऐसा कौन गर ह जो भगवान क रासत चलन स रोकगा वह तनगरा गर ह ईशवर क रासत चलन म यदद कोई गर रोक तो तम बलल राजा को याद करक कदम आग रखना यदद पसनी रोक तो राजा भरतहरी को याद करक पसनी की ममता को ढकल दना यदद पतर और पररवार रोकता ह तो उनह ममता की जाल समझकर काट दना जञान की क ची स ईशवर क रासत आसम-साकषासकार क रासत चलन म दतनयाा का अचछ स अचछा वयलकत भी आड़ आता हो तो hellip

आहा तलसीदासजी न ककतना सनदर कहा ह

जाक षपरय न राि वदही

तषजए ताहह कोहि वरी सि यदयषप परि सनही

ऐस परसग म परम सनही को भी वरी की तरह सयाग दो अनदर की चतना का सहारा लो और ॐ की गजकना करो

दख और चचनता हताशा और परशानी असफलता और दररिता भीतर की चीज होती ह बाहर की नही जब भीतर तम अपन को असफल मानत हो तब बाहर तमह असफलता ददखती ह

भीतर स तम दीन हीन मत होना घबराहट पदा करनवाली पररलसथततयो क आग भीतर स

झकना मत ॐकार का सहारा लना मौत भी आ जाए तो एक बार मौत क लसर पर भी पर रखन की ताकत पदा करना कब तक डरत रहोग कब तक मनौततयाा मनात रहोग कब तक नताओ को साहबो को सठो को नौकरो को ररझात रहोग तम अपन आपको ररझा लो एक बार अपन आपस दोसती कर लो एक बार बाहर क दोसत कब तक बनाओग

कबीरा इह जग आय क बहत स कीन िीत

षजन हदल बा ा एक स व सोय तनषशचत

बहत सार लमतर ककय लककन लजसन एक स ददल बााधा वह धनय हो गया अपन आपस ददल बााधना ह यह lsquoएकrsquo कोई आकाश पाताल म नही बठा ह कही टललफोन क खमभ नही डालन ह वायररग नही जोड़नी ह वह lsquoएकrsquo तो तमहारा अपना आपा ह वह lsquoएकrsquo तमही हो नाहक लसकड़ रह हो lsquoयह लमलगा तो सखी होऊा गा वह लमलगा तो सखी होऊा गा helliprsquo

अर सब चला जाए तो भी ठीक ह सब आ जाए तो भी ठीक ह आखखर यह ससार सपना ह गजरन दो सपन को हो होकर कया होगा कया नौकरी नही लमलगी खाना नही लमलगा कोई बात नही आखखर तो मरना ह इस शरीर को ईशवर क मागक पर चलत हए बहत बहत तो भख पयास स पीडड़त हो मर जायग वस भी खा खाकर लोग मरत ही ह न वासतव म होता तो यह ह कक परभ परालपत क मागक पर चलनवाल भकत की रकषा ईशवर सवय करत ह तम जब तनलशचत हो जाओग तो तमहार ललए ईशवर चचलनतत होगा कक कही भखा न रह जाए बरहमवतता

सोचा ि न कही जाऊ गा यही बठकर अब खाऊ गा

षजसको गरज होगी आयगा सषटिकतताय खद लायगा

सलषटटकतताक खद भी आ सकता ह सलषटट चलान की और साभालन की उसकी लजममदारी ह तम यदद ससय म जट जात हो तो चधककार ह उन दवी दवताओ को जो तमहारी सवा क ललए लोगो को परररा न द तम यदद अपन आपम आसमारामी हो तो चधककार ह उन ककननरो और गधवो को जो तमहारा यशोगान न कर

नाहक तम दवी दवताओ क आग लसकड़त रहत हो कक lsquoआशीवाकद दोhellip कपा करो helliprsquo तम अपनी आसमा का घात करक अपनी शलकतयो का अनादर करक कब तक भीख माागत रहोग अब तमह जागना होगा इस दवार पर आय हो तो सोय सोय काम न चलगा

हजार तम यजञ करो लाख तम मतर करो लककन तमन मखकता नही छोड़ी तब तक तमहारा भला न होगा 33 करोड़ दवता तो कया 33 करोड़ कषटर आ जाय लककन जब तक तववजञान को वयवहार म उतारा नही तब तक अजकन की तरह तमह रोना पड़गा Let the lion of vedant roar

in your life वदानतरपी लसह को अपन जीवन म गजकन दो टाकार कर दो ॐ कार का कफर दखो दख चचनताएा कहाा रहत ह

चाचा लमटकर भतीज कयो होत हो आसमा होकर शरीर कयो बन जात हो कब तक इस जलनवाल को lsquoमrsquo मानत रहोग कब तक इसकी अनकलता म सख परततकलता म दख महसस करत रहोग अर सववधा क साधन तमह पाकर धनभागी हो जाय तमहार कदम पड़त ही असववधा सववधा म बदल जाए -ऐसा तमहारा जीवन हो

घन जगल म चल जाओ वहाा भी सववधा उपलबध हो जाए न भी हो तो अपनी मौज अपना आसमानद भग न हो लभकषा लमल तो खा लो न भी लमल तो वाह वाह आज उपवास हो गया

राजी ह उसि षजसि तरी रजा ह

हिारी न आरज ह न ज सतज ह

खाना या नही खाना यह मद क ललए ह लजसकी अलसथयाा भी ठकराई जाती ह उसकी चचनता भगवान का पयारा होकर टकड़ो की चचनता सतो का पयारा होकर कपड़ो की चचनता फकीरो का पयारा होकर रपयो की चचनता लसदधो का पयारा होकर नात ररशतो की चचनता

चचनता क बहत बोझ उठाय अब तनलशचनत हो जाओ फकीरो क सग आय हो तो अब फककड़ हो जाओ साधना म जट जाओ

फकीर का मतलब लभखारी नही फकीर का मतलब लाचार नही फकीर वह ह जो भगवान की छाती पर खलन का सामथयक रखता हो ईशवर की छाती पर लात मारन की शलकत लजसम ह वह फकीर भग न भगवान की छाती पर लात मार दी और भगवान परचपी कर रह ह भग फकीर थ लभखमगो को थोड़ ही फकीर कहत ह तषटरावान को थोड़ ही फकीर कहत ह

भग को भगवान क परतत दवष न था उनकी समता तनहारन क ललए लगा दी लात भगवान ववषटर न कया ककया कोप ककया नही भग क पर पकड़कर चपी की कक ह मतन तमह चोट तो नही लगी

फकीर ऐस होत ह उनक सग म आकर भी लोग रोत ह lsquoककड़ दोhellip पसथर दोhellip मरा कया होगा hellip बचचो का कया होगा कटमब का कया होगा

सब ठीक हो जायगा पहल तम अपनी मदहमा म आ जाओ अपन आपम आ जाओ

नयायाधीश कोटक म झाड लगान थोड़ ही जाता ह वादी परततवादी को असील वकील को बलान

थोड़ी ही जाता ह वह तो कोटक म आकर ववराजमान होता ह अपनी कसी पर बाकी क सब काम अपन आप होन लगत ह नयायाधीश अपनी कसी छोड़कर पानी भरन लग जाए झाड लगान लग जाए वादी परततवादी को पकारन लग जाए तो वह कया नयाय करगा

तम नयायाधीशो क भी नयायाधीश हो अपनी कसी पर बठ जाओ अपनी आसमचतना म जग जाओ

छोटी बड़ी पजाएा बहत की अब आसमपजा म आ जाओ

दखा अपन आपको िरा हदल दीवाना हो गया

ना छड़ो िझ यारो ि खद प िसताना हो गया

ऐस गीत तनकलग तमहार भीतर स तम अपनी मदहमा म आओ तम ककतन बड़ हो इनिपद तमहार आग तचछ ह अतत तचछ ह इतन तम बड़ हो कफर लसकड़ रह हो धकका मकका कर रह हो lsquoदया कर दो hellip जरा सा परमोशन द दोhellip अवल कारकन म स तहसीलदार बना दो hellip तहसीलदार म स कलकटर बना दो hellip कलकटर म स सचचव बना दो helliprsquo

लककन hellip जो तिको यह सब बनायग व तिस बड़ बन जायग ति छोि ही रह जाओग बनती हई चीज स बनानवाला बड़ा होता ह अपन स ककसको बड़ा रखोग मदो को कया बड़ा रखना अपनी आसमा को ही सबस बड़ी जान लो भया यहाा तक कक तम अपन स इनि को भी बड़ा न मानो

फकीर तो और आग की बात कहग व कहत ह lsquoबरहमा ववषटर और महश भी अपन स बढकर नही होत एक ऐसी अवसथा आती ह यह ह आसम साकषासकार rsquo

बरहमा ववषटर और महश भी तवववतता स आललगन करक लमलत ह कक यह जीव अब लशवसवरप हआ ऐस जञान म जगन क ललए तमहारा मनषटय जनम हआ ह hellip और तम लसकड़त रहत हो lsquoमझ नौकर बनाओ चाकर रखो rsquo अर तमहारी यदद तयारी ह तो अपनी मदहमा म जगना कोई कदठन बात नही ह

यह कौन सा उकदा ह जो हो नही सकता

तरा जी न चाह तो हो नही सकता

छोिा सा कीड़ा पतथर ि घर कर

और इनसान कया हदल हदलबर ि घर न कर

तमहार सब पणय कमक धमाकचरर और दव दशकन का यह फल ह कक तमह आसमजञान म रचच हई बरहमवतताओ क शरीर की मलाकात तो कई नालसतको को भी हो जाती ह अभागो को भी हो जाती ह शरदधा जब होती ह तब शरीर क पार जो बठा ह उस पहचानन क कातरबल तम बन जाओग ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

जो तवववतताओ की वारी स दर ह उस इस ससार म भटकना ही पड़गा जनम मरर लना ही पड़गा चाह वह कषटर क साथ हो जाए चाह अमबाजी क साथ हो जाए लककन जब तक तववजञान नही हआ तब तक तो बाबा hellip

गजराती भकत कवव नरलसह महता कहत ह

आतितततव चीनया षवना सवय सा ना झ ठी

सवक साधनाओ क बाद नरलसह महता यह कहत ह

तम ककतनी साधना करोग

पहल मन भी खब पजा उपासना की थी भगवान लशव की पजा क तरबना कछ खाता पीता नही था प प सदगरदव शरी लीलाशाहजी बाप क पास गया तब भी भगवान शकर का बार और पजा की सामगरी साथ म लकर गया था म लकडड़याा भी धोकर जलाऊा ऐसी पववतरता को माननवाला था कफर भी जब तक परम पववतर आसमजञान नही हआ तब तक यह सब पववतरता बस उपाचध थी अब तो hellip अब कया कहा

ननीताल म 15 डोदटयाल (कली) रहन क ललए एक मकान ककराय पर ल रह थ ककराया 32 रपय था और व लोग 15 थ लीलाशाहजी बाप न दो रपय दत हए कहा

ldquoमझ भी एक lsquoममबरrsquo बना लो 32 रपय ककराया ह हम 16 ककरायदार हो जायग rsquorsquo

य अननत बरहमाणडो क शहनशाह उन डोदटयालो क साथ वषो तक रह व तो महा पववतर हो गय थ उनह कोई अपववतरता छ नही सकती थी

एक बार जो परम पववतरता को उपलबध हो गया उस कया होगा लोह का टकड़ा लमटटी म पड़ा ह तो उस जग लगगा उस साभालकर आलमारी म रखोग तो भी हवााए वहाा जग चढा दगी उसी लोह क टकड़ को पारस का सपशक करा दो एक बार सोना बना दो कफर चाह आलमारी म रखो चाह कीचड़ म डाल दो उस जग नही लगगा

ऐस ही हमार मन को एक बार आसमसवरप का साकषासकार हो जाय कफर उस चाह समाचध म तरबठाओ पववतरता म तरबठाओ चाह नरक म ल जाओ वह जहाा होगा अपन आपम परक होगा उसीको जञानी कहत ह ऐसा जञान जब तक नही लमलगा तब तक ररदचध लसदचध आ जाए मद को फा क मारकर उठान की शलकत आ जाए कफर भी उस आसमजञान क तरबना सब वयथक ह वाक लसदचध या सककपलसदचध य कोई मलजल नही ह साधनामागक म य बीच क पड़ाव हो सकत ह

यह जञान का फल नही ह जञान का फल तो यह ह कक बरहमा और महश का ऐशवयक भी तमह अपन तनजसवरप म भालसत हो छोटा सा लग ऐसा तमहारा आसम परमासमसवरप ह उसम तम जागो ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

िोहतनशा स जागो

आाखो क दवारा कानो क दवारा दतनयाा भीतर घसती ह और चचतत को चचल करती ह जप रधयान समरर शभ कमक करन स बदचध सवचछ होती ह सवचछ बदचध परमासमा म शात होती ह और मललन बदचध जगत म उलझती ह बदचध लजतनी लजतनी पववतर होती ह उतनी उतनी परम शातत स भर जाती ह बदचध लजतनी लजतनी मललन होती ह उतनी ससार की वासनाओ म ववचारो म भटकती ह

आज तक जो भी सना ह दखा ह उसम बदचध गई लककन लमला कया आज क बाद जो दखग सनग उसम बदचध को दौड़ायग लककन अनत म लमलगा कया शरीकषटर कहत ह

यदा त िोहकमलल बदध वययतततररटयतत

तदा गनतामस तनवद शरोतवयसय शरतसय च

lsquoलजस काल म तरी बदचध मोहरप दलदल को भलीभाातत पार कर जाएगी उस समय त सन हए और सनन म आनवाल इस लोक और परलोक समबनधी सभी भोगो स वरागय को परापत हो जायगा rsquo (भगवदगीता252)

दलदल म पहल आदमी का पर धास जाता ह कफर घटन कफर जााघ कफर नालभ कफर छाती कफर परा शरीर धास जाता ह ऐस ही ससार क दलदल म आदमी धासता ह lsquoथोड़ा सा यह कर ला थोड़ा सा यह दख ला थोड़ा सा यह खा ला थोड़ा सा यह सन ला rsquo परारमभ म बीड़ी पीनवाला जरा सी फा क मारता ह कफर वयसन म परा बाधता ह शराब पीनवाला पहल जरा सा घाट पीता ह कफर परा शराबी हो जाता ह

ऐस ही ममता क बनधनवाल ममता म फा स जात ह lsquoजरा शरीर का खयाल कर जरा कटलमबयो का खयाल कर hellip rsquo lsquoजरा hellip जरा helliprsquo करत करत बदचध ससार क खयालो स भर जाती ह लजस बदचध म परमासमा का जञान होना चादहए लजस बदचध म परमासमशातत भरनी चादहए उस बदचध म ससार का कचरा भरा हआ ह सोत ह तो भी ससार याद आता ह चलत ह तो भी ससार याद आता ह जीत ह तो ससार याद आता ह और मरतhellip ह hellip तो hellip भी hellip ससारhellip

हीhellip यादhellip आताhellip ह

सना हआ ह सवगक क बार म सना हआ ह नरक क बार म सना हआ ह भगवान क बार म यदद बदचध म स मोह हट जाए तो सवगक नरक का मोह नही होगा सन हए भोगय पदाथो का मोह नही होगा मोह की तनववतत होन पर बदचध परमासमा क लसवाय ककसी म भी नही ठहरगी परमासमा क लसवाय कही भी बदचध ठहरती ह तो समझ लना कक अभी अजञान जारी ह अमदावादवाला कहता ह कक मबई म सख ह मबईवाला कहता ह कक कलकतत म सख ह कलकततवाला कहता ह कक कशमीर म सख ह कशमीरवाला कहता ह कक मगरी म सख ह मगरीवाला कहता ह कक शादी म सख ह शादीवाला कहता ह कक बाल बचचो म सख ह बाल बचचोवाला कहता ह कक तनववतत म सख ह तनववततवाला कहता ह कक परववतत म सख ह मोह स भरी हई बदचध अनक रग बदलती ह अनक रग बदलन क साथ अनक अनक जनमो म भी ल जाती ह

यदा त िोहकमलल बदध वययतत hellip

lsquoलजस काल म तरी बदचध मोहरपी दलदल को भलीभाातत पार कर जाएगी उसी समय त सन हए और सनन म आनवाल इस लोक और परलोक सबधी सभी भोगो स वरागय को परापत हो जायगा rsquo

इस लोक और परलोकhellip

सात लोक ऊपर ह भ भव सव जन तप मह और ससय

सात लोक नीच ह तल अतल ववतल तलातल महातल रसातल और पाताल

इस परकार सात लोक उपर सात लोक तनच हhellipजब बलरधद म मोह होता ह तो ककसी न ककसी लोक म आदमी यातरा करत ह

वलशषटठजी महाराज क पास एक ऐसी ववदयाधरी आयी लजसका मनोबल धारराशलकत स असयनत पषटट हआ था इचछाशलकत परबल थी उसन वलशषटठजी स कहा

lsquorsquoह मनीशवर म तमहारी शरर आई हा म एक तनराली सलषटट म रहनवाली हा उस सलषटट का रचतयता मर पतत ह उनकी बदचध म सतरी भोगन की इचछा हई इसललए उनहोन मरा सजन ककया मरी उसपवतत क बाद उनको रधयान म आसमा म अचधक आनद आन लगा इसललए व मझस ववरकत हो गय अब मरी ओर आाख उठाकर दखत तक नही अब मरी यौवन अवसथा ह मर अग सदर और सकोमल ह म भताक क तरबना नही रह सकती आप कपा करक चललय मर पतत को समझाइए rsquorsquo

साध परष परोपकार क ललए सममत हो जात ह वलशषटठजी महाराज उस भि मदहला क साथ उसक पतत क यहाा जान को तयार हए वलशषटठजी भी योगी थ वह मदहला भी धारराशलकत म ववकलसत थी दोनो उड़त उड़त इस सलषटट को लााघत गय एक नय बरहमाणड म परववषटट हो गय वहाा वह ववदयाधरी एक बड़ी लशला म परववषटट हो गयी वलशषटठजी बाहर रक गय वह सतरी वापस बाहर आई तो वलशषटठजी बोल lsquolsquoतरी सलषटट म हम परववषटट नही हो सकत rsquorsquo

तब उस ववदयाधरी न कहा lsquolsquoआप मरी चचततववतत क साथ अपनी चचततववतत लमलाइए आप भी मर साथ साथ परववषटट हो सक ग rsquorsquo

एक आदमी सवपन दख रहा ह उसक सवपन म दसरा आदमी परववषटट नही हो सकता दसरा तब परववषटट हो सकगा कक जब उन दोनो क सन हय ससकार एक जस हो एक आदमी सोया ह आप उसक पास खड़ ह आप बार बार सघनता स खयाल करो उसी खयाल का बार बार पनरावतकन करो कक बाररश हो रही ह ठड लग रही ह आपक शवासोचछवास क आदोलन उस

सोय हए आदमी पर परभाव डालग उसकी चचततववतत आपकी चचततववतत क साथ तादासमय करगी और उसको सवपन आयगा कक खब बाररश हो रही ह और म भीग गया

मखक आदलमयो क साथ हम लोग जीत ह ससार क दलदल म फा स हए पसो क गलाम इलनियो क गलाम ऐस लोगो क बीच यदद साधक भी जाता ह तो वह भी सोचता ह कक चलो थोड़ रपय इकटठ कर ला नोटो की थोड़ी सी थपपी तो बना ला कयोकक मर बाप क बाप तो ल गय ह मर बाप भी ल गय ह और अब मरको भी ल जाना ह

मोह क दलदल म आदमी फा स जाता ह कीचड़ म धास हए वयलकत क साथ यदद तम तादासमय करत हो तो तम भी डबन लगत हो तमको लगता ह कक य डब ह हम नही डबत मगर तम ऐसा कहत भी जात हो और डबत भी जात हो बदचध म एक ऐसा ववचचतर भरम घस जाता ह

जस तस साधक को ही नही अजकन जस को भी यह भरम हो गया था अजकन को आसम साकषासकार नही हआ और वह बोलता ह कक lsquolsquoभगवन तमहार परसाद स अब म सब समझ गया हा अब म ठीक हो गया हा rsquorsquo

भगवान कहत ह lsquolsquoअचछा ठीक ह समझ रहा ह कफर भी दखी सखी होता ह भीतर मोह ममता ह rsquorsquo

गयारहव अरधयाय म अजकन न कहा कक मझ जञान हो गया ह म सब समझ गया मरा मोह नषटट हो गया कफर सात अरधयाय और चल ह उसको पता ही नही कक आसम साकषासकार कया होता ह

एक तलषटट नाम की भलमका आती ह जो जीव का सवभाव होता ह जीव म थोड़ी सी शातत

थोड़ा सा सामथयक थोड़ा सा हषक आ जाता ह तो समझ लता ह मन बहत कछ पा ललया जरा सा आभास होता ह झलक आती ह तो उसीको लोग आसम साकषासकार मान लत ह

जब मोहकललल को बदचध पार कर जायगी तब सना हआ और दखा हआ जो कछ होगा उसस तमहारा वरागय हो जायगा इनि आकर हाथ जोड़कर खड़ा हो जाए कबर तमहार ललए खजान की कलजयाा लकर खड़ा रह बरहमाजी कमणडल लकर खड़ रह और बोल कक lsquoचललए बरहमपरी का सख लीलजय helliprsquo कफर भी तमहार चचतत म उन पदाथो का आकषकर नही होगा तब समझना कक आसम साकषासकार हो गया

बचचो का खल नही िदान िहबबत

यहा जो भी आया मसर पर कफन बा कर आया

जीव का सवभाव ह भोग लशव का सवभाव भोग नही ह जीव का सवभाव ह वासना जीव का सवभाव ह सख क ललए दौड़ना बरहमाजी आयग तो सख दन की ही बात करग न सख क ललए यदद तम भागत हो तो पता चलता ह कक सख का दररया तमहार भीतर परा उमड़ा नही ह सख की कमी होगी तब सख लन को कही और जाओग सख लना जीव का सवभाव होता ह आसम साकषासकार क बाद जीव बाचधत हो जाता ह जीव का जीवपना नही रहता वह लशवसव म परगट हो जाता ह

कामदव रतत को साथ लकर लशवजी क आग ककतन ही नखर करन लगा लककन लशवजी को परभाववत न कर सका लशवजी इतन आसमारामी ह उनम इतना आसमानद ह कक उनक आग काम का सख अतत नीचा ह अतत तचछ ह लशवजी काम स परभाववत नही हए

योगी लोग सत लोग जब साधना करत ह तब अपसराएा आती ह नखर करती ह जो उनक नखर स आकवषकत हो जात ह व आसमतनषटठा नही पा सकत ह आसमानद क खजान को नही पा सकत ह इसीललए साधको को चतावनी दी जाती ह कक ककसी ररदचध लसदचध म ककसी परलोभन

म मत फा सना

तम मन और इलनियो का थोड़ा सा सयम करोग तो तमहारी वारी म सामथयक आ जाएगा तमहार सककप म बल आ जाएगा तमहार दवारा चमसकार होन लगग

चमसकार होना आसम साकषासकार नही ह चमसकार होना शरीर और इलनियो क सयम का फल ह आसम साकषासकारी महापरष क दवारा भी चमसकार हो जात ह व चमसकार करत नही ह हो जात ह उनक ललए यह कोई बड़ी बात नही ह वारी और सककप म सामथयक यह इचछाशलकत का ही एक दहससा ह तम जो सककप करो उसम डट रहो तम जो ववचार करत हो उन ववचारो को काटन का दसरा ववचार न उठन दो तो तमहार ववचारो म बल आ जाएगा

शरीर को इलनियो को सयत करक जप तप मौन एकागरता करो तो अतकरर शदध होगा शदध अतकरर का सककप जकदी फलता ह लककन यह आखखरी मलजल नही ह शदध अतकरर कफर अशदध भी हो सकता ह

15-16 साल पहल वाराही म मर पास एक साध आया और बहत रोया मन पछा lsquolsquoकया बात ह rsquorsquo

वह बोला lsquolsquo मरा सब कछ चला गया बाबाजी लोग मझ भगवान जसा मानत थ अब मर सामन आाख उठाकर कोई नही दखता ह rsquorsquo वह और रोन लगा मन सासवना दकर जयादा पछा तो उसन बताया

lsquolsquoबाबाजी कया बताऊा म पानी म तनहारकर वह पानी द दता तो रोता हआ आदमी हासन लगता था बीमार आदमी ठीक हो जाता था लककन बाबाजी अब मरी वह शलकत न जान कहाा चली गई अब मझ कोई पछता नही rsquorsquo

बदचध का मोह परा गया नही था बदचध का तमस थोड़ा गया बदचध का रजस थोड़ा गया लककन बदचध परी परमासमा म ठहरी नही थी परी परमासमा म नही ठहरी तो परततषटठा म ठहरी परततषटठा थी तो बदचध परसनन हई और lsquoम भगवान हाhelliprsquo ऐसा मानकर खश रहन लगी जब बदचध की शदचध चली गई एकागरता नषटट हई तो सककप का सामथयक चला गया लोगो न दखना बद कर ददया तो बोलता ह lsquoबाबाजी म परशान हा rsquo

जञानी शली पर चढ तो भी परशान नही होत परलसदचध क बदल कपरलसदचध हो जाए जहर ददया जाए शली पर चढा ददया जाए कफर भी जञानी अनदर स दखी नही होत कयोकक उनहोन जान ललया कक ससार म जो भी सना हआ दखा हआ जो कछ भी ह नही क बराबर ह सब सवपन ह भगवान शकर कहत ह

उिा कहउ ि अनभव अपना

सतय हररभजन जगत सब सपना

तसय परजञा परततषटठता उसकी परजञा बरहम म परततलषटठत हो जाती ह

उस साध क ललए थोड़ी दर म शात हो गया और कफर उसस बोला lsquolsquoतमन तराटक लसदध ककया हआ था rsquorsquo

वह बोला lsquolsquoहाा बाबाजी आपको कस पता चला गया rsquorsquo

मन कहा lsquolsquoऐस ही पता चल गया rsquorsquo

आपका हदय लसथर ह तो दसरो की चचततववतत क साथ आपका तादासमय हो जाता ह कोई कदठन बात नही ह अपन ललए वह चमसकार लगता ह सतो क ललए यह कोई चमसकार नही

तमहारा रडडयो यदद ठीक ह तो वायमणडल म बहता हआ गाना तमह सनाई पड़ता ह ऐस ही यदद तमहारा अतकरर शात होता ह बदचध लसथर होती ह तो घदटत घटना या भववषटय की घटना का पता चल जाता ह यही कारर ह कक वाकमीकक ॠवष न सौ साल पहल रामायर रच ललया रामजी स या ववषटरजी स पछन नही गय कक तम कया करोग अथवा ककसी जयोततष का दहसाब लगान नही गय थ बदचध इतनी शदध होती ह कक भत और भववषटय की ककपनाएा नही रहती ह जञानी क ललए सदा वततकमान रहता ह इसललए भत भववषटय की खबर पड़ जाती ह उनकी बदचध ववचललत नही होती ह

उस साध न तराटक लसदध ककया हआ था तराटक स एकागरता होती ह और एकागरता स इचछाशलकत ववकलसत होती ह सामथयक बढ जाता ह उसी इचछाशलकत को यदद आसमजञान म नही मोड़ा तो वह इचछाशलकत कफर ससार की तरफ ल जाती ह

एकागरता क ललए तराटक की ववचध इस परकार ह

एक फट क चौरस गतत पर एक सफद कागज लगा दो उसक कनि म एक रपय क लसकक क बराबर एक गोलाकार चचहन बनाओ इस गोलाकार चचहन क कनि म एक ततलभर तरबनद छोड़कर बाकी क भाग म काला रग भर दो बीचवाल तरबनद म पीला रग भर दो

अब उस गतत को ऐस रखो कक वह गोलाकार चचहन आपकी आाखो की सीधी रखा म रह हररोज एक ही सथान म कोई एक तनलशचत समय म उस गतत क सामन बठ जाओ पलक चगराय तरबना अपनी दलषटट उस गोलाकार चचहन क पील कनि पर दटकाओ आाख परी खली या परी बद न हो

आाख बनद होती ह तो तमहारी शलकत मनोराज म कषीर होती ह आाख यदद परी खली होती ह तो उसक दवारा तमहारी शलकत की रलशमयाा बाहर बहकर कषीर होती ह आलसमक शलकत कषीर

होती ह इसी कारर रन बस या मोटरकार की मसाकफरी म खखड़की स बाहर झााकत हो तो थोड़ी ही दर म थककर झपककयाा लन लगत हो जीवनशलकत खचक हो जाती ह

उस पील तरबनद पर दलषटट एकागर करन स आाखो दवारा तरबखरती हई जीवनशलकत बचगी और सककप की परपरा टटन लगगी सककप ववककप कम होन स आरधयालसमक बल जगगा पहल 5 लमनट 10 लमनट 15 लमनट बठो परारभ म आाख जलती हई मालम पड़गी आाखो म स पानी चगरगा रोज आधा घणटा बठन का अभयास करो कफर तो तम ऐस ऐस चमसकार कर लोग कक भगवान की तरह पज जाओग उसक साथ यहद आतिजञान नही होगा तो वह भगवान अत ि रोता हआ भगवान होगा िकत भगवान नही होगा

एकागरता सब तपसयाओ का माई बाप ह

भलकत परपरा म पजयपाद माधवाचायक परलसदध सत हो गय उनहोन कहा था lsquolsquoह परभ हम तर पयार म अब इतन गकक हो गय ह कक हमस अब न यजञ होता ह न तीथक होता ह न सरधया होती ह न तपकर होता ह न मगछाला तरबछती ह न माला घमती ह हम तर पयार म ही तरबक गय rsquorsquo

जब परमाभलकत परगट होन लगती ह तब कटलमबयो का ससाररयो का समाज का मोह तो हट जाता ह लककन कफर कमककाणड का मोह भी टट जाता ह कमककाणड का मोह तब तक ह जब तक दह म आसमबदचध होती ह ससार म आसलकत होती ह तब तक कमककाणड म परीतत होती ह ससार की आसलकत हट जाए कषटर म परम हो जाए राम म परम हो जाए तो कफर कमककाणड की नीची साधना करन को जी नही चाहता ह कषटर का अथक ह आकषकनवाला आनदसवरप आसमा राम का अथक ह सबम रमनवाला चतनय आसमा

कछ सपरदायवाल तराटक लसदध करक अपनी शलकत का दरपयोग करत ह चमगादड़ मारकर उसका काजल बनाकर उस काजल को आाखो म लगाकर ककसीस अपनी आाख क सामन तनहारन

और रधयान करन को कहत ह रधयान करनवाल वयलकत की बदचध वश हो जाए ऐसा सककप करक तराटक करत ह तो अचछ अचछ लोग उनक वश म हो जात ह

इसम उनकी अपनी भी हातन ह और सामनवाल वयलकत की भी हातन ह एकागरता तो ठीक ह लककन अगर एकागरता का उपयोग ससार ह एकागरता का उपयोग भोग ह तो वह एकागरता साधक को मार डालती ह एकागरता का उपयोग एक परमासमा की परालपत क ललए होना चादहए

रपयो म पाप नही लककन रपयो स भोग भोगना पाप ह सतता म पाप नही लककन सतता स अहकार बढाना पाप ह अकलमद होन म पाप नही लककन उस अकल स दसरो को चगराना और अपन अह को पोवषत करना पाप ह

कई लोग परशान रहत ह मढ लोग अधालमकक लोग परशान रहत ह इसम कोई आशचयक नही लककन भगत लोग भी परशान रहत ह भगत सोचता ह कक lsquoमरा मन लसथर हो जाएhellip मरी इलनियाा शात हो जाएाhelliprsquo भया मर मन शात हो जाएगा इलनियाा शात हो जाएागी तो lsquoरामनाम सत हhelliprsquo हो जाएगा तन मन इलनियो का तो सवभाव ह हरकत करना चषटटा करना लककन वह चषटटा सयोगय हो मन का सवभाव ह सककप करना लककन ऐसा सककप कर कक अपना बनधन कट बदचध का सवभाव ह तनरकय करना

लोग इचछा करत ह lsquolsquoम शात हो जाऊा पसथर की तरह hellip मरा रधयान लग जाए helliprsquorsquo लजनका रधयान लगता ह व परशान ह और लजनका रधयान नही लगता ह व भी परशान ह रधयान क रासत नही आए व भी परशान ह ही उनकी ववततयाा पल पल म उदववगन होती ह रजो तमोगर बढ जाता ह

योग म बताया गया ह कक चचतत की पााच अवसथाएा होती ह कषकषपत ववकषकषपत मढ एकागर और तनरदध चचतत परकतत का बना ह वह सदा एक अवसथा म नही रहता सदा एकागर भी नही

रह सकता और सदा चचल भी नही रह सकता ककतना भी चचल आदमी हो लककन रात को वह शात हो जाएगा ककतना भी शात वयलकत हो लककन उसका चचतत चषटटा करगा ही

भगवान शकर जसी समाचध तो ककसीकी लगी नही कफर भी शकरजी समाचध स उठत ह तो डमर लकर नाचत ह शरीर मन और ससार सदा बदलता रहता ह सख दख सदा आता जाता ह दख म तो पकड़ नही होती लककन सख म पकड़ रहती ह कक यह सदा बना रह सख म धन म सवगक म यदद पकड़ ह तो समझो कक बदचध का मोह अभी नही गया जञानी को ककसीम पकड़ नही होती भगवान कषटर जी कहत ह

यदा त िोहकमललि

मोह दलदल ह दलदल म आदमी थोड़ा धासत धासत परा नषटट हो जाता ह

लालजी महाराज एक सरल सत ह उनक पास एक साध आय जवान थ दखन म ठीक ठाक थ

एक बार एक नववध शादी क बाद तरत बाबाजी क दशकन करन आयी बाबाजी न कहा lsquolsquo

भगवान क दशकन कर लो rsquorsquo वह दशकन करन गई तो उस साध की आाख उस नववध की ओर घमती रही उसक जान क बाद लालजी महाराज न साध स कहा lsquo महाराज आप सनयासी ठहर गहसथ साधक भी अपन को बचाता ह और आप hellip यह ठीक नही लगता ह कक कोई यवती आयी और hellip इलनियो को जरा बचाना चादहए rsquorsquo

कान स और आाख स ससार अपन अनदर घस जाता ह वह साध चचढ गया उस अहकार था कक म साध हा मन गरए कपड़ पहन ह

घर छोड़ना बड़ी बात नही लककन अहकार छोड़ना बड़ी बात ह ककनही पादररयो क सग स परभाववत और उनकी बदचध स रग हए उस यवान साध न रठकर कहा lsquolsquoभगवान न आाख दी ह दखन क ललए सौनदयक ददया ह तो दखन क ललए कवल दखन म कया जाता ह मन उसस बात नही की सपशक नही ककया rsquorsquo आदमी तकक दना चाह तो कस भी द सकता ह

अर भाई पहल पहल तो ऐसा ही होता ह कक दखन म कया जाता ह शराब की एक पयाली पी लन म कया जाता ह लककन यह मोहकललल ऐसा ववचचतर दलदल ह कक उसम एक बार पर पड़ गया तो कफर जयो जयो समय बीतता जाएगा सयो सयो जयादा धासत जाओग

वह साध उस समय तो रठकर चला गया लककन वकत बादशाह ह घमत घामत छ आठ महीन क बाद वह साध दबला पतला चहर पर गडढ दीन हीन हालत म लालजी महाराज क पास आया उनहोन तो पहचाना भी नही पहल सवामी होकर आता था अब वह लभखारी की तरह पछ रहा ह

lsquolsquoम आ सकता हा rsquorsquo

लालजी महाराज lsquolsquoआओ rsquorsquo

lsquolsquoमर साथ तीन मतत कयाा और भी ह rsquorsquo

lsquolsquoउनको भी बलाओ rsquorsquo

एक सनयालसनी जसी सतरी और दो बचच भी आय साध न अपनी पहचान दी तो लालजी महाराज बोल

lsquolsquoकफर य कौन ह rsquorsquo

साध बोला lsquolsquoयह ववधवा माई थी बचारी दखी थी बचच भी थ उस दखकर मझ दया आ गई आजीववका का कोई साधन उसक पास नही था इसललए माई को लशषटया बना ललया बचचो को पढाता हा rsquorsquo

बाद म मालम करन पर पता चला कक साध न उस सतरी को पसनी बनाया ह और कमाता नही ह इसललए गरए कपड़ पहनाकर घमाता रहता ह

कया तजसवी साध था सतरी की ओर जरा सा दखा कवल और कछ नही आाख स इधर उधर कछ दखत हो या कान स सनत हो तो बदचध म जरा सा भी यदद मोह ह तो वह बढता जायगा आसमजञान नही हआ हो तो जब तक शरीर रह तब तक भगवान स पराथकना करना कक lsquoह परभ बचात रहना इस दलदल सrsquo

कईयो को भरातत हो जाती ह कक ldquoमझ आसम साकषासकार हो गया hellip मझ आसमशातत लमल गई helliprsquorsquo

भावनगर स करीब 15-20 कक मी दर गौतमशवर नामक जगह ह वहाा एक साध थ बहत सयागी थ लोगो की भीड़ को दखत तो व एकानत म भाग जात ससार स ववरकत कछ साथ म नही रखत थ एकाध कपड़ा पहनत थ सयागी थ नारायर उनका नाम था और नारायर क भकत थ बाद म व दखी होकर मर

मन कहा lsquoसयागी ह भगवान क भकत ह तो दखी होकर नही मरत लोग उनह दख द सक मगर व दखी होत नही rsquo

तब लोगो न बताया ldquoघमत घमत व चगरनार चल गय थ वहाा दखा ककसी अघोरी को सोचा जरा सा सकफा पीन म कया जाता ह एक फा क लन म कया जाता ह जरा सा चरस खीचन म कया जाता ह उनहोन सकफा भी वपया भााग भी पी चरस भी वपया लसगरट भी पीन लग कफर अशात होकर आय ववकषकषपत होकर आय और आसमघात करक मर गय rdquo

शामलाजी आददवासी कषतर म मझ समाज क लोगो न आकर कहा कक यहाा क पादरी लोग बोतल खली रखकर उसम स पयाललयाा पीत पीत लोगो को लकचर दत ह आशीवकचन दत ह ऐस शराबी लोग धमकगर होकर लोगो क लसर पर हाथ रखत ह व गरीब आददवासी बचार

धमकपररवतकन क बहान धमकभरषटट होत ह लजस कल म जनम ललया हो उस कल क मतातरबक अगर ससकमक कर तो उस पणय क परभाव स उनक पवकजो को भी सदगतत लमल जाय यहा तो शराबी लोग थोड़ स रपयो की लालच दकर भोल भाल बचार आददवालसयो को धमकभरषटट कर रह ह

पीतवा िोहियी िहदरा ससार भ तो उनित

दजकन तो दखी होत ही ह लककन सजजन भी सचची समझ क तरबना परशान हो जात ह एक वपता फररयाद करता ह कक ldquoम सबह जकदी उठता हा पजा पाठ करता हा कटमब क अनय लोग भी जकदी उठत ह लककन एक नवजवान बटा दषटट ह वह सबर जकदी नही उठता rdquo

यह मोह ह lsquoमराrsquo बटा जकदी उठ कईयो क बट नही उठत तो कोई हजक नही लककन lsquoमराrsquo बटा जकदी उठ म धालमकक हा तो lsquoमरrsquo बट को भी धालमकक होना चादहए

अपन बट म इतनी ममता होन क कारर ही दख होता ह भगवान क जो पयार भकत ह भगवत तसव को कछ समझ रह ह उनको आगरह नही होता बड़ बट को जकदी उठान का परयसन करत ह लककन बटा नही उठता ह तो चचतत म ववकषकषपत नही होत

ककसीका ववरलकत परधान परारबध होता ह ककसीका वयवहार परधान परारबध होता ह जञान होन क बाद जञानी का जीवन सवाभाववक चलता ह लककन धालमकक लोगो को इतनी चचता परशानी होती ह कक lsquoअर शकदवजी को लगोटी का भी पता नही रहता था इतन आसमानद म डब रहत थ हमारा रधयान तो ऐसा नही लगता शकदवजी जसा हमारा रधयान लग rsquo

हजारो वषक पहल का मनषटय हजारो वषक पहल का वातावरर और कई जनमो क ससकार थ उनको ऐसा हआ उनको लकषय बनाकर चलत तो जाओ लककन लकषय बनाकर ववकषकषपत नही

होना हो गया तो हो गया नही हआ तो नही हआ लककन चचतत को सदा परसननता स महकता हआ रखो ऐसा रधयान हो गया तो भी सवपन न हआ तो भी सवपन लजस परमासमा म शकदवजी आकर चल गय वलशषटठजी आकर चल गय शरीराम आकर चल गय शरीकषटर आकर चल गय वह परमासमा अभी तमहारा आसमा ह ऐसा जञान जब तक नही होता ह तब तक मोह नही जाता ह

तलसीदासजी न कहा ह

िोह सकल बयाध नह कर ि ला ततनह त पतन उपजहह बह स ला

मोह सब वयाचधयो का मल ह उसस भव का शल कफर पदा होता ह इसीललए ककसी भी वसत म ममता हई आसलकत हई मोह हआ तो समझो कक मर ककसी भी पररलसथतत म मोह ममता नही होनी चादहए

lsquoआज आरती की घणटी बजाई पराथकना की तो बहत मजा आया अहा hellip रोज ऐस आरततयाा कर घलणटयाा बजाय और मजा आता रह helliprsquo तो हररोज ऐसा होगा नही लजस समय सषमरा का दवार खला ह महतक अचछा ह बदचध म सालववकता ह उस समय आरती करत हो तो मजा आता ह लजस समय शरीर म रजो तमोगर ह कछ खाया वपया ह शरीर भारी ह परार नीच ह उस समय आरती करोग तो मजा नही आयगा

मजा आना और न आना आसमा का सवभाव नही चचदाभास का सवभाव ह जीव का सवभाव ह मजा जीव को आता ह जञानी को मजा और बमजा नही आता व तो मसतराम ह

ससारी आदमी दवषी होता ह पामर आदमी को लजतना राग होता ह उतना दवष होता ह भकत होता ह रागी भगवान म राग करता ह आरती पजा म राग करता ह मददर मतत क म राग करता ह लजजञास म होती ह लजजञासा जञानी म कछ नही होता ह जञानी गरातीत होत ह मज की बात ह कक जञानी म सब ददखगा लककन जञानी म कछ होता नही जञानी स सब

गजर जाता ह

बदचध को शदध करन क ललए आसमववचार की जररत ह रधयान की जररत ह जप की जररत ह बदचध शदध हो तो जस दसर शरीर को अपनस पथक दखत ह वस ही अपन शरीर को भी आप अपनस अलग दखग ऐसा अनभव जब तक नही होता तब तक बदचध म मोह होन की सभावना रहती ह

थोड़ा सा मोह हट जाता ह तब लगता ह कक मर को रपयो म मोह नही ह सतरी म मोह नही ह मकान म मोह नही ह आशरम म मोह नही ह ठीक ह लककन परततषटठा म मोह ह कक नही ह इस जरा ढाढो दह म मोह ह कक नही ह जरा ढाढो और मोह टट जात ह लककन दह का मोह जकदी नही टटता लोकषर (वाहवाही) का मोह जकदी नही टटता धन का मोह भी जकदी स नही टटता

lsquoरपय सद पर ददय हए ह कथा म जाना ह गरदव बाहर जानवाल ह कया कर सद पर पस लजनको ददय हए ह व कही भाग गय तो rsquo अर वह कया भागगा भाग भागकर कहाा तक जायगा समशान म ही न hellip और तम ककतना भी इकठठा करोग तो भी आखखर समशान म ही जाना ह कोई खाकर नही भागता कोई लकर नही भागता सब यही का यही पड़ा रह जाता ह कवल बदचध म ममता ह कक य मर पस ह य मर कजकदार ह यह कवल बदचध का खखलवाड़ ह बदचध क य खखलौन तब तक अचछ लगत ह जब तक परमासमा का ठीक स अनभव नही हआ ह

पकषकषयो स जरा सीख लो उनको आज खान को ह कल का कोई पता नही कफर भी पड़ की डाली पर गनगना लत ह कोलाहल कर लत ह कब कहाा जायग कोई पता नही कफर भी तनलशचतता स जी लत ह

हमार पास रहन को घर ह खान को अनन ह - महीन भर का साल भर का कफर भी द

धमाधम सामान सौ साल का पता पल का नही

लजनको बठन का दठकाना नही डाल पर बठ लत ह दसर पल कौन सी डाल पर जाना ह कोई पता नही ऐस पकषी भी आनद स जी लत ह कया खायग कहाा खायग कोई पता नही उनका कोई कायकिम नही होता कक आज वहाा lsquoडडनरrsquo (भोज) ह कफर भी जी लत ह भख क कारर नही मरत रहन का सथान नही लमलता इसक कारर नही मरत मौत जब आती ह तब मरत ह

िद को परभ दत ह कपड़ा लकड़ा आग

षजनदा नर धचनता कर ता क बड़ अभाग

चचनता यदद करनी ह तो इस बात की करो कक पााच वषक क धरव को वरागय हआ परहलाद को वरागय हआ पर मझ कयो नही होता रामतीथक को 22 साल की उमर म वरागय हआ और परमासमा को पा ललया मझ 25 साल हो गय 40 साल हो गय 45 साल हो गय कफर भी वरागय नही होता

ससार की चाह अभी भी करत हो ससार क नशवर धन की वसली करना चाहत हो

ऐसा धन पा लो कक बरहमाजी का पद कबर का धन इनि का ऐशवयक तमहार आग तचछ ददख तमम इतना सामथयक ह

वह ववदयाधरी लशला स वापस बाहर आकर वलशषटठजी स कह रही ह कक ldquoमहाराज आइए rdquo

वलशषटठजी बोल ldquoम तो नही आ सकता हाrdquo

लजसकी धारराशलकत लसदध हो गई ह वह अतवाहक शरीर स दीवार क भीतर परवश कर लगा अतवाहक शरीर की साधना न की हो तो भल लसर फट जाय लककन दीवार क भीतर स न जा सकगा सरग बनाय तरबना आदमी योग की कला स पहाड़ म स आर पार गजर सकता ह ऐसी शलकत तमहार सबक भीतर छपी हई ह वह शलकत ववकलसत नही हई सथल शरीर क साथ जड़ गय इसललए वह शलकत सथलरप हो गई ह

पानी भाप बन जाता ह तो बारीक स बारीक छद म स तनकल जाता ह लककन वह पानी यदद ठणडा होकर बफक बन जाता ह तो छोटी बड़ी खखड़की स भी नही तनकल पाता ऐस ही तमहारी चचततववतत यदद सथल होती ह तो गतत नही होती ह और सकषम हो जाती ह तो गतत होती ह

वलशषटठजी महाराज न उस ववदयाधरी की चचततववतत स अपनी चचततववतत लमला दी और लशला म परववषटट हो गय इस सलषटट स एक नयी सलषटट म पहाच गय वहाा उस मदहला न एक समाचधसथ योगी को ददखात हए कहा कक ldquoव मर पतत ह उनको ससार स वरागय हो गया ह अब मरी तरफ आाख उठाकर दखत तक नही हrdquo

जब योगी न आाख खोली तो ववघाधरी न कहा

ldquoय वलशषटठजी महाराज ह दसरी सलषटट स आय ह शरीराम क गर ह महापरषो का सवागत करना ससपरषो का सवभाव ह इनका अरधयक पादय स सवागत कीलजय rdquo

उस योगी न वलशषटठजी का सवागत ककया और कहा

ldquoह बराहमर यह सलषटट मन इचछाशलकत स बनायी थी पसनी की इचछा हई तो सककप स पसनी भी बना ली कफर दखा कक लजस परमासमा की सतता स सककप दवारा इतनी घटना घट सकती ह उस परमासमा म ही कयो न ठहर जाय अत म अपनी चचततववतत को समटकर परमानद म मगन होकर आसमशातत म ल आया अब कोई भोग भोगन की मरी इचछा नही ह और इस सलषटट को चलान की भी मरी इचछा नही ह

मरी सवा करत करत इस सतरी म भी धारराशलकत लसदध हो गई ह इचछाशलकत क अनसार घटनाएा घटन लग जाती ह लककन इसकी बदचध म स मोह अभी गया नही ह इसको भोग की इचछा ह भोग हमशा अपना नाश करन म सलगन होता ह आप इसको आशीवाकद द कक इसकी भोग की इचछा तनवतत हो जाय और परमासमा म चचततववतत लग जाय और hellip अब म इस सलषटट को धारर करन का सककप समट रहा हा आप जकदी स जकदी इस सलषटट स बाहर पधार मर सककप म यह सलषटट ठहरी ह सककप समटत ही इसका परलय हो जायगा rdquo

वलशषटठजी कहत ह ldquoम उस सलषटट स रवाना हआ और मर दखत दखत उस बरहमाजी न सककप समटा तो सलषटट का परलय होन लगा सयक तपन लगा परलयकाल की वाय चलन लगी पहाड़ टटन लग लोग मरन लग वकष सखन लग पकषी चगरन लग rdquo

तमहार अदर वही परमासमशलकत इतनी ह कक यदद वह ववकलसत हो जाय तो तम इचछाशलकत स नयी सलषटट बना सकत हो हर इनसान म ऐसी ताकत ह लककन मोह क कारर भोगवासना क कारर नयी सलषटट तो कया मामली घर बनात ह तो भी lsquoलोनrsquo (उधार) लना पड़ता ह hellip वह भी लमलता नही और धकक खान पड़त ह

कवल तनध

लजसको कवली कमभक लसदध हो जाता ह वह पजन योगय बन जाता ह यह योग की एक ऐसी कजी ह कक छ महीन क दढ अभयास स साधक कफर वह नही रहता जो पहल था उसकी मनोकामनाएा तो परक हो ही जाती ह उसका पजन करक भी लोग अपनी मनोकामना लसदध करन लगत ह

जो साधक परक एकागरता स इस परषाथक को साधगा उसक भागय का तो कहना ही कया उसकी वयापकता बढती जायगी महानता का अनभव होगा वह अपना परा जीवन बदला हआ पायगा

बहत तो कया तीन ही ददनो क अभयास स चमसकार घटगा तम जस पहल थ वस अब न रहोग काम िोध लोभ मोह आदद षडववकार पर ववजय परापत करोग

काकभशलणडजी कहत ह कक ldquoमर चचरजीवन और आसमलाभ का कारर परारकला ही ह rdquo

परारायाम की ववचध इस परकार ह

सनान शौचादद स तनपटकर एक सवचछ आसन पर पदमासन लगाकर सीध बठ जाओ मसतक गरीवा और छाती एक ही सीधी रखा म रह अब दादहन हाथ क अागठ स दायाा नथना बनद करक बााय नथन स शवास लो पररव का मानलसक जप जारी रखो यह परक हआ अब लजतन समय म शवास ललया उसस चार गना समय शवास भीतर ही रोक रखो हाथ क अागठ और उागललयो स दोनो नथन बनद कर लो यह आभयातर कमभक हआ अत म हाथ का अागठा हटाकर दाय नथन स शवास धीर धीर छोड़ो यह रचक हआ शवास लन म (परक म)

लजतना समय लगाओ उसस दगना समय शवास छोड़न म (रचक म) लगाओ और चार गना समय कमभक म लगाओ परक कमभक रचक क समय का परमार इस परकार होगा 142

दाय नथन स शवास परा बाहर तनकाल दो खाली हो जाओ अगठ और उागललयो स दोनो नथन बनद कर लो यह हआ बदहकक मभक कफर दाय नथन स शवास लकर कमभक करक बााय नथन स बाहर तनकालो यह हआ एक परारायम

परक hellip कमभक hellip रचक hellip कमभक hellip परक hellip कमभक hellip रचक

इस समगर परकिया क दौरान पररव का मानलसक जप जारी रखो

एक खास महसव की बात तो यह ह कक शवास लन स पहल गदा क सथान को अनदर लसकोड़ लो यानी ऊपर खीच लो यह ह मलबनध

अब नालभ क सथान को भी अनदर लसकोड़ लो यह हआ उडडडयान बनध

तीसरी बात यह ह कक जब शवास परा भर लो तब ठोड़ी को गल क बीच म जो खडडा ह-कठकप उसम दबा दो इसको जालनधर बनध कहत ह

इस तरतरबध क साथ यदद परारायाम होगा तो वह परा लाभदायी लसदध होगा एव पराय चमसकारपरक पररराम ददखायगा

परक करक अथाकत शवास को अदर भरकर रोक लना इसको आभयातर कमभक कहत ह रचक

करक अथाकत शवास को परकतया बाहर तनकाल ददया गया हो शरीर म तरबलकल शवास न हो तब दोनो नथनो को बद करक शवास को बाहर ही रोक दना इसको बदहकक मभक कहत ह पहल आभयानतर कमभक और कफर बदहकक मभक करना चादहए

आभयानतर कमभक लजतना समय करो उसस आधा समय बदहकक मभक करना चादहए परारायाम का फल ह बदहकक मभक वह लजतना बढगा उतना ही तमहारा जीवन चमकगा तन मन म सफततक और ताजगी बढगी मनोराजय न होगा

इस तरतरबनधयकत परारायाम की परकिया म एक सहायक एव अतत आवशयक बात यह ह कक आाख की पलक न चगर आाख की पतली एकटक रह आाख खली रखन स शलकत बाहर बहकर कषीर होती ह और आाख बनद रखन स मनोराजय होता ह इसललए इस परारायम क समय आाख अदकधोनमीललत रह आधी खली आधी बनद वह अचधक लाभ करती ह

एकागरता का दसरा परयोग ह लजहवा को बीच म रखन का लजहवा ताल म न लग और नीच भी न छए बीच म लसथर रह मन उसम लगा रहगा और मनोराजय न होगा परत इसस भी अदकधोनमीललत नतर जयादा लाभ करत ह

परारायाम क समय भगवान या गर का रधयान भी एकागरता को बढान म अचधक फलदायी लसदध होता ह परारायाम क बाद तराटक की किया करन स भी एकागरता बढती ह चचलता कम होती ह मन शात होता ह

परारायाम करक आधा घणटा या एक घणटा रधयान करो तो वह बड़ा लाभदायक लसदध होगा

एकागरता बड़ा तप ह रातभर क ककए हए पाप सबह क परारायाम स नषटट होत ह साधक तनषटपाप हो जाता ह परसननता छलकन लगती ह

जप सवाभाववक होता रह यह अतत उततम ह जप क अथक म डब रहना मतर का जप करत समय उसक अथक की भावना रखना कभी तो जप करन क भी साकषी बन जाओ lsquoवारी परार जप करत ह म चतनय शात शाशवत हा rsquo खाना पीना सोना जगना सबक साकषी बन जाओ यह अभयास बढता रहगा तो कवली कमभक होगा तमन अगर कवली कमभक लसदध ककया हो और कोई तमहारी पजा कर तो उसकी भी मनोकामना परी होगी

परारायाम करत करत लसदचध होन पर मन शात हो जाता ह मन की शातत और इलनियो की तनशचलता होन पर तरबना ककय भी कमभक होन लगता ह परार अपन आप ही बाहर या अदर लसथर हो जाता ह और कलना का उपशम हो जाता ह यह कवल तरबना परयसन क कमभक हो जान पर कवली कमभक की लसथतत मानी गई ह कवली कमभक सदगर क परसयकष मागकदशकन म करना सरकषापरक ह

मन आसमा म लीन हो जान पर शलकत बढती ह कयोकक उसको परा ववशराम लमलता ह मनोराजय होन पर बाहम किया तो बनद होती ह लककन अदर का कियाकलाप रकता नही इसीस मन शरलमत होकर थक जाता ह

रधयान क परारलभक काल म चहर पर सौमयता आाखो म तज चचतत म परसननता सवर म माधयक आदद परगट होन लगत ह रधयान करनवाल को आकाश म शवत तरसरर (शवत कर) ददखत ह यह तरसरर बड़ होत जात ह जब ऐसा ददखन लग तब समझो कक रधयान म सचची परगतत हो रही ह

कवली कमभक लसदध करन का एक तरीका और भी ह रातरतर क समय चााद की तरफ दलषटट एकागर करक एकटक दखत रहो अथवा आकाश म लजतनी दर दलषटट जाती हो लसथर दलषटट करक अपलक नतर करक बठ रहो अडोल रहना लसर नीच झकाकर खराकट लना शर मत करना सजग रहकर एकागरता स चााद पर या आकाश म दर दर दलषटट को लसथर करो

जो योगसाधना नही करता वह अभागा ह योगी तो सककप स सलषटट बना दता ह और दसरो को भी ददखा सकता ह चाराकय बड़ कटनीततजञ थ उनका सककप बड़ा जोरदार था उनक राजा क दरबार म कमाचगरर नामक एक योगी आय उनहोन चनौती क उततर म कहा ldquoम सबको भगवान का दशकन करा सकता हा rdquo

राजा न कहा ldquoकराइए rdquo

उस योगी न अपन सककपबल स सलषटट बनाई और उसम ववराटरप भगवान का दशकन सब सभासदो को कराया वहाा चचतरलखा नामक राजनतककी थी उसन कहा ldquoमझ कोई दशकन नही हएrdquo

योगी ldquoत सतरी ह इसस तझ दशकन नही हए rdquo

तब चारकय न कहा ldquoमझ भी दशकन नही हए rdquo

वह नतककी भल नाचगान करती थी कफर भी वह एक परततभासपनन नारी थी उसका मनोबल दढ था चारकय भी बड़ सककपवान थ इसस इन दोनो पर योगी क सककप का परभाव नही पड़ा योगबल स अपन मन की ककपना दसरो को ददखाई जा सकती ह मनषटय क अलावा जड़ क ऊपर भी सककप का परभाव पड़ सकता ह खटट आम का पड़ हाफस आम ददखाई दन लग यह सककप स हो सकता ह

मनोबल बढाकर आसमा म बठ जाओ आप ही बरहम बन जाओ यही सककपबल की आखखरी उपललबध ह

तनिा तनिा मनोराजय कबजी सवपनदोष यह सब योग क ववघन ह उनको जीतन क ललए सककप काम दता ह योग का सबस बड़ा ववघन ह वारी मौन स योग की रकषा होती ह तनयम स और रचचपवकक ककया हआ योगसाधन सफलता दता ह तनषटकाम सवा भी बड़ा साधन

ह ककनत सतत बदहमकखता क कारर तनषटकाम सवा भी सकाम हो जाती ह दह म जब तक आसम लसदचध ह तब तक परक तनषटकाम होना असभव ह

हम अभी गरओ का कजाक चढा रह ह उनक वचनो को सनकर अगर उन पर अमल नही करत तो उनका समय बरबाद करना ह यह कजाक चकाना हमार ललए भारी ह hellip लककन ससारी सठ क कजकदार होन क बजाय सतो क कजकदार होना अचछा ह और उनक कजकदार होन क बजाय साकषासकार करना शरषटठ ह उपदश सनकर मनन तनददरधयासन कर तो हम उस कज को चकान क लायक होत ह

जञानयोग

1) लजसको जीव और जगत लमथया लगता ह उसक ललए जञानमागक ह लजसको ससय लगता ह उसक ललए योगमागक और भलकतमागक ह

2) लजसको अतकरर म राग दवष ह वह चाह आसमा अनासमा का वववक कर चाह चचतत का तनरोध कर उसको जञानतनषटठा नही होती ह

3) सथल कामनाओ का नाश एकातसवन स होता ह सवपन म जो सकषम कामनाएा ददखती ह उनका नाश भगवदरधयान स और ससवासना क अभयास स होता ह

4) ववकषप उसपनन करनवाल कमक का सयाग सनयास ह गरए वसतर पहननमातर स कोई सनयासी नही होता गागी वयाध वलशषटठजी इसयादद न सनयासी क वसतर धारर नही ककय थ कफर भी व जञानी थ

5) वयसथान दशा म भगवद भजन क आनद म जो तनमगन रहता ह उसको दवत का सताप नही लगता

6) पराभलकत का अथक ह दवतदलषटटरदहत भावना

7) लजस धतत म स चचतत का तनरोध होता हो और एकागर अवसथा आती हो उस सालववक धतत कहत ह

8) सालववक सनयास वरागयपवकक ललया जाता ह राजलसक सनयास कायाकलश और भय स ललया जाता ह तथा तामलसक सनयास मढता स ललया जाता ह

9) जस दीपक जलान क ललए तल बतती आवशयक ह वस ही lsquoतततविमसrsquo महावाकय स उसपनन होनवाली बरहमाकार ववतत क ललए शरवर मनन रधयान शम दम आदद आवशयक ह एक बार वह बरहमाकार ववतत उसपनन हो जाए तो वह अजञान का नाश कर दती ह बरहमाकार ववतत अपन ववषय को परकालशत करन क ललए ककसी कमक या अभयास की अपकषा नही करती एक बार घट का जञान हो जाए तो उसको दढ करन क ललए घट क आकार की पनराववतत या कमक की आवशयकता नही ह

10) मगजल दखन का आनद नषटट हो जाए तो तववजञानी परष उसक ललए शोक नही करत जगत का कोई भाव तववजञ क चचतत पर परभाव नही रखता

11) आसमा तनसय होन स वह घट की तरह या कीट भरमर की तरह उसपनन नही होता नदी को सागर परापत होती ह ऐस आसमा परापत नही होती कयोकक वह सवकगत ह दध म ववकार होकर दही बनता ह वस आसमा म ववकार नही होता कयोकक वह सथार ह सवरक की

शदचध की तरह आसमा कोई ससकार की अपकषा नही करता कयोकक वह अचल ह उसपवतत परालपत ववकतत और ससकतत य चारो धमक कमक क ह

12) जस घटाकाश महाकाश क रप म तनसय ह वस आसमा परमासमा क रप म तनसय ह कठ म मखर तनसय परापत ह कफर भी ववसमरर हो जान स वह अपरापत सा लगता ह समरर आ जान मातर स वह मखर परापत हो जाता ह उसी परकार अजञान का आवरर भग होनमातर स आसमा की परालपत हो जाती ह वह तनसय परापत ही था ऐसा जञान हो जाता ह

13) अजञान दशा उपाचध को उसपनन करती ह और जञानदशा उपाचध का गरास करती ह

14) अरधयसत क ववकारी धमक स अचधषटठान म ववकार पदा नही होता मगजल स मरभलम कभी गीली नही होती

15) आसमा का सख अपनी बदचध का परसाद लमलन स बदचध तनमकल होन स रजो तमोगर क मल स रदहत होन स उसपनन होता ह आसमा का सख ववषयो क सग स उसपनन नही होता और तनिा या आलसय स नही लमलता

16) लजसका मन सवक भतो म समान बरहमभाव स लसथत और तनशचल हआ ह उसन इस जनम को जीत ललया ह

17) बरहमजञानी सवक बरहमरप दखत हए वयसथान अवसथा म भी बरहम म लसथत रहत ह

18) भगवान कहत ह कक lsquoसतत मरा भजन करनवाल को म बदचधयोग दता हाrsquo यहाा बदचधयोग का अथक ह जञानतनषटठा ऐसी तनषटठा जब आती ह तब जस नददयाा अपना नाम रप छोड़कर सागर म परवश करती ह वस ही भकत भगवससवरप म परवश करत ह

19) अलगन का सफललग अलगनरप ही ह अलगन का अश नही ह उसी परकार जीव भी बरहम ही ह बरहम का अश नही ह तनरश सवरप म अश अशी की ककपना बनती नही अश भाव कलकपत उपाचध क सवीकार करन क कारर उपचार स बोला जाता ह

20) दह क उपादानभत अववधा का नाश होन क बाद भी कछ काल तक जञानी को दहादद का भान रहता ह इस जीवनमकतावसथा को रधयान म लकर भगवान न कहा ह कक जञानी और तववदशी परष लजजञासओ को जञान दत ह

21) सोय हए आदमी को उसको नाम लकर कोई पकारता ह तो वह जाग जाता ह उसको जगान क ललए अनय ककसी किया की आवशयकता नही ह उसी परकार अजञान म सोया हआ जीव अपन तनज आसमसवरप का गरगान सनकर जाग जाता ह

22) आसम परालपत क राही क ललए महापरषो की सवा असयत ककयारकारी ह तरबना सवा क बरहमववधा लमलती या फलीभत नही होती बरहमववधा क ठहराव क ललए शदध अत करर की आवशयकता ह सवा स अत करर शदध होता ह नमरता आदद सदगर आत ह शाखाओ का झकना फलयकत होन का चचहन ह इसी तरह नमर तथा शदध अत करर म जञान का परादभाकव होता ह यही बरहमववधा की पहचान ह

23) जप परक भावसदहत करना चादहए हरदय म सत चचत आनदसवरप ववभ की टकार होनी चादहए इस समय अपन कानो को भी अपन शवासो क चलन की आवाज न आए लकषय हमशा यह रह सोS हि म वही हा इस समरर स अभय हो जाना चादहए

24) तनरीकषर करो कक ककन ककन काररो स उननतत नही हो रही ह उनह दर करो बार बार उनही दोषो की पनराववतत करना उचचत नही अगर दखभाल नही करोग तो उमर या ही बीत जायगी परत बननवाली बात नही बनगी लजतना चलना चादहए उतना चलना होगा लजतना चल सकत हो उतना नही आलशक नीद म गरसत नही होत वयाकल हरदय स तड़पत हए परततकषा करत ह सदा जागत रहत ह सदा ही सावधान रहा करत ह

25) आप लोगो की परार सगली उसी तरह चलनी चादहए जस तल की अटट धारा गरमतररपी छड़ी को हमशा अपन साथ रखो ताकक जब भी जररत पड़ ससार क काम िोधादद कततो को उसस मारकर भगा सको

26) मानव आत हए भी रोता ह और जात हए भी रोता ह जो वकत रोन का नही तब भी रोता ह कवल एक परक सदगर म ही ऐसा सामथयक ह जो इस जनम मरर क मल कारर

अजञान को काटकर मनषटय को रोन स बचा सकत ह कवल गर ही आवागमन क चककर स काल की महान ठोकरो स बचाकर लशषटय को ससार क दखो स ऊपर उठा दत ह लशषटय क चचकलान पर भी व रधयान नही दत गर क बराबर दहतषी ससार म कोई भी नही हो सकता

27) तरतरलशखी बराहमर क पछन पर आददसय न कहा ldquoकभ क समान दह म भर हए वाय को रोकन स अथाकत कमभक करन स सब नाडड़याा वाय स भर जाती ह ऐसा करन स दश वाय चलन लगत ह हरदयकमल का ववकास होता ह वहाा पापरदहत वासदव परमासमा को दख सबह दोपहर शाम और आधी रात को चार बार अससी अससी कमभक कर तो अनपम लाभ होता ह मातर एक ददन करन स ही साधक सब पापो स छट जाता ह इस परकार परारायामपरायर मनषटय तीन साल म लसदध योगी बन जाता ह वाय को जीतनवाला लजतलनिय थोड़ा भोजन करनवाला थोड़ा सोनवाला तजसवी और बलवान हो जाता ह तथा अकाल मसय का उकलघन करक दीधक आय को परापत होता ह

परारायाम तीन कोदट क होत ह उततम मरधयम और अधम पसीना उसपनन करनवाला परारायाम अधम ह लजस परारायाम म शरीर काापता ह वह मरधयम ह लजसम शरीर उठ जाता ह वह परारायाम उततम कहा गया ह

अधम परारायाम म वयाचध और पापो का नाश होता ह मरधयम म पाप रोग और महा वयाचध का नाश होता ह उततम म मल मतर अकप हो जात ह भोजन थोड़ा होता ह इलनियाा और बदचध तीवर हो जाती ह वह योगी तीनो काल को जाननवाला हो जाता ह

रचक और परक को छोड़कर जो कमभक ही करता ह उसको तीनो कालो म कछ भी दलकभ नही ह

परारायाम का अभयास करनवाला योगी नालभकद म नालसका क अगर भाग म और पर क अागठ म सदा अथवा सरधयाकाल म परार को धारर कर तो वह योगी सब रोगो स मकत होकर अशाततरदहत जीवन जीता ह

नालभकद म परार धारर करन स ककषकष क रोग नषटट होत ह नासा क अगर भाग म परार धारर करन स दीधाकय होता ह और दह हकका होता ह बरहममहतक म वाय को लजहा स खीचकर तीन मास तक वपय तो महान वालकसदचध होती ह छ मास क अभयास स महा रोग का नाश होता ह

रोगादद स दवषत लजस लजस अग म वाय धारर ककया जाता ह वह अग रोग स मकत हो जाता

हrdquo (तरतरलशखख बराहमर उपतनषद)

28) परार सब परकार क सामथयक का अचधषटठान होन स परारायाम लसदध होन पर अनतशलकत भडार क दवार खल जात ह अगर कोई साधक परारतवव का जञान परापत कर उस पर अपना अचधकार परापत कर ल तो जगत म ऐसी कोई शलकत नही ह लजस वह अपन अचधकार म न कर ल वह अपनी इचछानसार सयक और चनि को भी गद की तरह उनकी ककषा म स ववचललत कर सकता ह अर स लकर सयक तक जगत की तमाम चीजो को अपनी मजी अनसार सचाललत कर सकता ह योगाभयास परक होन पर योगी समसत ववशव पर अपना परभसव सथावपत कर सकता ह उसक सककप बल स मत परारी लजनद हो सकत ह लजनद उसकी आजञानसार कायक करन को बारधय हो जात ह दवता और वपतलोकवासी जीवासमा उसक हकम को पात ही हाथ जोड़कर उसक आग खड़ हो जात ह तमाम ररदचध लसदचधयाा उसकी दासी बन जाती ह परकतत की समगर शलकतयो का वह सवामी बन जाता ह कयोकक उस योगी न परारायाम लसदध करक समलषटट परार को अपन काब म ककया ह

जो परततभावान यगपरवतकक अदभत शलकत का सचार कर मानव समाज को ऊा ची लसथतत पर ल जात ह व अपन परार म ऐस उचच और सकषम आनदोलन उसपनन कर सकत ह कक अनय क मन पर उनका परगाढ परभाव होता ह हजारो मनषटयो का ददल उनकी और आकवषकत होता ह लाखो करोड़ो लोग उनक उपदश गरहर कर लत ह ववशव म जो भी महापरष हो गय ह उनहोन ककसी भी रीतत स परारशलकत को तनयतरतरत करक अलौककक शलकत परापत की होती ह ककसी भी कषतर म समथक वयलकत का परभाव परार क सयम स ही उसपनन हआ ह

29) यदद पवकत क समान अनक योजन ववसतारवाल पाप हो तो भी रधयानयोग स छदन हो जात ह इसक लसवाय दसर ककसी भी उपाय स कभी भी उनका छदन नही होता

(रधयान तरबनद उपतनषद)

जञानगोटठी

परo सयाग वरागय और उपरतत म कया भद ह

उo ववषय को सामन न आन दना सयाग ह ववषय सामन रहत हए उसम परम न होना वरागय ह वसत सामन रहत हए भी उसम न तो भोगबदचध हो और न दवष हो यह उपरतत ह

परo वरागय ककतन परकार का होता ह

उo सामानयतया गर- भद स वरागय तीन परकार क ह

1) जो वरागय ससार स गलातन और भगवान स परम होन पर होता ह वह सालववक ह

2) जो परलसदचध या परततषटठा की दलषटट स ववरकत होता ह वह राजस ह

3) जो सबको नीची दलषटट स दखता ह तथा अपनको बड़ा समझता ह वह तामस वरागय ह

योगदशकन म पर और अपर भद स दो परकार क वरागय बतलाय गय ह इनम अपर वरागय चार परकार क ह

1) यतमान लजसम ववषयो को छोड़न का परयसन तो रहता ह ककनत छोड़ नही पाता यह यतमान वरागय ह

2) वयततरकी शबदादद ववषयो म स कछ का राग तो हट जाय ककनत कछ का न हट तब वयततरकी वरागय समझना चादहए

3) एकलनिय मन भी एक इलनिय ह जब इलनियो क ववषयो का आकषकर तो न रह ककनत मन म उनका चचनतन हो तब एकलनिय वरागय होता ह इस अवसथा म परततजञा क बल स ही मन और इलनियो का तनगरह होता ह

4) वशीकार वशीकार वरागय होन पर मन और इलनियाा अपन अधीन हो जाती ह तथा अनक परकार क चमसकार भी होन लगत ह यहाा तक तो lsquoअपर वरागयrsquo हआ

जब गरो का कोई आकषकर नही रहता सवकजञता और चमसकारो स भी वरागय होकर सवरप म लसथतत रहती ह तब lsquoपर वरागयrsquo होता ह अथवा एकागरता स जो सख होता ह उसको भी सयाग दना गरातीत हो जाना ही lsquoपर वरागयrsquo ह

वरागय क दो भद ह दह स वरागय और गह स वरागय

शरीर स वरागय होना परथम कोदट का वरागय ह तथा अहता ममता स ऊपर उठ जाना दसर परकार का वरागय ह

लोगो को घर स तो वरागय हो जाता ह परत शरीर स वरागय होना कदठन ह इसस भी कदठन ह शरीर का असयनत अभाव अनभव करना यह तो सदगर की ववशष कपा स ककसी ककसीको ही होता ह

बालक जनम तो वह पढगा या नही वववाह करगा या नही नौकरी धधा करगा या नही इसम शका ह परत वह मरगा या नही इसम कोई शका ह हम भी इनही बालको म ह

हम धनवान होग या नही होग यशसवी होग या नही चनाव जीतग या नही इसम शका हो सकती ह परत भया हम मरग या नही इसम कोई शका ह

ववमान उड़न का समय तनलशचत होता ह बस चलन का समय तनलशचत होता ह गाड़ी छटन का समय तनलशचत होता ह परनत इस जीवन की गाड़ी क छटन का कोई तनलशचत समय ह

हम कहाा रहत ह मसयलोक म यहाा जो भी आता ह वह मरनवाला आता ह मरनवालो क साथ का समबनध कब तक hellip

मसय अतनवायक ह तरबककल तनलशचत ह इसक ललए आप कछ तयारी करत ह या नही करत ह तो दढतापवकक कर और नही करत ह तो आज स ही शर कर द

आसम साकषासकार म ईशवर साकषासकार म तीन इचछाएा हम ईशवर स अलग रखती ह हम यदद

य तीन इचछाएा न कर तो तरत अलौककक सामराजय का सवर हम सनाई पड़गा व तीन इचछाएा ह 1) जीन की इचछा 2) करन की इचछा 3) जानन की इचछा

जीन की इचछा न कर तो भी यह दह तो लजयगी ही कछ करन की इचछा न कर तो भी सहज परारबधवग स कमक हो ही जायगा जानन की इचछा न कर तो लजसस सब जाना जाता ह ऐसा अपना सवभाव परगट होन लगगा

य तीन इचछाएा ईशवर साकषासकार म बाधक बनती ह भया साहस करो लजनहोन इचछा छोड़ी ह व धनय हो गय ह अपन को दबकल मानना छोड़ दो आपम ईशवरीय सवर ईशवरीय आनद भरपर ह भया आप सवय ही वह ह कवल इन तीन बातो स सावधान रहो

ईशवर क मागक पर चलनवाल सौभागयशाली भकतो को य छ बात जीवन म अपना लनी चादहए

1) ईशवर को अपना मानो lsquoईशवर मरा ह म ईशवर का हाrsquo

2) जप रधयान पजा सवा खब परम स करो

3) जप रधयान भजन साधना को लजतना हो सक उतना गपत रखो

4) जीवन को ऐसा बनाओ कक लोगो म आपकी मााग हआ कर उनह आपकी अनपलसथतत चभ कायक म कशलता और चतराई बढाय परसयक किया कलाप बोल चाल सचार रप स कर कम समय म कम खचक म सनदर कायक कर अपनी आजीववका क ललए जीवनतनवाकह क ललए जो कायक कर उस कशलतापवकक कर रसपवकक कर इसस शलकतयो का ववकास होगा कफर वह कायक भल ही नौकरी हो कशलतापवकक करन स कोई ववशष बाहम लाभ न होता हो कफर भी इसस आपकी योगयता बढगी यही आपकी पाजी बन जाएगी नौकरी चली जाए तो भी यह पाजी आपस कोई छीन नही सकता नौकरी भी इस परकार करो कक सवामी परसनन हो जाय यह सब रपयो पसो क ललए मान बड़ाई क ललए वाहवाही क ललए नही परत अपन अत करर को तनमकल करन क ललए कर लजसस परमासमा क ललए आपका परम बढ ईशवरानराग बढान क

ललए ही परम स सवा कर उससाह स काम धधा कर

5) वयलकतगत खचक कम कर जीवन म सतोष लाएा

6) सदव शरषटठ कायक म लग रह समय बहत ही मकयवान ह समय क बराबर मकयवान अनय कोई वसत नही ह समय दन स सब लमलता ह

परत सब कछ दन स भी समय नही लमलता धन ततजोरी म सगरहीत कर सकत ह परत समय ततजोरी म नही सजोया जा सकता ऐस अमकय समय को शरषटठ कायो म लगाकर साथकक कर सबस शरषटठ कायक ह ससपरषो का सग सससग

भागवत म आता ह

ldquoभगवान क परमी परष का तनमषमातर का सग उततम ह इसक साथ सवगक की या मलकत की समानता नही की जा सकतीrdquo (11813)

तलसीदासजी कहत ह

तात सवगय अपवगय सख ररए तला एक अग

त ल न ताहह सकल मिमल जो सख लव सतसग

समय को उततम कायक म लगाएा तनरनतर सावधान रहन स ही समय साथकक होगा नही तो यह तनरथकक बीत जायगा लजनहोन समय का आदर ककया ह व शरषटठ परष बन ह अचछ महासमा बन ह ससार क भोगो स ववमख होकर भगवचचररो म परमासम तवव जानन म उनहोन समय लगाया ह

दतत और मसद का सवाद

[ अनभवपरकाश ]

एक राजा कवपल मतन का दशकन सससग ककया करता था एक बार कवपल क आशरम पर राजा क पहाचन क उपरानत ववचरत हए दतत सकनद लोमश तथा कछ लसदध भी पहाच वहाा इन सतजनो क बीच जञानगोषटठी होन लगी एक कमार लसदध बोला ldquoजब म योग करता हा तब अपन सवरप को दखता हाrdquo

दतत ldquoजब त सवरप का दखनवाला हआ तब सवरप तझस लभनन हआ योग म त जो कछ दखता ह सो दशय को ही दखता ह इसस तरा योग दशय और त दषटटा ह अरधयासम म त अभी बालक ह सससग कर लजसस तरी बदचध तनमकल होवrdquo

किार ldquoठीक कहा आपन म बालक हा कयोकक मन वारी शरीर म सवक लीला करता हआ भी म असग चतनय हषक शोक को नही परापत होता इसललए बालक हा परत योग क बल स यदद म चाहा तो इस शरीर को सयाग कर अनय शरीर म परवश कर ला ककसीको शाप या वरदान द सकता हा आय को नयन अचधक कर सकता हा इस परकार योग म सब सामथयक आता ह जञान स कया परालपत होती ह rdquo

दतत ldquoअर नादान सभा म यह बात कहत हए तझको सकोच नही होता योगी एक शरीर को सयागकर अनय शरीर को गरहर करता ह और अनक परकार क कषटट पाता ह जञानी इसी शरीर म लसथत हआ सखपवकक बरहमा स लकर चीटी पयात को अपना आपा जानकर परकता म परततलषटठत होता ह वह एक काल म ही सवक का भोकता होता ह सवक जगत पर आजञा चलानवाला चतनयसवरप होता ह सवकरप भी आप होता ह और सवक स अतीत भी आप होता ह वह सवकशलकतमान होता ह और सवक अशलकतरप भी आप होता ह सवक वयवहार करता हआ भी सवय को अकतताक जानता ह

समयक अपरोकष आसमबोध परापत जञानी लजस अवसथा को पाता ह उस अवसथा को वरदान शाप आदद सामथयक स सपनन योगी सवपन म भी नही जानता rdquo

किार ldquoयोग क बल स चाहा तो आकाश म उड़ सकता हाrdquo

दतत ldquoपकषी आकाश म उड़त कफरत ह इसस तमहारी कया लसदचध हrdquo

किार ldquoयोगी एक एक शवास म अमतपान करता ह lsquoसोSहrsquo जाप करता ह सख पाता हrdquo

दतत ldquoह बालक अपन सखसवरप आसमा स लभनन योग आदद स सख चाहता ह गड़ को भरातत होव तो अपन स पथक चरकाददको स मधरता लन जाय चचतत की एकागरतारपी योग स त सवय को सखी मानता ह और योग क तरबना दखी मानता ह जञानी योग अयोग दोनो को अपन दशय मानता ह योग अयोग सब मन क खयाल ह योगरप मन क खयाल स म चतनय पहल स ही सखरप लसदध हा जस अपन शरीर की परालपत क ललए कोई योग नही करता कयोकक योग करन स पहल ही शरीर ह उसी परकार सख क ललए मझ योग कयो करना पड़ म सवय सखसवरप हाrdquo

किार ldquoयोग का अथक ह जड़ना यह जो सनकाददक बरहमाददक सवरप म लीन होत ह सो योग स सवरप को परापत होत हrdquo

दतत ldquoलजस सवरप म बरहमाददक लीन होत ह उस सवरप को जञानी अपना आसमा जानता ह ह लसदध लमथया मत कहो जञान और योग का कया सयोग ह योग साधनारप ह और जञान उसका फलरप ह जञान म लमलना तरबछड़ना दोनो नही योग कतताक क अधीन ह और कियारप हrdquo

कषपल ldquoआसमा क समयक अपरोकष जञानरपी योग सवक पदाथो का जानना रप योग हो जाता ह

कवल कियारप योग स सवक पदाथो का जानना नही होता कयोकक अचधषटठान क जञान स ही सवक कलकपत पदाथो का जञान होता ह

आसम अचधषटठान म योग खद कलकपत ह कलकपत क जञान म अनय कलकपत का जञान होता ह सवपनपदाथक क जञान स अनय सवपनपदाथो का जञान नही परत सवपनदषटटा क जञान स ही सवक सवपनपदाथो का जञान होता ह

अत अपनको इस ससाररपी सवपन क अचधषटठानरप सवपनदषटटा जानोrdquo

लसदधो न कहा ldquoतम कौन होrdquo

दतत ldquoतमहार रधयान अरधयान का तमहारी लसदचध अलसदचध का म दषटटा हाrdquo

राजा ldquoह दतत ऐस अपन सवरप को पाना चाह तो कस पावrdquo

दतत ldquoपरथम तनषटकाम कमक स अत करर की शदचध करो कफर सगर या तनगकर उपासनादद करक अत करर की चचलता दर करो वरागय आदद साधनो स सपनन होकर शासतरोकत रीतत स सदगर क शरर जाओ उनक उपदशामत स अपन आसमा को बरहमरप और बरहम को अपना आसमारप जानो समयक अपरोकष आसमजञान को परापत करो

ह राजन अपन सवरप को पान म दहालभमान ही आवरर ह जस सयक क दशकन म बादल ही आवरर ह जागरत सवपन सषलपत म भत भववषटय वततकमान काल म मन वारीसदहत लजतना परपच ह वह तझ चतनय का दशय ह तम उसक दषटटा हो उस परपच क परकाशक चचदघन दव हो rdquo

अपन दवसव म जागो कब तक शरीर मन और अत करर स समबनध जोड़ रखोग एक ही मन शरीर अत करर को अपना कब तक मान रहोअग अनत अनत अत करर अनत अनत शरीर लजस चचदाननद म परतततरबलमबत हो रह ह वह लशवसवरप तम हो फलो म सगनध तमही हो वकषो म रस तमही हो पकषकषयो म गीत तमही हो सयक और चााद म चमक तमहारी ह अपन ldquoसवाकSहमrdquo सवरप को पहचानकर खली आाख समाचधसथ हो जाओ दर न करो काल कराल लसर पर ह

ऐ इनसान अभी तम चाहो तो सयक ढलन स पहल अपन जीवनतवव को जान सकत हो दहममत करो hellip दहममत करो hellip

ॐ ॐ ॐ

बार बार इस पसतक को पढकर जञान वरागय बढात रहना जब तक आसम साकषासकार न हो तब तक आदरसदहत इस पसतक को ववचारत रहना |

धचनतन करणका

अशोभन सतरी आदद म शोभनबदचध अससय परपच म ससय का अरधयास ससय आसमा म अससय का अरधयास इसयादद ववपरीत भावना स सलषटट का यथाथक जञान परततबदध हो जाता ह

अलगन म राग दवष नही ह उसक पास जो जाता ह उसकी ठड दर होती ह अनय की नही इसी परकार जो ईशवर क शरर जाता ह उसका बनधन कटता ह अनय का नही लजसक चचतत म राग दवष ह उसम ईशवर की ववशषता अलभवयकत नही होती

लजसको वरागय न हो शरदधा न हो वह यदद कमक का सयाग कर तो ववकषपरदहत नही हो सकता जस परमादी बदहमकख पश समान लोग लड़ाई झगड़ म राजी रहत ह वस सनयासी भी कमकदोषवाल दख जात ह इसललए तरबना वरागय क सनयास स तनषटकाम कमक का आचरर शरषटठ ह तरबना शरदधा और परमासमतवव चचनतन क ललया हआ सनयास बरहमपद की परालपत नही कराता

मरभलम का जल धीर धीर नही सखता ह उसी परकार माया भी धीर धीर नषटट नही होती मरभलम क जल को lsquoमरभलम का जलrsquo जानन मातर स उसका अभाव हो जाता ह उसी परकार माया का सवरप जानन मातर स माया का अभाव हो जाता ह

ससार की सब चीज बदल रही ह भतकाल की ओर भाग रही ह और आप उनह वततकमान म दटकाय रखना चाहत ह यही जीवन क दखो की मल गरचथ ह आप चतन होन पर भी जड़ वसत को छोड़न स इनकार करत ह दषटटा होन पर भी दशय म उलझ हए ह

जब आप चाहत ह कक lsquoहम अमक वसत अवशय लमल अथवा हमार पास जो ह वह कभी तरबगड़ नही तभी हम सखी होगrsquo तो आप अपन सवरप चतन को कही न कही बााध रखना चाहत ह

साधना क मागक म परम लकषय की परालपत म साधक क ललए दहासमबदचध दह म आसलकत एक बड़ी गरचथ ह इस गरचथ को काट तरबना मोहकललल को पार ककय तरबना कोई साधक लसदध नही बन सकता सदगर क तरबना यह गरचथ काटन म साधक समथक नही हो सकता

वदानत शासतर यह नही कहता कक lsquoअपन आपको जानो rsquo अपन आपको सभी जानत ह कोई अपन को तनधकन जानकर धनी होन का परयसन करता ह कोई अपनको रोगी जानकर तनरोग होन को इचछक ह कोई अपनको नाटा जानकर लमबा होन क ललए कसरत करता ह तो कोई अपनको काला जानकर गोरा होन क ललए लभनन लभनन नसख आजमाता ह

नही वदानत यह नही कहता वह तो कहता ह lsquoअपन आपको बरहम जानो rsquo जीवन म अनथक का मल सामानय अजञान नही अवपत अपनी आसमा क बरहमसव का अजञान ह दह और सासाररक वयवहार क जञान अजञान स कोई खास लाभ हातन नही ह परत अपन बरहमसव क अजञान स घोर हातन ह और उसक जञान स परम लाभ ह

पराथयना

ह मर परभ hellip

तम दया करना मरा मन hellip मरा चचतत तमम ही लगा रह

अब hellip म कब तक ससारी बोझो को ढोता कफरागा hellip मरा मन अब तमहारी यातरा क ललए ऊरधवकगामी हो जाय hellip ऐसा सअवसर परापत करा दो मर सवामी hellip

ह मर अतयाकमी अब मरी ओर जरा कपादलषटट करो hellip बरसती हई आपकी अमतवषाक म म भी परा भीग जाऊा hellip मरा मन मयर अब एक आसमदव क लसवाय ककसीक परतत टहाकार न कर

ह परभ हम ववकारो स मोह ममता स साचथयो स बचाओ hellipअपन आपम जगाओ

ह मर माललक अब hellip कब तक hellip म भटकता रहागा मरी सारी उमररया तरबती जा रही ह hellip

कछ तो रहमत करो कक अब hellip आपक चररो का अनरागी होकर म आसमाननद क महासागर म गोता लगाऊा

ॐ शातत ॐ आनद

सोऽहम सोऽहम सोऽहम

आखखर यह सब कब तक hellip मरा जीवन परमासमा की परालपत क ललए ह यह कयो भल जाता हा

मझ hellip अब hellip आपक ललए ही पयास रह परभ hellip

अब परभ कपा करौ एहह भातत

सब तषज भजन करौ हदन राती ||

शरी गरगीता

अनकरम

परासताविक

विवनयोग ndash नयासावि

पहला अधयाय

िसरा अधयाय

तीसरा अधयाय

परासताविक

भगिान शकर और ििी पािवती क सिाि म परकट हई यह शरीगरगीता समगर सकनदपराण का वनषकरव ह इसक हर एक शलोक म सत जी का सचोट अनभि वयकत होता ह जसः

मखसतमभकर चव गणाना च वववरधनम

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम

इस शरी गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करन िाला ह गणो की िदधि करन िाला ह िषकतो का नाश करन िाला और सतकमव म वसदधि िन िाला ह

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधिषोडशीम

ह वपरय शरीगरगीता का एक एक अकषर मतरराज ह अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही

अकालमतयरतरी च सवध सकटनावशनी

यकषराकषसभतावद चोरवयाघरववघावतनी

शरीगरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और शर आवि का घात करती ह

शवचभता जञानवतो गरगीता जपदधि य

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत

जो पवितर जञानिान परर इस शरीगरगीता का जप-पाठ करत ह उनक िशवन और सपशव स पनजवनम नही होता

इस शरीगरगीता क शलोक भिरोग-वनिारण क वलए अमोघ औरवध ह साधको क वलए परम अमत ह सवगव का अमत पीन स पणय कषीण होत ह जबवक इस गीता का अमत पीन स पाप नषट होकर परम शावत वमलती ह सवसवरप का भान होता ह

तलसीिास जी न ठीक ही कहा हः

गर विन भववनवर तरवर न कोई

जो विरवच सकर सम रोई

आतमिि को जानन क वलए यह शरीगरगीता आपक करकमलो म रखत हए

ॐॐॐ

परम शावत

विवनयोग ndash नयासावि

ॐ असय शरीगरगीतासतोतरमालामतरसय भगिान सिावशिः ऋवर विराट छनदः शरी गरपरमातमा ििता ह बीजम सः शदधकतः सोऽहम कीलकम शरीगरकपापरसािवसदधयरथ जप विवनयोगः

अरथ करनयासः

ॐ ह सा सयावतमन अगषठाभा नमः

ॐ ह सी सोमातमन तजवनीभा नमः

ॐ ह स वनरजनातमन मधयमाभा नमः

ॐ ह स वनराभासातमन अनावमकाभा नमः

ॐ ह स अतनसकषमातमन कवनवषठकाभा नमः

ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः

इवत करनयासः

अरथ हियाविनयासः

ॐ ह सा सयावतमन हियाय नमः

ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा

ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट

ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम

ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट

ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट

इवत हियाविनयासः

अरथ धयानम

नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम

वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1

िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम

वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2

िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम

ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3

तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम

ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4

तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः

पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5

इवत धयानम

मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा

ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरििाय नमः पवरथवयापक गध समपवयावम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः आकाशातमक पषप समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः िापवातमक धप आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः तजातमक िीप िशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः अपातमक निदयक वनिियावम स सिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः सिावतमकान सिोपचारान समपवयावम

इवत मानसपजा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| अथ िथमोऽधयायाः||

अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |

समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||

पहला अधयाय

जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी िखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसकार हो | (1)

ऋषयाः ऊचाः

सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |

गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||

ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िि-ििागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप हम सनाओ | (2)

यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |

यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||

यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |

तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||

वजसको सनन मातर स मनषय िःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)

गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आपकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवपणी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शरिा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर कलपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मविर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ हए शक आवि मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततव का बोध ित हए भगिान शकर को बार-बार नमसकार करत िखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर पछा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप ििो क िि शरषठो क शरषठ ह जगिगरो आपको परणाम हो | िि िानि और मानि सब आपको सिा भदधकतपिवक परणाम करत ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवि क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उततम गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती ििी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महािि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस परकार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महािि जी न कहा ह ििी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत िखकर िह रहसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह ििी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा यह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | िोनो म जो अनतर मानता ह िह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िि शासतर पराण इवतहास आवि मतर यतर मोहन उचचाटन आवि विदया शि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तप वरत तीरथव यजञ िान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका विशलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरिि क पािसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरिि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरिि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरिि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरिि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरिि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरिि का पािोिक गगाजी ह | गरिि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरिि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरिि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरिि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तिाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरिि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सिा वचतन करती ह उसी परकार सिा गरिि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावि) जावत कीवतव (पिपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरिि का

ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरिि क मख म रहती ह और िह गरिि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म िि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह | (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको िर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवि गणो का परकाशक ह और िसरा अकषर र कार माया की भरादधनत स मदधकत िनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और ििानत क अरथव क परिकता ह | इसवलय शरी गरिि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमिमवि) समपिारप ह | अतः शरी गरिि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरिि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरिि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाि विगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव नही विखाई िता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव विखाया उन शरी गरिि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरिि ही एकमातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरििजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरिि क चरणामत क एक वबनि क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवि वशिजी नारज़ हो जाय तो गरिि बचानिाल ह वकनत यवि गरिि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरिि को सपरापत करक सिा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य िोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो ित ह उनको गर कहत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (िो नतर िाल) साकषात वशि ह िो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

िि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरसिा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िविक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवि गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और ििता आवि भी मकत नही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानिसवरप ह परम सख िनिाल ह जो किल जञानसवरप ह (सख िःख शीत-उषण आवि) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस आवि महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो क साकषी ह भािना स पर ह

सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सिगरिि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरिि क दवारा उपविषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवनत िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए | (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयािा कहन स का लाभ शरी गरिि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो स भी वचतत की विशरावत िलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय िया भय सकोच वननदा परवतषठा

कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनि िनिाल को सिगर कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करता ह िह (मनषय) जब तक सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह ििी िह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरिि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाि भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरिि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरिि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरिि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरिि को त कहकर जो बोलता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सिा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरिि क सारथ अदवत की भािना किावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरिि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपि की परदधपत होती ह इसक विपरीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवि गर का ताग कर ि तो मत क समय उस महान विकषप अिशय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह ििी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपिश नही िना चावहए | इस परकार उपिश िनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | िीकषा िना वयाखयान करना

परभतव विखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए (गरिि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए | रात और विन गरिि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म िास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरिि न नही विया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरिि क विय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पािका आसन वबसतर आवि जो कछ भी गरिि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरिि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना चावहए |

गरिि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवि धारण नही करन चावहए | (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरिि की वननदा करनिाल को िखकर यवि उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा िना चावहए | यवि िह ठहर तो सवय उस सरथान का पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और ििताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरिि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरिि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच सनयासी ह

अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध ित हए जस एक िीपक िसर िीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरिि की कपा स अपन भीतर ही आतमानि परापत करक समता और मदधकत क मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा िपवण म िपवण विख सकता ह उसी परकार आतमा म जो वचत और आनिमय विखाई िता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हिय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भाि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवि नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचिाननद हा

म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी अगमय

अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबद जानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावि म गनधतव (अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवि आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सिा गरिि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म रहता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरिि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही िि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

ििो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरिि क कपापरसाि क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरिि क शरी चरणो म जो ििानतवनविवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषणि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरिती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरिि क दवारा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरिि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आिशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जाती ह और उसी कषण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरिि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बरहमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरिि का) िशवन पाकर उनक कपापरसाि स सिव परकार की आसदधकत छोड़कर एकाकी

वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनिमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जीि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह ििी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िि पढ़ ल िि क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवि अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरिि की िीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरिि की सपरादधपत रपी परम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गरिि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और विखािट करनिाल गर का ताग कर िना चावहए कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह िसरो को का शावत ि सकगा | (102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खि तरना नही जानता िह िसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन िशवन स (विखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणाम नही करना चावहए | इतना ही नही िर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भिबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट िराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाि करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करना चावहए | ऐसा विचार करक ऊपर विय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए | (105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह | समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह | (108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा | ह ििी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए | (109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससाररपी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह कमव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह ििी इस गरगीता को वनत भािपिवक हिय म धारण करो | महावयावधिाल िःखी लोगो को सिा आनि स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही | (113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह ििी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िाली और सिव िाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और बाघ आवि का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और िषट रोगो और िोरो का वनिारण करनिाली ह | शरी गरिि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध िर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए | (117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह ििराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह | (118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह िषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि िनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह िःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परिान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर िनिाली सधिा सतरी क िधववय

का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवि िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब िःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत कराता ह |

इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह | (126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवि कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हिय म सिविा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह | (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिािी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सिह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म

शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर क (वशषय क) सिव कायव वसि होत ह इसम सिह नही ह | (129

130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह िसर क नही | िीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय िया

भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन क वलए गरगीता रपी गगा म सिा सनान करत रहत ह | सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म ििता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक िशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह ििी कश और ििाव क आसन पर सिि कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिि आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स िाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रोग भवम पर बठकर जप करन स िःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय हए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और िभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव पर जप करन

स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की तरफ िशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर विशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव विशा की ओर िशीकरण िवकषण विशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम विशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या निी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या ििी क मविर म ग शाला म सभी शभ ििालयो म

िटिकष क या आािल क िकष क नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह ििी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब गरिि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपिश को नही मानत ि घोर नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरिि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह| ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अिर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरिि ही ह | इसम सशय नही ह | (151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही िि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ नही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी िध म िध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अवभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सिा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-विन आनिविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरिि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह ििी गरिि की कपा स िह अवणमावि वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी विन म या रात म सिा सिविा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह ििी गरिि क चरणकमल सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह ििी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लोगो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावि को यह गरगीता कहन का मन म सोचना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हिय का सताप हरनिाला एक गर भी िलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सिाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवि भि स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार करक ततववनषठ सिगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह ििी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवि मतरो का उपिश िनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम िो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवि तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततविशी पवडत वनवरि गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और िःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बतात ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवि महािाको का उपिश िनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिारण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सिगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय पनः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवि िियोग स वनवरि गर का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय िषट सकलपो स िवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही होता

पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह ििी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कहलाता ह ऐसा उपवनरि कहत ह | अरथावत िि योग स गर परापत होन की बात अलग ह और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अिर ही विखात ह ि ही गर होन चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावि िोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और िश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही सचमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छिनिाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक िशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ िो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन िोनो म स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर को पार करान म समरथव होत ह | कोवक शासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सशयो का छिन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह ििी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमातर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतिार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरिि ही उस समय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरिि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरिि क तपवण स बरहमा आवि सब िि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह ििी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावि सब कछ नही वकय हए क बराबर ह

बालक क बकिाि क समान (वयरथव) ह | (188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरिीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच पश क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वबना मढ लोग उस परम पि को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरिि की कपा स हिय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िि और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

िजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ िन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन िखा जाता ह उसक वलए गरिीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन ताग वकया ह उसक वलए गरिीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उसक वलए गरिीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह ििी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव सिा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक कहनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन िभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता किावप नही कहनी चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनिक को गरगीता वबलकल नही कहनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपिश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स िररदरता आती ह और गर एि मतर िोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरिि रकषण करत ह लवकन गरिि क करोध स वशिजी रकषण नही करत | अतः सब परयतन स गरिि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का िो अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह ििी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भििःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरिीकषाविहीन मनषय क आग कभी नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सिगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय सिव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरिि क चरणामत का पान करना चावहए गरिि क भोजन म स बचा हआ खाना गरिि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरिि म समाविषट ह | गरिि स अवधक और कछ भी नही ह इसवलए गरिि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरिि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपि वमलता ह | गर क मागव पर चलनिालो क वलए गरिि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाि स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह ििी गर यह िो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िि और पराणो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसवरप शरी सिगरिि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको जञान का परकाश िकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

परातः समररीय परम पजय

सत शरी आसारामजी बाप

क सससग परवचनो म स नवनीत

जीवन-रसायन

परसतावना

जीवन रसायन

गर भलकत एक अमोघ साधना

शरी राम-वलशषटठ सवाद

आसमबल का आवाहन

आसमबल कस जगाय

परसतावना इस पलसतका का एक-एक वाकय ऐसा सफललग ह कक वह हजार वषो क घनघोर अधकार को एक पल म ही घास की तरह जला कर भसम कर सकता ह | इसका हर एक वचन आसमजञानी महापरषो क अनतसतल स परकट हआ ह |

सामानय मनषटय को ऊपर उठाकर दवसव की उचचतम भलमका म पहाचान का सामथयक इसम तनदहत ह | पराचीन भारत की आरधयालसमक परमपरा म पोवषत महापरषो न समाचध दवारा अपन अलसतसव की गहराईयो म गोत लगाकर जो अगमय अगोचर अमत का खजाना पाया ह उस अमत क खजान को इस छोटी सी पलसतका म भरन का परयास ककया गया ह | गागर म सागर भरन का यह एक नमर परयास ह | उसक एक-एक वचन को सोपान बनाकर आप अपन लकषय तक पहाच सकत ह |

इसक सवन स मद क ददल म भी परार का सचार हो सकता ह | हताश तनराश दःखी चचलनतत होकर बठ हए मनषटय क ललय यह पलसतका अमत-सजीवनी क समान ह |

इस पलसतका को दतनक lsquoटॉतनकrsquo समझकर शरदधाभाव स धयक स इसका पठन चचनतन एव मनन करन स तो अवशय लाभ होगा ही लककन ककसी आसमवतता महापरष क शरीचररो म रहकर इसका शरवर-चचनतन एव मनन करन का सौभागय लमल जाय तब तो पछना( या कहना) ही कया

दतनक जीवन-वयवहार की थकान स ववशरातत पान क ललय चाल कायक स दो लमनट उपराम होकर इस पलसतका की दो-चार सवरक-कखरकाएा पढकर आसमसवरप म गोता लगाओ तन-मन-जीवन को आरधयालसमक तरगो स झकत होन दो जीवन-लसतार क तार पर परमासमा को खलन दो |

आपक शारीररक मानलसक व आरधयालसमक ताप-सताप शात होन लगग | जीवन म परम तलपत की तरग लहरा उठगी |

lsquoजीवन रसायनrsquo का यह ददवय कटोरा आसमरस क वपपासओ क हाथ म रखत हए सलमतत असयनत आननद का अनभव करती ह | ववशवास ह की अरधयासम क लजजञासओ क जीवन को ददवयामत स सरोबार करन म यह पलसतका उपयोगी लसदध होगी |

- शरी योग वदानत सवा सलमतत

अमदावाद आशरम

जीवन रसायन

1) जो मनषटय इसी जनम म मलकत परापत करना चाहता ह उस एक ही जनम म हजारो वषो का कम कर लना होगा | उस इस यग की रफ़तार स बहत आग तनकलना होगा | जस सवपन म मान-अपमान मरा-तरा अचछा-बरा ददखता ह और जागन क बाद उसकी ससयता नही रहती वस ही इस जागरत जगत म भी अनभव करना होगा | बसhellipहो गया हजारो वषो का काम परा | जञान की यह बात हदय म ठीक स जमा दनवाल कोई महापरष लमल जाय तो हजारो वषो क ससकार मर-तर क भरम को दो पल म ही तनवत कर द और कायक परा हो जाय |

2) यदद त तनज सवरप का परमी बन जाय तो आजीववका की चचनता रमखरयो शरवर-मनन और शतरओ का दखद समरर यह सब छट जाय |

उदर-धचनता षपरय चचाय

षवरही को जस खल |

तनज सवरप ि तनटठा हो तो

य सभी सहज िल ||

3) सवय को अनय लोगो की आाखो स दखना अपन वासतववक सवरप को न दखकर अपना तनरीकषर अनय लोगो की दलषटट स करना यह जो सवभाव ह वही हमार सब दःखो का कारर ह | अनय लोगो की दलषटट म खब अचछा ददखन की इचछा करना- यही हमारा सामालजक दोष ह |

4) लोग कयो दःखी ह कयोकक अजञान क कारर व अपन ससयसवरप को भल गय ह और अनय लोग जसा कहत ह वसा ही अपन को मान बठत ह | यह दःख तब तक दर नही होगा जब तक मनषटय आसम-साकषासकार नही कर लगा |

5) शारीररक मानलसक नततक व आरधयालसमक य सब पीड़ाएा वदानत का अनभव करन स तरत दर होती ह औरhellipकोई आसमतनषटठ महापरष का सग लमल जाय तो वदानत का अनभव करना

कदठन कायक नही ह |

6) अपन अनदर क परमशवर को परसनन करन का परयास करो | जनता एव बहमतत को आप ककसी परकार स सतषटट नही कर सकत | जब आपक आसमदवता परसनन होग तो जनता आपस अवशय सतषटट होगी |

7) सब वसतओ म बरहमदशकन करन म यदद आप सफल न हो सको तो लजनको आप सबस अचधक परम करत हो ऐस कम-स-कम एक वयलकत म बरहम परमासमा का दशकन करन का परयास करो | ऐस ककसी तसवजञानी महापरष की शरर पा लो लजनम बरहमानद छलकता हो | उनका दलषटटपात होत ही आपम भी बरहम का परादभाकव होन की समभावना पनपगी | जस एकस-र मशीन की ककरर कपड़ चमड़ी मास को चीरकर हडडडयो का फोटो खीच लाती ह वस ही जञानी की दलषटट आपक चचतत म रहन वाली दहारधयास की परत चीरकर आपम ईशवर को तनहारती ह |

उनकी दलषटट स चीरी हई परतो को चीरना अपक ललय भी सरल हो जायगा | आप भी सवय म ईशवर को दख सक ग | अतः अपन चचतत पर जञानी महापरष की दलषटट पड़न दो | पलक चगराय तरबना अहोभाव स उनक समकष बठो तो आपक चचतत पर उनकी दलषटट पड़गी |

8) जस मछललयाा जलतनचध म रहती ह पकषी वायमडल म ही रहत ह वस आप भी जञानरप परकाशपज म ही रहो परकाश म चलो परकाश म ववचरो परकाश म ही अपना अलसतसव रखो |

कफर दखो खान-पीन का मजा घमन-कफरन का मजा जीन-मरन का मजा |

9) ओ तफान उठ जोर-शोर स आाधी और पानी की वषाक कर द | ओ आननद क महासागर पथवी और आकाश को तोड़ द | ओ मानव गहर स गहरा गोता लगा लजसस ववचार एव चचनताएा तछनन-लभनन हो जाय | आओ अपन हदय स दवत की भावना को चन-चनकर बाहर तनकाल द लजसस आननद का महासागर परसयकष लहरान लग |

ओ परम की मादकता त जकदी आ | ओ आसमरधयान की आसमरस की मददरा त हम पर जकदी आचछाददत हो जा | हमको तरनत डबो द | ववलमब करन का कया परयोजन मरा मन अब एक पल भी दतनयादारी म फा सना नही चाहता | अतः इस मन को पयार परभ म डबो द | lsquoम और मरा hellipत और तराrsquo क ढर को आग लगा द | आशका और आशाओ क चीथड़ो को उतार फ क | टकड़-टकड़ करक वपघला द | दवत की भावना को जड़ स उखाड़ द | रोटी नही लमलगी कोई परवाह नही | आशरय और ववशराम नही लमलगा कोई कफकर नही | लककन मझ चादहय परम की उस ददवय परम की पयास और तड़प |

िझ वद पराण करान स कया

िझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

िझ िहदर िषसजद जाना नही |

िझ परि का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊ च या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो िहदर िषसजद चचय जहा |

न हो प जा निाज ि फकय कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

रर वार मसगार हो तयाग जहा ||

जहा परि ही परि की सषटि मिल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा ||

10) सवपनावसथा म दषटटा सवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की ककपना क आधार पर लसह लसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सलषटट का सजकन कर लता ह |

उस सलषटट म सवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल सवपन म ससय का भान न होन स दःखी होता ह | सवपन स जाग जाय तो पता चल कक सवय क लसवाय और कोई था ही नही | सारा परपच ककपना स रचा गया था | इसी परकार यह जगत जागरत क दवारा कलकपत ह वासतववक नही ह | यदद जागरत का दषटटा अपन आसमसवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दाररिय पल भर म अदशय हो जाय |

11) सवगक का सामराजय आपक भीतर ही ह | पसतको म मददरो म तीथो म पहाड़ो म जगलो म आनद की खोज करना वयथक ह | खोज करना ही हो तो उस अनतसथ आसमानद का खजाना खोल दनवाल ककसी तसववतता महापरष की खोज करो |

12) जब तक आप अपन अतःकरर क अनधकार को दर करन क ललए कदटबदध नही होग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कषटर अवतार ल ल कफर भी आपको परम लाभ नही होगा |

13) शरीर अनदर क आसमा का वसतर ह | वसतर को उसक पहनन वाल स अचधक पयार मत करो |

14) लजस कषर आप सासाररक पदाथो म सख की खोज करना छोड़ दग और सवाधीन हो जायग अपन अनदर की वासतववकता का अनभव करग उसी कषर आपको ईशवर क पास जाना नही पड़गा | ईशवर सवय आपक पास आयग | यही दवी ववधान ह |

15) िोधी यदद आपको शाप द और आप समसव म लसथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवाकद म बदल जायगा |

16) जब हम ईशवर स ववमख होत ह तब हम कोई मागक नही ददखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ईशवर म तनमय होत ह तब योगय उपाय योगय परवतत योगय परवाह अपन-आप हमार हदय म उठन लगता ह |

17) जब तक मनषटय चचनताओ स उदववगन रहता ह इचछा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बदचध का चमसकार परकट नही होता | जजीरो स जकड़ी हई बदचध दहलडल नही सकती | चचनताएा इचछाएा और वासनाएा शात होन स सवततर वायमडल का अववभाकव होता ह |

उसम बदचध को ववकलसत होन का अवकाश लमलता ह | पचभौततक बनधन कट जात ह और शदध आसमा अपन परक परकाश म चमकन लगता ह |

18) ओ सजा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सजा का हकम ललखन क ललय कलम लकर तसपर हो उस समय यदद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना तनरकय भल तरबना नही रह सकता | कफ़र उसकी कलम स वही ललखा जायगा जो परमासमा क साथ तरी नतन लसथतत क अनकल होगा |

19) पववतरता और सचचाई ववशवास और भलाई स भरा हआ मनषटय उननतत का झणडा हाथ म लकर जब आग बढता ह तब ककसकी मजाल कक बीच म खड़ा रह यदद आपक ददल म पववतरता सचचाई और ववशवास ह तो आपकी दलषटट लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक ववचारो की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाहो आग स हट जाओ | यह ददल का बादशाह पधार रहा ह |

20) यदद आप ससार क परलोभनो एव धमककयो स न दहल तो ससार को अवशय दहला दग |

इसम जो सनदह करता ह वह मदमतत ह मखक ह |

21) वदानत का यह लसदधात ह कक हम बदध नही ह बलकक तनसय मकत ह | इतना ही नही lsquoबदध हrsquo यह सोचना भी अतनषटटकारी ह भरम ह | जयो ही आपन सोचा कक lsquoम बदध हाhellip दबकल हाhellip असहाय हाhelliprsquo सयो ही अपना दभाकगय शर हआ समझो | आपन अपन परो म एक जजीर और बााध दी | अतः सदा मकत होन का ववचार करो और मलकत का अनभव करो |

22) रासत चलत जब ककसी परततलषटठत वयलकत को दखो चाह वह इगलड़ का सवाकधीश हो चाह अमररका का lsquoपरलसड़टrsquo हो रस का सवसवाक हो चाह चीन का lsquoडड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म ककसी परकार की ईषटयाक या भय क ववचार मत आन दो | उनकी शाही नजर को अपनी ही नजर समझकर मजा लटो कक lsquoम ही वह हा |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की चषटटा करग तब आपका अनभव ही लसदध कर दगा कक सब एक ही ह |

23) यदद हमारा मन ईषटयाक-दवष स रदहत तरबककल शदध हो तो जगत की कोई वसत हम नकसान नही पहाचा सकती | आनद और शातत स भरपर ऐस महासमाओ क पास िोध की मतत क जसा मनषटय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महासमाओ को दख कर जगल क लसह और भड़ भी परमववहवल हो जात ह | साप-तरबचछ भी अपना दषटट सवभाव भल जात ह |

24) अववशवास और धोख स भरा ससार वासतव म सदाचारी और ससयतनषटठ साधक का कछ तरबगाड़ नही सकता |

25) lsquoसमपरक ववशव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स मकत ह |

वह तो अननत ह | कफ़र कहाा स आयगा और कहाा जायगा सारा बरहमाणड़ उसी म ह |

26) ककसी भी परसग को मन म लाकर हषक-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हाhellip अमर हाhellip मरा जनम नहीhellip मरी मसय नहीhellip म तनललकपत आसमा हाhelliprsquo यह भाव दढता स हदय म धारर करक जीवन जीयो | इसी भाव का तनरनतर सवन करो | इसीम सदा तकलीन रहो |

27) बाहय सदभो क बार म सोचकर अपनी मानलसक शातत को भग कभी न होन दो |

28) जब इलनियाा ववषयो की ओर जान क ललय जबरदसती करन लग तब उनह लाल आाख ददखाकर चप कर दो | जो आसमानद क आसवादन की इचछा स आसमचचतन म लगा रह वही सचचा धीर ह |

29) ककसी भी चीज को ईशवर स अचधक मकयवान मत समझो |

30) यदद हम दहालभमान को सयागकर साकषात ईशवर को अपन शरीर म कायक करन द तो भगवान बदध या जीसस िाईसट हो जाना इतना सरल ह लजतना तनधकन पाल (Poor Paul) होना |

31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर सवय को उसका परभ मानो |

हम अपन नौकर मन की उपकषा करग तो कछ ही ददनो म वह हमार वश म हो जायगा | मन क चचल भावो को ना दखकर अपन शानत सवरप की ओर रधयान दग तो कछ ही ददनो म मन नषटट होन लगगा | इस परकार साधक अपन आनदसवरप म मगन हो सकता ह |

32) समगर ससार क तसवजञान ववजञान गखरत कावय और कला आपकी आसमा म स तनकलत ह और तनकलत रहग |

33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को लपत कर ददया ह | परयसनरपी तरगो म अनत सामथयकरपी समि को छपा ददया ह |

34) परमासमा की शालनत को भग करन का सामथयक भला ककसम ह यदद आप सचमच परमासम-शालनत म लसथत हो जाओ तो समगर ससार उलटा होकर टग जाय कफ़र भी आपकी शालनत भग नही हो सकती |

35) महासमा वही ह जो चचतत को ड़ावाड़ोल करनवाल परसग आय कफ़र भी चचतत को वश म रख

िोध और शोक को परववषटट न होन द |

36) वतत यदद आसमसवरप म लीन होती ह तो उस सससग सवारधयाय या अनय ककसी भी काम क ललय बाहर नही लाना चदहय |

37) सदढ अचल सककप शलकत क आग मसीबत इस परकार भागती ह जस आाधी-तफ़ान स बादल तरबखर जात ह |

38) सषलपत (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह कक जागरत का जगत चाह ककतना ही पयारा और सदर लगता हो पर उस भल तरबना शालनत नही लमलती | सषलपत म बलात ववसमरर हो उसकी ससयता भल जाय तो छः घट तनिा की शालनत लमल | जागरत म उसकी ससयता का अभाव लगन लग तो परम शालनत को परापत पराजञ परष बन जाय | तनिा रोजाना सीख दती ह कक यह ठोस जगत जो आपक चचतत को भरलमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा

रहा ह | घबराओ नही चचलनतत मत हो तम बातो म चचतत को भरलमत मत करो | सब कछ सवपन म सरकता जा रहा ह | जगत की ससयता क भरम को भगा दो |

ओ शलकतमान आसमा अपन अतरतम को तनहार ॐ का गजन कर दबकल ववचारो एव चचताओ को कचल ड़ाल दबकल एव तचछ ववचारो तथा जगत को ससय मानन क कारर तन बहत-बहत सहन ककया ह | अब उसका अत कर द |

39) जञान क कदठनमागक पर चलत वकत आपक सामन जब भारी कषटट एव दख आय तब आप उस सख समझो कयोकक इस मागक म कषटट एव दख ही तनसयानद परापत करन म तनलमतत बनत ह | अतः उन कषटटो दखो और आघातो स ककसी भी परकार साहसहीन मत बनो तनराश मत बनो |

सदव आग बढत रहो | जब तक अपन ससयसवरप को यथाथक रप स न जान लो तब तक रको नही |

40) सवपनावसथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह कक वह आपको खा जायगा | परत आप लजसको दखत ह वह शर नही आप सवय ह | शर आपकी ककपना क अततररकत और कछ नही |

इस परकार जागरतावसथा म भी आपका घोर-स-घोर शतर भी सवय आप ही ह दसरा कोई नही |

परथकसव अलगाव क ववचार को अपन हदय स दर हटा दो | आपस लभनन कोई लमतर या शतर होना कवल सवपन-भरम ह |

41) अशभ का ववरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका सवागत करो चाह आपकी इचछा की धारा स ववपरीत भी हो | तब आप दखग कक परसयकष बराई भलाई म बदल जायगी |

42) रातरतर म तनिाधीन होन स पहल तरबसतर पर सीध सखपवकक बठ जाओ | आाख बद करो |

नाक स शवास लकर फ़फ़ड़ो को भरपर भर दो | कफ़र उचच सवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उचचारर करो | कफ़र स गहरा सवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उचचारर करो | इस परकार दस लमनट तक करो |

कछ ही ददनो क तनयलमत परयोग क बाद इसक चमसकार का अनभव होगा | रातरतर की नीद साधना म परररत हो जायगी | ददल-ददमाग म शातत एव आनद की वषाक होगी | आपकी लौककक तनिा योगतनिा म बदल जयगी |

43) हट जाओ ओ सककप और इचछाओ हट जाओ तम ससार की कषरभगर परशसा एव धन-समपवतत क साथ समबध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह |

44) ककसी भी तरह समय तरबतान क ललय मजदर की भातत काम मत करो | आनद क ललय

उपयोगी कसरत समझकर सख िीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भातत काम करो | दब हए कचल हए ददल स कभी कोई काम हाथ म मत लो |

45) समगर ससार को जो अपना शरीर समझत ह परसयक वयलकत को जो अपना आसमसवरप समझत ह ऐस जञानी ककसस अपरसनन होग उनक ललय ववकषप कहाा रहा

46) ससार की तमाम वसतऐ सखद हो या भयानक वासतव म तो तमहारी परफ़लता और आनद क ललय ही परकतत न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ तमहारी नादानी ही तमह चककर म ड़ालती ह | अनयथा तमह नीचा ददखान वाला कोई नही | पकका तनशचय रखो कक यह जगत तमहार ककसी शतर न नही बनाया | तमहार ही आसमदव का यह सब ववलास ह |

47) महासमा व ह लजनकी ववशाल सहानभतत एव लजनका मातवत हदय सब पावपयो को दीन-दखखयो को परम स अपनी गोद म सथान दता ह |

48) यह तनयम ह कक भयभीत परारी ही दसरो को भयभीत करता ह | भयरदहत हए तरबना अलभननता आ नही सकती अलभननता क तरबना वासनाओ का अत समभव नही ह और तनवाकसतनकता क तरबना तनवरता समता मददता आदद ददवय गर परकट नही होत | जो बल दसरो की दबकलता को दर ना कर सक वह वासतव म बल नही |

49) रधयान म बठन स पहल अपना समगर मानलसक चचतन तथा बाहर की तमाम समपवतत ईशवर क या सदगर क चररो म अपकर करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हातन नही होगी |

ईशवर आपकी समपवतत दह परार और मन की रकषा करग | ईशवर अपकर बदचध स कभी हातन नही होती | इतना ही नही दह परार म नवजीवन का लसचन होता ह | इसस आप शातत व आनद का सतरोत बनकर जीवन को साथकक कर सक ग | आपकी और पर ववशव की वासतववक उननतत होगी |

50) परकतत परसननचचतत एव उदयोगी कायककताक को हर परकार स सहायता करती ह |

51) परसननमख रहना यह मोततयो का खजाना दन स भी उततम ह |

52) चाह करोड़ो सयक का परलय हो जाय चाह असखय चनिमा वपघलकर नषटट हो जाय परत जञानी महापरष अटल एव अचल रहत ह |

53) भौततक पदाथो को ससय समझना उनम आसलकत रखना दख-ददक व चचताओ को आमतरर

दन क समान ह | अतः बाहय नाम-रप पर अपनी शलकत व समय को नषटट करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन वयलकतसव ववषयक ववचारो का सवकथा सयाग कर ददया जाता ह तब उसक समान अनय कोई सख नही उसक समान शरषटठ अनय कोई अवसथा नही |

55) जो लोग आपको सबस अचधक हातन पहाचान का परयास करत ह उन पर कपापरक होकर परममय चचतन कर | व आपक ही आसमसवरप ह |

56) ससार म कवल एक ही रोग ह | बरहि सतय जगषनिथया - इस वदाततक तनयम का भग ही सवक वयाचधयो का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवक वयाचधयो की एक ही दवा ह अपन वासतववक सवरप बरहमसव म जाग जाना |

57) बदध रधयानसथ बठ थ | पहाड़ पर स एक लशलाखड़ लढकता हआ आ रहा था | बदध पर चगर इसस पहल ही वह एक दसर लशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज क साथ उसक दो भाग हो गय | उसन अपना मागक बदल ललया | रधयानसथ बदध की दोनो तरफ़ स दोनो भाग गजर गय | बदध बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | बदध सवसथता स उठ खड़ हए और लशषटयो स कहा

ldquoभीकषओ समयक समाचध का यह जवलत परमार ह | म यदद रधयान-समाचध म ना होता तो लशलाखड़ न मझ कचल ददया होता | लककन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स लसफ़क एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा जखम हआ ह वह रधयान की परकता म रही हई कछ नयनता का पररराम ह | यदद रधयान परक होता तो इतना भी ना लगता |rdquo

58) कहाा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहाा ह वह शसतर जो मझ घायल कर सक कहाा ह वह ववपवतत जो मरी परसननता को तरबगाड़ सक कहाा ह वह दख जो मर सख म ववघन ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा ववजय-परालपत का ददन आ पहाचा ह | कोई ससाररक तरग मर तनशछल चचतत को आदोललत नही कर सकती | इन तरगो स मझ ना कोई लाभ ह ना हातन ह | मझ शतर स दवष नही लमतर स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इचछा नही और दख स दवष नही कयोकक यह सब मन म रहता ह और मन लमथया ककपना ह |

59) समपरक सवासथय की अजीब यलकत रोज सबह तलसी क पााच पतत चबाकर एक गलास बासी पानी पी लो | कफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पजो क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर सवसथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर शवास लो | आग-पीछ क कतकवयो स तनलशचत हो जाओ | आरोगयता आनद सख शालनत परदान करनवाली ववचारधारा को चचतत म बहन दो | तरबमारी क ववचार को हटाकर इस परकार की भावना पर मन को दढता स एकागर करो कक

मर अदर आरोगयता व आनद का अनत सतरोत परवादहत हो रहा हhellip मर अतराल म ददवयामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा हा कक समगर सख आरोगयता शलकत मर भीतर ह | मर मन म अननत शलकत और सामथयक ह | म सवसथ हा | परक परसनन हा | मर अदर-बाहर सवकतर परमासमा का परकाश फ़ला हआ ह | म ववकषप रदहत हा | सब दवनदो स मकत हा | सवगीय सख मर अदर ह | मरा हदय परमासमा का गपत परदश ह | कफ़र रोग-शोक वहाा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म परववषटट हो चका हा | वह मर सवासथय का परदश ह | म तज का पाज हा | आरोगयता का अवतार हा |

याद रखो आपक अतःकरर म सवासथय सख आनद और शालनत ईशवरीय वरदान क रप म ववदयमान ह | अपन अतःकरर की आवाज सनकर तनशक जीवन वयतीत करो | मन म स कलकपत रोग क ववचारो को तनकाल दो | परसयक ववचार भाव शबद और कायक को ईशवरीय शलकत स पररपरक रखो | ॐकार का सतत गजन करो |

सबह-शाम उपरोकत ववचारो का चचतन-मनन करन स ववशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाततhellip

परक सवसथhellip परक परसननhellip

60) भय कवल अजञान की छाया ह दोषो की काया ह मनषटय को धमकमागक स चगरान वाली आसरी माया ह |

61) याद रखो चाह समगर ससार क तमाम पतरकार तननदक एकतरतरत होकर आपक ववरध आलोचन कर कफ़र भी आपका कछ तरबगाड़ नही सकत | ह अमर आसमा सवसथ रहो |

62) लोग परायः लजनस घरा करत ह ऐस तनधकन रोगी इसयादद को साकषात ईशवर समझकर उनकी सवा करना यह अननय भलकत एव आसमजञान का वासतववक सवरप ह |

63) रोज परातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स चचतत को सराबोर कर दो कक lsquoम शरीर नही हा | सब परारी कीट पतग गनधवक म मरा ही आसमा ववलास कर रहा ह | अर

उनक रप म म ही ववलास कर रहा हा | rsquo भया हर रोज ऐसा अभयास करन स यह लसदधात हदय म लसथर हो जायगा |

64) परमी आग-पीछ का चचनतन नही करता | वह न तो ककसी आशका स भयभीत होता ह और न वततकमान पररलसथतत म परमासपद म परीतत क लसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक परतततरबमब क आशरयभत दपकर की ओर रधयान न दकर परतततरबमब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समगर सथल परपच क आशरयभत आकाश की ओर रधयान न दकर कवल सथल परपच की ओर रधयान दत ह वस ही नाम-रप क भकत सथल दलषटट क लोग अपन दभाकगय क कारर समगर ससार क आशरय सलचचदाननद परमासमा का रधयान न करक ससार क पीछ पागल होकर भटकत रहत ह |

66) इस समपरक जगत को पानी क बलबल की तरह कषरभगर जानकर तम आसमा म लसथर हो जाओ | तम अदवत दलषटटवाल को शोक और मोह कस

67) एक आदमी आपको दजकन कहकर पररलचछनन करता ह तो दसरा आपको सजजन कहकर भी पररलचछनन ही करता ह | कोई आपकी सततत करक फला दता ह तो कोई तननदा करक लसकड़ा दता ह | य दोनो आपको पररलचछनन बनात ह | भागयवान तो वह परष ह जो तमाम बनधनो क ववरदध खड़ा होकर अपन दवसव की अपन ईशवरसव की घोषरा करता ह अपन आसमसवरप का अनभव करता ह | जो परष ईशवर क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदकचगदक क लोगो क समकष समगर ससार क समकष तनडर होकर ईशवरसव का तनरपर कर सकता ह उस परष को ईशवर मानन क ललय सारा ससार बारधय हो जाता ह | परी सलषटट उस अवशय परमासमा मानती ह |

68) यह सथल भौततक पदाथक इलनियो की भरातत क लसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही लमलती | सकषम लसदधात अथाकत ससय आसम-तसव पर तनभकर रहना ही सफलता की कजी ह | उस गरहर करो उसका मनन करो और वयवहार करो |

कफर नाम-रप आपको खोजत कफरग |

69) सख का रहसय यह ह आप जयो-जयो पदाथो को खोजत-कफरत हो सयो-सयो उनको खोत जात हो | आप लजतन कामना स पर होत हो उतन आवशयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथक भी आपका पीछा करत हए आत ह |

70) आननद स ही सबकी उसपवतत आननद म ही सबकी लसथतत एव आननद म ही सबकी लीनता

दखन स आननद की परकता का अनभव होता ह |

71) हम बोलना चहत ह तभी शबदोचचारर होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का दशय ददखता ह नतर बद कर ल तो नही ददखता | हम जानना चाह तभी पदाथक का जञान होता ह जानना नही चाह तो जञान नही होता | अतः जो कोई पदाथक दखन सनन या जानन म आता ह उसको बाचधत करक बाचधत करनवाली जञानरपी बदचध की ववतत को भी बाचधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह जञाता ह | जञातसव धमकरदहत शदधसवरप जञाता ही तनसय सलचचदाननद बरहम ह | तनरतर ऐसा वववक करत हए जञान व जञयरदहत कवल चचनमय

तनसय ववजञानाननदघनरप म लसथर रहो |

72) यदद आप सवाागपरक जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की चचनता छोड़ो | अपन चारो ओर जीवन क बीज बोओ | भववषटय म सनहर सवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क ललय मन म यह बात पककी बठा दो कक आपका आनवाला कल असयनत परकाशमय

आननदमय एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अचधक भागयवान पायग | आपका मन सजकनासमक शलकत स भर जायगा | जीवन ऐशवयकपरक हो जायगा | आपम इतनी शलकत ह कक ववघन आपस भयभीत होकर भाग खड़ होग | ऐसी ववचारधारा स तनलशचत रप स ककयार होगा | आपक सशय लमट जायग |

73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वसतओ को आकषकक बना दता ह | अपनी पयार भरी दलषटट उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ जाती ह औरhellipकफर त ही उनक पयार म फ़ा स जाता ह |

74) मन ववचचतर एव अटपट मागो दवारा ऐस तसवो की खोज की जो मझ परमासमा तक पहाचा सक | लककन म लजस-लजस नय मागक पर चला उन सब मागो स पता चला कक म परमासमा स दर चला गया | कफर मन बदचधमतता एव ववदया स परमासमा की खोज की कफर भी परमासमा स अलग रहा | गरनथालयो एव ववदयालयो न मर ववचारो म उकटी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | तनसतबध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका रधयान ककया तो उस अनतदकलषटट स मझ सवकसव लमला लजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आसमसवरप सवकतर वयापत हो रहा ह |

75) जस सामानय मनषटय को पसथर गाय भस सवाभाववक रीतत स दलषटटगोचर होत ह वस ही जञानी को तनजाननद का सवाभाववक अनभव होता ह |

76) वदानत का यह अनभव ह कक नीच नराधम वपशाच शतर कोई ह ही नही | पववतर सवरप

ही सवक रपो म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अतनषटट नही करता | मर लसवा और कछ ह ही नही तो मरा अतनषटट करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा

77) यह चराचर सलषटटरपी दवत तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह | मन शात होत ही दवत की गध तक नही रहती |

78) लजस परकार एक धाग म उततम मरधयम और कतनषटठ फल वपरोय हए ह उसी परकार मर आसमसवरप म उततम मरधयम और कतनषटठ शरीर वपरोय हए ह | जस फलो की गरवतता का परभाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीरो की गरवतता का परभाव मरी सवकवयापकता नही पड़ता |

जस सब फलो क ववनाश स धाग को कोई हातन नही वस शरीरो क ववनाश स मझ सवकगत आसमा को कोई हातन नही होती |

79) म तनमकल तनशचल अननत शदध अजर अमर हा | म अससयसवरप दह नही | लसदध परष इसीको lsquoजञानrsquo कहत ह |

80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | साकषात आननद स पररपरक कवल तनरनतर और सवकतर एक बरहम ही ह | उदवग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो |

81) जब आप जान लग कक दसरो का दहत अपना ही दहत करन क बराबर ह और दसरो का अदहत करना अपना ही अदहत करन क बराबर ह तब आपको धमक क सवरप का साकषसकार हो जायगा |

82) आप आसम-परततषटठा दलबनदी और ईषटयाक को सदा क ललए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदमो म नयोछावर होन का इतजार कर रहा ह |

83) म तनगकर तनलषटिय तनसय मकत और अचयत हा | म अससयसवरप दह नही हा | लसदध परष इसीको lsquoजञानrsquo कहत ह |

84) जो दसरो का सहारा खोजता ह वह ससयसवरप ईशवर की सवा नही कर सकता |

85) ससयसवरप महापरष का परम सख-दःख म समान रहता ह सब अवसथाओ म हमार अनकल रहता ह | हदय का एकमातर ववशरामसथल वह परम ह | वदधावसथा उस आसमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई ववरला भागयवान ही ऐस ददवय परम का भाजन बन सकता ह |

86) शोक और मोह का कारर ह पराखरयो म ववलभनन भावो का अरधयारोप करना | मनषटय जब एक को सख दनवाला पयारा सहद समझता ह और दसर को दःख दनवाला शतर समझकर उसस दवष करता ह तब उसक हदय म शोक और मोह का उदय होना अतनवायक ह | वह जब सवक पराखरयो म एक अखणड सतता का अनभव करन लगगा पराखरमातर को परभ का पतर समझकर उस आसमभाव स पयार करगा तब उस साधक क हदय म शोक और मोह का नामोतनशान नही रह जायगा | वह सदा परसनन रहगा | ससार म उसक ललय न ही कोई शतर रहगा और न ही कोई लमतर | उसको कोई कलश नही पहाचायगा | उसक सामन ववषधर नाग भी अपना सवभाव भल जायगा |

87) लजसको अपन परारो की परवाह नही मसय का नाम सनकर ववचललत न होकर उसका सवागत करन क ललए जो सदा तसपर ह उसक ललए ससार म कोई कायक असारधय नही | उस ककसी बाहय शसतरो की जररत नही साहस ही उसका शसतर ह | उस शसतर स वह अनयाय का पकष लनवालो को परालजत कर दता ह कफर भी उनक ललए बर ववचारो का सवन नही करता |

88) चचनता ही आननद व उकलास का ववरधवस करनवाली राकषसी ह |

89) कभी-कभी मरधयरातरतर को जाग जाओ | उस समय इलनियाा अपन ववषयो क परतत चचल नही रहती | बदहमकख सफरर की गतत मनद होती ह | इस अवसथा का लाभ लकर इलनियातीत अपन चचदाकाश सवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इलनियो क अभाव म भी अपन अखणड अलसतसव को जानो |

90) दशय म परीतत नही रहना ही असली वरागय ह |

91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार ववचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की तनवतत करनी चदहए | लककन जो ववचारवान परष ह वह कवल रोगतनवतत क पीछ ही नही लग जाता |

वह तो यह तनगरानी रखता ह कक भयकर दःख क समय भी अपना ववचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक परार नही सयागता कयोकक वह जानता ह कक रोग उसका दास ह |

रोग कसा भी भय ददखाय लककन ववचारवान परष इसस परभाववत नही होता |

92) लजस साधक क पास धाररा की दढता एव उदयशय की पववतरता य दो गर होग वह अवशय ववजता होगा | इन दो शासतरो स ससलजजत साधक समसत ववघन-बाधाओ का सामना करक आखखर म ववजयपताका फहरायगा |

93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका तनशचय नही होगा कक सलषटट शभ ह तब तक

मन एकागर नही होगा | जब तक हम समझत रहग कक सलषटट तरबगड़ी हई ह तब तक मन सशक दलषटट स चारो ओर दौड़ता रहगा | सवकतर मगलमय दलषटट रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा |

94) आसन लसथर करन क ललए सककप कर कक जस पथवी को धारर करत हए भी शषजी तरबककल अचल रहत ह वस म भी अचल रहागा | म शरीर और परार का दषटटा हा |

95) lsquoससार लमथया हrsquo - यह मद जञानी की धाररा ह | lsquoससार सवपनवत हrsquo - यह मरधयम जञानी की धाररा ह | lsquoससार का असयनत अभाव ह ससार की उसपवतत कभी हई ही नहीrsquo - यह उततम जञानी की धाररा ह |

96) आप यदद भलकतमागक म हो तो सारी सलषटट भगवान की ह इसललए ककसीकी भी तननदा करना ठीक नही | आप यदद जञानमागक म हो तो यह सलषटट अपना ही सवरप ह | आप अपनी ही तननदा कस कर सकत ह इस परकार दोनो मागो म परतननदा का अवकाश ही नही ह |

97) दशय म दषटटा का भान एव दषटटा म दशय का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अवववक या अजञान ह | दषटटा को दषटटा तथा दशय को दशय समझना ही वववक या जञान ह |

98) आसन व परार लसथर होन स शरीर म ववदयत पदा होती ह | शरीर क दवारा जब भी किया की जाती ह तब वह ववदयत बाहर तनकल जाती ह | इस ववदयत को शरीर म रोक लन स शरीर तनरोगी बन जाता ह |

99) सवपन की सलषटट अकपकालीन और ववचचतर होती ह | मनषटय जब जागता ह तब जानता ह कक म पलग पर सोया हा | मझ सवपन आया | सवपन म पदाथक दश काल किया इसयादद परी सलषटट का सजकन हआ | लककन मर लसवाय और कछ भी न था | सवपन की सलषटट झठी थी |

इसी परकार तसवजञानी परष अजञानरपी तनिा स जञानरपी जागरत अवसथा को परापत हए ह | व कहत ह कक एक बरहम क लसवा अनय कछ ह ही नही | जस सवपन स जागन क बाद हम सवपन की सलषटट लमथया लगती ह वस ही जञानवान को यह जगत लमथया लगता ह |

100) शारीररक कषटट पड़ तब ऐसी भावना हो जाय कक lsquoयह कषटट मर पयार परभ की ओर स हhelliprsquo तो वह कषटट तप का फल दता ह |

101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय हो भख वयाकल कर रही हो बदचध ववचार करन म लशचथल हो गई हो ककसी पड़ क नीच पड़ हो जीवन असमभव हो रहा हो मसय का आगमन

हो रहा हो तब भी अनदर स वही तनभकय रधवतन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मसय नहीhellipमझ भख नहीhellipपयास नहीhellip परकतत की कोई भी वयथा मझ नषटट नही कर सकतीhellipम वही हाhellipवही हाhelliprsquo

102) लजनक आग वपरय-अवपरय अनकल-परततकल सख-दःख और भत-भववषटय एक समान ह ऐस जञानी आसमवतता महापरष ही सचच धनवान ह |

103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल रसन जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही सचच समराट ह |

104) सवपन स जाग कर जस सवपन को भल जात ह वस जागरत स जागकर थोड़ी दर क ललए जागरत को भल जाओ | रोज परातः काल म पनिह लमनट इस परकार ससार को भल जान की आदत डालन स आसमा का अनसधान हो सकगा | इस परयोग स सहजावसथा परापत होगी |

105) सयाग और परम स यथाथक जञान होता ह | दःखी परारी म सयाग व परम ववचार स आत ह | सखी परारी म सयाग व परम सवा स आत ह कयोकक जो सवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर ववचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आसकत होन क कारर उसम ववचार का उदय नही हो सकता लककन वह सवा कर सकता ह |

106) लोगो की पजा व परराम स जसी परसननता होती ह वसी ही परसननता जब मार पड़ तब भी होती हो तो ही मनषटय लभकषानन गरहर करन का सचचा अचधकारी माना जाता ह |

107) हरक साधक को तरबककल नय अनभव की ददशा म आग बढना ह | इसक ललय बरहमजञानी महासमा की असयनत आवशयकता होती ह | लजसको सचची लजजञासा हो उस ऐस महासमा लमल ही जात ह | दढ लजजञासा स लशषटय को गर क पास जान की इचछा होती ह |

योगय लजजञास को समथक गर सवय दशकन दत ह |

108) बीत हए समय को याद न करना भववषटय की चचनता न करना और वततकमान म परापत सख-दःखादद म सम रहना य जीवनमकत परष क लकषर ह |

109) जब बदचध एव हदय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बदचधमान परष ससार की चचनता नही करत लककन अपनी मलकत क बार म सोचत

ह | मलकत का ववचार ही सयागी दानी सवापरायर बनाता ह | मोकष की इचछा स सब सदगर आ जात ह | ससार की इचछा स सब दगकर आ जात ह |

111) पररलसथतत लजतनी कदठन होती ह वातावरर लजतना पीड़ाकारक होता ह उसस गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बाहय कषटटो और चचनताओ का सवागत करो | ऐसी पररलसथतत म भी वदानत को आचरर म लाओ | जब आप वदानती जीवन वयतीत करग तब दखग कक समसत वातावरर और पररलसथततयाा आपक वश म हो रही ह आपक ललय उपयोगी लसदध हो रही ह |

112) हरक पदाथक पर स अपन मोह को हटा लो और एक ससय पर एक तथय पर अपन ईशवर पर समगर रधयान को कलनित करो | तरनत आपको आसम-साकषासकार होगा |

113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आसमाननद का उपभोग करना चादहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आसम-चचनतन का तनरनतर सवन करना चादहय | भोजन ठीक स होता ह तो तलपत की डकार आती ह वस ही यथाथक आसमचचनतन होत ही आसमानभव की डकार आयगी आसमाननद म मसत होग |

आसमजञान क लसवा शातत का कोई उपाय नही |

114) आसमजञानी क हकम स सयक परकाशता ह | उनक ललय इनि पानी बरसाता ह | उनही क ललय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना लसर रगड़ता ह |

115) यदद आप अपन आसमसवरप को परमासमा समझो और अनभव करो तो आपक सब ववचार व मनोरथ सफल होग उसी कषर परक होग |

116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-परार आदद जो कछ ह व आसमदशी क सककपमातर ह

117) जो लोग परततकलता को अपनात ह ईशवर उनक सममख रहत ह | ईशवर लजनह अपन स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पररलसथततयाा दत ह | लजसको सब वसतएा अनकल एव पववतर सब घटनाएा लाभकारी सब ददन शभ सब मनषटय दवता क रप म ददखत ह वही परष तसवदशी ह |

118) समता क ववचार स चचतत जकदी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोगो स समबनध रखो कक लजसस आपकी सहनशलकत बढ समझ की शलकत बढ

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरगो का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ जीवन तजसवी बन |

120) लोग बोलत ह कक रधयान व आसमचचनतन क ललए हम फरसत नही लमलती | लककन भल मनषटय जब नीद आती ह तब सब महसवपरक काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह कक नही जस नीद को महसव दत हो वस ही चौबीस घनटो म स कछ समय रधयान व आसमचचनतन म भी तरबताओ | तभी जीवन साथकक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा |

121) भल जाओ कक तम मनषटय हो अमक जातत हो अमक उमर हो अमक डड़गरीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम तनगकर तनराकार साकषीरप हो ऐसा दढ तनशचय करो | इसीम तमाम परकार की साधनाएा कियाएा योगादद समाववषटट हो जात ह | आप सवकवयापक अखणड चतनय हो |

सार जञान का यह मल ह |

122) दोष तभी ददखता जब हमार लोचन परम क अभावरप पीललया रोग स गरसत होत ह |

123) साधक यदद अभयास क मागक पर उसी परकार आग बढता जाय लजस परकार परारमभ म इस मागक पर चलन क ललए उससाहपवकक कदम रखा था तो आयरपी सयक असत होन स पहल जीवनरपी ददन रहत ही अवशय सोऽहम लसदचध क सथान तक पहाच जाय |

124) लोग जकदी स उननतत कयो नही करत कयोकक बाहर क अलभपराय एव ववचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ दहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह |

125) अपन परतत होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकताक को यदद कषमा कर ददया जाय तो दवष परम म परररत हो जाता ह |

126) साधना की शरआत शरदधा स होती ह लककन समालपत जञान स होनी चादहय | जञान मान सवयसदहत सवक बरहमसवरप ह ऐसा अपरोकष अनभव |

127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उचचारर करो | पहल धीम सवर म परारमभ करो | शर म रधवतन गल स तनकलगी कफर छाती स कफर नालभ स और अनत म रीढ की हडडी क आखखरी छोर स तनकलगी | तब ववदयत क धकक स सषमना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटारसदहत तमाम रोग भाग खड़ होग | तनभकयता दहममत और आननद का फववारा छटगा | हर रोज परातःकाल म सनानादद करक सयोदय क समय ककसी एक तनयत सथान म आसन पर

पवाकलभमख बठकर कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो |

128) आप जगत क परभ बनो अनयथा जगत आप पर परभसव जमा लगा | जञान क मतातरबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतातरबक जञान हो जायगा | कफर यगो की यातरा स भी दःखो का अनत नही आयगा |

129) वासतववक लशकषर का परारभ तो तभी होता ह जब मनषटय सब परकार की सहायताओ स ववमख होकर अपन भीतर क अननत सरोत की तरफ अगरसर होता ह |

130) दशय परपच की तनवतत क ललए अनतःकरर को आननद म सरोबार रखन क ललए कोई भी कायक करत समय ववचार करो म कौन हा और कायक कौन कर रहा ह भीतर स जवाब लमलगा मन और शरीर कायक करत ह | म साकषीसवरप हा | ऐसा करन स कताकपन का अह वपघलगा सख-दःख क आघात मनद होग |

131) राग-दवष की तनवतत का कया उपाय ह उपाय यही ह कक सार जगत-परपच को मनोराजय समझो | तननदा-सततत स राग-दवष स परपच म ससयता दढ होती ह |

132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई शसतरधारी आपको कसल करन क ललए तसपर हो जाय तब यदद आप उसक ललए परसननता स तयार रह हदय म ककसी परकार का भय या ववषाद उसपनन न हो तो समझना कक आपन राग-दवष पर ववजय परापत कर ललया ह |

जब आपकी दलषटट पड़त ही लसहादद दहसक जीवो की दहसावतत गायब हो जाय तब समझना कक अब राग-दवष का अभाव हआ ह |

133) आसमा क लसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आसमतनषटठा ह |

134) आप सवपनदषटटा ह और यह जगत आपका ही सवपन ह | बस लजस कषर यह जञान हो जायगा उसी कषर आप मकत हो जाएाग |

135) ददन क चौबीसो घणटो को साधनामय बनान क ललय तनकममा होकर वयथक ववचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आसमचचतन म लगाओ | ससार म सलगन मन को वहाा स उठा कर आसमा म लगात रहो |

136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की कषिता पर हासन लगी | बलबल न कहा ओ तरग म तो छोटा हा कफर भी बहत सखी हा | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी

तरबखर जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊा गा | वामन लमटकर ववराट बन जाऊा गा | मरी मलकत बहत नजदीक ह | मझ आपकी लसथतत पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो |

आपका छटकारा जकदी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली चटटान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरगो म ववभकत हो जाओगी | उन असखय तरगो म स अननत-अननत बलबलो क रप म पररवततकत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़पपन का गवक कयो करती हो जगत की उपललबधयो का अलभमान करक परमासमा स दर मत जाओ |

बलबल की तरह सरल रहकर परमासमा क साथ एकता का अनभव करो |

137) जब आप ईषटयाक दवष तछिानवषर दोषारोपर घरा और तननदा क ववचार ककसीक परतत भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही ववचारो को आमतरतरत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आाख म ततनका भोकत ह तब अपनी आाख म भी आप ताड़ भोक रह ह |

138) शरीर अनक ह आसमा एक ह | वह आसमा-परमासमा मझस अलग नही | म ही कताक साकषी व नयायधीश हा | म ही ककक श आलोचक हा और म ही मधर परशसक हा | मर ललय परसयक वयलकत सवततर व सवचछनद ह | बनधन पररलचछननता और दोष मरी दलषटट म आत ही नही | म मकत हापरम मकत हा और अनय लोग भी सवततर ह | ईशवर म ही हा | आप भी वही हो |

139) लजस परकार बालक अपनी परछाई म बताल की ककपना कर भय पाता ह उसी परकार जीव अपन ही सककप स भयभीत होता ह और कषटट पाता ह |

140) कभी-कभी ऐसी भावना करो कक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक ककनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समसत पररलसथतत को दखन वाल आप साकषी आसमा शष रहत ह | इस परकार साकषी रप म अपना अनभव करो |

141) यदद हम चाहत हो कक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक ललए सगम साधना यही ह कक हम भी अपन सबचधत सब लोगो क सब अपराध माफ कर द | कभी ककसी क दोष या अपराध पर दलषटट न डाल कयोकक वासतव म सब रपो म हमारा पयारा ईषटटदव ही िीड़ा कर रहा ह |

142) परक पववतरता का अथक ह बाहय परभावो स परभाववत न होना | सासाररक मनोहरता एव घरा स पर रहना राजी-नाराजगी स अववचल ककसी म भद न दखना और आसमानभव क दवारा आकषकरो व सयागो स अललपत रहना | यही वदानत का उपतनषदो का रहसय ह |

143) ईशवर साकषासकार तभी होगा जब ससार की दलषटट स परतीत होन वाल बड़-स-बड़ वररयो को भी कषमा करन का आपका सवभाव बन जायगा |

144) चाल वयवहार म स एकदम उपराम होकर दो लमनट क ललए ववराम लो | सोचो कक lsquo म कौन हा सदी-गमी शरीर को लगती ह | भख-पयास परारो को लगती ह | अनकलता-परततकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-पणय का तनरकय बदचध करती ह | म न शरीर हा न परार हा न मन हा न बदचध हा | म तो हा इन सबको सतता दन वाला इन सबस नयारा तनलप आसमा |rsquo

145) जो मनषटय तनरतर lsquoम मकत हाhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह मकत ही ह और lsquoम बदध हाhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला बदध ही ह |

146) आप तनभकय ह तनभकय ह तनभकय ह | भय ही मसय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकक ह | भय ही अधमक ह | भय ही वयलभचार ह | जगत म लजतन असत या लमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह |

147) परदहत क ललए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शलकतयाा जागत होती ह | दसरो क ककयार क ववचारमातर स हदय म एक लसह क समान बल आ जाता ह |

148) हम यदद तनभकय होग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यदद डरग तो कतता भी हम फ़ाड़ खायगा |

149) परसयक किया परसयक वयवहार परसयक परारी बरहमसवरप ददख यही सहज समाचध ह |

150) जब कदठनाईयाा आय तब ऐसा मानना कक मझ म सहन शलकत बढान क ललए ईशवर न य सयोग भज ह | कदठन सयोगो म दहममत रहगी तो सयोग बदलन लगग | ववषयो म राग-दवष रह गया होगा तो वह ववषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा |

151) तसवदलषटट स न तो आपन जनम ललया न कभी लग | आप तो अनत ह सवकवयापी ह तनसयमकत अजर-अमर अववनाशी ह | जनम-मसय का परशन ही गलत ह महा-मखकतापरक ह |

जहाा जनम ही नही हआ वहाा मसय हो ही कस सकती ह

152) आप ही इस जगत क ईशवर हो | आपको कौन दबकल बना सकता ह जगत म आप ही एकमातर सतता हो | आपको ककसका भय खड़ हो जाओ | मकत हो जाओ | ठीक स समझ

लो कक जो कोई ववचार या शबद आपको दबकल बनाता ह वही एकमातर अशभ ह | मनषटय को दबकल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह |

153) आप अपना कायक या कतकवय करो लककन न उसक ललए कोई चचनता रह न ही कोई इचछा | अपन कायक म सख का अनभव करो कयोकक आपका कायक सवय सख या ववशराम ह |

आपका कायक आसमानभव का ही दसरा नाम ह | कायक म लग रहो | कायक आपको आसमानभव कराता ह | ककसी अनय हत स कायक न करो | सवततर ववतत स अपन कायक पर डट जाओ | अपन को सवततर समझो ककसीक कदी नही |

154) यदद आप ससय क मागक स नही हटत तो शलकत का परवाह आपक साथ ह समय आपक साथ ह कषतर आपक साथ ह | लोगो को उनक भतकाल की मदहमा पर फलन दो भववषटयकाल की समपरक मदहमा आपक हाथ म ह |

155) जब आप ददवय परम क साथ चाणडाल म चोर म पापी म अभयागत म और सबम परभ क दशकन करग तब आप भगवान शरी कषटर क परमपातर बन जायग |

156) आचायक गौड़पाद न सपषटट कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लककन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आसमसवरप स सवकवयापत हा |

157) मनषटय सभी पराखरयो म शरषटठ ह सब दवताओ स भी शरषटठ ह | दवताओ को भी कफर स धरती पर आना पड़गा और मनषटय शरीर परापत करक मलकत परापत करनी होगी |

158) तनलशचनतता क दो सतर जो कायक करना जररी ह उस परा कर दो | जो तरबनजररी ह उस भल जाओ |

159) सवा-परम-सयाग ही मनषटय क ववकास का मल मतर ह | अगर यह मतर आपको जाच जाय तो सभी क परतत सदभाव रखो और शरीर स ककसी-न-ककसी वयलकत को तरबना ककसी मतलब क सहयोग दत रहो | यह नही कक जब मरी बात मानग तब म सवा करा गा | अगर परबनधक मरी बात नही मानत तो म सवा नही करा गा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही करोग |

160) जस सवपन लमथया ह वस ही यह जागरत अवसथा भी सवपनवत ही ह लमथया ह |

हरक को अपन इस सवपन स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लककन जाग कर वापस सो न जाएा ऐसा परषाथक तो हम ही करना होगा |

161) सदा परसननमख रहो | मख को कभी मललन मत करो | तनशचय कर लो कक आपक ललय शोक न इस जगत म जनम नही ललया ह | आननदसवरप म चचनता का सथान ही कहाा ह

162) समगर बरहमाणड एक शरीर ह | समगर ससार एक शरीर ह | जब तक आप परसयक क साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पररलसथततयाा और आस-पास की चीज हवा और समि की लहर भी आपक पकष म रहगी |

163) आपको जो कछ शरीर स बदचध स या आसमा स कमजोर बनाय उसको ववष की तरह तसकाल सयाग दो | वह कभी ससय नही हो सकता | ससय तो बलपरद होता ह पावन होता ह जञानसवरप होता ह | ससय वह ह जो शलकत द |

164) साधना म हमारी अलभरचच होनी चादहय साधना की तीवर मााग होनी चादहय |

165) दसरो क दोषो की चचाक मत करो चाह व ककतन भी बड़ हो | ककसी क दोषो की चचाक करक आप उसका ककसी भी परकार भला नही करत बलकक उस आघात पहाचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी |

166) इस ससार को ससय समझना ही मौत ह | आपका असली सवरप तो आननदसवरप आसमा ह | आसमा क लसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनषटय सवपन म अपनी एकता नही जानता अवपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदसवरप आसमा जागरत सवपन और सषलपत- इन तीन सवरपो को दखत हए अपनी एकता अदववतीयता का अनभव नही करता |

167) मनोजय का उपाय ह अभयास और वरागय | अभयास मान परयसनपवकक मन को बार-बार परमासम-चचतन म लगाना और वरागय मान मन को ससार क पदाथो की ओर स वापस लौटाना |

168) ककसी स कछ मत माागो | दन क ललय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही चाहोग तो मान लमलगा | सवगक नही चाहोग तो सवगक क दत आपक ललय ववमान लकर आयग |

उसको भी सवीकार नही करोग तो ईशवर आपको अपन हदय स लगायग |

169) कभी-कभी उदय या असत होत हए सयक की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट पर अकल घमन जाओ | ऐस सथानो की मलाकात लो जहाा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहाा परमासमा क साथ एकसवर होन की समभावना क दवार खलत ह |

170) आप जयो-ही इचछा स ऊपर उठत हो सयो-ही आपका इलचछत पदाथक आपको खोजन लगता ह | अतः पदाथक स ऊपर उठो | यही तनयम ह | जयो-जयो आप इचछक लभकषक याचक का भाव धारर करत हो सयो-सयो आप ठकराय जात हो |

171) परकतत क परसयक पदाथक को दखन क ललय परकाश जररी ह | इसी परकार मन बदचध

इलनियो को अपन-अपन कायक करन क ललय आसम-परकाश की आवशयकता ह कयोकक बाहर का कोई परकाश मन बदचध इलनिय परारादद को चतन करन म समथक नही |

172) जस सवपनदषटटा परष को जागन क बाद सवपन क सख-दःख जनम-मरर पाप-पणय

धमक-अधमक आदद सपशक नही करत कयोकक वह सब खद ही ह | खद क लसवाय सवपन म दसरा कछ था ही नही | वस ही जीवनमकत जञानवान परष को सख-दःख जनम-मरर पाप-पणय धमक-अधमक सपशक नही करत कयोकक व सब आसमसवरप ही ह |

173) वही भमा नामक आसमजयोतत कततो म रह कर भौक रही ह सअर म रह कर घर रही ह गधो म रह कर रक रही ह लककन मखक लोग शरीरो पर ही दलषटट रखत ह चतनय तसव पर नही |

174) मनषटय लजस कषर भत-भववषटय की चचनता का सयाग कर दता ह दह को सीलमत और उसपवतत-ववनाशशील जानकर दहालभमान को सयाग दता ह उसी कषर वह एक उचचतर अवसथा म पहाच जाता ह | वपजर स छटकर गगनववहार करत हए पकषी की तरह मलकत का अनभव करता ह |

175) समसत भय एव चचनताएा आपकी इचछाओ का परराम ह | आपको भय कयो लगता ह कयोकक आपको आशका रहती ह कक अमक चीज कही चली न जाय | लोगो क हासय स आप डरत ह कयोकक आपको यश की अलभलाषा ह कीततक म आसलकत ह | इचछाओ को ततलाजलल द दो | कफर दखो मजा कोई लजममदारी नहीकोई भय नही |

176) दखन म असयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज सवभाव का मनषटय भी आपका ही सवरप ह | आप इस तथय स मकत नही | कफर घरा कसी कोई लावणयमयी सदरी सलषटट की शोभा क समान अतत ववलासभरी अपसरा भी आपका ही सवरप ह | कफर आसलकत ककसकी

आपकी जञानलनियाा उनको आपस अलग करक ददखाती ह | य इलनियाा झठ बोलनवाली ह |

उनका कभी ववशवास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो |

177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात ससय को सवीकर करना हमारा सवधमक ह | ससय यही ह कक बल दसरो क ललय ह जञान अपन ललय ह और ववशवास परमासमा स समबनध जोड़न क ललय ह |

178) अपनी आसमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह |

179) आप सदव मकत ह ऐसा ववशवास दढ करो तो आप ववशव क उदधारक हो जात हो |

आप यदद वदानत क सवर क साथ सवर लमलाकर तनशचय करो आप कभी शरीर न थ | आप तनसय शदध बदध आसमा हो तो अखखल बरहमाणड क मोकषदाता हो जात हो |

180) कपा करक उन सवाथकमय उपायो और अलभपरायो को दर फ क दो जो आपको पररलचछनन रखत ह | सब वासनाएा राग ह | वयलकतगत या शरीरगत परम आसलकत ह | उस फ क दो | सवय पववतर हो जाओ | आपका शरीर सवसथ और बदचध परकसवरप हो जायगी |

181) यदद ससार क सख व पदाथक परापत हो तो आपको कहना चादहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चादहय | तब दखो कक आप कस सखी हो जात हो परमासमा-परापत ककसी महापरष पर ववशवास रखकर अपनी जीवनडोरी तनःशक बन उनक चररो म सदा क ललय रख दो | तनभकयता आपक चररो की दासी बन जायगी |

182) लजसन एक बार ठीक स जान ललया कक जगत लमथया ह और भरालनत स इसकी परतीतत हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसलकत नही होती | जगत क लमथयासव क तनशचय का नाम ही जगत का नाश ह |

183) अपन सवरप म लीन होन मातर स आप ससार क समराट बन जायग | यह समराटपद कवल इस ससार का ही नही समसत लोक-परलोक का समराटपद होगा |

184) ह जनक चाह दवाचधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान ववषटर आकर उपदश द अथवा बरहमाजी आकर उपदश द लककन आपको कदावप सख न होगा | जब ववषयो का सयाग करोग तभी सचची शातत व आनद परापत होग |

185) लजस परभ न हम मानव जीवन दकर सवाधीनता दी कक हम जब चाह तब धमाकसमा

होकर भकत होकर जीवनमकत होकर कतकसय हो सकत ह- उस परभ की मदहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो सवीकार कर लो |

186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ साकषात मसय का मकाबला करना पड़ अपन आसमपरालपत क उददशय की पतत क क ललय अडडग रहो | उठो साहसी बनो शलकतमान बनो | आपको जो बल व सहायता चादहय वह आपक भीतर ही ह |

187) जब-जब जीवन समबनधी शोक और चचनता घरन लग तब-तब अपन आननदसवरप का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो |

188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म जखम हो तब म आकाशवत आकाशरदहत चतन हा ऐसा दढ तनशचय करक पीड़ा को भल जाओ |

189) जब दतनया क ककसी चककर म फा स जाओ तब म तनलप तनसय मकत हा ऐसा दढ तनशचय करक उस चककर स तनकल जाओ |

190) जब घर-बार समबनधी कोई कदठन समसया वयाकल कर तब उस मदारी का खल समझकर सवय को तनःसग जानकर उस बोझ को हकका कर दो |

191) जब िोध क आवश म आकर कोई अपमानयकत वचन कह तब अपन शाततमय सवरप म लसथर होकर मन म ककसी भी कषोभ को पदा न होन दो |

192) उततम अचधकारी लजजञास को चादहय कक वह बरहमवतता सदगर क पास जाकर शरदधा पवकक महावाकय सन | उसका मनन व तनददरधयासन करक अपन आसमसवरप को जान | जब आसमसवरप का साकषासकार होता ह तब ही परम ववशरालनत लमल सकती ह अनयथा नही | जब तक बरहमवतता महापरष स महावाकय परापत न हो तब तक वह मनद अचधकारी ह | वह अपन हदयकमल म परमासमा का रधयान कर समरर कर जप कर | इस रधयान-जपादद क परसाद स उस बरहमवतता सदगर परापत होग |

193) मन बदचध चचतत अहकार छाया की तरह जड़ ह कषरभगर ह कयोकक व उसपनन होत ह और लीन भी हो जात ह | लजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आसमा ह | मन बदचध चचतत अहकार का अभाव हो जाता ह लककन उसका अनभव करनवाल का अभाव कदावप नही होता |

194) आप अपनी शलकत को उचचाततउचच ववषयो की ओर बहन दो | इसस आपक पास व बात सोचन का समय ही नही लमलगा लजसस कामकता की गध आती हो |

195) अपराधो क अनक नाम ह बालहसया नरहसया मातहसया गौहसया इसयादद | परनत परसयक परारी म ईशवर का अनभव न करक आप ईशवरहसया का सबस बड़ा अपराध करत ह |

196) सवा करन की सवाधीनता मनषटयमातर को परापत ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथक ह मन-वारी-कमक स बराईरदहत हो जाना यह ववशव की सवा हो गई | यथाशलकत भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई | परभ को अपना मानकर समतत और परम जगा लो यह परभ की सवा हो गई | इस परकार मनषटय अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह ववशव की सवा भी कर सकता ह और ववशवशवर की सवा भी कर सकता ह |

197) आसमा स बाहर मत भटको अपन कनि म लसथर रहो अनयथा चगर पड़ोग | अपन-आपम परक ववशवास रखो | आसम-कनि पर अचल रहो | कफर कोई भी चीज आपको ववचललत नही कर सकती |

198) सदा शात तनववककार और सम रहो | जगत को खलमातर समझो | जगत स परभाववत मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | कफर कछ बढान की इचछा नही होगी और कछ कम होन स दःख नही होगा |

199) समथक सदगर क समकष सदा फल क भाातत खखल हए रहो | इसस उनक अनदर सककप होगा कक यह तो बहत उससाही साधक ह सदा परसनन रहता ह | उनक सामथयकवान सककप स आपकी वह कतरतरम परसननता भी वासतववक परसननता म बदल जायगी |

200) यदद रोग को भी ईशवर का ददया मानो तो परारबध-भोग भी हो जाता ह और कषटट तप का फल दता ह | इसस ईशवर-कपा की परालपत होती ह | वयाकल मत हो | कपसल और इनजकशन आधीन मत हो |

201) साधक को चादहय कक अपन लकषय को दलषटट म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | दलषटट यदद इधर-उधर जाती हो तो समझना कक तनषटठा लसथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजारो सवपन दख होग लककन व आपक जीवन क अश नही

बन जात | इसी परकार य जागरत जगत क आडमबर आपकी आसमा क समकष कोई महवव नही रखत |

203) एक आसमा को ही जानो अनय बातो को छोड़ो | धीर साधक को चादहय कक वह सावधान होकर आसमतनषटठा बढाय अनक शबदो का चचनतन व भाषर न कर कयोकक वह तो कवल मन-वारी को पररशरम दनवाला ह असली साधना नही ह |

204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस सााप स डरता ह सममान स ऐस डर जस नकक स डरता ह लसतरयो स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागर बराहमर मानत ह |

205) जस अपन शरीर क अगो पर िोध नही आता वस शतर लमतर व अपनी दह म एक ही आसमा को दखनवाल वववकी परष को कदावप िोध नही आता |

206) मन तो शरीर को ईशवरापकर कर ददया ह | अब उसकी भख-पयास स मझ कया

समवपकत वसत म आसकत होना महा पाप ह |

207) आप यदद ददवय दलषटट पाना चहत हो तो आपको इलनियो क कषतर का सयाग करना होगा |

208) परलयकाल क मघ की गजकना हो समि उमड़ पड बारहो सयक तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी जञानी क तनशचय म दवत नही भासता कयोकक दवत ह ही नही | दवत तो अजञानी को भासता ह |

209) ससय को सवीकार करन स शातत लमलगी | कछ लोग योगयता क आधार पर शातत खरीदना चाहत ह | योगयता स शातत नही लमलगी योगयता क सदपयोग स शातत लमलगी | कछ लोग समपवतत क आधार पर शातत सरकषकषत रखना चाहत ह | समपवतत स शातत नही लमलगी समपवतत क सदपयोग स शातत लमलगी वस ही ववपवतत क सदपयोग स शातत लमलगी |

210) तचछ हातन-लाभ पर आपका रधयान इतना कयो रहता ह लजसस अनत आननदसवरप आसमा पर स रधयान हट जाता ह |

211) अपन अनदर ही आननद परापत करना यदयवप कदठन ह परनत बाहय ववषयो स आननद परापत करना तो असमभव ही ह |

212) म ससार का परकाश हा | परकाश क रप म म ही सब वसतओ म वयापत हा | तनसय

इन ववचारो का चचनतन करत रहो | य पववतर ववचार आपको परम पववतर बना दग |

213) जो वसत कमक स परापत होती ह उसक ललय ससार की सहायता तथा भववषटय की आशा की आवशयकता होती ह परनत जो वसत सयाग स परापत होती ह उसक ललय न ससार की सहायता चादहय न भववषटय की आशा |

214) आपको जब तक बाहर चोर ददखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग बरहम स लभनन अयोगय खराब सधारन योगय ददखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी चचककससा कर |

215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमसतक एव परसननमख रहत ह | चचनतातर-शोकातर लोगो की उननतत नही हो सकती | परसयक कायक को दहममत व शातत स करो | कफर दखो कक यह कायक शरीर मन और बदचध स हआ | म उन सबको सतता दनवाला चतनयसवरप हा | ॐ ॐ का पावन गान करो |

216) ककसी भी पररलसथतत म मन को वयचथत न होन दो | आसमा पर ववशवास करक आसमतनषटठ बन जाओ | तनभकयता आपकी दासी बन कर रहगी |

217) सससग स मनषटय को साधना परापत होती ह चाह वह शातत क रप म हो चाह मलकत क रप म चाह सवा क रप म हो परम क रप म हो चाह सयाग क रप म हो |

218) भला-बरा वही दखता ह लजसक अनदर भला-बरा ह | दसरो क शरीरो को वही दखता ह जो खद को शरीर मानता ह |

219) खबरदार आपन यदद अपन शरीर क ललय ऐश-आराम की इचछा की ववलालसता एव इलनिय-सख म अपना समय बरबाद ककया तो आपकी खर नही | ठीक स कायक करत रहन की नीतत अपनाओ | सफलता का पहला लसदधात ह कायकववशरामरदहत कायकसाकषी भाव स कायक |

इस लसदधात को जीवन म चररताथक करोग तो पता चलगा कक छोटा होना लजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह |

220) भतकाल पर खखनन हए तरबना भववषटय की चचनता ककय तरबना वततकमान म कायक करो |

यह भाव आपको हर अवसथा म परसनन रखगा हम जो कछ परापत ह उसका सदपयोग ही अचधक परकाश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पररराम की चचनता का सयाग कर दत हो सममख आय हए कततकवय पर अपनी उदयोगशलकत एकागर करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी |

222) ववतत तब तक एकागर नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह लजस कोई कततकवय या आवशयकता घसीट न रही हो | अतः परम शातत पान क ललय जीवन की आशा भी सयाग कर मन बरहमाननद म डबो दो | आज स समझ लो कक यह शरीर ह ही नही | कवल बरहमाननद का सागर लहरा रहा ह |

223) लजसकी पककी तनषटठा ह कक म आसमा हाrsquo उसक ललय ऐसी कौन सी गरचथ ह जो खल न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक ववरदध जा सक |

224) मर भागय म नही थाईशवर की मजीआजकल सससग परापत नही होताजगत खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरर की मललनता क कारर तनकलत ह | अतः नकारासमक सवभाव और दसरो पर दोषारोपर करन की ववतत स बचो |

225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप भीतर अनतयाकमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म कफर गड़बड़ कसी

226) लजस कषर हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी कषर हम ससार को तरबगाड़नवाल बन जात ह | शदध परमासमा को दखन क बजाय जगत को तरबगड़ा हआ दखन की दलषटट बनती ह | सधारक लोग मानत ह कक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह तरबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारको अपन ददल को सधारो पहल |

सवकतर तनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपलसथतत मातर स आपकी दलषटट मातर स अर पयार आपको छकर बहती हवा मातर स अननत जीवो को शातत लमलगी और अननत सधार होगा |

नानक कबीर महावीर बदध और लीलाशाह बाप जस महापरषो न यही कजी अपनायी थी |

227) वदानत म हमशा कमक का अथक होता ह वासतववक आसमा क साथ एक होकर चषटटा करना अखखल ववशव क साथ एकसवर हो जाना | उस अदववतीय परम तसव क साथ तनःसवाथक सयोग परापत करना ही एकमातर सचचा कमक ह बाकी सब बोझ की गठररयाा उठाना ह |

228) अपनी वततकमान अवसथा चाह कसी भी हो उसको सवोचच मानन स ही आपक हदय म आसमजञान बरहमजञान का अनायास उदय होन लगगा | आसम-साकषासकार को मीलो दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह चचलनतत होना नही ह | चचनता की गठरी उठाकर

वयचथत होन की जररत नही ह | लजस कषर आप तनलशचनतता म गोता मारोग उसी कषर आपका आसमसवरप परगट हो जायगा | अर परगट कया होगा आप सवय आसमसवरप हो ही | अनासमा को छोड़ दो तो आसमसवरप तो हो ही |

229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व चचनता क ववचार आय तब ककसी मसत सत-फकीर महासमा क सालननरधय का समरर करो | जब तननदा-परशसा क परसग आय तब महापरषो क जीवन का अवलोकन करो |

230) लजनको आप भयानक घटनाएा एव भयकर आघात समझ बठ हो वासतव म व आपक वपरयतम आसमदव की ही करतत ह | समसत भयजनक तथा परारनाशक घटनाओ क नाम-रप तो ववष क ह लककन व बनी ह अमत स |

231) मन म यदद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की सामगरी उपलसथत हो जाय आपका कछ तरबगाड़ नही सकती | मन म यदद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पररलसथयाा न होत हए भी उपलसथत हो जायगी | वकष क तन म भी भत ददखन लगगा |

232) ककसी भी पररलसथतत म ददखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चादहए | कषटटो क काल बादलो क पीछ परक परकाशमय एकरस परम सतता सयक की तरह सदा ववदयमान ह |

233) आप अपन पर कदावप अववशवास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबकल मत मानो | आपक अनदर तमाम शलकतयाा छपी हई ह |

234) यदद कोई मनषटय आपकी कोई चीज को चरा लता ह तो ड़रत कयो हो वह मनषटय और आप एक ह | लजस चीज को वह चराता ह वह चीज आपकी और उसकी दोनो की ह |

235) जो खद क लसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क लसवाय और ककसी वसत का भान होता ह वह वसत सचची लगती ह तब तक आप सीलमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह समपरक आनद मर भीतर स आया ह | म ही समपरक आननद हा समपरक मदहमा एव समपरक सख हा |

237) जीवन की समसत आवशयकताएा जीवन म उपलसथत ह परनत जीवन को जब हम

बाहय रगो म रग दत ह तब जीवन का वासतववक रप हम नही जान पात |

238) तननदको की तननदा स म कयो मरझाऊा परशसको की परशसा स म कयो फला

तननदा स म घटता नही और परशसा स म बढता नही | जसा हा वसा ही रहता हा | कफर तननदा-सततत स खटक कसी

239) ससार व ससार की समसयाओ म जो सबस अचधक फा स हए ह उनही को वदानत की सबस अचधक आवशयकता ह | बीमार को ही औषचध की जयादा आवशयकता ह | कयो जी ठीक ह न

240) जगत क पाप व असयाचार की बात मत करो लककन अब भी आपको जगत म पाप ददखता ह इसललय रोओ |

241) हम यदद जान ल कक जगत म आसमा क लसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ ददखता ह वह सवपनमातर ह तो इस जगत क दःख-दाररिय पाप-पणय कछ भी हम अशात नही कर सकत |

242) ववदवानो दाशकतनको व आचायो की धमकी तथा अनगरह आलोचना या अनमतत बरहमजञानी पर कोई परभाव नही ड़ाल सकती |

243) ह वयलषटटरप अननत आप अपन परो पर खड़ रहन का साहस करो समसत ववशव का बोझ आप खखलौन की तरह उठा लोग |

244) लसह की गजकना व नरलसह की ललकार तलवार की धार व सााप की फफकार तपसवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही परकाश चमक रहा ह | आप इनस भयभीत कयो होत हो उलझन कयो महसस करत हो मरी तरबकली मझको मयाऊा वाली बात कयो होन दत हो

245) ससार हमारा लसफ़क खखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही खखलौनो स भयभीत होता ह आसलकत करता ह ववचारशील वयलकत नही |

246) जब तक अववदया दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार वयलभचार कभी बद न होग चाह लाख कोलशश करो |

247) आप हमशा अदर का रधयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बाहय पतन

तो इसका पररराम मातर ह |

248) सयाग स हमशा आनद लमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज बाकी ह तब तक आप उस चीज क बधन म बध रहोग | आघात व परसयाघात हमशा समान ववरोधी होत ह |

249) तनलशचतता ही आरोगयता की सबस बड़ी दवाई ह |

250) सख अपन लसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस दख को भी सवीकार करना पड़गा |

251) म (आसमा) सबका दषटटा हा | मरा दषटटा कोई नही |

252) हजारो म स कोई एक परष भीतर स शात चचततवाला रहकर बाहर स ससारी जसा वयवहार कर सकता ह |

253) ससय क ललए यदद शरीर का सयाग करना पड़ तो कर दना | यही आखखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी |

254) भय चचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको जञान का अनभव होगा |

255) आपको कोई भी हातन नही पहाचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह |

256) परम का अथक ह अपन पड़ोसी तथा सपकक म आनवालो क साथ अपनी वासतववक अभदता का अनभव करना |

257) ओ पयार अपन खोय हए आसमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो |

258) सदव सम और परसनन रहना ईशवर की सवोपरर भलकत ह |

259) जब तक चचतत म दढता न आ जाय कक शासतर की ववचधयो का पालन छोड़ दन स भी हदय का यथाथक भलकतभाव नषटट नही होगा तब तक शासतर की ववचधयो को पालत रहो |

गर भषकत एक अिोघ सा ना

1 जनम मरर क ववषचि स मकत होन का कोई मागक नही ह कया सख-दःख हषक-शोक लाभ-हातन मान-अपमान की थपपड़ो स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवशय ह | ह वपरय आसमन नाशवान पदाथो स अपना मन वावपस लाकर सदगर क चररकमलो म लगाओ | गरभलकतयोग का आशरय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह लजसस वततकमान जीवन आननदमय बनता ह और शाशवत सख क दवार खलत ह |

गर सवत त नर नय यहा |

ततनक नही दःख यहा न वहा ||

2 सचच सदगर की की हई भलकत लशषटय म सासाररक पदाथो क वरागय एव अनासलकत जगाती ह परमासमा क परतत परम क पषटप महकाती ह |

3 परसयक लशषटय सदगर की सवा करना चाहता ह लककन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स सवा करन को कोई तसपर नही |

जो ववरला साधक गर चाह उस ढग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

बरहमतनषटठ सदगर की सवा स उनकी कपा परापत होती ह और उस कपा स न लमल सक ऐसा तीनो लोको म कछ भी नही ह |

4 गर लशषटय का समबनध पववतरतम समबनध ह | ससार क तमाम बनधनो स छड़ाकर वह मलकत क मागक पर परसथान कराता ह | यह समबनध जीवनपयकनत का समबनध ह | यह बात अपन हदय की डायरी म सवरक-अकषरो स ललख लो |

5 उकल सयक क परकाश क अलसतसव को मान या न मान कफर भी सयक हमशा परकाशता ह |

चचल मन का मनषटय मान या न मान लककन सदगर की परमककयारकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह |

6 सदगर की चरररज म सनान ककय तरबना कवल कदठन तपशचयाक करन स या वदो का अरधयन करन स वदानत का रहसय परकट नही होता आसमानद का अमत नही लमलता |

7 दशकन शासतर क चाह ककतन गरनथ पढो हजारो वषो तक दहमालय की गफा म तप करो वषो तक परारायाम करो जीवनपयकनत शीषाकसन करो समगर ववशव म परवास करक वयाखान दो कफर भी सदगर की कपा क तरबना आसमजञान नही होता | अतः तनरालभमानी सरल तनजाननद म

मसत दयाल सवभाव क आसम-साकषासकारी सदगर क चररो म जाओ | जीवन को धनय बनाओ |

8 सदगर की सवा ककय तरबना शासतरो का अरधयन करना ममकष साधक क ललय समय बरबाद करन क बराबर ह |

9 लजसको सदगर परापत हए ह ऐस लशषटय क ललय इस ववशव म कछ भी अपरापय नही ह |

सदगर लशषटय को लमली हई परमासमा की अमकय भट ह | अर नहीhellipनही व तो लशषटय क समकष साकार रप म परकट हए परमासमा सवय ह |

10 सदगर क साथ एक कषर ककया हआ सससग लाखो वषो क तप स अननत गना शरषटठ ह |

आाख क तनमषमातर म सदगर की अमतवषी दलषटट लशषटय क जनम-जनम क पापो को जला सकती ह |

11 सदगर जसा परमपरक कपाल दहतचचनतक ववशवभर म दसरा कोई नही ह |

12 बाढ क समय यातरी यदद तफानी नदी को तरबना नाव क पार कर सक तो साधक भी तरबना सदगर क अपन जीवन क आखखरी लकषय को लसदध कर सकता ह | यानी य दोनो बात समभव ह |

अतः पयार साधक मनमखी साधना की लजदद करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह |

13 सदगर क चररकमलो का आशरय लन स लजस आननद का अनभव होता ह उसक आग तरतरलोकी का सामराजय तचछ ह |

14 आसम-साकषासकार क मागक म सबस महान शतर अहभाव का नाश करन क ललए सदगर की आजञा का पालन अमोघ शसतर ह |

15 रसोई सीखन क ललय कोई लसखानवाला चादहय ववजञान और गखरत सीखन क ललय अरधयापक चादहय तो कया बरहमववदया सदगर क तरबना ही सीख लोग

16 सदगरकपा की समपवतत जसा दसरा कोई खजाना ववशवभर म नही |

17 सदगर की आजञा का उकलघन करना यह अपनी कबर खोदन क बराबर ह |

18 सदगर क कायक को शका की दलषटट स दखना महापातक ह |

19 गरभलकत व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स लशषटय ससारसागर को पार कर सकता ह |

20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक वववकाननद ही दसर वववकाननद को पहचान सकत ह | बदध को जानन क ललय दसर बदध की आवशयकता रहती ह | एक रामतीथक का रहसय दसर रामतीथक ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की चषटटा छोड़कर उनको पररपरक परबरहम परमासमा मानो | तभी जीवन म वासतववक लाभ होगा |

21 गरभलकतयोग का आशरय लकर आप अपनी खोई हई ददवयता को पनः परापत करो सख-दःख जनम-मसय आदद सब दवनदवो स पार हो जाओ |

22 गरभलकतयोग मान गर की सवा क दवारा मन और ववकारो पर तनयतरर एव पनः ससकरर |

23 लशषटय अपन गर क चररकमल म परराम करता ह | उन पर शरषटठ फलो की वषाक करक उनकी सततत करता ह

ldquoह परम पजय पववतर गरदव मझ सवोचच सख परापत हआ ह | म बरहमतनषटठा स जनम-मसय की परमपरा स मकत हआ हा | म तनववकककप समाचध का शदध सख भोग रहा हा | जगत क ककसी भी कोन म म मकतता स ववचरर कर सकता हा | सब पर मरी समदलषटट ह |

मन पराकत मन का सयाग ककया ह | मन सब सककपो एव रचच-अरचच का सयाग ककया ह | अब म अखणड शातत म ववशरातत पा रहा हा hellip आननदमय हो रहा हा | म इस परक अवसथा का वरकन नही कर पाता |

ह पजय गरदव म आवाक बन गया हा | इस दसतर भवसागर को पार करन म आपन मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही समपरक ववशवास था | मन ववलभनन योतनयो म असखय जनम ललय | ऐसी सवोचच तनभकय अवसथा मझ कौन स पववतर कमो क कारर परापत हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलकभ भागय ह | यह एक महान उसकषटट लाभ ह |

अब म आननद स नाचता हा | मर सब दःख नषटट हो गय | मर सब मनोरथ परक हए ह | मर कायक समपनन हए ह | मन सब वातछत वसतएा परापत की ह | मरी इचछा पररपरक हई ह |

आप मर सचच माता-वपता हो | मरी वततकमान लसथतत म म दसरो क समकष ककस परकार परकट कर सका सवकतर सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ ददख रहा ह |

मर अतःचकष लजसस खल गय वह महावाकय lsquoतततविमसrsquo ह | उपतनषदो एव वदानतसतरो को भी धनयवाद | लजनहोन बरहमतनषटठ गर का एव उपतनषदो क महावाकयो का रप धारर ककया ह |

ऐस शरी वयासजी को परराम शरी शकराचायक को परराम

सासाररक मनषटय क लसर पर गर क चररामत का एक तरबनद भी चगर तो भी उसक सब दःखो का नाश होता ह | यदद एक बरहमतनषटठ परष को वसतर पहनाय जाय तो सार ववशव को वसतर पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कयोकक बरहमतनषटठ परष सचराचर ववशव म वयापत ह |

सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

सवामी लशवानद जी

शरी राि-वमशटठ सवाद

शरी वलशषटठ जी कहत ह

ldquoह रघकलभषर शरी राम अनथक सवरप लजतन सासाररक पदाथक ह व सब जल म तरग क समान ववववध रप धारर करक चमसकार उसपनन करत ह अथाकत ईचछाएा उसपनन करक जीव को मोह म फा सात ह | परत जस सभी तरग जल सवरप ही ह उसी परकार सभी पदाथक वसततः नशवर सवभाव वाल ह |

बालक की ककपना स आकाश म यकष और वपशाच ददखन लगत ह परनत बदचधमान मनषटय क ललए उन यकषो और वपशाचो का कोई अथक नही | इसी परकार अजञानी क चचतत म यह जगत ससय हो ऐसा लगता ह जबकक हमार जस जञातनयो क ललय यह जगत कछ भी नही |

यह समगर ववशव पसथर पर बनी हई पतललयो की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बाहय ववषयो स शनय ह | इसम ससयता कसी परनत अजञातनयो को यह ववशव ससय लगता ह

|rdquo

वलशषटठ जी बोल ldquoशरी राम जगत को ससय सवरप म जानना यह भरातत ह मढता ह |

उस लमथया अथाकत कलकपत समझना यही उचचत समझ ह |

ह राघव सवतता अहता आदद सब ववभरम-ववलास शात लशवसवरप शदध बरहमसवरप ही ह | इसललय मझ तो बरहम क अततररकत और कछ भी नही ददखता | आकाश म जस जगल नही वस ही बरहम म जगत नही ह |

ह राम परारबध वश परापत कमो स लजस परष की चषटटा कठपतली की तरह ईचछाशनय और वयाकलतारदहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनमकत मतन ह | ऐस जीवनमकत जञानी को इस जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रदहत लगता ह |

इस दशय परपच म लजस रचच नही हदय म चचनमातर अदशय बरहम ही अचछा लगता ह ऐस परष न भीतर तथा बाहर शालनत परापत कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह |

रघनदन शसतरवतता कहत ह कक मन का ईचछारदहत होना यही समाचध ह कयोकक ईचछाओ का सयाग करन स मन को जसी शालनत लमलती ह ऐसी शालनत सकड़ो उपदशो स भी नही लमलती |

ईचछा की उसपवतत स जसा दःख परापत होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ईचछाओ की शालनत स जसा सख होता ह ऐसा सख सवगक तो कया बरहमलोक म भी नही होता |

अतः समसत शासतर तपसया यम और तनयमो का तनचोड़ यही ह कक ईचछामातर दःखदायी ह और ईचछा का शमन मोकष ह |

परारी क हदय म जसी-जसी और लजतनी-लजतनी ईचछाय उसपनन होती ह उतना ही दखो स वह ड़रता रहता ह | वववक-ववचार दवारा ईचछाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी लमटती जाती ह |

आसलकत क कारर सासाररक ववषयो की ईचछाय जयो-जयो गहनीभत होती जाती ह सयो-सयो दःखो की ववषली तरग बढती जाती ह | अपन परषाथक क बल स इस ईचछारपी वयाचध का उपचार यदद नही ककया जाय तो इस वयाचध स छटन क ललय अनय कोई औषचध नही ह ऐसा म दढतापवकक मानता हा |

एक साथ सभी ईचछाओ का समपरक सयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ईचछाओ का धीर-धीर सयाग करना चादहय परत रहना चादहय ईचछा क सयाग म रत कयोकक सनमागक का पचथक दखी नही

होता |

जो नराधम अपनी वासना और अहकार को कषीर करन का परयसन नही करता वह ददनो-ददन अपन को रावर की तरह अधर का ऐ म ढकल रहा ह |

ईचछा ही दखो की जनमदातरी इस ससाररपी बल का बीज ह | यदद इस बीज को आसमजञानरपी अलगन स ठीक-ठीक जला ददया तो पनः यह अकररत नही होता |

रघकलभषर राम ईचछामातर ससार ह और ईचछाओ का अभाव ही तनवाकर ह | अतः अनक परकार की माथापचची म ना पड़कर कवल ऐसा परयसन करना चादहय कक ईचछा उसपनन ना हो |

अपनी बदचध स ईचछा का ववनाश करन को जो तसपर नही ऐस अभाग को शासतर और गर का उपदश भी कया करगा

जस अपनी जनमभमी जगल म दहररी की मसय तनलशचत ह उसी परकार अनकववध दखो का ववसतार कारनवाल ईचछारपी ववषय-ववकार स यकत इस जगत म मनषटयो की मसय तनलशचत ह |

यदद मानव ईचछाओ क कारर बचचो-सा मढ ना बन तो उस आसमजञान क ललय अकप परयसन ही करना पड़ | इसललय सभी परकार स ईचछाओ को शानत करना चादहय |

ईचछा क शमन स परम पद की परालपत होती ह | ईचछारदहत हो जाना यही तनवाकर ह और ईचछायकत होना ही बधन ह | अतः यथाशलकत ईचछा को जीतना चादहय | भला इतना करन म कया कदठनाई ह

जनम जरा वयाचध और मसयरपी कटीली झाडड़यो और खर क वकष - समहो की जड़ भी ईचछा ही ह | अतः शमरपी अलगन स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चादहय| जहाा ईचछाओ का अभाव ह वहाा मलकत तनलशचत ह |

वववक वरागय आदद साधनो स ईचछा का सवकथा ववनाश करना चादहय | ईचछा का सबध जहाा-जहाा ह वहाा-वहाा पाप पणय दखरालशयाा और लमबी पीड़ाओ स यकत बधन को हालजर ही समझो |

परष की आतररक ईचछा जयो-जयो शानत होती जाती ह सयो-सयो मोकष क ललय उसका ककयारकारक साधन बढता जाता ह | वववकहीन ईचछा को पोसना उस परक करना यह तो ससाररपी ववष वकष को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- शरीयोगवलशषटट महारामायर

आतिबल का आवाहन

कया आप अपन-आपको दबकल मानत हो लघतागरथी म उलझ कर पररलसतचथयो स वपस रह हो अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो

hellipतो अपन भीतर सषपत आसमबल को जगाओ | शरीर चाह सतरी का हो चाह परष का परकतत क सामराजय म जो जीत ह व सब सतरी ह और परकतत क बनधन स पार अपन सवरप की पहचान लजनहोन कर ली ह अपन मन की गलामी की बडड़याा तोड़कर लजनहोन फ क दी ह व परष ह | सतरी या परष शरीर एव मानयताएा होती ह | तम तो तन-मन स पार तनमकल आसमा हो |

जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय तनशचयबल को जगाओ | सवकदश सवककाल म सवोततम आसमबल को ववकलसत करो |

आसमा म अथाह सामथयक ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो ववशव म ऐसी कोई सतता नही जो तमह ऊपर उठा सक | अपन आसमसवरप म परततलषटठत हो गय तो तरतरलोकी म ऐसी कोई हसती नही जो तमह दबा सक |

भौततक जगत म वाषटप की शलकत ईलकरोतनक शलकत ववदयत की शलकत गरसवाकषकर की शलकत बड़ी मानी जाती ह लककन आसमबल उन सब शलकतयो का सचालक बल ह |

आसमबल क सालननरधय म आकर पग परारबध को पर लमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह परततकल पररलसतचथयाा अनकल हो जाती ह | आसमबल सवक ररदचध-लसदचधयो का वपता ह |

आतिबल कस जगाय

हररोज परतःकाल जकदी उठकर सयोदय स पवक सनानादद स तनवत हो जाओ | सवचछ पववतर सथान म आसन तरबछाकर पवाकलभमख होकर पदमासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और परसनन ववतत धारर करो |

मन म दढ भावना करो कक म परकतत-तनलमकत इस शरीर क सब अभावो को पार करक सब

मललनताओ-दबकलताओ स वपणड़ छड़ाकर आसमा की मदहमा म जागकर ही रहागा |

आाख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ो म खब शवास भरो और भावना करो की शवास क साथ म सयक का ददवय ओज भीतर भर रहा हा | शवास को यथाशलकत अनदर दटकाय रखो | कफ़र lsquoॐhelliprsquo का लमबा उचचारर करत हए शवास को धीर-धीर छोड़त जाओ | शवास क खाली होन क बाद तरत शवास ना लो | यथाशलकत तरबना शवास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहरर ॐhelliprsquo lsquoहरर ॐhelliprsquo

का मानलसक जाप करो | कफ़र स फ़फ़ड़ो म शवास भरो | पवोकत रीतत स शवास यथाशलकत अनदर दटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो |

दस-पिह लमनट ऐस परारायाम सदहत उचच सवर स lsquoॐhelliprsquo की रधवतन करक शानत हो जाओ | सब परयास छोड़ दो | ववततयो को आकाश की ओर फ़लन दो |

आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर दशय को आप मानलसक आाख स भावना स दखत रहो |

आप शरीर नही हो बलकक अनक शरीर दश सागर पथवी गरह नकषतर सयक चनि एव पर बरहमाणड़ क दषटटा हो साकषी हो | इस साकषी भाव म जाग जाओ |

थोड़ी दर क बाद कफ़र स परारायाम सदहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन ववचारो को दखत रहो |

इस अवसथा म दढ तनशचय करो कक lsquoम जसा चहता हा वसा होकर रहागा |rsquo ववषयसख सतता धन-दौलत इसयादद की इचछा न करो कयोकक तनशचयबल या आसमबलरपी हाथी क पदचचहन म और सभी क पदचचहन समाववषटठ हो ही जायग |

आसमानदरपी सयक क उदय होन क बाद लमटटी क तल क दीय क पराकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

ककसी भी भावना को साकार करन क ललय हदय को करद ड़ाल ऐसी तनशचयासमक बललषटट ववतत होनी आवशयक ह | अनतःकरर क गहर-स-गहर परदश म चोट कर ऐसा परार भरक तनशचयबल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल ड़ालन क ललय |

सदा समरर रह की इधर-उधर भटकती ववततयो क साथ तमहारी शलकत भी तरबखरती रहती ह |

अतः ववततयो को बहकाओ नही | तमाम ववततयो को एकतरतरत करक साधनाकाल म आसमचचनतन म लगाओ और वयवहारकाल म जो कायक करत हो उसम लगाओ |

दततचचतत होकर हरक कायक करो | अपन सवभाव म स आवश को सवकथा तनमकल कर दो | आवश म आकर कोई तनरकय मत लो कोई किया मत करो | सदा शानत ववतत धारर करन का अभयास करो | ववचारशील एव परसनन रहो | सवय अचल रहकर सागर की तरह सब ववततयो की तरगो को अपन भीतर समालो | जीवमातर को अपना सवरप समझो | सबस सनह रखो | ददल को वयापक रखो | सकचचततता का तनवारर करत रहो | खणड़ातमक ववतत का सवकथा सयाग करो |

लजनको बरहमजञानी महापरष का सससग और अरधयासमववदया का लाभ लमल जाता ह उसक जीवन स दःख ववदा होन लगत ह | ॐ आननद

आसमतनषटठा म जाग हए महापरषो क सससग एव सससादहसय स जीवन को भलकत और वदात स पषटट एव पलककत करो | कछ ही ददनो क इस सघन परयोग क बाद अनभव होन लगगा कक भतकाल क नकारसमक सवभाव सशयासमक-हातनकारक ककपनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था ववषला कर ददया था | अब तनशचयबल क चमसकार का पता चला | अततकम म आववरभत ददवय खजाना अब लमला | परारबध की बडड़याा अब टटन लगी |

ठीक ह न करोग ना दहममत पढकर रख मत दना इस पलसतका को | जीवन म इसको बार-बार पढत रहो | एक ददन म यह परक ना होगा | बार-बार अभयास करो | तमहार ललय यह एक ही पलसतका काफ़ी ह | अनय कचरापटटी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

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अनकरि

गर भलकत योग

(Guru Bhakti Yog) लखक

शरी सवािी मशवाननद सरसवती समपादक

शरी सवािी सषचचदानद

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आककपजनमकोटीना यजञवरततपः कियाः

ताः सवाकः सफला दवव गरसतोषमातरतः

ह दवी कलपपययनत क करोड़ो जनिो क यजञ वरत तप और शासतरोकत ककरयाए य सब गरदव क सतोि िातर स सफल हो जात ह

(भगवान शकर) अमानमससरो दकषो तनमकमो दढसौहदः

अससवरोऽथक लजजञासः अनसयः अमोघवाक

सषतशटय िान और ितसर स रहहत अपन कायय ि दकष ििता रहहत गर ि दढ़ परीततवाला तनशचलधचतत परिाथय का षजजञास ईटयाय स रहहत और सतयवादी होता ह

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अनिम तनवदन

आिख

गरभषकतयोग की िहतता पप सत शरी आसाराि जी बाप एक अदभत षवभ तत

गरभषकतयोग

गर और मशटय

गरभषकत का षवकास

गरभषकत की मशकषा गर की िहतता गरभषकत का अभयास

सा क क सचच पथपरदशयक

गरभषकत का षववरण

गरभषकत की नीव

गरभषकत का सषव ान

गर और दीकषा ितरदीकषा क तनयि

जप क तनयि

िनटय क चार षवभाग

गरकपा हह कवल ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

तनवदन

गर की आवशयकता गर क परतत मशटय की भषकत कसी होनी चाहहए एव गर क िागयदशयन क दवारा सा क मशटय ककस परकार आति-साकषातकार कर सकता ह इस षविय ि प जय शरी सवािी मशवाननदजी िहाराज न अपनी कई पसतको ि मलखा ह शरी गरदव क अगरगणय मशटय एव उनक तनजी रहसयितरी शरी सवािी सषचचदानदजी न सोचा कक सवािी जी िहाराज की पसतको ि स गर एव गरभषकत क षविय ि जो जो मलखा गया ह वह सब सकमलत करक अलग पसतक क रप ि परकामशत करना अतयत आवशयक ह अतः उनहोन यह गरभषकतयोग पसतक का समपादन ककया

आधयाषतिक िागय ि षवचरन वाल सा को क मलए यह पसतक बहत ही उपयोगी ह इतना ही नही एक आशीवायद क सिान ह

सदगरदव क कपा-परसादरप यह पसतक आपको अिरतव परि सख और शाषनत परदान कर यही अभयथयना

अनकरि

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आमख

सवामी लशवाननद

किय और कतताय पदाथय और वयषकत क समबन स जञान होता ह वह एक परककरया ह चतना नही ह बाहय पदाथय और आनतररक षसथतत की परततककरया क दवारा ही सब परककरया परकि होती ह िनटय ि जञान का उदभव यह ऐसी ही परततककरया क दवारा घहित एक रहसयिय परककरया ह ि लतः जञान सावयबतरक ह और उसक मलए कोई परककरया आवशयक नही ह परनत जञान का उदय िान भावातीत चतना नही अषपत समबषन त वयषकत ि जञान का उदय सवोचच जञान को सवरपजञान अपन सतय अषसततव क बो षवियक जञान कहा जाता ह जीव ि इस सवरपजञान का उदय िन की वषततयो क दवारा अमभवयषकत की सापकष परककरया स होता ह इस परकार उदय की परककरया क दौरान जञान वषततजञान क रप ि होता और वषततजञान तनषशचत रप स चतना की दश एव काल स बद अवसथा ह

िानसशासतर षजस जञान कहता ह वह वषततजञान ह उसकी परबलता वयापकता और गहनता अलग-अलग हो सकती ह वषततजञान बाहय किय और कतताय पदाथय और वयषकत क समबन क मसवाय उतपनन नही हो सकता इस षवशव ि कोई भी घिना दो घिना या षसथततयो क सयोग स ही घहित हो सकती ह और तभी वषततजञान उतपनन हो सकता ह आधयाषतिक जञान क करिशः आषवटकार क मलए आधयाषतिक िागय का सा क कतताय या वयषकत क रप ि िाना जा सकता ह अब द सरी वसत या वयषकत किय क रप ि आवशयक ह

जब ऐषचछक अनशासन और एकागरता क दवारा अपन िन की तनियलता बढ़ती ह तब भावातीत चतना क परततबबमब क रप ि जञान का आषवटकार होता ह जञान क आषवटकार की िातरा फकय िन की तनियलता क फकय क कारण होता ह ककसी भी परकार क जञान क उदभव क मलए

बाहय सा न किय या ककरया आवशयक ह अतः सा क ि जञान का आषवभायव करन क मलए गर की आवशयकता होती ह परसपर परभाषवत करन की सावयबतरक परककरया क मलए एक द सर क प रक दो भाग क रप ि गर-मशटय ह मशटय ि जञान का उदय मशटय की पातरता और गर की चतनाशषकत पर अवलषमबत ह मशटय की िानमसक षसथतत अगर गर की चतना क आगिन क अनरप पयायपत िातरा ि तयार नही होती तो जञान का आदान-परदान नही हो सकता इस बरहिाणड ि कोई भी घिना घहित होन क मलए यह प वयशतय ह जब तक सावयबतरक परककरया क एक द सर क प रक ऐस दो भाग या दो अवसथाए इकटठी नही होती तब तक कही भी कोई भी घिना घहित नही हो सकती

आति-तनरीकषण क दवारा जञान का उदय सवतः हो सकता ह और इसमलए बाहय गर की बबलकल आवशयकता नही ह यह ित सवयसवीकत नही बन सकता इततहास बताता ह कक जञान की हर एक शाखा ि मशकषण की परककरया क मलए मशकषक की सघन परवषतत अतयत आवशयक ह यहद ककसी भी वयषकत ि ककसी भी सहायता क मसवाय सहज रीतत स जञान का उदय सभव होता तो सक ल कॉलज एव य तनवमसयहियो की कोई आवशयकता नही रहती जो लोग मशकषक की सहायता क बबना ही सवततर रीतत स कोई वयषकत कशल बन सकता ह ऐस गलत िागय पर ल जान वाल ित का परचार परसार करत ह व लोग सवय तो ककसी मशकषक क दवारा ही मशकषकषत होत ह हा जञान क उदय क मलए मशटय या षवदयाथी क परयास का िहततव कि नही ह मशकषक क उपदश षजतना ही उसका भी िहततव ह

इस बरहिाणड ि कतताय एव किय सतय क एक ही सतर पर षसथत ह कयोकक इसक मसवाय उनक बीच पारसपररक आदान-परदान सभव नही हो

सकता अलग सतर पर षसथत चतना शषकत क बीच परततककरया नही हो सकती हालाकक मशटय षजस सतर पर होता ह उस सतर को िाधयि बनाकर गर अपनी उचच चतना को मशटय पर कषनरत कर सकत ह इसस मशटय क िन का योगय रपातर हो सकता ह गर की चतना क इस कायय को शषकत सचार कहा जाता ह इस परककरया ि गर की शषकत मशटय ि परषवटि होती ह ऐस उदाहरण भी मिल जात ह कक मशटय क बदल ि गर न सवय ही सा ना की हो और उचच चतना की परतयकष सहायता क दवारा मशटय क िन की शदध करक उसका ऊधवीकरण ककया हो

दोिदषटिवाल लोग कहत ह अनतरातिा की सलाह लकर सतय-असतय अचछा-बरा हि पहचान सकत ह अतः बाहय गर की आवशयकता नही ह

ककनत यह बात धयान ि रह कक जब तक सा क शधच और इचछा-वासनारहहतता क मशखर पर नही पहच जाता तब तक योगय तनणयय करन ि अनतरातिा उस सहायरप नही बन सकती

पाशवी अनतरातिा ककसी वयषकत को आधयाषतिक जञान नही द सकती िनटय क षववक और बौदध क ित ह परायः सभी िनटयो की बदध सिपत इचछाओ तथा वासनाओ का एक सा न बन जाती ह िनटय की अनतरातिा उसक अमभगि झकाव रधच मशकषा आदत वषततया और अपन सिाज क अनरप बात ही कहती ह अफरीका क जगली आहदवासी समशकषकषत यरोषपयन और सदाचार की नीव पर सषवकमसत बन हए योगी की अनतरातिा की आवाज मभनन-मभनन होती ह बचपन स अलग-अलग ढग स बड़ हए दस अलग-अलग वयषकतयो की दस अलग-अलग अनतरातिा होती ह षवरोचन न सवय ही िनन

ककया अपनी अनतरातिा का िागयदशयन मलया एव ि कौन ह इस सिसया का आतितनरीकषण ककया और तनशचय ककया कक यह दह ही ि लभ त तततव ह

याद रखना चाहहए कक िनटय की अनतरातिा पाशवी वषततयो भावनाओ तथा पराकत वासनाओ की जाल ि फ सी हई ह िनटय क िन की वषतत षविय और अह की ओर ही जायगी आधयाषतिक िागय ि नही िड़गी आति-साकषातकार की सवोचच भ मिका ि षसथत गर ि मशटय अगर अपन वयषकततव का समप णय सिपयण कर द तो सा ना-िागय क ऐस भयसथानो स बच सकता ह ऐसा सा क ससार स पर हदवय परकाश को परापत कर सकता ह िनटय की बदध एव अनतरातिा को षजस परकार तनमियत ककया जाता ह अभयसत ककया जाता ह उसी परकार व कायय करत ह सािानयतः व दशयिान िायाजगत तथा षविय वसत की आकाकषा एव अह की आकाकषा प णय करन क मलए काययरत रहत ह सजग परयतन क बबना आधयाषतिक जञान क उचच सतय को परापत करन क मलए काययरत नही होत

गर की आवशयकता नही ह और हरएक को अपनी षववक-बदध तथा अनतरातिा का अनसरण करना चाहहए ऐस ित का परचार परसार करन वाल भ ल जात ह कक ऐस ित का परचार करक व सवय गर की तरह परसतत हो रह ह ककसी की मशकषक का आवशयकता नही ह ऐसा मसखान वालो को उनक मशटय िानपान और भषकतभाव अषपयत करत ह भगवान बद न अपन मशटयो को बो हदया कक ति सवय ही ताककय क षवशलिण करक िर मसद ानत की योगयता-अयोगयता और सतयता की जाच करो बद कहत ह इसमलए मसद ानत को सतय िानकर सवीकार कर लो ऐसा नही ककसी भी भगवान की प जा करना

ऐसा उनहोन मसखाया लककन इसका पररणाि यह आया कक िहान गर एव भगवान क रप ि उनकी प जा शर हो गई इस परकार सवय ही धचनतन करना चाहहए और गर की आवशयकता नही ह इस ित की मशकषा स सवाभाषवक ही सीखनवाल क मलए गर की आवशयकता का इनकार नही हो सकता िनटय क अनभव कतताय किय क परसपर समबन की परककरया पर आ ाररत ह

पषशचि ि कछ लोग िानत ह कक गर पर मशटय का अवलबन एक िानमसक बन न ह िानस-धचककतसा क िताबबक ऐस बन न स िकत होना जररी ह यहा सपटिता करना अतयनत आवशयक ह कक िानस-धचककतसा वाल िानमसक परावलमबन स गर-मशटय का समबन बबलकल मभनन ह गर की उचच चतना क आशरय ि मशटय अपना वयषकततव सिषपयत करता ह गर की उचच चतना मशटय की चतना को आवतत कर लती और उसका ऊधवीकरण मशटय का गर पर अवलमबन कवल परारभ ि ही होता ह बाद ि तो वह परबरहि की शरणागतत बन जाती ह गर सनातन शषकत क परतीक बनत ह ककसी ददी क िानस-धचककतसक परतत परावलमबन का समबन तोड़ना अतनवायय ह कयोकक यह समबन ददी का िानमसक तनाव कि करन क मलए असथायी समबन ह जब धचककतसा प री हो जाती ह तब यह परावलमबन तोड़ हदया जाता ह और ददी प वय की भातत अलग और सवततर हो जाता ह ककनत गर-मशटय क समबन ि परारभ ि या अनत ि कभी भी अतनचछनीय परावलमबन नही होता यह तो कवल पराशषकत पर ही अवलमबन होता ह गर को दह सवरप ि यह एक वयषकत क सवरप ि नही िाना जाता ह गर पर अवलमबन मशटय क पकष ि दखा जाय तो

आतिशदध की तनरतर परककरया ह षजसक दवारा मशटय ईशवरीय परि तततव का अतति लकषय परापत कर सकता ह

कछ लोग उदाहरण दत ह कक पराचीन सिय ि भी याजञवलकय न अपन गर वशपायन स अलग होकर ककसी भी अनय गर की सहाय क बबना ही सवततर रीतत स आधयाषतिक षवकास ककया था परनत याजञवालकय गर स अलग हो गय इसका अथय यह नही ह कक व गर क वफादार नही थ गर न करोध त होकर कहा था कक उनहोन दी हई षवदया लौिाकर आशरि छोड़कर चल जाओ फलतः याजञवलकय ि िानव-गर क परतत अशरद ा का परादभायव हआ लककन उनहोन गर की खोज करना छोड़ नही हदया उनहोन गर की आवशयकता का असवीकार नही ककया ह और आधयाषतिक िागय ि सवततर रीतत स आग बढ़ा जा सकता ह ऐसा भी नही िाना ह उनहोन उचचतर गर स ययनारायण का आशरय मलया जब उनहोन कफर स जञान परापत ककया तब स यय की कपा परापत करन क मलए याजञवलकय क दढ़ सकलप बल एव हहमित पर परसनन होकर परान गर न अपन अनय मशटयो को जञान दन क मलए पराथयना की तब याजञवलकय न अनय मशटयो को भी जञान हदया था

परकतत क षवमभनन सवरपो क दवारा अमभवयकत ईशवर ही सवोचच गर ह हिार इदयधगदय जो षवशव ह वह हिार जीवन ि बो दन वाला मशकषक ह हि अगर परकतत की लीला क परतत सजग रह तो हिार सिकष होन वाली हरएक घिना ि गहन रहसय एव बो पाठ मिल जाता ह यह षवशव ईशवर का साकार सवरप ह उसकी लीला ग ढ़ और रहसयिय ह यह लीला आनतर एव बाहय वयषकतलकषी एव वसतलकषी हर परकार क जीवन क अनभवो को सिाषवटि कर लती ह उसको जानन स सिझन स हिार अनभव भावना एव सिझ का योगय

षवकास होता ह परबरहि क परतत हिार षवकास क मलए पररवतयन सभव बनता ह

अगर हि परकतत की उतकराषनत की परककरया क साथ वयषकतगत षवकास को नही जोड़ग तो कवल याबतरक षवकास होगा उसि वयषकत अतनवाययतः घसीिा जाता ह उस पर ककसी वयषकत का तनयतरण नही होता ककनत षवकास जब परि चतना क अश सवरप होता ह और वयषकत की अपनी चतना ि घलमिल जाता ह तब योग की परककरया घहित होती ह वयषकत की चतना अपन अषसततव को आतिा क साथ पहचानकर अपन आतिा ि वषशवक उतकराषनत का अनभव कर यह परककरया योग ह अनय दषटि स दख तो बरहिाणड की लीला का लघ सवरप ि अपनी आतिा ि अनभव करना योग ह जब यह षसथतत परापत होती ह तब वयषकत ईशवरचछा को समप णयतः शरण हो जाता ह अथवा पराशषकत क तनयि उसको इतन तादश बन जात ह कक परकतत की घिनाओ एव िनटय की इचछाओ क बीच सघिो का प णयतः लोप हो जाता ह उस वयषकत की अमभलािाए दवी इचछा या परकतत की घिनाओ स अमभनन बन जाती ह

गर की यह सवोचच षवभावना ह और हर सा क को यह परापत करना ह वयषकतगत गर का सवीकार करना यानी सा क की परबरहि ि षवलीन होन की तयारी और उस हदशा ि एक सोपान गर की षवभावना क षवकास क मलए तथा वयषकत की गर क परतत शरणागतत षवमभनन सोपान ह कफर भी सा ना क ककसी भी सोपान पर गर की आवशयकता का इनकार नही हो सकता कयोकक आति-साकषातकार क मलए तड़पत हए सा क को होन वाली परबरहि की अनभ तत का नाि गर ह

अनकरि

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गरभलकतयोग की महतता बरहमलीन सवामी लशवाननदजी

षजस परकार शीघर ईशवरदशयन क मलए कमलयग-सा ना क रप कीतयन-सा ना ह उसी परकार इस सशय नाषसतकता अमभिान और अहकार क यग ि योग की एक नई पद तत यहा परसतत हगरभषकतयोग यह योग अदभत ह इसकी शषकत असीि ह इसका परभाव अिोघ ह इसकी िहतता अवणयनीय ह इस यग क मलए उपयोगी इस षवशि योग-पद तत क दवारा आप इस हाड़-चाि क पाधथयव दह ि रहत हए ईशवर क परतयकष दशयन कर सकत ह इसी जीवन ि आप उनह आपक साथ षवचरण करत हए तनहार सकत ह

सा ना का बड़ा दशिन रजोगणी अहकार ह अमभिान को तनि यल करन क मलए एव षवििय अहकार को षपघलान क मलए गरभषकतयोग उतति और सबस अध क सचोि सा निागय ह षजस परकार ककसी रोग क षविाण तनि यल करन क मलए कोई षवशि परकार की जनतनाशक दवाई आवशयक ह उसी परकार अषवदया और अहकार क नाश क मलए गरभषकतयोग सबस अध क परभावशाली अि लय और तनषशचत परकार का उपचार ह वह सबस अध क परभावशाली िायानाशक और अहकार नाशक ह गरभषकतयोग की भावना ि जो सदभागी मशटय तनटठाप वयक सराबोर होत ह उन पर िाया और अहकार क रोग की कोई कसर नही होती इस योग का आशरय लन वाला वयषकत सचिछ भागयशाली ह

कयोकक वह योग क अनय परकारो ि भी सवोचच सफलता हामसल करगा उसको किय भषकत धयान और जञानयोग क फल प णयतः परापत होग

इस योग ि सलगन होन क मलए तीन गणो की आवशयकता हः तनटठा शरद ा और आजञापालन प णयता क धयय ि सतनटठ रहो सशयी और ढील ढाल ित रहना अपन सवीकत गर ि समप णय शरद ा रखो आपक िन ि सशय की छाया को भी फिकन ित दना एक बार गर ि समप णय शरद ा दढ़ कर लन क बाद आप सिझन लगग कक उनका उपदश आपकी शरटठ भलाई क मलए ही होता ह अतः उनक शबद का अनतःकरणप वयक पालन करो उनक उपदश का अकषरशः अनसरण करो आप हदयप वयक इस परकार करग तो ि षवशवास हदलाता ह कक आप प णयता को परापत करग ही ि पनः दढ़ताप वयक षवशवास हदलाता ह

अनकरि

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पप सत शरी आसारामजी बापः एक अदभत ववभतत

धयान और योग क अनभव कस परापत ककय जाए प जा पाठ जप-तप धयान करन पर भी जीवन ि वयापत अतषपत का कस तनवारण कर ईशवर ि कस िन लगाय अपन अदर ही तनहहत आतिानद क खजान को कस खोल वयावहाररक जीवन ि परशान करन वाल भय धचनता तनराशा हताशा आहद को जीवन स द र कस भगाय तनषशचतता तनभययता तनरनतर परसननता परापत करक जीवन को आननद स कस िहकाय अपन पराचीन शासतरो ि वरणयत आननद-सवरप ईशवर

क अषसततव की झाकी हि अपन हदय ि कस पाय कया आज भी यह सब समभव ह

हा समभव ह अवशयिव िानव को धचततत बनान वाल इन परशनो का सिा ान सा ना क तनषशचत पररणािो क दवारा कराक षपपास सा को क जीवन को ईशवरामभिख करक उस ि रता परदान करन वाल ऋषि-िहषिय और सत-िहापरि आज भी सिाज ि वतयिान ह बहरसना वसनधरा इस सत िहापरिो की सगध त हारिाला ि प जयपाद सत शरी आसारािजी बाप एक प णय षवकमसत सि र पटप ह

अहिदाबाद शहर ि ककनत शहरी वातावरण स द र साबरितत की िनिोहक पराकततक गोद ि तवररत गतत स षवकमसत हए उनक पावन आशरि क अधयातिपोिक वातावरण ि आज हजारो सा क जाकर भषकतयोग नादानस ानयोग जञानयोग एव कणडमलनी योग की शषकतपात विाय का लाभ उठा-उठाकर अपन वयषकतगत पारिाधथयक जीवन को अध काध क उननत एव आननदिय बना रह ह धचतत ि सिता का परसाद पाकर व वयावहाररक जीवन-नौका को बड़ ही उतसाह स ख-खकर तनहाल होत जा रह ह

पराचीन ऋषि कलो का सिरण करान वाल इस पावन आशरि ि कणडमलनी योग की सचची अनभ तत कराक आषतिक परिसागर ि डबकी लगवाकर िानव सिदाय को ईशवरीय आननद ि सराबोर करक अगितनगि क औमलया हजारो तपत हदयवाल ससारयाबतरयो क आशरयदाता वि-वकषतलय परिप णय हदयवाल सहज साषननधय और सतसग िातर स वदानत क अित-रस का सवाद चखा रह ह

सत शरी क नाि को सनकर उनकी पसतक पढ़कर अनक सजजन उनक दशयन और िलाकात क मलए कत हलवश एक बार उनक आशरि ि

आत ह कफर तो व तनयमित आन वाल सा क बनकर योग और वदानत क रमसक बन जात ह व अपन जीवन-परवाह को अितिय आननद-मसन की तरफ बहत हए दखकर हदय ि गदगहदत हो जात ह आननद ि सराबोर हो जात ह

एक अजब योगी आशरि ि जाकर प जयशरी क दशयन और आधयाषतिक तज स

उददीपत नयनाित स मसकत एक सपरमसद लखक वकता ततरी सजजन न मलखा हः

कोई िझस प छ की अहिदाबाद क आसपास कौन सचचा योगी ह ि तरनत सत शरी आसारािजी बाप का नाि द गा साबरति षसथत एक भवय एव षवशाल आशरि ि षवराजिान इन हदवयातिा िहापरि का दशयन करना वासतव ि जीवन की एक उपलषब ह उनक तनकि ि पहचना तनषशचत ही अहोभागय की सीिा पर पहचना ह

योधगयो की खोज ि ि काफी भिका ह पवयत और गफाओ क चककर कािन ि कभी पीछ िड़कर दखा तक नही परनत परभतवशाली वयषकत क िहा नी ऐस सत शरी आसारािजी बाप स मिलत ही िर अनतर ि परतीतत सी हो गई कक यहा तो शद ति सवणय ही सवणय ह

परम और परजञा क सागर

सत शरी की आखो ि ऐसा हदवय तज जगिगाया करता ह कक उनक अनदर की गहरी अतल हदवयता ि ड ब जान की कािना करन वाला कषणभर ि ही उसि ड ब जाता ह िानो उन आखो ि परि और परकाश का असीि सागर हहलौर ल रहा ह

व सरल भी इतन कक छोि-छोि बालको की तरह वयवहार करन लग उनि जञान भी ऐसा अदभत कक षवकि पहली को पलभर ि

सलझा कर रख द उनकी वाणी की बनकार ऐसी कक सजगता क ति पर सोनवाल को कषणभर ि जगाकर जञान-सागर की िसती ि लीन कर द

अनक शलकतयो क सवामी अनयतर कही दखी न गई हो ऐसी योगमसदध िन अनक बार उनि

दखी ह अनक दररहरयो को उनहोन सख और सिदध क सागर ि सर करन वाल बना हदय ह उनक चमबकीय शषकत-समपनन पावन साषननधय ि असखय सा को दवारा सवानभ त चितकारो और हदवय अनभवो का आलखन करन लग तो एक षवराि भागवत कथा तयार हो जाय आगत वयषकत क िन को जान लन की शषकत तो उनि इतनी तीवरता स सककरय रहती ह िानो सिसत नभिणडल को व अपन हाथो ि लकर दख रह हो

ऐस परि मसद परि क साषननधय ि उनकी पररक पावन अितवाणी ि स तमहारी जीवन-सिसयाओ का सागोपाग हल तमह अवशय मिल जायगा

साबरति पर षसथत चतनय लोक तलय सत शरी आसारािजी आशरि ि परषवटि होत ही एक अदभत शाषनत की अनभ तत होन लगती ह परतयक रषववार और ब वार को दोपहर 11 बज स हररोज शाि 6 बज स एव धयानयोग मशषवरो क दौरान आशरि ि जञानगगा उिड़ती रहती ह आधयाषतिक अनभ ततयो क उपवन लहलहात ह आशरि का समप णय वातावरण िानो एक चतनय षवदयततज स छलछलाता ह परि चतनय िानो सवय ही ि ततय सवरप ारण करक परि और परकाश का सागर लहराता ह षवदयाधथययो क मलए आयोषजत योग मशषवरो ि अनक

षवदयाधथययो क मलए आयोषजत योग मशषवरो ि अनक षवदयाधथययो एव अधयापको न अपन जीवन-षवकास का अनोखा पथ पा मलया ह

प जय बाप का षवदयनिय वयषकततव अनतसतल की गहराई ि स उिड़ती हई वाणी की गग ारा और आशरि क सिगर वातावरण ि फलती हई हदवयता का आसवाद एक बार भी षजस ककसी को मिल जाता ह वह कदाषप उस भ ल नही सकता जो अपन उर क आगन ि अित गरहण करन क मलए ततपर हो उस अित का आसवाद अवशय मिल जाता ह

बरहितनटठ योगमसद िा यय क िहामसन सिान सत शरी आसाराि जी बाप का साषननधय सवन करन वाल का और अितविाय को सगरहहत करन वाल का अलप परिाथय भी वयथय नही जायगा ऐसा अनको का अनभव बोल रहा ह

गरतवव

षजस परकार षपता या षपतािह की सवा करन स पतर या पौतर खश होता ह इसी परकार गर की सवा करन स ितर परसनन होता ह गर ितर एव इटिदव ि कोई भद नही िानना गर ही ईशवर ह उनको कवल िानव ही नही िानना षजस सथान ि गर तनवास कर रह ह वह सथान कलास ह षजस घर ि व रहत ह वह काशी या वाराणसी ह उनक पावन चरणो का पानी गगाजी सवय ह उनको पावन िख स उचचाररत ितर रकषणकतताय बरहिा सवय ही ह

गर की ि ततय धयान का ि ल ह गर क चरणकिल प जा का ि ल ह गर का वचन िोकष का ि ल ह

गर तीथयसथान ह गर अषगन ह गर स यय ह गर सिसत जगत ह सिसत षवशव क तीथय ाि गर क चरणकिलो ि बस रह ह बरहिा

षवटण मशव पावयती इनर आहद सब दव और सब पषवतर नहदया शाशवत काल स गर की दह ि षसथत ह कवल मशव ही गर ह

गर और इटिदव ि कोई भद नही ह जो सा ना एव योग क षवमभनन परकार मसखात ह व मशकषागर ह सबि सवोचच गर व ह षजनस इटिदव का ितर शरवण ककया जाता ह और सीखा जाता ह उनक दवारा ही मसदध परापत की जा सकती ह

अगर गर परसनन हो तो भगवान परसनन होत ह गर नाराज हो तो भगवान नाराज होत ह गर इटिदवता क षपतािह ह

जो िन वचन किय स पषवतर ह इषनरयो पर षजनका सयि ह षजनको शासतरो का जञान ह जो सतयवरती एव परशात ह षजनको ईशवर-साकषातकार हआ ह व गर ह

बर चररतरवाला वयषकत गर नही हो सकता शषकतशाली मशटयो को कभी शषकतशाली गरओ की किी नही रहती मशटय को षजतनी-षजतनी गर ि शरद ा होती ह उतन फल की उस पराषपत होती ह ककसी आदिी क पास य तनवमसयिी की उपाध या हो इसस वह गर की कसौिी करन की योगयतावाला नही बन जाता गर क आधयाषतिक जञान की कसौिी करना यह ककसी भी िनटय क मलए ि खयता एव उददणडता की पराकाटठा ह ऐसा वयषकत दनयावी जञान क मिथयामभिान स अन बना हआ ह

अनकरि

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परकरर 1

गरभलकतयोग

गरभलकतयोग क अश

गरभषकतयोग िाना सदगर को समप णय आतिसिपयण करना

गरभषकतयोग क आठ िहततवप णय अग इस परकार ह- (अ) गर भषकतयोगक अभयास क मलए सचच हदय की षसथर िहचछा (ब) सदगर क षवचार वाणी और कायो ि समप णय शरद ा (क) गर क नाि का उचचारण और गर को नमरताप वयक साटिाग परणाि (ड) समप णय आजञाकाररता क साथ गर क आदशो का पालन (प) बबना फलपराषपत की अपकषा सदगर की सवा (फ) भषकतभावप वयक हररोज सदगर क चरणकिलो की प जा (भ) सदगर क दवी कायय क मलए आति-सिपयण तन िन न सिपयण (ि) गर की कलयाणकारी कपा परापत करन क मलए एव उनका पषवतर उपदश सनकर उसका आचरण करन क मलए सदगर क पषवतर चरणो का धयान

गरभषकतयोग योग का एक सवततर परकार ह

ििकष जब तक गरभषकतयोग का अभयास नही करता तब तक ईशवर क साथ एकरपता होन क मलए आधयाषतिक िागय ि परवश करना उसक मलए समभव नही ह

जो वयषकत गरभषकतयोग की कफलासफी सिझता ह वही गर को बबनशरती आति-सिपयण कर सकता ह

जीवन क परि धयय अथायत आति-साकषातकार की पराषपत गरभषकतयोग क अभयास दवारा ही हो सकती ह

गरभषकत का योग सचचा एव सरकषकषत योग ह षजसका अभयास करन ि ककसी भी परकार का भय नही ह

आजञाकारी बनकर गर क आदशो का पालन करना उनक उपदशो को जीवन ि उतारना यही गरभषकतयोग का सार ह

गरभलकतयोग का हत

िनटय को पदाथय एव परकतत क बन नो स िषकत हदलाना और गर को समप णय आतिसिपयण करक सव क अबाधय सवततर सवभाव का भान कराना यह गरभषकतयोग का हत ह

जो वयषकत गरभषकतयोग का अभयास करता ह वह बबना ककसी षवपषतत स अहभाव को तनि यल कर सकता ह ससार क िमलन जल को बहत सरलता स पार कर जाता ह और अिरतव एव शाशवत सख परापत करता ह

गरभषकतयोग िन को शानत और तनशचल बनान वाला ह गरभषकतयोग हदवय सख क दवार खोलन की अिोघ क जी ह

गरभषकतयोग क दवारा सदगर की कलयाणकारी कपा परापत करना जीवन का लकषय ह

गरभलकतयोग क लसदधानत

नमरताप वयक प जयशरी सदगर क पदारषवनद क पास जाओ सदगर क जीवनदायी चरणो ि साटिाग परणाि करो सदगर क चरणकिल की शरण ि जाओ सदगर क पावन चरणो की प जा करो सदगर क पावन चरणो का धयान करो सदगर क पावन चरणो ि ि लयवान अघयय अपयण करो सदगर क यशःकारी चरणो की सवा ि जीवन अपयण करो सदगर क दवी चरणो की मल बन जाओ ऐसा गरभकत हठयोगी लययोगी और राजयोधगयो स जयादा सरलताप वयक एव सलाित रीतत स सतय सवरप का साकषातकार करक नय हो जाता ह

सदगर क दवी पावन चरणो ि आतिसिपयण करन वाल को तनषशचनतता तनभययता और आननद सहजता स परापत होता ह वह लाभाषनवत हो जाता ह

आपको गरभषकतयोग क िागय दवारा सचच हदय स ततपरताप वयक परयास करना चाहहए

गर क परतत भषकत इस योग का सबस िहततवप णय अग ह

पषवतर शासतरो क षवशिजञ बरहितनटठ गर क षवचार वाणी और कायो ि समप णय शरद ा गरभषकतयोग का सार ह

गरभलकतयोग एक ववजञान क रप म इस यग ि आचरण ककया जा सक ऐसा सबस ऊ चा और सबस

सरल योग गरभषकतयोग ह

गरभषकतयोग की कफलासफी ि सबस बड़ी बात गर को परिशवर क साथ एकरप िानना ह

गरभषकतयोग की कफलासफी का वयावहाररक सवरप यह ह कक गर को अपन इटिदवता स अमभनन िान

गरभषकतयोग ऐसी कफलासफी नही ह जो पतर-वयवहार या वयाखयानो क दवारा मसखाई जा सक इसि तो मशटय को कई विय तक गर क पास रहकर मशसत एव सयिप णय जीवन बबताना चाहहए बरहिचयय का पालन करना चाहहए एव गहरा धयान करना चाहहए

गरभषकतयोग सवोतति षवजञान ह

गरभलकतयोग का फल

गरभषकतयोग अिरतव परि सख िषकत समप णयता शाशवत आननद और धचरतन शाषनत परदान करता ह

गरभषकतयोग का अभयास सासाररक पदाथो क परतत तनःसपहता और वरागय परररत करता ह तथा तटणा का छदन करता ह एव कवलय िोकष दता ह

गरभषकतयोग का अभयास भावनाओ एव तटणाओ पर षवजय पान ि मशटय को सहायरप बनता ह परलोभनो क साथ िककर लन ि तथा िन को कषब करन वाल तततवो का नाश करन ि सहाय करता ह अन कार को पार करक परकाश की ओर ल जान वाली गरकपा करन क मलए मशटय को योगय बनाता ह

गरभषकतयोग का अभयास आपको भय अजञान तनराशा सशय रोग धचनता आहद स िकत होन क मलए शषकतिान बनाता ह और िोकष परि शाषनत और शाशवत आननद परदान करता ह

गरभलकतयोग की साधना गरभषकतयोग का अथय ह वयषकतगत भावनाओ इचछाओ सिझ-

बदध एव तनशचयातिक बदध क पररवतयन दवारा अहोभाव को अनत चतना सवरप ि पररणत करना

गरभषकतयोग गरकपा क दवारा परापत सचोि सनदर अनशासन का िागय ह

गरभलकतयोग का महवव

किययोग भषकतयोग हठयोग राजयोग आहद सब योगो की नीव गरभषकतयोग ह

जो िनटय गरभषकतयोग क िागय स षविख ह वह अजञान अन कार एव ितय की परमपरा को परापत होता ह

गरभषकतयोग का अभयास जीवन क परि धयय की पराषपत का िागय हदखाता ह

गरभषकतयोग का अभयास सबक मलए खलला ह सब िहातिा एव षवदवान परिो न गरभषकतयोग क अभयास दवारा ही िहान कायय ककय

ह जस एकनाथ िहाराज प रणपोड़ा तोिकाचायय एकलवय शबरी सहजोबाई आहद

गरभषकतयोग ि सब योग सिाषवटि हो जात ह गरभषकतयोग क आशरय क बबना अनय कई योग षजनका आचरण अतत कहठन ह उनका समप णय अभयास ककसी स नही हो सकता

गरभषकतयोग ि आचायय की उपासना क दवारा गरकपा की पराषपत को ख ब िहततव हदया जाता ह

गरभषकतयोग वद एव उपतनिद क सिय षजतना पराचीन ह गरभषकतयोग जीवन क सब दःख एव ददो को द र करन का िागय

हदखाता ह

गरभषकतयोग का िागय कवल योगय मशटय को ही ततकाल फल दनवाला ह

गरभषकतयोग अहभाव क नाश एव शाशवत सख की पराषपत ि पररणत होता ह

गरभषकतयोग सवोतति योग ह

इस मागक क भयसथान

गर क पावन चरणो ि साटिाग परणाि करन ि सकोच होना यह गरभषकतयोग क अभयास ि बड़ा अवरो ह

आति-बड़पपन आति-नयायीपन मिथयामभिान आतिवचना दपय सवचछनदीपना दीघयस तरता हठागरह तछरनविी कसग बईिानी अमभिान षविय-वासना करो लोभ अहभाव य सब गरभषकतयोग क िागय ि आनवाल षवघन ह

गरभषकतयोग क सतत अभयास क दवारा िन की चचल परकतत का नाश करो

जब िन की बबखरी हई शषकत क ककरण एकबतरत होत ह तब चितकाररक कायय कर सकत ह

गरभषकतयोग का शासतर सिाध एव आति-साकषातकार करन हत हदयशदध परापत करन क मलए गरसवा पर ख ब जोर दता ह

सचचा मशटय गरभषकतयोग क अभयास ि लगा रहता ह

पहल गरभकतोयोग की कफलासफी सिझो कफर उसका आचरण करो आपको सफलता अवशय मिलगी

तिाि दगयणो को तनि यल करन का एकिातर असरकारक उपाय ह गरभषकतयोग का आचरण

गरभलकतयोग क मल लसदधानत

गर ि अखणड शरद ा गरभषकतयोग रपी वकष का ि ल ह

उततरोततर व यिान भषकतभावना नमरता आजञा-पालन आहद इस वकष की शाखाए ह सवा फ ल ह गर को आतिसिपयण करना अिर फल ह

अगर आपको गर क जीवनदायक चरणो ि दढ़ शरद ा एव भषकतभाव हो तो आपको गरभषकतयोग क अभयास ि सफलता अवशय मिलगी

सचच हदयप वयक गर की शरण ि जाना ही गरभषकतयोग का सार ह

गरभषकतयोग का अभयास िान गर क परतत शद उतकि परि

ईिानदारी क मसवाय गरभषकतयोग ि बबलकल परगतत नही हो सकती

िहान योगी गर क आशरय ि उचच आधयाषतिक सपननदनोवाल शानत सथान ि रहो कफर उनकी तनगरानी ि गरभषकतयोग का अभयास करो तभी आपको गरभषकतयोग ि सफलता मिलगी

गरभषकतयोग का िखय मसद ानत बरहितनटठ गर क चरणकिल ि बबनशरती आतिसिपयण करना ही ह

गरभलकतयोग क मखय लसदधानत

गरभषकतयोग की कफलासफी क िताबबक गर एव ईशवर एकरप ह अतः गर क परतत समप णय आतिसिपयण करना अतयत आवशयक ह

गर क परतत समप णय आति-सिपयण करना यह गरभषकत का सवोचच सोपान ह

गरभषकतयोग क अभयास ि गरसवा सवयसव ह

गरकपा गरभषकतयोग का आरखरी धयय ह

िोिी बदध का मशटय गरभषकतयोग क अभयास ि कोई तनषशचत परगतत नही कर सकता

जो मशटय गरभषकतयोग का अभयास करना चाहता ह उसक मलए कसग शतर क सिान ह

अगर आपको गरभषकतयोग का अभयास करना हो तो षवियी जीवन का तयाग करो

शाशवत सख का मागक जो वयषकत दःख को पार करक जीवन ि सख एव आननद परापत

करना चाहता ह उस अनतःकरणप वयक गरभषकतयोग का अभयास करना जररी ह

सचचा एव शाशवत सख तो गरसवायोग का आशरय लन स ही मिल सकता ह नाशवान पदाथो स नही

जनि-ितय क लगातार चलन वाल चककर स छ िन का कोई उपाय नही ह कया सख-दःख हिय-शोक क दवनदवो ि स िषकत नही मिल सकती कया सन ह मशटय इसका एक तनषशचत उपाय ह नाशवान

षवियी पदाथो ि स अपना िन वापस खीच ल और गरभषकतयोग का आशरय ल इसस त सख-दःख हिय-शोक जनि-ितय क दवनदवो स पार हो जायगा

िनटय जब गरभषकतयोग का आशरय लता ह तभी उसका सचचा जीवन शर होता ह जो वयषकत गरभषकतयोग का अभयास करता ह उस इस लोक ि एव परलोक ि धचरनतन सख परापत होता ह

गरभषकतयोग उसक अभयास को धचराय एव शाशवत सख परदान करता ह

िन ही इस ससार एव उसकी परककरया का ि ल ह िन ही बन न और िोकष सख और दःख का ि ल ह इस िन को कवल गरभषकतयोग क दवारा ही सयि ि रखा जा सकता ह

गरभषकतयोग अिरतव शाशवत सख िषकत प णयता अख ि आननद और धचरतन शाषनत दनवाला ह

गरभलकतयोग की महतता परि शाषनत का राजिागय गरभषकतयोग क अभयास स शर होता

जो जो मसदध या सनयास तयाग अनय योग दान एव शभ कायय आहद स परापत की जा सकती ह व सब मसदध या गरभषकतयोग क अभयास क शीघर परापत हो सकती ह

गरभषकतयोग एक शद षवजञान ह जो तनमन परकतत को वश ि लाकर परि सख परापत करन की पद तत हि मसखाता ह

कछ लोग िानत ह कक गरसवायोग तनमन कोहि का योग ह आधयाषतिक रहसय क बार ि यह उनकी बड़ी गलतफहिी ह

गरभषकतयोग गरसवायोग गरशरणयोग आहद सिानाथी शबद ह उनि कोई अथयभद नही ह

गरभषकतयोग सब योगो का राजा ह गरभषकतयोग ईशवरजञान क मलए सबस सरल सबस तनषशचत

सबस शीघरगािी सबस ससता भयरहहत िागय ह आप सब इसी जनि ि गरभषकतयोग क दवारा ईशवरजञान परापत करो यही शभ कािना ह

लशषटय को सचनाएा गरभषकतयोग का आशरय लकर आप अपनी खोयी हई हदवयता को

पनः परापत करो सख-दःख जनि-ितय आहद सब दवनदवो स पार हो जाओ

जगली बाघ शर या हाथी को पालना बहत सरल ह पानी या आग क ऊपर चलना बहत सरल ह लककन जब तक िनटय को गरभषकतयोग क अभयास क मलए हदय की तिनना नही जागती तब तक सदगर क चरणकिलो की शरण ि जाना बहत िषशकल ह

गरभषकतयोग िान गर की सवा क दवारा िन और उसक षवकारो पर तनयतरण एव पनःससकरण

गर को समप णय बबनशरती शरणागतत करना गरभषकत परापत करन क मलए तनषशचत िागय ह

गरभषकतयोग की नीव गर क ऊपर अखणड शरद ा ि तनहहत ह

अगर आपको सचिच ईशवर की आवशयकता हो तो सासाररक सखभोगो स द र रहो और गरभषकतयोग का आशरय लो

ककसी भी परकार की रकावि क बबना गरभषकतयोग का अभयास जारी रखो

गरभषकतयोग का अभयास ही िनटय को जीवन क हर कषतर ि तनभयय एव सदा सखी बना सकता ह

गरभषकतयोग क दवारा अपन भीतर ही अिर आतिा की खोज करो

गरभषकतयोग को जीवन का एकिातर हत उददशय एव सचच रस का षविय बनाओ इसस आपको परि सख की पराषपत होगी

गरभषकतयोग जञानपराषपत ि सहायक ह

गरभषकतयोग का िखय हत तफानी इषनरयो पर एव भिकत हए िन पर तनयतरण पाना ह

गरभषकतयोग हहनद ससकतत की एक पराचीन शाखा ह जो िनटय को शाशवत सख क िागय ि ल जाती ह और ईशवर क साथ सखद सिनवय करा दती ह

गरभषकतयोग आधयाषतिक और िानमसक आति-षवकास का शासतर ह

गरभषकतयोग का हत िनटय को षवियो क बन न स िकत करक उस शाशवत सख और दवी शषकत की ि ल षसथतत की पनः पराषपत करान का ह

गरभषकतयोग िनटय को दःख जरा और वयाध स िकत करता ह उस धचराय बनाता ह शाशवत सख परदान करता ह

गरभषकतयोग ि शारीररक िानमसक नततक और आधयाषतिक हर परकार क अनशासन का सिावश हो जाता ह इसस िनटय आतपपरभतव एव आति-साकषातकार पा सकता ह

गरभषकतयोग िन की शषकतयो पर षवजय परापत करन क मलए षवजञान एव कला ह

अनकरि

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परकरर-2

गर और लशषटय

गर की महतता जो आख गर क चरणकिलो का सौनदयय नही दख सकती व आख

सचिच अन ह जो कान गर की लीला की िहहिा नही सनत व कान सचिच

बहर ह गर रहहत जीवन ितय क सिान ह

गर कपा की समपषतत जसा और कोई खजाना नही ह भवसागर को पार करन क मलए गर क सतसग जसी और कोई

सरकषकषत नौका नही ह आधयाषतिक गर जसा और कोई मितर नही ह

गर क चरणकिल जसा और कोई आशरय नही ह

सदव गर की रि लगाओ

गर क परतत भलकतभावना शरद ा भषकत और ततपरता क फ लो स गर की प जा करो

आति-साकषातकार क िषनदर ि गर का सतसग परथि सतमभ ह

ईशवरकपा गर का सवरप ारण करती ह गर क दशयन करना ईशवर क दशयन करन क बराबर ह

षजसन सदगर क दशयन नही ककय वह िनटय अन ा ही ह िय कवल एक ही ह और वह ह गर क परतत भषकत एव परि का

िय

जब आपको दनयावी अपकषा नही रहती तब गर क परतत भषकतभाव जागता ह

आतिवतता गर क सग क परभाव स आपका जीवनसगराि सरल बन जायगा

गर का आशरय लो और सतय का अनसरण करो

आपक गर की कपा ि शरद ा रखो और अपन कततयवय का पालन करो गर की आजञा का अततकरिण िान खद ही अपनी कबर खोदन क बराबर ह सदगर मशटय पर सतत आशीवायद बरसात ह आतिसाकषातकारी गर जगदगर ह परि गर ह

जगदगर का हदय सौनदयय का ाि ह

गर की सवा जीवन का धयय गर की सवा करन का बनाओ

जीवन का हरएक कि अनभव गर क परतत आपकी शरद ा की कसौिी ह

मशटय कायय की धगनती करता ह जबकक गर उसक पीछ तनहहत हत और इराद की तलना करत ह

गर क कायय को सनदहप वयक दखना सबस बड़ा पाप ह गर क सिकष अपना दमभप णय हदखावा करन की कभी कोमशश ित

करना मशटय क मलए तो गरआजञापालन जीवन का कान न ह

आपक हदवय गर की सवा करन का कोई भी िौका चकना नही

जब आप अपन हदवय गर की सवा करो तब एकतनटठ और वफादार रहना

गर पर परि रखना आजञापालन करना यानी गर की सवा करना

गर की आजञा का पालन करना उनक समिान करन स भी बढ़कर ह

गर आजञा का पालन तयाग स भी बढ़कर ह

हर ककसी पररषसथतत ि अपन गर को तिाि परकार स अनक ल हो जाओ

अपन गर की उपषसथतत ि अध क बातचीत ित करो

गर क परतत शद परि यह गर आजञापालन का सचचा सवरप ह अपनी उततिोतति वसत परथि अपन गर को सिषपयत करो इसस

आसषकत सहज ि मििगी

मशटय ईटयाय डाह एव अमभिान रहहत तनःसपह और गर क परतत दढ़ भषकतभाववाला होना चाहहए वह ययवान और सतय को जानन क मलए तनशचयवाला होना चाहहए

मशटय को अपन गर क दोि नही दखना चाहहए मशटय को गर क सिकष अनावशयक एव अयोगय परलाप नही करना

चाहहए गर क दवारा जो सदजञान परापत होता ह वह िाया अथवा अधयास

का नाश करता ह

एक ही ईशवर अनक रप ि िाया क कारण हदखता ह ऐसा षजसको गरकपा स जञान होता ह वह सतय को जानता ह और वदो को सिझता ह

गरसवा और प जा क दवारा परापत तनरनतर भषकत स तीकषण ार वाल जञान क कलहाड़ स त ीर- ीर पर दढ़ताप वयक इस ससार रपी वकष को काि द

गर जीवन नौका का सकान ह और ईशवर उस नौका को चलान वाला अनक ल पवन ह

जब िनटय को ससार क परतत घणा उपजती ह उस वरागय आता ह और गर क हदय हए उपदश का धचनतन करन क मलए शषकतिान होता ह तब धयान ि बार-बार अभयासक कारण उसक िन की अतनटि परकतत द र होती ह

गर स भली परकार जान मलया जाय तभी ितर क दवारा शद पदा होती ह

लशषटयववतत क लसदधानत

िनटय अनाहद काल स अजञान क परभाव ि होन क कारण गर क बबना उस आति-साकषातकार नही हो सकता जो बरहि को जानता ह वही द सर को बरहिजञान द सकता ह

सयान िनटय को चाहहए कक वह अपन गर को आतिा-परिातिारप जानकर अषवरत भषकतभावप वयक उनकी प जा कर अथायत उनक साथ तदाकार बन

मशटय को गर एव ईशवर क परतत सतनटठ भषकतभाव होना चाहहए मशटय को आजञाकारी बनकर साव ान िन स एव तनटठाप वयक गर

की सवा करनी चाहहए और उनस भगवद भकत क कततयवय अथवा भगवद िय जानना चाहहए

मशटय को ईशवर क रप ि गर की सवा करना चाहहए षवशव क नाथ को परसनन करन का एव उनकी कपा क योगय बनन का सतनषशचत उपाय ह

मशटय को वरागय का अभयास करना चाहहए और अपन आधयाषतिक गर का सतसग करना चाहहए

मशटय को परथि तो अपन गर की कपा परापत करना चाहहए और उनक बताय हए िागय ि चलना चाहहए

मशटय को अपनी इषनरयो को सयि ि रखकर गर क आशरय ि रहना चाहहए सवा सा ना एव शासतराभयास करना चाहहए

मशटय को गर क दवार स जो कछ अचछा या बरा कि या जयादा सादा या सवाद खाना मिल वह गरभाई को अनक ल होकर खाना चाहहए

गर का रधयान

गर क चरणकिलो का धयान करना यह िोकष एव शाशवत सख की पराषपत का कवल एक ही िागय ह

जो िनटय गर क चरणकिलो का धयान नही करत व आतिा का घात करन वाल ह व सचिच षजनद शव क सिान कगल िवाली ह व अतत दररर लोग ह ऐस तनगर लोग बाहर स नवान हदखत हए भी आधयाषतिक जगत ि अतयत दररर ह

सयान सजजन अपन गर क चरणकिल क तनरनतर धयान रपी रसपान स अपन जीवन को रसिय बनात ह और गर क जञान रपी तलवार को साथ ि रखकर िोहिाया क बन नो को काि डालत ह

गर क चरणकिल का धयान करना यह शाशवत सख क दवार खोलन क मलए अिोघ चाबी ह

गर का धयान करना यह आरखरी सतय की पराषपत का कवल एक ही सचचा राजिागय ह

गर का धयान करन स सब दःख ददय एव शोक का नाश होता ह

गर का धयान करन स शोक व दःख क तिाि कारण नटि हो जात ह

गर का धयान आपक इटि दवता क दशयन कराता ह गरतव ि षसथतत कराता ह

गर का धयान एक परकार का वाययान ह षजसकी सहायता स मशटय शाशवत सख धचरतन शाषनत एव अख ि आननद क उचच लोक ि उड़ सकता ह

गर का धयान हदवयता की पराषपत क मलए राजिागय ह जो मशटय को हदवय जीवन क धयय तक सी ा ल जाता ह

गर का धयान एक रहसयिय सीड़ी ह जो मशटय को पथवी पर स सवगय ि ल जाती ह

गर क चरणकिल का धयान ककय बबना मशटय क मलए आधयाषतिक परगतत सभव नही ह

गर का तनयमित धयान करन स आतिजञान क परदश खल जात ह िन शात सवसथ एव षसथर बनता ह और अनतरातिा जागत होती ह

सख की ववजय

मशटय जब गर क चरणकिल का धयान करता ह तब सब सशय अपन आप नटि हो जात ह

मशटय जब गर की सरकषा ि होता ह तब कोई भी वसत उसक िन को कषमभत नही कर सकती

आप अगर अपन िन को बाहय पदाथो ि स खीचकर सतत धयान क दवारा गर क चरणकिल ि लगाओग तो आपक तिाि दःख नटि हो जाएग

गर का धयान करना यह तिाि िानवीय दःखो का नाश करन का एकिातर उपाय ह

जो मशटय अपन गर क चरणकिल ि अपना धचतत नही लगा सकता उस आतिजञान नही मिल सकता

जो मशटय गर का धयान बबलकल नही करता उस िन की शाषनत नही मिल सकती

अगर आपको इस ससार क दःख एव ददय द र करन हो तो आपको आति-साकषातकारी गर का धयान करन की आदत डालना चाहहए ठीक ही कहा हः

रधयानमल गरोमकतत कः पजामल गरोः पदम

मतरमल गरोवाककय मोकषमल गरोः कपा

गरकपा की आवशयकता गर की सहाय क बबना कोई आतिजञान पा नही सकता

गरकपा क बबना हदवय जीवन ि कोई परगतत नही कर सकता गरकपा क बबना आप िानमसक षवकारो स िकत नही हो सकत एव िोकष नही पा सकत

अगर आप अपन गर की ि ततय का धयान करन की आदत नही डालो तो आतिा का भवय वभव एव सनातन जयोतत आपस सदा क मलए अदशय रहगी

गर क सवरप का तनयमित एव वयवषसथत धयान करन की आदत डालकर आतिा को ढाकन वाल आवरण को चीर डालो

गर क सवरप का धयान करना यह तिाि रोगो क मलए शषकतशाली औि ह

गर का धयान करन स अनतरातिा क जञान क एव अनय कई ि ढ़ शषकतया परापत करन क मलए िन क दवार खल जात ह

गर का धयान करन स जीवन क तिाि दःख द र हो जात ह

शालनत और शलकत का मागक गर क सवरप का धयान करो तभी आपको सचची शाषनत और

आननद की पराषपत होगी

आधयाषतिक गर का धयान करन स बहत ही आधयाषतिक शषकत शाषनत नया जोि और नया बल मिलता ह

पषवतर गर का धयान करन स शद शषकतशाली षवचारो का षवकास होता ह

गर क सवरप का तनयमित धचनतन करन स िन इ र उ र भिकना ीर- ीर बनद कर दता ह

गर क सवरप का धयान करन स आधयाषतिक िागय ि स तिाि अड़चन द र हो जाती ह

गर का धयान करन स िन की उततजना द र होती ह और िन की शाषनत ि बहत ही वदध होती ह

हदवय गर क चरणकिलो का धयान करन क मलए बराहििह तय सबस जयादा अनक ल सिय ह चाल वयवहार ि भी कभी-कभी गर का धयान करक आप शषकत सफ ततय और पररणा परापत करत रहो

आप जयो ही बबसतर ि जागो कक तरनत गरितर का जाप करो यह बात बहत ही िहततवप णय ह

एकानत एव गर क सवरप का गहरा धचनतनय दो चीज आति-साकषातकार क मलए िहततवप णय आवशयकताए ह

रधयान क ललए पराथलमक तयाररयाा गर का धयान करन क मलए हरएक वसत को साषततवक बनाना

चाहहए सथान भोजन वसतर सग पसतक आहद सब साषततवक होना चाहहए

गर का धयान करना ककसी भी पररषसथतत ि छोड़ना नही चाहहए कवलल सदाचारी जीवन जीना ही ईशवर-साकषातकार क मलए पयायपत

नही ह गर का तनरनतर एव गहरा धयान करना अतनवायय ह अगर आपको ससार क दःख ददय एव जनि-ितय की िसीबतो स

सदा क मलए िकत होना हो तो आपको गर क सवरप का गहरा धयान करन की आदत डालना चाहहए

गर का धयान करना यह अननय अनभव या सी आतिजञान क मलए राजिागय ह

अनन वसतर तनवास आहद शारीररक आवशयकताओ क मलए मशटय को धचनता नही करना चाहहए गरकपा स उसक मलय सब चीजो का इनतजाि हो जाता ह

गर का धयान मशटय क मलए एकिातर ि लयवान प जी ह

भकतो क मलए भगवान हिशा गर क रप ि पथपरदशयक बनत ह

िनटय को गर की सवा करना चाहहए और गर जो जो आजञा कर उन सबका पालन करना चाहहए इसि उस बबलकल लापरवाही या बड़बड़ नही करना चाहहए अपनी बदध का भी उपयोग नही करना चाहहए

गर जब कोई भी चीज करन की आजञा कर तब मशटय को हदयप वयक उनकी आजञा का पालन करना चाहहए

गर क परतत इस परकार की आजञाकाररता आवशयक ह यह तनटकाि किय की भावना ह इस परकार का किय ककसी भी फल की आशा क मलए नही ककया जाता अषपत गर की पषवतर आजञा क मलए ही ककया जाता ह तभी िन की अशदध या जस कक काि करो और लोभ नटि होत ह

जो मशटय चार परकार क सा नो स सजजग ह वही ईशवर स अमभनन बरहितनटठ गर क सिकष बठन क एव उनस िहावाकय सनन क मलए लायक ह

चार परकार क सा न यानी सा नचतटिय इस परकार ह- षववक = आतिा-अनातिा तनतय-अतनतय किय-अकिय आहद का भद

सिझन की शषकत

वरागय = इषनरयजनय सख और सासाररक षवियो स षवरषकत

िटसपषतत = शि (वासनाओ एव कािनाओ स िकत तनियल िन की शाषनत) दि (इषनरयो पर काब ) उपरतत (षविय-षवकारी जीवन स उपरािता) ततततकषा = हरएक षसथतत ि षसथरता एव यय क साथ सहनशषकत) शरद ा और सिा ान (बाहय आकियणो स अमलपत िन की एकागर षसथतत)

ििकषतव = िोकष अथवा आति-साकषातकार क मलए तीवर आकाकषा

अनकरि

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परकररः 3

गरभलकत का ववकास

पववतरता ही पवकतयारी षजसक िन स तिाि अशदध या द र की गई हो ऐस मशटय को ही

गर क ग ढ़ रहसयो की दीकषा दी जाय तो उसका िन समप णय षसथरता परापत कर सकगा और वह तनषवयकलप सिाध की अवसथा ि परषवटि हो सकगा

जो मसद आतियोगी हो ऐस गर की तनगरानी क नीच योग सीखो

षवियषवकार क रग हए आपक िन को एकागरता गर क उपदश एव उपतनिदो क वाकयो क िनन धयान एव जप स पषवतर बनाना होगा

आपको िागयदशयन दन क मलए आति-साकषातकारी सदगर होन चाहहए

एक ही सथान एक ही आधयाषतिक गर और एक ही योग पद तत ि लग रहो यही तनषशचत सफलता की रीतत ह

योग की साधना गर अथवा मसद योगी की तनगरानी ि ही पराणायाि का अभयास

करना चाहहए

आप अपन गर क अथवा ककसी भी सत क धचतर पर एकागरता कर सकत ह

षवियो स िन को वापस खीच लो और अपन गर क उपदश क िताबबक आग बढ़ो

कशिीर ि षसथत सा क (मशटय) भी अगर हहिालय क उततरकाशी ि षसथत अपन गर का अपन आधयाषतिक िागयदशयक का धयान कर तो भी गर एव मशटय क बीच एक तनषशचत गहरा समबन सथाषपत होता ह मशटय क षवचारो क परतयततर ि गर शषकत शाषनत आननद सख क सपनदन परसाररत करत ह मशटय लोहचमबक क परचणड परवाह ि सनान करता ह षजस परकार एक बतयन स द सर बतयन ि तल बहता ह उसी परकार गर और मशटय क बीच आधयाषतिक षवदयत शषकत का झरना ीर- ीर तनरनतर बहता ह जहा जहा मशटय सचच हदय स अपन गर का धयान करता ह वहा गर को भी िाल ि पड़ता ह कक अपन मशटय की ओर स पराथयना या उननत षवचार ारा का परवाह बहता ह और अपन हदय

को सपशय करता ह षजनक पास आनतरचकष होत ह व गर-मशटय क बीच हलका सा उजजवल परकाश सपटितः दख सकत ह धचततरपी सागर ि साषततवक षवचारो क सपनदन स गतत पदा होती ह

गर का सपशक आधयाषतिक गर अपनी आधयाषतिक शषकत अपन मशटय को परदान

करत ह सदगर क अि लय सपननदन मशटय क िन की ओर भज जात ह शरीरािकटण परिहस न अपनी आधयाषतिक शषकत षववकाननद को दी थी यह गर का दवी सपशय कहा जाता ह सिथय रािदास सवािी क मशटय न अपनी ऐसी शषकत नतयकी की पतरी को दी थी जो उसक परतत अतयत कािक थी मशटय न उसकी ओर दषटिपात ककया और उस सिाध परापत कराई उसकी कािकता नटि हो गई तब स वह बहत ामियक एव आधयाषतिक सवभाववाली बन गई िकनदबाई नािक िहाराटर की एक साधवी न बादशाह को सिाध परदान की थी

आप जप और धयान शर कर उसस पहल कछ दवी सतोतर या ितरो का अथवा गरसतोतर का उचचारण करो अथवा बारह दफा ॐ का ितरोचचार करो अथवा पाच मिनि तक कीतयन करो

िन को एक सथान ि एक सा ना ि एक गर ि और एक ही योगिागय ि लगाकर उसकी चचल वषतत को वश ि करना चाहहए

योगवामशटठ ि गर वमशटठ जी कहत ह - ह राि पाव भाग का िन परारमभक धयान ि लगाओ पाव भाग का खलक द ि पाव भाग का अभयास ि और पाव भाग का िन गरसवा ि लगाओ

ईशवर न आपको तिाि परकार की सषव ाए अचछा सवासथय एव िागय हदखान क मलए गर हदय ह इसस अध क और कया चाहहए

अतः षवकास करो उतकरानत बनो सतय का साकषातकार करो और सवयतर उसका परचार करो

गर एव शासतर आपको िागय हदखा सकत ह और आपक सशय द र कर सकत ह अपरोकष का अनभव (सी ा आनतरजञान) करना आप पर तनभयर रखा गया ह भ ख वयषकत को सवय ही खाना चाहहए षजसको सखत खजली आती हो उस खद ही खजलाना चाहहए

मन को सयम म रखन की रीतत

िन क साथ कभी िठभड़ ित करो एकागरताक मलए जलद परयासो का उपयोग ित करो सब सनाय और नस नाडड़यो को मशधथल करो िषसतटक को ढीला छोड़ दो ीर- ीर अपन गरितर का उचचारण करो खदबदात हए िन को सवसथ करो षवचारो को शानत करो

यहद िन ि अह क सब सकलप हो तो गर स दीकषा लन क बाद आतिा का धयान करक एव वद का सचचा रहसय जानकर िन को षवमभनन दःखो स वापस खीच सकत ह और सखदायक आतिा ि पनः सथाषपत कर सकत ह

कछ विय तक अपन गर की परतयकष तनगरानी ि और उनक सी एव तनकि क समपकय ि रहो आप ीरी और तनयमित परगतत कर सक ग

चचल िन एक सा ना स द सरी सा ना की ओर एक गर स द सर गर की ओर भषकतयोग स वदानत की ओर एव हषिकश स वनदावन की ओर क दता ह सा ना क मलए यह अतयनत हातनकतताय ह एक ही गर स एक ही सथान स लग रहो

आपक मलए ककस परकार का योगिागय योगय ह यह आपको ही खोज लना होगा आप अगर यह नही कर सको तो षजनहोन आति-

साकषातकार ककया हो ऐस गर या आचायय की सलाह आपको लनी होगी व आपक िन की परकतत जानकर आपको उधचत योग की पद तत बतायग

आधयाषतिक गर का सतसग और अचछा िाहौल िन की उननतत ि परचणड परभाव डालता ह यहद अचछा सतसग न मिल सक तो षजनहोन आति-साकषातकार ककया हो ऐस िहापरिो क गरनथो का सतसग करना चाहहए उदाहरणाथयः शरी शकराचायय क गरनथ योगवामशटठ शरी दततातरय की अव त गीता इतयाहद

आरधयालसमक मागक म परगतत

आपक हदय की गहि बात आपक गर क सिकष खलली कर दो इस परकार षजतना अध क करोग उतनी अध क सहानभ तत आपको मिलगी इसस आपको पाप एव परलोभनो क साथ लड़न ि शषकत परापत होगी

मितर पसद करन ि धयान रख अतनचछनीय लोग आपकी शरद ा एव िानयताओ को सरलता स चमलत कर दग आपन शर की हई सा ना ि एव अपन गर समप णय शरद ा रख अपनी िानयताओ को कदाषप चमलत होन ित द आपकी सा ना उिग और उतसाह क साथ चाल रख आप तवररत आधयाषतिक परगतत कर सक ग आधयाषतिक सीड़ी क सोपान एक क बाद एक चढ़त जाएग और आरखर आपक धयय को हामसल कर लग

पकषी िछली और कछए की तरह सपशय दषटि एव इचछा या षवचारो क दवारा गर अपनी आधयाषतिक शषकतयो का परसारण कर सकत ह कभी कभी गर मशटय क भौततक शरीर ि परषवटि होकर अपनी शषकत स मशटय क िन को उननत बना सकत ह

कभी कभी आधयाषतिक गर को बाहयतः अपना करो हदखाना पड़ता ह ककनत वह मशटय की गषलतया हदखान क मलए ही होता ह यह बात खराब नही ह

कछ लोग कछ विय तक सवततर रीतत स धयान करत ह ककनत बाद ि उनको गर की आवशयकता िहस स होती ह उनको सा ना क िागय ि अवरो आत ह इन अवरो ो और भयसथानो को कस हिाय जाय यह व नही जानत तब व गर की खोज करन लगत ह छः सात बार आन जान क बाद भी ककसी बड़ शहर ि ककसी अनजान आदिी को छोिी गली ि षसथत अपन तनवास सथान ि वापस आन ि हदन क सिय ि भी तकलीफ िहस स होती ह सड़को और िहललो ि िागय खोजन ि भी तकलीफ होती ह तो बनद आख स अकल चलन वाल को उसतर की ार जस आधयाषतिकता क िागय ि आन वाल षवघनो की तो बात ही कया

पररवतकन

िन क पराकत सवभाव का समप णयतः नवसजयन करना ही चाहहए सा क अपन गर स कहता हः िझ योग का अभयास करना ह तनषवयकलप सिाध ि परषवटि होन की िरी आकाकषा ह ि आपक चरणो ि बठना चाहता ह ि आपकी शरण ि आया ह ककनत वह अपन पराकत सवभाव को आदतो को चाररतरय को वतयन को चालढाल को बदलना नही चाहता

पराकत सवभाव ि ऐसा पररवतयन करना सरल नही ह ससकारो की शषकत दढ़ और बलवान होती ह उनक पररवतयन क मलए काफी िनोबल की आवशयकता होती ह परान ससकारो की शषकत क आग सा क कई बार तनरपाय हो जाता ह उस तनयमित जप कीतयन धयान अथक

तनःसवाथय सवा और सतसग स अपन सततव और सकलप का असीि षवकास करना पड़गा उस अनतियख होकर अपनी कमिया और दबयलताए खोज लनी पड़गी उस गर क िागयदशयन ि रहना होगा गर उसकी गलततया खोज तनकालत ह और उनह द र करन क मलए योगय रीतत बतात ह

आपको िोकष क चार सा नो क मलए तयारी करक बरहितनटठ एव बरहिशरोबतरय गर क पास जाना चाहहए आपको अपन सनदह द र करना चाहहए अपन गर स परापत ककय हए आधयाषतिक परकाश की सहायता स आधयाषतिक िागय ि चलना चाहहए आपका ठीक परकार जीवन-तनिायण हो जाय तब तक अह और ससार का आकियण छोड़कर आपको गर क दवार पर रहना चाहहए ठीक ही कहा ह ककः समराि क साथ राजय करना भी बरा ह न जान कब रला द गर क साथ भीख िागकर रहना भी अचछा ह न जान कब मिला द आति-साकषातकार मसद ककय हए परि का वयषकतगत समपकय बहत उननतत कारक होता ह यहद आप सतनटठ एव उतसक होग यहद आपको िोकष क मलए तीवर आकाकषा होगी यहद आप अपन गर की स चनाओ का चसतता स पालन करग यहद आप अखणड और तनरनतर योग करग तो आप छः िहीन ि सवोचच लकषय मसद कर सक ग ऐसा ही होगा यह िरा वचन ह

जगत परलोभनो स भरप र ह अतः नय सा को को धयानप वयक उनस बचन की आवशयकता ह जब तक उनकी घड़ाई प णय न हो जाय तब तक उनह गर क चरणकिलो ि बठना चाहहए जो िनिख सा क परारभ स ही सवचछनदी बनकर बतायव करत ह अपन गर क वचनो पर धयान नही दत व बबलकल तनटफल हो जात ह व लकषयहीन जीवन बबतात ह और नदी ि तरत हए लकड़ की भातत इ र िकरात ह

गर क परतत आरधयालसमक अलभगम

ह प जय गर ह िर अषवदया क षवदारक आपको िर निसकार आपकी कपा स ि बरहि का शाशवत सख भोगता ह अब ि प णयतः तनभयय बन चका ह िर सब सशय और भरि नटि हो गय ह

उपरोकत ितर ि मशटय अपन अनतरातिा क अनभव गर क सिकष वयकत करता ह मशटय अपन गर क चरणकिल ि साटिाग परणाि करता ह उन पर शरटठ फ लो की विाय करक उनकी सततत करता ह ह प जय पषवतर गर िझ सवोचच सख परापत हआ ह ि बरहितनटठा स जनि-ितय की परमपरा स िकत हआ ह ि तनषवयकलप सिाध का शद सख भोग रहा ह जगत क ककसी भी कोन ि ि िकतता स षवचरण कर सकता ह सब िरी सतटिी ह िन पराकत िन का तयाग ककया ह िन सब सकलप एव रधच-अरधच का तयाग ककया ह अब ि अखणड शाषनत का अनभव करता ह िर आननद क अततरक क कारण ि प णय अवसथा का वणयन नही कर पाता ह प जय गरदव ि अवाक बन गया ह इस दसतर भवसागर को पार करन ि आपन िझ सहाय की ह

अब तक िझ कवल िर शरीर ि ही समप णय षवशवास था िन षवमभनन योतनयो ि असखय जनि मलय ऐसी सवोचच तनभयय अवसथा िझ कौन स पषवतर किो क कारण परापत हई यह ि नही जानता सचिच यह एक दलयभ भागय ह यह एक िहान अदटि लाभ ह अब ि आननद स नाचता ह िर सब दःख नटि हो गय ह िर सब िनोरथ प णय हए ह िर कायय समपनन हए ह िन सब वातछत वसतए परापत की ह िरी इचछा पररप णय हई ह

आप िर सचच िाता-षपता हो िरी वततयिान षसथतत ि द सरो क सिकष ककस परकार परकि कर सक सवयतर सख और आननद का अननत सागर लहराता हआ िझ हदख रहा ह षजसस िर अनतःचकष खल गय वह िहावाकय तततविमस ह उपतनिदो वदानतस तरो एव वदानतशासतरो का भी आभार षजनहोन बरहितनटठ गर का एव उपतनिदो क िहावाकयो का रप ारण ककया ह ऐस शरी वयास जी को परणाि शरी शकराचायय जी को परणाि बरहिषवद गरओ को परणाि भगवान मशव को परणाि भगवान नारायण को परणाि सासाररक िनटय क मसर पर गर क चरणाित का एक बबनद धगर तो भी उसक सब दःखो का नाश होता ह यहद एक बरहितनटठ परि को वसतर पहनाय जाय तथा भोजन कराया जाय तो सार षवशव को वसतर पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कयोकक बरहितनटठ परि सचराचर षवशव ि वयापत ह सबि व ही ह ॐॐॐ

दरागरही लशषटय

दरागरही मशटय अपनी परानी आदतो को धचपका रहता ह वह भगवान की या साकार गर की शरण ि नही जाता

यहद मशटय सचिच अपन आपको स ारना चाहता ह तो उस अपन आप क साथ तनखामलस और गर क परतत ईिानदार बनना चाहहए

जो आजञाकारी नही ह जो मशसत का भग करता ह जो गर क परतत ईिानदार नही ह जो अपन गर क सिकष अपना हदय खोल नही सकता उस गर की सहाय स लाभ नही हो सकता वह अपन दवारा ही सषजयत कादव कीचड़ ि फ सा रहता ह वह अधयाति-िागय ि परगतत नही कर सकता कसी दयाजनक षसथतत उसका भागय सचिच अतयत शोचनीय ह

मशटय को भगवान अथवा गर क परतत समप णय अखणड और सकोचरहहत होकर आति-सिपयण करना चाहहए

गर तो कवल अपन मशटय को सतय जानन की अथवा षजस रीतत स उसकी आतिा की शषकतया रखल उठ वह रीतत बता सकत ह

गर की आवशयकता अधयातििागय ि हर एक सा क को गर की आवशयकता पड़ती ह कवल गर ही वासतषवक जीवन का अथय एव उसका रहसय परकि

कर सकत ह तथा परभ क साकषातकार का िागय हदखा सकत ह

कवल गर ही मशटय को सा ना का रहसय बता सकत ह

षजनहोन परभ का साकषातकार ककया ह व ही आदशय गर ह

ऐस गर िन वचन और किय स पषवतर ह

ऐस गर अपन िन एव इषनरयो पर परभतव रखत ह व सब शासतरो का रहसय सिझत ह व सरल दयाल सतयषपरय एव आतिारािी होत ह

मशटय क हदय क अनतसतल ि सिपत दवी शषकत को गर जागत कर सकत ह

मशटय न अगर प वयजनि ि शभ किय ककय होग वतयिान जीवन ि भी अगर वह शभ किय करता होगा अगर वह सतनटठ हदयवाला तथा ईशवर-पराषपत की तड़पवाला होगा तो उस सदगर अवशय परापत होग

गर स प रा लाभ उठान क मलए उनक परतत मशटय ि दढ़ शरद ा एव सचची भषकत होना चाहहए

मशटय गर क परतत षजतनी िातरा ि भषकतभाव होगा उतनी िातरा ि उस फल की पराषपत होगी

कवल आधयाषतिक गर ही िागय हदखाकर मशटय को परभ क परतत ल जाएग

गर िनटय क रप ि साकषात ईशवर ही ह लशषटय क कततकवय

मशटय को गर की आजञा का पालन अनतःकरणप वयक करना चाहहए गर क दवारा तनहदयटि पद तत कभी कभी मशटय की रधच को

ततकाल अनक ल न भी हो कफर भी उस शरद ा रखना चाहहए कक वह उसक हहत क मलए ही ह लाभदायक ही ह

गर मिलन स जो लाभ होत ह और जो िानमसक शाषनत का अनभव होता ह वह असीि होता ह

अपनी सवोचच हदवय परकतत का भान होत हए भी भगवान शरीकटण न अपन गर सादीपनी की कसी सवा की और उनक पास अभयास ककया यह तो आप जानत ही ह

षजस मशटय को अपन गर ि शरद ा होती ह वह जञान परापत करता ह

प र हदय स सकोचरहहत होकर समप णयतया अपन गर की शरण ि जाओ

गर पथवी पर साकषात ईशवर ह अतः उनकी प जा करो

गरभषकत एव गरसवा क फलसवरप आरखर आति-साकषातकार होता ह

मशटय को गर की सवा करत रहना चाहहए जब उसका आति-सिपयण प णयतः हो जायगा तब गर उस सतय का सपटि दशयन कराएग

कछ भरात मशटय कछ सिय क मलए अपन गर की सवा करत ह कफर िन धचततशदध परापत की ह ऐसी ि खय कलपना करक गर की सवा छोड़ दत ह उनको सवोतति जञान परापत नही होता उनको धययमसदध नही होती

उनको थोड़ा बहत पणय अवशय मिलता ह लककन आति-साकषातकार नही होता सचिच यह एक बड़ा नकसान ह उनकी यह गभीर भ ल ह

गरभलकत और गरसवा गरभषकत और गरसवा सा ना रपी नौका की दो पतवार ह जो

मशटय को ससारसररता क उस पार ल जाती ह

जो गर की शरण ि गया ह जो सचच िन स गर की सवा करता ह षजसकी गरभषकत अदभत ह उस शोक षविाद भय पीड़ा दःख या अजञान की असर नही होती उस ततकाल ईशवर-साकषातकार होता ह

परभ और गर एक ही ह अतः गर की प जा करो

षजनहोन जानन योगय जाना ह षजनहोन परापत करन योगय परापत ककया ह जो िागय हदखान क मलए सिथय ह ऐस गर क चरणकिलो का आशरय लन वाल मशटय को यो िानना चाहहए कक ि तीन गना कताथय हआ ह

सवाथय का तयाग करना अतत कहठन ह यहद मशटय सवय सवाथय को तनि यल करन का दढ़ तनशचय कर और सतत अभयास क दवारा उस पटि कर तो गरकपा स सवाथय षवदा होता ह

मशटय अगर षजतनी सभव हो सक उतनी वयवहार रीतत स ततपरता स एव तनशचयप वयक गर क आदशो का पालन करन का परयास करगा तो उस परभ का साकषातकार होगा

मशटय ि जो गण होन चाहहए उन सबि गर की आजञा का पालन सवयशरटठ गण ह

आजञापालन का मकय

आजञापालन अि लय गण ह कयोकक अगर आप आजञापालन का गण जीवन ि लान का परयास करग तो िनिखता और अहभाव ीर ीर तनि यल हो जाएग

गर की आजञा का समप णयतः पालन करन का कायय कहठन ह ककनत अनतःकरण स परयतन ककया जाय तो वह सरल हो जाता ह गर की आजञा का पालन षवशव की तिाि कहठनाइयो पर षवजय परापत करन का अिोघ शसतर ह

हरएक सािानय कायय ि बहत ही पररशरि की आवशयकता होती ह अतः सािानय कायय ि बहत ही पररशरि की आवशयकता होती ह अतः अधयाति क िागय ि िनटय को अपन आप पर ककसी भी परकार का सयि रखन क मलए तयार रहना चाहहए और गर क परतत आजञापालन का भाव जगाना चाहहए

आनतररक भाव की अमभवयषकत क रप ि प जा पटपोपहार और भषकत एव प जा क बाहयोपचार की अपकषा गर की आजञापालन का भाव अध क िहततवप णय ह

सिझो ककसी को ऐसा लग कक अिक परकार स आचरण करन स गर को अचछा नही लगगा तो उस ऐसा आचरण नही करना चाहहए यह भी आजञापालन ही ह

यहद ककसी भी िनटय क पास षवशव ि अतत ि लयवान िानी जाय ऐसी सब चीज को लककन उसका िन अगर गर क चरणकिल ि न लगा हो तो सिझो उसक पास कछ भी नही ह

बशक सतय अदवत ह ककनत दवत क षवशाल अनभव क दवारा ही िनटय को आरखर अदवत की उचचति चतना ि पहचना ह वहा

पहचन की परककरया ि गर क चरणकिलो क परतत भषकतभाव सबस िहततवप णय ह वह एक सवयशरटठ सा ना ह

अपन आपको बार-बार गरभषकत ि सथाषपत करन क मलए मशटय को षवमभनन पद ततया काि ि लान का परयतन करना चाहहए

हर एक गर षजस परकार मशटय गरहण कर सक उसी परकार उपदश का औि दत ह

गर क चरणकिलो स लग रहो उसि सा ना का रहसय तनहहत ह

गर को अघयक पराचीन काल ि मशटय को हाथ ि समि लकर गर क पास जाना

होता था समि गर क चरणकिल को आतिसिपयण और शरणागतत करन का परतीक ह

यह हिार किो की गठरी ह आप उस जला दो मशटय हाथ ि समि लकर गर क पास जाता ह इसका अथय यह होता ह इसका बाहय अथय ऐसा ह कक ऋषि उस सिय अषगनहोतर करत थ उनक यजञ क मलए काटठ लान क रप ि गर की सवा का यह परतीक ह

आधयाषतिक साकषातकार गर की परि सवा का फल ह िनसितत ि कहा गया ह कक मशटयो को सदा वदाधययन ि

तनिगन रहना चाहहए परि शरद ा एव भषकतभावप वयक आचायय की सवा क दौरान मशटय को िहदरा िास तल इतर सतरी सवाद भोजन चतन परारणयो को हातन पहचाना काि करो लोभ नतय गान करीड़ा वाषजनतर बजाना रग गपशप लगाना तननदा करना अतत तनरा लना आहद स अमलपत रहना चाहहए उस असतय नही बोलना चाहहए

गण एव जञान क भणडार सिान गर की तनगरानी ि मशटय को अपन चाररतरय का योगय तनिायण करना चाहहए

अनकरि

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परकररः 4

गरभलकत की लशकषा भलकत क तनयम

फल की आसषकत रहहत शद हदय की गरभषकत स िषकत परापत होती ह

शोक एव भय स िषकत हो ऐस गर क चरणकिल क साषननधय ि जाओ

अपन दवी गर क चरणकिलो ि अपना हदय रख दो अपन गरदवार को गरआशरि को साफ करक सजान ि अपन

हाथ को काि ि लगाओ

गर मशटय क बीच का समबन बहत ही पषवतर ह जो गर की सवा करता ह वह सब गणो को परापत करता ह

अपनी आखो का उपयोग अपन हदवय गर की छवी (फोिो) को तनहारन ि करो

अपन िसतक का उपयोग सदगर क पावन चरणो ि झकान क मलए करो

ह िनटय गर क चरणकिलो का आशरय ल काि आसषकत अमभिान आहद को तयाग द कयोकक व गरसवा ि िखय षवघन ह

कोई भी तटणा स रहहत भषकतभावप वयक गर की भषकत करो तो आपको उनकी कपा परापत होगी

अपनी समपषतत अपन शभ किय अपना तप आहद अपन पावन गर को अपयण कर दो तदननतर ही उनकी कपा परापत करन क मलए आपका हदय शद होगा

गर एव सतो क चरणो की मल स आपक हदय को शद करो तभी आपका हदय पषवतर होगा तभी आप भषकत कर सकोग

परि एव आदर स अपन गर एव सतो की सवा करो उनका साकषात परभ िानो तभी आप भषकत कर सकोग

गरसवा का योग

गरसवायोग का अथय ह गर की तनःसवाथय सवा गर की सवा िान िानव जातत की सवा गरसवा क िन की अशदध नटि होती ह गरसवा हदयशदध क

मलए एक बलवान चीज ह अतः भावनाप वयक गर की सवा करो

गर की सवा हदवय परकाश जञान और कपा को गरहण करन क मलए िन को तयार करती ह

गरसवा हदय को षवशाल बनाती ह सब षवघनो को हिाती ह गरसवा हदयशदध क मलए एक असरकारक सा ना ह

गर क सवा िन को सदा परगततशील और चपल रखती ह

गर की सवा क कारण दवी गण जस कक दया नमरता आजञापालन परि शरद ा भषकत यय आतितयाग आहद का षवकास होता ह

गरसवा स ईटयाय ध ककार एव द सरो स बड़ा होन का भाव नटि होता ह

जो गर की सवा करता ह वह अहभाव और ििता को जीत सकता ह

जो मशटय गर की सवा करता ह वह सचिच तो अपन आपकी ही सवा करता ह

गरसवायोग क अभयास स अवणयनीय आननद और शाषनत परापत होती ह

मशटय जब गर क घर रहता हो तब उस सतोिी जीवन बबताना चाहहए उस प णयतः आतिसयि करना चाहहए

अपन गर क सिकष मशटय को ीर स ि रता स एव सतय बोलना चाहहए उस कठोर एव गलीच शबदो का उपयोग नही करना चाहहए गर क दवार पर रहकर गर का अनन खाकर गर क सिकष झ ठ बोलना अथवा गरभाइयो क साथ वर रखना यह मशटय क रप ि असर होन का धचनह ह मशटय क रप ि तनहहत ऐसा असर गर-मशटय परमपरा को कलककत करता ह गर क हदय को ठस पहच ऐसा आचरण करन वाला मशटय अपना ही सतयानाश करता ह जो गर का षवरो करता ह वह सचिच हतभागी ह

कबीरा तननदक न लमलो पापी लमलो हजार

एक तननदक क माथ पर लाख पापीन को भार

गर की एव गर क कायय की तननदा करन वाला तननदक हजारो जनिो तक िढक होकर पड़ा रहता ह

तलसीदास जी न ठीक ही कहा हः हररगर तननदा सनदह ज काना

होवदह पाप गौघात समाना

हरर गर तननदक दादर होवदह

जनम सहसर नर पावदह सो दह

गरभकतो को मशटयो को एव सषतशटयो को चाहहए कक व ऐस आसरी वषततवाल शरद ा डडगान वाल अथवा अपन हलक वयवहार स गर क नाि को गर क ाि को कषतत पहचान वाल असरो को साव ान कर द एव सवय भी उनस साव ान रह

परमसद गर क दवार पर ऐस आसरी वषतत क लोग मशटय क रप ि घस जात ह मशटय तो उस कहा जा सकता ह जो अपना हलका सवभाव छोड़न क मलए ततपर हो गर क मसद ानत क िताबबक चलन क मलए सतत सजाग हो गर को या गर क दवार को लाछन लग ऐसा आचरण कोई भी मशटय कर ही नही सकता अगर करता हआ हदख तो वह मशटय क रप ि असर ह सषतशटयो को ऐस कपिी मशटय स साव ान रहना चाहहए

मशटय को अपन गर की तननदा नही करना चाहहए

जो गर की तननदा करता ह वह रौरव नकय ि धगरता ह

जो खान क मलए ही जीता ह वह पापी ह जो गर की सवा करन क मलए ही खाता ह वह सचचा मशटय ह

जो गर का धयान करता ह उस बहत कि भोजन की आवशयकता रह जाती ह

गर की कपा कवल गर की कपा स ही आप अपन िन को तनयतरण ि रख

सकत ह आप गर की कपा स ही सिाध या अततचतना ि षसथत हो सकत

ह षवराग अनासषकत इषनरय-षवियक भोगषवलासो क परतत उदासीन

हए बबना ककसी को गरकपा नही पच सकती

िन क सहकार क मसवाय इषनरयो स कछ नही हो सकता िन को गरकपा स वश ि ककया जा सकता ह

मशटय जब गर की तनगरानी ि रहता ह तब उसका िन इषनरय-षवियक भोगषवलासो स षविख बनन लगता ह

गरओ एव सतो क सिागि स ामियक गरथो क अभयास क साषततवक भोजन स परभ क नाि आहद स साषततवक वषतत ि वदध होती ह

राजसी परकतत का िनटय अपन प र हदय स एव अनतःकरण स गर की सवा नही कर सकता

पराणायाि और गर क नाि का जप करन स िन अनतियख होता ह

बरहिशरोबतरय एव बरहितनटठ गर क पास शासतरो का अभयास करो तभी आपको िोकष परापत होगा

बरहिचारी का िखय कततयवय अपन गर की सवा करना ह

गर का रधयान करना चादहए

परातःकाल ि 4 स 6 क बीच गर क सवरप का धयान करो तो उनकी कपा का अनभव कर सकोग

अपन गर को फोिो अपन सािन रखो धयान क आसन ि बठो ीर- ीर फोिो पर िन को एकागर करो िन को उनक चरणकिल हाथ छाती गल मसर िख आखो आहद पर घिाओ आख की पतली न हहल इस परकार सतत पाच मिनि तक तनहारो कफर आख बनद करक उसी परकार भीतर फोिो को तनहारन का परयास करो इस ककरया का पनरावतयन करो कफर अचछी तरह धयान कर सकोग

गर क सवरप का धयान करो धयान क दौरान आपको हदवय आषतिक आननद रोिाच शाषनत आहद का अनभव होगा कणडमलनी शषकत जागत होगी हदय भाव-षवभोर होगा रोिाच शाषनत आहद का अनभव होगा रोिाच हदय रदन आहद अटिसाषततवक भाव ि आपका िन षवचरण करन लगगा मशटय को गरिखता की यह तनशानी ह कफर आपको सा ना करनी नही पड़गी सा ना अपन आप होन लगगी

सासाररक लोगो का सग अध क खाना अमभिानी एव राजसी परकतत तनरा काि करो लोभ ndash य सब गरकपा करन ि षवघन ह

गर क सवरप का धचनतन करन ि तनरा िन की चचलता सिपत इचछाए जागना हवाई ककलल बा ना आलसय रोग एव आधयाषतिक अमभिान षवघन ह

गर सब शभ गणो का ाि ह मशटय क मलए गर जीवन का सवयसव ह गरभषकत जनि ितय एव जरा को नटि करती ह

गरभषकत ईशवरकपा परापत करन का एकिातर सा न ह

गरः एक महान पथपरदशकक

जो आतिजञान का िागय हदखात ह व पथवी पर क सचच दव ह गर क मसवाय यह िागय कौन हदखा सकता ह

गर परभ पराषपत का िागय हदखात ह और मशटय को सदा क मलए सखी करत ह

जो प णयता का िागय हदखात ह व गर ह

ससकत ि ग शबद का अथय अन कार या अजञान ह और र का अथय द र करन वाला ह अन कार या आवरणरपी अजञान का नाश करन क कारण व गर कहलात ह

आधयाषतिक गर तनरनतर उपदश स सा क को तालीि दत ह

गर सचच मशटय को परभ की ओर स परापत भि ह

तिाि शासतर जोर दकर गर की आवशयकता िानत ह

शरीराि जस दवी अवतार न भी शरी वमशटठजी को अपन गर िान थ और उनकी आजञाओ का पालन ककया था

मशटय दनयावी दषटि स चाह ककतना भी िहान हो कफर भी गर की सहाय क बबना वह तनवायणसख का सवाद नही चख सकता

गर क चरणकिल की मल ि सनान ककय बबना कवल तपशचयाय करन स या दान स या वदो क अधययन स जञान परापत नही हो सकता

मशटय को सदा अपन गर की ि ततय का प जन करना चाहहए और उनक पषवतर नाि का जप करना चाहहए

सा क को अपन गर का या ककसी भी सतो का बरा बोलना या चाहना नही चाहहए

सा क चाह ककतना भी िहान हो कफर भी उस गर क सिकष कफज ल बात नही करना चाहहए

गर पथवी पर दवद त ह नही नही दव ही ह गर को मशटय की सवा या सहाय का आवशयकता नही ह ककनत

सवा क दवारा षवकास करन क मलए व मशटय को एक िौका दत ह

महापरषो का मागक ककतन भी िहान होन क बजाय भी तिाि सतो ऋषियो

पयगमबरो जगदगरओ अवतारो एव िहापरिो को अपन गर थ गर सब सदगण एव शभ वसतओ की खान ह गर क साषननधय स सब सशय भय धचनता और दःख का नाश

होता ह

गर ि अचल शरद ा और गर क परतत दढ़ भषकतभाव स मशटय सब कायो ि मसदध एव भौततक आबादी परापत कर सकता ह

भवसागर ि ड बत हए मशटय क मलए गर जीवन सरकषक नौका ह

अगर आपको कोई भी कला सीखना हो तो उस कला क षवशिजञ गर क पास जाना चाहहए

सा ारण परकार क भौततक जञान की बाबत ि अगर ऐसा हो तो आधयाषतिक िागय ि गर की आवशयकता ककतनी सारी होनी चाहहए

गर की सहाय क बबना िन को सयि ि लान की कोमशश जो करत ह व ऐस वयापारी जस ह षजनको अपन जहाज क मलए अचछा सचालक नही मिला ह

अधयातििागय कािोवाला और सी ी चड़ाई वाला िागय ह परलोभन आपक ऊपर हिला करग उसि पतन की सभावना ह अतः ऐस गर क पास जाय जो इस िागय क जानकार हो

गर का धचनतन करन स सख भीतरी शषकत िन की शाषनत एव आननद परापत होता ह गरधचनतन स गरचचाय स उनक दवी सवभाव का सचार हिार जीवन ि होता ह

गर की परशषसत िान ईशवर की परशषसत

गर स हमारा समबनध

इस कमलयग ि आति-साकषातकारी सदगर की भषकत क दवारा ही ईशवर-साकषातकार करना ह सतयसवरप ईशवर का साकषातकार ककय हए गर कमलयग ि तारणहार ह

गर स दीकषा परापत हो जाय यह बड़ भागय की बात ह

ितरचतनय यान ितर की ग ढ़ शषकत गर की दीकषा क दवारा ही जागत होती ह

आज स ही समप णय भषकतभावप वयक गर की सवा करन का तनशचय करो

आधयाषतिकता की खान क सिान गर की सहाय क बबना आधयाषतिक परगतत सभव नही ह

गर सा को क आग स िाया का आवरण एव अनय षवकषप द र करत ह और उनक िागय ि परकाश करत ह

िाता को दव सिान जानो षपता को दव सिान जानो गर को दव सिान जानो अततधथ को दव सिान जानो

गर की सवा क बबना पषवतर शासतरो का अधययन करना यह सिय का दवययय ह

गरदकषकषणा हदय बबना गर क पास पषवतर शासतरो का अधययन करना यह सिय का दवययय ह

गर की इचछाओ को पररप णय ककय बबना वदानत क पसतको का उपतनिदो का एव बरहिस तरो का अभयास ककया जाय तो उसस कलयाण नही होता जञान नही मिलता

लमब सिय की गरसवा क बाद आपका शद एव शानत िन आपका गर बनता ह जस पारस क सग स लोह सवणय बनता ह वस गर की धचरकाल पययनत सवा स आपि भी गरतव परकि होता ह

गरकपा की अतनवायकता चाह ककतन ही कफलासफी क गरथ पढ़ो सार षवशव का परवास करक

वयाखयान करो हजारो विय तक हहिालय की गफा ि रहो विो तक पराणायाि करो जीवनपययनत शीिायसन करो कफर भी गर की कपा क बबना आपको िोकष की पराषपत नही हो सकती रािायण ि कहा हः

गरतरबन भवतनचध तरदह न कोई

चाह ववरचच शकर सम होई

आधयाषतिक गर यह नही हदखा सकत कक बरहि ऐसा ह या वसा ह परतयकष अनभव होन स पहल मशटय सिझ नही पाता कक बरहि कसा ह ककनत गरकपा मशटय को अपनी हदय गहा ि ही बरहि का परतयकष अनभव ग ढ़ रीतत स करा सकगी

अपन िाता षपता एव बजगो को िान दो

अगर गर इजाजत द तो उनकी परचपी करो

हर एक को अपन जञान स गर की सहाय स वदानत गरथो का सचचा रहसय परापत करक अपन भीतर बरहि का अनभव करना चाहहए

सा क को गर अथवा आधयाषतिक पथदशयक मिल हो कफर भी उस अपन परयासो स ही सब तटणाओ वासनाओ एव अहभाव का नाश करना चाहहए और आति-साकषातकार करना चाहहए

गर कपा स परापत होन वाली परसननता गर क चरणकिलो का आशरय लन स जो परि आननद का

अनभव होता ह उसकी तलना ि तीनो लोको का सख भी नही आ सकता

अपन गर क साथ कभी लड़ो ित उनको कभी कोिय ित ल जाओ

गर की आजञा का उललघन करन स सी नरक ि पहचत ह गररोही खद तो ड बता ह अपन कल को भी कलककत करता ह

सत सताय तीनो जायी तज बल और वश

एड़ा एड़ा कई गया रावर कौरव करो कस

पातकी एव सवाथी लोग सदगर क मलए चाह कसी भी अफवाह फलाय कफर भी सजञ सिाज एव मशटयगण सदगर क पावन साषननधय और उनकी ि र याद स अपना हदय पावन रखत ह

गर एव जञानी परिो का साषननधय िनटय जीवन ि कभी-कभी ही मिल सक ऐसा दलयभ िौका ह

ककसी भी परकार क जञान की पराषपत षवशितः आतिा षवियक ि लयवान जञान की पराषपत गर स ही हो सकती ह

गर की परोपकारी कपा मशटय क मलए सवयसव ह आतिजञान क दवार खोलन वाली गर की कपा ही ह

आतिसिपयण का अथय ह अपन आपको समप णयतः गर क शरण ि छोड़ दना

तटणा एव अहभाव आतिसिपयण ि कदि कदि पर षवघनरप बनत ह

भगवान शरीकटण न अपन गर सादीपनी क चरणो का सवन ककया था उनहोन अपन गर की सवा की थी व अपन गर क मलए लकडड़या लात थ भगवान शरीराि क गर वमशटठजी थ षजनहोन उनको उपदश हदया दवो क गर बहसपतत ह दवी आतिाओ ि सबस िहान सनतकिार दकषकषणाि ततय क चरणो ि बठ थ

सा ना का रहसयिय िागय गर की कपा क दवारा ही जाना जा सकता ह

अगर आप सचच हदय स आतरताप वयक पराथयना करग तो ईशवर गर क सवरप ि आपक पास आयग

पवक अभयास की आवशयकता

अगर आपको पराथमिक धचककतसा का जञान पाना हो तो कवल उसक षवियो की चचाय करक पा सकत ह ककनत आप अगर एिबीबीएस कहलाना चाहत ह कफजीमशयन या सजयन क रप ि काि करना चाहत ह तो आपको तनयमित रप ि छः विय का अभयास करना चाहहए इसी परकार आप उपासना पराथयना आहद क दवारा दवताओ को परसनन करक उनकी कपा परापत कर सकत ह ककनत परतयकष आधयाषतिक साकषातकार क मलए आपको तीन चीज चाहहएः गरसवा गरभषकत और गरकपा

गर को मशटय का आतिसिपयण और गर की कपा य दो चीज आपस ि जड़ी हई ह

शरणागतत गरकपा को खीच लाती ह और गरकपा स शरणागतत समप णय बनती ह

मशटय ससारसागर को पार कर सक इसक मलए बरहिवतता गर आतिजञान दकर उसका अि लय हहत करत ह यह काि गर क मसवाय और कोई नही कर सकता

षजसक ऊपर सदव गर की कपा रहती ह ऐस मशटय को नयवाद ह

हहनद ओ क पराणो ि एव अनय पषवतर गरथो ि गरभषकत की िहतता गान वाल सकड़ो उदाहरण भर हए ह

षजसको सचच गर परापत हए ह ऐस मशटय क मलए कोई भी वसत अपरापय नही रहती

आप अपन इटि दवता को गरकपा क दवारा ही परतयकष मिल सकत ह

गर एक परकार का िाधयि ह षजनक दवारा ईशवर की कपा भकत क परतत बहती ह

सचच गर की अपकषा अचधक परम बरसान वाल अचधक दहतकारी अचधक कपाल और अचधक वपरय वयलकत इस ववशव म लमलना दलकभ ह

मशटय क मलए तो गर स उचचतर दवता कोई नही ह सचिच गर क सतसग षजतनी उननततकारक द सरी एक भी वसत

नही ह गर की आवशयकता क समबन ि पराचीन काल क तिाि सा -सनयामसयो का एक सिान ही अमभपराय था

गर क बबना सा क अपन लकषय पर पहच सकता ह ऐसा कहन का अथय होता ह कक परवासी बाढ़ ि उफनती हई तफानी नदी को नौका की सहायता क बबना ही पार कर सकता ह

सतसग िान गर का सहवास उस सतसग क बबना िन ईशवर की ओर िड़ नही सकता

आसमवतता गर क साथ एक कषर का सससग भी लाखो वषो क तप की अपकषा कही उचचतर ह

ह सा को िनिखी सा ना कभी करना नही प णय शरद ा और भषकतभाव स गरिखी सा ना करो

षजसन गर ककय ह वह उपतनिदो ि वरणयत बरहि को जानता ह

गर सा क जगत क परकाशक दीप ह

तनटठावान मशटय क मलए जो गर सख शाषनत आननद और अिरतव का ि ल एव रवतारक ह ऐस गर की जयजयकार हो

आपक गर अथवा योग मसखान वाल आचायय आपको परणाि कर उसक पहल आप उनह परणाि करो

योग क सा क को अपन गर ि एव ईशवर ि शरद ा और भषकतभाव होना जररी ह

उस गर क उपदश ि एव पषवतर शासतरो ि शरद ा होना जररी ह

अनकरि

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परकररः 5

गर की महतता गर ही एक मातर आशरय

रसोई सीखन क मलए आपको मसखान वाल की आवशयकता पड़ती ह षवजञान सीखन क मलए आपको पराधयापक की आवशयकता पड़ती ह कोई भी कला सीखन क मलए आपको गर चाहहए तो कया आतिषवदया सीखन क मलए गर की आवशयकता नही ह

ससारसागर स उस पार जान क मलए सचिच गर ही एकिातर शरण ह

सतय क किकिय िागय ि आपको गर क मसवाय और कोई िागयदशयन नही द सकता

गरकपा क पररणाि अदभत होत ह

आपक दतनक जीवन क सगराि ि गर आपको िागयदशयन दग और आपका रकषण करग

गर जञान क पथपरदशयक ह

गर ईशवर बरहि आचायय उपदशक दवी गर आहद सब सिानाथी शबद ह

ईशवर को परणाि करो उसस पहल गर को परणाि करो कयोकक व आपको ईशवर क पास ल जात ह

आपक गर स ितर की दीकषा लो उसस आपको पररणा मिलगी और आप उचच षसथतत पर पहच सक ग

आपक बदल ि गर का सा ना नही करग सा ना तो आपको ही करना होगा

गर आपको सचची राह हदखाएग गर मशटय क मलए सचचा योग पसद कर सकत ह

गर की कपा स मशटय अपन िागय ि षसथत षवघनो एव सशयो को पार कर सकता ह

गर मशटय को भयसथानो ि स एव बन नो ि स उठा लग

अपन गर की सवा करन क मलए अपन पराण एव शरीर का बमलदान दन की तयारी रखो तब व आपकी आतिा की सभाल लग

आपको उठाकर सिाध ि रख दग ऐसा चितकार कर हदखान की अपकषा आपक गर स रखना नही आप सवय कहठन सा ना करो भ ख आदिी को खद ही खाना चाहहए

अगर आपको सदगर परापत नही होग तो आप आधयाषतिक िागय ि आग नही बढ़ सक ग

अपन गर की पसनदगी सोच-षवचार कर एव यय स करो कयोकक बाद ि आप गर स अलग नही हो सकत अलग होन ि बड़ ि बड़ा पाप ह

गर-मशटय का समबन पषवतर एव जीवन पययनत का ह यह बात ठीक स सिझ लना

साधना का रहसय

प र अनतःकरण स हदयप वयक गर की सवा करो ककसी भी परकार की अपकषा स रहतत होकर आपक गर क परतत परि रखो अपनी आय

का दसवा हहससा आपक गर को सिषपयत करो गर क चरणकिलो का धयान करो इसी जनि ि आपको आति-साकषातकार होगा यह सा ना का रहसय ह

गर की प जा करन क मलए मशटय क मलए गरवार पषवतर हदन ह

षजनको आतिा षवियक जञान ह शासतरो ि जो पारगत ह जो तिाि उतकटि गणो स यकत ह व सदगर ह

षजसको आति-साकषातकार मसद ककय हए गर मिलत ह वह सचिच तीन गना भागयशाली ह

अपन गर की कषततया न दखो अपनी कषततया दखो और उनह द र करन क मलए ईशवर स पराथयना करो

गर की कसौिी करना िषशकल ह एक कबीर ही द सर कबीर को पहचान सकता ह अपन गर ि ईशवर क गणो का आरोपण करो तभी आपको लाभ होगा

षजनक साषननधय ि आपको आधयाषतिक उननतत िहस स हो षजनक वकतवय स आपको पररणा मिल जो आपक सशयो को द र कर सक जो काि करो लोभ स िकत हो जो तनःसवाथय हो परि बरसान वाल हो जो अहपद स िकत हो षजनक वयवहार ि गीता भागवत उपतनिदो का जञान छलकता हो षजनहोन परभनाि की पयाऊ लगाई हो उनह आप गर करना ऐस जागत परि क शरण की खोज करना

गरभलकत क ललय योगयता गर क पास जान क मलए आप योगय अध कारी होन चाहहए

आपि वरागय की भावना षववक गाभीयय आतिसयि एव सदाचार जस गण होन चाहहए

अगर आप ऐसा कहग कक अचछा गर कोई ह ही नही तो गर भी कहग कक कोई अचछा मशटय ह ही नही आप मशटय की योगयता परापत कर तो आपको सदगर की योगयता िहतता हदखगी और सिझ ि आयगी

गर आपक उद ारक एव सरकषक ह सदव उनकी प जा करो उनका आदर करो

गरपद भयकर शाप ह जो सत धचत और परिाननद सवरप ह ऐस गर को सदा साटिाग

परणाि करो

मशटय को अपन गर की ि ततय सदा सिरण ि रखना चाहहए गर क पषवतर नाि का सदा जप करना चाहहए उनकी आजञा का पालन करना चाहहए इसी ि सा ना का रहसय तनहहत ह

मशटय को गर की प जा करना चाहहए कयोकक गर स बड़ा और कोई नही ह

गर क चरणाित स ससारसागर स ख जाता ह और िनटय आवशयक आतिसमपषतत परापत कर सकता ह

गर का चरणाित मशटय की तिा शानत कर सकता ह

आप जब धयान करन बठ तब अपन गर का एव प वयकालीन सब सतो का सिरण कर आपको उनक आशीवायद परापत होग

िहातिाओ क जञान क शबद सन और उनका अनसरण कर

शासतर एव गर क दवारा तनहदयटि शभ किय कर

शाषनत का िागय हदखान क मलए गर अतनवायय ह

वाह गर या गर नानक क अनयाइयो का गरितर ह गरनथ साहब पढ़ो तो आपको गर की िहतता का पररचय होगा

गर की प जा करक सदा उनका सिरण करो इसस आपको सख परापत होगा

शरद ा िान शासतरो ि गर क शबदो ि ईशवर ि और अपन आप ि षवशवास

ककसी भी परकार क फल की अपकषा स रहहत होकर गर की सवा करना यह सवोचच सा ना ह

शरवण िान गर क चरणकिलो ि बठकर वद का शरवण करना

गरसवा िहान शदध करन वाली ह आति-साकषातकार क गर की कपा आवशयक ह

षजतनी भषकतभावना परभ क परतत रखनी चाहहए उतनी ही गर क परतत रखो तभी सतय की अनभ तत होगी

सदव एक ही गर स लग रहो

ईशवर आहद गर ह षजनको सथान एव सिय (दश-काल) की सीिा नही होती एक शाशवत यग तक व सिगर िनटय जातत क गर ह

कणडमलनी शषकत को उसकी सिपत अवसथा ि स जागत करन क मलए गर की अतनवायय आवशयकता रहती ह

गर क परकाश का अनसरर करो अजञान का नाश करन वाल तथा जञान दन वाल सदगर क

चरणकिलो ि कोहि परणाि सिदशी सत-िहातिा और गर क सतसग का एक भी िौका च कना

नही

आपक सथ ल िन क कह अनसार कभी चलना नही आपक गर क वचनो का अनसरण कर

उचच आतिाओ एव गर क सिरण िातर स भौततक िनटयो की नाषसतक वषततयो का नाश होता ह और अषनति िषकत हत परयास करन क मलए उनको पररणा मिलती ह तो कफर गरसवा की िहहिा का तो प छना ही कया

षजस परकार दो खरगोशो क पीछ दौड़न वाला िनटय दो ि स एक को भी पकड़ नही सकता उसी परकार जो मशटय दो गरओ क पीछ दौड़ता ह वह अपन आधयाषतिक िागय ि सफलता नही परापत कर सकता

अहभाव का नाश करन स मशटयतव की शरआत होती ह

लशषटयसव की कजी ह बरहमचयक और गरसवा

मशटयतव की पहचान िान गरभषकत गर क चरणकिलो ि आजीवन आति-सिपयण करना यह मशटयतव

की तनशानी ह गरदव की ि ततय का तनयमित धयान करना यह मशटयतव की नीव

गर स मिलन की उतकि इचछा और उनकी सवा करन की तीवर आकाकषा ििकषतव की तनशानी ह

दव दषवज आधयाषतिक गर एव जञानी परिो की प जा पषवतरता सरलता बरहिचयय और अहहसा शरीर का तप ह

बराहिणो पषवतर आचायो एव जञानी परिो को परणाि करना बरहिचयय और अहहसा य शारीररक तपशचयायए ह

िा बाप और आचायो की सवा गरीब और रोधगयो की सवा भी शारीररक तपशचयाय ह

गर दवारा बरहम का जञान

बरहिषवियक जञान अतत स कषि ह शकाए पदा होती ह और उनको द र करन क मलए एव िागय हदखान क मलए बरहिजञानी आधयाषतिक गर की आवशयकता रहती ह सतय क सचच खोजी को सहायभ त होन क मलए गर अतयनत िहततवप णय भ मिका तनभात ह

आधयाषतिक गर सा क को अपनी परिप णय एव षववकप णय तनगरानी ि रखत ह तथा आधयाषतिक षवकास क षवमभनन सतरो ि स उस आग बढ़ात ह

आधयाषतिक गर सा क को अपनी परिप णय एव षववकप णय तनगरानी ि रखत ह तथा आधयाषतिक षवकास क षवमभनन सतरो ि स उस आग बढ़ात ह

सचच गर सदव मशटय क अजञान का नाश करन ि तथा उस उपतनिदो का जञान दन ि सलगन रहत ह

वद भी जञानिागय क पथपरदशयक गर की परशषसत गाना च कत नही ह

सा क ककतना भी बदध िान हो कफर भी गर अथवा आधयाषतिक आचायय की सहाय क बबना वदो की गहनता परापत करना या उनका अभयास करना उसक मलए सभव नही ह

गर अपन मशटय की दवी शषकतयो को जागत करत ह

परथि को अपन गर को आधयाषतिक आचायय को खोज लो जो आपको अननत तततव अथवा शाशवत चतनपरवाह क साथ एकतव सा न ि सहाय कर सक

अधयातििागय ि सलाितीप वयक तथा िककिता स आग बढ़न क मलए अपन गर क दवारा ही मशटय को स चनाए मिल सकती ह

अपन गर की इचछा क शरण हो जाओ उनको आतिसिपयण करो तभी आपका उद ार होगा

गर ही ईशवर

ईशवर ही गर क रप ि हदखत ह

सचच गर एव सचच सा क बहत कि होत ह

योगय मशटयो को यशसवी गर परापत होत ह

ईशवर की कपा गर का रप लती ह गर अपन मशटय को अपन जसा बनात ह अतः व पारस स भी

िहान ह ससारसागर को पार करन क मलए गर जसी कोई नौका नही ह ह राि तमहार तन िन न अपन सदगर क चरणो ि

सिषपयत कर दो षजनहोन तमह परि सख या िोकष का िागय हदखाया ह अपन गर या आचायय क सिकष हररोज अपन दोि कब ल कर तभी

आप इस दनयावी तनबयलताओ स ऊपर उठ सक ग

गर दषटि सपशय षवचार या शबद क दवारा मशटय का पररवतयन कर सकत ह

गर और ईशवर सचिच एकरप ह गर इस दतनया ि ईशवर क सचच परतततनध ह गर आपक मलए इलषकरक मलफि ह व आपको प णयता क मशखर

पर पहचाएग

गर क परतत तनःसवाथय एव भषकतभावप वयक सवा यह प जा भषकत पराथयना और धयान ह

ह राि षजसस आति-साकषातकार को गतत मिलती ह षजसस चतना की जागतत होती ह उस गरदीकषा कहत ह

यहद आप गर ि ईशवर को नही दख सकत तो कफर और ककसि दख सक ग

जब ति िर सिकष तनखामलस होकर अपना हदय खोलोग तभी ि तमह सहाय कर सक गा

आपक मितरो आदशो तथा गर या आधयाषतिक आचायय क परतत वफादार एव सषननटठ रह

अनकरि

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परकररः 6

गरभलकत का अभयास

अनकल होन का लसदधानत

अनक ल होन का षवरल गण बहत कि लोगो ि होता ह और वह एक उतति गण ह उसक दवारा मशटय अपना कसा भी सवभाव हो कफर भी वह अपन गर क परतत अनक ल बनता ह

आजकल परायः सभी सा क अपन गरभाइयो को अनक ल होना नही जानत

मशटय को अपन गर क अनक ल होना और उनस हहलमिल जाना चाहहए

गरभषकत जगान क मलए नमरता और आजञापालन क गण जररी ह

मशटय जब एक ही गर क साषननधय ि रहत हए अपन गरभाइयो क साथ अनक ल होना नही जानता तब घियण होता ह और वह अपन गर को नाराज करता ह

जहाज का कपतान सदव साव ान रहता ह िचछीिार भी सदव साव ान रहता ह ऑपरशन थीएिर ि सजयन सदव साव ान रहता ह इसी परकार भ ख-पयास मशटय को भी गरसवा ि सदव साव ान रहना चाहहए

लशषटयसव क मल तवव

अतत नीद करन वाला जड़ सथ लकाय तनषटकरय आलसी एव ि खय िन का मशटय गर सतटि हो इस परकार उनकी सवा नही कर सकता

षजस मशटय ि उपदश क आचरण का गण होता ह वह अपन गर की सवा ि सफल होता ह आबादी एव अिरतव उसको आ मिलत ह

गर की सवा करन की उतकणठा एव लगन मशटय ि होनी चाहहए गर क परतत भषकतभाव तिाि योगय िानविहचछाओ का एकिातर

धयय ह

मशटय जब गर क पास रहकर अभयास करता हो तब उसक कान शरवण क मलए ततपर होन चाहहए वह जब गर की सवा करता हो तब उसकी दषटि साव ान होनी चाहहए

मशटय को अपन गर िा-बाप बजगय सब योगी एव सतो क साथ अचछी तरह बरताव करना चाहहए

अचछी तरह बरताव करना िान अपन गर क परतत अचछा आचरण करना

गर मशटय क आचरण पर स उसका सवभाव तथा उसक िन की पद तत जान सकत ह

अपन पषवतर गर क परतत अचछा आचरण परि सख क ाि का पासपोिय ह

मशटय जब गर की सवा करता हो तब उस तरगी नही बनना चाहहए

आचरण अपन गर की सवा करक परापत ककय हए वयवहार जञान की अमभवयषकत ह

दवी एव उतति गण दकान स खरीद करन की चीज नही ह व गण तो लमब सिय तक की हई गर सवा शरद ा एव भषकतभाव दवारा ही परापत ककय जा सकत ह

गर को आसमसमपकर

जञानाजयन क बाद गर को राजी-खशी स शीघर बबना रझझक स एव बहत रामश ि गरदकषकषणा दो

गरदकषकषणा स असखय पापो का नाश होता ह गर को दी हई दकषकषणा हदयशदध करन वाली िहान वसत ह

जो दकषकषणा गर को दी जाती ह वह वयवहार परि का परतीक ह

तिाि गरभाइयो क कलयाण क मलए उदार भावना षवकमसत करो

दान का परारमभ अपन गर स ही होता ह गर को दकषकषणा दन की आदत डालनी चाहहए मशटय क पास जो कछ हो वह गर को सपरि भि चढ़ा दना

चाहहए गर क दवारा चाह जसा भोजन कपड़ एव तनवास परापत हो उसस

मशटय को सनतोि िानना चाहहए अपन सचच िन एव हदय स गर की सवा ि ततपर रहना चाहहए

गर की सवा क दौरान कसी भी पररषसथततयो ि सा क को मिलन वाला सतोि सदा आननद और शषकत दता ह

जो कछ घिना घहित हो उसि सदा सतोि रखना चाहहए सदव याद रखोः उचचातिा गर को जो अचछा लगता ह वह आपकी पसनदगी की अपकषा अध क होता ह

सतोि जस परि गण स यकत मशटय पर ही गर की कपा उतरती ह

गर की सवा क दौरान मशटय को अपनी सा ारण बदध का उपयोग करना चाहहए

वववक का घटक

उचचातिा गर की कपा क दवारा मशटय क हदय ि षववकबदध का उदय होता ह

षजसको नसधगयक षववकबदध परापत हई ह उस अवशय गरकपा मिलती ह

ककसी भी चीज की सपहा क बबना अपन गर क परतत फजय अदा करो

मशटय का कततयवय गर क आदशो का वफादारी-प वयक एव अषवलमब पालन करना ह

गर क परतत अपन छोि छोि कततयवय तनभान ि भी सतकय रहो आपको बहत आननद एव शाषनत की पराषपत होगी

गर की सवा ि दासतव जसी कोई चीज नही ह गर की सवा िान गर को आति-सिपयण सब परकार की सवा पषवतर एव उतति ह

गर क परतत अपना कततयवय अदा करना िान सतय िय का आचरण करना

अपन गर क परतत अदा की हई सवा नततक फजय ह आधयाषतिक िॉतनक ह उसस िन एव हदय दवी गणो स भरप र बनत ह पटि बनत ह

समपरक शररागतत

ततपर एव सषननटठ मशटय अपन आचायय की सवा ि अपन समप णय िन एव हदय को लगा दता ह

ततपर मशटय ककसी भी पररषसथतत ि अपन गर की सवा करन का सा न खोज लता ह

अपन गर की सवा करत हए जो सा क सब आपषततयो को सह लता ह वह अपन पराकत सवभाव को जीत सकता ह

शाषनत का िागय हदखान वाल गर क परतत मशटय को सदव कतजञ रहना चाहहए

कतघन बवफा मशटय इस दतनया ि हीनभाग एव दःखी ह उसका भागय दयनीय शोचनीय एव अफसोस-जनक ह

गर की परततषटठा पषवतर वदो क रहसयोदघािक आहद एव प णय बरहिरप िहान गर

को ि निसकार करता ह जो जञानषवजञान रप वदो क सार को भरिर की तरह च सकर अपन भकतो को दत ह

सचच मशटय को अपन हदय क कोन ि अपन समिाननीय गर क चरणकिलो की परततटठा करना चाहहए

मशटय जब अपन गर स मिल तब उसका सबस परथि फजय ह ख ब नमर भाव स अपन गर को परणाि करना

भागवत ि अव त की एक कथा आती ह षजनको चौबीस उपगर थ जस कक पचिहाभ त स यय चनर सिर पराणी आहद य नगणय होत हए भी अपन अपन ढग स उनको सवोचच जञान हदया था

अनय ककसी का षवचार ककय बबना एकागर िन स कवल अपन गर की ही प जा करता ह वह शरटठ मशटय ह

जब सा क ि सततव की वदध होती ह तब वह सदाचारी बनता ह और उसि गर क परतत भषकतभाव षवकमसत होता ह

गर सिदषटि क परतीक ह अतः व अपन तिाि मशटयो क परतत सिभाव रखत ह

शरीकटण उद वजी स कहत ह- ि परोहहतो ि वमशटठ ह गरओ ि बहसपतत ह सा ओ ि ि नारायण ह एव बरहिचाररयो ि सनतकिार ह

मशटय जब अपन गर की सवा करता हो तब उस द सरो की सवा कभी लना नही चाहहए आधयाषतिक षवकास ि उसक मलए यह एक िहान अवरो ह

द सरो को गरभाई बनाकर अपन गर का यश बढ़ाओ गरभषकत षवकमसत करन का यह राजिागय ह

ववदवता स नमरता बढकर ह

आप िहान षवदवान एव नवान हो कफर भी गर एव िहातिाओ क सिकष आपको बहत ही नमर होना चाहहए

मशटय अध क षवदवान न हो लककन वह ि ततयित नमरता का सवरप हो तो उसक गर को उस पर अतयत परि होता ह

अगर आपको नल स पानी पीना हो तो आपको सवय नीच झकना पड़गा इसी परकार अगर आपको गर करना हो तो आपको षवनमरता क परतीक बनना पड़गा

जो िनटय वफादार एव बबलकल नमर बनत ह उनक ऊपर ही गर ही कपा उतरती ह

गर क चरणकिलो की प जा क मलए नमरता क पटप क अलावा और कोई शरटठ पटप नही ह

शरदधा का अथक शरद ा िान गर का षवशवास

शरद ा िान अपन पषवतर आचायय एव िहातिाओ क कथन वाणी कायो लखन एव उपदशो ि षवशवास

आचायय परिाण क रप ि जो कह उसि अनय कोई परिाण या साबबततयो की परवाह ककय बबना दढ़ षवशवास रखना उसका नाि ह शरद ा

गर ि समप णय शरद ा रख और अपन आपको प णयतः गर क शरण ि ल जाय व आपकी तनगरानी करग इसस सब भय अवरो एव कटि प णयतः नटि होग

सदगर ि दढ़ शरद ा आतिा की उननतत करती ह हदय को शद करती ह एव आति-साकषातकार की ओर ल जाती ह

गर क उपदश ि समप णय शरद ा रखना यह मशटयो का मसद ानत होना चाहहए

आजञापालन का परकार

आजञापालन िान गर एव बजगो क आदशो को पालन की इचछा

जो मशटय अपन गर की आजञा िानता ह वही अपनी सथ ल परकतत पर तनयतरण पा सकता ह

नमरता भषकतभाव तनरहकारीपना आहद सब हदवय गण गर की आजञा का पालन करन स ही परकि होत ह

गर क आदशो ि शका नही करना या उनक पालन ि आलसय नही करना यही गर क परतत सचची आजञाकाररता ह

गर की आजञा का पालन सब कायो ि सफलता की जननी ह

ग र जो आजञा कर वह काि करना और िना कर वह काि न करना यही गर क परतत सचची आजञाकाररता ह

दभी मशटय गर की आजञा भय क कारण िानता ह सचचा मशटय परि क खाततर शद परि स गर की आजञा का पालन करता ह

मशटय का परथि पाठ ह गर क परतत आजञाकाररता

भलाई की एक नदी ह जो ईशवर क चरणकिलो ि स तनकलती ह और गर क आजञापालन क िागय स बहती ह

यहद मशटय क हदय ि सतोि न हो तो यह बताता ह कक मशटय ि गर क परतत आजञापालन का भाव प रा नही ह

आपि भाव एव ततपरता होगी तो गर आपकी भि स परसनन होग भि क परकारो स नही

मशटय को अतयनत ततपरताप वयक एव धयानप वयक अपन गर की सवा करना चाहहए

आरधयालसमक नीतत-रीतत

अपन आपको आचायय की सवा ि सौप दो तन िन एव आतिा को ख ब ततपरता स अपयण कर दो

गरशरद ा का सककरय सवरप िान गर क चरण किलो ि समप णय आतिसिपयण करना

गर सवा क तनतयकरि ि ख ब तनयमित रहो

अपन आचायय की दतनक तनजी सवा ि घड़ी क सिान तनयमित रहो

आचायय एव हरएक सत का आदर करना यह नमरता का धचहन ह

आचायय एव आदरणीय वयषकतयो की उपषसथतत ि ऊ ची आवाज स बोलो नही

गर क वचनो ि षवशवास रखना यह अिरतव क दवार खोलन क मलए गर चाबी ह

जब आप ककसी िहान गर क मशटय हो तब अनय ककसी को आप अपन मशटय बनाओ नही एव खद गर बनन का परयास करो नही उनको अपन गरभाई िानो

गर करना और बाद ि उनको ोखा दकर उनका तयाग कर दना इसकी अपकषा गर नही करना और भवािवी ि भिकना बहतर ह

जो िनटय षवियवासना का दास ह वह गर की सवा नही कर सकता गर को आतिसिपयण नही कर सकता फलतः वह ससार क कीचड़ स अपन आपको बचा नही सकता

लमलन की शलकत

गर स ोखा करना यह अपनी ही कबर खोदन का सा न ह

गर और मशटय क बीच जो शषकत जोड़न का काि करती ह वह शद परि होना चाहहए

गर का कपा-परसाद और मशटय की कोमशस मिलती ह तब अिरतव रपी बालक का जनि होता ह

मशटय को जञान हदय बबना ही गर को उसक पास स गरदकषकषणा नही लना चाहहए

मशटय को अपन सिगर जीवन क दौरान गर क यश की पताका लहराना चाहहए

गर क चरणकिल ि आतिसिपयण करना यह मशटय का आदशय होना चाहहए

गर िहान ह षवपषततयो स डरना नही ह वीर मशटयो आग बढ़ो

गरकपा अणशषकत स अध क शषकतशाली ह

मशटय क ऊपर जो आपषततया आती ह व छप वश ि गर क आशीवायद क सिान होती ह

गर क चरणकिलो ि आतिसिपयण करना यह सचच मशटय का जीवनितर होना चाहहए

गर की सवा साकषात परि एव आननदसवरप अपन गर की सवा करन का

सौभागय परापत हो जाय तो सवा ि असीि आननद एव परि सख मिलगा

नमरताप वयक सवचछाप वयक सशयरहहत होकर बाहय आडमबर क बबना दवि रहहत बनकर असीि परि स अपन गर की सवा कर

पथवी पर क साकषात ईशवर सवरप गर क चरणकिलो ि आतिसिपयण करग तो व भयसथानो स आपका रकषण करग आपकी सा ना ि आपको पररणा दग तथा अषनति धयय तक आपक पथपरदशयक बनग

गर की कपा अख ि असीि और अवणयनीय ह

गर का उषचछटि परसाद लन स असाधय रोग मिित ह

गर पर शरद ा एक ऐसी चीज ह जो परापत करन क बाद और कछ परापत करना शि नही रहता

इस शरद ा क दवारा तनिि िातर ि आप परि पदाथय पा लग गर क वचन एव किय ि शरद ा रखो शरद ा रखो शरद ा रखो

यही गरभषकत षवकमसत करन का िागय ह अनकरि

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परकररः 7

साधक क सचच पथपरदशकक

लशषटयसव क मल लसदधानत

सा क अगर शरद ा एव भषकतभाव स अपन गर की सवा नही करगा तो उसक तिाि वरत तप कचच घड़ ि स पानी की तरह िपककर बह जाएग

िन एव इषनरयो का सयि गरभगवान का धयान गर की सवा ि यय सहन शषकत आचायय क परतत भषकतभाव सतोि दया सवचछता सतयवाहदता सरलता गर की आजञा का पालन य सब अचछ मशटय क लकषण ह

सतय क सा क को िन एव इषनरयो पर सयि रखकर अपन आचायय क घर रहना चाहहए और ख ब शरद ा एव आदरप वयक गर की तनगरानी ि शासतरो का अभयास करना चाहहए

उस चसतता स बरहिचयय का पालन करना चाहहए और आचायय की प जा करना चाहहए

मशटय को चाहहए कक वह आचायय को साकषात ईशवर क रप ि िान िनटय क रप ि कदाषप नही

मशटय को आचायय क दोि नही दखना चाहहए कयोकक व तिाि दवो क परतततनध ह

मशटय को गर क मलए मभकषा िागकर लाना चाहहए एव ख ब शरद ा तथा भषकतभावप वयक उनह भोजन कराना चाहहए

मशटय को सब सखवभव का षवि की तयाग कर दना चाहहए और अपना शरीर गर की सवा ि सौप दना चाहहए

शासतरो का अभयास प रा करक मशटय को चाहहए कक वह गर को दकषकषणा द और उनकी आजञा लकर अपन घर वापस लौि

जो गरपद का उपयोग आजीषवका क सा न क रप ि करता ह वह िय का नाश करन वाला ह

बरहिचारी का िखय कततयवय प र हदय स अपन आचायय की सवा करना ह

गर की कपा परापत करन क मलए उनकी तनषज सवा और उनकी आजञा का पालन षजतना सहायरप ह उतना सहायरप तप यातरा भि दान आहद नही ह

वद परतयकष जञान गरवचन और अनिान य चार जञान क परिाण ह

हरएक किय ि दःख क बीज सिाषवटि ह ककनत गर की सवा क षविय ि ऐसा नही ह

गर क आदशो का पालन करन क मलए मशटय को कभी भी न भोगषवलास सखवभव और अपन शरीर का भी तयाग करन क मलए तयार रहना चाहहए

गर समबनधी धमक

जो तन िन और न को गर क चरणो ि अपयण कर दता ह वह गरभषकत का षवकास कर लता ह

षजसस गरचरणो क परतत भषकतभाव बढ़ वह परि िय ह तनयि िान गरितर का जप गरसवा क दौरान तपशचयाय गरवचन

ि शरद ा आचायय-सवन सतोि पषवतरता शासतर का अधययन और गरभषकत अथवा गर का शरण

ततततकषा िान गर क आदशो का पालन करत हए दःख सहन करना

तयाग िान गर का तनि हो ऐस किो का तयाग करना जो अपन गर की आजञा का पालन नही करता तथा गर की सवा

नही करता वह ि खय ह

भगवान शरीकटण उद वजी स कहत ह- दटपरापय िनटयदह िजब त नौका जसी ह गर उस नौका क कणय ार ह व नौका को सभालत ह उस नौका को चलान वाला ि (कटण) अनक ल पवन ह जो िनटय ऐसी नौका और ऐस सा न स भवसागर पार करन का परयतन नही करता वह सचिच आतिघातक ह

िनटय अनाहद अजञान क परभाव ि होन क कारण गर की सहाय क बबना आति-साकषातकार नही कर सकता

गर जो कहत ह उसि कछ गलत हो सकता ह उसक मलए कारण होगा ही िनटयबदध वहा पहच नही पाती

गर की तनजी सवा सवोचच परकार का योग ह

गर की तनजी सवा करन स मशटय अपन िन को वश ि कर सकता ह

परकतत क तीन गर

करो लोभ असतय कर रता याचना दभ झगड़ा भरि तनराशा शोक दःख तनरा भय आलसय य सब तिोगण ह जो अनक जनिो क बावज द भी जीत जी नही जा सकत ककनत शरद ा एव भषकत स गर की की हई तनजी सवा इन सब दगयणो का नाश करती ह

गर क वचन ि और ईशवर ि शरद ा रखना सततवगण ह गर क भोजन क बाद जो खराक बचा हो वह बहत साषततवक होता

कामवासना का तरबककल सयाग

सा क को षवजातीय वयषकत का सहवास नही करना चाहहए जो लोग ऐस सहवास क शौकीन हो उनका सग भी नही करना चाहहए कयोकक उसस िन कषब होता ह तब मशटय भषकतभाव और शरद ाप वयक अपन गर की सवा नही कर सकता

मशटय अगर अपन आचायय की आजञा का पालन नही करता ह तो उसकी सा ना वयथय ह

बदध िान सा क को तिाि परकार क खराब सग स द र रहना चाह उस सतो एव गर का सग करना चाहहए उनक सग स वरागय षवकमसत होता ह तिाि वासनाए द र होकर िन शद बनता ह

जस अषगन क पास बठन स ठणड भय अन कार द र होता ह वस ही जो मशटय गर क पास रहता ह उसक अजञान ितय का भय तथा सब अतनटिो का नाश होता ह

जो इस ससार-सागर ि इ र उ र ड बत उतरत ह उनक मलए बदध िान गर का आशरय शरटठ ह

स यय क पास स कवल एक बाहय दषटि ही परापत होती ह ककनत गर क पास स जञान परापत करन क मलए कई परकार की कई दषटिया परापत होती ह

गर मान साकषात दवता गर इस पथवी पर साकषात ईशवर ह सचच मितर एव षवशवासपातर

बन ह ह भगवान ह भगवान ि आपक आशरय ि आया ह िझ पर

दया करो िझ जनि-ितय क सागर स बचाओ ऐसा कहकर मशटय को अपन गर को दणडवत परणाि करना चाहहए

तनरपकष भषकतभावप वयक जो गर क चरणो की प जा करता ह उस सी ी गर कपा परापत होती ह

आचायय स परापत की हई तथा सवा स तीकषण बनी हई जञानरप तलवार एव धयान की सहायता स मशटय िन वचन पराण और दह क अहकार को काि दता ह तथा सब रागदवि स िकत होकर इस ससार ि सवचछाप वयक षवहार करता ह

तीवर गरभषकत क शषकतशाली शसतर स िन को द षित करन वाली आसषकत को ि ल सहहत काि हदया जाय तब तक षवियो का सग तयाग दना चाहहए

गर का आशरय लकर जो योग का अभयास करता ह वह षवषव अवरो ो स पीछ नही हिता

सचच मशटय को अपन गर क पषवतर चरणो ि ककसी भी परकार की हहचककचाहि या शिय क बबना साटिाग दडवत परणाि करना चाहहए यह उसक समप णय आतिसिपयण की तनशानी ह

ककसी भी फल की आशा स रहहत होकर जो गरसवा और गरप जा ि लगा रहता ह वह उलि िागय ि नही जाएगा उस सवा प जा का परकाश अवशय परापत होगा

जञान का परकाश फलान वाली पषवतर गरगीता का जो हररोज अभयास करता ह वही सचिच षवशद ह उस ही िोकष की पराषपत होती ह

जो अपन गर क यश ि आनषनदत होता ह और द सरो क सिकष अपन गर क यश का वणयन करन ि आननद का अनभव करता ह उस सचिच गर कपा परापत होती ह

परिातिा और परबरहिसवरप गर की अजञाननाशक उपषसथतत ि आपक सब सशयो का नाश होगा जस स योदय होत ही ओस की ब द नटि होती ह

ह िहान परि समिाननीय गर ि आदरप वयक आपको निसकार करता ह ि आपक चरणकिलो क परतत अच क भषकतभावव कस परापत कर सक और आपक दयाल चरणो ि िरा िन हिशा भषकतभावप वयक कस सराबोर रह यह कपा करक िझ कह इस परकार कहकर ख ब नमरताप वयक एव आतिसिपयण की भावना स मशटय को चाहहए कक वह गर को दणडवत परणाि कर और उनक आग धगड़धगड़ाए

साकषात ईशवर जस सवोचच पद परापत ककय हए गर की जय हो गर का यश गान वाल ियशासतरो की जय हो षजसन कवल ऐस गर का ही आशरय मलया ह ऐस सचच मशटय की जय हो

गर कपा स ईशवर-साकषासकार

वादषववाद बदध गहन अभयास दान या तप स ईशवर-साकषातकार नही होता वह तो षजसन गरकपा परापत की हो उसको ही होता ह

गरकपा का छोि स छोिा बबनद भी इस ससार क कटिो स िनटय को िकत करन ि पयायपत ह

कवल गरकपा क दवारा ही सा क आधयाषतिक िागय ि लगा रह सकता ह एव तिाि परकार क बन नो एव आसषकतयो को तोड़ सकता ह

जो मशटय अहकार स भरा हआ ह जो गर क वचनो को सनता नही ह उसका आरखर नाश होता ह

षजन गर को आति-साकषातकार हआ ह ऐस गर ि और ईशवर ि कोई फकय नही ह दोनो सिान ह और एकरप ह

गर क सतसग की सहाय क बबना नय नय सा क क कससकारो ि ि लतः पररवतयन करन की बबलकल आशा नही ह

गर का सहवास सा क क मलए एक सरकषकषत नौका ह जो उस अन कार क उस पार तनभययता क ककनार पर पहचाती ह

शासतरो म गर की परशसा भागवत रािायण िहाभारत योगवामशटठ आहद ि गरभषकत की

िहहिा सनदर ढग स गायी गई ह हररोज उन गरनथो का अभयास करो आपको उनि स पररणा मिलगी

आति-साकषातकारी गर क मलख हए गरनथ परोकष सतसग जस ह आप जब सप णय शरद ा और भषकत स उनका अधययन करत ह तब आपक पावन गर क साथ आपका प णय सायजय होता ह

जो अपन सा नापथ ि सचच हदय स परयतन करता ह और जो ईशवर-साकषातकार क मलए तड़पता ह ऐस योगय मशटय पर ही गर की कपा उतरती ह

आजकल मशटय लोग ऐश-आरािवाला जीवन जीत ह और गर की आजञा का पालन ककय बबना ही उनकी कपा की आशा रखत ह

गर एव िहातिाओ क सतसग की िहहिा षवियक गर नानक तलसीदास शकराचायय वयास और वालिीकक न गरथ मलख ह

परदरदास तनशचलदास सहजोबाई िीराबाई जञानशवर एकनाथ आहद न गरकपा की िहहिा गाई ह

जो लोग तनयमित सतसग करत ह उनि ईशवर और शासतरो ि शरद ा गर एव ईशवर क परतत परि और भषकत का ीर ीर षवकास होता ह

गर का सग िाग और प ततय का परशन ह अगर सचच हदय की िाग हो तो प तत य तरनत हो जाएगी कदरत का यह अिल तनयि ह

आपको अगर सचिच ईशवर-साकषातकार की तड़प होगी तो आपक आधयाषतिक गर को आप अपन घर क दवार पर खड़ पाएग

आति-साकषातकारी िहान गर का सग परापत करना िषशकल ह ककनत वह सग बहत ही लाभकारी ह आप अगर भषकतभावप वयक इिानदारी स पराथयना करग तो व सवय आपक पास आयग

इस दतनया ि उतति वसतए अतयत अलप िातरा ि होती ह जस की कसत री कसर रडडयि चनदन षवदवान सदाचारी परि तथा परोपकारी सवभाव क लोग बहत कि होत ह अगर ऐसा ही ह तो सतो भकतो योधगयो पयगमबरो दटिाओ तथा आति-साकषातकारी गर क षविय ि तो कहना ही कया

आप अगर आति-साकषातकारी गर की सवा करग तो आपक िोकष की सिसया हल हो जाएगी

िहातिाओ का सग ईशवरकपा स ही परापत होता ह

गर की सवा करक आशीवायद परापत करन की इचछक सा को को कसग स अवशयद र रहना चाहहए

इस िाया का रहसय कौन जान सकता ह जो कसग का तयाग करत ह जो उदार हदयवाल गर की सवा करत ह जो अहभाव स िकत ह और जो ििता रहहत ह व इस िाया का रहसय जान सकत ह

राग-दवि स िकत ऐस गर का सग करन स िनटय आसषकत रहहत बनता ह उस वरागय परापत होता ह

उसि गर क चरणकिलो क परतत भषकत जागती ह

जो भषकतभावप वयक गर की सवा करता ह वह जीवन क परि तततव को परापत करता ह

सा क का िन ककसी भी परकार क परयतन बबना ही गर की सवा स अपन आप एकागर बनता ह

गर गरथसाहब कहत ह कक गर क बबना ईशवरपराषपत का िागय नही मिल सकता गर सवय ईशवर सवरप होन क कारण व सा क को ईशवर पराषपत क िागय ि ल जात ह उस िागय ि व पथपरदशयक बनत ह गर ही मशटय को ऐसा अनभव करा सकत ह कक वह सवय ही ईशवर ह

गर का महान परम

दवी गणो का षवकास करन वाला िहान रहसय गरभषकत ि तनहहत ह

जो मशटय अपन गर क चरणकिलो ि समप णय आति-सिपयण करता ह उस गर सवय ही सब दवी गण परदान करत ह

जो अपन िन पर सयि रखकर धयान नही कर सकत उनक मलए तो गरभषकत जगाकर गरसवा करना ही एक उपाय ह

गर मशटय की िषशकमलयो एव अवरो ो को जानत ह कयोकक व बतरकालजञानी ह अतः िन ि ही उनकी पराथयना कर व आपक अवरो ो को द र करग

गर क दशयन अन कार का सवयथा नाश करत ह और असीि आननद दत ह

भगवान आपका कलयाण कर और आप सब गरभषकत जस दलयभ दवी गण का षवकास करो

भगवान सवय ही आचायय क रप ि दीखत ह व परतयकष िानव क सवरप ि दशयन दत ह अथवा बरहितनटठ िहान जञानी क रप ि दशयन दत ह

जनि स लकर ितयपययनत जीवन का एक िातर हत िहान गर की सवा करना ह

गर क साथ तादासमय

कवल बदध िान वयषकत क रप ि एक वयषकत की कोई सतता नही ह उसि वासतषवकता का जञान नही ह ककनत जब वयषकत गर क समपकय ि आता ह तब उसि सचचा जञान सचची शषकत और सचचा आननद परकि होता ह व गर भी ऐस हो षजनहोन परिातिा क साथ तादातमय सथाषपत ककया हो

मशटय घास क ततनक स भी अध क नमर होना चाहहए तभी गर की कपा उस पर उतरगी

जब मशटय धयान नही कर सकता हो जब आधयाषतिक जीवन का िागय नही जान सकता हो तब उस गर की सवा करना चाहहए उनक आशीवायद परापत करना चाहहए उसक मलए कवल यही उपाय ह

िन जब परशानत और षसथर हो तब आप धयान कर सकत ह िन अगर कषब हो तो जप कर पसतक पढ़ और शरद ा-भषकतप वयक गर की सवा कर गर क साथ िानमसक समबन सथाषपत कर तभी आपका जलदी षवकास हो सकगा

जनि स लकर ितय तक सारा जीवन षवदयाथी अवसथा का सिय ह तभी षवदयाथी िोकषदायक आधयाषतिक जञान परापत कर सकता ह

जो मशटय गरकल ि रहत हो उनह इस नाशवत दतनया की ककसी भी चीज की तटणा न रह इसक मलए हो सक उतना परयास करना चाहहए

षजसन गर परापत ककय ह ऐस मशटय क मलए ही अिरतव क दवार पर खलत ह

सा को को इतना धयान ि रखना चाहहए कक कवल पसतको का अभयास करन स या वाकय रिन स अिरतव नही मिलता उसस तो व अमभिानी बन जात ह षजसक दवारा जीवन का क िपरशन हल हो सक ऐसा सचचा जञान तो गरकपा स ही परापत हो सकता ह

षजनहोन ईशवर क दशयन ककय ह ऐस गर का सग और सहवास ही मशटय पर गहरा परभाव डालता ह तिाि परकार क अभयास की अपकषा गर का सग शरटठ ह

गर का सतसग मशटय का पनजीवन करन वाला िखय तततव ह वह उस हदवय परकाश दता ह और उसक मलए सवगय क दवार खोल दता ह

गर का सग ही सा क को उसक चाररतरय क तनिायण ि उसकी चतना को जागत करक अपन सवरप का सचचा दशयन करन ि सहाय कर सकता ह

लशषटय को मागकदशकन

गर की सवा गर की आजञा का पालन गर की प जा और गर का धयान य चीज बहत िहततवप णय ह मशटय क मलए आचरण करन योगय उतति चीज ह

मशटय को बार-बार दवी सरसवती की षजनहोन आशीवायद हदय हो ऐस गर की एव सवोचच षपता परिशवर की पराथयना करना चाहहए

गर क पास अभयास प रा करन क बाद भी सिगर जीवनपययनत मशटय को अपन आचायय क परतत कतजञता का भाव बनाय रखना चाहहए

गर की कपा तो सदा रहती ह िहततवप णय बात यह ह कक मशटय को गर क वचनो ि शरद ा रखना चाहहए और उनक आदशो का पालन करना चाहहए

बदध को तजसवी रखन क मलए सवाधयाय की आवशयकता ह षजसस बदध उलि िागय ि न जाय या उसका दरपयोग न हो उसस भी अध क िहततवप णय चीज ह िहातिाओ का सतसग अथायत हि गर करना चाहहए षजसस हि तनरनतर िागयदशयन परापत होता रह व हि िागय ि आन वाल भयसथान हदखात रह कफर गर स परापत जञान की सहायता स मशटय योगय पथ पर आग बढ़न ि शषकतिान होगा

आसम-साकषासकार का रहसय

जीवन क परितततव रपी वासतषवकता क समपकय का रहसय गरभषकत ह

सचच मशटय क मलए तो गरवचन िान कान न

गर का दास बनना िान ईशवर का सवक बनना

षजनहोन परभ को तनहारा ह और जो योगय मशटय को परभ क दशयन करवात ह व ही सचच गर ह

बनाविी गर स साव ान रहना ऐस गर प र क प र शासतर रि लत ह और मशटयो को उनि स दटिानत दत ह लककन व जो उपदश दत ह उसका आचरण व खद नही कर सकत

आलसी मशटय को गरसवा नही मिल सकती

राजसी सवभाव क मशटय को लोकसगरह करन वाल गर क कायय सिझ ि नही आत

ककसी भी कायय का परारभ करन स पहल मशटय को गर की सलाह लना चाहहए

अनकरि

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परकररः 8

गरभलकत का वववरर

आरधयालसमक लशकषा का अथक िकतातिा गर की सवा उनहोन मलख हए पसतको का अभयास

और उनकी पषवतर ि ततय का धयान यह गरभलकत ववकलसत करन का सनहरा मागक ह

जो मशटय नाि कीततय सतता न और षवियवासना क पीछ दौड़ता ह वह सदगर क चरणकिलो क परतत सचचा भषकतभाव नही रख सकता

मशकषा का कषतर बहत ही षवशाल ह और जञानपराषपत की सभावनाए अपार ह अतः गर की आवशयकता अतनवायय ह

तततीरीय उपतनिद कहती हः अब जञान क षविय ि बात करत ह आचायय परथि सवरप ह मशटय आरखरी सवरप ह जञान इन दोनो क

बीच की कड़ी ह और उपदश वह िाधयि ह जो सिनवय कराता ह यह जञान का कषतर ह

कठोपतनिद कहती हः षजस आतिा क षविय ि मभनन-मभनन परकार स उपदश हदया जाता ह उस आतिा षवियक जब तनमन सतर की बदध वाल वयषकत क दवारा उपदश हदया जाता ह तब सरलता स सिझ ि नही आता ककनत जब वही आतिा क षविय ि बरहितनटठ गर उपदश दत ह तब बबलकल सनदह नही रहता अथायत भली परकार सिझ ि आ जाता ह आतिा तो स कषि स भी स कषि ह कवल बौदध क कसती स उस परापत नही ककया जा सकता कवल गर कपा स ही जञान परापत हो सकता ह

गर लशषटय का समबनध

मशटय को आचायय क घर रहना चाहहए बारह विय तक समप णय बरहिचयय का पालन करना चाहहए तथा कहठन तप करना चाहहए उस गर की सवा करना चाहहए तथा उनक िागयदशयन ि पषवतर शासतरो का अधययन करना चाहहए

जो मशटय को मशकषा द सक और सवय जो मशकषा द उसको अपन आचरण ि भी ला सक व ही गर हो सकत ह

िनटय को षजस ककसी को भी गर क रप ि सवीकार नही कर लना चाहहए एक बार गर क रप ि सवीकार कर लन क बाद ककसी भी पररषसथतत ि उनका तयाग नही करना चाहहए

आति-साकषातकारी गर इस जिान ि सचिच बहत दलयभ ह

सचिच आधयाषतिक षवकास कर लन वाल वयषकत जब तक परिातिा की आजञा नही होती तब तक गर क रप ि फजय अपन मसर पर नही लत

जब योगय सा क आधयाषतिक पथ की दीकषा लन क मलए गर की खोज ि जाता ह तब उसक सिकष ईशवर गर क सवरप ि हदखत ह और उस दीकषा दत ह

जो िकतातिा गर ह व एक तनराली जागरत अवसथा ि रहत ह षजस तरीयावसथा कहा जाता ह जो मशटय गर क साथ एकता सथाषपत करना चाहता हो उस ससार की कषणभगर चीजो क परतत समप णय वरागय का गण षवकमसत करना चाहहए

उचचतर जञान का मल

जो उचचतर जञान धचत ि स तनटपनन होता ह वह षवचारो क रप ि नही अषपत शषकत क रप ि होता ह वह जञान गर को मशटय क परतत सी सी ा सकरमित करना पड़ता ह ऐस गर धचतशषकत क साथ एक रप होत ह

ईशवर-साकषातकार कवल सवपरयतन स ही नही हो सकता उसक मलए गर कपा अतयनत आवशयक ह

मशटय जब उचचतर दीकषा क मलए योगय बनता ह तब गर सवय ही उस योग क रहसयो की दीकषा दत ह

गरशरद ा पवयतो को हहला सकती ह गरकपा चितकार कर सकती ह ह वीर तनःसशय बनकर आग बढ़ो

परिातिा क साथ एकरप बन हए िहान आधयाषतिक परि की जो सवा करता ह वह ससार क कीचड़ को पार कर जाता ह

अगर आप सासाररक िनोवषततवाल लोगो की सवा करग तो आपको सासाररक लोगो क गण मिलग उसस षवपरीत जो सदव परि सख ि तनिगन रहत ह जो सवय गणो क ाि ह जो साकषात परिसवरप ह ऐस

गर क चरणकिलो की सवा करग तो आपको उनक गण परापत होग अतः उनकी सवा करो बस सवा करो

आचरर क लसदधानत

अपन गर की सवा करन वाल मशटय को द सरो क सिकष लषजजत नही होना चाहहए सकोच िहस स नही करना चाहहए

गर न भोजन न ककया हो तब तक आप कभी भोजन ित कर

गर का उषचछटि परसाद (गर की थाली ि बचा हआ परसाद) जो गरहण करता ह वह गर क साथ एकतव का अनभव करगा गरकपा स वह उनक साथ एकरप हो जायगा

अतनवायय पररषसथततयो ि भी जब गर तनरा ीन हो या आराि करत हो तब उनह जगाना नही चाहहए षवघन नही डालना चाहहए

गर क साथ हसी िजाक कभी ित कर अगर ऐसा करग तो ीर- ीर उनक परतत आदर कि होता जायगा और आपको लगगा कक ि उनक बराबर हो गया ह

बनाविी गर स साव ान रहना उनहोन अपनी बरबादी तो की ह लककन व आपकी भी बरबादी कर दग

गर होना अचछी बात ह लककन गर का तयाग करना बहत खराब बात ह

गर होना अचछी बात ह और गहरी शरद ा स उनकी सवा करना यह उसस भी अचछी बात ह

गर की आजञा का पालन करना ईशवर की आजञा का पालन करन क बराबर ह

अनक गर करना खराब बात ह गर स ोखा करना और उनकी आजञा का उललघन करना बहत खराब बात ह

गर की सवा करन क मलय सदव ततपर रहो

गर की अथक सवा करक उनकी कपा परापत करो षजसन गर कपा परापत की ह वही सा ना का रहसय जानता ह

गर होना अचछी बात ह उनकी आजञा का पालन करना उसस भी अध क अचछी बात ह और उनक आशीवायद परापत करना शरटठ ह

जो अपन गर की सवा करता ह वही परि सतय क समपकय ि आन की कला जानता ह

जो िोह स िकत बनता ह वह कभी भी गर का रोह नही करगा

गर िहाराज क जीषवत होत हए जो उनकी गददी पर बठन की इचछा करता ह उस सी ा नकय का पासपोिय मिल जाता ह यिराज भी ऐस आदिी स डरत रहत ह कक शायद वह आदिी िरी गददी भी छीन लगा

गरप रणयिा क हदन जो अपन गर की पादप जा करता ह उस सार विय क दौरान सार किो ि सफलता मिलती ह

गरभाई पर परि रखना यह गरदव क परतत परि रखन क बराबर ह गरभाई को सहाय करना यह गरदव की सवा करन क बराबर ह

गर की सवा करना िान आतिोद ार करना गर की सवा करना िा-बाप की सवा करना

ककसी भी चीज ि अन शरद ा होना यह अचछी बात नही ह ककनत ईशवर क साथ एकतव सथाषपत ककय हए गर क वचनो ि अन शरद ा रखना यह िोकष का राजिागय ह

आप कछ ही सिय ि एक िहान षवदवान बन सकत ह ककनत आसानी स सचच मशटय नही बन सकत

योगय गर की खोज

आजकल कई बनाविी गर तथा मशटय हदखाई दत ह आपको गर की पसनदगी करना हो तब धयान रखना

मशटय का कततयवय ह गर क पषवतर िख स जो आजञाए तनकल उनका पालन करना

गर क तनवास एव आशरि क आसपास क सथान सवचछ एव वयवषसथत रखो

गर और मशटय क बीच परिी और परमिका जसा समबन ह कभी कभी गर अपन मशटय की कसौिी कर या उस परलोभन ि

डाल तो मशटय को गर क परतत अपनी शरद ा क दवारा उसका सािना करना चाहहए

मशटय को कोई भी चीज गर स तछपाना नही चाहहए उस सपटिवकता और परािारणक बनना चाहहए

रागदवि स िकत गर क चरणकिलो की मल बनना यह तो िहान सौभागय ह दलयभ अध कार ह

परिातिा क साथ एकतव सथाषपत ककय हए आचायय क पषवतर चरणो की मल तो मशटय क मलए अलौककक अलकार ह

गरसवा का एक भी हदन च कना नही ककसी भी परकार क पग बहान बनाना नही

जो अपन को गरचरण की मल िानता ह ऐस िनटय को नय ह

जो मशटय नमर सादा आजञाकारी तथा गर क चरणकिलो क परतत भषकतभाव रखनवाला ह उस पर गरकपा उतरती ह

गर क कायय का एक सा न बनो

गर जब आपकी गलततया बताव तब अपन कायय उधचत ह ऐसा बचाव ित कर कवल उनका कहा िान

जो गर षवशिजञ हो उनक िागयदशयन ि आसन पराणायाि धयान सीखो

षजसकी तनरा तथा आहार आवशयकता स अध क ह वह गर की रधच क िताबबक उनकी सवा नही कर सकता

गर क पदचचहनो पर

जो अध क वाचाल ह और शरीर की िीपिाप करना चाहता ह वह गर की इचछा क अनसार सवा नही कर सकता

हररोज भषकतभाव एव भषकत स गर क चरणकिलो की प जा करो

अगर अलौककक भाव स अपन गर की सवा करना चाहत हो तो षसतरयो स एव सासाररक िनोवषततवाल लोगो स हहलोमिलो नही

गर क आशीवायद का खजाना खोलन क मलए गर सवा गर चाबी ह

जहा गर ह वहा ईशवर ह यह बात सदव याद रखो

जो गर की खोज करता ह वह ईशवर की खोज करता ह जो ईशवर की खोज करता ह उस गर मिलत ह

मशटय को अपन गर क कदि का अनसरण करना चाहहए

गर की पतनी को अपनी िाता सिझकर उनको इस परकार िान दना चाहहए

अपन गर स कषणभगर पाधथयव सखो की याचना ित करना अिरतव क मलए याचना करो

अपन गर स सासाररक आवशयकताओ की भीख नही िागना

सचच मशटय क मलए आचायय क चरणकिल ही एकिातर आशरय ह

जो कोई अपन गर की भावप वयक अहतनयश अथक सवा करता ह उस काि करो और लोभ कभी सता नही सकत

गर क चररो म जो दवी गर क चरणो ि आशरय लता ह वह गर की कपा स

आधयाषतिक िागय ि आन वाल तिाि षवघनो को पार कर जाएगा

योग क मलए शरटठ एकानत सथान गर का तनवास सथान ह

मशटय क साथ गर रहत नही हो तो ऐसा एकानत सचचा एकानत नही ह ऐसा एकानत काि और तिस का आशरयसथान बन जाता ह

षजस मशटय को अपन गर क परतत भषकतभाव ह उसक मलय तो आहद स अनत तक गर सवा िीठ शहद जसी बन जाती ह

गर क पषवतर िख स बहत हए अित का जो पान करता ह वह िनटय नय ह

जो समप णय भाव स अपन गर की अथक सवा करता ह उस दतनयादारी क षवचार नही आत इस दतनया ि वह सबस अध क भागयवान ह

बस अपन गर की सवा करो सवा करो सवा करो गरभषकत षवकमसत करन का यह राजिागय ह

गर िान सषचचदानद परिातिा

गर की पजा प जय आचायय की सवा जसी हहतकारी और आतिोननतत करन वाली

और कोई सवा नही ह

सचचा आराि दवी गर की सवा ि ही तनहहत ह ऐसा द सरा कोई सचचा आराि नही ह

गरकपा स जीवन का ििय सिझ ि आता ह

ककसी भी परकार क सवाथी हत क बबना आचायय की पषवतर सवा जीवन को तनषशचत आकार दती ह

वदानत क थोड़ बहत पसतक सवततर रीतत स पढ़ लन क बाद यो कहना कक न गरः न मशटयः यह सतय क खोजी क मलए िहान भ ल ह

कभी कभी मशटय क पापो को हर लन स गर को शारीररक पीड़ा भगतनी पड़ती ह वासतव ि गर कोई भी शारीररक रोग या पीड़ा नही भोगत ककनत बहत भषकतभाव और ततपरता स गर की सवा करक हदय को पषवतर बनान क मलए मशटय को परापत एक षवरल िौका ह

पणयशाली आचायय का उतति षवचार मशटय को पाधथयवता और इषनरयषवियक जीवन स ऊपर उठन ि सहायरप ह

उप िान पास तन िान नीच िद िान बठना उपतनिद िान आचायय क पास नीच बठना मशटयो का सि ह बरहि क मसद ानत का रहसय जानन क मलए आचायय क पास बठता ह

रहसय-ववदया का दान

पषवतर शासतरो का ग ढ़ रहसय और पराचीन मसद ानतो का अथय कवल पसतक पढ़न स या पाषणडतयप णय भािण सनन स सिझ ि नही आता जो भागयशाली मशटय आजीवन गर क साथ रहकर उनकी सवा करत ह और गर क परतत आदर तथा भषकतभाव रखत ह उनको तततविमस अह बरहिाषसि सव खषलवद बरहि आहद उपतनिदो क कथन अचछी तरह सिझ ि आत ह और उनक अथय का साकषातकार होता ह

गरकपा आतिा का आनतरदशयन कराती ह

अनकबार की बबनती और कहठन कसौिी क बाद ही सदगर अपन षवशवसनीय मशटय को उपतनिद की रहसय षवदया परदान करत ह

उपतनिद की परमपरा क िताबबक आचायय बरहि-षवदया का रहसय अपन योगय पतर अथवा तो षवशवसनीय मशटय को ही द सकत ह और ककसी को भी नही कफर वह चाह कोई भी हो और चारो ओर स पानी स आवतत वभव स सिद सारी पथवी गर को दन क मलए तयार हो

पावनकारी गर को दणडवत परणाि करन क बाद उनकी ओर पीठ करक मशटय को जाना चाहहए

आचायय यहद वदानत को सचचा अथय जानत हो और जीवन की षवमभनन अवसथाओ को वह ककस परकार लाग ककया जा सकता ह वह सिझत हो तो एक बालक को भी व वदानत मसखा सकत ह

जो वयषकत पस क पीछ दौड़ता ह वह गर की समपषतत चरान ि भी रझझकता नही ह

गर की समपषतत क परतत लोलप ित बनो

जो िकतातिा पावनकारी गर ह व शाषनत और आननदसवरप ह व सिदषटिवाल और षसथतपरजञ ह उनक मलए िान-अपिान सततत-तननदा सख-दःख सिान ह व काि करो लोभ िद और ितसर स िकत ह उनको रधच अरधच नही होती उनह कोई आसषकत नही होती व बालक जस तनदोि कफर भी जञान क भणडार ह व अपनी उपषसथतत िातर स या कपादषटि स ही मशटय क सशय द र करत ह

गरीब और बबिार की सशरिा करना गर और िा-बाप की सवा करना दया क उतति कायय करना गरकपा स आतिजञान पाना यह सब सचिच सवयशरटठ पणय ह

गर की तनजी सवा जसी पावनकारी और कोई चीज नही ह िोकष क शरिजनक िागय ि गरकपा सचिच षवशवसनीय साथी ह

आसमववजय का शसतर

कवल गर की शरण ि जान स ही जीवन जीता जा सकता ह

गरभषकतयोग क अभयास स िन को सयि ि लान स कािवासना की शाषनत हो सकती ह

गरसवा आपको बबलकल सवसथ और तनदरसत रखती ह गरभषकतयोग का अभयास आपको अिाप एव अनहद आननद दता

गरसवा अदवतभाव या एकरपता पदा करती ह

गरभषकतयोग सा क को धचराय और अननत सख दता ह गरसवा क बबना वदानत का अभयास वयषकत को तोत जसा

वदानती बनाता ह अतः अपन प जय आचायय की सवा करो सवा करो सवा करो

अपन दतनक जीवन ि िागयदशयन क मलए परतयक कषण प जय गर की पराथयना करो

जो पराथयना मशटय क तनखामलस पषवतर हदय स तनकलती ह उस गर की ओर स ततकाल परतयततर मिलता ह

जो सा -सत प जय गर ह उनक पास शरद ा भषकत और नमरताप वयक जाओ जञानरपी औि लो समप णय आजञाकाररता पथय ह तभी अजञानरपी रोग प णयतः तनि यल होगा और आप सवोचच सख का अनभव कर सक ग

अनकरि

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परकररः 9

गरभलकत की नीव

शरदधा का महवव

गर ि शरद ा गरभषकतयोग की सीड़ी का परथि सोपान ह गर ि शरद ा दवी कपा परापत करन क मलए मशटय को आशा एव

पररणा दती ह

गर ि समप णय षवशवास रखो तिाि भय धचनता और जजाल का तयाग कर दो बबलकल धचनतािकत रहो

गरवचन ि शरद ा अख ि बल शषकत एव सतता दती ह सशय ित कर ह मशटय आग बढ़

जञानीजनो क सिागि स तथा पराण और पषवतर शासतरो क अधययन स गर पर शरद ा दढ़ करो

गर क उपदशो ि गहरी शरद ा रखो सदगर क सवभाव और िहहिा को सपटि रीतत स सिझो गर की सवा करक हदवय जीवन बबताओ तभी ईशवर की जीवनत ि ततय क सिान सदगर क पषवतर चरणो ि समप णय आतिसिपयण कर सकोग

गर को षवघनरप बनन स तो िरना बहतर ह

गर पर भषकतभाव सब हीन वषततयो और आवगो को दबा दता ह तथा सब अवरो ो को द र करता ह

गरभषकतयोग ि गर क परतत भषकतभाव सबस िहान चीज ह भलकत क सवरप

गर की अचल भषकत ईशवर-साकषातकार करन क मलए बहत असरकारक पद तत िानी जाती ह

गर की िहहिा का सतत सिरण और उनक हदवय सनदश को सवयतर फलाना या गर क परतत सचचा भषकतभाव ह

आचायय क पषवतर चरणो की भषकत फ ल ह और उनक आशीवायद अिर फल ह

जीवन का धयय ह पररणाि ि दःख दनवाली कसगतत का तयाग करना और अिरतव दन वाल पषवतर आचायय क चरणकिलो की सवा करना

सा क जब इहलोक और परलोक ि धचरतन सख दन वाल गरभषकतयोग का आशरय लता ह तभी उसका सचचा जीवन शर होता ह

जनि-ितय सख-दःख हिय-शोक क अषवरत चकर स िषकत नही होगी कया ह मशटय साव ान होकर सन उसक मलए एक तनषशचत उपाय ह नाशवत इषनरयषवियक पदाथो ि स अपना िन हिा ल और इन दवनदवो स पार ल जान वाल गरभषकतयोग का आशरय ल

सचचा सथायी सख बाहर क नाशवत पदाथो स नही अषपत गरशरणयोग का आशरय लन स मिल सकता ह

गरसवायोग गरशरणयोग आहद गरभषकतयोग क सिानाथी शबद ह व सब एक ही ह

गरभषकतयोग का अभयास िान गर क परतत गहरा पषवतर परि

आचायय क पावनकारी चरणकिलो क परतत पषवतर परि ीर- ीर षवकमसत करना चाहहए उसक मलए कोई ि का िागय नही ह

गरभषकतयोग सब षवजञानो ि शरटठ षवजञान ह सचच मशटय क मलए पावनकारी आचायय क चरणकिल धयान का

िखय षविय ह गरभषकतयोग सब योगो का राजा ह

गरभषकत क अभयास स जब िन की बबखरी हई शषकत की ककरण एकबतरत होती ह तब यह रोग चितकार कर दता ह

सब िहातिाओ तथा आचायो न गरभषकतयोग क अभयास दवारा िहान कायय ककय ह जनादयन सवािी क मशटय एकनाथजी गरभषकत स

िहान हो गय और उनका मशटय प रणपोड़ा अषवदवान होत हए गर का अप णय गरनथ प णय कर सका शकराचायय क मशटय तोिकाचायय न गरभषकत स चितकार कर हदखाया एकलवय और सहजोबाई गर-भषकतयोग क परतयकष परिाण ह और भी असखय गरभकतो न गर क दवी धचनतन स ि र सितत स अथवा गर क दवी कायय ि सवा करक हदय की ऐसी शीतलता िन की ि रता िहस स की ह कक ककताब पढ़कर कथा करन वाल या सनन वाल षजसकी कलपना भी नही कर सकत ऐसी ह गरभषकत की िहहिा

गरभषकतयोग की कफलासफी क िताबबक गर और ईशवर अमभनन एक ही ह अतः गर को समप णय आतिसिपयण करना अतनवायय ह

गरभषकतयोग ि अनय सब योग सिाषवटि हो जात ह गरभषकतयोग का आशरय मलए बबना कोई भी वयषकत अनय कहठन योगो का अभयास नही कर सकता

गरभषकतयोगकी कफलासफी आचायय की उपासना क दवारा गरकपा करन क मलए िखय दटिानत आग रखती ह

गरभषकतयोग वद और उपतनिदो क सिय षजतना पराचीन ह

हदय की पषवतरता परापत करन क मलए धयान क मलए और आति-साकषातकार क मलए गरभषकतयोग की कफलासफी गरसवा पर काफी जोर दती ह

जो अपन गर की आरोगयता क मलए लगा रहता ह वह िनटय नय ह

कपा का कायक गरकपा एक पररवतयनकारी बल ह

जहा गरकपा ह वहा षवजय ह

आचायय क पावन चरणो की प जा करन ि और उनक हदवय आदशो का पालन करन ि ही सचचा जीवन ह

गरभषकतयोग क तनरनतर अभयास दवारा िन की चचल वषतत को तनि यल करो

इस लोक क आपक जीवन का परि धयय और लकषय अिरतव परदान करन वाली गरकपा परापत करना ह

गर की सवा करत सिय शरद ा आजञापालन और आतिसिपयण इन तीनो को याद रखो

गरसवा क आदशय को अपन हदय ि गहरा उतर जान दो कसग ि स अपन िन को अलग करो और जो प णयता क परतीक

ह सतयवतता ह सावयबतरक परि क कनर और िनटय जातत क नमर सवक ह ऐस गर क पावन चरणो ि अपन िन को लगा दो

जञानी गर की सहायता स सतत आधयाषतिक अभयास जारी रखो

सचचा सा क गरभषकतयोग क अभयास ि लगा रहता ह

हो सक उतनी िातरा ि आचायय क परतत भषकतभाव जगाओ तभी उनक सवयशरटठ आशीवायद का सख भोग सकोग

पावनकारी आचायय क पषवतर चरणो को तनहारत तनहारत सचच आननद की कोई सीिा नही रहती

एक भी कषण गवाओ नही जीवन थोड़ा ह सिय जलदी स सरक जाता ह ितय कब आ जाय कोई पता नही उठो जागो ततपरताप वयक आचायय की सवा ि लग जाओ

आचायय की सवा ि ड ब जाओ

गर पर शरद ा और उनक जञान क वचनो स सजज बनो

आरधयालसमक मागक और जीवन

आधयाषतिक िागय तीकषण ारवाली तलवार का िागय ह षजनको इस िागय का अनभव ह ऐस गर की अतनवायय आवशयकता ह

आपक सब अहभाव का तयाग करो और गर क चरणकिलो ि अपन आपको सौप दो

गर आपको िागय हदखाएग और पररणा दग िागय ि आपको सवय ही चलना होगा

जीवन अलप ह सिय जलदी स सरक रहा ह उठो जागो आचायय क पावन चरणो ि पहच जाओ

जीवन थोड़ा ह ितय कब आयगी तनषशचत नही ह अतः गभीरता स गर सवा ि लग जाओ

हररोज आधयाषतिक दतनकी मलखो उसि अपनी परगतत और तनटफलता की सचची नोि मलखो और हर िहीन अपन गर क पास भजो

अपन गर स ऐसी मशकायत नही करना कक आपक अध क काि क कारण सा ना क मलए सिय नही बचता नीद क तथा गपशप लगान क सिय ि किौती करो और कि खाओ तो आपको सा ना क मलए काफी सिय मिलगा आचायय की सवा ही सवोचच सा ना ह

गर की सवा और गर क ही षवचारो स दतनया षवियक षवचारो को द र रखो

अपन आधयाषतिक आचायय क आग अपनी शषकत की बड़ाई नही करना या परिाण नही दना नमर और साद बनो इसस आधयाषतिक िागय ि शीघर परगतत कर सकोग

आचायय क कायो की तननदा आलोचना एव दोिदशयन छोड़ दना उनक परतयाघातो स साव ान रहना

आचायय की सवा करत सिय चाह ककतन भी दःख आ जाए उनह सह लन की तयारी रखना

परि एव अनकपा की साकषात ि ततय रप अपन गर क सिकष अपन दोिो को परकि करक एकरार करो

आपक गर आपस अपकषा रख उसस भी अध क सवा करो

गर क मसवाय और ककसी स गाढ़ समबन ित रखो और लोगो स कि हहलोमिलो

गर का परि उनको दयादषटि मशटय की सथ ल परकतत का पररवतयन करक शद ीकरण कर सकती ह

लशषटय की भावना गर की िहहिा को पहचान कर उसका अनभव करो और उनका

परि-सनदश िनटय जातत ि फलाओ ऐसा करन स गर की कपा आप पर उतरगी

आचायय क परतत कततयवयो ि स कभी भी षवचमलत ित बनो

शरद ा षवनय एव भषकतभावप वयक गर को ख ब ि लयवान भि दनी चाहहए

गर को शरटठ दान दो गर को लापरवाही ि दी हई भि भी मशटय को वापस नही लना चाहहए

गर की सवा करत सिय अपन भीतर क हतओ पर तनगरानी रखो ककसी भी परकार क फल नाि कीततय सतता न आहद की आशा क बबना ही गर की सवा करनी चाहहए

आप अपन गर क साथ वयवहार कर तब सचचाई एव तनटठा रखना

गरभषकतयोग ि ईिानदारी क बबना आधयाषतिक परगतत सभव नही ह

षजस परकार चातक पकषी कवल विाय क पानी की आशा ि ही जीता ह उसी परकार कवल गर कपा की आशा स ही मशटय आधयाषतिक िागय ि आग बढ़ सकता ह

गर क परतत आततथयभाव हदखाना यह सवोचच यजञ ह गरसवा रपी यजञ क पास अशवमध और अनय महान यजञो की भी कोई कीमत नही ह

ईशवर-साकषासकार का सबस सरल मागक गरचरण ि आशरय लकर पररणा पाओ

परि यह गर क चरणकिलो क साथ मशटयो क हदय को बा न वाली सवणय की कड़ी ह

ईशवर का अनभव करन क मलए गरभषकतयोग सबस सरल सचोि तवररत और सलाित िागय ह आप सब गरभषकतयोग क अभयास क इसी जनि ि ईशवर-अनभव परापत कर

गर क नाि का शरण लो सदव गर का नाि रिन करो कमलयग ि गर की िहहिा गाओ और उनका धयान करो ईशवर-साकषातकार क मलए यह शरटठ और सरल िागय ह

िोकष अथवा सनातन सख क दवार खोलन की गरचाबी गरभषकत ह

जीवन ि र फ ल ह षजसि गरभषकत िीठा शहद ह

गर क चरणो की भकत सचच मशटय क मलए शवासोचछवास क बराबर ह

गरभषकतयोग क अभयास स अिरतव सवोतति शाषनत और शाशवत आननद परापत होता ह

गर परि और करणा की ि ततय ह आपको अगर उनक आशीवायद परापत करन हो तो आपको भी परि और करणा की ि ततय बनना चाहहए

गर क परतत भषकत अख ि और सथायी होनी चाहहए गर सवा क मलए प र हदय की इचछा ही गरभषकत का सार ह

शरीर या चिड़ी का परि वासना कहलाती ह जबकक गर क परतत परि गरभषकत कहलाता ह ऐसा परि परि क खाततर होता ह

गर क परतत भषकतभाव ईशवर क परतत भषकतभाव का िाधयि ह

जप कीतयन पराथयना धयान सा सवा अधययन और सा सिागि क दवारा अपन हदयक ज ि शद गरभषकत का फ ल षवकमसत करो

गर की सवा आपक जीवन का एकिातर लकषय और धयय होना चाहहए

अपन आपकी अपकषा गर पर अध क परि रखो

ववशवपरम का ववकास

अपन शतरओ पर परि रखो अपन स तनमन कोहि क लोगो पर परि रखो परारणयो क परतत परि रखो अपन गर पर परि रखो सब सा सतो पर परि रखो

गर की तनःसवाथय सवा िहातिाओ का सतसग पराथयना और गरितर क जप दवारा ीर ीर षवशवपरि का षवकास करो

अनय लोगो न जो चीज िहापरयतन स मसद की हो वह चीज आप गर कपा स परापत कर सकत ह

नय ह षवनमर लोगो को कयोकक उनह तरनत गर कपा मिल जाती ह षजनहोन गर की शरण ली ह ऐस पषवतर आतिाओ को नयवाद ह कयोकक उनको परि सख अवशय परापत होता ह

गरकपा की पराषपत क मलए नमरता राजिागय ह

आधयाषतिक आचायय अथवा सचच िहापरि की परथि कसौिी उनकी नमरता ह यह उनका ि ल सदगण ह

गर क साथ तादासमय

सई क छद स ऊ ि गजर सक इसस भी अतयनत अध क िषशकल बात ह गर कपा क बबना ईशवरकपा परापत करना

जस पानी को द ि डाला जाए तो वह द ि मिल जाता ह और अपना वयषकततव गवा दता ह वस सचच मशटय को चाहहए कक वह अपन आपको समप णयतः गर को सौप द उनक साथ एकरप हो जाय

जस छोि छोि झरन एव नहदया िहान पषवतर नदी गगा स मिल जान क कारण खद भी पषवतर होकर प ज जात ह और अषनति लकषय सिर को परापत होत ह इसी परकार सचचा मशटय गर क पषवतर चरणो का आशरय लकर तथा गर क साथ एकरप बनकर शाशवत सख को परापत होता ह

बालक बोलना-चलना कया एक ही हदन ि सीखता ह बोलना-चलना सीखन क मलए बालक को आवशयक ऐस िा-बाप क लमब सहवास एव योगय तनगरानी तथा रस की आवशयकता नही पड़ती कया पड़ती ही ह इसी परकार सचच और ईिानदार मशटय को गर क साथ लमब सिय तक रहना चाहहए और तन िन स सब सवा करना चाहहए इस प र सिय क दौरान सवोचच षवदया सीखन क मलए हदयप वयक धयान

दना चाहहए और उसि रस लना चाहहए इस परकार उस परि जञान परापत होगा और ककसी परकार स नही

सब वरदान दन वाल

कलपवकष काि न और धचनतािरण िागन वाल को उसका िनोवातछत वरदान अवशय दत ही ह इसी परकार गर भी िागन वाल को इटि वसत अवशय दत ह अतः सचचा मशटय तो कवल िोकष परापत करन क मलए उपतनिद की िहाषवदया ही िागता ह

षजस परकार बालक जब ीर ीर कदि रखता ह और सवततर रीतत स चलन की कोमशश करता ह तब कभी कभी धगर पड़ता ह और खड़ा होता ह िा की सहायता की आवशयकता पड़न पर उसकी सहायता िागता ह इसी परकार सा ना क परारभ क सतरो ि मशटय को करणािय गर की सहायता एव िागयदशयन की आवशयकता पड़ती ह अतः उस वह िागना चाहहए

एक बालक की तरह सचच मशटय को िोकष क मलए तीवर आकाकषा होनी चाहहए तथा सभव हो उतनी तिाि रीततयो स वह आकाकषा परकि करनी चाहहए तभी उसकी इचछा की प तत य करन ि गर उस सहायभ त हो सकत ह इस आकाकषा को परयतन कह सकत ह और गर की करणािय सहाय को िाता की वातसालिय कपा कह सकत ह

सनदर ढग स तनमियत ि ततय क मलए दो चीज आवशयक ह- एक ह अखणड किीरहहत अचछा सगिरिर का िकड़ा और द सरी चीज कशल मशलपी सगिरिर का िकड़ा मशलपी क हाथ ि रहना अतनवायय ह षजसस छीनी क दवारा उस करदकर सनदर ि ततय बनाया जाय इसी परकार मशटय को भी चाहहए की वह अपन आपको सवचछ और शद करक बबलकल कषततरहहत सगिरिर क िकड़ जसा बनाए और गर क

कशल िागयदशयन ि रख द षजसस गर छीनी स उस करदकर परभ की हदवय ि ततय ि पररवततयत कर सक

जस स योदय होत ही तिाि अन कार का तरनत नाश होता ह वस ही गरकपा उतरत ही मशटय क िन ि आवरण और अषवदया का तरनत नाश होता ह

षजस परकार स यय की परखर ककरणो स जला हआ िनटय वकष की शीतल छाया ि और हदन भर की गिी क बाद शीतल चादनी ि असीि आननद की अनभ तत करता ह उसी परकार ससार की परखर ककरणो स जला हआ और शाषनत क मलए वयाकल बना हआ िनटय बरहितनटठ गर क चरणो ि इषचछत शाषनत और आननद की अनभ तत करता ह

षजस परकार चातक पकषी लमब सिय तक इनतजार करन क बाद विाय क कवल एक ही जलबबनद स अपनी पयास बझाता ह उसी परकार सचच मशटय को अपन गर की सवा करनी चाहहए और उपदश वचन का इनतजार करना चाहहए इसस उसकी तिाि वयथाए शानत होगी और वह सदा क मलए िकत हो जाएगा

जस अषगन का सवभाव ही ऐसा ह कक उसक तनकि आनवाली परतयक वसत को जलाकर भसि कर दती ह वस ही जो िनटय कपाल गर की पराषपत कर लता ह उसक ककसी भी गण दोिो को दख बबना बरहितनटठ गर की कपा उसक तिाि पापो को जलाकर भसि कर दती ह

आरधयालसमक परववतत की आवशयकता जो कोई िनटय दःखो स पार होकर सख एव आननद परापत करना

चाहता हो उस सचच अनतःकरण स गरभषकतयोग का अभयास करना चाहहए

गर क पषवतर चरणो क परतत भषकतभाव सवोतति गण ह इस गण को ततपरता एव पररशरिप वयक षवकमसत ककया जाए तो इस ससार क दःख और अजञान क कीचड़ स िकत होकर मशटय अख ि आननद और परि सख क सवगय को परापत करता ह

परारभ ि तरग क रप ि हदखन वाली षविय वषततया कसग क कारण िहासागर का रप ारण कर लती ह अतः कसग का तयाग करक आचायय क जीवनरकषक चरणो का आशरय लो

अगर आप गरसवा ि रििाण रहत ह तो आप धचनताओ को जीत सकत ह सब धचनताओ का यह अच क िारण ह

उतति मशटय को अपन गर पर ककसी भी पररषसथतत ि सनदह नही लाना चाहहए या उनकी उपकषा नही करनी चाहहए

आदरणीय गर क पषवतर चरणो ि साटिाग दणडवत परणाि करन ि लषजजत होना यह गरभषकतयोग क अभयास ि बड़ा अवरो ह

सवावलमबन आतिनयायीपन की भावना मिथयामभिान आतिामभिान अपनी बात ही सतय ह ऐसा िानना आलसय हठागरह क थली कसग बईिानी उददणडता काि करो लोभ और ि पना य चीज गरभषकतयोग क िागय ि िहान भयसथान ह

किययोग भषकतयोग राजयोग हठयोग जञानयोग आहद सब योगो की नीव गरभषकतयोग ह जो मशटय िानता ह कक ि सब कछ जानता ह कक वह ि पन की भावना क कारण अपन गर स कछ भी नही सीख सकगा

वह खद सचचा ह ऐसा गर क सिकष हदखाना यह मशटय क मलए बहत ही खतरनाक आदत ह

आप जब गर की सवा करत हो तब नमर ि रभािी िद और षववकी बनो इसस गर का हदय जीत सकोग गर क सिकष वाणी या वतयन ि कभी उददणडता ित हदखाओ

िोिी बदध का षवदयाथी गरभषकतयोग क अभयास ि ककसी भी परकार की ठोस परगतत नही कर सकता

मशटय को आदरणीय आचायय क जीवन की उजजवल बात ही दखनी चाहहए

िन ि अगर गर क षविय ि कषवचार आय तो सवय ही अपन को दणड दो

आपक मलए कवल इतना ही आवशयक ह कक गरभषकतयोग क िागय ि अनतःकरणप वयक परािारणक परयतन करना ह

अपना गरितर अथवा गर का पषवतर नाि हररोज एक घणि तक सवचछ नोिबक ि मलखो

चलत हए खात हए कायायलय ि काि करत हए भी सदव अपन गरितर का जप करत रहो

गर का उननततकारक सालननरधय

िहान गर ि षसथत चितकाररक आधयाषतिक शषकत क दवारा मशटय ि जो अदभत पररवतयन ककया जाता ह उस उपकार क िहान ऋण का प रा वणयन करन की शषकत वाणी ि नही ह

सदगर साकषात ईशवर ह ऐसा जो कहा गया ह वह सतय ही ह उनकी िहानता शबदातीत ह

गर का साषननधय परबल आधयाषतिक सपनदनो क दवारा मशटय को ऊ ची भ मिका पर ल जाता ह और उस पररणा दता ह गर की िहहिा मशटय की सथ ल परकतत का पररवतयन करन ि तनहहत ह

सदगर क चरणो ि आशरय लना ही सचचा जीवन ह जीवन जीन की सही रीतत ह

गर की शरणागतत की सवीकार करना यही आतिसाकषातकार का िागय ह

गर ि अषवचल शरद ा न हो तब तक ककसी को भी परि सख भोगन को नही मिलता

हि अयोगय लगता हो कफर भी गर जो करत ह वह योगय ही ह

गर क उपदश ि अषवचल और अषवरत शरद ा सचची गरभषकत का ि ल ह

गर सदव अपन मशटय क हदय ि बसत ह

कबीर जी कहत ह- गर और गोषवनद दोनो िर सिकष खड़ ह तो ि ककसको परणाि कर नय ह व गरदव षजनहोन िझ गोषवनद क दशयन करवाय

कवल गर ही अपन योगय मशटय को हदवय परकाश हदखा सकत ह

गर अपन मशटय को असत ि स सत ि ितय ि स अिरतव ि अन कार ि स परकाश ि और भौततक ि स आधयाषतिक ि ल जात ह

जगदहतकारी गर

सचच गर मशटय का परारब बदल सकत ह

सदगर पयगबर और दवद त ह षवशव क मितर और जगत क मलए कलयाणिय ह पीडड़त िानवजातत क रवतारक ह

सचच गर की सवा करन स काल का शसतर बटठा बन जाता ह गर क जञान क पषवतर शबद मशटय क हदय ि परवश करत ह गरकपा क बबना बन निषकत नही ह

जो गरभषकतिागय स षविख बना ह वह ितय अन कार और अजञान क भवर ि घ िता रहता ह

सतरी एव परि अपनी आनवमशक शषकत क िताबबक िानवता क पथ का अनसरण करन की कोमशश कर सकत ह उनको िहान गर का उपदश स यय की परखर ककरण की तरह जगत क भरातत रपी अन कार को षवदीणय करक परकामशत करता ह

गरकपा स ही िनटय को जीवन का सचचा उददशय सिझ ि आता ह और आति-साकषातकार करन की परबल आकाकषा उतपनन होती ह

मशटय क हदय क तिाि दगयण रपी रोग पर गरकपा सबस अध क असरकारक परततरो क एव सावयबतरक औि ह

यहद कोई िनटय गर क साथ अखणड और अषवषचछनन समबन बा ल तो षजतनी सरलता स एक घि ि स द सर घि ि पानी बहता ह उतनी ही सरलता स गरकपा बहन लगती ह

कवल यतरवत दणडवत परणाि करन स गरकपा परापत नही की जा सकती वह तो गर क उपदश को जीवन ि उतारन स ही परापत हो सकती ह

राबतर को तनरा ीन होन स पहल अनतियख होकर मशटय को तनरीकषण करना चाहहए कक गर की आजञा का पालन ककतनी िातरा ि ककया ह

हररोज गर की सवा का परारभ करन स पहल मशटय को िन ि तनशचय करना चाहहए कक प वय की अपकषा अब अध क भषकतभाव स एव अध क आजञाकाररता स गर की सवा कर गा

गर ि तथा शासतरो ि थोड़ी बहत शरद ा होती ह वह भी कसग स शीघर नटि हो जाती ह

नततक परकता की आवशयकता जो गर क पषवतर चरणो क परतत सचचा भषकतभाव षवकमसत करना

चाहत हो उनह सब परकार की खराब आदतो का तयाग कर दना चाहहए जस कक मरपान करना पान खाना नास स घना िदयपान करना जआ खलना मसनिा दखना अखबार-नोवल पढ़ना फशन करना िास खाना चोरी करना हदन ि सोना गाली बोलना तननदा-आलोचना करना आहद

जो गरभषकतयोग का अभयास करना चाहत ह उनह सब हदवय गणो का षवकास करना चाहहए जस कक सतय बोलना नयायपरायणता अहहसा इचछाशषकत सहहटणता सहानभ तत सवाशरय आतिशरद ा आतिसयि तयाग आतितनरीकषण ततपरता सहनशषकत सिता तनशचय षववक वरागय सनयास हहमित आननदी सवभाव हरएक वसत ि ियायदा रखना आहद

आननद क मलए बाहर कयो वयथय खोज करत हो सदगर क चरणो क सिीप जाओ और शाशवत सख का उपभोग करो

सदगर क चरणो ि शरद ा और भषकतभाव य दो पख ह षजनकी सहायता स मशटय प णयता क मशखर पर पहचन ि शषकतिान बनता ह

अनकरि

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परकररः 10

गरभलकत का सववधान

योगय वयवहार क तनयम

गर क कायय की अषवचारी आलोचना नही करनी चाहहए

गर को अषवचारी सलाह नही दना चाहहए हिशा चप रहो जान अनजान गर की भावना को ठस ित पहचाओ

सदग र क चरणकिल की मल अिरतव परदान करन वाली ह गर क पावनकारी चरणो की पषवतर मल मशटय क मलए सचिच

वरदान सवरप ह

आचायय क पषवतर चरणो की मल ललाि पर लगाना सबस िहान भागय की बात ह

जीवन का सबस िहान और दलयभ सौभागय गर क चरणकिल का सपशय ह

गरकपा और सतरी का िख (काि) व दोनो परसपर षवरद चीज ह अगर आपको एक की आवशयकता हो तो द सरी का तयाग करो

गर क पावन चरणो की पषवतर मल मशटय को ररदध -मसदध हदलाती ह

सदगर क जीवनदायी चरणो की मल प जन योगय ह

मशटय की सबस िहान सपषतत अपन सदगर क चरणकिल की पषवतर मल ह

जो वयषकत अपन गर क चरणकिल की पषवतर मल को अपन ललाि पर लगाता ह उसका हदय शीघर पषवतर बनता ह

गर क चरणकिल की मल की िहहिा अवणयनीय ह

इस पथवी पर हिारा जीवन अनतःकरणप वयक सदगर क परतत हदनोहदन व यिान भषकतभाव स अध क स अध क उनकी सवा करन क मलए उनकी आजञा ि रहन क मलए एक उतति िौका ह

गरभषकतयोग की नीव गर क परतत अखणड शरद ा ि तनहहत ह

मशटय को सिझ ि आता ह कक हहिालय की एकानत गफा ि सिाध लगान की अपकषा गर की तनजी सवा करन स वह उनक जयादा

सयोग ि आ सकता ह गर क साथ अध क एकता सथाषपत कर सकता ह

गर को समप णय बबनशरती आति-सिपयण करन स अच क गरभषकत परापत होती ह

जीवनजजाल स पर

जब आप िषशकमलयो एव िसीबतो ि आ जाय तब गर की कपा क मलए पराथयना कर अपन सचच हदय स बार-बार पराथयना कर सब सरल बन जाएगा

परातःकाल ि जगन क तरनत बाद और राबतर क सिय सोन स पहल गर का धचनतन करो प णयतः उनकी शरण ि जाओ

सोन स पहल हदन क दौरान अगर गर की सवा क बार ि आजञापालन ि तनटठा का अभाव या ऐसी कोई भ ल हई हो तो उसका षवचार करो

अपनी आवशयकताए कि करो पस बचाओ और गर क चरणकिलो ि अपयण करो इसि आपकी गरभषकत की कसौिी ह

बरहितनटठ गर क चरणकिलो क साषननधय ि जान क मलए कला षवजञान या षवदवता कछ भी आवशयक नही ह आवशयक ह कवल उनक परतत उनक परतत परि और भषकत स प णय हदय जो फल की अपकषा स रहहत कवल उनि ही तनरत रहन क सकलपवाला होना चाहहए कवल उनक ही कायय ि लगा हआ कवल उनक ही परि ि िगन रहन वाला होना चाहहए

िानमसक शाषनत और आननद गर को ककय हए आतिसिपयण का फल ह

गर क परतत सचच भषकतभाव की कसौिी आनतररक शाषनत और उनक आदशो का पालन करन की ततपरता ि तनहहत ह

गरसवा क दवारा जञान ि वदध करो और िषकत पाओ

गरकपा स षजनको षववक और वरागय परापत हए ह उनको नयवाद ह व सवोतति शाषनत और सनातन सख का भोग करग

मशटय गर को जब तक योगय गरदकषकषणा नही दगा तब तक गर क हदय हए जञान का फल मिलगा नही

गरभषकतयोग िन का सयि और गर की सवा दवारा उसि होन वाला पररवतयन ह

लशषटयो क परकार

उतति मशटय परोल जसा ह काफी द र होत हए भी गर उपदश की धचगारी को तरत पकड़ लता ह

द सरी ककषा का मशटय कप र जसा ह गर क सपशय स उसकी अनतरातिा जागरत होती ह और वह उसि आधयाषतिकता की अषगन को परजजवमलत करता ह

तीसरी ककषा का मशटय कोयल जसा ह उसकी अनतरातिा को जागरत करन ि गर को बहत तकलीफ उठानी पड़ती ह

चौथी ककषा का मशटय कल क तन जसा ह उसक मलए ककय गय कोई भी परयास काि नही लगत गर ककतना भी कर कफर भी वह ठणडा और तनषटकरय रहता ह

ह मशटय सन त कल क तन जसा ित होना त परोल जसा मशटय बनन का परयास करना अथवा तो कि-स-कि कप र जसा तो अवशय बनना

आप जब अपन गर क पषवतर चरणो की शरण ि जाए तब उनस दनयावी आवशयकताए या और कोई चीज िागना नही ककनत उनकी कपा ही िागना षजसक कारण आपि उनक परतत सचचा भषकतभाव और सथायी शरद ा जग

गर ही िागय ह जीवन ह और आरखरी धयय ह गरकपा क बबना ककसी को भी सवोतति सख परापत नही हो सकता

गर ही िोकषदवार ह गर ही ि ततयिनत कपा ह

जीन क मलए िरो अपन गर क चरणकिलो ि िरो अहभाव का तयाग करक िरो षजसस पनः सचचा हदवय जीवन जी सको षजस जीवन ि गरकपा क पराणो की ड़कन नही ह जो जीवन गरकपा स हदवय सवरप को परापत नही हआ ह वह सचचा जीवन नही ह

गर और मशटय क बीच जो वासतषवक समबन ह उसका वणयन नही हो सकता वह मलखा नही जा सकता वह सिझाया नही जा सकता सतय क सचच खोजी को करणासवरप बरहितनटठ गर क पास शरद ा और भषकतभाव स आना चाहहए उनक साथ धचरकाल तक रहकर सवा करना चाहहए

गरभषकतयोग एक सवततर योग ह

मशटय की कसौिी करन क मलए गर जब षवघन डाल तब यय रखना चाहहए

गर सवा क कायय ि आतिभोग दना यह गर क पषवतर चरणो क परतत भषकतभाव षवकमसत करन का उतति सा न ह

पराथयना जप कीतयन सिाध गरसवा ऊ च भवय षवचार और सिझ ि स िन की शाषनत उतपनन होती ह

गर क आशरय म

गर की सवा क दौरान मशटय को बहत ही तनयमित रहना चाहहए गर क हदवय कायय हत मशटय को िन वचन और किय ि बहत ही

पषवतर रहना चाहहए

आपक हदय रपी उदयान ि तनटठा सादगी शाषनत सहानभ तत आतिसयि और आतितयाग जस पटप सषवकमसत करो और व पटप अपन गर को अघयय क रप ि अपयण करो

बरहितनटठ गर की कपा स परापत न हो सक ऐसा तीनो लोको ि कछ भी नही ह

गरभषकतयोग का अभयास ककय बबना सा क क मलए ईशवर-साकषातकार की ओर ल जान वाल आधयाषतिक िागय ि परषवटि होना सभव नही ह

गरभषकतयोग हदवय सख क दवार खोलन क मलए गरचाबी ह गरभषकतयोग क अभयास स सवोचच शाषनत क राजिागय का परारभ

होता ह

सदगर क पषवतर चरणो ि आतिसिपयण करना ही गरभषकतयोग की नीव ह

अगर आपको सदगर क जीवनदायक चरणो ि दढ़ शरद ा एव भषकतभाव होगा तो आपको गरभषकतयोग क अभयास ि अवशय सफलता मिलगी

कवल िनटय का परिाथय ही योगाभयास क मलए पयायपत नही ह लककन गरकपा अतनवाययतः आवशयक ह

बाघ मसह या हाथी जस जगली परारणयो को पालना बहत ही आसान ह पानी या आग पर चलना बहत आसान ह लककन िनटय ि

अगर गरभषकतयोग क अभयास क मलए तिनना न हो तो गर क चरणकिलो ि आतिसिपयण करना बहत कहठन ह

गरभषकतयोग क अभयास स मशटय को सवोतति शाषनत आननद और अिरता परापत होती ह

जीवन का धयय गरभषकतयोग का अभयास करक सदगर की कलयाणकारी कपा परापत करना ह

गरभषकतयोग क अभयास स जनि-ितय क चककर स िषकत मिलती ह

गरभषकतयोग अिरता सनातन सख िषकत प णयता अख ि आननद एव धचरतन शाषनत दता ह

ससार या सासाररक परककरया क ि ल ि िन ह बन न और िषकत सख और दःख का कारण िन ह इस िन को गरभषकतयोग क अभयास स ही तनयबतरत ककया जा सकता ह

सदगर क हदवय कायय क वासत आतिसिपयण करना अथवा तन िन न अपयण करना चाहहए सदगर की कलयाणकारी कपा परापत करन क मलए उनक पषवतर चरणो का धयान करना चाहहए गर क पषवतर उपदश को सनकर तनटठाप वयक उसक िताबबक चलना चाहहए

उलल स ययपरकाश क अषसततव ि िान या न िान कफर भी स यय तो सदा परकामशत रहता ह उसी परकार अजञानी और चचल िनवाला मशटय िान या न िान कफर भी गर की कलयाणकारी कपा तो चितकारी पररणाि दती ह

अपन गर को ईशवर िानकर उनि षवशवास रखो उनका आशरय लो जञान की दीकषा लो

कवल शद भषकत स ही गर परसनन होत ह गरभषकतयोग क अभयास क िन की शाषनत और षसथरता परापत

होती ह

षजसन सदगर क पषवतर चरणो ि आशरय मलया ह ऐस मशटय क पास स ितय पलायन हो जाती ह

गरभषकतयोग का अभयास सासाररक पदाथो क परतत वरागय और अनासषकत पदा करता ह और अिरता परदान करता ह

सदगर क जीवनपरदायक चरणो की भषकत िहापापी का भी उद ार कर दती ह

षजसन सदगर क पषवतर चरणो ि आशरय मलया ह ऐस पषवतर हदयवाल मशटय क मलए कोई भी वसत अपरापत नही ह

सा तव और सनयास स अनय योगो स एव दान स िगल कायय करन आहद स जो कछ भी परापत होता ह वह सब गरभषकतयोग क अभयास स शीघर परापत होता ह

गरभषकतयोग शद षवजञान ह वह तनमन परकतत को वश ि लान की एव परि आननद परापत करन की रीतत मसखाता ह

गरदव की कलयाणकारी कपा परापत करन क मलए आपक अनतःकरण की गहराई स उनको पराथयना करो ऐसी पराथयना चितकार कर सकती ह

षजस मशटय को गरभषकतयोग का अभयास करना ह उसक मलए कसग एक िहान शतर ह

जो नततक प णयता गर की भषकत आहद क बबना ही गरभषकतयोग का अभयास करता ह उस गरकपा नही मिल सकती

गरभलकत क लाभ

गर ि अषवचल शरद ा मशटय को कसी भी िसीबत स पार होन की ग ढ़ शषकत दती ह

गर ि दढ़ शरद ा सा क को अननत ईशवर क साथ एकरप बनाती ह

षजस मशटय को गर ि शरद ा ह वह दलील नही करता षवचार नही करता तकय नही करता वह तो कवल आजञा ही िानता ह

मशटय जब गर ि शरद ा खो दता ह तब उसका जीवन उजाड़ िरभ मि जसा बन जाता ह साधक जब गर म शरदधा खो बठता ह तब उसक जीवन का वभव नषटट हो जाता ह

जीवन का पानी गर ि दढ़ शरद ा ह

सदव याद रखोः िनटय जब पषवतर गर क शबदो ि शरद ा खो दता ह तब वह सब कछ खो बठता ह अतः गर ि प णय शरद ा रखो

गर क चरणकिलो की पराथयना मशटय क हदय को परफलल बनाती ह उसक िन को शषकत शाषनत एव शदध स भर दती ह

गरदव क पावन चरणो का भावप वयक परकषालन करक उस चरणोदक को अपन मसर पर तछड़को यह िहान शदध करन वाला ह

हदवय गर क पषवतर चरणो की मल बनना यह जीवन का अि लय लाभ ह

आधयाषतिक गर क पषवतर चरणो की पराथयना सबह की चाबी और शाि का ताला ह अथायत सबह होन स पहल एव शाि होन क बाद पराथयना करना चाहहए

सदगर क चरणो क परतत शरद ा एव भषकतभाव रहहत जीवन िरभ मि ि खड़ हए रसहीन वकष जसा ह

गर क पषवतर चरणो की पराथयना मशटय क हदय की गहराई ि स तनकलनी चाहहए

मशटय क शद तनखामलस हदय स तनकली हई आजयवप णय पराथयना बरहितनटठ गर तरनत सनत ह

दःख स िषकत पान क मलए नही अषपत दःख सहन करन की शषकत एव ततततकषा परापत करन क मलए पराथयना करो

सब दोिो स पार होन की शषकत क मलए सदगर क चरणकिलो की पराथयना करो

हर एक अपन ढग स गर की सवा करना चाहता ह लककन गर चाह उस परकार गर की सवा करना कोई नही चाहता

मशटय अपन गर की सवा करना तो चाहता ह पर ककसी परकार का कटि सहना नही चाहता

सचच सख का मल

सचचा सख सदगर की सवा ि तनहहत ह

मशटय गरसवा क दवारा ही दहाधयास स छ िकर ऊ ची ककषा परापत कर सकता ह

अपन गर ि गर की िहहिा ि और गर क नािजप क परभाव ि सचची प णय जीवनत और अषवचल शरद ा रखो

गर की समप णयतः शरणागतत लना गरभषकत की अतनवायय शतय ह

जब तक आपको गर ि अखणड शरद ा न जग तब तक गर की कपा आप उतरगी ऐसी आशा ित करना

जो गर िकतातिा ह उनक कायय अशरद ा स या सनदह स नही दखना चाहहए

ईशवर िनटय एव बरहिाणड क षविय ि सचचा जञान गर स मलया जाता ह

गर सा ना रपी नाव का सकान ह लककन पतवार तो सा क को ही चलानी होगी

गरभषकत तिाि आधयाषतिक परवषततयो का ि ल ह

गर क परतत भषकतभाव ईशवरपराषपत का सरल एव आननददायक िागय ह

गर भषकत िय का सार ह

गर क चरणकिलो क परतत भषकतभाव जीवन को सचिच साथयक बनाता ह

गरभषकत का आहद िधय और अनत ि र एव सखदायक ह

गरपरि एव ससारपरि दोनो एक साथ नही रह सकत

गर की एव लकषिी की एक साथ सवा नही हो सकती

गररोह ईशवररोह क बराबर ह

भलकत का अथक गर पर भषकतभाव होना आधयाषतिक तनिायण कायय की नीव ह भावना की उफान या उततजना गरभषकत नही कहलाती

शरीरपरि यानी गर परि का इनकार मशटय अगर अपन शरीर की अध क दखभाल करता ह तो वह गर की सवा नही कर पाता

सा क क दटि सवभाव का एकिातर उपाय गरसवा ह गर बबलकल हहचककचाहि स रहहत तनःशि एव समप णय

आतिसिपयण क मसवाय और कछ नही चाहत जस परायः आजकल क मशटय करत ह वस आतिसिपयण कवल शबदो की बात ही नही होना चाहहए

गर को षजतनी अध क िातरा ि आतिसिपयण करोग उतनी अध क गरकपा परापत करोग

ककतनी िातरा ि गरकपा उतरगी इसका आ ार ककतनी िातरा ि आतिसिपयण हआ ह इस पर ह

मशटय का कततयवय गर क परतत परि रखन का एव गर की सवा करन का ह

गर की कपा गरभषकतयोग का आरखरी लकषय ह

गरभषकतयोग का अभयास जीवन क परि लकषय क साकषातकार का सचोि िागय परसतत करता ह

जहा गरकपा ह वहा योगय वयवहार ह और जहा योगय वयवहार ह वहा ररदध -मसदध और अिरता ह

िाया रपी नाधगन क दवारा डस हए लोगो क मलए गर का नाि एक शषकतशाली रािबाण औिध ह

पषवतरता भषकतभाव परकाश एव जञान क मलए गर की पराथयना करो

गरसवा की भावना आपकी रग-रग ि नस-नस ि परतयक हडडी ि एव शरीर क तिाि कोिो ि गहरी उतर जानी चाहहए गर सवा की भावना को उगर बनाओ उसका बदला अि लय ह

गरभषकतयोग ही सवयतति योग ह

कछ मशटय गर क िहान मशटय होन का आडमबर करत ह लककन उनको गरवचन ि या कायय ि षवशवास और शरद ा नही होती

जो अदषवतीय ह ऐस सवयशषकतिान गर की समप णय शरण ि जाओ

गरभषकतयोग आपको इसी जनि ि ीर- ीर दढ़ताप वयक तनषशचतताप वयक एव अषवचलताप वयक ईशवर क परतत ल जाता ह

अहभाव क षवनाश स गरभषकतयोग का परारभ होता ह और शाशवत सख की पराषपत ि पररणत होता ह

गरभषकतयोग का अभयास आपको भय अजञान तनराशावादी सवभाव िानमसक अशाषनत रोग तनराशा धचनता आहद स िकत होन ि सहायभ त होता ह

गरभषकतयोग जीवन क अतनटिो का एकिातर उपाय ह

गरभषकतयोग क अभयास स सवयसखिय अषवनाशी आतिा को भीतर ही खोजो

एक अन ा द सर अन का िागयदशयन नही कर सकता एक कदी द सर कदी को नही छड़ा सकता इसी परकार जो खद दतनयादारी क कीचड़ ि फ सा हआ हो वह द सरो को िषकत नही करा सकता इसीमलए गरभषकतयोग क अभयास क मलए गर की अतनवायय आवशयकता ह

गरभषकतयोग को जीवन का एकिातर हत धयय एव वासतषवक रस का षविय बनाओ आप सवोचच सख परापत करोग

गर क परतत भषकतभाव क बबना आधयाषतिकता नही आ सकती

यहद आपको गरभषकतयोग का अभयास करना हो तो कािवासनावाला जीवन जीना छोड़ दो

अगर आपको सचिच ईशवरपराषपत की कािना हो तो दनयावी भोगषवलासो स षविख बनो और गरभषकतयोग का आशरय लो

गरकपा स मशटय क हदय ि षववक वरागय का उदय होता ह

धयान क सिय मशटय को सदगर स पराथयना करना चाहहए कक उनक चरणकिलो की भषकत उततरोततर बढ़ती जाय और वह अषवचल शरद ा परदान कर

जो गर क नाि का जप करता ह उसको कवल िोकष ही नही लककन सासाररक सिदध आरोगयता दीघायय एव हदवय ऐशवयय की पराषपत होती ह

मशटय को अपन गरदव का जनिहदन बड़ी भवयता स िनाना चाहहए

अनकरि

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गर और दीकषा योग का अभयास गर क साषननधय ि करना चाहहए षवशितः

ततरयोग क बार ि यह बात अतयत आवशयक ह सा क कौन सी ककषा का यह तनषशचत करना एव उसक मलए योगय सा ना पसनद करना गर का कायय ह

आजकल सा को ि एक ऐसा खतरनाक एव गलत खयाल परवतयिान ह कक व सा ना क परारभ ि ही उचच परकार का योग सा न क मलए काफी योगयता रखत ह परायः सब सा को का जलदी पतन होता ह इसका यही कारण ह इसी स मसद होता ह कक अभी वह योगसा ना क मलए तयार नही ह सचिच ि योगयतावाला मशटय नमरताप वयक गर क पास आता ह गर को आतिसिपयण करता ह गर की सवा करता ह और गर क साषननधय ि योग सीखता ह

गर और कोई नही ह अषपत सा क की उननतत क मलए षवशव ि अवतररत परातपर जगजजननी हदवय िाता सवय ही ह गर को दव िानो तभी आपको वासतषवक लाभ होगा गर की अथक सवा करो व सवय ही आपर पर दीकषा क सवयशरटठ आशीवायद बरसाएग

गर ितर परदान करत ह यह दीकषा कहलाती ह दीकषा क दवारा आधयाषतिक जञान परापत होता ह पापो का षवनाश होता ह षजस परकार एक जयोतत स द सरी जयोतत परजजवमलत होती ह उसी परकार गर ितर क रप ि अपनी हदवय शषकत मशटय ि सकरमित करत ह मशटय उपवास करता ह बरहिचयय का पालन करता ह और गर स ितर गरहण करता ह

दीकषा स रहसय का पदाय हि जाता ह और मशटय वदशासतरो क ग ढ़ रहसय सिझन ि शषकतिान बन जाता ह सािानयतः य रहसय ग ढ़ भािा ि छप हए होत ह खद ही अभयास करन स व रहसय परकि नही होत खद ही अभयास करन स तो िनटय अध क अजञान ि गकय होता ह कवल गर ही आपको शासतराभयास क मलय योगय दषटि दीकषा क दवारा परदान करत ह गर अपनी आति-साकषातकार की जयोतत का परकाश उन शासतरो क सतय पर डालग और व सतय आपको शीघर ही सिझ ि आ जाएग

जप क ललए मतर

ॐ गरभयो निः

ॐ शरी सदगर परिातिन निः

ॐ शरी गरव निः ॐ शरी सषचचदाननद गरव निः

ॐ शरी गर शरण िि

अनकरि

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मतरदीकषा क ललए तनयम

गर ि समप णय शरद ा तथा षवशवास रखना चाहहए तथा मशटय को प णयरपण उनक परतत आतिसिपयण करना चाहहए

दीकषाकाल ि गर क दवारा हदय गय तिाि तनदशो का प णय रप स पालन करना चाहहए यहद गर न षवशि तनयिो की चचाय न की हो तो तनमनमलरखत सवय सािानय तनयिो का पालन करना चाहहए

ितरजप स कमलयग ि ईशवर-साकषातकार मसद होता ह इस बात पर षवशवास रखना चाहहए

ितरदीकषा की ककरया एक अतयनत पषवतर ककरया ह उस िनोरजन का सा न नही िानना चाहहए अनय की दखादखी दीकषा गरहण करना उधचत नही अपन िन को षसथर और सदढ़ करन क पशचात गर की शरण ि जाना चाहहए

ितर को ही भगवान सिझना चाहहए तथा गर ि ईशवर का परतयकष दशयन करना चाहहए

ितरदीकषा को सासाररक सख-पराषपत का िाधयि नही बनाना चाहहए भगवतपराषपत का िाधयि बनाना चाहहए

ितरदीकषा क अननतर ितरजप को छोड़ दना घोर अपरा ह इसस ितर का घोर अपिान होता तथा सा क को हातन होन की सभावना भी रहती ह

सा क को आसरी परवषततया ndash काि करो लोभ िोह ईटयाय दवि आहद का तयाग करक दवी समपषतत सवा तयाग दान परि कषिा षवनमरता आहद गणो को ारण करन का परयतन करत रहना चाहहए

गहसथ को वयवहार की दषटि स अपना कततयवय आवशयक िानकर प रा करना चाहहए परनत उस गौण कायय सिझना चाहहए सिगर पररवार क जीवन को आधयाषतिक बनान का परयतन करना चाहहए िन वचन तथा किय स सतय अहहसा तथा बरहिचयय का पालन करना चाहहए

परतत सपताह ितरदीकषा गरहण ककय गय हदन एक वकत फलाहार पर रहना चाहहए और विय क अत ि उस हदन उपवास रखना चाहहए

भगवान को तनराकार-तनगयण और साकार-सगण दोनो सवरपो ि दखना चाहहए ईशवर को अनक रपो ि जानकर शरीराि शरीकटण शकरजी गणशजी षवटण भगवान दगाय लकषिी इतयाहद ककसी भी दवी-दवता ि षवभद नही करना चाहहए सभी क इटिदव सवयवयापक सवयजञ सभी दवता क परतत षवरो भाव परकि नही करना चाहहए हा आप अपन इटिदव पर अध क षवशवास रख सकत हो उस अध क परि कर सकत हो परनत उसका परभाव द सर क इटि पर नही पड़ना चाहहए भगवद गीता ि कहा भी हः

यो मा पशयतत सवकतर सवा च मतय पशयतत

तसयाह न पररशयालम स च म न पररशयतत

जो परि समप णय भ तो ि सबक आतिरप िझ वासदव को ही वयापक दखता ह और समप णय भ तो को िझ वासदव क अनतगयत दखता ह उसक मलए ि अदशय नही होता और वह िर मलय अदशय नही होता (6 30)

इस परकार गोसवािी जी न भी मलखा ह ककः लसया राम मय सब जग जानी

करहा परनाम जोरर जग पानी

अपना इटि ितर गपत रखना चाहहए

पतत पतनी यहद एक ही गर की दीकषा ल तो यह अतत उतति ह परनत अतनवायय नही ह

मलरखत ितरजप करना चाहहए तथा उस ककसी पषवतर सथान ि सरकषकषत रखना चाहहए इसस वातावरण शद रहता ह

ितरजप क मलए प जा का एक किरा अथवा कोई सथान अलग रखना सभव हो तो उतति ह उस सथान को अपषवतर नही होन दना चाहहए

परतयक सिय अपन गर तथा इटिदव की उपषसथतत का अनभव करत रहना चाहहए

परतयक दीकषकषत दमपतत को एक पतनीवरत तथा पततवरता िय का पालन करना चाहहए

अपन घर क िामलक क रप ि गर तथा इटिदव को िानकर सवय अपन को उनक परतततनध क रप ि कायय करना चाहहए

ितर की शषकत पर षवशवास रखना चाहहए उसस सार षवघनो का तनवारण हो जाता ह

परततहदन कि स कि 11 िाला का जप करना चाहहए परातः और सनधयाकाल को तनयिानसार जप करना चाहहए

िाला कफरात सिय तजयनी अग ठ क पास की तथा कतनषटठका (छोिी) उगली का उपयोग नही करना चाहहए िाला नामभ क नीच जाकर लिकती हई नही रखनी चाहहए यहद समभव हो तो ककसी वसतर (गौिखी) ि रखकर िाला कफराना चाहहए सिर क िनक को (िखय िनक को) पार करक िाला नही फरना चाहहए िाला फरत सिय सिर तक पहचकर पनः िाला घिाकर ही द सरी िाला का परारमभ करना चाहहए

अनत ि तो ऐसी षसथतत आ जानी चाहहए कक तनरनतर उठत बठत खात-पीत चलत काि करत तथा सोत सिय भी जप चलत रहना चाहहए

आप सभी को गर दव का अनगरह परापत हो यह हाहदयक कािना ह आप सभी ितरजप क दवारा अपना ऐषचछक लकषय परापत करन ि समप णयतः सफल हो ईशवर आपको शाषनत आननद सिदध तथा आधयाषतिक परगतत परदान कर आप सदा उननतत करत रह और इसी जीवन ि भगवतसाकषातकार कर हरर ॐ ततसत

अनकरि

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जप क तनयम

सवामी लशवाननद सरसवती जहा तक समभव हो वहा तक गर दवारा परापत ितर की अथवा

ककसी भी ितर की अथवा परिातिा क ककसी भी एक नाि की 1 स 200 िाला जप करो

रराकष अथवा तलसी की िाला का उपयोग करो

िाला कफरान क मलए दाए हाथ क अग ठ और बबचली (िधयिा) या अनामिका उगली का ही उपयोग करो

िाला नामभ क नीच नही लिकनी चाहहए िालायकत दाया हाथ हदय क पास अथवा नाक क पास रखो

िाला ढक रखो षजसस वह तमह या अनय क दखन ि न आय गौिखी अथवा सवचछ वसतर का उपयोग करो

एक िाला का जप प रा हो कफर िाला को घिा दो सिर क िनक को लाघना नही चाहहए

जहा तक समभव हो वहा तक िानमसक जप करो यहद िन चचल हो जाय तो जप षजतन जलदी हो सक परारमभ कर दो

परातः काल जप क मलए बठन क प वय या तो सनान कर लो अथवा हाथ पर िह ो डालो िधयानह अथवा सनधया काल ि यह कायय जररी नही परनत सभव हो तो हाथ पर अवशय ो लना चाहहए जब कभी सिय मिल जप करत रहो िखयतः परातःकाल िधयानह तथा सनधयाकाल और राबतर ि सोन क पहल जप अवशय करना चाहहए

जप क साथ या तो अपन आराधय दव का धयान करो अथवा तो पराणायाि करो अपन आराधयदव का धचतर अथवा परततिा अपन समिख रखो

जब ति जप कर रह हो उस सिय ितर क अथय पर षवचार करत रहो

ितर क परतयक अकषर का बराबर सचच रप ि उचचारण करो

ितरजप न तो बहत जलदी और न तो बहत ीर करो जब तमहारा िन चचल बन जाय तब अपन जप की गतत बढ़ा दी

जप क सिय िौन ारण करो और उस सिय अपन सासाररक कायो क साथ समबन न रखो

प वय अथवा उततर हदशा की ओर िह रखो जब तक हो सक तब तक परततहदन एक ही सथान पर एक ही सिय जप क मलए आसनसथ होकर बठो िहदर नदी का ककनारा अथवा बरगद पीपल क वकष क नीच की जगह जप करन क मलए योगय सथान ह

भगवान क पास ककसी सासाररक वसत की याचना न करो

जब ति जप कर रह हो उस सिय ऐसा अनभव करो कक भगवान की करणा स तमहारा हदय तनियल होता जा रहा ह और धचतत सदढ़ बन रहा ह

अपन गरितर को सबक सािन परकि न करो

जप क सिय एक ही आसन पर हहल-डल बबना ही षसथर बठन का अभयास करो

जप का तनयमित हहसाब रखो उसकी सखया को करिशः ीर- ीर बढ़ान का परयतन करो

िानमसक जप को सदा जारी रखन का परयतन करो जब ति अपना कायय कर रह हो उस सिय भी िन स जप करत रहो

अनकरि

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मनषटय क चार ववभाग

सा ारण ससारी िनटय द जसा ह वह जब दटि जनो क समपकय ि आता ह तब उलि िागय ि चला जाता ह और कफर कभी वापस नही लौिता उसी द ि अगर थोड़ी सी छाछ डाली जाती ह तो वह द दही बन जाता ह ससारी िनटय को गर दीकषा दत ह अतः जो सवय मसद ह ऐस गर दही जस ह

छाछ डालन क बाद द को कछ सिय तक रख हदया जाता ह इसी परकार दीकषकषत मशटय को एकानत का आशरय लकर दीकषा का ििय सिझना चाहहए तभी द का दही बनगा अथायत मशटय का पररवतयन होगा और वह जञानी बनगा

अब दही सरलता स पानी क साथ मिलजल नही जाएगा अगर दही ि पानी डाला जाएगा तो वह तल ि बठ जाएगा अगर दही को जोर स बबलोया जाएगा तो ही वह पानी क साथ मिधशरत होगा इसी परकार षवववकवाला िनटय जब बरी सगत ि आता ह तब दराचारी लोगो क साथ सरलता क मिलता जलता नही ह लककन सगत अतयत परगाढ़ होगी तो वह भी उलि िागय ि जाएगा जब दही को स योदय स पहल बराहििह तय ि अचछी तरह बबलोया जाएगा तब उसि स िकखन मिलगा इसी परकार षववकी सा क बराहििह तय ि ईशवर का गहन धचनतन करता ह तो उस आतिजञान रपी नवनीत परापत होता ह कफर वह आति-साकषातकारी सा रप बन जाता ह

इस िकखन (नवनीत) को अब पानी ि डाल सकत ह वह पानी ि मिधशरत नही होगा पानी ि ड बगा नही अषपत तरता रहगा आति-साकषातकार मसद ककय हए सा अगर दजयनो क समपकय ि आयग तो भी उलि िागय ि नही जाएग दनयावी बातो स अमलपत रहकर आननद स ससार ि तरत रहग अगर इस नवनीत को षपघलाकर घी बनाया जाय और बाद ि उस पानी ि डाला जाय तो वह सार पानी को अपनी सवास स सवामसत कर दगा इस परकार सा को तनःसवाथय परि की आग स षपघलाया जाय तो वह दवी चतना रप घी बनकर अपन सग स सबको पावन करगा सबकी उननतत करगा उसक समपकय ि आन वालो क जीवन ि अपन जञान िहहिा एव हदवयता का मसचन करगा

अनकरि

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गरकपा दह कवल

सा क क जीवन ि सदगर-कपा का कया िहततव ह इस षविय ि प जयपाद सत शरी आसारािजी बाप अपन सदगरदव की अपार कपा का सिरण करत हए कहत ह-

िन तीन विय की आय स लकर बाईस विय की आय तक अनको सा नाए की दस विय की आय ि अनजान ही ररदध -मसदध यो क अनभव हए भयानक वनो पवयतो गफाओ ि यतर-ततर तपशचयाय करक जो परापत ककया वह सब सदगरदव की कपा स जो मिला उसक आग तचछ ह सदगरदव न अपन घर ि ही घर बता हदया जनिो की सा ना प री हो गई उनक दवारा परापत हए आधयाषतिक खजान क आग बतरलोकी का सामराजय भी तचछ ह

हम न हासकर सीख ह न रोकर सीख ह

जो कछ भी सीख ह सदगर क होकर सीख ह

अनकरि

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प जय सत शरी आशाराि जी बाप की पदयिय सकषकषपत जीवनगाथा

तनवदन

तववजञ महापरषो का सालननरधय बड़ा दलकभ ह सत कबीर जी कहत ह- सख दव दःख को हर कर पाप का अत

कह कबीर व कब मिल परि सनही सत सत मिल यह सब मिि काल जाल जि चोि

सीस निावत ढही पड़ सब पापन की पोि

बरहमजञानी महापरष क आग लजनह अपन शीश को अहकार को झकान का सौभागय लमल जाता ह व धनय हो उठत ह सथल दह धारर कर अवतररत हए ऐस परमासम-परष को भागयशाली ही पहचान पात ह लोग परमासमा को ढाढन जात ह परत परमासमा इन आाखो स कही नजर नही आता कयोकक वह अगमय ह तनराश मनषटय कफर कया कर उस अलख को कस जान कस दख सत कबीर जी न कहा ह-

अलख परि की आरसी सा का ही दह

लखा जो चाह अलख को इनही ि त लख लह ह मानव यदद तझ उस अलख को लखना हो जो जानन स पर ह उस जानना हो जो

दखन स पर ह उस दखना हो तो त ककनही आसमानभव स सतपत सत-महापरष को दख ल कयोकक उनही म वह अपन परक वभव क साथ परकट हआ ह

ऐस महापरष ससाररपी मरसथल म तरतरववध तापो स तपत मानव क ललए ववशाल वटवकष ह शीतल जल क झरन ह उनकी पावन दह को सपशक करक आन वाली हवा भी जीव की जनम-जनमातरो की थकान को उतारकर उसक हदय को आलसमक शीतलता स भर दती ह ऐस महापरष की मदहमा गात-गात तो वद और परार भी थककर कहत ह- नतत नतत हमन बहत वरकन ककया कफर भी बहत कछ बाकी रह जाता ह

ऐस ही एक जीवत महापरष की पदयमय सकषकषपत जीवनगाथा को यहाा लजजञास-हदयो क समकष परसतत ककया गया ह

इस ददवय शीतल अमतमय सररता म नहाय अपन जनम-जनमातरो क पापो को धोय थकान को उतार और अपन परमासम-परालपत क लकषय क पथ पर अगरसर हो

गर बबन भव तनध तरइ न कोई जौ षवरधच सकर सि होई सत तलसीदास

परकाशक एव ववतरकः मदहला उसथान रसट

सत शरी आशाराम जी आशरम साबरमती अहमदाबाद-380005 (गजरात) मिकः हरर ॐ मनयफकचरसक कजा मतराललयो पोटा सादहब (दहमाचल परदश)

शरी आशारामायर गर चरण रज शीि रर हदय रप षवचार शरी आशारािायण कहौ वदात को सार

िय कािाथय िोकष द रोग शोक सहार भज जो भषकत भाव स शीघर हो बड़ा पार

भारत लसध नदी बखानी नवाब लजल म गााव बरारी

रहत एक सठ गर खातन नाम थाउमल लसरमलानी

आजञा म रहती मगीबा पततपरायर नाम मगीबा

चत वद छः1 उननीस चौरानव आसमल अवतररत आागन

(1 दहनदी पचाग अनसार वशाख कषटर पकष की षषटठी) माा मन म उमड़ा सख सागर दवार प आया एक सौदागर

लाया एक अतत सदर झला दख वपता मन हषक स फला

सभी चककत ईशवर की माया उचचत समय पर कस आया

ईशवर की य लीला भारी बालक ह कोई चमसकारी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ सत सवा औ शरतत शरवण िात षपता उपकारी िय परि जनिा कोई पणयो का फल भारी

सरत थी बालक की सलोनी आत ही कर दी अनहोनी समाज म थी मानयता जसी परचललत एक कहावत ऐसी तीन बहन क बाद जो आता पतर वह तरखन कहलाता होता अशभ अमगलकारी दररिता लाता ह भारी

ववपरीत ककत ददया ददखायी घर म जस लकषमी आयी ततरलोकी का आसन डोला कबर न भडार ही खोला

मान परततषटठा और बढायी सबक मन सख शातत छायी हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ

तजोिय बालक बड़ा आनद बड़ा अपार

शील शातत का आति न करन लगा षवसतार एक ददन थाउमल दवार कलगर परशराम पधार

जय ही व बालक को तनहार अनायास ही सहसा पकार

यह नही बालक साधारर दवी लकषर तज ह कारर

नतरो म ह सालववक लकषर इसक कायक बड़ ववलकषर

यह तो महान सत बनगा लोगो का उदधार करगा

सनी गर की भववषटयवारी गदगद हो गय लसरमलानी

माता न भी माथा चमा हर कोई लकर क घमा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ जञानी वरागी प वय का तर घर ि आय

जनि मलया ह योगी न पतर तरा कहलाय पावन तरा कल हआ जननी कोख कताथय

नाि अिर तरा हआ प णय चार परिाथय

सतालीस म दश ववभाजन लसध म छोड़ा भ पश औ धन

भारत अमदावाद म आय मखरनगर म लशकषा पाय

बड़ी ववलकषर समरर शलकत आसमल की आश यलकत

तीवर बदचध एकागर नमरता सवररत कायक औ सहनशीलता

आसमल परसननमख रहत लशकषक हासमखभाई कहत

द द मकखन लमशरी कजा माा न लसखाया रधयान औ पजा

रधयान का सवाद लगा तब ऐस रहन न मछली जल तरबन जस

हए बरहमववदया स यकत व वही ह ववदया या ववमकतय

बहत दर तक पर दबात भर कठ वपत आलशष पात

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ पतर तमहारा जगत ि सदा रहगा नाि

लोगो क तिस सदा प रण होग काि लसर स हटी वपता की छाया तब माया न जाल फलाया

बड़ भाई का हआ कशासन वयथक हए माा क आशवासन

गय लसदधपर साधना करन कषटर क आग बहाय झरन

सवक सखा भाव स रीझ गोववद माधव तब ह रीझ

एक ददना एक माई आयी बोली ह भगवन सखदायी

पड़ पतर दःख मझ झलन खन कस दो बट जल म

बोल आस सख पावग तनदोष छट जकदी आवग

बट घर आय माा भागी आसमल क पाावो लागी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ आसिल का पटि हआ अलौककक परभाव

वाकमसदध की शषकत का हो गया परादभायव

बरस लसदधपर तीन तरबताय लौट अमदावाद म आय

करन लगी लकषमी नतकन ककया भाई का ददल पररवतकन

लसनमा उनह कभी न भाय बलात ल गय रोत आय

लजस माा न था रधयान लसखाया उसको ही अब रोना आया

माा करना चाहती थी शादी आसमल का मन वरागी

कफर भी सबन शलकत लगाई जबरन कर दी उनकी सगाई

शादी को जब हआ उनका मन आसमल कर गय पलायन

करत खोज म तनकल गया दम लमल भरच म अशोक आशरम

कदठनाई स लमला रासता परततषटठा का ददया वासता

घर म लाय आजमाय गर बारात ल पहाच आददपर

वववाह हआ पर मन दढाया भगत न पसनी को समझाया

सासाररक वयौहार तब होगा जब मझ साकषासकार होगा

साथ रह जया आसमा-काया साथ रह वरागी माया

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ अनशवर ह ि जानता सत धचत ह आनद

षसथतत ि जीन लग होव परिानद

मल गरथ अरधययन क हत ससकत भाषा ह एक सत

ससकत की लशकषा पायी गतत और साधना बढायी

एक शलोक हदय म पठा वरागय सोया उठ बठा

आशा छोड़ नराशयवललमबत उसकी लशकषा परक अनलषटठत

लकषमी दवी को समझाया ईशपरालपत रधयय बताया

छोड़ क घर म अब जाऊा गा लकषय परापत कर लौट आऊा गा

कदारनाथ क दशकन पाय गर खोजत पग आग बढाय

आय कषटर लीलासथली म वदावन की कज गललन म

कषटर न मन म ऐसा ढाला व जा पहाच नतनताला

वहाा थ शरोतरतरय बरहमतनलषटठत सवामी लीलाशाह परततलषटठत

भीतर तरल थ बाहर कठोरा तनववकककप जया कागज कोरा

परक सवततर परम उपकारी बरहमलसथत आसमसाकषासकारी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ ईशकपा बबन गर नही गर बबना नही जञान

जञान बबना आतिा नही गावहह वद परान

जानन को साधक की कोदट सततर ददन तक हई कसौटी

कचन को अलगन म तपाया गर न आसमल बलवाया

कहा गहसथ हो कमक करना रधयान भजन घर पर ही करना

आजञा मानी घर पर आय पकष म मोटी कोरल धाय

नमकदा तट पर रधयान लगाय लाल जी महाराज अतत हरषाय

भगवसपरीतत दख मन भाय दतत कटीर म सादर लाय

उमड़ा परभ परम का चसका अनषटठान चालीस ददवस का

मर छः शतर लसथतत पायी बरहमतनषटठता सहज समायी

शभाशभ सम रोना गाना गरीषटम ठड मान औ अपमाना

तपत हो खाना भख अर पयास महल औ कदटया आसतनरास

भलकतयोग जञान अभयासी हए समान मगहर औ कासी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ

भाव ही कारण ईश ह न सवणय काठ पािान

सत धचत आनदरप ह वयापक ह भगवान बरहिशान जनादयन सारद सस गणश

तनराकार साकार ह ह सवयतर भवश

हए आसमल बरहमाभयासी जनम अनको लाग बासी

दर हो गयी आचध वयाचध लसदध हो गयी सहज समाचध

इक रात नदी तक मन आकषाक आयी जोर स आाधी वषाक

बद मकान बरामदा खाली बठ वही समाचध लगा ली

दखा ककसी न सोचा डाक लाय लाठी भाला चाक

दौड़ चीख शोर मच गया टटी समाचध रधयान खखच गया

साधक उठा थ तरबखर कशा राग दवष न ककचचत लशा

सरल लोगो न साध माना हसयारो न काल ही जाना

भरव दख दषटट घबराय पहलवान जया मकल ही पाय

कामीजनो न आलशक माना साधजन कीनह परनामा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ एक दषटि दख सभी चल शात गमभीर सशसतरो की भीड़ को सहज गय व चीर

माता आयी धमक की सवी साथ म पसनी लकषमी दवी

दोनो फट-फट क रोयी रदन दख कररा भी रोयी

सत लाल जी हदय पसीजा हर दशकन आास म भीजा

कहा सभी न आप जाइयो आसमल बोल कक भाइयो

चालीस ददवस हआ न परा अनषटठान ह मरा अधरा

आसमल की तीवर ततततकषा माा-पसनी न की परतीकषा

लजस ददन गााव स हई ववदाई जार-जार रोय लोग लगाई

अमदावाद को हए रवाना लमयाागााव स ककया पयाना

मबई गय गर की चाह लमल वही प लीलाशाह

परम वपता न पतर को दखा सयक न घटजल म पखा

घटक तोड़ जल जल म लमलाया जल परकाश आकाश समाया

तनज सवरप का जञान दढाया ढाई ददवस बरहमानद छाया

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ आसोज सद दो हदवस सवत बीस इककीस िधयाहन ढाई बज मिला ईस स ईस

दह सभी मिथया हई जगत हआ तनससार हआ आतिा स तभी अपना साकषातकार

परम सवततर परष दशाकया जीव गया और लशव को पाया

जान ललया हा शात तनरजन लाग मझ न कोई बधन

यह जगत सारा ह नशवर म ही शाशवत एक अनशवर

नयन ह दो पर दलषटट एक ह लघ गर म वही एक ह

सवकतर एक ककस बतलाय सवकवयापत कहाा आय जाय

अनत शलकतवाला अववनाशी ररदचध लसदचध उसकी दासी

यदद वह सककप चलाय मदाक भी जीववत हो जाय

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ बराहिी षसथतत परापत कर कायय रह न शि िोह कभी न ठग सक इचछा नही लवलश प णय गर ककरपा मिली प णय गर का जञान

आसिल स हो गय साई आशाराि जागरत सवपन सषलपत चत बरहमानद का आनद लत

खात पीत मौन या कहत बरहमानद मसती म रहत

रहो गहसथ गर का आदश गहसथ साध करो उपदश

ककय गर न वार नयार गजरात डीसा गााव पधार

मत गाय ददया जीवन दाना तब स लोगो न पहचाना

दवार प कहत नारायर हरर लन जात कभी मधकरी

तब स व सससग सनात सभी आती शातत पात

जो आया उदधार कर ददया भकत का बड़ा पार कर ददया

ककतन मररासनन लजलाय वयसन मास और मदय छड़ाय

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ एक हदन िन उकता गया ककया डीसा स क च

आयी िौज फकीर की हदया झौपड़ा फ क

व नारशवर धाम पधार जा पहाच नमकदा ककनार

मीलो पीछ छोड़ा मदर गय घोर जगल क अदर

घन वकष तल पसथर पर बठ रधयान तनरजन का धर

रात गयी परभात हो आयी बाल रवव न सरत ददखायी

परातः पकषी कोयल ककता छटा रधयान उठ तब सता

परातववकचध तनवतत हो आय तब आभास कषधा का पाय

सोचा म न कही जाऊा गा यही बठकर अब खाऊा गा

लजसको गरज होगी आयगा सलषटटकताक खद लायगा

जया ही मन ववचार व लाय सया ही दो ककसान वहाा आय

दोनो लसर पर बााध साफा खादय पय ललए दोनो हाथा

बोल जीवन सफल ह आज अघयक सवीकारो महाराज

बोल सत और प जाओ जो ह तमहारा उस खखलाओ

बोल ककसान आपको दखा सवपन म मागक रात को दखा

हमारा न कोई सत ह दजा आओ गााव कर तमहरी पजा

आशाराम जी मन म धार तनराकार आधार हमार

वपया पय थोड़ा फल खाया नदी ककनार जोगी धाया

इक ददन साबरमती तट आय ऋवष भलम क सपदन पाय

बन गया मोकष कटीर वहाा पर तीरथ बना सत को पाकर

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ अिदावाद गजरात ि ह िोिरा गराि

बरहितनटठ शरी सत का यही ह पावन ाि आतिानद ि िसत ह कर वदाती खल

भषकत योग और जञान का सदगर करत िल

साध काओ का अलग आशरि नारी उतथान नारी शषकत जागत सदा षजसका नही बयान

वट वकष पर डाली दलषटट कर दी अपनी कपा की वलषटट

पररिमा इसकी जो करत मनोकामना कारज फलत

गरदर पर ह सब कछ लमलता शरदधा स जीवन ह खखलता

बरहमजञानी की मदहमा भारी शरर पड़ उनकी बललहारी

गस काड ववकराल घटा जब कााप उठा भोपाल नगर तब

जहरी गस की फली हवाएा हजारो न परार गावाए

आशाराम जी क जो साधक बच सभी सदगर थ रकषक

गरमतर जो तनशददन जपत व न अकाल मसय स मरत

कहर सनामी न हो ढाया बाढ अकाल भकमप हो आया

जब भी कोई आपदा आयी गरवर न सवा पहाचायी

आशाओ क राम हमार कहलात ह बाप पयार

बाप ह योगी बरहमवतता कपालभलाषी जन गर नता

अटल जी न जब आशीष पाया परधानमतरी पद शोभाया

ववपतकाल म अजी लगायी सतता परक काल तक पायी

दहनद मलसलम लसकख ईसाई बाप चाह सबकी भलाई

ककतनो को सनमागक ददखाया परभ परम आनद बरसाया

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ गरतनदक क सग स होता सतयानाश

गरतनदा जो कर सन पड़ वो यि की फास

गरआजञा पालन कर अनय भावना तयाग

बरहिजञान का लकषय रह मशटय वही बड़भाग गरितर जपता रह करता जो तनत धयान गरसवा ि लगा रह तनषशचत हो कलयाण

घटना ह गोधरा की नयारी दतनया म चचचकत हई भारी

आशाराम जी का हललकॉपटर चगरा गोधरा की धरती पर

पज चकनाचर हो गय और गगन म दर उड़ गय

हजारो की भीड़ थी आयी कफर भी ककसी को खरोच न आयी

शवत इधन की फटी टकी लगी आग बझ गयी सवय ही

हादसा जब भी ऐसा हआ ह ना कोई जीववत सवसथ बचा ह

बाप तरत पडाल पधार ककया नसय हवषकत हए सार

चमसकार था अजब अनोखा दतनया न घर बठ दखा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ

लोगो न यशगान ककया लख-लख ककया बखान

दस सकड का हादसा चितकार य िहान िहाकाल को काल न शत शत ककया परणाि सवयसिथय ह सदगर सिरथ ह परभनाि

बालक वदध और नर नारी सभी परररा पाय भारी

एक बार जो दशकन पाय शातत का अनभव हो जाय

तनसय ववववध परयोग कराय नादानसधान बताय

नालभ स व ओम कहलाय हदय स व राम कहलाय

सामानय रधयान जो लगाय उनह व गहर म ल जाय

सबको तनभकय योग लसखाय सबका आसमोसथान कराय

लाखो क ह रोग लमटाय शोक करोड़ो क ह छड़ाय

अमतमय परसाद जब दत भकत का रोग शोक हर लत

लजसन नाम का दान ललया ह गर अमत का पान ककया ह

उनका योगकषम व रखत व न तीन तापो स तपत

धमक कामाथक मोकष व पात आपद रोगो स बच जात

सभी लशषटय रकषा ह पात सवकवयापत सदगर बचात

सचमच गर ह दीनदयाल सहज ही कर दत तनहाल

व चाहत सब झोली भर ल तनज आसमा का दशकन कर ल

एक सौ आठ जो पाठ करग उनक सार काज सरग

रह न चचता दःख तनराशा होगी परक सभी अलभलाषा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ वराभयदाता सदगर परि हह भकत कपाल तनशछल परि स जो भज साई कर तनहाल िन ि नाि तरा रह िख प रह सगीत हिको इतना दीषजय रह चरण ि परीत

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शरी गर - िहहिा गर तरबन जञान न उपज गर तरबन लमट न भद

गर तरबन सशय न लमट जय जय जय गरदव

तीरथ का ह एक फल सत लमल फल चार

सदगर लमल अनत फल कहत कबीर ववचार

भव भरमर ससार दःख ता का वार न पार

तनलोभी सदगर तरबना कौन उतार पार

परा सदगर सवता अतर परगट आप

मनसा वाचा कमकरा लमट जनम क ताप

समदलषटट सदगर ककया मटा भरम ववकार

जहा दखो तहा एक ही सादहब का दीदार

आसमभरातत सम रोग नही सदगर वदय सजान

गर आजञा सम पथय नही औषध ववचार रधयान

सदगर पद म समात ह अररहतादद पद सब

तात सदगर चरर को उपासो तलज गवक

तरबना नयन पाव नही तरबना नयन की बात

सव सदगर क चरर सो पाव साकषात

नर - जनि ककसका ह सफल

दःसग म जाता नही सससग करता तनसय ह

दगराथ न पढता कभी सदगरथ पढता तनसय ह

शभ गर बढाता ह सदा अवगर घटान म कशल

मन शदध ह वश इलनियाा नर जनम उसका ह सफल

धन का कमाना जानता धन खचक करना जानता

सजजन तथा दजकन तरत मख दखत पदहचानता

हो परशन कसा ही कदठन झट ही समझ कर दय हल

धमकजञ भी ममकजञ भी न जनम उसका ह सफल

चचता न आग की कर न सोच पीछ की कर

जो परापत हो सो लय कर मन म उस नाही धर

जयो सवचछ दपकर चचतत अपना तनसय सयो रकख ववमल

चढन न उस पर दय मल नर जनम उसका ह सफल

लाया न था कछ साथ म ना साथ कछ ल जायगा

मटठी बाधा आया यहाा खोल यहाा स जायगा

रोता हआ जनमा यहाा हासता हआ जाय तनकाल

रोत हए सब छोड़कर नर जनम उसका ह सफल

बाधव न जात साथ म सब रह यहाा ही जाय ह

नाता तनभाया बहत मघकट माादह पहाचा आय ह

ऐसा समझकर वयवहार उनस धीर जो करता सरल

न परीतत ही ना बर ही नर जनम उसका ह सफल

मम दह ह त मानता तब दह स त अनय ह

ह माल स माललक अलग यह बात सबको मनय ह

जब दह स त लभनन ह कयो कफर बन ह दह-मल

जो आपको जान अमल नर जनम उसका ह सफल

त जागन को सवपन को अर नीदद को ह जानता

य ह अवसथा दह की कयो आसम इनको मानता

ना जनम तरा ना मरर त तो सदा ही ह अटल

जो जानता आसमा अचल नर जनम उसका ह सफल

कारर बना ह जब तलक ना कायक तब तक जायगा

भोला बना ह चचतत तब तक चसय ना छट पायगा

पाता वही सामराजय अकषय चचतत लजसका जाय गल

इस चचतत को दव गला नर जनम उसका ह सफल

ह दःख कवल ि ढ़ता यदद पतर होता दषटट तो वरागय ह लसखलावता

पतरचछ पाता दःख ह ह दःख कवल मढता

सवक न दत दःख ह दत सभी आराम ह

आजञानसारी होय ह करत समय पर काम ह

नतरादद सवक साथ कफर भी मढ सवक चाहता

पाता उसी स दःख ह ह दःख कवल मढता

आसमा कभी मरती नही मरती सदा ही दह ह

ना दह हो सकती अमर इसम नही सदह ह

पर दह भी नाही मर नर मढ आशा राखता

पाता इसी स दःख ह ह दःख कवल मढता

सदगर

छड़वाय कर सब कामना कर दय ह तनषटकामना

सब कामनाओ का बता घर परक करत कामना

लमथया ववषय सख स हटा सख लसध दत ह बता

सख लसध जल स परक अपना आप दत ह जता

इक तचछ वसत छीनकर आपवततयाा सब मटकर

पयाला वपलाकर अमत का मर को बनात ह अमर

सब भाातत स कतकसय कर परततर को तनज ततर कर

अचधपतत स रदहत दत बना भय स छड़ा करत तनडर

सदगर लजस लमल जाया सो ही धनय ह जग मनय ह

सर लसदध उसको पजत ता सम न कोऊ अनय ह

अचधकारी हो गरदव स उपदश जो नर पाय ह

भोला तर ससार स नदह गभक म कफर आय ह

ईशवरकपा स गरकपा स ममक मन पा ललया

जञानालगन म अजञान कड़ा भसम सब ह कर ददया

अब हो गया ह सवसथ समयक लश नही भरात ह

शका हई तनमकल सब अब चचतत मरा शात ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सारखया गर को लसर पर राखखय चललय आजञा माादह

कह कबीर ता दास को तीन लोक डर नादह

गर मानष करर जानत त नर कदहय अध

महा दःखी ससार म आग जम क बध

नाम रतन धन मजझ म खान खली घट माादह

सत-मत (मफत) ही दत हौ गाहक कोई नादह

नाम तरबना बकाम ह छपपन कोदट तरबलास

का इनिासन बदठबो का बकठ तनवास

सलमरन स सख होत ह सलमरन स दःख जाय

कह कबीर सलमरन ककय सााई माादह समाय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पराथयना गरबरकहमा गरववकषटरः गरदवो महशवरः

गरसाककषासपरबरहम तसम शरीगरव नमः

रधयानमल गरोमकतत कः पजामल गरोः पदम

मतरमल गरोवाककय मोकषमल गरोः कपा

अखणडमणडलाकार वयापत यन चराचरम

तसपद दलशकत यन तसम शरीगरव नमः

सवमव माता च वपता सवमव सवमव बनधशच सखा सवमव

सवमव ववदया िववर सवमव सवमव सवा मम दव दव

बरहमानद परमसखद कवल जञानमतता

दवनदवातीत गगनसदश तववमसयाददलकषयम

एक तनसय ववमलमचल सवकधीसाकषकषभत

भावातीत तरतरगररदहत सदगर त नमालम

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गर-वदना

जय सदगर दवन दव वर तनज भकतन रकषर दह धर

पर दःख हर सख शातत कर तनरपाचध तनरामय ददवय पर1

जय काल अबाचधत शाततमय जन पोषक शोषक ताप तरय

भय भजन दत परम अभय मन रजन भाववक भाव वपरय2

ममताददक दोष नशावत ह शम आददक भाव लसखावत ह

जग जीवन पाप तनवारत ह भवसागर पार उतारत ह3

कहा धमक बतावत रधयान कही कहा भलकत लसखावत जञान कही

उपदशत नम अर परम तमही करत परभ योग अर कषम तमही4

मन इलनिय जाही न जान सक नही बदचध लजस पहचान सक

नही शबद जहाा पर जाय सक तरबन सदगर कौन लखाय सक5

नही रधयान न रधयात न रधयय जहाा नही जञात न जञान न जञय जहाा

नही दश न काल न वसत तहाा तरबन सदगर को पहाचाय वहाा6

नही रप न लकषर ही लजसका नही नाम न धाम कही लजसका

नही ससय अससय कहाय सक गरदव ही ताही जनाय सक7

गर कीन कपा भव तरास गयी लमट भख गयी छट पयास गयी

नही काम रहा नही कमक रहा नही मसय रहा नही जनम रहा8

भग राग गया हट दवष गया अघ चरक भय अर परक भया

नही दवत रहा सम एक भया भरम भद लमटा मम तोर गया9

नही म नही त नही अनय रहा गर शाशवत आप अननय रहा

गर सवत त नर धनय यहाा ततनको नही दःख यहाा न वहाा10

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गर मशटय सब ः जीवन का िहानति सब ndash सवािी षववकानद

लशषटय को अपन गर म ववशवास होना चादहए गर क साथ जो सबध ह वह जीवन म महानतम ह जीवन म मर वपरयतम और तनकटतम सबधी मर गर ह उसक बाद मरी माता कफर मर वपता मरा परथम आदर गर क ललए ह यदद मर वपता कह यह करो और मर गर कह इस मत करो तो म वह नही करा गा वपता और माता मझ शरीर दत ह पर गर मझ आसमा म नया जनम दत ह

गर का सपशक आरधयालसमक शलकत का सचरर तमहार हदय म जान फा क दगा तब ववकास आरमभ होगा तम आग और आग बढत जात हो

गर ऐसा मनषटय होना चादहए लजसन जान ललया ह दवी ससय को वासतव म अनभव कर ललया ह मर समान एक वाचाल मखक बात बहत बना सकता ह पर गर नही हो सकता

मन सब धमकगरथ पढ ह व अदभत ह पर जीवत शलकत तमको पसतको म नही लमल सकती वह शलकत जो एक कषर म जीवन को पररवततकत कर द कवल उन जीवत परकाशवान आसमाओ स ही परापत हो सकती ह जो समय-समय पर हमार बीच म परकट होत रहत ह

लशषटय को गर की पजा सवय ईशवर क समान करनी चादहए जब तक मनषटय ईशवर का साकषासकार सवय ही न कर ल वह अचधक स अचधक सजीव ईशवर को मनषटय क रप म ईशवर को जान सकता ह इसक अततररकत वह ईशवर को कस जानगा गर ईशवर ह उसस ततनक भी कम नही म गर को नमसकार करता हा जो दवी आनद की मतत क ह उचचतम जञान क ववगरह ह और महानतम दवी आनद क दाता ह जो शदध परक अदववतीय सनातन सब सख-

दःखो स पर सवकगरातीत और सवोचच ह वासतव म गर ऐस होत ह इसम आशचयक की कोई बात नही कक लशषटय उनह ईशवर समझता ह और उनम ववशवास रखता ह शरदधा रखता ह उनकी आजञा पालता ह और तरबना शका ककय उनक पीछ चलता ह गर और लशषटय क बीच का सबध ऐसा ही ह

(सवामी वववकानद सादहसय खड 3 पषटठः 195-200 स सकललत) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अित-बबद

ककसी भी परकार क फल की आकाकषा न रखत हए सवा करना यह सवोततम साधना ह

गरदव की सवा और गरदव की आजञा का पालन करत वकत आन वाली तमाम आपवततयो को सहन करन की दहममत जो रखता ह वही अपन पराकत सवभाव को जीत सकता ह

कतघन लशषटय इस ववशव म अभागा व दःखी ह उसका भागय दयाजनक कगाल और असयत शोकजनक ह

अपन गरदव म कलमयाा मत खोजो अपनी कलमयाा खोजो और उनक दर करन का परयसन करो व शीघर दर हो जाय इसललए ईशवर स पराथकना करो (सवामी लशवानद सरसवती)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शरद ाप वायः सवय िाय िनोरथ फल परदाः शरद या साधयत सव शरद या तटयत हररः सनक जी कहत ह- नारद शरदधापवकक आचरर म लाय हए सब धमक मनोवातछत फल

दन वाल होत ह शरदधा स सब कछ लसदध होता ह और शरदधा स ही भगवान शरीहरर सतषटट होत ह (नारद परारः 41)

कथा कीतयन जो घर भय सत भय िहिान वा घर परभ वासा कीनहा वो घर ह वकठ सिान

कथा कीतयन जा घर नही सत नही िहिान वा घर डरा जिड़ा दीनहा साझ पड़ शिशान अलख परि की आरसी सा का ही दह

लखा जो चाह अलख को इनही ि त लख लह (सत कबीर) दढ़ शरद ा और अथाह यय वाल क िनोरथ अवशय प णय होत ह ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

तनभयय बनो अपन-आपको पररषसथततयो क गलाि कभी ित सिझो ति सवय अपन भागय क आप

षव ाता हो (प जय सत शरी आशाराि जी बाप )

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 2: प्रस्तावना - HariOmGroup · 2019. 5. 6. · आपका मंत्र हैुः 'आओ, सरल रास्ता ददखाऊाँ, राम क

इस पसतक म सतरी-परष गहसथी-वानपरसथी ववदयाथी एव वदध सभी क ललए अनपम सामगरी ह सामानय दतनक जीवन को ककस परकार जीन स यौवन का ओज बना रहता ह और जीवन ददवय बनता ह उसकी भी रपरखा इसम सलननदहत ह और सबस परमख बात कक योग की गढ परकियाओ स सवय पररचचत होन क कारर पजयशरी की वारी म तज अनभव एव परमार का सामजसय ह जो अचधक परभावोसपादक लसदध होता ह

यौवन सरकषा का मागक आलोककत करन वाली यह छोटी सी पसतक ददवय जीवन की चाबी ह इसस सवय लाभ उठाय एव औरो तक पहाचाकर उनह भी लाभालनवत करन का पणयमय कायक कर

शरी योग वदानत सवा समितत अिदावाद आशरि

वीययवान बनो पालो बरहमचयक ववषय-वासनाएा सयाग ईशवर क भकत बनो जीवन जो पयारा ह

उदठए परभात काल रदहय परसननचचतत तजो शोक चचनताएा जो दःख का वपटारा ह

कीलजए वयायाम तनसय भरात शलकत अनसार नही इन तनयमो प ककसी का इजारा1 ह

दखखय सौ शरद औrsquoकीलजए सकमक वपरय सदा सवसथ रहना ही कततकवय तमहारा ह

लााघ गया पवनसत बरहमचयक स ही लसध मघनाद मार कीततक लखन कमायी ह

लका बीच अगद न जााघ जब रोप दई हटा नही सका लजस कोई बलदायी ह

पाला वरत बरहमचयक राममतत क गामा न भी दश और ववदशो म नामवरी2 पायी ह

भारत क वीरो तम ऐस वीयकवान बनो बरहमचयक मदहमा तो वदन म गायी ह

1- एकाचधकार 2- परलसदचध

ॐॐॐॐॐॐ

बरहिचयय रकषा हत ितर

एक कटोरी दध म तनहारत हए इस मतर का इककीस बार जप कर | तदपशचात उस दध को पी ल बरहमचयक रकषा म सहायता लमलती ह | यह मतर सदव मन म धारर करन योगय ह

ॐ निो भगवत िहाबल पराकरिाय

िनोमभलाषित िनः सतभ कर कर सवाहा |

अनकरि

यौवन सरकषा

परसतावना

वीयकवान बनो

बरहमचयक रकषा हत मतर

परमपजय बाप जी की कपा-परसाद स लाभालनवत हदयो क उदगार

महामसयजय मतर

मगली बाधा तनवारक मतर

1 ववदयाचथकयो माता-वपता-अलभभावको व राषटर क करकधारो क नाम बरहमतनषटठ सत शरी आसारामजी बाप का सदश

2 यौवन-सरकषा

बरहमचयक कया ह

बरहमचयक उसकषटट तप ह

वीयकरकषर ही जीवन ह

आधतनक चचककससको का मत

वीयक कस बनता ह

आकषकक वयलकतसव का कारर

माली की कहानी

सलषटट िम क ललए मथन एक पराकततक वयवसथा

सहजता की आड़ म भरलमत न होव

अपन को तोल

मनोतनगरह की मदहमा

आसमघाती तकक

सतरी परसग ककतनी बार

राजा ययातत का अनभव

राजा मचकनद का परसग

गलत अभयास का दषटपररराम

वीयकरकषर सदव सतसय

अजकन और अगारपरक गधवक

बरहमचयक का तालववक अथक

3 वीयकरकषा क उपाय

सादा रहन-सहन बनाय

उपयकत आहार

लशशनलनिय सनान

उचचत आसन एव वयायाम करो

बरहममहतक म उठो

दवयकसनो स दर रहो

सससग करो

शभ सककप करो

तरतरबनधयकत परारायाम और योगाभयास करो

नीम का पड चला

सतरी-जातत क परतत मातभाव परबल करो

लशवाजी का परसग

अजकन और उवकशी

वीयकसचय क चमसकार

भीषटम वपतामह और वीर अलभमनय

पथवीराज चौहान कयो हारा

सवामी रामतीथक का अनभव

यवा वगक स दो बात

हसतमथन का दषटपररराम

अमररका म ककया गया परयोग

कामशलकत का दमन या ऊरधवकगमन

एक साधक का अनभव

दसर साधक का अनभव

योगी का सककपबल

कया यह चमसकार ह

हसतमथन व सवपनदोष स कस बच

सदव परसनन रहो

वीयक का ऊरधवकगमन कया ह

वीयकरकषा का महववपरक परयोग

दसरा परयोग

वीयकरकषक चरक

गोद का परयोग

बरहमचयक रकषा हत मतर

पादपलशचमोततानासन

पादागषटठानासन

बदचधशलकतवधकक परयोगः

हमार अनभव

महापरष क दशकन का चमसकार

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगक क ललय एक अमकय भट ह

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक नही अवपत एक लशकषा गरनथ ह

बरहमचयक ही जीवन ह

शासतरवचन

भसमासर िोध स बचो

बरहमाचयक-रकषा का मतर

सख-शातत व सवासथय का परसाद बााटन क ललए ही बाप जी का अवतरर हआ ह

हर वयलकत जो तनराश ह उस आसाराम जी की जररत ह

बाप तनसय नवीन तनसय वधकनीय आनदसवरप ह

पणय सचय व ईशवर की कपा का फलः बरहमजञान का ददवय सससग

बाप जी का सालननरधय गगा क पावन परवाह जसा ह

भगवननाम का जाद

पजयशरी क सससग म परधानमतरी शरी अटल तरबहारी वाजपयीजी क उदगार

प बापः राषटरसख क सवधकक

राषटर उनका ऋरी ह

गरीबो व वपछड़ो को ऊपर उठान क कायक चाल रह

सराहनीय परयासो की सफलता क ललए बधाई

आपन ददवय जञान का परकाशपज परसफदटत ककया ह

आप समाज की सवाागीर उननतत कर रह ह

योग व उचच ससकार लशकषा हत भारतवषक आपका चचर-आभारी रहगा

आपन जो कहा ह हम उसका पालन करग

जब गर क साकषात दशकन हो गय ह तो कछ बदलाव जरर आयगा

बापजी सवकतर ससकार धरोहर को पहाचान क ललए अथक तपशचयाक कर रह ह

आपक दशकनमातर स मझ अदभत शलकत लमलती ह

हम सभी का कतकवय होगा कक आपक बताय रासत पर चल

आपका मतर हः आओ सरल रासता ददखाऊा राम को पान क ललए

सतो क मागकदशकन म दश चलगा तो आबाद होगा

ससय का मागक कभी न छट ऐसा आशीवाकद दो

पणयोदय पर सत समागम

बापजी जहाा नही होत वहाा क लोगो क ललए भी बहत कछ करत ह

जीवन की सचची लशकषा तो पजय बापजी ही द सकत ह

आपकी कपा स योग की अरशलकत पदा हो रही ह

धरती तो बाप जस सतो क कारर दटकी ह

म कमनसीब हा जो इतन समय तक गरवारी स वचचत रहा

इतनी मधर वारी इतना अदभत जञान

सससग शरवर स मर हदय की सफाई हो गयी

जञानरपी गगाजी सवय बहकर यहाा आ गयी

बाप जी क सससग स ववशवभर क लोग लाभालनवत

परी डडकशनरी याद कर ववशव ररकॉडक बनाया

मतरदीकषा व यौचगक परयोगो स बदचध का अपरततम ववकास

सससग व मतरदीकषा न कहाा स कहाा पहाचा ददया

5 वषक क बालक न चलायी जोखखम भरी सड़को पर कार

ऐस सतो का लजतना आदर ककया जाय कम ह

मझ तनवयकसनी बना ददया

गरजी की तसवीर न परार बचा ललय

सदगर लशषटय का साथ कभी नही छोड़त

गरकपा स अधापन दर हआ

और डकत घबराकर भाग गय

मतर दवारा मतदह म परार-सचार

सदगरदव की कपा स नतरजयोतत वापस लमली

बड़दादा की लमटटी व जल स जीवनदान

पजय बाप न फ का कपा-परसाद

बटी न मनौती मानी और गरकपा हई

और गरदव की कपा बरसी

गरदव न भजा अकषयपातर

सवपन म ददय हए वरदान स पतरपरालपत

शरी आसारामायर क पाठ स जीवनदान

गरवारी पर ववशवास स अवरीय लाभ

सवफल क दो टकड़ो स दो सतान

साइककल स गरधाम जान पर खराब टााग ठीक हो गयी

अदभत रही मौनमददर की साधना

असारधय रोग स मलकत

कसट का चमसकार

पजयशरी की तसवीर स लमली परररा

नतरतरबद का चमसकार

मतर स लाभ

काम िोध पर ववजय पायी

जला हआ कागज पवक रप म

नदी की धारा मड़ गयी

सदगर-मदहमा

लडी मादटकन क सहाग की रकषा करन अफगातनसतान म परकट लशवजी

सखपवकक परसवकारक मतर

सवाागीर ववकास की कलजयाा

ॐॐॐॐॐॐ

(अनिम)

िहाितयजय ितर

ॐ हौ ज सः ॐ भ भयवः सवः ॐ तरयमबक यजािह सगध पषटिव यनि उवायरकमिव

बन नानितयोियकषकषय िाितात सवः भवः भ ः ॐ सः ज हौ ॐ

भगवान लशव का यह महामसयजय मतर जपन स अकाल मसय तो टलती ही ह आरोगयता की भी परालपत होती ह सनान करत समय शरीर पर लोट स पानी डालत वकत इस मतर का जप करन स सवासथय लाभ होता ह दध म तनहारत हए इस मतर का जप करक दध पी ललया जाय तो यौवन की सरकषा म भी सहायता लमलती ह आजकल की तज रफतार वाली लजदगी क कहाा उपिव दघकटना हो जाय कहना मलशकल ह घर स तनकलत समय एक बार यह मतर जपन वाला उपिवो स सरकषकषत

रहता ह और सरकषकषत लौटता ह (इस मतर क अनषटठान की परक जानकारी क ललए आशरम की आरोगयतनध पसतक पढ

शरीिदभागवत क आठव सक ि तीसर अधयाय क शलोक 1 स 33 तक ि वरणयत गजनर िोकष सतोतर का पाठ करन स तिाि षवघन द र होत ह

िगली बा ा तनवारक ितर

अ रा अ इस मतर को 108 बार जपन स िोध दर होता ह जनमकणडली म मगली दोष होन स लजनक वववाह न हो रह हो व 27 मगलवार इसका 108 बार जप करत हए वरत रख क हनमान जी पर लसदर का चोला चढाय तो मगल बाधा का कषय होता ह

1 षवदयाधथययो िाता-षपता-अमभभावको व राटर क कणय ारो क नाि बरहितनटठ सत शरी आसारािजी बाप का सदश

हमार दश का भववषटय हमारी यवा पीढी पर तनभकर ह ककनत उचचत मागकदशकन क अभाव म वह

आज गमराह हो रही ह |

पाशचासय भोगवादी सभयता क दषटपरभाव स उसक यौवन का हरास होता जा रहा ह | ववदशी चनल

चलचचतर अशलील सादहसय आदद परचार मारधयमो क दवारा यवक-यवततयो को गमराह ककया जा रहा ह

| ववलभनन सामतयको और समाचार-पतरो म भी तथाकचथत पाशचासय मनोववजञान स परभाववत मनोचचककससक और lsquoसकसोलॉलजसटrsquo यवा छातर-छातराओ को चररतर सयम और नततकता स भरषटट करन पर तल हए ह |

तरबरतानी औपतनवलशक ससकतत की दन इस वततकमान लशकषा-परराली म जीवन क नततक मकयो क परतत उदासीनता बरती गई ह | फलतः आज क ववदयाथी का जीवन कौमायकवसथा स ही ववलासी और असयमी हो जाता ह |

पाशचासय आचार-वयवहार क अधानकरर स यवानो म जो फशनपरसती अशदध आहार-ववहार क

सवन की परववतत कसग अभिता चलचचतर-परम आदद बढ रह ह उसस ददनोददन उनका पतन होता जा रहा ह | व तनबकल और कामी बनत जा रह ह | उनकी इस अवदशा को दखकर ऐसा लगता ह कक व बरहमचयक की मदहमा स सवकथा अनलभजञ ह |

लाखो नही करोड़ो-करोड़ो छातर-छातराएा अजञानतावश अपन तन-मन क मल ऊजाक-सरोत का वयथक म अपकषय कर परा जीवन दीनता-हीनता-दबकलता म तबाह कर दत ह और सामालजक अपयश क भय

स मन-ही-मन कषटट झलत रहत ह | इसस उनका शारीररक-मानलसक सवासथय चौपट हो जाता ह

सामानय शारीररक-मानलसक ववकास भी नही हो पाता | ऐस यवान रकताकपता ववसमरर तथा दबकलता स पीडड़त होत ह |

यही वजह ह कक हमार दश म औषधालयो चचककससालयो हजारो परकार की एलोपचथक दवाइयो इनजकशनो आदद की लगातार वदचध होती जा रही ह | असखय डॉकटरो न अपनी-अपनी दकान खोल

रखी ह कफर भी रोग एव रोचगयो की सखया बढती ही जा रही ह |

इसका मल कारर कया ह दवयकसन तथा अनततक अपराकततक एव अमयाकददत मथन दवारा वीयक की कषतत ही इसका मल कारर ह | इसकी कमी स रोगपरततकारक शलकत घटती ह जीवनशलकत का हरास होता ह |

इस दश को यदद जगदगर क पद पर आसीन होना ह ववशव-सभयता एव ववशव-ससकतत का लसरमौर बनना ह उननत सथान कफर स परापत करना ह तो यहाा की सनतानो को चादहए कक व बरहमचयक क महसव को समझ और सतत सावधान रहकर सखती स इसका पालन कर |

बरहमचयक क दवारा ही हमारी यवा पीढी अपन वयलकतसव का सतललत एव शरषटठतर ववकास कर सकती ह | बरहमचयक क पालन स बदचध कशागर बनती ह रोगपरततकारक शलकत बढती ह तथा महान-

स-महान लकषय तनधाकररत करन एव उस समपाददत करन का उससाह उभरता ह सककप म दढता आती ह मनोबल पषटट होता ह |

आरधयालसमक ववकास का मल भी बरहमचयक ही ह | हमारा दश औदयोचगक तकनीकी और आचथकक

कषतर म चाह ककतना भी ववकास कर ल समदचध परापत कर ल कफर भी यदद यवाधन की सरकषा न हो पाई तो यह भौततक ववकास अत म महाववनाश की ओर ही ल जायगा कयोकक सयम सदाचार

आदद क पररपालन स ही कोई भी सामालजक वयवसथा सचार रप स चल सकती ह | भारत का सवाागीर ववकास सचचररतर एव सयमी यवाधन पर ही आधाररत ह |

अतः हमार यवाधन छातर-छातराओ को बरहमचयक म परलशकषकषत करन क ललए उनह यौन-सवासथय

आरोगयशासतर दीघाकय-परालपत क उपाय तथा कामवासना तनयतरतरत करन की ववचध का सपषटट जञान परदान करना हम सबका अतनवायक कततकवय ह | इसकी अवहलना करना हमार दश व समाज क दहत म नही ह | यौवन सरकषा स ही सदढ राषटर का तनमाकर हो सकता ह |

(अनिम)

2 यौवन-सरकषा शरीरिादय खल ियसा नि |

धमक का साधन शरीर ह | शरीर स ही सारी साधनाएा समपनन होती ह | यदद शरीर कमजोर ह तो उसका परभाव मन पर पड़ता ह मन कमजोर पड़ जाता ह |

कोई भी कायक यदद सफलतापवकक करना हो तो तन और मन दोनो सवसथ होन चादहए | इसीललय

कई बढ लोग साधना की दहममत नही जटा पात कयोकक वषतयक भोगो स उनक शरीर का सारा ओज-तज नषटट हो चका होता ह | यदद मन मजबत हो तो भी उनका जजकर शरीर परा साथ नही द पाता | दसरी ओर यवक वगक साधना करन की कषमता होत हए भी ससार की चकाचौध स परभाववत

होकर वषतयक सखो म बह जाता ह | अपनी वीयकशलकत का महसव न समझन क कारर बरी आदतो म पड़कर उस खचक कर दता ह कफर लजनदगी भर पछताता रहता ह |

मर पास कई ऐस यवक आत ह जो भीतर-ही भीतर परशान रहत ह | ककसीको व अपना दःख-ददक सना नही पात कयोकक बरी आदतो म पड़कर उनहोन अपनी वीयकशलकत को खो ददया ह | अब मन

और शरीर कमजोर हो गय गय ससार उनक ललय दःखालय हो गया ईशवरपरालपत उनक ललए असभव हो गई | अब ससार म रोत-रोत जीवन घसीटना ही रहा |

इसीललए हर यग म महापरष लोग बरहमचयक पर जोर दत ह | लजस वयलकत क जीवन म सयम

नही ह वह न तो सवय की ठीक स उननतत कर पाता ह और न ही समाज म कोई महान कायक कर पाता ह | ऐस वयलकतयो स बना हआ समाज और दश भी भौततक उननतत व आरधयालसमक उननतत म वपछड़ जाता ह | उस दश का शीघर पतन हो जाता ह |

(अनिम)

बरहिचयय कया ह

पहल बरहमचयक कया ह- यह समझना चादहए | lsquoयाजञवककय सदहताrsquo म आया ह

कियणा िनसा वाचा सवायसथास सवयदा |

सवयतर िथनतआगो बरहिचय परचकषत ||

lsquoसवक अवसथाओ म मन वचन और कमक तीनो स मथन का सदव सयाग हो उस बरहमचयक कहत ह |rsquo

भगवान वदवयासजी न कहा ह

बरहिचय गपतषनरसयोपसथसय सयिः |

lsquoववषय-इलनियो दवारा परापत होन वाल सख का सयमपवकक सयाग करना बरहमचयक ह |rsquo

भगवान शकर कहत ह

मसद बबनदौ िहादषव कक न मसद यतत भ तल |

lsquoह पावकती तरबनद अथाकत वीयकरकषर लसदध होन क बाद कौन-सी लसदचध ह जो साधक को परापत नही हो सकती rsquo

साधना दवारा जो साधक अपन वीयक को ऊरधवकगामी बनाकर योगमागक म आग बढत ह व कई

परकार की लसदचधयो क माललक बन जात ह | ऊरधवकरता योगी परष क चररो म समसत लसदचधयाा दासी बनकर रहती ह | ऐसा ऊरधवकरता परष परमाननद को जकदी पा सकता ह अथाकत आसम-साकषासकार जकदी कर सकता ह |

दवताओ को दवसव भी इसी बरहमचयक क दवारा परापत हआ ह

बरहिचयण तपसा दवा ितयिपाघनत |

इनरो ह बरहिचयण दवभयः सवराभरत ||

lsquoबरहमचयकरपी तप स दवो न मसय को जीत ललया ह | दवराज इनि न भी बरहमचयक क परताप स ही दवताओ स अचधक सख व उचच पद को परापत ककया ह |rsquo

(अथवकवद 1519)

बरहमचयक बड़ा गर ह | वह ऐसा गर ह लजसस मनषटय को तनसय मदद लमलती ह और जीवन क सब

परकार क खतरो म सहायता लमलती ह |

(अनिम)

बरहिचयय उतकटि तप ह

ऐस तो तपसवी लोग कई परकार क तप करत ह परनत बरहमचयक क बार म भगवान शकर कहत ह

न तपसतप इतयाहबरयहिचय तपोततिि |

ऊधवयरता भवदयसत स दवो न त िानिः ||

lsquoबरहमचयक ही उसकषटट तप ह | इसस बढकर तपशचयाक तीनो लोको म दसरी नही हो सकती | ऊरधवकरता परष इस लोक म मनषटयरप म परसयकष दवता ही ह |rsquo

जन शासतरो म भी इस उसकषटट तप बताया गया ह |

तवस वा उतति बभचरि |

lsquoबरहमचयक सब तपो म उततम तप ह |rsquo

वीययरकषण ही जीवन ह

वीयक इस शरीररपी नगर का एक तरह स राजा ही ह | यह वीयकरपी राजा यदद पषटट ह बलवान ह

तो रोगरपी शतर कभी शरीररपी नगर पर आिमर नही करत | लजसका वीयकरपी राजा तनबकल ह उस

शरीररपी नगर को कई रोगरपी शतर आकर घर लत ह | इसीललए कहा गया ह

िरण बबनदोपातन जीवन बबनद ारणात |

lsquoतरबनदनाश (वीयकनाश) ही मसय ह और तरबनदरकषर ही जीवन ह |rsquo

जन गरथो म अबरहमचयक को पाप बताया गया ह

अबभचररय घोर पिाय दरहहठहठयि |

lsquoअबरहमचयक घोर परमादरप पाप ह |rsquo (दश वकाललक सतर 617)

lsquoअथवदrsquo म इस उसकषटट वरत की सजञा दी गई ह

वरति व व बरहिचययि |

वदयकशासतर म इसको परम बल कहा गया ह

बरहिचय पर बलि | lsquoबरहमचयक परम बल ह |rsquo

वीयकरकषर की मदहमा सभी न गायी ह | योगीराज गोरखनाथ न कहा ह

कत गया क कामिनी झ र | बबनद गया क जोगी ||

lsquoपतत क ववयोग म कालमनी तड़पती ह और वीयकपतन स योगी पशचाताप करता ह |rsquo

भगवान शकर न तो यहाा तक कह ददया कक इस बरहमचयक क परताप स ही मरी ऐसी महान मदहमा हई ह

यसय परसादानिहहिा ििापयतादशो भवत |

(अनिम)

आ तनक धचककतसको का ित

यरोप क परततलषटठत चचककससक भी भारतीय योचगयो क कथन का समथकन करत ह | डॉ तनकोल

कहत ह

ldquoयह एक भषलजक और ददहक तथय ह कक शरीर क सवोततम रकत स सतरी तथा परष दोनो ही जाततयो म परजनन तवव बनत ह | शदध तथा वयवलसथत जीवन म यह तवव पनः अवशोवषत हो जाता ह | यह सकषमतम मलसतषटक सनाय तथा मासपलशय ऊततको (Tissue) का तनमाकर करन क ललय तयार

होकर पनः पररसचारर म जाता ह | मनषटय का यह वीयक वापस ऊपर जाकर शरीर म ववकलसत होन पर उस तनभीक बलवान साहसी तथा वीर बनाता ह | यदद इसका अपवयय ककया गया तो यह उसको सतरर दबकल कशकलवर एव कामोततजनशील बनाता ह तथा उसक शरीर क अगो क कायकवयापार को ववकत एव सनायततर को लशचथल (दबकल) करता ह और उस लमगी (मगी) एव अनय अनक रोगो और

मसय का लशकार बना दता ह | जननलनिय क वयवहार की तनवतत स शारीररक मानलसक तथा अरधयालसमक बल म असाधारर वदचध होती ह |rdquo

परम धीर तथा अरधयवसायी वजञातनक अनसधानो स पता चला ह कक जब कभी भी रतःसराव को सरकषकषत रखा जाता तथा इस परकार शरीर म उसका पनवकशोषर ककया जाता ह तो वह रकत को समदध तथा मलसतषटक को बलवान बनाता ह |

डॉ डडओ लई कहत ह ldquoशारीररक बल मानलसक ओज तथा बौदचधक कशागरता क ललय इस तवव

का सरकषर परम आवशयक ह |rdquo

एक अनय लखक डॉ ई पी लमलर ललखत ह ldquoशिसराव का सवलचछक अथवा अनलचछक अपवयय

जीवनशलकत का परसयकष अपवयय ह | यह परायः सभी सवीकार करत ह कक रकत क सवोततम तवव

शिसराव की सरचना म परवश कर जात ह | यदद यह तनषटकषक ठीक ह तो इसका अथक यह हआ कक

वयलकत क ककयार क ललय जीवन म बरहमचयक परम आवशयक ह |rdquo

पलशचम क परखयात चचककससक कहत ह कक वीयककषय स ववशषकर तररावसथा म वीयककषय स ववववध परकार क रोग उसपनन होत ह | व ह शरीर म वरर चहर पर माहास अथवा ववसफोट नतरो क चतददकक नीली रखाय दाढी का अभाव धास हए नतर रकतकषीरता स पीला चहरा समततनाश दलषटट की कषीरता मतर क साथ वीयकसखलन अणडकोश की वदचध अणडकोशो म पीड़ा दबकलता तनिालता आलसय उदासी हदय-कमप शवासावरोध या कषटटशवास यकषमा पषटठशल कदटवात शोरोवदना सचध-पीड़ा दबकल वकक तनिा म मतर तनकल जाना मानलसक अलसथरता ववचारशलकत का अभाव दःसवपन

सवपन दोष तथा मानलसक अशातत |

उपरोकत रोग को लमटान का एकमातर ईलाज बरहमचयक ह | दवाइयो स या अनय उपचारो स य रोग सथायी रप स ठीक नही होत |

(अनिम)

वीयय कस बनता ह

वीयक शरीर की बहत मकयवान धात ह | भोजन स वीयक बनन की परकिया बड़ी लमबी ह | शरी सशरताचायक न ललखा ह

रसारकत ततो िास िासानिदः परजायत |

िदसयाषसथः ततो िजजा िजजाया शकरसभवः ||

जो भोजन पचता ह उसका पहल रस बनता ह | पााच ददन तक उसका पाचन होकर रकत बनता ह | पााच ददन बाद रकत म स मास उसम स 5-5 ददन क अतर स मद मद स हडडी हडडी स मजजा और मजजा स अत म वीयक बनता ह | सतरी म जो यह धात बनती ह उस lsquoरजrsquo कहत ह |

वीयक ककस परकार छः-सात मलजलो स गजरकर अपना यह अततम रप धारर करता ह यह सशरत क इस कथन स जञात हो जाता ह | कहत ह कक इस परकार वीयक बनन म करीब 30 ददन व 4 घणट लग जात ह | वजञतनक लोग कहत ह कक 32 ककलोगराम भोजन स 700 गराम रकत बनता ह और 700

गराम रकत स लगभग 20 गराम वीयक बनता ह |

(अनिम)

आकियक वयषकततव का कारण

इस वीयक क सयम स शरीर म एक अदभत आकषकक शलकत उसपनन होती ह लजस पराचीन वदय धनवतरर न lsquoओजrsquo नाम ददया ह | यही ओज मनषटय को अपन परम-लाभ lsquoआसमदशकनrsquo करान म सहायक बनता ह | आप जहाा-जहाा भी ककसी वयलकत क जीवन म कछ ववशषता चहर पर तज वारी म बल कायक म उससाह पायग वहाा समझो इस वीयक रकषर का ही चमसकार ह |

यदद एक साधारर सवसथ मनषटय एक ददन म 700 गराम भोजन क दहसाब स चालीस ददन म 32

ककलो भोजन कर तो समझो उसकी 40 ददन की कमाई लगभग 20 गराम वीयक होगी | 30 ददन अथाकत

महीन की करीब 15 गराम हई और 15 गराम या इसस कछ अचधक वीयक एक बार क मथन म परष

दवारा खचक होता ह |

िाली की कहानी

एक था माली | उसन अपना तन मन धन लगाकर कई ददनो तक पररशरम करक एक सनदर बगीचा तयार ककया | उस बगीच म भाातत-भाातत क मधर सगध यकत पषटप खखल | उन पषटपो को चनकर

उसन इकठठा ककया और उनका बदढया इतर तयार ककया | कफर उसन कया ककया समझ आप hellip उस

इतर को एक गदी नाली ( मोरी ) म बहा ददया |

अर इतन ददनो क पररशरम स तयार ककय गय इतर को लजसकी सगनध स सारा घर महकन वाला था उस नाली म बहा ददया आप कहग कक lsquoवह माली बड़ा मखक था पागल था helliprsquo मगर अपन आपम ही झााककर दख | वह माली कही और ढाढन की जररत नही ह | हमम स कई लोग ऐस ही माली ह |

वीयक बचपन स लकर आज तक यानी 15-20 वषो म तयार होकर ओजरप म शरीर म ववदयमान

रहकर तज बल और सफततक दता रहा | अभी भी जो करीब 30 ददन क पररशरम की कमाई थी उस या ही सामानय आवग म आकर अवववकपवकक खचक कर दना कहाा की बदचधमानी ह

कया यह उस माली जसा ही कमक नही ह वह माली तो दो-चार बार यह भल करन क बाद ककसी क समझान पर साभल भी गया होगा कफर वही-की-वही भल नही दोहराई होगी परनत आज तो कई लोग वही भल दोहरात रहत ह | अत म पशचाताप ही हाथ लगता ह |

कषखरक सख क ललय वयलकत कामानध होकर बड़ उससाह स इस मथनरपी कसय म पड़ता ह परनत कसय परा होत ही वह मद जसा हो जाता ह | होगा ही | उस पता ही नही कक सख तो नही लमला कवल सखाभास हआ परनत उसम उसन 30-40 ददन की अपनी कमाई खो दी |

यवावसथा आन तक वीयकसचय होता ह वह शरीर म ओज क रप म लसथत रहता ह | वह तो वीयककषय स नषटट होता ही ह अतत मथन स तो हडडडयो म स भी कछ सफद अश तनकलन लगता ह

लजसस असयचधक कमजोर होकर लोग नपसक भी बन जात ह | कफर व ककसी क सममख आाख

उठाकर भी नही दख पात | उनका जीवन नारकीय बन जाता ह |

वीयकरकषर का इतना महसव होन क कारर ही कब मथन करना ककसस मथन करना जीवन म ककतनी बार करना आदद तनदशन हमार ॠवष-मतनयो न शासतरो म द रख ह |

(अनिम)

सषटि करि क मलए िथन एक पराकततक वयवसथा

शरीर स वीयक-वयय यह कोई कषखरक सख क ललय परकतत की वयवसथा नही ह | सनतानोसपवतत क ललय इसका वासतववक उपयोग ह | यह परकतत की वयवसथा ह |

यह सलषटट चलती रह इसक ललए सनतानोसपवतत होना जररी ह | परकतत म हर परकार की वनसपतत व परारीवगक म यह काम-परववतत सवभावतः पाई जाती ह | इस काम- परववतत क वशीभत होकर हर परारी मथन करता ह और उसका रततसख भी उस लमलता ह | ककनत इस पराकततक वयवसथा को ही बार-बार कषखरक सख का आधार बना लना कहाा की बदचधमानी ह पश भी अपनी ॠत क अनसार ही इस

कामवतत म परवत होत ह और सवसथ रहत ह तो कया मनषटय पश वगक स भी गया बीता ह पशओ म तो बदचधतसव ववकलसत नही होता परनत मनषटय म तो उसका परक ववकास होता ह |

आहारतनराभयिथन च सािानयिततपशमभनयराणाि |

भोजन करना भयभीत होना मथन करना और सो जाना यह तो पश भी करत ह | पश शरीर म रहकर हम यह सब करत आए ह | अब यह मनषटय शरीर लमला ह | अब भी यदद बदचध और

वववकपरक अपन जीवन को नही चलाया और कषखरक सखो क पीछ ही दौड़त रह तो कस अपन मल

लकषय पर पहाच पायग

(अनिम)

सहजता की आड़ ि भरमित न होव कई लोग तकक दन लग जात ह ldquoशासतरो म पढन को लमलता ह और जञानी महापरषो क

मखारववनद स भी सनन म आता ह कक सहज जीवन जीना चादहए | काम करन की इचछा हई तो काम ककया भख लगी तो भोजन ककया नीद आई तो सो गय | जीवन म कोई lsquoटनशनrsquo कोई तनाव

नही होना चादहए | आजकल क तमाम रोग इसी तनाव क ही फल ह hellip ऐसा मनोवजञातनक कहत ह | अतः जीवन सहज और सरल होना चादहए | कबीरदास जी न भी कहा ह सा ो सहज सिाध भली |rdquo

ऐसा तकक दकर भी कई लोग अपन काम-ववकार की तलपत को सहमतत द दत ह | परनत यह अपन आपको धोखा दन जसा ह | ऐस लोगो को खबर ही नही ह कक ऐसा सहज जीवन तो महापरषो का होता ह लजनक मन और बदचध अपन अचधकार म होत ह लजनको अब ससार म अपन ललय पान को कछ भी शष नही बचा ह लजनह मान-अपमान की चचनता नही होती ह | व उस आसमतवव म लसथत हो जात ह जहाा न पतन ह न उसथान | उनको सदव लमलत रहन वाल आननद म अब ससार क ववषय न तो वदचध कर सकत ह न अभाव | ववषय-भोग उन महान परषो को आकवषकत करक अब बहका या भटका नही सकत | इसललए अब उनक सममख भल ही ववषय-सामचगरयो का ढर लग जाय ककनत उनकी चतना इतनी जागत होती ह कक व चाह तो उनका उपयोग कर और चाह तो ठकरा द |

बाहरी ववषयो की बात छोड़ो अपन शरीर स भी उनका ममसव टट चका होता ह | शरीर रह अथवा न रह- इसम भी उनका आगरह नही रहता | ऐस आननदसवरप म व अपन-आपको हर समय अनभव

करत रहत ह | ऐसी अवसथावालो क ललय कबीर जी न कहा ह

सा ो सहज सिाध भली |

(अनिम)

अपन को तोल हम यदद ऐसी अवसथा म ह तब तो ठीक ह | अनयथा रधयान रह ऐस तकक की आड़ म हम अपन को धोखा दकर अपना ही पतन कर डालग | जरा अपनी अवसथा की तलना उनकी अवसथा स कर | हम तो कोई हमारा अपमान कर द तो िोचधत हो उठत ह बदला तक लन को तयार हो जात ह | हम

लाभ-हातन म सम नही रहत ह | राग-दवष हमारा जीवन ह | lsquoमरा-तराrsquo भी वसा ही बना हआ ह | lsquoमरा धन hellip मरा मकान hellip मरी पसनी hellip मरा पसा hellip मरा लमतर hellip मरा बटा hellip मरी इजजत hellip मरा पद helliprsquo

य सब ससय भासत ह कक नही यही तो दहभाव ह जीवभाव ह | हम इसस ऊपर उठ कर वयवहार कर सकत ह कया यह जरा सोच |

कई साध लोग भी इस दहभाव स छटकारा नही पा सक सामानय जन की तो बात ही कया कई

साध भी lsquoम लसतरयो की तरफ दखता ही नही हा hellip म पस को छता ही नही हा helliprsquo इस परकार की अपनी-अपनी मन और बदचध की पकड़ो म उलझ हए ह | व भी अपना जीवन अभी सहज नही कर पाए ह और हम hellip

हम अपन साधारर जीवन को ही सहज जीवन का नाम दकर ववषयो म पड़ रहना चाहत ह | कही लमठाई दखी तो माह म पानी भर आया | अपन सबधी और ररशतदारो को कोई दःख हआ तो भीतर स हम भी दःखी होन लग गय | वयापार म घाटा हआ तो माह छोटा हो गया | कही अपन घर स जयादा ददन दर रह तो बार-बार अपन घरवालो की पसनी और पतरो की याद सतान लगी | य कोई सहज जीवन क लकषर ह लजसकी ओर जञानी महापरषो का सकत ह नही |

(अनिम)

िनोतनगरह की िहहिा आज कल क नौजवानो क साथ बड़ा अनयाय हो रहा ह | उन पर चारो ओर स ववकारो को भड़कान वाल आिमर होत रहत ह |

एक तो वस ही अपनी पाशवी ववततयाा यौन उचछखलता की ओर परोससादहत करती ह और दसर

सामालजक पररलसथततयाा भी उसी ओर आकषकर बढाती ह hellip इस पर उन परववततयो को वौजञातनक

समथकन लमलन लग और सयम को हातनकारक बताया जान लग hellip कछ तथाकचथत आचायक भी फरायड जस नालसतक एव अधर मनोवजञातनक क वयलभचारशासतर को आधार बनाकर lsquoसभोग स सिाध rsquo का उपदश दन लग तब तो ईशवर ही बरहमचयक और दामपसय जीवन की पववतरता का रकषक ह |

16 लसतमबर 1977 क lsquoनययॉकक टाइमस म छपा था

ldquoअमररकन पनल कहती ह कक अमररका म दो करोड़ स अचधक लोगो को मानलसक चचककससा की आवशयकता ह |rdquo

उपरोकत परररामो को दखत हए अमररका क एक महान लखक समपादक और लशकषा ववशारद शरी मादटकन गरोस अपनी पसतक lsquoThe Psychological Societyrsquo म ललखत ह ldquoहम लजतना समझत ह उसस कही जयादा फरायड क मानलसक रोगो न हमार मानस और समाज म गहरा परवश पा ललया ह |

यदद हम इतना जान ल कक उसकी बात परायः उसक ववकत मानस क ही परतततरबमब ह और उसकी मानलसक ववकततयो वाल वयलकतसव को पहचान ल तो उसक ववकत परभाव स बचन म सहायता लमल

सकती ह | अब हम डॉ फरायड की छाया म तरबककल नही रहना चादहए |rdquo

आधतनक मनोववजञान का मानलसक ववशलषर मनोरोग शासतर और मानलसक रोग की चचककससा hellip

य फरायड क रगर मन क परतततरबमब ह | फरायड सवय सफदटक कोलोन परायः सदा रहन वाला मानलसक

अवसाद सनायववक रोग सजातीय समबनध ववकत सवभाव माईगरन कबज परवास मसय और धननाश भय साईनोसाइदटस घरा और खनी ववचारो क दौर आदद रोगो स पीडडत था |

परोफसर एडलर और परोफसर सी जी जग जस मधकनय मनोवजञातनको न फरायड क

लसदधातो का खडन कर ददया ह कफर भी यह खद की बात ह कक भारत म अभी भी कई मानलसक

रोग ववशषजञ और सकसोलॉलजसट फरायड जस पागल वयलकत क लसदधातो को आधार लकर इस दश क जवानो को अनततक और अपराकततक मथन (Sex) का सभोग का उपदश वततकमान पतरो और

सामयोको क दवारा दत रहत ह | फरायड न तो मसय क पहल अपन पागलपन को सवीकार ककया था लककन उसक लककन उसक सवय सवीकार न भी कर तो भी अनयायी तो पागल क ही मान जायग |

अब व इस दश क लोगो को चररतरभरषटट करन का और गमराह करन का पागलपन छोड़ द ऐसी हमारी नमर पराथकना ह | यह lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक पााच बार पढ और पढाएा- इसी म सभी का ककयार तनदहत ह |

आाकड़ बतात ह कक आज पाशचासय दशो म यौन सदाचार की ककतनी दगकतत हई ह इस दगकतत

क परररामसवरप वहाा क तनवालसयो क वयलकतगत जीवन म रोग इतन बढ गय ह कक भारत स 10

गनी जयादा दवाइयाा अमररका म खचक होती ह जबकक भारत की आबादी अमररका स तीन गनी जयादा ह | मानलसक रोग इतन बढ ह कक हर दस अमररकन म स एक को मानलसक रोग होता ह | दवाकसनाएा इतनी बढी ह कक हर छः सकणड म एक बलासकार होता ह और हर वषक लगभग 20 लाख कनयाएा वववाह क पवक ही गभकवती हो जाती ह | मकत साहचयक (free sex) का दहमायती होन क कारर शादी क पहल वहाा का परायः हर वयलकत जातीय सबध बनान लगता ह | इसी वजह स लगभग 65 शाददयाा तलाक म बदल जाती ह | मनषटय क ललय परकतत दवारा तनधाकररत ककय गय सयम का उपहास करन क कारर परकतत न उन लोगो को जातीय रोगो का लशकार बना रखा ह | उनम मखयतः एडस (AIDS) की बीमारी ददन दनी रात चौगनी फलती जा रही ह | वहाा क पाररवाररक व सामालजक जीवन म िोध

कलह असतोष सताप उचछखलता उदयडता और शतरता का महा भयानक वातावरर छा गया ह |

ववशव की लगभग 4 जनसखया अमररका म ह | उसक उपभोग क ललय ववशव की लगभग 40

साधन-सामगरी (जस कक कार टी वी वातानकललत मकान आदद) मौजद ह कफर भी वहाा अपराधवतत

इतनी बढी ह की हर 10 सकणड म एक सधमारी होती ह हर लाख वयलकतयो म स 425 वयलकत

कारागार म सजा भोग रह ह जबकक भारत म हर लाख वयलकत म स कवल 23 वयलकत ही जल की सजा काट रह ह |

कामकता क समथकक फरायड जस दाशकतनको की ही यह दन ह कक लजनहोन पशचासय दशो को मनोववजञान क नाम पर बहत परभाववत ककया ह और वही स यह आाधी अब इस दश म भी फलती जा रही ह | अतः इस दश की भी अमररका जसी अवदशा हो उसक पहल हम सावधान रहना पड़गा | यहाा क कछ अववचारी दाशकतनक भी फरायड क मनोववजञान क आधार पर यवानो को बलगाम सभोग की तरफ उससादहत कर रह ह लजसस हमारी यवापीढी गमराह हो रही ह | फरायड न तो कवल मनोवजञातनक

मानयताओ क आधार पर वयलभचार शासतर बनाया लककन तथाकचथत दाशकतनक न तो lsquoसभोग स सिाध rsquo की पररककपना दवारा वयलभचार को आरधयालसमक जामा पहनाकर धालमकक लोगो को भी भरषटट ककया ह | सभोग स सिाध नही होती सतयानाश होता ह | lsquoसयम स ही समाचध होती ह helliprsquo इस भारतीय मनोववजञान को अब पाशचासय मनोववजञानी भी ससय मानन लग ह |

जब पलशचम क दशो म जञान-ववजञान का ववकास परारमभ भी नही हआ था और मानव न ससकतत क कषतर म परवश भी नही ककया था उस समय भारतवषक क दाशकतनक और योगी मानव मनोववजञान क ववलभनन पहलओ और समसयाओ पर गमभीरता पवकक ववचार कर रह थ | कफर भी पाशचासय ववजञान की छतरछाया म पल हए और उसक परकाश स चकाचौध वततकमान भारत क मनोवजञातनक भारतीय

मनोववजञान का अलसतवव तक मानन को तयार नही ह | यह खद की बात ह | भारतीय मनोवजञातनको न चतना क चार सतर मान ह जागरत सवपन सषलपत और तरीय | पाशचासय मनोवजञातनक परथम तीन सतर को ही जानत ह | पाशचासय मनोववजञान नालसतक ह | भारतीय मनोववजञान ही आसमववकास

और चररतर तनमाकर म सबस अचधक उपयोगी लसदध हआ ह कयोकक यह धमक स असयचधक परभाववत ह | भारतीय मनोववजञान आसमजञान और आसम सधार म सबस अचधक सहायक लसदध होता ह | इसम बरी आदतो को छोड़न और अचछी आदतो को अपनान तथा मन की परकियाओ को समझन तथा उसका तनयतरर करन क महसवपरक उपाय बताय गय ह | इसकी सहायता स मनषटय सखी सवसथ और

सममातनत जीवन जी सकता ह |

पलशचम की मनोवजञातनक मानयताओ क आधार पर ववशवशातत का भवन खड़ा करना बाल की नीव पर भवन-तनमाकर करन क समान ह | पाशचासय मनोववजञान का पररराम वपछल दो ववशवयदधो क रप म ददखलायी पड़ता ह | यह दोष आज पलशचम क मनोवजञातनको की समझ म आ रहा ह | जबकक

भारतीय मनोववजञान मनषटय का दवी रपानतरर करक उसक ववकास को आग बढाना चाहता ह | उसक

lsquoअनकता म एकताrsquo क लसदधात पर ही ससार क ववलभनन राषटरो सामालजक वगो धमो और परजाततयो

म सदहषटरता ही नही सकिय सहयोग उसपनन ककया जा सकता ह | भारतीय मनोववजञान म शरीर और

मन पर भोजन का कया परभाव पड़ता ह इस ववषय स लकर शरीर म ववलभनन चिो की लसथतत

कणडललनी की लसथतत वीयक को ऊरधवकगामी बनान की परकिया आदद ववषयो पर ववसतारपवकक चचाक की गई ह | पाशचासय मनोववजञान मानव-वयवहार का ववजञान ह | भारतीय मनोववजञान मानस ववजञान क साथ-साथ आसमववजञान ह | भारतीय मनोववजञान इलनियतनयतरर पर ववशष बल दता ह जबकक पाशचासय मनोववजञान कवल मानलसक कियाओ या मलसतषटक-सगठन पर बल दता ह | उसम मन दवारा मानलसक जगत का ही अरधययन ककया जाता ह | उसम भी परायड का मनोववजञान तो एक रगर मन क दवारा अनय रगर मनो का ही अरधययन ह जबकक भारतीय मनोववजञान म इलनिय-तनरोध स मनोतनरोध और मनोतनरोध स आसमलसदचध का ही लकषय मानकर अरधययन ककया जाता ह | पाशचासय मनोववजञान म मानलसक तनावो स मलकत का कोई समचचत साधन पररलकषकषत नही होता जो उसक वयलकतसव म तनदहत तनषधासमक पररवशो क ललए सथायी तनदान परसतत कर सक | इसललए परायड क लाखो बदचधमान अनयायी भी पागल हो गय | सभोग क मागक पर चलकर कोई भी वयलकत योगलसदध महापरष नही हआ | उस मागक पर चलनवाल पागल हए ह |

ऐस कई नमन हमन दख ह | इसक ववपरीत भारतीय मनोववजञान म मानलसक तनावो स मलकत क ववलभनन उपाय बताय गय ह यथा योगमागक साधन-चतषटटय शभ-ससकार सससगतत अभयास

वरागय जञान भलकत तनषटकाम कमक आदद | इन साधनो क तनयलमत अभयास स सगदठत एव समायोलजत वयलकतसव का तनमाकर सभव ह | इसललय भारतीय मनोववजञान क अनयायी पाखरतन और महाकवव काललदास जस परारमभ म अकपबदचध होन पर भी महान ववदवान हो गय | भारतीय मनोववजञान न इस ववशव को हजारो महान भकत समथक योगी तथा बरहमजञानी महापरष ददय ह |

अतः पाशचासय मनोववजञान को छोड़कर भारतीय मनोववजञान का आशरय लन म ही वयलकत कटमब समाज राषटर और ववशव का ककयार तनदहत ह |

भारतीय मनोववजञान पतजलल क लसदधातो पर चलनवाल हजारो योगालसदध महापरष इस दश म हए ह अभी भी ह और आग भी होत रहग जबकक सभोग क मागक पर चलकर कोई योगलसदध महापरष हआ हो ऐसा हमन तो नही सना बलकक दबकल हए रोगी हए एड़स क लशकार हए अकाल मसय क लशकार हए खखनन मानस हए अशात हए | उस मागक पर चलनवाल पागल हए ह ऐस कई नमन हमन दख ह |

फरायड न अपनी मनःलसथतत की तराज पर सारी दतनया क लोगो को तौलन की गलती की ह | उसका अपना जीवन-िम कछ बतक ढग स ववकलसत हआ ह | उसकी माता अमललया बड़ी खबसरत थी | उसन योकोव नामक एक अनय परष क साथ अपना दसरा वववाह ककया था | जब फरायड जनमा तब वह २१ वषक की थी | बचच को वह बहत पयार करती थी |

य घटनाएा फरायड न सवय ललखी ह | इन घटनाओ क अधार पर फरायड कहता ह ldquoपरष बचपन स ही ईडडपस कॉमपलकस (Oedipus Complex) अथाकत अवचतन मन म अपनी माा क परतत यौन-आकाकषा स आकवषकत होता ह तथा अपन वपता क परतत यौन-ईषटयाक स गरलसत रहता ह | ऐस ही लड़की अपन बाप क परतत आकवषकत होती ह तथा अपनी माा स ईषटयाक करती ह | इस इलकरा कोऊमपलकस (Electra Complex) कहत ह | तीन वषक की आय स ही बचचा अपनी माा क साथ यौन-समबनध सथावपत करन क ललय लालातयत रहता ह | एकाध साल क बाद जब उस पता चलता ह कक उसकी माा क साथ तो बाप का वसा सबध पहल स ही ह तो उसक मन म बाप क परतत ईषटयाक और घरा जाग पड़ती ह | यह ववदवष उसक अवचतन मन म आजीवन बना रहता ह | इसी परकार लड़की अपन बाप क परतत सोचती ह और माा स ईषटयाक करती ह |

फरायड आग कहता ह इस मानलसक अवरोध क कारर मनषटय की गतत रक जाती ह |

ईडडपस कोऊमपलकस उसक सामन तरह-तरह क अवरोध खड़ करता ह | यह लसथतत कोई अपवाद नही ह वरन साधाररतया यही होता ह |

यह ककतना घखरत और हासयासपद परततपादन ह छोटा बचचा यौनाकाकषा स पीडडत होगा सो भी अपनी माा क परतत पश-पकषकषयो क बचच क शरीर म भी वासना तब उठती ह जब उनक शरीर परजनन क योगय सदढ हो जात ह | तो मनषटय क बालक म यह ववतत इतनी छोटी आय म कस पदा हो सकती ह और माा क साथ वसी तलपत करन कक उसकी शाररररक-मानलसक लसथतत भी नही होती | कफर तीन वषक क बालक को काम-किया और माा-बाप क रत रहन की जानकारी उस कहाा स हो जाती ह कफर वह यह कस समझ लता ह कक उस बाप स ईषटयाक करनी चादहए

बचच दवारा माा का दध पीन की किया को ऐस मनोववजञातनयो न रततसख क समककष बतलाया ह | यदद इस सतनपान को रततसख माना जाय तब तो आय बढन क साथ-साथ यह उसकठा भी परबलतर होती जानी चादहए और वयसक होन तक बालक को माता का दध ही पीत रहना चादहए | ककनत यह ककस परकार सभव ह

तो य ऐस बतक परततपादन ह कक लजनकी भससकना ही की जानी चादहए | फरायड न अपनी मानलसक ववकततयो को जनसाधारर पर थोपकर मनोववजञान को ववकत बना ददया |

जो लोग मानव समाज को पशता म चगरान स बचाना चाहत ह भावी पीढी का जीवन वपशाच होन स बचाना चाहत ह यवानो का शारीररक सवासथय मानलसक परसननता और बौदचधक सामथयक बनाय रखना चाहत ह इस दश क नागररको को एडस (AIDS) जसी घातक बीमाररयो स गरसत होन स रोकना चाहत ह सवसथ समाज का तनमाकर करना चाहत ह उन सबका यह नततक कववयक ह कक व हमारी गमराह यवा पीढी को यौवन सरकषा जसी पसतक पढाय |

यदद काम-ववकार उठा और हमन यह ठीक नही ह इसस मर बल-बदचध और तज का नाश होगा ऐसा समझकर उसको टाला नही और उसकी पतत क म लमपट होकर लग गय तो हमम और पशओ म अतर ही कया रहा पश तो जब उनकी कोई ववशष ऋत होती ह तभी मथन करत ह बाकी ऋतओ म नही | इस दलषटट स उनका जीवन सहज व पराकततक ढग का होता ह | परत मनषटय

मनषटय तो बारहो महीन काम-किया की छट लकर बठा ह और ऊपर स यह भी कहता ह कक यदद काम-वासना की पतत क करक सख नही ललया तो कफर ईशवर न मनषटय म जो इसकी रचना की ह उसका कया मतलब आप अपन को वववकपरक रोक नही पात हो छोट-छोट सखो म उलझ जात हो- इसका तो कभी खयाल ही नही करत और ऊपर स भगवान तक को अपन पापकमो म भागीदार बनाना चाहत हो

(अनिम)

आतिघाती तकय अभी कछ समय पवक मर पास एक पतर आया | उसम एक वयलकत न पछा था ldquoआपन सससग म कहा और एक पलसतका म भी परकालशत हआ कक lsquoबीड़ी लसगरट तमबाक आदद मत वपयो | ऐस वयसनो स बचो कयोकक य तमहार बल और तज का हरर करत ह helliprsquo यदद ऐसा ही ह तो भगवान न तमबाक आदद पदा ही कयो ककया rdquo

अब उन सजजन स य वयसन तो छोड़ नही जात और लग ह भगवान क पीछ | भगवान न गलाब क साथ कााट भी पदा ककय ह | आप फल छोड़कर कााट तो नही तोड़त भगवान न आग भी पदा की ह | आप उसम भोजन पकात हो अपना घर तो नही जलात भगवान न आक (मदार) धतर बबल आदद भी बनाय ह मगर उनकी तो आप सबजी नही बनात इन सब म तो आप अपनी बदचध का उपयोग करक वयवहार करत हो और जहाा आप हार जात हो जब आपका मन आपक कहन म नही होता तो आप लगत हो भगवान को दोष दन अर भगवान न तो बादाम-वपसत भी पदा ककय ह दध भी पदा ककया ह | उपयोग करना ह तो इनका करो जो आपक बल और बदचध की वदचध कर | पसा ही खचकना ह तो इनम खचो | यह तो होता नही और लग ह तमबाक क पीछ | यह बदचध का सदपयोग नही ह दरपयोग ह | तमबाक पीन स तो बदचध और भी कमजोर हो जायगी |

शरीर क बल बदचध की सरकषा क ललय वीयकरकषर बहत आवशयक ह | योगदशकन क lsquoसाधपादrsquo म बरहमचयक की महतता इन शबदो म बतायी गयी ह

बरहिचययपरततटठाया वीययलाभः ||37||

बरहमचयक की दढ लसथतत हो जान पर सामथयक का लाभ होता ह |

(अनिम)

सतरी परसग ककतनी बार

कफर भी यदद कोई जान-बझकर अपन सामथयक को खोकर शरीहीन बनना चाहता हो तो यह यनान

क परलसदध दाशकतनक सकरात क इन परलसदध वचनो को सदव याद रख | सकरात स एक वयलकत न पछा

ldquoपरष क ललए ककतनी बार सतरी-परसग करना उचचत ह rdquo

ldquoजीवन भर म कवल एक बार |rdquo

ldquoयदद इसस तलपत न हो सक तो rdquo

ldquoतो वषक म एक बार |rdquo

ldquoयदद इसस भी सतोष न हो तो rdquo

ldquoकफर महीन म एक बार |rdquo

इसस भी मन न भर तो rdquo

ldquoतो महीन म दो बार कर परनत मसय शीघर आ जायगी |rdquo

ldquoइतन पर भी इचछा बनी रह तो कया कर rdquo

इस पर सकरात न कहा

ldquoतो ऐसा कर कक पहल कबर खदवा ल कफर कफन और लकड़ी घर म लाकर तयार रख | उसक

पशचात जो इचछा हो सो कर |rdquo

सकरात क य वचन सचमच बड़ परररापरद ह | वीयककषय क दवारा लजस-लजसन भी सख लन का परयास ककया ह उनह घोर तनराशा हाथ लगी ह और अनत म शरीहीन होकर मसय का गरास बनना पड़ा

ह | कामभोग दवारा कभी तलपत नही होती और अपना अमकय जीवन वयथक चला जाता ह | राजा ययातत की कथा तो आपन सनी होगी |

(अनिम)

राजा ययातत का अनभव

शिाचायक क शाप स राजा ययातत यवावसथा म ही वदध हो गय थ | परनत बाद म ययातत क पराथकना करन पर शिाचायक न दयावश उनको यह शलकत द दी कक व चाह तो अपन पतरो स यवावसथा लकर अपना वाधककय उनह द सकत थ | तब ययातत न अपन पतर यद तवकस िहय और अन स उनकी जवानी माागी मगर व राजी न हए | अत म छोट पतर पर न अपन वपता को अपना यौवन दकर उनका बढापा ल ललया |

पनः यवा होकर ययातत न कफर स भोग भोगना शर ककया | व ननदनवन म ववशवाची नामक अपसरा क साथ रमर करन लग | इस परकार एक हजार वषक तक भोग भोगन क बाद भी भोगो स

जब व सतषटट नही हए तो उनहोन अपना बचा हआ यौवन अपन पतर पर को लौटात हए कहा

न जात कािः कािानािपभोगन शामयतत |

हषविा कटणवतिव भ य एवामभव यत ||

ldquoपतर मन तमहारी जवानी लकर अपनी रचच उससाह और समय क अनसार ववषटयो का सवन ककया लककन ववषयो की कामना उनक उपभोग स कभी शात नही होती अवपत घी की आहतत पड़न पर अलगन की भाातत वह अचधकाचधक बढती ही जाती ह |

रसनो स जड़ी हई सारी पथवी ससार का सारा सवरक पश और सनदर लसतरयाा व सब एक परष को लमल जाय तो भी व सबक सब उसक ललय पयाकपत नही होग | अतः तषटरा का सयाग कर दना चादहए |

छोटी बदचधवाल लोगो क ललए लजसका सयाग करना असयत कदठन ह जो मनषटय क बढ होन पर

भी सवय बढी नही होती तथा जो एक परारानतक रोग ह उस तषटरा को सयाग दनवाल परष को ही सख लमलता ह |rdquo (महाभारत आददपवाकखर सभवपवक 12)

ययातत का अनभव वसततः बड़ा मालमकक और मनषटय जातत ल ललय दहतकारी ह | ययातत आग

कहत ह

ldquoपतर दखो मर एक हजार वषक ववषयो को भोगन म बीत गय तो भी तषटरा शात नही होती और आज भी परततददन उन ववषयो क ललय ही तषटरा पदा होती ह |

प ण वियसहसर ि षवियासकतचतसः |

तथापयनहदन तटणा िितटवमभजायत ||

इसललए पतर अब म ववषयो को छोड़कर बरहमाभयास म मन लगाऊा गा | तनदकवनदव तथा ममतारदहत होकर वन म मगो क साथ ववचरा गा | ह पतर तमहारा भला हो | तम पर म परसनन हा | अब तम अपनी जवानी पनः परापत करो और म यह राजय भी तमह ही अपकर करता हा |

इस परकार अपन पतर पर को राजय दकर ययातत न तपसया हत वनगमन ककया | उसी राजा पर स पौरव वश चला | उसी वश म परीकषकषत का पतर राजा जनमजय पदा हआ था |

(अनिम)

राजा िचकनद का परसग

राजा मचकनद गगाकचायक क दशकन-सससग क फलसवरप भगवान का दशकन पात ह | भगवान स सततत करत हए व कहत ह

ldquoपरभो मझ आपकी दढ भलकत दो |rdquo

तब भगवान कहत ह ldquoतन जवानी म खब भोग भोग ह ववकारो म खब डबा ह | ववकारी जीवन

जीनवाल को दढ भलकत नही लमलती | मचकनद दढ भलकत क ललए जीवन म सयम बहत जररी ह |

तरा यह कषतरतरय शरीर समापत होगा तब दसर जनम म तझ दढ भलकत परापत होगी |rdquo

वही राजा मचकनद कललयग म नरलसह महता हए |

जो लोग अपन जीवन म वीयकरकषा को महसव नही दत व जरा सोच कक कही व भी राजा ययातत का तो अनसरर नही कर रह ह यदद कर रह हो तो जस ययातत सावधान हो गय वस आप भी सावधान हो जाओ भया दहममत करो | सयान हो जाओ | दया करो | हम पर दया न करो तो अपन-आप पर तो दया करो भया दहममत करो भया सयान हो जाओ मर पयार जो हो गया उसकी चचनता न करो | आज स नवजीवन का परारभ करो | बरहमचयकरकषा क आसन पराकततक औषचधयाा इसयादद जानकर वीर बनो | ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

(अनिम)

गलत अभयास का दटपररणाि

आज ससार म ककतन ही ऐस अभाग लोग ह जो शगार रस की पसतक पढकर लसनमाओ क कपरभाव क लशकार होकर सवपनावसथा या जागरतावसथा म अथवा तो हसतमथन दवारा सपताह म ककतनी बार वीयकनाश कर लत ह | शरीर और मन को ऐसी आदत डालन स वीयाकशय बार-बार खाली होता रहता ह | उस वीयाकशय को भरन म ही शारीररक शलकत का अचधकतर भाग वयय होन लगता ह

लजसस शरीर को काततमान बनान वाला ओज सचचत ही नही हो पाता और वयलकत शलकतहीन

ओजहीन और उससाहशनय बन जाता ह | ऐस वयलकत का वीयक पतला पड़ता जाता ह | यदद वह समय पर अपन को साभाल नही सक तो शीघर ही वह लसथतत आ जाती ह कक उसक अणडकोश वीयक बनान म असमथक हो जात ह | कफर भी यदद थोड़ा बहत वीयक बनता ह तो वह भी पानी जसा ही बनता ह

लजसम सनतानोसपवतत की ताकत नही होती | उसका जीवन जीवन नही रहता | ऐस वयलकत की हालत मतक परष जसी हो जाती ह | सब परकार क रोग उस घर लत ह | कोई दवा उस पर असर नही कर पाती | वह वयलकत जीत जी नकक का दःख भोगता रहता ह | शासतरकारो न ललखा ह

आयसतजोबल वीय परजञा शरीशच िहदयशः |

पणय च परीततितव च हनयतऽबरहिचयाय ||

lsquoआय तज बल वीयक बदचध लकषमी कीततक यश तथा पणय और परीतत य सब बरहमचयक का पालन न करन स नषटट हो जात ह |rsquo

(अनिम)

वीययरकषण सदव सततय

इसीललए वीयकरकषा सतसय ह | lsquoअथवकवद म कहा गया ह

अतत सटिो अपा विभोऽततसटिा अगनयो हदवया ||1||

इद तितत सजामि त िाऽभयवतनकषकष ||2||

अथाकत lsquoशरीर म वयापत वीयक रपी जल को बाहर ल जान वाल शरीर स अलग कर दन वाल काम

को मन पर हटा ददया ह | अब म इस काम को अपन स सवकथा दर फ कता हा | म इस आरोगयता बल-बदचधनाशक काम का कभी लशकार नही होऊा गा |rsquo

hellip और इस परकार क सककप स अपन जीवन का तनमाकर न करक जो वयलकत वीयकनाश करता रहता ह उसकी कया गतत होगी इसका भी lsquoअथवकवदrsquo म उकलख आता ह

रजन परररजन िणन पररिणन |

मरोको िनोहा खनो तनदायह आतिद षिसतन द षिः ||

यह काम रोगी बनान वाला ह बहत बरी तरह रोगी करन वाला ह | मरन यानी मार दन वाला ह |

पररमरन यानी बहत बरी तरह मारन वाला ह |यह टढी चाल चलता ह मानलसक शलकतयो को नषटट कर दता ह | शरीर म स सवासथय बल आरोगयता आदद को खोद-खोदकर बाहर फ क दता ह | शरीर की सब धातओ को जला दता ह | आसमा को मललन कर दता ह | शरीर क वात वपतत कफ को दवषत करक उस तजोहीन बना दता ह |

बरहमचयक क बल स ही अगारपरक जस बलशाली गधवकराज को अजकन न परालजत कर ददया था |

(अनिम)

अजयन और अगारपणय ग वय अजकन अपन भाईयो सदहत िौपदी क सवयवर-सथल पाचाल दश की ओर जा रहा था तब बीच म गगा तट पर बस सोमाशरयार तीथक म गधवकराज अगारपरक (चचतररथ) न उसका रासता रोक ददया | वह गगा म अपनी लसतरयो क साथ जलकिड़ा कर रहा था | उसन पााचो पाडवो को कहा ldquoमर यहाा रहत हए

राकषस यकष दवता अथवा मनषटय कोई भी इस मागक स नही जा सकता | तम लोग जान की खर चाहत हो तो लौट जाओ |rdquo

तब अजकन कहता ह

ldquoम जानता हा कक समपरक गधवक मनषटयो स अचधक शलकतशाली होत ह कफर भी मर आग तमहारी दाल नही गलगी | तमह जो करना हो सो करो हम तो इधर स ही जायग |rdquo

अजकन क इस परततवाद स गधवक बहत िोचधत हआ और उसन पाडवो पर तीकषर बार छोड़ | अजकन

न अपन हाथ म जो जलती हई मशाल पकड़ी थी उसीस उसक सभी बारो को तनषटफल कर ददया | कफर गधवक पर आगनय असतर चला ददया | असतर क तज स गधवक का रथ जलकर भसम हो गया और

वह सवय घायल एव अचत होकर माह क बल चगर पड़ा | यह दखकर उस गधवक की पसनी कममीनसी बहत घबराई और अपन पतत की रकषाथक यचधलषटठर स पराथकना करन लगी | तब यचधलषटठर न अजकन स उस गधवक को अभयदान ददलवाया |

जब वह अगारपरक होश म आया तब बोला

ldquoअजकन म परासत हो गया इसललए अपन पवक नाम अगारपरक को छोड़ दता हा | म अपन ववचचतर

रथ क कारर चचतररथ कहलाता था | वह रथ भी आपन अपन परािम स दगध कर ददया ह | अतः अब

म दगधरथ कहलाऊा गा |

मर पास चाकषषी नामक ववदया ह लजस मन न सोम को सोम न ववशवावस को और ववशवावस न मझ परदान की ह | यह गर की ववदया यदद ककसी कायर को लमल जाय तो नषटट हो जाती ह | जो छः महीन तक एक पर पर खड़ा रहकर तपसया कर वही इस ववदया को पा सकता ह | परनत अजकन म आपको ऐसी तपसया क तरबना ही यह ववदया परदान करता हा |

इस ववदया की ववशषता यह ह कक तीनो लोको म कही भी लसथत ककसी वसत को आाख स दखन की इचछा हो तो उस उसी रप म इस ववदया क परभाव स कोई भी वयलकत दख सकता ह | अजकन

इस ववदया क बल पर हम लोग मनषटयो स शरषटठ मान जात ह और दवताओ क तकय परभाव ददखा सकत ह |rdquo

इस परकार अगारपरक न अजकन को चाकषषी ववदया ददवय घोड़ एव अनय वसतएा भट की |

अजकन न गधवक स पछा गधवक तमन हम पर एकाएक आिमर कयो ककया और कफर हार कयो गय rdquo

तब गधवक न बड़ा ममकभरा उततर ददया | उसन कहा

ldquoशतरओ को सताप दनवाल वीर यदद कोई कामासकत कषतरतरय रात म मझस यदध करन आता तो ककसी भी परकार जीववत नही बच सकता था कयोकक रात म हम लोगो का बल और भी बढ जाता ह |

अपन बाहबल का भरोसा रखन वाला कोई भी परष जब अपनी सतरी क सममख ककसीक दवारा अपना ततरसकार होत दखता ह तो सहन नही कर पाता | म जब अपनी सतरी क साथ जलिीड़ा कर

रहा था तभी आपन मझ ललकारा इसीललय म िोधाववषटट हआ और आप पर बारवषाक की | लककन यदद आप यह पछो कक म आपस परालजत कयो हआ तो उसका उततर ह

बरहिचय परो ियः स चाषप तनयतसवततय |

यसिात तसिादह पाथय रणऽषसि षवषजतसतवया ||

ldquoबरहमचयक सबस बड़ा धमक ह और वह आपम तनलशचत रप स ववदयमान ह | ह कनतीनदन

इसीललय यदध म म आपस हार गया हा |rdquo (महाभारत आददपवकखर चतररथ पवक 71)

हम समझ गय कक वीयकरकषर अतत आवशयक ह | अब वह कस हो इसकी चचाक करन स पवक एक बार

बरहमचयक का तालववक अथक ठीक स समझ ल |

(अनिम)

बरहिचयय का ताषततवक अथय lsquoबरहमचयकrsquo शबद बड़ा चचतताकषकक और पववतर शबद ह | इसका सथल अथक तो यही परलसदध ह कक

लजसन शादी नही की ह जो काम-भोग नही करता ह जो लसतरयो स दर रहता ह आदद-आदद | परनत यह बहत सतही और सीलमत अथक ह | इस अथक म कवल वीयकरकषर ही बरहमचयक ह | परनत रधयान रह

कवल वीयकरकषर मातर साधना ह मलजल नही | मनषटय जीवन का लकषय ह अपन-आपको जानना अथाकत

आसम-साकषासकार करना | लजसन आसम-साकषासकार कर ललया वह जीवनमकत हो गया | वह आसमा क

आननद म बरहमाननद म ववचरर करता ह | उस अब ससार स कछ पाना शष नही रहा | उसन आननद का सरोत अपन भीतर ही पा ललया | अब वह आननद क ललय ककसी भी बाहरी ववषय पर

तनभकर नही ह | वह परक सवततर ह | उसकी कियाएा सहज होती ह | ससार क ववषय उसकी आननदमय आलसमक लसथतत को डोलायमान नही कर सकत | वह ससार क तचछ ववषयो की पोल को समझकर अपन आननद म मसत हो इस भतल पर ववचरर करता ह | वह चाह लागोटी म हो चाह बहत स कपड़ो म घर म रहता हो चाह झोपड़ म गहसथी चलाता हो चाह एकानत जगल म ववचरता हो ऐसा महापरष ऊपर स भल कगाल नजर आता हो परनत भीतर स शहशाह होता ह कयोकक उसकी सब

वासनाएा सब कततकवय पर हो चक ह | ऐस वयलकत को ऐस महापरष को वीयकरकषर करना नही पड़ता सहज ही होता ह | सब वयवहार करत हए भी उनकी हर समय समाचध रहती ह | उनकी समाचध सहज

होती ह अखणड होती ह | ऐसा महापरष ही सचचा बरहमचारी होता ह कयोकक वह सदव अपन बरहमाननद म अवलसथत रहता ह |

सथल अथक म बरहमचयक का अथक जो वीयकरकषर समझा जाता ह उस अथक म बरहमचयक शरषटठ वरत ह

शरषटठ तप ह शरषटठ साधना ह और इस साधना का फल ह आसमजञान आसम-साकषासकार | इस

फलपरालपत क साथ ही बरहमचयक का परक अथक परकट हो जाता ह |

जब तक ककसी भी परकार की वासना शष ह तब तक कोई परक बरहमचयक को उपलबध नही हो सकता | जब तक आसमजञान नही होता तब तक परक रप स वासना तनवतत नही होती | इस वासना की तनववतत क ललय अतःकरर की शदचध क ललय ईशवर की परालपत क ललय सखी जीवन जीन क ललय

अपन मनषटय जीवन क सवोचच लकषय को परापत करन क ललय या कहो परमाननद की परालपत क ललयhellip कछ भी हो वीयकरकषररपी साधना सदव अब अवसथाओ म उततम ह शरषटठ ह और आवशयक ह

|

वीयकरकषर कस हो इसक ललय यहाा हम कछ सथल और सकषम उपायो की चचाक करग |

(अनिम)

3 वीययरकषा क उपाय

सादा रहन-सहन बनाय काफी लोगो को यह भरम ह कक जीवन तड़क-भड़कवाला बनान स व समाज म ववशष मान जात ह | वसततः ऐसी बात नही ह | इसस तो कवल अपन अहकार का ही परदशकन होता ह | लाल रग क भड़कील एव रशमी कपड़ नही पहनो | तल-फलल और भाातत-भाातत क इतरो का परयोग करन स बचो | जीवन म लजतनी तड़क-भड़क बढगी इलनियाा उतनी चचल हो उठगी कफर वीयकरकषा तो दर की बात ह |

इततहास पर भी हम दलषटट डाल तो महापरष हम ऐस ही लमलग लजनका जीवन परारभ स ही सादगीपरक था | सादा रहन-सहन तो बडपपन का दयोतक ह | दसरो को दख कर उनकी अपराकततक व

अचधक आवशयकताओवाली जीवन-शली का अनसरर नही करो |

उपयकत आहार

ईरान क बादशाह वहमन न एक शरषटठ वदय स पछा

ldquoददन म मनषटय को ककतना खाना चादहएrdquo

ldquoसौ ददराम (अथाकत 31 तोला) | ldquoवदय बोला |

ldquoइतन स कया होगाrdquo बादशाह न कफर पछा |

वदय न कहा ldquoशरीर क पोषर क ललय इसस अचधक नही चादहए | इसस अचधक जो कछ खाया जाता ह वह कवल बोझा ढोना ह और आयषटय खोना ह |rdquo

लोग सवाद क ललय अपन पट क साथ बहत अनयाय करत ह ठास-ठासकर खात ह | यरोप का एक बादशाह सवाददषटट पदाथक खब खाता था | बाद म औषचधयो दवारा उलटी करक कफर स सवाद लन क

ललय भोजन करता रहता था | वह जकदी मर गया |

आप सवादलोलप नही बनो | लजहवा को तनयतरर म रखो | कया खाय कब खाय कस खाय और

ककतना खाय इसका वववक नही रखा तो पट खराब होगा शरीर को रोग घर लग वीयकनाश को परोससाहन लमलगा और अपन को पतन क रासत जान स नही रोक सकोग |

परमपवकक शात मन स पववतर सथान पर बठ कर भोजन करो | लजस समय नालसका का दादहना सवर (सयक नाड़ी) चाल हो उस समय ककया भोजन शीघर पच जाता ह कयोकक उस समय जठरालगन बड़ी परबल होती ह | भोजन क समय यदद दादहना सवर चाल नही हो तो उसको चाल कर दो | उसकी ववचध यह ह वाम ककषकष म अपन दादहन हाथ की मठठी रखकर ककषकष को जोर स दबाओ या बाायी (वाम) करवट लट जाओ | थोड़ी ही दर म दादहना यान सयक सवर चाल हो जायगा |

रातरतर को बाायी करवट लटकर ही सोना चादहए | ददन म सोना उचचत नही ककनत यदद सोना आवशयक हो तो दादहनी करवट ही लटना चादहए |

एक बात का खब खयाल रखो | यदद पय पदाथक लना हो तो जब चनि (बााया) सवर चाल हो तभी लो | यदद सयक (दादहना) सवर चाल हो और आपन दध काफी चाय पानी या कोई भी पय पदाथक ललया तो वीयकनाश होकर रहगा | खबरदार सयक सवर चल रहा हो तब कोई भी पय पदाथक न वपयो | उस

समय यदद पय पदाथक पीना पड़ तो दादहना नथना बनद करक बााय नथन स शवास लत हए ही वपयो |

रातरतर को भोजन कम करो | भोजन हकका-सपाचय हो | बहत गमक-गमक और दर स पचन वाला गररषटठ भोजन रोग पदा करता ह | अचधक पकाया हआ तल म तला हआ लमचक-मसालयकत तीखा खटटा चटपटदार भोजन वीयकनाडड़यो को कषबध करता ह | अचधक गमक भोजन और गमक चाय स दाात कमजोर होत ह | वीयक भी पतला पड़ता ह |

भोजन खब चबा-चबाकर करो | थक हए हो तो तसकाल भोजन न करो | भोजन क तरत बाद

पररशरम न करो |

भोजन क पहल पानी न वपयो | भोजन क बीच म तथा भोजन क एकाध घट क बाद पानी पीना दहतकर होता ह |

रातरतर को सभव हो तो फलाहार लो | अगर भोजन लना पड़ तो अकपाहार ही करो | बहत रात गय भोजन या फलाहार करना दहतावह नही ह | कबज की लशकायत हो तो 50 गराम लाल कफटकरी तव पर

फलाकर कटकर कपड़ स छानकर बोतल म भर लो | रातरतर म 15 गराम सौफ एक चगलास पानी म लभगो दो | सबह उस उबाल कर छान लो और ड़ढ गराम कफटकरी का पाउडर लमलाकर पी लो | इसस कबज व बखार भी दर होता ह | कबज तमाम तरबमाररयो की जड़ ह | इस दर करना आवशयक ह |

भोजन म पालक परवल मथी बथआ आदद हरी तरकाररयाा दध घी छाछ मकखन पक हए फल

आदद ववशष रप स लो | इसस जीवन म सालववकता बढगी | काम िोध मोह आदद ववकार घटग | हर कायक म परसननता और उससाह बना रहगा |

रातरतर म सोन स पवक गमक-गमक दध नही पीना चादहए | इसस रात को सवपनदोष हो जाता ह |

कभी भी मल-मतर की लशकायत हो तो उस रोको नही | रोक हए मल स भीतर की नाडड़याा कषबध होकर वीयकनाश कराती ह |

पट म कबज होन स ही अचधकाशतः रातरतर को वीयकपात हआ करता ह | पट म रका हआ मल

वीयकनाडड़यो पर दबाव डालता ह तथा कबज की गमी स ही नाडड़याा कषलभत होकर वीयक को बाहर

धकलती ह | इसललय पट को साफ रखो | इसक ललय कभी-कभी तरतरफला चरक या lsquoसतकपा चरकrsquo या lsquoइसबगलrsquo पानी क साथ ललया करो | अचधक ततकत खटटी चरपरी और बाजार औषचधयाा उततजक होती ह उनस बचो | कभी-कभी उपवास करो | पट को आराम दन क ललय कभी-कभी तनराहार भी रह सकत हो तो अचछा ह |

आहार पचतत मशखी दोिान आहारवषजयतः |

अथाकत पट की अलगन आहार को पचाती ह और उपवास दोषो को पचाता ह | उपवास स

पाचनशलकत बढती ह |

उपवास अपनी शलकत क अनसार ही करो | ऐसा न हो कक एक ददन तो उपवास ककया और दसर ददन लमषटठानन-लडड आदद पट म ठास-ठास कर उपवास की सारी कसर तनकाल दी | बहत अचधक

भखा रहना भी ठीक नही |

वस उपवास का सही अथक तो होता ह बरहम क परमासमा क तनकट रहना | उप यानी समीप और

वास यानी रहना | तनराहार रहन स भगवदभजन और आसमचचतन म मदद लमलती ह | ववतत अनतमकख

होन स काम-ववकार को पनपन का मौका ही नही लमल पाता |

मदयपान पयाज लहसन और मासाहार ndash य वीयककषय म मदद करत ह अतः इनस अवशय बचो |

(अनिम)

मशशनषनरय सनान

शौच क समय एव लघशका क समय साथ म चगलास अथवा लोट म ठड़ा जल लकर जाओ और उसस लशशनलनिय को धोया करो | कभी-कभी उस पर ठड़ पानी की धार ककया करो | इसस कामववतत का शमन होता ह और सवपनदोष नही होता |

उधचत आसन एव वयायाि करो

सवसथ शरीर म सवसथ मन का तनवास होता ह | अगरजी म कहत ह A healthy mind

resides in a healthy body

लजसका शरीर सवसथ नही रहता उसका मन अचधक ववकारगरसत होता ह | इसललय रोज परातः वयायाम एव आसन करन का तनयम बना लो |

रोज परातः काल 3-4 लमनट दौड़न और तजी स टहलन स भी शरीर को अचछा वयायाम लमल

जाता ह |

सयकनमसकार 13 अथवा उसस अचधक ककया करो तो उततम ह | इसम आसन व वयायाम दोनो का समावश होता ह |

lsquoवयायामrsquo का अथक पहलवानो की तरह मासपलशयाा बढाना नही ह | शरीर को योगय कसरत लमल जाय ताकक उसम रोग परवश न कर और शरीर तथा मन सवसथ रह ndash इतना ही उसम हत ह |

वयायाम स भी अचधक उपयोगी आसन ह | आसन शरीर क समचचत ववकास एव बरहमचयक-साधना क ललय असयत उपयोगी लसदध होत ह | इनस नाडड़याा शदध होकर सववगर की वदचध होती ह | वस तो शरीर क अलग-अलग अगो की पलषटट क ललय अलग-अलग आसन होत ह परनत वीयकरकषा की दलषटट स मयरासन पादपलशचमोततानासन सवाागासन थोड़ी बहत सावधानी रखकर हर कोई कर सकता ह |

इनम स पादपलशचमोततानासन तो बहत ही उपयोगी ह | आशरम म आनवाल कई साधको का यह तनजी अनभव ह |

ककसी कशल योग-परलशकषक स य आसन सीख लो और परातःकाल खाली पट शदध हवा म ककया करो | शौच सनान वयायाम आदद क पशचात ही आसन करन चादहए |

सनान स पवक सख तौललय अथवा हाथो स सार शरीर को खब रगड़ो | इस परकार क घषकर स शरीर

म एक परकार की ववदयत शलकत पदा होती ह जो शरीर क रोगो को नषटट करती ह | शवास तीवर गतत

स चलन पर शरीर म रकत ठीक सचरर करता ह और अग-परसयग क मल को तनकालकर फफड़ो म लाता ह | फफड़ो म परववषटट शदध वाय रकत को साफ कर मल को अपन साथ बाहर तनकाल ल जाती ह | बचा-खचा मल पसीन क रप म सवचा क तछिो दवारा बाहर तनकल आता ह | इस परकार शरीर पर घषकर करन क बाद सनान करना अचधक उपयोगी ह कयोकक पसीन दवारा बाहर तनकला हआ मल उसस धल जाता ह सवचा क तछि खल जात ह और बदन म सफततक का सचार होता ह |

(अनिम)

बरहििह तय ि उठो

सवपनदोष अचधकाशतः रातरतर क अततम परहर म हआ करता ह | इसललय परातः चार-साढ चार बज यानी बरहममहतक म ही शया का सयाग कर दो | जो लोग परातः काल दरी तक सोत रहत ह उनका जीवन तनसतज हो जाता ह |

दवययसनो स द र रहो

शराब एव बीड़ी-लसगरट-तमबाक का सवन मनषटय की कामवासना को उदयीपत करता ह |

करान शरीफ क अकलाहपाक तरतरकोल रोशल क लसपारा म ललखा ह कक शतान का भड़काया हआ

मनषटय ऐसी नशायकत चीजो का उपयोग करता ह | ऐस वयलकत स अकलाह दर रहता ह कयोकक यह काम शतान का ह और शतान उस आदमी को जहननम म ल जाता ह |

नशीली वसतओ क सवन स फफड़ और हदय कमजोर हो जात ह सहनशलकत घट जाती ह और

आयषटय भी कम हो जाता ह | अमरीकी डॉकटरो न खोज करक बतलाया ह कक नशीली वसतओ क सवन स कामभाव उततलजत होन पर वीयक पतला और कमजोर पड़ जाता ह |

(अनिम)

सतसग करो

आप सससग नही करोग तो कसग अवशय होगा | इसललय मन वचन कमक स सदव सससग का ही सवन करो | जब-जब चचतत म पततत ववचार डरा जमान लग तब-तब तरत सचत हो जाओ और वह सथान छोड़कर पहाच जाओ ककसी सससग क वातावरर म ककसी सलनमतर या ससपरष क सालननरधय म | वहाा व कामी ववचार तरबखर जायग और आपका तन-मन पववतर हो जायगा | यदद ऐसा नही ककया तो व पततत ववचार आपका पतन ककय तरबना नही छोड़ग कयोकक जो मन म होता ह दर-सबर उसीक अनसार बाहर की किया होती ह | कफर तम पछताओग कक हाय यह मझस कया हो गया

पानी का सवभाव ह नीच की ओर बहना | वस ही मन का सवभाव ह पतन की ओर सगमता स बढना | मन हमशा धोखा दता ह | वह ववषयो की ओर खीचता ह कसगतत म सार ददखता ह लककन

वह पतन का रासता ह | कसगतत म ककतना ही आकषकर हो मगरhellip

षजसक पीछ हो गि की कतार भ लकर उस खशी स न खलो |

अभी तक गत जीवन म आपका ककतना भी पतन हो चका हो कफर भी सससगतत करो | आपक उसथान की अभी भी गजाइश ह | बड़-बड़ दजकन भी सससग स सजजन बन गय ह |

शठ स रहह सतसगतत पाई |

सससग स वचचत रहना अपन पतन को आमतरतरत करना ह | इसललय अपन नतर करक सवचा आदद सभी को सससगरपी गगा म सनान करात रहो लजसस कामववकार आप पर हावी न हो सक |

(अनिम)

शभ सकलप करो

lsquoहम बरहमचयक का पालन कस कर सकत ह बड़-बड़ ॠवष-मतन भी इस रासत पर कफसल पड़त हhelliprsquo ndash इस परकार क हीन ववचारो को ततलाजलल द दो और अपन सककपबल को बढाओ | शभ सककप करो | जसा आप सोचत हो वस ही आप हो जात हो | यह सारी सलषटट ही सककपमय ह |

दढ सककप करन स वीयकरकषर म मदद होती ह और वीयकरकषर स सककपबल बढता ह | षवशवासो फलदायकः | जसा ववशवास और जसी शरदधा होगी वसा ही फल परापत होगा | बरहमजञानी महापरषो म यह सककपबल असीम होता ह | वसततः बरहमचयक की तो व जीती-जागती मततक ही होत ह |

(अनिम)

बतरबन यकत पराणायाि और योगाभयास करो

तरतरबनध करक परारायाम करन स ववकारी जीवन सहज भाव स तनववककाररता म परवश करन लगता ह | मलबनध स ववकारो पर ववजय पान का सामथयक आता ह | उडडडयानबनध स आदमी उननतत म ववलकषर उड़ान ल सकता ह | जालनधरबनध स बदचध ववकलसत होती ह |

अगर कोई वयलकत अनभवी महापरष क सालननरधय म तरतरबनध क साथ परततददन 12 परारायाम कर तो परसयाहार लसदध होन लगगा | 12 परसयाहार स धाररा लसदध होन लगगी | धाररा-शलकत बढत ही परकतत क रहसय खलन लगग | सवभाव की लमठास बदचध की ववलकषरता सवासथय की सौरभ आन लगगी | 12 धाररा लसदध होन पर रधयान लगगा सववककप समाचध होन लगगी | सववककप समाचध का 12 गना समय पकन पर तनववकककप समाचध लगगी |

इस परकार छः महीन अभयास करनवाला साधक लसदध योगी बन सकता ह | ररदचध-लसदचधयाा उसक आग हाथ जोड़कर खड़ी रहती ह | यकष गधवक ककननर उसकी सवा क ललए उससक होत ह | उस

पववतर परष क तनकट ससारी लोग मनौती मानकर अपनी मनोकामना परक कर सकत ह | साधन करत समय रग-रग म इस महान लकषय की परालपत क ललए धन लग जाय|

बरहमचयक-वरत पालन वाला साधक पववतर जीवन जीनवाला वयलकत महान लकषय की परालपत म सफल हो सकता ह |

ह लमतर बार-बार असफल होन पर भी तम तनराश मत हो | अपनी असफलताओ को याद करक हार हए जआरी की तरह बार-बार चगरो मत | बरहमचयक की इस पसतक को कफर-कफर स पढो | परातः तनिा स उठत समय तरबसतर पर ही बठ रहो और दढ भावना करो

ldquoमरा जीवन परकतत की थपपड़ खाकर पशओ की तरह नषटट करन क ललए नही ह | म अवशय

परषाथक करा गा आग बढागा | हरर ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

मर भीतर परबरहम परमासमा का अनपम बल ह | हरर ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

तचछ एव ववकारी जीवन जीनवाल वयलकतयो क परभाव स म अपनको ववतनमककत करता जाऊा गा | हरर ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

सबह म इस परकार का परयोग करन स चमसकाररक लाभ परापत कर सकत हो | सवकतनयनता सवशवर को कभी पयार करो hellip कभी पराथकना करो hellip कभी भाव स ववहवलता स आतकनाद करो | व अनतयाकमी परमासमा हम अवशय मागकदशकन दत ह | बल-बदचध बढात ह | साधक तचछ ववकारी जीवन पर ववजयी होता जाता ह | ईशवर का असीम बल तमहार साथ ह | तनराश मत हो भया हताश मत हो | बार-बार कफसलन पर भी सफल होन की आशा और उससाह मत छोड़ो |

शाबाश वीर hellip शाबाश hellip दहममत करो दहममत करो | बरहमचयक-सरकषा क उपायो को बार-बार पढो सकषमता स ववचार करो | उननतत क हर कषतर म तम आसानी स ववजता हो सकत हो |

करोग न दहममत

अतत खाना अतत सोना अतत बोलना अतत यातरा करना अतत मथन करना अपनी सषपत

योगयताओ को धराशायी कर दता ह जबकक सयम और परषाथक सषपत योगयताओ को जगाकर

जगदीशवर स मलाकात करा दता ह |

(अनिम)

नीि का पड चला

हमार सदगरदव परम पजय लीलाशाहजी महाराज क जीवन की एक घटना बताता हा

लसध म उन ददनो ककसी जमीन की बात म दहनद और मसलमानो का झगड़ा चल रहा था | उस जमीन पर नीम का एक पड़ खड़ा था लजसस उस जमीन की सीमा-तनधाकरर क बार म कछ

वववाद था | दहनद और मसलमान कोटक-कचहरी क धकक खा-खाकर थक | आखखर दोनो पकषो न यह तय ककया कक यह धालमकक सथान ह | दोनो पकषो म स लजस पकष का कोई पीर-फकीर उस सथान पर

अपना कोई ववशष तज बल या चमसकार ददखा द वह जमीन उसी पकष की हो जायगी |

पजय लीलाशाहजी बाप का नाम पहल lsquoलीलारामrsquo था | लोग पजय लीलारामजी क पास पहाच और बोल ldquoहमार तो आप ही एकमातर सत ह | हमस जो हो सकता था वह हमन ककया परनत

असफल रह | अब समगर दहनद समाज की परततषटठा आपशरी क चररो म ह |

इसा की अजि स जब द र ककनारा होता ह |

त फा ि ि िी ककशती का एक भगवान ककनारा होता ह ||

अब सत कहो या भगवान कहो आप ही हमारा सहारा ह | आप ही कछ करग तो यह धमकसथान

दहनदओ का हो सकगा |rdquo

सत तो मौजी होत ह | जो अहकार लकर ककसी सत क पास जाता ह वह खाली हाथ लौटता ह

और जो ववनमर होकर शररागतत क भाव स उनक सममख जाता ह वह सब कछ पा लता ह | ववनमर और शरदधायकत लोगो पर सत की कररा कछ दन को जकदी उमड़ पड़ती ह |

पजय लीलारामजी उनकी बात मानकर उस सथान पर जाकर भलम पर दोनो घटनो क बीच लसर नीचा ककय हए शात भाव स बठ गय |

ववपकष क लोगो न उनह ऐसी सरल और सहज अवसथा म बठ हए दखा तो समझ ललया कक य

लोग इस साध को वयथक म ही लाय ह | यह साध कया करगा hellip जीत हमारी होगी |

पहल मलसलम लोगो दवारा आमतरतरत पीर-फकीरो न जाद-मतर टोन-टोटक आदद ककय | lsquoअला बााधा बला बााधाhellip पथवी बााधाhellip तज बााधाhellip वाय बााधाhellip आकाश बााधाhellip फऽऽऽlsquo आदद-आदद ककया | कफर पजय लीलाराम जी की बारी आई |

पजय लीलारामजी भल ही साधारर स लग रह थ परनत उनक भीतर आसमाननद दहलोर ल रहा था | lsquoपथवी आकाश कया समगर बरहमाणड म मरा ही पसारा हhellip मरी सतता क तरबना एक पतता भी नही दहल सकताhellip य चााद-लसतार मरी आजञा म ही चल रह हhellip सवकतर म ही इन सब ववलभनन रपो म ववलास कर रहा हाhelliprsquo ऐस बरहमाननद म डब हए व बठ थ |

ऐसी आसममसती म बठा हआ ककनत बाहर स कगाल जसा ददखन वाला सत जो बोल द उस घदटत होन स कौन रोक सकता ह

वलशषटठ जी कहत ह ldquoह रामजी तरतरलोकी म ऐसा कौन ह जो सत की आजञा का उकलघन कर

सक rdquo

जब लोगो न पजय लीलारामजी स आगरह ककया तो उनहोन धीर स अपना लसर ऊपर की ओर

उठाया | सामन ही नीम का पड़ खड़ा था | उस पर दलषटट डालकर गजकना करत हए आदशासमक भाव स बोल उठ

ldquoऐ नीम इधर कया खड़ा ह जा उधर हटकर खड़ा रह |rdquo

बस उनका कहना ही था कक नीम का पड lsquoसरकरकhellip सरकरकhelliprsquo करता हआ दर जाकर पवकवत खड़ा हो गया |

लोग तो यह दखकर आवाक रह गय आज तक ककसी न ऐसा चमसकार नही दखा था | अब

ववपकषी लोग भी उनक परो पड़न लग | व भी समझ गय कक य कोई लसदध महापरष ह |

व दहनदओ स बोल ldquoय आपक ही पीर नही ह बलकक आपक और हमार सबक पीर ह | अब स य

lsquoलीलारामrsquo नही ककत lsquoलीलाशाहrsquo ह |

तब स लोग उनका lsquoलीलारामrsquo नाम भल ही गय और उनह lsquoलीलाशाहrsquo नाम स ही पकारन लग |

लोगो न उनक जीवन म ऐस-ऐस और भी कई चमसकार दख |

व 93 वषक की उमर पार करक बरहमलीन हए | इतन वदध होन पर भी उनक सार दाात सरकषकषत थ

वारी म तज और बल था | व तनयलमत रप स आसन एव परारायाम करत थ | मीलो पदल यातरा करत थ | व आजनम बरहमचारी रह | उनक कपा-परसाद दवारा कई पतरहीनो को पतर लमल गरीबो को धन लमला तनरससादहयो को उससाह लमला और लजजञासओ का साधना-मागक परशसत हआ | और भी कया-कया हआ

यह बतान जाऊा गा तो ववषयानतर होगा और समय भी अचधक नही ह | म यह बताना चाहता हा कक

उनक दवारा इतन चमसकार होत हए भी उनकी महानता चमसकारो म तनदहत नही ह | उनकी महानता तो उनकी बरहमतनषटठता म तनदहत थी |

छोट-मोट चमसकार तो थोड़ बहत अभयास क दवारा हर कोई कर लता ह मगर बरहमतनषटठा तो चीज ही कछ और ह | वह तो सभी साधनाओ की अततम तनषटपतत ह | ऐसा बरहमतनषटठ होना ही तो वासतववक बरहमचारी होना ह | मन पहल भी कहा ह कक कवल वीयकरकषा बरहमचयक नही ह | यह तो बरहमचयक की साधना ह | यदद शरीर दवारा वीयकरकषा हो और मन-बदचध म ववषयो का चचतन चलता रह

तो बरहमतनषटठा कहाा हई कफर भी वीयकरकषा दवारा ही उस बरहमाननद का दवार खोलना शीघर सभव होता ह | वीयकरकषर हो और कोई समथक बरहमतनषटठ गर लमल जाय तो बस कफर और कछ करना शष नही रहता | कफर वीयकरकषर करन म पररशरम नही करना पड़ता वह सहज होता ह | साधक लसदध बन जाता ह | कफर तो उसकी दलषटट मातर स कामक भी सयमी बन जाता ह |

सत जञानशवर महाराज लजस चबतर पर बठ थ उसीको कहा lsquoचलhelliprsquo तो वह चलन लगा | ऐस ही पजयपाद लीलाशाहजी बाप न नीम क पड़ को कहा lsquoचलhelliprsquo तो वह चलन लगा और जाकर दसरी जगह खड़ा हो गया | यह सब सककप बल का चमसकार ह | ऐसा सककप बल आप भी बढा सकत ह |

वववकाननद कहा करत थ कक भारतीय लोग अपन सककप बल को भल गय ह इसीललय गलामी का दःख भोग रह ह | lsquoहम कया कर सकत हhelliprsquo ऐस नकारासमक चचतन दवारा व सककपहीन हो गय ह जबकक अगरज का बचचा भी अपन को बड़ा उससाही समझता ह और कायक म सफल हो जाता ह

कयोकक व ऐसा ववचार करता ह lsquoम अगरज हा | दतनया क बड़ भाग पर हमारी जातत का शासन रहा ह | ऐसी गौरवपरक जातत का अग होत हए मझ कौन रोक सकता ह सफल होन स म कया नही कर

सकता rsquo lsquoबस ऐसा ववचार ही उस सफलता द दता ह |

जब अगरज का बचचा भी अपनी जातत क गौरव का समरर कर दढ सककपवान बन सकता ह तो आप कयो नही बन सकत

ldquoम ॠवष-मतनयो की सतान हा | भीषटम जस दढपरततजञ परषो की परमपरा म मरा जनम हआ ह |

गगा को पथवी पर उतारनवाल राजा भगीरथ जस दढतनशचयी महापरष का रकत मझम बह रहा ह |

समि को भी पी जानवाल अगससय ॠवष का म वशज हा | शरी राम और शरीकषटर की अवतार-भलम

भारत म जहाा दवता भी जनम लन को तरसत ह वहाा मरा जनम हआ ह कफर म ऐसा दीन-हीन

कयो म जो चाहा सो कर सकता हा | आसमा की अमरता का ददवय जञान का परम तनभकयता का सदश सार ससार को लजन ॠवषयो न ददया उनका वशज होकर म दीन-हीन नही रह सकता | म अपन रकत क तनभकयता क ससकारो को जगाकर रहागा | म वीयकवान बनकर रहागा |rdquo ऐसा दढ सककप हरक भारतीय बालक को करना चादहए |

(अनिम)

सतरी-जातत क परतत िातभाव परबल करो शरी रामकषटर परमहस कहा करत थ ldquo ककसी सदर सतरी पर नजर पड़ जाए तो उसम माा जगदमबा क दशकन करो | ऐसा ववचार करो कक यह अवशय दवी का अवतार ह तभी तो इसम इतना सौदयक ह | माा परसनन होकर इस रप म दशकन द रही ह ऐसा समझकर सामन खड़ी सतरी को मन-ही-मन परराम करो | इसस तमहार भीतर काम ववकार नही उठ सकगा |

िातवत परदारि पररवयि लोटिवत |

पराई सतरी को माता क समान और पराए धन को लमटटी क ढल क समान समझो |

(अनिम)

मशवाजी का परसग

लशवाजी क पास ककयार क सबदार की लसतरयो को लाया गया था तो उस समय उनहोन यही आदशक उपलसथत ककया था | उनहोन उन लसतरयो को lsquoमााrsquo कहकर पकारा तथा उनह कई उपहार दकर

सममान सदहत उनक घर वापस भज ददया | लशवाजी परम गर समथक रामदास क लशषटय थ |

भारतीय सभयता और ससकतत म माता को इतना पववतर सथान ददया गया ह कक यह मातभाव मनषटय को पततत होत-होत बचा लता ह | शरी रामकषटर एव अनय पववतर सतो क समकष जब कोई सतरी कचषटटा करना चाहती तब व सजजन साधक सत यह पववतर मातभाव मन म लाकर ववकार क फद स बच जात | यह मातभाव मन को ववकारी होन स बहत हद तक रोक रखता ह | जब भी ककसी सतरी को दखन पर मन म ववकार उठन लग उस समय सचत रहकर इस मातभाव का परयोग कर ही लना चादहए |

(अनिम)

अजयन और उवयशी

अजकन सशरीर इनि सभा म गया तो उसक सवागत म उवकशी रमभा आदद अपसराओ न नसय ककय | अजकन क रप सौनदयक पर मोदहत हो उवकशी रातरतर क समय उसक तनवास सथान पर गई और

पररय-तनवदन ककया तथा साथ ही इसम कोई दोष नही लगता इसक पकष म अनक दलील भी की | ककनत अजकन न अपन दढ इलनियसयम का पररचय दत हए कह

गचछ मरधनाक परपननोऽलसम पादौ त वरवखरकनी | सव दह म मातवत पजया रकषयोऽह पतरवत सवया ||

( महाभारत वनपवकखर इनिलोकालभगमनपवक ४६४७)

मरी दलषटट म कनती मािी और शची का जो सथान ह वही तमहारा भी ह | तम मर ललए माता क समान पजया हो | म तमहार चररो म परराम करता हा | तम अपना दरागरह छोड़कर लौट जाओ

| इस पर उवकशी न िोचधत होकर उस नपसक होन का शाप द ददया | अजकन न उवकशी स शावपत होना सवीकार ककया परनत सयम नही तोड़ा | जो अपन आदशक स नही हटता धयक और सहनशीलता को अपन चररतर का भषर बनाता ह उसक ललय शाप भी वरदान बन जाता ह | अजकन क ललय भी ऐसा ही हआ | जब इनि तक यह बात पहाची तो उनहोन अजकन को कहा तमन इलनिय सयम क दवारा ऋवषयो को भी परालजत कर ददया | तम जस पतर को पाकर कनती वासतव म शरषटठ पतरवाली ह |

उवकशी का शाप तमह वरदान लसदध होगा | भतल पर वनवास क १३व वषक म अजञातवास करना पड़गा उस समय यह सहायक होगा | उसक बाद तम अपना परषसव कफर स परापत कर लोग | इनि क

कथनानसार अजञातवास क समय अजकन न ववराट क महल म नतकक वश म रहकर ववराट की

राजकमारी को सगीत और नसय ववदया लसखाई थी और इस परकार वह शाप स मकत हआ था | परसतरी क परतत मातभाव रखन का यह एक सदर उदाहरर ह | ऐसा ही एक उदाहरर वाकमीकककत

रामायर म भी आता ह | भगवान शरीराम क छोट भाई लकषमर को जब सीताजी क गहन पहचानन को कहा गया तो लकषमर जी बोल ह तात म तो सीता माता क परो क गहन और नपर ही पहचानता हा जो मझ उनकी चररवनदना क समय दलषटटगोचर होत रहत थ | कयर-कणडल आदद दसर

गहनो को म नही जानता | यह मातभाववाली दलषटट ही इस बात का एक बहत बड़ा कारर था कक

लकषमरजी इतन काल तक बरहमचयक का पालन ककय रह सक | तभी रावरपतर मघनाद को लजस इनि भी नही हरा सका था लकषमरजी हरा पाय | पववतर मातभाव दवारा वीयकरकषर का यह अनपम उदाहरर ह जो बरहमचयक की महतता भी परकट करता ह |

(अनिम)

सतसाहहतय पढ़ो

जसा सादहसय हम पढत ह वस ही ववचार मन क भीतर चलत रहत ह और उनहीस हमारा सारा वयवहार परभाववत होता ह | जो लोग कलससत ववकारी और कामोततजक सादहसय पढत ह व कभी ऊपर नही उठ सकत | उनका मन सदव काम-ववषय क चचतन म ही उलझा रहता ह और इसस व अपनी वीयकरकषा करन म असमथक रहत ह | गनद सादहसय कामकता का भाव पदा करत ह | सना गया ह कक पाशचासय जगत स परभाववत कछ नराधम चोरी-तछप गनदी कफकमो का परदशकन करत ह जो अपना और अपन सपकक म आनवालो का ववनाश करत ह | ऐस लोग मदहलाओ कोमल वय की कनयाओ तथा ककशोर एव यवावसथा म पहाच हए बचचो क साथ बड़ा अनयाय करत ह | बकय कफकम दखन-ददखानवाल महा अधम कामानध लोग मरन क बाद शकर ककर आदद योतनयो म जनम लकर अथवा गनदी नाललयो क कीड़ बनकर छटपटात हए दख भोगग ही | तनदोष कोमलवय क नवयवक उन दषटटो क लशकार न बन इसक ललए सरकार और समाज को सावधान रहना चादहए |

बालक दश की सपवतत ह | बरहमचयक क नाश स उनका ववनाश हो जाता ह | अतः नवयवको को मादक िवयो गनद सादहसयो व गनदी कफकमो क दवारा बबाकद होन स बचाया जाय | व ही तो राषटर क भावी करकधार ह | यवक-यवततयाा तजसवी हो बरहमचयक की मदहमा समझ इसक ललए हम सब लोगो का कततकवय ह कक सकलो-कालजो म ववदयाचथकयो तक बरहमचयक पर ललखा गया सादहसय पहाचाय | सरकार का यह नततक कततकवय ह कक वह लशकषा परदान कर बरहमचयक ववशय पर ववदयाचथकयो को

सावधान कर ताकक व तजसवी बन | लजतन भी महापरष हए ह उनक जीवन पर दलषटटपात करो तो उन पर ककसी-न-ककसी सससादहसय की छाप लमलगी | अमररका क परलसदध लखक इमसकन क गर थोरो बरहमचयक का पालन करत थ | उनहो न ललखा ह म परततददन गीता क पववतर जल स सनान करता हा | यदयवप इस पसतक को ललखनवाल दवताओ को अनक वषक वयतीत हो गय लककन इसक बराबर की कोई पसतक अभी तक नही तनकली ह |

योगशवरी माता गीता क ललए दसर एक ववदशी ववदवान इगलणड क एफ एच मोलम कहत ह बाइतरबल का मन यथाथक अभयास ककया ह | जो जञान गीता म ह वह ईसाई या यदही बाइतरबलो म नही ह | मझ यही आशचयक होता ह कक भारतीय नवयवक यहाा इगलणड तक पदाथक ववजञान सीखन कयो आत ह तनसदह पाशचासयो क परतत उनका मोह ही इसका कारर ह | उनक भोलभाल हदयो न तनदकय और अववनमर पलशचमवालसयो क ददल अभी पहचान नही ह | इसीललए उनकी लशकषा स लमलनवाल पदो की लालच स व उन सवाचथकयो क इनिजाल म फसत ह | अनयथा तो लजस दश या समाज को गलामी स छटना हो उसक ललए तो यह अधोगतत का ही मागक ह |

म ईसाई होत हए भी गीता क परतत इतना आदर-मान इसललए रखता हा कक लजन गढ परशनो का हल पाशचासय वजञातनक अभी तक नही कर पाय उनका हल इस गीता गरथ न शदध और सरल

रीतत स द ददया ह | गीता म ककतन ही सतर आलौककक उपदशो स भरपर दख इसी कारर गीताजी मर ललए साकषात योगशवरी माता बन गई ह | ववशव भर म सार धन स भी न लमल सक भारतवषक का यह ऐसा अमकय खजाना ह |

सपरलसदध पतरकार पॉल तरबरलनटन सनातन धमक की ऐसी धालमकक पसतक पढकर जब परभाववत हआ तभी वह दहनदसतान आया था और यहाा क रमर महवषक जस महासमाओ क दशकन करक धनय हआ था | दशभलकतपरक सादहसय पढकर ही चनिशखर आजाद भगतलसह वीर सावरकर जस रसन अपन जीवन को दशादहत म लगा पाय |

इसललय सससादहसय की तो लजतनी मदहमा गाई जाय उतनी कम ह | शरीयोगवलशषटठ

महारामायर उपतनषद दासबोध सखमतन वववकचड़ामखर शरी रामकषटर सादहसय सवामी रामतीथक क

परवचन आदद भारतीय ससकतत की ऐसी कई पसतक ह लजनह पढो और उनह अपन दतनक जीवन का अग बना लो | ऐसी-वसी ववकारी और कलससत पसतक-पलसतकाएा हो तो उनह उठाकर कचर ल ढर पर फ क दो या चकह म डालकर आग तापो मगर न तो सवय पढो और न दसर क हाथ लगन दो |

इस परकार क आरधयालसमक सदहसय-सवन म बरहमचयक मजबत करन की अथाह शलकत होती ह |

परातःकाल सनानादद क पशचात ददन क वयवसाय म लगन स पवक एव रातरतर को सोन स पवक कोई-न-कोई आरधयालसमक पसतक पढना चादहए | इसस व ही सतोगरी ववचार मन म घमत रहग जो पसतक म होग और हमारा मन ववकारगरसत होन स बचा रहगा |

कौपीन (लगोटी) पहनन का भी आगरह रखो | इसस अणडकोष सवसथ रहग और वीयकरकषर म मदद लमलगी |

वासना को भड़कान वाल नगन व अशलील पोसटरो एव चचतरो को दखन का आकषकर छोड़ो | अशलील शायरी और गान भी जहाा गाय जात हो वहाा न रको |

(अनिम)

वीययसचय क चितकार

वीयक क एक-एक अर म बहत महान शलकतयाा तछपी ह | इसीक दवारा शकराचायक महावीर कबीर

नानक जस महापरष धरती पर अवतीरक हए ह | बड़-बड़ वीर योदधा वजञातनक सादहसयकार- य सब वीयक की एक बाद म तछप थ hellip और अभी आग भी पदा होत रहग | इतन बहमकय वीयक का सदपयोग जो वयलकत नही कर पाता वह अपना पतन आप आमतरतरत करता ह |

वीय व भगयः | (शतपथ बराहिण )

वीयक ही तज ह आभा ह परकाश ह |

जीवन को ऊरधवकगामी बनान वाली ऐसी बहमकय वीयकशलकत को लजसन भी खोया उसको ककतनी हातन उठानी पड़ी यह कछ उदाहररो क दवारा हम समझ सकत ह |

(अनिम)

भीटि षपतािह और वीर अमभिनय महाभारत म बरहमचयक स सबचधत दो परसग आत ह एक भीषटम वपतामह का और दसरा वीर अलभमनय का | भीषटम वपतामह बाल बरहमचारी थ इसललय उनम अथाह सामथयक था | भगवान शरी कषटर का यह वरत था कक lsquoम यदध म शसतर नही उठाऊा गा |rsquo ककनत यह भीषटम की बरहमचयक शलकत का ही चमसकार था कक उनहोन शरी कषटर को अपना वरत भग करन क ललए मजबर कर ददया | उनहोन अजकन पर ऐसी बार वषाक की कक ददवयासतरो स ससलजजत अजकन जसा धरनधर धनधाकरी भी उसका परततकार

करन म असमथक हो गया लजसस उसकी रकषाथक भगवान शरी कषटर को रथ का पदहया लकर भीषटम की ओर दौड़ना पड़ा |

यह बरहमचयक का ही परताप था कक भीषटम मौत पर भी ववजय परापत कर सक | उनहोन ही यह सवय तय ककया कक उनह कब शरीर छोड़ना ह | अनयथा शरीर म परारो का दटक रहना असभव था परनत भीषटम की तरबना आजञा क मौत भी उनस परार कस छीन सकती थी भीषटम न सवचछा स शभ महतक म अपना शरीर छोड़ा |

दसरी ओर अलभमनय का परसग आता ह | महाभारत क यदध म अजकन का वीर पतर अलभमनय चिवयह का भदन करन क ललए अकला ही तनकल पड़ा था | भीम भी पीछ रह गया था | उसन जो शौयक ददखाया वह परशसनीय था | बड़-बड़ महारचथयो स तघर होन पर भी वह रथ का पदहया लकर

अकला यदध करता रहा परनत आखखर म मारा गया | उसका कारर यह था कक यदध म जान स पवक वह अपना बरहमचयक खलणडत कर चका था | वह उततरा क गभक म पाणडव वश का बीज डालकर आया था | मातर इतनी छोटी सी कमजोरी क कारर वह वपतामह भीषटम की तरह अपनी मसय का आप

माललक नही बन सका |

(अनिम)

पथवीराज चौहान कयो हारा

भारात म पथवीराज चौहान न मोहममद गोरी को सोलह बार हराया ककनत सतरहव यदध म वह खद हार गया और उस पकड़ ललया गया | गोरी न बाद म उसकी आाख लोह की गमक सलाखो स

फड़वा दी | अब यह एक बड़ा आशचयक ह कक सोलह बार जीतन वाला वीर योदधा हार कस गया

इततहास बताता ह कक लजस ददन वह हारा था उस ददन वह अपनी पसनी स अपनी कमर कसवाकर

अथाकत अपन वीयक का ससयानाश करक यदधभलम म आया था | यह ह वीयकशलकत क वयय का दषटपररराम |

रामायर महाकावय क पातर रामभकत हनमान क कई अदभत परािम तो हम सबन सन ही ह जस- आकाश म उड़ना समि लााघना रावर की भरी सभा म स छटकर लौटना लका जलाना यदध म रावर को मकका मार कर मतछकत कर दना सजीवनी बटी क ललय परा पहाड़ उठा लाना आदद | य सब बरहमचयक की शलकत का ही परताप था |

फरास का समराट नपोललयन कहा करता था असभव शबद ही मर शबदकोष म नही ह |

परनत वह भी हार गया | हारन क मल काररो म एक कारर यह भी था कक यदध स पवक ही उसन सतरी क आकषकर म अपन वीयक का कषय कर ददया था |

समसन भी शरवीरता क कषतर म बहत परलसदध था | बाइतरबल म उसका उकलख आता ह | वह

भी सतरी क मोहक आकषकर स नही बच सका और उसका भी पतन हो गया |

(अनिम)

सवािी राितीथय का अनभव

सवामी रामतीथक जब परोफसर थ तब उनहोन एक परयोग ककया और बाद म तनषटकषकरप म बताया कक जो ववदयाथी परीकषा क ददनो म या परीकषा क कछ ददन पहल ववषयो म फस जात ह व

परीकषा म परायः असफल हो जात ह चाह वषक भर अपनी ककषा म अचछ ववदयाथी कयो न रह हो | लजन ववदयाचथकयो का चचतत परीकषा क ददनो म एकागर और शदध रहा करता ह व ही सफल होत ह | काम ववकार को रोकना वसततः बड़ा दःसारधय ह |

यही कारर ह कक मन महाराज न यहा तक कह ददया ह

माा बहन और पतरी क साथ भी वयलकत को एकानत म नही बठना चादहय कयोकक मनषटय की इलनियाा बहत बलवान होती ह | व ववदवानो क मन को भी समान रप स अपन वग म खीच ल जाती ह |

(अनिम)

यवा वगय स दो बात

म यवक वगक स ववशषरप स दो बात कहना चाहता ह कयोकक यही वह वगक ह जो अपन दश क सदढ भववषटय का आधार ह | भारत का यही यवक वगक जो पहल दशोसथान एव आरधयालसमक

रहसयो की खोज म लगा रहता था वही अब कालमतनयो क रग-रप क पीछ पागल होकर अपना अमकय जीवन वयथक म खोता जा रहा ह | यह कामशलकत मनषटय क ललए अलभशाप नही बलकक

वरदान सवरप ह | यह जब यवक म खखलन लगती ह तो उस उस समय इतन उससाह स भर दती ह

कक वह ससार म सब कछ कर सकन की लसथतत म अपन को समथक अनभव करन लगता ह लककन आज क अचधकाश यवक दवयकसनो म फा सकर हसतमथन एव सवपनदोष क लशकार बन जात ह |

(अनिम)

हसतिथन का दटपररणाि

इन दवयकसनो स यवक अपनी वीयकधारर की शलकत खो बठता ह और वह तीवरता स नपसकता की ओर अगरसर होन लगता ह | उसकी आाख और चहरा तनसतज और कमजोर हो जाता ह |

थोड़ पररशरम स ही वह हााफन लगता ह उसकी आखो क आग अधरा छान लगता ह | अचधक कमजोरी स मचछाक भी आ जाती ह | उसकी सककपशलकत कमजोर हो जाती ह |

अिररका ि ककया गया परयोग

अमररका म एक ववजञानशाला म ३० ववदयाचथकयो को भखा रखा गया | इसस उतन समय क

ललय तो उनका काम ववकार दबा रहा परनत भोजन करन क बाद उनम कफर स काम-वासना जोर पकड़न लगी | लोह की लगोट पहन कर भी कछ लोग कामदमन की चषटटा करत पाए जात ह | उनको लसकडडया बाबा कहत ह | व लोह या पीतल की लगोट पहन कर उसम ताला लगा दत ह | कछ ऐस भी लोग हए ह लजनहोन इस काम-ववकार स छटटी पान क ललय अपनी जननलनिय ही काट दी और

बाद म बहत पछताय | उनह मालम नही था कक जननलनिय तो काम ववकार परकट होन का एक साधन ह | फल-पसतत तोड़न स पड़ नषटट नही होता | मागकदशकन क अभाव म लोग कसी-कसी भल करत ह ऐसा ही यह एक उदाहरर ह |

जो यवक १७ स २४ वषक की आय तक सयम रख लता ह उसका मानलसक बल एव बदचध बहत तजसवी हो जाती ह | जीवनभर उसका उससाह एव सफततक बनी रहती ह | जो यवक बीस वषक की आय परी होन स पवक ही अपन वीयक का नाश करना शर कर दता ह उसकी सफततक और होसला पसत हो जाता ह तथा सार जीवनभर क ललय उसकी बदचध कलणठत हो जाती ह | म चाहता हा कक यवावगक वीयक क सरकषर क कछ ठोस परयोग सीख ल | छोट-मोट परयोग उपवास भोजन म सधार आदद तो ठीक ह परनत व असथाई लाभ ही द पात ह | कई परयोगो स यह बात लसदध हई ह |

(अनिम)

कािशषकत का दिन या ऊधवयगिन

कामशलकत का दमन सही हल नही ह | सही हल ह इस शलकत को ऊरधवकमखी बनाकर शरीर म ही इसका उपयोग करक परम सख को परापत करना | यह यलकत लजसको आ गई उस सब आ गया

और लजस यह नही आई वह समाज म ककतना भी सततावान धनवान परततशठावान बन जाय अनत म मरन पर अनाथ ही रह जायगा अपन-आप को नही लमल पायगा | गौतम बदध यह यलकत जानत थ

तभी अगलीमाल जसा तनदकयी हसयारा भी सार दषटकसय छोड़कर उनक आग लभकषक बन गया | ऐस महापरषो म वह शलकत होती ह लजसक परयोग स साधक क ललए बरहमचयक की साधना एकदम सरल हो जाती ह | कफर काम-ववकार स लड़ना नही पड़ता ह बलकक जीवन म बरहमचयक सहज ही फललत होन लगता ह |

मन ऐस लोगो को दखा ह जो थोड़ा सा जप करत ह और बहत पज जात ह | और ऐस लोगो को भी दखा ह जो बहत जप-तप करत ह कफर भी समाज पर उनका कोई परभाव नही उनम आकषकर नही | जान-अनजान हो-न-हो जागत अथवा तनिावसथा म या अनय ककसी परकार स उनकी वीयक शलकत अवशय नषटट होती रहती ह |

(अनिम)

एक सा क का अनभव

एक साधक न यहाा उसका नाम नही लागा मझ सवय ही बताया सवामीजी यहाा आन स पवक म महीन म एक ददन भी पसनी क तरबना नही रह सकता था इतना अचधक काम-ववकार म फा सा हआ था परनत अब ६-६ महीन बीत जात ह पसनी क तरबना और काम-ववकार भी पहल की भाातत नही सताता |

द सर सा क का अनभव

दसर एक और सजजन यहाा आत ह उनकी पसनी की लशकायत मझ सनन को लमली ह | वह

सवय तो यहाा आती नही मगर लोगो स कहा ह कक ककसी परकार मर पतत को समझाय कक व आशरम म नही जाया कर |

वस तो आशरम म जान क ललए कोई कयो मना करगा मगर उसक इस परकार मना करन का कारर जो उसन लोगो को बताया और लोगो न मझ बताया वह इस परकार ह वह कहती ह इन बाबा न मर पतत पर न जान कया जाद ककया ह कक पहल तो व रात म मझ पास म सलात थ परनत अब मझस दर सोत ह | इसस तो व लसनमा म जात थ जस-तस दोसतो क साथ घमत रहत थ वही ठीक था | उस समय कम स कम मर कहन म तो चलत थ परनत अब तो

कसा दभाकगय ह मनषटय का वयलकत भल ही पतन क रासत चल उसक जीवन का भल ही ससयानाश होता रह परनत वह मर कहन म चल यही ससारी परम का ढााचा ह | इसम परम दो-पाच परततशत हो सकता ह बाकी ९५ परततशत तो मोह ही होता ह वासना ही होती ह | मगर मोह भी परम का चोला ओढकर कफरता रहता ह और हम पता नही चलता कक हम पतन की ओर जा रह ह या उसथान की ओर |

(अनिम)

योगी का सकलपबल

बरहमचयक उसथान का मागक ह | बाबाजी न कछ जाद-वाद नही ककया| कवल उनक दवारा उनकी यौचगक शलकत का सहारा उस वयलकत को लमला लजसस उसकी कामशलकत ऊरधवकगामी हो गई | इस कारर उसका मन ससारी काम सख स ऊपर उठ गया | जब असली रस लमल गया तो गदी नाली दवारा लमलन वाल रस की ओर कोई कयो ताकगा ऐसा कौन मखक होगा जो बरहमचयक का पववतर और

असली रस छोड़कर घखरत और पतनोनमख करन वाल ससारी कामसख की ओर दौड़गा

कया यह चितकार ह

सामानय लोगो क ललय तो यह मानो एक बहत बड़ा चमसकार ह परनत इसम चमसकार जसी कोई बात नही ह | जो महापरष योगमागक स पररचचत ह और अपनी आसममसती म मसत रहत ह

उनक ललय तो यह एक खल मातर ह | योग का भी अपना एक ववजञान ह जो सथल ववजञान स भी सकषम और अचधक परभावी होता ह | जो लोग ऐस ककसी योगी महापरष क सालननरधय का लाभ लत ह उनक ललय तो बरहमचयक का पालन सहज हो जाता ह | उनह अलग स कोई महनत नही करनी पड़ती |

(अनिम)

हसतिथन व सवपनदोि स कस बच

यदद कोई हसत मथन या सवपनदोष की समसया स गरसत ह और वह इस रोग स छटकारा पान को वसततः इचछक ह तो सबस पहल तो म यह कहागा कक अब वह यह चचता छोड़ द कक मझ

यह रोग ह और अब मरा कया होगा कया म कफर स सवासथय लाभ कर सका गा इस परकार क

तनराशावादी ववचारो को वह जड़मल स उखाड़ फ क |

सदव परसनन रहो

जो हो चका वह बीत गया | बीती सो बीती बीती ताही बबसार द आग की सध लय | एक तो रोग कफर उसका चचतन और भी रगर बना दता ह | इसललय पहला काम तो यह करो कक दीनता क

ववचारो को ततलाजलल दकर परसनन और परफलकलत रहना परारभ कर दो |

पीछ ककतना वीयकनाश हो चका ह उसकी चचता छोड़कर अब कस वीयकरकषर हो सक उसक ललय उपाय करन हत कमर कस लो |

धयान रह वीयकशलकत का दमन नही करना ह उस ऊरधवकगामी बनाना ह | वीयकशलकत का उपयोग हम ठीक ढग स नही कर पात | इसललय इस शलकत क ऊरधवकगमन क कछ परयोग हम समझ ल |

(अनिम)

वीयय का ऊधवयगिन कया ह

वीयक क ऊरधवकगमन का अथक यह नही ह कक वीयक सथल रप स ऊपर सहसरार की ओर जाता ह

| इस ववषय म कई लोग भरलमत ह | वीयक तो वही रहता ह मगर उस सचाललत करनवाली जो कामशलकत ह उसका ऊरधवकगमन होता ह | वीयक को ऊपर चढान की नाड़ी शरीर क भीतर नही ह |

इसललय शिार ऊपर नही जात बलकक हमार भीतर एक वदयततक चमबकीय शलकत होती ह जो नीच की ओर बहती ह तब शिार सकिय होत ह |

इसललय जब परष की दलशट भड़कील वसतरो पर पड़ती ह या उसका मन सतरी का चचतन करता ह

तब यही शलकत उसक चचतनमातर स नीच मलाधार कनि क नीच जो कामकनि ह उसको सकिय कर

वीयक को बाहर धकलती ह | वीयक सखललत होत ही उसक जीवन की उतनी कामशलकत वयथक म खचक हो जाती ह | योगी और तातरतरक लोग इस सकषम बात स पररचचत थ | सथल ववजञानवाल जीवशासतरी और डॉकटर लोग इस बात को ठीक स समझ नही पाय इसललय आधतनकतम औजार होत हए भी कई गभीर रोगो को व ठीक नही कर पात जबकक योगी क दलषटटपात मातर या आशीवाकद स ही रोग ठीक होन क चमसकार हम परायः दखा-सना करत ह |

आप बहत योगसाधना करक ऊरधवकरता योगी न भी बनो कफर भी वीयकरकषर क ललय इतना छोटा-सा परयोग तो कर ही सकत हो

(अनिम)

वीययरकषा का िहततवप णय परयोग

अपना जो lsquoकाम-ससथानrsquo ह वह जब सकिय होता ह तभी वीयक को बाहर धकलता ह | ककनत तनमन परयोग दवारा उसको सकिय होन स बचाना ह |

जयो ही ककसी सतरी क दशकन स या कामक ववचार स आपका रधयान अपनी जननलनिय की तरफ खखचन लग तभी आप सतकक हो जाओ | आप तरनत जननलनिय को भीतर पट की तरफ़ खीचो | जस पप का वपसटन खीचत ह उस परकार की किया मन को जननलनिय म कलनित करक करनी ह | योग की भाषा म इस योतनमिा कहत ह |

अब आाख बनद करो | कफर ऐसी भावना करो कक म अपन जननलनिय-ससथान स ऊपर लसर म लसथत सहसरार चि की तरफ दख रहा हा | लजधर हमारा मन लगता ह उधर ही यह शलकत बहन लगती ह | सहसरार की ओर ववतत लगान स जो शलकत मलाधार म सकिय होकर वीयक को सखललत

करनवाली थी वही शलकत ऊरधवकगामी बनकर आपको वीयकपतन स बचा लगी | लककन रधयान रह यदद आपका मन काम-ववकार का मजा लन म अटक गया तो आप सफल नही हो पायग | थोड़ सककप और वववक का सहारा ललया तो कछ ही ददनो क परयोग स महववपरक फायदा होन लगगा | आप सपषटट

महसस करग कक एक आाधी की तरह काम का आवग आया और इस परयोग स वह कछ ही कषरो म शात हो गया |

(अनिम)

द सरा परयोग

जब भी काम का वग उठ फफड़ो म भरी वाय को जोर स बाहर फ को | लजतना अचधक बाहर फ क सको उतना उततम | कफर नालभ और पट को भीतर की ओर खीचो | दो-तीन बार क परयोग स ही काम-ववकार शात हो जायगा और आप वीयकपतन स बच जाओग |

यह परयोग ददखता छोटा-सा ह मगर बड़ा महववपरक यौचगक परयोग ह | भीतर का शवास कामशलकत को नीच की ओर धकलता ह | उस जोर स और अचधक मातरा म बाहर फ कन स वह मलाधार चि म कामकनि को सकिय नही कर पायगा | कफर पट व नालभ को भीतर सकोचन स वहाा खाली जगह बन जाती ह | उस खाली जगह को भरन क ललय कामकनि क आसपास की सारी शलकत जो वीयकपतन म

सहयोगी बनती ह खखचकर नालभ की तरफ चली जाती ह और इस परकार आप वीयकपतन स बच जायग |

इस परयोग को करन म न कोई खचक ह न कोई ववशष सथान ढाढन की जररत ह | कही भी बठकर कर सकत ह | काम-ववकार न भी उठ तब भी यह परयोग करक आप अनपम लाभ उठा सकत ह | इसस जठरालगन परदीपत होती ह पट की बीमाररयाा लमटती ह जीवन तजसवी बनता ह और वीयकरकषर

सहज म होन लगता ह |

(अनिम)

वीययरकषक च णय

बहत कम खचक म आप यह चरक बना सकत ह | कछ सख आावलो स बीज अलग करक उनक तछलको को कटकर उसका चरक बना लो | आजकल बाजार म आावलो का तयार चरक भी लमलता ह |

लजतना चरक हो उसस दगनी मातरा म लमशरी का चरक उसम लमला दो | यह चरक उनक ललए भी दहतकर

ह लजनह सवपनदोष नही होता हो |

रोज रातरतर को सोन स आधा घटा पवक पानी क साथ एक चममच यह चरक ल ललया करो | यह

चरक वीयक को गाढा करता ह कबज दर करता ह वात-वपतत-कफ क दोष लमटाता ह और सयम को मजबत करता ह |

(अनिम)

गोद का परयोग

6 गराम खरी गोद रातरतर को पानी म लभगो दो | इस सबह खाली पट ल लो | इस परयोग क दौरान अगर भख कम लगती हो तो दोपहर को भोजन क पहल अदरक व नीब का रस लमलाकर लना चादहए |

तलसी एक अदभत औषचध

परनच डॉकटर ववकटर रसीन न कहा ह ldquoतलसी एक अदभत औषचध ह | तलसी पर ककय गय

परयोगो न यह लसदध कर ददया ह कक रकतचाप और पाचनततर क तनयमन म तथा मानलसक रोगो म तलसी असयत लाभकारी ह | इसस रकतकरो की वदचध होती ह | मलररया तथा अनय परकार क बखारो म तलसी असयत उपयोगी लसदध हई ह |

तलसी रोगो को तो दर करती ही ह इसक अततररकत बरहमचयक की रकषा करन एव यादशलकत बढान म भी अनपम सहायता करती ह | तलसीदल एक उसकषटट रसायन ह | यह तरतरदोषनाशक ह | रकतववकार

वाय खाासी कलम आदद की तनवारक ह तथा हदय क ललय बहत दहतकारी ह |

(अनिम)

बरहिचयय रकषा हत ितर

एक कटोरी दध म तनहारत हए इस मतर का इककीस बार जप कर | तदपशचात उस दध को पी ल बरहमचयक रकषा म सहायता लमलती ह | यह मतर सदव मन म धारर करन योगय ह

ॐ निो भगवत िहाबल पराकरिाय

िनोमभलाषित िनः सतभ कर कर सवाहा |

पादपषशचिोततानासन

षवध जमीन पर आसन तरबछाकर दोनो पर

सीध करक बठ जाओ | कफर

दोनो हाथो स परो क अगाठ पकड़कर झकत हए लसर को दोनो घटनो स लमलान का परयास करो | घटन जमीन पर सीध रह | परारभ म घटन

जमीन पर न दटक तो कोई हजक नही | सतत अभयास स यह आसन लसदध हो जायगा | यह आसन करन क 15 लमनट बाद एक-दो कचची लभणडी खानी चादहए | सवफल का सवन भी फायदा करता ह |

लाभ इस आसन स नाडड़यो की ववशष शदचध होकर हमारी कायककषमता बढती ह और शरीर की बीमाररयाा दर होती ह | बदहजमी कबज जस पट क सभी रोग सदी-जकाम कफ चगरना कमर का ददक दहचकी सफद कोढ पशाब की बीमाररयाा सवपनदोष वीयक-ववकार अपलनडकस साईदटका नलो की सजन पाणडरोग (पीललया) अतनिा दमा खटटी डकार जञानततओ की कमजोरी गभाकशय क रोग

मालसकधमक की अतनयलमतता व अनय तकलीफ नपसकता रकत-ववकार दठगनापन व अनय कई

परकार की बीमाररयाा यह आसन करन स दर होती ह |

परारभ म यह आसन आधा लमनट स शर करक परततददन थोड़ा बढात हए 15 लमनट तक कर सकत ह | पहल 2-3 ददन तकलीफ होती ह कफर सरल हो जाता ह |

इस आसन स शरीर का कद लमबा होता ह | यदद शरीर म मोटापन ह तो वह दर होता ह और यदद दबलापन ह तो वह दर होकर शरीर सडौल तनदरसत अवसथा म आ जाता ह | बरहमचयक पालनवालो क ललए यह आसन भगवान लशव का परसाद ह | इसका परचार पहल लशवजी न और बाद म जोगी गोरखनाथ न ककया था |

(अनिम)

पादागटठानासन

इसम शरीर का भार कवल पााव क अागठ पर आन स इस पादाागषटठानासन कहत ह वीयक की रकषा व ऊरधवकगमन हत महववपरक होन स सभी को ववशषतः बचचो व यवाओ को यह आसन अवशय करना चादहए

लाभः अखणड बरहमचयक की लसदचध वजरनाड़ी (वीयकनाड़ी) व मन पर तनयतरर तथा वीयकशलकत को ओज म रपातररत करन म उततम ह मलसतषटक सवसथ रहता ह व बदचध की लसथरता व परखरता शीघर परापत होती ह रोगी-नीरोगी सभी क ललए लाभपरद ह

रोगो ि लाभः सवपनदोष मधमह नपसकता व समसत वीयोदोषो म लाभपरद ह

षवध ः पजो क बल बठ जाय बाय पर की एड़ी लसवनी (गदा व जननलनिय क बीच का सथान) पर लगाय दोनो हाथो की उगललयाा जमीन पर रखकर दायाा पर बायी जघा पर रख सारा भार बाय पज पर (ववशषतः अागठ पर) सतललत करक हाथ कमर पर या नमसकार की मिा म रख परारमभ म कछ ददन आधार लकर कर सकत ह कमर सीधी व शरीर लसथर रह शवास सामानय दलषटट आग ककसी तरबद पर

एकागर व रधयान सतलन रखन म हो यही किया पर बदल कर भी कर

सियः परारभ म दोनो परो स आधा-एक लमनट दोनो परो को एक समान समय दकर

यथासभव बढा सकत ह

साव ानीः अततम लसथती म आन की शीघरता न कर िमशः अभयास बढाय इस ददन भर म दो-तीन बार कभी भी कर सकत ह ककनत भोजन क तरनत बाद न कर

बदध शषकतव यक परयोगः लाभः इसक तनयलमत अभयास स जञानतनत पषटट होत ह चोटी क सथान

क नीच गाय क खर क आकार वाला बदचधमडल ह लजस पर इस परयोग का ववशष परभाव पड़ता ह और बदचध ब धारराशलकत का ववकास होता ह

षवध ः सीध खड़ हो जाय हाथो की मटदठयाा बद करक हाथो को शरीर स सटाकर रख लसर पीछ की तरफ ल जाय दलषटट आसमान की ओर हो इस लसथतत म 25 बार गहरा शवास ल और छोड़ मल लसथती म आ जाय

ि ाशषकतव यक परयोगः

लाभः इसक तनयलमत अभयास स मधाशलकत बढती ह

षवध ः सीध खड़ हो जाय हाथो की मटदठयाा बद करक हाथो को शरीर स सटाकर रख

आाख बद करक लसर को नीच की तरफ इस तरफ झकाय कक ठोढी कठकप स लगी रह और कठकप पर हलका-सा दबाव पड़ इस लसथती म 25 बार गहरा शवास ल और

छोड़ मल लसथती म आ जाय

ववशषः शवास लत समय मन म ॐ का जप कर व छोड़त समय उसकी चगनती कर

रधयान द- परसयक परयोग सबह खाली पट 15 बार कर कफर धीर-धीर बढात हए 25 बार तक कर सकत ह

(अनिम)

हिार अनभव

िहापरि क दशयन का चितकार

ldquoपहल म कामतलपत म ही जीवन का आननद मानता था | मरी दो शाददयाा हई परनत दोनो पलसनयो क दहानत क कारर अब तीसरी शादी 17 वषक की लड़की स करन को तयार हो गया | शादी स पवक म परम पजय सवामी शरी लीलाशाहजी महारज का आशीवाकद लन डीसा आशरम म जा पहाचा |

आशरम म व तो नही लमल मगर जो महापरष लमल उनक दशकनमातर स न जान कया हआ कक मरा सारा भववषटय ही बदल गया | उनक योगयकत ववशाल नतरो म न जान कसा तज चमक रहा था कक म अचधक दर तक उनकी ओर दख नही सका और मरी नजर उनक चररो की ओर झक गई | मरी कामवासना ततरोदहत हो गई | घर पहाचत ही शादी स इनकार कर ददया | भाईयो न एक कमर म उस 17 वषक की लड़की क साथ मझ बनद कर ददया |

मन कामववकार को जगान क कई उपाय ककय परनत सब तनरथकक लसदध हआ hellip जस कामसख

की चाबी उन महापरष क पास ही रह गई हो एकानत कमर म आग और परोल जसा सयोग था कफर भी

मन तनशचय ककया कक अब म उनकी छतरछाया को नही छोड़ागा भल ककतना ही ववरोध सहन

करना पड़ | उन महापरष को मन अपना मागकदशकक बनाया | उनक सालननरधय म रहकर कछ यौचगक

कियाएा सीखी | उनहोन मझस ऐसी साधना करवाई कक लजसस शरीर की सारी परानी वयाचधयाा जस मोटापन दमा टीबी कबज और छोट-मोट कई रोग आदद तनवत हो गय |

उन महापरष का नाम ह परम पजय सत शरी आसारामजी बाप | उनहीक सालननरधय म म अपना जीवन धनय कर रहा हा | उनका जो अनपम उपकार मर ऊपर हआ ह उसका बदला तो म अपना समपरक लौककक वभव समपकर करक भी चकान म असमथक हा |rdquo

-महनत चदीराम ( भतपवक चदीराम कपालदास )

सत शरी आसारामजी आशरम साबरमतत अमदावाद |

मरी वासना उपासना म बदली

ldquoआशरम दवारा परकालशत ldquoयौवन सरकषाrdquo पसतक पढन स मरी दलषटट अमीदलषटट हो गई | पहल परसतरी को एव हम उमर की लड़ककयो को दखकर मर मन म वासना और कदलषटट का भाव पदा होता था लककन यह पसतक पढकर मझ जानन को लमला कक lsquoसतरी एक वासनापतत क की वसत नही ह परनत शदध परम

और शदध भावपवकक जीवनभर साथ रहनवाली एक शलकत ह |rsquo सचमच इस lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक को पढकर मर अनदर की वासना उपासना म बदल गयी ह |rdquo

-मकवारा रवीनि रततभाई

एम क जमोड हाईसकल भावनगर (गज)

(अनिम)

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगय क मलय एक अि लय भि ह

ldquoसवकपरथम म पजय बाप का एव शरी योग वदानत सवा सलमतत का आभार परकट करता हा |

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगक क ललय अमकय भट ह | यह पसतक यवानो क ललय सही ददशा ददखानवाली ह |

आज क यग म यवानो क ललय वीयकरकषर अतत कदठन ह | परनत इस पसतक को पढन क बाद

ऐसा लगता ह कक वीयकरकषर करना सरल ह | lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक आज क यवा वगक को सही यवान

बनन की परररा दती ह | इस पसतक म मन lsquoअनभव-अमतrsquo नामक पाठ पढा | उसक बाद ऐसा लगा कक सत दशकन करन स वीयकरकषर की परररा लमलती ह | यह बात तनतात ससय ह | म हररजन जातत का हा | पहल मास मछली लहसन पयाज आदद सब खाता था लककन lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक पढन क बाद मझ मासाहार स सखत नफरत हो गई ह | उसक बाद मन इस पसतक को दो-तीन बार पढा ह |

अब म मास नही खा सकता हा | मझ मास स नफरत सी हो गई ह | इस पसतक को पढन स मर मन पर काफी परभाव पड़ा ह | यह पसतक मनषटय क जीवन को समदध बनानवाली ह और वीयकरकषर की शलकत परदान करन वाली ह |

यह पसतक आज क यवा वगक क ललय एक अमकय भट ह | आज क यवान जो कक 16 वषक स 17

वषक की उमर तक ही वीयकशलकत का वयय कर दत ह और दीन-हीन कषीरसककप कषीरजीवन होकर अपन ललए व औरो क ललए भी खब दःखद हो जात ह उनक ललए यह पसतक सचमच परररादायक ह

| वीयक ही शरीर का तज ह शलकत ह लजस आज का यवा वगक नषटट कर दता ह | उसक ललए जीवन म ववकास करन का उततम मागक तथा ददगदशकक यह lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक ह | तमाम यवक-यवततयो को यह पसतक पजय बाप की आजञानसार पााच बार अवशय पढनी चादहए | इसस बहत लाभ होता ह |rdquo

-राठौड तनलश ददनशभाई

(अनिम)

lsquoयौवन सरकषाrsquo पसतक नही अषपत एक मशकषा गरनथ ह

ldquoयह lsquoयौवन सरकषाrsquo एक पसतक नही अवपत एक लशकषा गरनथ ह लजसस हम ववदयाचथकयो को सयमी जीवन जीन की परररा लमलती ह | सचमच इस अनमोल गरनथ को पढकर एक अदभत परररा तथा उससाह लमलता ह | मन इस पसतक म कई ऐसी बात पढी जो शायद ही कोई हम बालको को बता व समझा सक | ऐसी लशकषा मझ आज तक ककसी दसरी पसतक स नही लमली | म इस पसतक को जनसाधारर तक पहाचान वालो को परराम करता हा तथा उन महापरष महामानव को शत-शत परराम करता हा लजनकी परररा तथा आशीवाकद स इस पसतक की रचना हई |rdquo

हरपरीत लसह अवतार लसह

ककषा-7 राजकीय हाईसकल सकटर-24 चणडीगढ

बरहिचयय ही जीवन ह

बरहमचयक क तरबना जगत म नही ककसीन यश पाया |

बरहमचयक स परशराम न इककीस बार धररी जीती |

बरहमचयक स वाकमीकी न रच दी रामायर नीकी |

बरहमचयक क तरबना जगत म ककसन जीवन रस पाया

बरहमचयक स रामचनि न सागर-पल बनवाया था |

बरहमचयक स लकषमरजी न मघनाद मरवाया था |

बरहमचयक क तरबना जगत म सब ही को परवश पाया |

बरहमचयक स महावीर न सारी लका जलाई थी |

बरहमचयक स अगदजी न अपनी पज जमाई थी |

बरहमचयक क तरबना जगत म सबन ही अपयश पाया |

बरहमचयक स आकहा-उदल न बावन ककल चगराए थ |

पथवीराज ददकलीशवर को भी रर म मार भगाए थ |

बरहमचयक क तरबना जगत म कवल ववष ही ववष पाया |

बरहमचयक स भीषटम वपतामह शरशया पर सोय थ |

बरहमचारी वर लशवा वीर स यवनो क दल रोय थ |

बरहमचयक क रस क भीतर हमन तो षटरस पाया |

बरहमचयक स राममतत क न छाती पर पसथर तोड़ा |

लोह की जजीर तोड़ दी रोका मोटर का जोड़ा |

बरहमचयक ह सरस जगत म बाकी को करकश पाया |

(अनिम)

शासतरवचन

राजा जनक शकदवजी स बोल

ldquoबाकयावसथा म ववदयाथी को तपसया गर की सवा बरहमचयक का पालन एव वदारधययन करना चादहए |rdquo

तपसा गरवततया च बरहिचयण वा षवभो |

- िहाभारत ि िोकष िय पवय

सकलपाजजायत कािः सवयिानो षवव यत |

यदा पराजञो षवरित तदा सदयः परणशयतत ||

ldquoकाम सककप स उसपनन होता ह | उसका सवन ककया जाय तो बढता ह और जब बदचधमान परष

उसस ववरकत हो जाता ह तब वह काम तसकाल नषटट हो जाता ह |rdquo

-िहाभारत ि आपद िय पवय

ldquoराजन (यचधलषटठर) जो मनषटय आजनम परक बरहमचारी रहता ह उसक ललय इस ससार म कोई भी ऐसा पदाथक नही ह जो वह परापत न कर सक | एक मनषटय चारो वदो को जाननवाला हो और दसरा परक बरहमचारी हो तो इन दोनो म बरहमचारी ही शरषटठ ह |rdquo

-भीटि षपतािह

ldquoमथन सबधी य परवततयाा सवकपरथम तो तरगो की भाातत ही परतीत होती ह परनत आग चलकर य

कसगतत क कारर एक ववशाल समि का रप धारर कर लती ह | कामसबधी वाताकलाप कभी शरवर न कर |rdquo

-नारदजी

ldquoजब कभी भी आपक मन म अशदध ववचारो क साथ ककसी सतरी क सवरप की ककपना उठ तो आप

lsquoॐ दगाय दवय निःrsquo मतर का बार-बार उचचारर कर और मानलसक परराम कर |rdquo

-मशवानदजी

ldquoजो ववदयाथी बरहमचयक क दवारा भगवान क लोक को परापत कर लत ह कफर उनक ललय ही वह सवगक ह | व ककसी भी लोक म कयो न हो मकत ह |rdquo

-छानदोगय उपतनिद

ldquoबदचधमान मनषटय को चादहए कक वह वववाह न कर | वववादहत जीवन को एक परकार का दहकत हए

अगारो स भरा हआ खडडा समझ | सयोग या ससगक स इलनियजतनत जञान की उसपवतत होती ह

इलनिजतनत जञान स तससबधी सख को परापत करन की अलभलाषा दढ होती ह ससगक स दर रहन पर जीवासमा सब परकार क पापमय जीवन स मकत रहता ह |rdquo

-िहातिा बद

भगवशी ॠवष जनकवश क राजकमार स कहत ह

िनोऽपरततक लातन परतय चह च वाछमस |

भ ताना परततक लभयो तनवतयसव यतषनरयः ||

ldquoयदद तम इस लोक और परलोक म अपन मन क अनकल वसतएा पाना चाहत हो तो अपनी इलनियो को सयम म रखकर समसत पराखरयो क परततकल आचररो स दर हट जाओ |rdquo

ndashिहाभारत ि िोकष िय पवय 3094

(अनिम)

भसिासर करो स बचो काम िोध लोभ मोह अहकार- य सब ववकार आसमानदरपी धन को हर लनवाल शतर ह |

उनम भी िोध सबस अचधक हातनकतताक ह | घर म चोरी हो जाए तो कछ-न-कछ सामान बच जाता ह

लककन घर म यदद आग लग जाय तो सब भसमीभत हो जाता ह | भसम क लसवा कछ नही बचता |

इसी परकार हमार अतःकरर म लोभ मोहरपी चोर आय तो कछ पणय कषीर होत ह लककन िोधरपी आग लग तो हमारा तमाम जप तप पणयरपी धन भसम हो जाता ह | अतः सावधान होकर

िोधरपी भसमासर स बचो | िोध का अलभनय करक फफकारना ठीक ह लककन िोधालगन तमहार

अतःकरर को जलान न लग इसका रधयान रखो |

25 लमनट तक चबा-चबाकर भोजन करो | सालववक आहर लो | लहसन लाल लमचक और तली हई चीजो स दर रहो | िोध आव तब हाथ की अागललयो क नाखन हाथ की गददी पर दब इस परकार

मठठी बद करो |

एक महीन तक ककय हए जप-तप स चचतत की जो योगयता बनती ह वह एक बार िोध करन स नषटट हो जाती ह | अतः मर पयार भया सावधान रहो | अमकय मानव दह ऐस ही वयथक न खो दना |

दस गराम शहद एक चगलास पानी तलसी क पतत और सतकपा चरक लमलाकर बनाया हआ

शबकत यदद हररोज सबह म ललया जाए तो चचतत की परसननता बढती ह | चरक और तलसी नही लमल तो कवल शहद ही लाभदायक ह | डायतरबदटज क रोचगयो को शहद नही लना चादहए |

हरर ॐ

बरहिाचयय-रकषा का ितर

ॐ निो भगवत िहाबल पराकरिाय िनोमभलाित िनः सतभ कर कर सवाहा

रोज दध म तनहार कर 21 बार इस मतर का जप कर और दध पी ल इसस बरहमचयक की रकषा होती ह सवभाव म आसमसात कर लन जसा यह तनयम ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐ

(अनिम)

पावन उदगार

पावन उदगार

सख-शातत व सवासथय का परसाद बािन क मलए ही बाप जी का अवतरण हआ ह

मर असयनत वपरय लमतर शरी आसाराम जी बाप स म पवककाल स हदयपवकक पररचचत हा ससार म सखी रहन क ललए समसत जनता को शारीररक सवासथय और मानलसक शातत दोनो आवशयक ह सख-शातत व सवासथय का परसाद बााटन क ललए ही इन सत का महापरष का अवतरर हआ ह आज क सतो-महापरषो म परमख मर वपरय लमतर बापजी हमार भारत दश क दहनद जनता क आम जनता क ववशववालसयो क उदधार क ललए रात-ददन घम-घमकर सससग

भजन कीतकन आदद दवारा सभी ववषयो पर मागकदशकन द रह ह अभी म गल म थोड़ी तकलीफ ह तो उनहोन तरनत मझ दवा बताई इस परकार सबक सवासथय और मानलसक शातत दोनो क ललए उनका जीवन समवपकत ह व धनभागी ह जो लोगो को बापजी क सससग व सालननरधय म लान का दवी कायक करत ह

काची कािकोहि पीठ क शकराचायय जगदगर शरी जयनर सरसवती जी िहाराज

(अनिम) पावन उदगार

हर वयषकत जो तनराश ह उस आसाराि जी की जररत ह

शरदधय-वदनीय लजनक दशकन स कोदट-कोदट जनो क आसमा को शातत लमली ह व हदय उननत हआ ह ऐस महामनीवष सत शरी आसारामजी क दशकन करक आज म कताथक हआ लजस महापरष न लजस महामानव न लजस ददवय चतना स सपनन परष न इस धरा पर धमक ससकतत अरधयासम और भारत की उदातत परपराओ को परी ऊजाक (शलकत) स सथावपत ककया ह

उस महापरष क म दशकन न करा ऐसा तो हो ही नही सकता इसललए म सवय यहाा आकर अपन-आपको धनय और कताथक महसस कर रहा हा मर परतत इनका जो सनह ह यह तो मझ पर इनका आशीवाकद ह और बड़ो का सनह तो हमशा रहता ही ह छोटो क परतत यहाा पर म आशीवाकद लन क ललए आया हा

म समझता हा कक जीवन म लगभग हर वयलकत तनराश ह और उसको आसारामजी की जररत ह दश यदद ऊा चा उठगा समदध बनगा ववकलसत होगा तो अपनी पराचीन परपराओ नततक मकयो और आदशो स ही होगा और वह आदशो नततक मकयो पराचीन सभयता धमक-दशकन

और ससकतत का जो जागरर ह वह आशाओ क राम बनन स ही होगा इसललए शरदधय वदनीय महाराज शरी आसाराम जी की सारी दतनया को जररत ह बाप जी क चररो म पराथकना करत हए कक आप ददशा दत रहना राह ददखात रहना हम भी आपक पीछ-पीछ चलत रहग और एक ददन मलजल लमलगी ही पनः आपक चररो म वदन

परमसद योगाचायय शरी रािदव जी िहाराज

(अनिम) पावन उदगार

बाप तनतय नवीन तनतय व यनीय आनदसवरप ह परम पजय बाप क दशकन करक म पहल भी आ चका हा दशकन करक हदन-हदन नव-नव

परततकषण व यनाि अथाकत बाप तनसय नवीन तनसय वधकनीय आनदसवरप ह ऐसा अनभव हो रहा ह और यह सवाभाववक ही ह पजय बाप जी को परराम

सपरमसद कथाकार सत शरी िोरारी बाप

(अनिम) पावन उदगार

पणय सचय व ईशवर की कपा का फलः बरहिजञान का हदवय सतसग

ईशवर की कपा होती ह तो मनषटय जनम लमलता ह ईशवर की अततशय कपा होती ह तो ममकषसव का उदय होता ह परनत जब अपन पवकजनमो क पणय इकटठ होत ह और ईशवर की परम कपा होती ह तब ऐसा बरहमजञान का ददवय सससग सनन को लमलता ह जसा पजयपाद बापजी क शरीमख स आपको यहाा सनन को लमल रहा ह

परमसद कथाकार सशरी कनकशवरी दवी

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी का साषननधय गगा क पावन परवाह जसा ह कल-कल करती इस भागीरथी की धवल धारा क ककनार पर पजय बाप जी क सालननरधय

म बठकर म बड़ा ही आहलाददत व परमददत हा आनददत हा रोमााचचत हा

गगा भारत की सषमना नाड़ी ह गगा भारत की सजीवनी ह शरी ववषटरजी क चररो स तनकलकर बरहमाजी क कमणडल व जटाधर क माथ पर शोभायमान गगा तरयोगलसदचधकारक ह ववषटरजी क चररो स तनकली गगा भलकतयोग की परतीतत कराती ह और लशवजी क मसतक पर लसथत गगा जञानयोग की उचचतर भलमका पर आरढ होन की खबर दती ह मझ ऐसा लग रहा ह कक आज बापजी क परवचनो को सनकर म गगा म गोता लगा रहा हा कयोकक उनका परवचन

उनका सालननरधय गगा क पावन परवाह जसा ह

व अलमसत फकीर ह व बड़ सरल और सहज ह व लजतन ही ऊपर स सरल ह उतन ही अतर म गढ ह उनम दहमालय जसी उचचता पववतरता शरषटठता ह और सागरतल जसी गमभीरता ह व राषटर की अमकय धरोहर ह उनह दखकर ऋवष-परमपरा का बोध होता ह गौतम कराद जलमतन कवपल दाद मीरा कबीर रदास आदद सब कभी-कभी उनम ददखत ह

र भाई कोई सतगर सत कहाव जो ननन अलख लखाव

रती उखाड़ आकाश उखाड़ अ र िड़इया ाव

श नय मशखर क पार मशला पर आसन अचल जिाव

र भाई कोई सतगर सत कहाव

ऐस पावन सालननरधय म हम बठ ह जो बड़ा दलकभ व सहज योगसवरप ह ऐस महापरष क ललए पलकतयाा याद आ रही ह- ति चलो तो चल रती चल अबर चल दतनया

ऐस महापरष चलत ह तो उनक ललए सयक चि तार गरह नकषतर आदद सब अनकल हो जात ह ऐस इलनियातीत गरातीत भावातीत शबदातीत और सब अवसथाओ स पर ककनही महापरष क शरीचररो म जब बठत ह तो भागवत कहता हः सा ना दशयन लोक सवयमसदध कर परि साधओ क दशकनमातर स ववचार ववभतत ववदवता शलकत सहजता तनववकषयता परसननता लसदचधयाा व आसमानद की परालपत होती ह

दश क महान सत यहाा सहज ही आत ह भारत क सभी शकराचायक भी आत ह मर मन म भी ववचार आया कक जहाा सब आत ह वहाा जाना चादहए कयोकक यही वह ठौर-दठकाना ह जहाा मन का अलभमान लमटाया जा सकता ह ऐस महापरषो क दशकन स कवल आनद व मसती ही नही बलकक वह सब कछ लमल जाता ह जो अलभलवषत ह आकाकषकषत ह लकषकषत ह यहाा म कररा कमकठता वववक-वरागय व जञान क दशकन कर रहा हा वरागय और भलकत क रकषर पोषर व सवधकन क ललए यह सपतऋवषयो का उततम जञान जाना जाता ह आज गगा अगर कफर स साकार ददख रही ह तो व बाप जी क ववचार व वारी म ददख रही ह अलमसतता सहजता उचचता शरषटठता पववतरता तीथक-सी शचचता लशश-सी सरलता तररो-सा जोश वदधो-सा गाभीयक और ऋवषयो जसा जञानावबोध मझ जहाा हो रहा ह वह पडाल ह इस आनदगर कहा या परमनगर कररा का सागर कहा या ववचारो का समनदर लककन इतना जरर कहागा कक मर मन का कोना-कोना आहलाददत हो रहा ह आपलोग बड़भागी ह जो ऐस महापरष क शरीचररो म बठ ह जहाा भागय का ददवय वयलकतसव का तनमाकर होता ह जीवन की कतकसयता जहाा परापत हो सकती ह वह यही दर ह

मिल ति मिली िषजल मिला िकसद और िददा भी

न मिल ति तो रह गया िददा िकसद और िषजल भी

आपका यह भावराजय व परमराजय दखकर म चककत भी हा और आनद का भी अनभव कर रहा हा मझ लगता ह कक बाप जी सबक आसमसयक ह आपक परतत मरा ववशवास व अटट तनषटठा बढ इस हत मरा नमन सवीकार कर

सवािी अव शानदजी िहाराज हररदवार

(अनिम) पावन उदगार

भगवननाि का जाद सतशरी आसारामजी बाप क यहाा सबस अचधक जनता आती ह कारर कक इनक पास भगवननाम-सकीतकन का जाद सरल वयवहार परमरसभरी वारी तथा जीवन क मल परशनो का उततर भी ह

षवरकतमशरोिरण शरी वािदवजी िहाराज

सवामी आसारामजी क पास भरातत तोड़न की दलषटट लमलती ह

यगपरि सवािी शरी परिानदजी िहाराज

आसारामजी महाराज ऐसी शलकत क धनी ह कक दलषटटपातमातर स लाखो लोगो क जञानचकष खोलन का मागक परशसत करत ह

लोकलाडल सवािी शरी बरहिानदधगरीजी िहाराज

हमार पजय आसारामजी बाप बहत ही कम समय म ससकतत का जतन और उसथान करन वाल सत ह आचायय शरी धगरीराज ककशोरजी षवशवहहनद पररिद

(अनिम) पावन उदगार

प जयशरी क सतसग ि पर ानितरी शरी अिल बबहारी वाजपयीजी क उदगार

पजय बापजी क भलकतरस म डब हए शरोता भाई-बहनो म यहाा पर पजय बापजी का अलभनदन करन आया हा उनका आशीवकचन सनन आया हा भाषर दन य बकबक करन नही आया हा बकबक तो हम करत रहत ह बाप जी का जसा परवचन ह कथा-अमत ह उस

तक पहाचन क ललए बड़ा पररशरम करना पड़ता ह मन पहल उनक दशकन पानीपत म ककय थ वहाा पर रात को पानीपत म पणय परवचन समापत होत ही बापजी कटीर म जा रह थ तब उनहोन मझ बलाया म भी उनक दशकन और आशीवाकद क ललए लालातयत था सत-महासमाओ क दशकन तभी होत ह उनका सालननरधय तभी लमलता ह जब कोई पणय जागत होता ह

इस जनम म मन कोई पणय ककया हो इसका मर पास कोई दहसाब तो नही ह ककत जरर यह पवक जनम क पणयो का फल ह जो बाप जी क दशकन हए उस ददन बापजी न जो कहा वह अभी तक मर हदय-पटल पर अककत ह दशभर की पररिमा करत हए जन-जन क मन म अचछ ससकार जगाना यह एक ऐसा परम राषटरीय कतकवय ह लजसन हमार दश को आज तक जीववत रखा ह और इसक बल पर हम उजजवल भववषटय का सपना दख रह ह उस सपन को साकार करन की शलकत-भलकत एकतर कर रह ह

पजय बापजी सार दश म भरमर करक जागरर का शखनाद कर रह ह सवकधमक-समभाव की लशकषा द रह ह ससकार द रह ह तथा अचछ और बर म भद करना लसखा रह ह

हमारी जो पराचीन धरोहर थी और हम लजस लगभग भलन का पाप कर बठ थ बाप जी हमारी आाखो म जञान का अजन लगाकर उसको कफर स हमार सामन रख रह ह बापजी न कहा कक ईशवर की कपा स कर-कर म वयापत एक महान शलकत क परभाव स जो कछ घदटत होता ह उसकी छानबीन और उस पर अनसधान करना चादहए

पजय बापजी न कहा कक जीवन क वयापार म स थोड़ा समय तनकाल कर सससग म आना चादहए पजय बापजी उजजन म थ तब मरी जान की बहत इचछा थी लककन कहत ह न

कक दान-दान पर खान वाल की मोहर होती ह वस ही सत-दशकन क ललए भी कोई महतक होता ह आज यह महतक आ गया ह यह मरा कषतर ह पजय बाप जी न चनाव जीतन का तरीका भी बता ददया ह

आज दश की दशा ठीक नही ह बाप जी का परवचन सनकर बड़ा बल लमला ह हाल म हए लोकसभा अचधवशन क कारर थोड़ी-बहत तनराशा हई थी ककनत रात को लखनऊ म पणय परवचन सनत ही वह तनराशा भी आज दर हो गयी बाप जी न मानव जीवन क चरम लकषय मलकत-शलकत की परालपत क ललए परषाथक चतषटटय भलकत क ललए समपकर की भावना तथा जञान

भलकत और कमक तीनो का उकलख ककया ह भलकत म अहकार का कोई सथान नही ह जञान अलभमान पदा करता ह भलकत म परक समपकर होता ह 13 ददन क शासनकाल क बाद मन कहाः मरा जो कछ ह तरा ह यह तो बाप जी की कपा ह कक शरोता को वकता बना ददया और वकता को नीच स ऊपर चढा ददया जहाा तक ऊपर चढाया ह वहाा तक ऊपर बना रहा इसकी चचता भी बाप जी को करनी पड़गी

राजनीतत की राह बड़ी रपटीली ह जब नता चगरता ह तो यह नही कहता कक म चगर गया बलकक कहता हः हर हर गग बाप जी का परवचन सनकर बड़ा आनद आया म लोकसभा

का सदसय होन क नात अपनी ओर स एव लखनऊ की जनता की ओर स बाप जी क चररो म ववनमर होकर नमन करना चाहता हा

उनका आशीवाकद हम लमलता रह उनक आशीवाकद स परररा पाकर बल परापत करक हम कतकवय क पथ पर तनरनतर चलत हए परम वभव को परापत कर यही परभ स पराथकना ह

शरी अिल बबहारी वाजपयी पर ानितरी भारत सरकार

परि प जय बाप सत शरी आसारािजी बाप क कपा-परसाद स पररपलाषवत हदयो क उदगार

(अनिम) पावन उदगार

प बाप ः राटरसख क सव यक

पजय बाप दवारा ददया जान वाला नततकता का सदश दश क कोन-कोन म लजतना अचधक परसाररत होगा लजतना अचधक बढगा उतनी ही मातरा म राषटरसख का सवधकन होगा राषटर की परगतत होगी जीवन क हर कषतर म इस परकार क सदश की जररत ह

(शरी लालकटण आडवाणी उपपर ानितरी एव कनरीय गहितरी भारत सरकार)

(अनिम) पावन उदगार

राटर उनका ऋणी ह भारत क भतपवक परधानमतरी शरी चनिशखर ददकली क सवरक जयनती पाकक म 25 जलाई

1999 को बाप जी की अमतवारी का रसासवादन करन क पशचात बोलः

आज पजय बाप जी की ददवय वारी का लाभ लकर म धनय हो गया सतो की वारी न हर यग म नया सदश ददया ह नयी परररा जगायी ह कलह वविोह और दवष स गरसत वतकमान वातावरर म बाप लजस तरह ससय कररा और सवदनशीलता क सदश का परसार कर रह ह इसक ललए राषटर उनका ऋरी ह (शरी चनरशखर भ तप वय पर ानितरी भारत सरकार)

(अनिम) पावन उदगार

गरीबो व षपछड़ो को ऊपर उठान क कायय चाल रह गरीबो और वपछड़ो को ऊपर उठान का कायक आशरम दवारा चलाय जा रह ह मझ

परसननता ह मानव-ककयार क ललए ववशषतः परम व भाईचार क सदश क मारधयम स ककय जा रह ववलभनन आरधयालसमक एव मानवीय परयास समाज की उननतत क ललए सराहनीय ह

डॉ एपीजअबदल कलाि राटरपतत भारत गणततर

(अनिम) पावन उदगार

सराहनीय परयासो की सफलता क मलए ब ाई मझ यह जानकर बड़ी परसननता हई ह कक सत शरी आसारामजी आशरम नयास जन-जन

म शातत अदहसा और भरातसव का सदश पहाचान क ललए दश भर म सससग का आयोजन कर रहा ह उसक सराहनीय परयासो की सफलता क ललए म बधाई दता हा

शरी क आर नारायणन ततकालीन राटरपतत भारत गणततर नई हदलली

(अनिम) पावन उदगार

आपन ददवय जञान का परकाशपज परसफदटत ककया ह

आरधयालसमक चतना जागत और ववकलसत करन हत भारतीय एव वलशवक समाज म ददवय जञान का जो परकाशपज आपन परसफदटत ककया ह सपरक मानवता उसस आलोककत ह मढता जड़ता दवदव और तरतरतापो स गरसत इस समाज म वयापत अनासथा तथा नालसतकता का ततलमर समापत कर आसथा सयम सतोष और समाधान का जो आलोक आपन तरबखरा ह सपरक

समाज उसक ललए कतजञ ह शरी किलनाथ वारणजय एव उदयोग ितरी भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

आप सिाज की सवागीण उननतत कर रह ह आज क भागदौड़ भर सपधाकसमक यग म लपतपराय-सी हो रही आलसमक शातत का आपशरी

मानवमातर को सहज म अनभव करा रह ह आप आरधयालसमक जञान दवारा समाज की सवाागीर उननतत कर रह ह व उसम धालमकक एव नततक आसथा को सदढ कर रह ह

शरी कषपल मसबबल षवजञान व परौदयोधगकी तथा िहासागर षवकास राजयितरी भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

योग व उचच ससकार मशकषा हत भारतविय आपका धचर-आभारी रहगा

दश ववदश म भारतीय ससकतत की जञानगगाधारा बचच-बचच क ददल-ददमाग म बाप जी क तनदश पर पररचाललत होना शभकर ह ववदयाचथकयो म ससकार लसचन दवारा हमारी ससकतत और नततक लशकषा सदढ बन जायगी दश को ससकाररत बनान क ललए चलाय जान वाल योग व उचच ससकार लशकषा कायकिम हत भारतवषक आप जस महासमाओ का चचरआभारी रहगा

शरी चनरशखर साह गरािीण षवकास राजयिनतरी भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

आपन जो कहा ह हि उसका पालन करग

आज तक कवल सना था कक तरा साई तझि ह लककन आज पजय बाप जी क सससग सनकर आज लगा - िरा साई िझि ह बापजी आपको दखकर ही शलकत आ गयी

आपको सनकर भलकत परकट हो गयी और आपक दशकन और आशीवाकद स मलकत अब सतनलशचत हो गयी पराथकना करता हा कक यही बस जाओ हम बार-बार आपक दशकन करत रह और भलकत

शलकत परापत करत हए मलकत की ओर बढत रह अब हरदय स कभी तनकल न पाओग बाप जी जो भलकत रस की सररता और जञान की गगा आपन बहायी ह वह मरधय परदश वालसयो को हमशा परररा दती रहगी हम तो भकत ह लशषटय ह आपन जो कछ बात कही ह हम उनका पालन करग हम ववशषरप स रधयान रखग कक आपन जो आजञा की ह नीम पीपल आावला जगह-जगह लग और तलसी मया का पौधा हर घर म लहराय उस आजञा का पालन हो कफर मरधय-परदश नदनवन की तरह महकगा

तीन चीज आपस माागता हा ndash सत बदचध सत मागक और सामथयक दना ताकक जनता की सचार रप स सवा कर सका शरी मशवराजमसह चौहान िखयितरी िधयपरदश

(अनिम) पावन उदगार

जब गर क साकषात दशयन हो गय ह तो कछ बदलाव जरर आयगा

राजमाता की वजह स महाराज बापजी स हमारा बहत पराना ररशता ह आज रामनवमी क ददन म तो मानती हा कक म तो धनय हो गयी कयोकक सबह स लकर दशकन हो रह ह महाराज आपका आशीवाकद बना रह कयोकक म राज करन क ललए नही आयी धमक और कमक को एक साथ जोड़कर म सवा करन क ललए आयी हा और वह म करती रहागी आप आत रहोग आशीवाकद दत रहोग तो हमम ऊजाक भी पदा होगी आप रासता बतात रहो और इस राजयरपी पररवार की सवा करन की शलकत दत रहो

म माफी चाहती हा कक आपक चररो म इतनी दर स पहाची लककन म मानती हा कक जब गर क साकषात दशकन हो गय ह तो कछ बदलाव जरर आयगा राजय की समसयाएा हल होगी व हम लोग जनसवा क काम कर सक ग वसन राराज मसध या िखयितरी राजसथान

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी सवयतर ससकार रोहर को पहचान क मलए अथक तपशचयाय कर रह ह

पजय बाप जी आप दश और दतनया ndash सवकतर ऋवष-परमपरा की ससकार-धरोहर को पहाचान क ललए अथक तपशचयाक कर रह ह अनक यगो स चलत आय मानव-ककयार क इस तपशचयाक-यजञ म आप अपन पल-पल की आहतत दत रह ह उसम स जो ससकार की ददवय जयोतत परकट हई ह उसक परकाश म म और जनता ndash सब चलत रह ह म सतो क आशीवाकद स जी रहा हा म यहाा इसललए आया हा कक लासनस ररनय हो जाय जस नवला अपन घर म जाकर औषचध साघकर ताकत लकर आता ह वस ही म समय तनकाल कर ऐसा अवसर खोज लता हा

शरी नरनर िोदी िखयितरी गजरात

(अनिम) पावन उदगार

आपक दशयनिातर स िझ अदभत शषकत मिलती ह पजय बाप जी क ललए मर ददल म जो शरदधा ह उसको बयान करन क ललए मर पास

कोई शबद नही ह आज क भटक समाज म भी यदद कछ लोग सनमागक पर चल रह ह तो यह इन महापरषो क अमतवचनो का ही परभाव ह बापजी की अमतवारी का ववशषकर मझ पर तो बहत परभाव पड़ता ह मरा तो मन करता ह कक बाप जी जहाा कही भी हो वही पर उड़कर उनक दशकन करन क ललए पहाच जाऊा व कछ पल ही सही उनक सालननरधय का लाभ ला आपक दशकनमातर स ही मझ एक अदभत शलकत लमलती ह शरी परकाश मसह बादल िखयितरी पजाब

(अनिम) पावन उदगार

हि सभी का कतयवय होगा कक आपक बताय रासत पर चल हम सबका परम सौभागय ह कक बाप जी क दशकन हए कल आपस मलाकात हई

आशीवाकद लमला मागकदशकन भी लमला और इशारो-इशारो म आपन वह सब कछ जो सदगरदव एक लशषटय को बता सकत ह मर जस एक लशषटय को आशीवाकद रप म परदान ककया आपक आशीवाकद

व कपादलषटट स छततीसगढ म सख-शातत व समदचध रह यहाा क एक-एक वयलकत क घर म ववकास की ककरर आय

आपन जो जञानोपदश ददया ह हम सभी का कतकवय होगा कक उस रासत पर चल बापजी स खासतौर स पीपल नीम आावला व तलसी क वकष लगान क बार म कहा ह हम इस पर ववशषरप स रधयान रखग डॉ रिन मसह िखयितरी छततीसगढ़

(अनिम) पावन उदगार

आपका ितर हः आओ सरल रासता हदखाऊ राि को पान क मलए

पजय बाबा आसारामजी बाप आपका नाम आसारामजी बाप इसललए तनकला ह कयोकक आपका यही मतर ह कक आओ सरल रासता ददखाऊा राम को पान क ललए आज हम धनय ह कक सससग म आय सससग उस कहत ह लजसक सग म हम सत हो जाय पजय बाप जी न हम भगवान को पान का सरल रासता ददखाया ह इसललए म जनता की ओर स बापजी का धनयवाद करता हा शरी ईएसएल नरमसमहन राजयपाल छततीसगढ़

(अनिम) पावन उदगार

सतो क िागयदशयन ि दश चलगा तो आबाद होगा पजय बाप जी म कमकयोग भलकतयोग तथा जञानयोग तीनो का ही समावश ह आप

आज करोड़ो-करोड़ो भकतो का मागकदशकन कर रह ह सतो क मागकदशकन म दश चलगा तो आबाद होगा म तो बड़-बड़ नताओ स यही कहता हा कक आप सतो का आशीवाकद जरर लो इनक चररो म अगर रहग तो सतता रहगी दटकगी तथा उसी स धमक की सथापना होगी

शरी अशोक मसघल अधयकष षवशव हहनद पररिद

(अनिम) पावन उदगार

सतय का िागय कभी न छ ि ऐसा आशीवायद दो

हम आपक मागकदशकन की जररत ह वह सतत लमलता रह आपन हमार कधो पर जो जवाबदारी दी ह उस हम भली परकार तनभाय बर मागक पर न जाय ससय क मागक पर चल लोगो की अचछ ढग स सवा कर ससकतत की सवा कर ससय का मागक कभी न छट ऐसा आशीवाकद दो

शरी उद व ठाकर काययकारी अधयकष मशवसना

(अनिम) पावन उदगार

पणयोदय पर सत सिागि

जीवन की दौड़-धप स कया लमलता ह यह हम सब जानत ह कफर भी भौततकवादी ससार म हम उस छोड़ नही पात सत शरी आसारामजी जस ददवय शलकतसमपनन सत पधार और हमको आरधयालसमक शातत का पान कराकर जीवन की अधी दौड़ स छड़ाय ऐस परसग कभी-कभी ही परापत होत ह य पजनीय सतशरी ससार म रहत हए भी परकतः ववशवककयार क ललए चचनतन करत ह कायक करत ह लोगो को आनदपवकक जीवन वयतीत करन की कलाएा और योगसाधना की यलकतयाा बतात ह

आज उनक समकष थोड़ी ही दर बठन स एव सससग सनन स हमलोग और सब भल गय ह तथा भीतर शातत व आनद का अनभव कर रह ह ऐस सतो क दरबार म पहाचना पणयोदय का फल ह उनह सनकर हमको लगता ह कक परततददन हम ऐस सससग क ललए कछ समय अवशय तनकालना चादहए पजय बाप जी जस महान सत व महापरष क सामन म अचधक कया कहा चाह कछ भी कहा वह सब सयक क सामन चचराग ददखान जसा ह

शरी िोतीलाल वोरा अरखल भारतीय कागरस कोिाधयकष प वय िखयितरी (िपर) प वय राजयपाल (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी जहा नही होत वहा क लोगो क मलए भी बहत कछ करत ह

सार दश क लोग पजय बापजी क आशीवकचनो की पावन गगा म नहा कर धनय हो रह ह आज बापजी यहाा उड़ीसा म सससग-अमत वपलान क ललए उपलसथत ह व जब यहाा नही होत

ह तब भी उड़ीसा क लोगो क बहत कछ करत ह उनको सब समय याद करत ह उड़ीसा क दररिनारायरो की तन-मन-धन स सवा दर-दराज म भी चलात ह

शरी जानकीवललभ पिनायक िखयितरी उड़ीसा

(अनिम) पावन उदगार

जीवन की सचची मशकषा तो प जय बाप जी ही द सकत ह बापजी ककतन परमदाता ह कक कोई भी वयलकत समाज म दःखी न रह इसललए सतत

परयसन करत रहत ह म हमशा ससकार चनल चाल करक आपक आशीवाकद लन क बाद ही सोती हा जीवन की सचची लशकषा तो हम भी नही द पा रह ह ऐसी लशकषा तो पजय सत शरी आसारामजी बाप जस सत लशरोलमरी ही द सकत ह

आनदीबहन पिल मशकषाितरी (प वय) राजसव एव िागय व िकान ितरी (वतयिान) गजरात

(अनिम) पावन उदगार

आपकी कपा स योग की अणशषकत पदा हो रही ह अनक परकार की ववकततयाा मानव क मन पर सामालजक जीवन पर ससकार और

ससकतत पर आिमर कर रही ह वसततः इस समय ससकतत और ववकतत क बीच एक महासघषक चल रहा ह जो ककसी सरहद क ललए नही बलकक ससकारो क ललए लड़ा जा रहा ह इसम ससकतत को लजतान का बम ह योगशलकत ह गरदव आपकी कपा स इस योग की ददवय अरशलकत लाखो लोगो म पदा हो रही ह य ससकतत क सतनक बन रह ह

गरदव म आपस पराथकना करता हा कक शासन क अदर भी धमक और वरागय क ससकार उसपनन हो आपस आशीवाकद परापत करन क ललए म आपक चररो म आया हा

(शरी अशोकभाई भटि कान नितरी गजरात राजय)

(अनिम) पावन उदगार

रती तो बाप जस सतो क कारण हिकी ह

मझ सससग म आन का मौका पहली बार लमला ह और पजय बापजी स एक अदभत बात मझ और आप सब को सनन को लमली ह वह ह परम की बात इस सलषटट का जो मल तवव ह वह ह परम यह परम नाम का तवव यदद न हो तो सलषटट नषटट हो जाएगी लककन ससार म कोई परम करना नही जानता या तो भगवान पयार करना जानत ह या सत पयार करना जानत ह लजसको ससारी लोग अपनी भाषा म परम कहत ह उसम तो कही-न-कही सवाथक जड़ा होता ह लककन भगवान सत और गर का परम ऐसा होता ह लजसको हम सचमच परम की पररभाषा म बााध सकत ह म यह कह सकती हा कक साध सतो को दश की सीमाएा नही बााधती जस नददयो की धाराएा दश और जातत की सीमाओ म नही बााधती उसी परकार परमासमा का परम और सतो का आशीवाकद भी कभी दश जातत और सपरदाय की सीमाओ म नही बधता कललयग म हदय की तनषटकपटता तनःसवाथक परम सयाग और तपसया का कषय होन लगा ह कफर भी धरती दटकी ह तो बाप इसललए कक आप जस सत भारतभलम पर ववचरर करत ह बाप की कथा म ही मन यह ववशषता दखी ह कक गरीब और अमीर दोनो को अमत क घाट एक जस पीन को लमलत ह यहाा कोई भदभाव नही ह

(सशरी उिा भारती िखयितरी िधयपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

ि किनसीब ह जो इतन सिय तक गरवाणी स वधचत रहा परम पजय गरदव क शरी चररो म सादर परराम मन अभी तक महाराजशरी का नाम भर

सना था आज दशकन करन का अवसर लमला ह लककन म अपन-आपको कमनसीब मानता हा कयोकक दर स आन क कारर इतन समय तक गरदव की वारी सनन स वचचत रहा अब मरी कोलशश रहगी कक म महाराजशरी की अमतवारी सनन का हर अवसर यथासमभव पा सका म ईशवर स यही पराथकना करता हा कक व हम ऐसा मौका द कक हम गर की वारी को सनकर अपन-आपको सधार सक गर जी क शरी चररो म सादर समवपकत होत हए मरधयपरदश की जनता की ओर स पराथकना करता हा कक गरदव आप इस मरधयपरदश म बार-बार पधार और हम लोगो को आशीवाकद दत रह ताकक परमाथक क उस कायक म जो आपन पर दश म ही नही दश क बाहर भी फलाया ह मरधयपरदश क लोगो को भी जड़न का जयादा-स-जयादा अवसर लमल

(शरी हदषगवजय मसह ततकालीन िखयितरी िधयपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

इतनी ि र वाणी इतना अदभत जञान म अपनी ओर स तथा यहाा उपलसथत सभी महानभावो की ओर स परम शरदधय

सतलशरोमखर बाप जी का हाददकक सवागत करता हा मन कई बार टीवी पर आपको दखा सना ह और ददकली म एक बार आपका परवचन भी सना ह इतनी मधर वारी इतना मधर जञान अगर आपक परवचन पर गहराई स ववचार करक अमल ककया जाय तो इनसान को लजदगी म सही रासता लमल सकता ह व लोग धन भागी ह जो इस यग म ऐस महापरष क दशकन व सससग स अपन जीवन-समन खखलात ह

(शरी भजनलाल ततकालीन िखयितरी हररयाणा)

(अनिम) पावन उदगार

सतसग शरवण स िर हदय की सफाई हो गयी पजयशरी क दशकन करन व आशीवाकद लन हत आय हए उततरपरदश क तसकालीन राजयपाल

शरी सरजभान न कहाः समशानभलम स आन क बाद हम लोग शरीर की शदचध क ललए सनान कर लत ह ऐस ही ववदशो म जान क कारर मझ पर दवषत परमार लग जात थ परत वहाा स लौटन क बाद यह मरा परम सौभागय ह कक यहाा महाराज शरी क दशकन व पावन सससग-शरवर करन स मर चचतत की सफाई हो गयी ववदशो म रह रह अनको भारतवासी पजय बाप क परवचनो को परसयकष या परोकष रप स सन रह ह मरा यह सौभागय ह कक मझ यहाा महाराजशरी को सनन का सअवसर परापत हआ

(शरी स रजभान ततकालीन राजयपाल उततरपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

जञानरपी गगाजी सवय बहकर यहा आ गयी उततराचल राजय का सौभागय ह कक इस दवभमी म दवता सवरप पजय बापजी का आशरम बन रहा ह | आप ऐसा आशरम बनाय जसा कही भी न हो | यह हम लोगो का सौभागय ह कक अब पजय बापजी की जञानरपी गगाजी सवय बहकर यहा आ गयी ह | अब गगा जाकर दशकन करन व सनान करन की उतनी आवशयकता नही ह लजतनी सत शरी आसारामजी बाप क चररो म बठकर

उनक आशीवाकद लन की ह |

-शरी तनतयानद सवािीजी

ततकालीन िखयितरी उततराचल

(अनिम) पावन उदगार

बाप जी क सतसग स षवशवभर क लोग लाभाषनवत भारतभलम सदव स ही ऋवष-मतनयो तथा सत-महासमाओ की भलम रही ह लजनहोन ववशव

को शातत एव अरधयासम का सदश ददया ह आज क यग म पजय सत शरी आसारामजी अपनी अमतवारी दवारा ददवय आरधयालसमक सदश द रह ह लजसस न कवल भारत वरन ववशवभर म लोग लाभालनवत हो रह ह

(शरी सरजीत मसह बरनाला राजयपाल आनरपरदश)

(अनिम) पावन उदगार

प री डडकशनरी याद कर षवशव ररकॉडय बनाया ऑकसफोडक एडवास लनकसक डडकशनरी (अगरजी छठा ससकरर) क 80000 शबदो को उनकी

पषटठ सखया सदहत मन याद कर ललया जो कक समसत ववशव क ललए ककसी चमसकार स कम नही ह फलसवरप मरा नाम ललमका बक ऑफ वकडक ररकॉडकस म दजक हो गया यही नही जी टीवी पर ददखाय जान वाल ररयाललटी शो म शाबाश इडडया म भी मन ववशव ररकॉडक बनाया द वीक पतरतरका क एक सवकषर म भी मरा नाम 25 अदभत वयलकतयो की सची म ह

मझ पजय गरदव स मतरदीकषा परापत होना भरामरी परारायाम सीखन को लमलना तथा अपनी कमजोरी को ही महानता परापत करन का साधन बनान की परररा कला बल एव उससाह परापत होना ndash यह सब तो गरदव की अहतकी कपा का ही चमसकार ह गरकपा ही कवल मशटयसय पर िगलि

षवरनर िहता अजयन नगर रोहतक (हरर)

(अनिम) पावन उदगार

ितरदीकषा व यौधगक परयोगो स बदध का अपरतति षवकास

पहल म एक साधारर छातर था मझ लगभग 50-55 परततशत अक ही लमलत थ 11वी ककषा म तो ऐसी लसथतत हई कक सकल का नाम खराब न हो इसललए परधानारधयापक न मर अलभभावको को बलाकर मझ सकल स तनकाल दन तक की बात कही थी बाद म मझ पजय बाप जी स सारसवसय मतर की दीकषा लमली इस मतर क जप व बापजी दवारा बताय गय परयोगो क अभयास स कछ ही समय म मरी बदचधशलकत का अपरततम ववकास हआ तसपशचात नोककया मोबाइल कपनी म गलोबल सववकसस परोडकट मनजर क पद पर मरी तनयलकत हई और मन एक पसतक ललखी जो अतराकषटरीय कपतनयो को सकयलर नटवकक की डडजाईन बनान म उपयोगी हो रही ह एक ववदशी परकाशन दवारा परकालशत इस पसतक की कीमत 110 डॉलर (करीब 4500 रपय) ह इसक परकाशन क बाद मरी पदोननती हई और अब ववशव क कई दशो म मोबाइल क कषतर म परलशकषर दन हत मझ बलात ह कफर मन एक और पसतक ललखी लजसकी 150 डॉलर (करीब 6000 रपय) ह यह पजयशरी स परापत सारसवसय मतरदीकषा का ही पररराम ह

अजय रजन मिशरा जनकपरी हदलली

(अनिम) पावन उदगार

सतसग व ितरदीकषा न कहा स कहा पहचा हदया पहल म भस चराता था रोज सबह रात की रखी रोटी पयाज नमक और मोतरबल ऑयल

क डडबब म पानी लकर तनकालता व दोपहर को वही खाता था आचथकक लसथतत ठीक न होन स टायर की ढाई रपय वाली चपपल पहनता था

12वी म मझ कवल 60 परततशत अक परापत हए थ उसक बाद मन इलाहाबाद म इजीतनयररग म परवश ललया तब म अजञानवश सतो का ववरोध करता था सतो क ललए जहर उगलन वाल मखो क सग म आकर म कछ-का-कछ बकता था लककन इलाहाबाद म पजय बाप जी का सससग आयोलजत हआ तो सोचा 5 लमनट बठत ह वहाा बठा तो बठ ही गया कफर मझ बापजी दवारा सारसवसय मतर लमला मरी सझबझ म सदगर की कपा का सचार हआ मन सववचध मतर-अनषटठान ककया छठ ददन मर आजञाचि म कमपन होन लगा था म एक साल तक

एकादशी क तनजकल वरत व जागरर करत हए शरी आसारामायर शरी ववषटर सहसरनाम गजनिमोकष का पाठ व सारसवसय मतर का जप करता था रात भर म यही पराथकना करता था बस परभ मझ गर जी स लमला दो

परभकपा स अब मरा उददशय परा हो गया ह इस समय म गो एयर (हवाई जहाज कमपनी) म इजीतनयर हा महीन भर का करीब एक लाख 80 हजार पाता हा कछ ददनो म तनखवाह ढाई लाख हो जायगी गर जी न भस चरान वाल एक गरीब लड़क को आज लसथतत म पहाचा ददया ह

कषकषततज सोनी (एयरकराफि इजीतनयर) हदलली

(अनिम) पावन उदगार

5 विय क बालक न चलायी जोरखि भरी सड़को पर कार

मन पजय बापजी स सारसवसय मतर की दीकषा ली ह जब म पजा करता हा बापजी मरी तरफ पलक झपकात ह म बापजी स बात करता हा म रोज दस माला करता हा म बापजी स जो माागता हा वह मझ लमल जाता ह मझ हमशा ऐसा एहसास होता ह कक बापजी मर साथ ह

5 जलाई 2005 को म अपन दोसतो क साथ खल रहा था मरा छोटा भाई छत स नीच चगर गया उस समय हमार घर म कोई बड़ा नही था इसललए हम सब बचच डर गय इतन म पजय बापजी की आवाज आयी कक ताश इस वन म तरबठा और वन चलाकर हॉलसपटल ल जा उसक बाद मन अपनी दीददयो की मदद स दहमाश को वन म ललटाया गाड़ी कसी चली और असपताल कस पहाची मझ नही पता मझ रासत भर ऐसा एहसास रहा कक बापजी मर साथ बठ ह और गाड़ी चलवा रह ह (घर स असपताल का 5 ककमी स अचधक ह)

ताश बसोया राजवीर कॉलोनी हदलली ndash 16

(अनिम) पावन उदगार

ऐस सतो का षजतना आदर ककया जाय कि ह

ककसी न मझस कहा थाः रधयान की कसट लगाकर सोयग तो सवपन म गरदव क दशकन होगrsquo

मन उसी रात रधयान की कसट लगायी और सनत-सनत सो गया उस वकत रातरतर क बारह-साढ बारह बज होग वकत का पता नही चला ऐसा लगा मानो ककसी न मझ उठा ददया म गहरी नीद स उठा एव गर जी की लपवाल फोटो की तरफ टकटकी लगाकर एक-दो लमनट तक दखता रहा इतन म आशचयक टप अपन-आप चल पड़ी और कवल य तीन वाकय सनन को लमलः lsquoआसमा चतनय ह शरीर जड़ ह शरीर पर अलभमान मत करोrsquo

टप सवतः बद हो गयी और पर कमर म यह आवाज गाज उठी दसर कमर म मरी पसनी की भी आाख खल गयी और उसन तो यहाा तक महसस ककया जस कोई चल रहा ह व गरजी क लसवाय और कोई नही हो सकत

मन कमर की लाइट जलायी और दौड़ता हआ पसनी क पास गया मन पछाः lsquoसनाrsquo वह बोलीः lsquoहााrsquo

उस समय सबह क ठीक चार बज थ सनान करक म रधयान म बठा तो डढ घणट तक बठा रहा इतना लबा रधयान तो मरा कभी नही लगा इस घटना क बाद तो ऐसा लगता ह कक गरजी साकषात बरहमसवरप ह उनको जो लजस रप म दखता ह वस व ददखत ह

मरा लमतर पाशचासय ववचारधारावाला ह उसन गरजी का परवचन सना और बोलाः lsquoमझ तो य एक बहत अचछ लकचरर लगत हrsquo

मन कहाः lsquoआज जरर इस पर गरजी कछ कहगrsquo

यह सरत आशरम म मनायी जा रही जनमाषटटमी क समय की बात ह हम कथा म बठ गरजी न कथा क बीच म ही कहाः lsquoकछ लोगो को म लकचरर ददखता हा कछ को lsquoपरोफसरrsquo ददखता हा कछ को lsquoगरrsquo ददखता हा और वसा ही वह मझ पाता हrsquo

मर लमतर का लसर शमक स झक गया कफर भी वह नालसतक तो था ही उसन हमार तनवास पर मजाक म गरजी क ललए कछ कहा तब मन कहाः यह ठीक नही ह अबकी बार मान जा नही तो गर जी तझ सजा दग

15 लमनट म ही उसक घर स फोन आ गया कक बचच की तबीयत बहत खराब ह उस असपताल म दाखखल करना पड़ रहा ह

तब मर लमतर की सरत दखन लायक थी वह बोलाः गकती हो गयी अब म गर जी क ललए कछ नही कहागा मझ चाह ववशवास हो या न हो

अखबारो म गर जी की तनदा ललखनवाल अजञानी लोग नही जानत कक जो महापरष भारतीय ससकतत को एक नया रप द रह ह कई सतो की वाखरयो को पनजीववत कर रह ह लोगो क शराब-कबाब छड़वा रह ह लजनस समाज का ककयार हो रहा ह उनक ही बार म हम हलकी बात ललख रह ह यह हमार दश क ललए बहत ही शमकजनक बात ह ऐस सतो का तो लजतना आदर ककया जाय वह कम ह गरजी क बार म कछ भी बखान करन क ललए मर पास शबद नही ह

(डॉ सतवीर मसह छाबड़ा बीबीईएि आकाशवाणी इनदौर)

(अनिम) पावन उदगार

िझ तनवययसनी बना हदया म वपछल कई वषो स तमबाक का वयसनी था और इस दगकर को छोड़न क ललए मन

ककतन ही परयसन ककय पर म तनषटफल रहा जनवरी 1995 म पजय बाप जब परकाशा आशरम (महा) पधार तो म भी उनक दशकनाथक वहाा पहाचा और उनस अनऱोध ककयाः

बाप ववगत 32 वषो स तमबाक का सवन कर रहा हा अनक परयसनो क बाद भी इस दगकर स म मकत न हो सका अब आप ही कपा कीलजएrsquo

पजय बाप न कहाः lsquoलाओ तमबाक की डडबबी और तीन बार थककर कहो कक आज स म तमबाक नही खाऊा गाrsquo

मन पजय बाप जी क तनदशानसार वही ककया और महान आशचयक उसी ददन स मरा तमबाक खान का वयसन छट गया पजय बाप की ऐसी कपादलषटट हई कक वषक परा होन पर भी मझ कभी तमबाक खान की तलब नही लगी

म ककन शबदो म पजय बाप का आभार वयकत करा मर पास शबद ही नही ह मझ आननद ह कक इन राषटरसत न बरबाद व नषटट होत हए मर जीवन को बचाकर मझ तनवयकसनी ददया

(शरी लखन भिवाल षज मलया िहाराटर)

(अनिम) पावन उदगार

गरजी की तसवीर न पराण बचा मलय

कछ ही ददनो पहल मरा दसरा बटा एम ए पास करक नौकरी क ललय बहत जगह घमा बहत जगह आवदन-पतर भजा ककनत उस नौकरी नही लमली | कफर उसन बापजी स दीकषा ली | मन आशरम का कछ सामान कसट सतसादहसय लाकर उसको दत हए कहा शहर म जहाा मददर ह जहाा मल लगत ह तथा जहाा हनमानजी का परलसदध दकषकषरमखी मददर ह वहा सटाल लगाओ | बट न सटाल लगाना शर ककया | ऐस ही एक सटाल पर जलगाव क एक परलसदध वयापारी अगरवालजी आय बापजी की कछ कसट खरीदी और ईशवर की ओर नामक पसतक भी साथ म ल गय पसतक पढी और कसट सनी | दसर ददन व कफर आय और कछ सतसादहसय खरीद कर ल गय व पान क थोक वविता ह | उनको पान खान की आदत ह | पसतक पढकर उनह लगा म पान छोड़ दा | उनकी दकान पर एक आदमी आया | पाचसौ रपयो का सामान खरीदा और उनका फोन नमबर ल गया | एक घट क बाद उसन दकान पर फोन ककया सठ अगरवालजी मझ आपका खन करन का काम सौपा गया था | काफी पस (सपारी) भी ददय गय थ और म तयार भी हो गया था पर जब म आपकी दकान पर पहचा तो परम पजय सत शरी आसारामजी बाप क चचतर पर मरी नजर पड़ी | मझ ऐसा लगा मानो साकषात बाप बठ हो और मझ नक इनसान बनन की परररा द रह हो गरजी की तसवीर न (तसवीर क रप म साकषात गरदव न आकर) आपक परार बचा ललय | अदभत चमसकार ह ममबई की पाटी न उसको पस भी ददय थ और वह आया भी था खन करन क इराद स परनत जाको राख साइयाा चचतर क दवार भी अपनी कपा बरसान वाल ऐस गरदव क परसयकष दशकन करन क ललय वह यहाा भी आया ह |

-बालकटण अगरवाल

जलगाव िहाराटर

(अनिम) पावन उदगार

सदगर मशटय का साथ कभी नही छोड़त एक रात म दकान स सकटर दवारा अपन घर जा रहा था | सकटर की डडककी म काफी

रपय रख हए थ | जयो ही घर क पास पहचा तो गली म तीन बदमाश लमल | उनहोन मझ घर ललया और वपसतौल ददखायी | सकटर रकवाकर मर लसर पर तमच का बट मार ददया और धकक मार कर मझ एक तरफ चगरा ददया | उनहोन सोचा होगा कक म अकला ह पर लशषटय जब सदगर स मतर लता ह शरदधा-ववशवास रखकर उसका जप करता ह तब सदगर उसका साथ नही छोड़त |

मन सोचा डडककी म बहत रपय ह और य बदमाश तो सकटर ल जा रह ह | मन गरदव स पराथकना की | इतन म व तीनो बदमाश सकटर छोड़कर थला ल भाग | घर जाकर खोला होगा तो सबजी और खाली दटकफ़न दखकर लसर कटा पता नही पर बड़ा मजा आया होगा | मर पस बच गयउनका सबजी का खचक बच गया |

-गोकलचनर गोयल

आगरा

(अनिम) पावन उदगार

गरकपा स अ ापन द र हआ

मझ गलकोमा हो गया था | लगभग पतीस साल स यह तकलीफ़ थी | करीब छः साल तक तो म अधा रहा | कोलकाता चननई आदद सब जगहो पर गया शकर नतरालय म भी गया ककनत वहा भी तनराशा हाथ लगी | कोलकाता क सबस बड़ नतर-ववशषजञ क पास गया | उसन भी मना कर ददया और कहा | धरती पर ऐसा कोई इनसान नही जो तमह ठीक कर सक | लककन सरत आशरम म मझ गरदव स मतर लमला | वह मतर मन खब शरदधा-ववशवासपवकक जपा कयोकक सकषात बरहमसवरप गरदव स वह मतर लमला था | करीब छः-सात महीन ही जप हआ था कक मझ थोड़ा-थोड़ा ददखायी दन लगा | डॉकटर कहत थ कक तमको भरातत हो गयी ह पर मझ तो अब भी अचछी तरह ददखता ह | एक बार एक अनय भयकर दघकटना स भी गरदव न मझ बचाया था |

ऐस गरदव का ॠर हम जनमो-जनमो तक नही चका सकत |

-शकरलाल िहशवरी कोलकाता

(अनिम) पावन उदगार

और डकत घबराकर भाग गय

१४ जलाई ९९ को करीब साढ तीन बज मर मकान म छः डकत घस आय और उस समय दभाकगय स बाहर का दरवाजा खला हआ था | दो डकत बाहर मारतत चाल रखकर खड़ थ |

एक डकत न धकका दकर मरी माा का माह बद कर ददया और अलमारी की चाबी माागन लगा |

इस घटना क दौरान म दकान पर था | मरी पसनी को भी डकत धमकान लग और आवाज न करन को कहा | मरी पसनी न पजय बापजी क चचतर क सामन हाथ जोड़कर पराथकना की अब आप ही रकषा करो इतना ही कहा तो आशचयक आशचयक परम आशचयक व सब डकत घबराकर भागन लग | उनकी हड़बड़ाहट दखकर ऐसा लग रहा था मानो उनह कछ ददखायी नही द रहा था | व भाग गय | मरा पररवार गरदव का ॠरी ह | बापजी क आशीवाकद स सब सकशल ह |

हमन १५ नवमबर ९८ को वारारसी म मतरदीकषा ली थी |

-िनोहरलाल तलरजा

४ झललाल नगर मशवाजी नगर

वाराणसी

(अनिम) पावन उदगार

ितर दवारा ितदह ि पराण-सचार

म शरी योग वदानत सवा सलमतत आमट स जीप दवारा रवाना हआ था | ११ जलाई १९९४ को मरधयानह बारह बज हमारी जीप ककसी तकनीकी तरदट क कारर तनयतरर स बाहर होकर तीन पलकटयाा खा गयी | मरा परा शरीर जीप क नीच दब गया | ककसी तरह मझ बाहर तनकाला गया |

एक तो दबला पतला शरीर और ऊपर स परी जीप का वजन ऊपर आ जान क कारर मर शरीर क परसयक दहसस म असहय ददक होन लगा | मझ पहल तो कसररयाजी असपताल म दाखखल कराया गया | जयो-जयो उपचार ककया गया कषटट बढता ही गया कयोकक चोट बाहर नही शरीर क भीतरी दहससो म लगी थी और भीतर तक डॉकटरो का कोई उपचार काम नही कर रहा था | जीप क नीच दबन स मरा सीना व पट ववशष परभाववत हए थ और हाथ-पर म कााच क टकड़ घस गय थ | ददक क मार मझ साास लन म भी तकलीफ हो रही थी | ऑकसीजन ददय जान क बाद भी दम घट रहा था और मसय की घडडयाा नजदीक ददखायी पड़न लगी | म मररासनन लसथतत म

पहाच गया | मरा मसय-परमारपतर बनान की तयाररयाा कक जान लगी व मझ घर ल जान को कहा गया | इसक पवक मरा लमतर पजय बाप स फ़ोन पर मरी लसथतत क समबनध म बात कर चका था | परारीमातर क परम दहतषी दयाल सवभाव क सत पजय बाप न उस एक गपत मतर परदान करत हए कहा था कक पानी म तनहारत हए इस मतर का एक सौ आठ बार (एक माला) जप करक वह पानी मनोज को एव दघकटना म घायल अनय लोगो को भी वपला दना | जस ही वह अलभमतरतरत जल मर माह म डाला गया मर शरीर म हलचल होन क साथ ही वमन हआ | इस अदभत चमसकार स ववलसमत होकर डॉकटरो न मझ तरत ही ववशष मशीनो क नीच ल जाकर ललटाया |

गहन चचककससकीय परीकषर क बाद डॉकटरो को पता चला कक जीप क नीच दबन स मरा परा खन काला पड़ गया था तथा नाड़ी-चालन (पकस) हदयगतत व रकत परवाह भी बद हो चक थ |

मर शरीर का समपरक रकत बदल ददया गया तथा आपरशन भी हआ | उसक ७२ घट बाद मझ होश आया | बहोशी म मझ कवल इतना ही याद था की मर भीतर पजय बाप दवारा परदतत गरमतर का जप चल रहा ह | होश म आन पर डॉकटरो न पछा तम आपरशन क समय बापबाप पकार रह थ | य बाप कौन ह मन बताया व मर गरदव परातः समररीय परम पजय सत शरी असारामजी बाप ह | डॉकटरो न पनः मझस परशन ककया कया तम कोई वयायाम करत हो मन कहा म अपन गरदव दवारा लसखायी गयी ववचध स आसन व परारायाम करता हा | व बोल इसीललय तमहार इस दबल-पतल शरीर न यह सब सहन कर ललया और तम मरकर भी पनः लजनदा हो उठ दसरा कोई होता तो तरत घटनासथल पर ही उसकी हडडडयाा बाहर तनकल जाती और वह मर जाता | मर शरीर म आठ-आठ नललयाा लगी हई थी | ककसीस खन चढ रहा था तो ककसी स कतरतरम ऑकसीजन ददया जा रहा था | यदयवप मर शरीर क कछ दहससो म अभी-भी कााच क टकड़ मौजद ह लककन गरकपा स आज म परक सवसथ होकर अपना वयवसाय व गरसवा दोनो कायक कर रह हा | मरा जीवन तो गरदव का ही ददया हआ ह | इन मतरदषटटा महवषक न उस ददन मर लमतर को मतर न ददया होता तो मरा पनजीवन तो समभव नही था | पजय बाप मानव-दह म ददखत हए भी अतत असाधारर महापरष ह | टललफ़ोन पर ददय हए उनक एक मतर स ही मर मत शरीर म पनः परारो का सचार हो गया तो लजन पर बाप की परसयकष दलषटट पड़ती होगी व लोग ककतन भागयशाली होत होग ऐस दयाल जीवनदाता सदगर क शरीचररो म कोदट-कोदट दडवत परराम

-िनोज किार सोनी

जयोतत िलसय लकषिी बाजार आिि राजसथान

(अनिम) पावन उदगार

सदगरदव की कपा स नतरजयोतत वापस मिली मरी दादहनी आाख स कम ददखायी दता था तथा उसम तकलीफ़ भी थी | रधयानयोग

लशववर ददकली म पजय गरदव मवा बााट रह थ तब एक मवा मरी दादहनी आाख पर आ लगा |

आाख स पानी तनकलन लगा | पर आशचयक दसर ही ददन स आाख की तकलीफ लमट गयी और अचछी तरह ददखायी दन लगा | -राजकली दवी

असनापर लालगज अजारा षज परतापगढ़ उततर परदश

(अनिम) पावन उदगार

बड़दादा की मिटिी व जल स जीवनदान

अगसत ९८ म मझ मलररया हआ | उसक बाद पीललया हो गया | मर बड़ भाई न आशरम स परकालशत आरोगयतनचध पसतक म स पीललया का मतर पढकर पीललया तो उतार ददया परत कछ ही ददनो बाद अगरजी दवाओ क ररएकषन स दोनो ककडतनयाा फल (तनलषटिय) हो गई | मरा हाटक (हदय) और लीवर (यकत) भी फल होन लग | डॉकटरो न तो कह ददया यह लड़का बच नही सकता | कफर मझ गोददया स नागपर हॉलसपटल म ल जाया गया लककन वहाा भी डॉकटरो न जवाब द ददया कक अब कछ नही हो सकता | मर भाई मझ वही छोड़कर सरत आशरम आय

वदयजी स लमल और बड़दादा की पररिमा करक पराथकना की तथा वहाा की लमटटी और जल ललया | ८ तारीख को डॉकटर मरी ककडनी बदलन वाल थ | जब मर भाई बड़दादा को पराथकना कर रह थ तभी स मझ आराम लमलना शर हो गया था | भाई न ७ तारीख को आकर मझ बड़दादा कक लमटटी लगाई और जल वपलाया तो मरी दोनो ककडनीयाा सवसथ हो गयी | मझ जीवनदान लमल गया | अब म तरबककल सवसथ हा |

-परवीण पिल

गोहदया िहाराटर

(अनिम) पावन उदगार

प जय बाप न फ का कपा-परसाद

कछ वषक पवक पजय बाप राजकोट आशरम म पधार थ | मझ उन ददनो तनकट स दशकन करन का सौभागय लमला | उस समय मझ छाती म एनजायना पकसटोररस क कारर ददक रहता था | सससग परा होन क बाद कछ लोग पजय बाप क पास एक-एक करक जा रह थ | म कछ फल-फल नही लाया था इसललए शरदधा क फल ललय बठा था | पजय बाप कपा-परसाद फ क रह थ कक इतन म एक चीक मरी छाती पर आ लगा और छाती का वह ददक हमशा क ललए लमट गया |

-अरषवदभाई वसावड़ा

राजकोि

(अनिम) पावन उदगार

बिी न िनौती िानी और गरकपा हई

मरी बटी को शादी ककय आठ साल हो गय थ | पहली बार जब वह गभकवती हई तब बचचा पट म ही मर गया | दसरी बार बचची जनमी पर छः महीन म वह भी चल बसी | कफर मरी पसनी न बटी स कहा अगर त सककप कर कक जब तीसरी बार परसती होगी तब तम बालक की जीभ पर बापजी क बतान क मतातरबक lsquoॐrsquo ललखोगी तो तरा बालक जीववत रहगा ऐसा मझ ववशवास ह कयोकक ॐकार मतर म परमानदसवरप परभ ववराजमान ह | मरी बटी न इस परकार मनौती मानी और समय पाकर वह गभकवती हई | सोनोगराफ़ी करवायी गयी तो डॉकटरो न बताया गभक म बचची ह और उसक ददमाग म पानी भरा हआ ह | वह लजदा नही रह सकगी |

गभकपात करवा दो | मरी बटी न अपनी माा स सलाह की | उसकी माा न कहा गभकपात का महापाप नही करवाना ह | जो होगा दखा जायगा | गरदव कपा करग | जब परसती हई तो तरबककल पराकततक ढग स हई और उस बचची की जीभ पर शहद एव लमशरी स ॐ ललखा गया | आज वह तरबककल ठीक ह | जब उसकी डॉकटरी जााच करवायी गयी तो डॉकटर आशचयक म पड़ गय सोनोगराफ़ी म जो बीमाररयाा ददख रही थी व कहाा चली गयी ददमाग का पानी कहाा चला गया

दहनदजा हॉलसपटलवाल यह कररशमा दखकर दग रह गय अब घर म जब कोई दसरी कोई कसट चलती ह तो वह बचची इशारा करक कहती ह ॐवाली कसट चलाओ | वपछली पनम को हम मबई स टाटा समो म आ रह थ | बाढ क पानी क कारर रासता बद था | हम सोच म पड़ गय कक पनम का तनयम टटगा | हमन गरदव का समरर ककया | इतन म हमार डराइवर न हमस पछा जान दा हमन भी गरदव का समरर करक कहा जान दो और हरर हरर ॐ कीतकन की कसट लगा दो | गाड़ी आग चली | इतना पानी कक हम जहाा बठ थ वहाा तक पानी आ गया |

कफर भी हम गरदव क पास सकशल पहाच गय और उनक दशकन ककय|

-िरारीलाल अगरवाल

साताकर ज िबई

(अनिम) पावन उदगार

और गरदव की कपा बरसी जबस सरत आशरम की सथापना हई तबस म गरदव क दशकन करत आ रहा हा उनकी

अमतवारी सनता आ रहा हा | मझ पजयशरी स मतरदीकषा भी लमली ह | परारबधवश एक ददन मर साथ एक भयकर दघकटना घटी | डॉकटर कहत थ आपका एक हाथ अब काम नही करगा | म अपना मानलसक जप मनोबल स करता रहा | अब हाथ तरबककल ठीक ह | उसस म ७० ककगरा वजन उठा सकता हा | मरी समसया थी कक शादी होन क बाद मझ कोई सतान नही थी | डॉकटर कहत थ कक सतान नही हो सकती | हम लोगो न गरकपा एव गरमतर का सहारा ललया रधयानयोग लशववर म आय और गरदव की कपा बरसी | अब हमारी तीन सतान ह दो पतरतरयाा और एक पतर | गरदव न ही बड़ी बटी का नाम गोपी और बट का नाम हररककशन रखा ह | जय हो सदगरदव की

-हसिख काततलाल िोदी

५७ अपना घर सोसायिी सदर रोड़ स रत

(अनिम) पावन उदगार

गरदव न भजा अकषयपातर

हम परचारयातरा क दौरान गरकपा का जो अदभत अनभव हआ वह अवरकनीय ह | यातरा की शरआत स पहल ददनाक ८-११-९९ को हम पजय गरदव क आशीवाकद लन गय | गरदव न कायकिम क ववषय म पछा और कहा पचड़ आशरम (रतलाम) म भडारा था | उसम बहत सामान बच गया ह | गाड़ी भजकर मागवा लना गरीबो म बााटना | हम झाबआ लजल क आस-पास क

गरीब आददवासी इलाको म जानवाल थ | वहाा स रतलाम क ललए गाड़ी भजी | चगनकर सामान भरा गया | दो ददन चल उतना सामान था | एक ददन म दो भडार होत थ | अतः चार भडार का सामान था | सबन खकल हाथो बतकन कपड़ साडड़याा धोती आदद सामान छः ददनो तक बााटा कफर भी सामान बचा रहा | सबको आशचयक हआ हम लोग सामान कफर स चगनन लग परत गरदव की लीला क ववषय म कया कह कवल दो ददन चल उतना सामान छः ददनो तक खकल हाथो बााटा कफर भी अत म तीन बोर बतकन बच गय मानो गरदव न अकषयपातर भजा हो एक ददन शाम को भडारा परा हआ तब दखा कक एक पतीला चावल बच गया ह | करीब १००-१२५ लोग खा सक उतन चावल थ | हमन सोचा चावल गााव म बाट दत ह | परत गरदव की लीला दखो एक गााव क बदल पााच गाावो म बााट कफर भी चावल बच रह | आखखर रातरतर म ९ बज क बाद सवाधाररयो न थककर गरदव स पराथकना की कक गरदव अब जगल का ववसतार ह हम पर कपा करो | और चावल खसम हए | कफर सवाधारी तनवास पर पहाच |

-सत शरी आसारािजी भकतिडल

कतारगाि स रत

(अनिम) पावन उदगार

सवपन ि हदय हए वरदान स पतरपराषपत

मर गरहसथ जीवन म एक-एक करक तीन कनयाएा जनमी | पतरपरालपत क ललए मरी धमकपसनी न गरदव स आशीवाकद परापत ककया था | चौथी परसतत होन क पहल जब उसन वलसाड़ म सोनोगराफ़ी करवायी तो ररपोटक म लड़की बताया गया | यह सनकर हम तनराश हो गय | एक रात पसनी को सवपन म गरदव न दशकन ददय और कहा बटी चचता मत कर | घबराना मत धीरज रख | लड़का ही होगा | हमन सरत आशरम म बड़दादा की पररिमा करक मनौती मानी थी वह भी फ़लीभत हई और गरदव का बरहमवाकय भी ससय सातरबत हआ जब परसतत होन पर लड़का हआ | सभी गरदव की जय-जयकार करन लग |

-सनील किार रा शयाि चौरमसया

दीपकवाड़ी ककलला पारड़ी षज वलसाड़

(अनिम) पावन उदगार

शरी आसारािायण क पाठ स जीवनदान

मरा दस वषीय पतर एक रात अचानक बीमार हो गया | साास भी मलशकल स ल रहा था |

जब उस हॉलसपटल म भती ककया तब डॉकटर बोल | बचचा गभीर हालत म ह | ऑपरशन करना पड़गा | म बचच को हॉलसपटल म ही छोड़कर पस लन क ललए घर गया और घर म सभी को कहा ldquoआप लोग शरी आसारामायर का पाठ शर करो |rdquo पाठ होन लगा | थोड़ी दर बाद म हॉलसपटल पहाचा | वहाा दखा तो बचचा हास-खल रहा था | यह दख मरी और घरवालो की खशी का दठकाना न रहा यह सब बापजी की असीम कपा गर-गोववनद की कपा और शरी आसारामायर-पाठ का फल ह |

-सनील चाडक

अिरावती िहाराटर

(अनिम) पावन उदगार

गरवाणी पर षवशवास स अवणीय लाभ

शादी होन पर एक पतरी क बाद सात साल तक कोई सतान नही हई | हमार मन म पतरपरालपत की इचछा थी | १९९९ क लशववर म हम सतानपरालपत का आशीवाकद लनवालो की पलकत म बठ | बापजी आशीवाकद दन क ललए साधको क बीच आय तो कछ साधक नासमझी स कछ ऐस परशन कर बठ जो उनह नही करन चादहए थ | गरदव नाराज होकर यह कहकर चल गय कक तमको सतवारी पर ववशवास नही ह तो तम लोग यहाा कयो आय तमह डॉकटर क पास जाना चादहए था | कफर गरदव हमार पास नही आय | सभी पराथकना करत रह पर गरदव वयासपीठ स बोल दबारा तीन लशववर भरना | म मन म सोच रहा था कक कछ साधको क कारर मझ आशीवाकद नही लमल पाया परत वजरादषप कठोरारण िदतन कसिादषप बाहर स वजर स भी कठोर ददखन वाल सदगर भीतर स फल स भी कोमल होत ह | तरत गरदव ववनोद करत हए बोल दखो य लोग सतानपरालपत का आशीवाकद लन आय ह | कस ठनठनपाल-स बठ ह अब जाओ झला-झनझना लकर घर जाओ | मन और मरी पसनी न आपस म ववचार ककया दयाल गरदव न आखखर आशीवाकद द ही ददया | अब गरदव न कहा ह कक झला-झनझना ल जाओ |

तो मन गरवचन मानकर रलव सटशन स एक झनझना खरीद ललया और गवाललयर आकर गरदव क चचतर क पास रख ददया | मझ वहाा स आन क १५ ददन बाद डॉकटर दवारा मालम हआ

कक पसनी गभकवती ह | मन गरदव को मन-ही-मन परराम ककया | इस बीच डॉकटरो न सलाह दी कक लड़का ह या लड़की इसकी जााच करा लो | मन बड़ ववशवास स कहा कक लड़का ही होगा |

अगर लड़की भी हई तो मझ कोई आपवतत नही ह | मझ गभकपात का पाप अपन लसर पर नही लना ह | नौ माह तक मरी पसनी भी सवसथ रही | हररदवार लशववर म भी हम लोग गय | समय आन पर गरदव दवारा बताय गय इलाज क मतातरबक गाय क गोबर का रस पसनी को ददया और ददनाक २७ अकतबर १९९९ को एक सवसथ बालक का जनम हआ |

-राजनर किार वाजपयी अचयना वाजपयी

बलवत नगर ढाढीपर िरारा गवामलयर

(अनिम) पावन उदगार

सवफल क दो िकड़ो स दो सतान मन सन १९९१ म चटीचड लशववर अमदावाद म पजय बापजी स मतरदीकषा ली थी | मरी

शादी क १० वषक तक मख कोई सतान नही हई | बहत इलाज करवाय लककन सभी डॉकटरो न बताया कक बालक होन की कोई सभावना नही ह | तब मन पजय बापजी क पनम दशकन का वरत ललया और बाासवाड़ा म पनम दशकन क ललए गया | पजय बापजी सबको परसाद द रह थ | मन मन म सोचा | कया म इतना पापी हा कक बापजी मरी तरफ दखत तक नही इतन म पजय बापजी कक दलषटट मझ पर पड़ी और उनहोन मझ दो लमनट तक दखा | कफर उनहोन एक सवफल लकर मझ पर फ का जो मर दाय कध पर लगकर दो टकड़ो म बाट गया | घर जाकर मन उस सवफल क दोनो भाग अपनी पसनी को खखला ददय | पजयशरी का कपापरक परसाद खान स मरी पसनी गभकवती हो गयी | तनरीकषर करान पर पता चला कक उसको दो लसर वाला बालक उसपनन होगा |

डॉकटरो न बताया उसका लसजररयन करना पड़गा अनयथा आपकी पसनी क बचन की समभावना नही ह | लसजररयन म लगभग बीस हजार रपयो का खचक आयगा | मन पजय बापजी स पराथकना की ह बापजी आपन ही फल ददया था | अब आप ही इस सकट का तनवारर कीलजय | कफर मन बड़ बादशाह क सामन भी पराथकना की जब म असपताल पहाचा तो मरी पसनी की परसती सकशल हो जाय | उसक बाद जब म असपताल पहाचा तो मरी पसनी एक पतर और एक पतरी को जनम द चकी थी | पजयशरी क दवारा ददय गय फल स मझ एक की जगह दो सतानो की परालपत हई |

-िकशभाई सोलकी

शारदा िहदर सक ल क पीछ

बावन चाल वड़ोदरा

(अनिम) पावन उदगार

साइककल स गर ाि जान पर खराब िाग ठीक हो गयी

मरी बाायी टााग घटन स उपर पतली हो गयी थी | ऑल इखरडया मडडकल इनसटीटयट

ददकली म म छः ददन तक रहा | वहाा जााच क बाद बतलाया गया कक तमहारी रीढ की हडडी क पास कछ नस मर गयी ह लजसस यह टााग पतली हो गयी ह | यह ठीक तो हो ही नही सकती |

हम तमह ववटालमन ई क कपसल द रह ह | तम इनह खात रहना | इसस टाग और जयादा पतली नही होगी | मन एक साल तक कपसल खाय | उसक बाद २२ जन १९९७ को मजफ़फ़रनगर म मन गरजी स मतरदीकषा ली और दवाई खाना बद कर दी | जब एक साधक भाई राहल गपता न कहा कक सहारनपर स साइककल दवारा उततरायर लशववर अमदावाद जान का कायकिम बन रहा ह

तब मन टााग क बार म सोच तरबना साइककल यातरा म भाग लन क ललए अपनी सहमतत द दी |

जब मर घर पर पता चला कक मन साइककल स गरधाम अमदावाद जान का ववचार बनाया ह

अतः तम ११५० ककमी तक साइककल नही चला पाओग | लककन मन कहा म साइककल स ही गरधाम जाऊा गा चाह ककतनी भी दरी कयो न हो और हम आठ साधक भाई सहारनपर स २६ ददसमबर ९७ को साइककलो स रवाना हए | मागक म चढाई पर मझ जब भी कोइ ददककत होती तो ऐसा लगता जस मरी साइककल को कोई पीछ स धकल रहा ह | म मड़कर पीछ दखता तो कोई ददखायी नही पड़ता | ९ जनवरी को जब हम अमदावाद गरआशरम म पहाच और मन सबह अपनी टााग दखी तो म दग रह गय जो टााग पतली हो गयी थी और डॉकटरो न उस ठीक होन स मना कर ददया था वह टााग तरबककल ठीक हो गयी थी | इस कपा को दखकर म चककत रह गया मर साथी भी दग रह गय यह सब गरकपा क परसाद का चमसकार था | मर आठो साथी मरी पसनी तथा ऑल इखरडया मडडकल इनसटीटयट ददकली दवारा जााच क परमारपतर इस बात क साकषी ह |

-तनरकार अगरवाल

षवटणपरी नय िा ोनगर सहारनपर (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

अदभत रही िौनिहदर की सा ना परम पजय सदगरदव की कपा स मझ ददनाक १८ स २४ मई १९९९ तक अमदावाद

आशरम क मौनमददर म साधना करन का सअवसर लमला | मौनमददर म साधना क पााचव ददन यानी २२ मई की रातरतर को लगभग २ बज नीद म ही मझ एक झटका लगा | लट रहन कक लसथतत म ही मझ महसस हआ कक कोई अदशय शलकत मझ ऊपर बहत ऊपर उड़य ल जा रही ह | ऊपर उड़त हए जब मन नीच झााककर दखा तो अपन शरीर को उसी मौनमददर म चचतत लटा हआ बखबर सोता हआ पाया | ऊपर जहाा मझ ल जाया गया वहाा अलग ही छटा थी अजीब और अवरीय आकाश को भी भदकर मझ ऐस सथान पर पहाचाया गया था जहाा चारो तरफ कोहरा-ही-कोहरा था जस शीश की छत पर ओस फली हो इतन म दखता हा कक एक सभा लगी ह तरबना शरीर की कवल आकततयो की | जस रखाओ स मनषटयरपी आकततयाा बनी हो | यह सब कया चल रहा था समझ स पर था | कछ पल क बाद व आकततयाा सपषटट होन लगी | दवी-दवताओ क पज क मरधय शीषक म एक उचच आसन पर साकषात बापजी शकर भगवान बन हए कलास पवकत पर ववराजमान थ और दवी-दवता कतार म हाथ बााध खड़ थ | म मक-सा होकर अपलक नतरो स उनह दखता ही रहा कफर मतरमगध हो उनक चररो म चगर पड़ा | परातः क ४ बज थ | अहा मन और शरीर हकका-फ़कका लग रहा था यही लसथतत २४ मई की मरधयरातरतर म भी दोहरायी गयी | दसर ददन सबह पता चला कक आज तो बाहर तनकलन का ददन ह यानी रवववार २५ मई की सबह | बाहर तनकलन पर भावभरा हदय गदगद कठ और आखो म आास यो लग रहा था कक जस तनजधाम स बघर ककया जा रहा हा | धनय ह वह भलम मौनमददर म साधना की वह वयवसथा जहा स परम आनद क सागर म डबन की कजी लमलती ह जी करता ह भगवान ऐसा अवसर कफर स लाय लजसस कक उसी मौनमददर म पनः आतररक आनद का रसपान कर पाऊा |

-इनरनारायण शाह

१०३ रतनदीप-२ तनराला नगर कानपर

(अनिम) पावन उदगार

असाधय रोग स िषकत

सन १९९४ म मरी पतरी दहरल को शरद पखरकमा क ददन बखार आया | डॉकटरो को ददखाया तो ककसीन मलररया कहकर दवाइयाा दी तो ककसीन टायफायड कहकर इलाज शर ककया तो ककसीन टायफायड और मलररया दोनो कहा | दवाई की एक खराक लन स शरीर नीला पड़ गया और सज गया | शरीर म खन की कमी स उस छः बोतल खन चढाया गया | इजकषन दन स पर शरीर को लकवा मार गया | पीठ क पीछ शयावरर जसा हो गया | पीठ और पर का एकस-र ललया गया | पर पर वजन बााधकर रखा गया | डॉकटरो न उस वाय का बखार तथा रकत का क सर बताया और कहा कक उसक हदय तो वाकव चौड़ा हो गया ह | अब हम दहममत हार गय |

अब पजयशरी क लसवाय और कोई सहारा नही था | उस समय दहरल न कहा मममी मझ पजय बाप क पास ल चलो | वहाा ठीक हो जाऊगी | पााच ददन तक दहरल पजयशरी की रट लगाती रही |

हम उस अमदावाद आशरम म बाप क पास ल गय | बाप न कहा इस कछ नही हआ ह | उनहोन मझ और दहरल को मतर ददया एव बड़दादा की परदकषकषरा करन को कहा | हमन परदकषकषरा की और दहरल पनिह ददन म चलन-कफ़रन लगी | हम बाप की इस कररा-कपा का ॠर कस चकाय अभी तो हम आशरम म पजयशरी क शरीचररो म सपररवार रहकर धनय हो रह ह |

-परफलल वयास

भावनगर

वतयिान ि अिदावाद आशरि ि सपररवार सिषपयत

(अनिम) पावन उदगार

कसि का चितकार

वयापार उधारी म चल जान स म हताश हो गया था एव अपनी लजदगी स तग आकर आसमहसया करन की बात सोचन लगा था | मझ साध-महासमाओ व समाज क लोगो स घरा-सी हो गयी थी धमक व समाज स मरा ववशवास उठ चका था | एक ददन मरी साली बापजी क सससग कक दो कसट ववचध का ववधान एव आखखर कब तक ल आयी और उसन मझ सनन क ललए कहा | उसक कई परयास क बाद भी मन व कसट नही सनी एव मन-ही-मन उनह ढोग

कहकर कसटो क डडबब म दाल ददया | मन इतना परशान था कक रात को नीद आना बद हो गया था | एक रात कफ़कमी गाना सनन का मन हआ | अाधरा होन की वजह स कसट पहचान न सका और गलती स बापजी क सससग की कसट हाथ म आ गयी | मन उसीको सनना शर ककया | कफर कया था मरी आशा बाधन लगी | मन शाात होन लगा | धीर-धीर सारी पीड़ाएा दर

होती चली गयी | मर जीवन म रोशनी-ही-रोशनी हो गयी | कफर तो मन पजय बापजी क सससग की कई कसट सनी और सबको सनायी | तदनतर मन गालजयाबाद म बापजी स दीकषा भी गरहर की | वयापार की उधारी भी चकता हो गयी | बापजी की कपा स अब मझ कोई दःख नही ह | ह गरदव बस एक आप ही मर होकर रह और म आपका ही होकर रहा |

-ओिपरकाश बजाज

हदलली रोड़ सहारनपर उततर परदश

(अनिम) पावन उदगार

िझ पर बरसी सत की कपा

सन १९९५ क जन माह म म अपन लड़क और भतीज क साथ हररदवार रधयानयोग लशववर म भाग लन गया | एक ददन जब म हर की पौड़ी पर सनान करन गया तो पानी क तज बहाव क कारर पर कफसलन स मरा लड़का और भतीजा दोनो अपना सतलन खो बठ और गगा म बह गय | ऐसी सकट की घड़ी म म अपना होश खो बठा | कया करा म फट-फटकर रोन लगा और बापजी स पराथकना करन लगा कक ह नाथ ह गरदव रकषा कीलजय मर बचचो को बचा लीलजय | अब आपका ही सहारा ह | पजयशरी न मर सचच हदय स तनकली पकार सन ली और उसी समय मरा लड़का मझ ददखायी ददया | मन झपटकर उसको बाहर खीच ललया लककन मरा भतीजा तो पता नही कहाा बह गया म तनरतर रो रहा था और मन म बार-बार ववचार उठ रहा था कक बापजी मरा लड़का बह जाता तो कोई बात नही थी लककन अपन भाई की अमानत क तरबना म घर कया माह लकर जाऊा गा बापजी आपही इस भकत की लाज बचाओ | तभी गगाजी की एक तज लहर उस बचच को भी बाहर छोड़ गयी | मन लपककर उस पकड़ ललया |

आज भी उस हादस को समरर करता हा तो अपन-आपको साभाल नही पाता हा और मरी आाखो स तनरतर परम की अशरधारा बहन लगती ह | धनय हआ म ऐस गरदव को पाकर ऐस सदगरदव क शरीचररो म मर बार-बार शत-शत परराम

-सिालखा

पानीपत हररयाणा

(अनिम) पावन उदगार

गरकपा स जीवनदान

ददनाक १५-१-९६ की घटना ह | मन धात क तार पर सखन क ललए कपड़ फला रख थ |

बाररश होन क कारर उस तार म करट आ गया था | मरा छोटा पतर ववशाल जो कक ११ वी ककषा म पढता ह आकर उस तार स छ गया और तरबजली का करट लगत ही वह बहोश हो गया शव क समान हो गया | हमन उस तरत बड़ असपताल म दाखखल करवाया | डॉकटर न बचच की हालत गभीर बतायी | ऐसी पररलसथतत दखकर मरी आाखो स अशरधाराएा बह तनकली | म तनजानद की मसती म मसत रहन वाल पजय सदगरदव को मन-ही-मन याद ककया और पराथकना कक ह गरदव अब तो इस बचच का जीवन आपक ही हाथो म ह | ह मर परभ आप जो चाह सो कर सकत ह | और आखखर मरी पराथकना सफल हई | बचच म एक नवीन चतना का सचार हआ एव धीर-धीर बचच क सवासथय म सधार होन लगा | कछ ही ददनो म वह परकतः सवसथ हो गया |

डॉकटर न तो उपचार ककया लककन जो जीवनदान उस पयार परभ की कपा स सदगरदव की कपा स लमला उसका वरकन करन क ललए मर पास शबद नही ह | बस ईशवर स म यही पराथकना करता हा कक ऐस बरहमतनषटठ सत-महापरषो क परतत हमारी शरदधा म वदचध होती रह | -

डॉ वाय पी कालरा

शािलदास कॉलज भावनगर गजरात

(अनिम) पावन उदगार

प जय बाप जस सत दतनया को सवगय ि बदल सकत ह

मई १९९८ क अततम ददनो म पजयशरी क इदौर परवास क दौरान ईरान क ववखयात कफ़लजलशयन शरी बबाक अगरानी भारत म अरधयालसमक अनभवो की परालपत आय हए थ | पजयशरी क दशकन पाकर जब उनहोन अरधयालसमक अनभवो को फलीभत होत दखा तो व पचड़ आशरम म आयोलजत रधयानयोग लशववर म भी पहाच गय | शरी अगरानी जो दो ददन रककर वापस लौटन वाल थ व पर गयारह ददन तक पचड़ आशरम म रक रह | उनहोन ववधाथी लशववर म सारसवसय मतर की दीकषा ली एव ववलशषटट रधयानयोग साधना लशववर (४ -१० जन १९९८) का भी लाभ ललया | लशववर क दौरान शरी अगरानी न पजयशरी स मतरदीकषा भी ल ली | पजयशरी क सालननरधय म सपरापत अनभततयो क बार म कषतरतरय समाचार पतर चतना को दी हई भटवाताक म शरी अगरानी कहत ह यदद पजय बाप जस सत हर दश म हो जाय तो यह दतनया सवगक बन सकती ह | ऐस शातत स बठ पाना हमार ललए कदठन ह लककन जब पजय बापजी जस महापरषो क शरीचररो म बठकर

सससग सनत ह तो ऐसा आनद आता ह कक समय का कछ पता ही नही चलता | सचमच पजय बाप कोई साधारर सत नही ह |

-शरी बबाक अगरानी

षवशवषवखयात किषजमशयन ईरान

(अनिम) पावन उदगार

भौततक यग क अ कार ि जञान की जयोतत प जय बाप

मादक तनयतरर बयरो भारत सरकार क महातनदशक शरी एचपी कमार ९ मई को अमदावाद आशरम म सससग-कायकिम क दौरान पजय बाप स आशीवाकद लन पहाच | बड़ी ववनमरता एव शरदधा क साथ उनहोन पजय बाप क परतत अपन उदगार म कहा लजस वयलकत क पास वववक नही ह वह अपन लकषय तक नही पहाच सकता ह और वववक को परापत करन का साधन पजय आसारामजी बाप जस महान सतो का सससग ह | पजय बाप स मरा परथम पररचय टीवी क मारधयम स हआ | तसपशचात मझ आशरम दवार परकालशत ॠवष परसाद मालसक परापत हआ | उस समय मझ लगा कक एक ओर जहाा इस भौततक यग क अधकार म मानव भटक रहा ह वही दसरी ओर शातत की मद-मद सगचधत वाय भी चल रही ह | यह पजय बाप क सससग का ही परभाव ह | पजयशरी क दशकन करन का जो सौभागय मझ परापत हआ ह इसस म अपन को कतकसय मानता हा | पजय बाप क शरीमख स जो अमत वषाक होती ह तथा इनक सससग स करोड़ो हदयो म जो जयोतत जगती ह व इसी परकार स जगती रह और आन वाल लब समय तक पजयशरी हम सब का मागकदशकन करत रह यही मरी कामना ह | पजय बाप क शरीचररो म मर परराम

-शरी एचपी किार

िहातनदशक िादक तनयतरण बय रो भारत सरकार

(अनिम) पावन उदगार

िषसलि िहहला को पराणदान

२७ लसतमबर २००० को जयपर म मर तनवास पर पजय बाप का आसम-साकषासकार ददवस

मनाया गया लजसम मर पड़ोस की मलसलम मदहला नाथी बहन क पतत शरी मााग खाा न भी पजय बाप की आरती की और चररामत ललया | ३-४ ददन बाद ही व मलसलम दपतत खवाजा सादहब क उसक म अजमर चल गय | ददनाक ४ अकटबर २००० को अजमर क उसक म असामालजक तसवो न परसाद म जहर बााट ददया लजसस उसक मल म आय कई दशकनाथी असवसथ हो गय और कई मर भी गय | मर पड़ोस की नाथी बहन न भी वह परसाद खाया और थोड़ी दर म ही वह बहोश हो गयी | अजमर म उसका उपचार ककया गया ककत उस होश न आया | दसर ददन ही उसका पतत उस अपन घर ल आया | कॉलोनी क सभी तनवासी उसकी हालत दखकर कह रह थ कक अब इसका बचना मलशकल ह | म भी उस दखन गया | वह बहोश पड़ी थी | म जोर-जोर स हरर ॐ हरर ॐ का उचचारर ककया तो वह थोड़ा दहलन लगी | मझ परररा हई और म पनः घर गया | पजय बाप स पराथकना की | ३-४ घट बाद ही वह मदहला ऐस उठकर खड़ी हो गयी मानो सोकर उठी हो | उस मदहला न बताया कक मर चाचा ससर पीर ह और उनहोन मर पतत क माह स बोलकर बताया कक तमन २७ लसतमबर २००० को लजनक सससग म पानी वपया था उनही सफद दाढीवाल बाबा न तमह बचाया ह कसी कररा ह गरदव की

-जएल परोहहत

८७ सलतान नगर जयपर (राज)

उस िहहला का पता ह -शरीिती नाथी

पतनी शरी िाग खा

१०० सलतान नगर

गजयर की ड़ी

नय सागानर रोड़

जयप र (राज)

(अनिम) पावन उदगार

हररनाि की पयाली न छड़ायी शराब की बोतल

सौभागयवश गत २६ ददसमबर १९९८ को पजयशरी क १६ लशषटयो की एक टोली ददकली स हमार गााव म हररनाम का परचार-परसार करन पहाची | म बचपन स ही मददरापान धमरपान व लशकार करन का शौकीन था | पजय बाप क लशषटयो दवारा हमार गााव म जगह-जगह पर तीन ददन तक लगातार हररनाम का कीतकन करन स मझ भी हररनाम का रग लगता जा रहा था |

उनक जान क एक ददन क पशचात शाम क समय रोज की भातत मन शराब की बोतल तनकाली | जस ही बोतल खोलन क ललए ढककन घमाया तो उस ढककन क घमन स मझ हरर ॐ हरर ॐ की रधवतन सनायी दी | इस परकार मन दो-तीन बार ढककन घमाया और हर बार मझ हरर ॐ

की रधवतन सनायी दी | कछ दर बाद म उठा तथा पजयशरी क एक लशषटय क घर गया | उनहोन थोड़ी दर मझ पजयशरी की अमतवारी सनायी | अमतवारी सनन क बाद मरा हदय पकारन लगा कक इन दवयकसनो को सयाग दा | मन तरत बोतल उठायी तथा जोर-स दर खत म फ क दी | ऐस समथक व परम कपाल सदगरदव को म हदय स परराम करता हा लजनकी कपा स यह अनोखी घटना मर जीवन म घटी लजसस मरा जीवन पररवततकत हआ |

-िोहन मसह बबटि

मभखयासन अलिोड़ा (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

प र गाव की कायापलि

पजयशरी स ददनाक २७६९१ को दीकषा लन क बाद मन वयवसनमलकत क परचार-परसार का लकषय बना ललया | म एक बार कौशलपर (लज शाजापर) पहाचा | वहाा क लोगो क वयवसनी और लड़ाई-झगड़ यकत जीवन को दखकर मन कहा आप लोग मनषटय-जीवन सही अथक ही नही समझत ह | एक बार आप लोग पजय बापजी क दशकन कर ल तो आपको सही जीवन जीन की कजी लमल जायगी | गााव वालो न मरी बात मान ली और दस वयलकत मर गााव ताजपर आय |

मन एक साधक को उनक साथ जनमाषटटमी महोससव म सरत भजा | पजय बापजी की उन पर कपा बरसी और सबको गरदीकषा लमल गयी | जब व लोग अपन गााव पहाच तो सभी गााववालसयो को बड़ा कौतहल था कक पजय बापजी कस ह बापजी की लीलाएा सनकर गााव क अनय लोगो म भी पजय बापजी क परतत शरदधा जगी | उन दीकषकषत साधको न सभी गााववालो को सववधानसार पजय बापजी क अलग-अलग आशरमो म भजकर दीकषा ददलवा दी | गााव क सभी वयलकत अपन

पर पररवार सदहत दीकषकषत हो चक ह | परसयक गरवार को पर गााव म एक समय भोजन बनता ह | सभी लोग गरवार का वरत रखत ह | कौशलपर गााव क परभाव स आस-पास क गााववाल एव उनक ररशतदारो सदहत १००० वयलकतयो शराब छोड़कर दीकषा ल ली ह | गााव क इततहास म तीन-तीन पीढी स कोई मददर नही था | गााववालो न ५ लाख रपय लगाकर दो मददर बनवाय ह | परा गााव वयवसनमकत एव भगवतभकत बन गया ह यह पजय बापजी की कपा नही तो और कया ह सबक ताररहार पजय बापजी क शरीचररो म कोदट-कोदट परराम

-शयाि परजापतत (सपरवाइजर ततलहन सघ) ताजपर

उजजन (िपर)

(अनिम) पावन उदगार

प जयशरी की तसवीर स मिली पररणा सवकसमथक परम पजय शरी बापजी क चररकमलो म मरा कोदट-कोदट नमन १९८४ क

भकप स समपरक उततर तरबहार म काफी नकसान हआ था लजसकी चपट म हमारा घर भी था |

पररलसथततवश मझ नौवी ककषा म पढायी छोड़ दनी पड़ी | ककसी लमतर की सलाह स म नौकरी ढाढन क ललए ददकली गया लककन वहाा भी तनराशा ही हाथ लगी | म दो ददन स भखा तो था ही ऊपर स नौकरी की चचता | अतः आसमहसया का ववचार करक रलव सटशन की ओर चल पड़ा | रानीबाग बाजार म एक दकान पर पजयशरी का सससादहसय कसट आदद रखा हआ था एव पजयशरी की बड़ आकार की तसवीर भी टागी थी | पजयशरी की हासमख एव आशीवाकद की मिावाली उस तसवीर पर मरी नजर पड़ी तो १० लमनट तक म वही सड़क पर स ही खड़-खड़ उस दखता रहा | उस वकत न जान मझ कया लमल गया म काम भल मजदरी का ही करता हा लककन तबस लकर आज तक मर चचतत म बड़ी परसननता बनी हई ह | न जान मरी लजनदगी की कया दशा होती अगर पजय बापजी की यवाधन सरकषा ईशवर की ओर तनलशचनत जीवन पसतक और ॠवष परसाद पतरतरका हाथ न लगती पजयशरी की तसवीर स लमली परररा एव उनक सससादहसय न मरी डबती नया को मानो मझदार स बचा ललया | धनभागी ह सादहसय की सवा करन वाल लजनहोन मझ आसमहसया क पाप स बचाया |

-िहश शाह

नारायणपर दिरा षज सीतािढ़ी (बबहार)

(अनिम) पावन उदगार

नतरबबद का चितकार

मरा सौभागय ह कक मझ सतकपा नतरतरबद (आई डरॉपस) का चमसकार दखन को लमला |

एक सत बाबा लशवरामदास उमर ८० वषक गीता कदटर तपोवन झाड़ी सपतसरोवर हररदवार म रहत ह | उनकी दादहनी आाख क सफद मोततय का ऑपरशन शााततकज हररदवार आयोलजत कमप म हआ | कस तरबगड़ गया और काल मोततया बन गया | ददक रहन लगा और रोशनी घटन लगी |

दोबारा भमाननद नतर चचककससालय म ऑपरशन हआ | एबसकयट गलकोमा बतात हए कहा कक ऑपरशन स लसरददक ठीक हो जायगा पर रोशनी जाती रहगी | परत अब व बाबा सत शरी आसारामजी आशरम दवार तनलमकत सतकपा नतरतरबद सबह-शाम डाल रह ह | मन उनक नतरो का परीकषर ककया | उनकी दादहनी आाख म उागली चगनन लायक रोशनी वापस आ गयी ह | काल मोततय का परशर नॉमकल ह | कोतनकया म सजन नही ह | व काफी सतषटट ह | व बतात ह आाख पहल लाल रहती थी परत अब नही ह | आशरम क नतरतरबद स ककपनातीत लाभ हआ | बायी आाख म भी उनह सफद मोततया बताया गया था और सशय था कक शायद काला मोततया भी ह |

पर आज बायी आाख भी ठीक ह और दोनो आाखो का परशर भी नॉमकल ह | सफद मोततया नही ह और रोशनी काफी अचछी ह | यह सतकपा नतरबद का ववलकषर परभाव दखकर म भी अपन मरीजो को इसका उपयोग करन की सलाह दागा |

-डॉ अननत किार अगरवाल (नतररोग षवशिजञ)

एिबीबीएस एिएस (नतर) डीओएिएस (आई)

सीतापर सहारनपर (उपर)

(अनिम) पावन उदगार

ितर स लाभ

मरी माा की हालत अचानक पागल जसी हो गयी थी मानो कोई भत-परत-डाककनी या आसरी तसव उनम घस गया | म बहत चचततत हो गया एव एक साचधका बहन को फोन ककया |

उनहोन भत-परत भगान का मतर बताया लजसका वरकन आशरम स परकालशत आरोगयतनचध पसतक म भी ह | वह मतर इस परकार ह

ॐ निो भगवत रर भरवाय भ तपरत कषय कर कर ह फि सवाहा |

इस मतर का पानी म तनहारकर १०८ बार जप ककया और वही पानी माा को वपला ददया |

तरत ही माा शातत स सो गयी | दसर ददन भी इस मतर की पााच माला करक माा को वह जल वपलाया तो माा तरबककल ठीक हो गयी | ह मर साधक भाई-बहनो भत-परत भगान क ललए अला बााधा बला बााधा ऐसा करक झाड़-फ़ा क करनवालो क चककर म पड़न की जररत नही ह |

इसक ललए तो पजय बापजी का मतर ही ताररहार ह | पजय बापजी क शरीचररो म कोदट-कोदट परराम

-चपकभाई एन पिल (अिररका)

(अनिम) पावन उदगार

काि करो पर षवजय पायी एक ददन मबई मल म दटकट चककग करत हए म वातानकललत बोगी म पहाचा | दखा तो

मखमल की गददी पर टाट का आसन तरबछाकर सवामी शरी लीलाशाहजी महाराज समाचधसथ ह |

मझ आशचयक हआ कक लजन परथम शररी की वातानकललत बोचगयो म राजा-महाराजा यातरा करत ह ऐसी बोगी और तीसरी शररी की बोगी क बीच इन सत को कोई भद नही लगता | ऐसी बोचगयो म भी व समाचधसथ होत ह यह दखकर लसर झक जाता ह | मन पजय महाराजशरी को परराम करक कहा आप जस सतो क ललए तो सब एक समान ह | हर हाल म एकरस रहकर आप मलकत का आनद ल सकत ह | लककन हमार जस गरहसथो को कया करना चादहए ताकक हम भी आप जसी समता बनाय रखकर जीवन जी सक पजय महाराजजी न कहा काम और िोध को त छोड़ द तो त भी जीवनमकत हो सकता ह | जहाा राम तहा नही काम जहाा काम तहा नही राम | और िोध तो भाई भसमासर ह | वह तमाम पणय को जलाकर भसम कर दता ह

अतःकरर को मललन कर दता ह | मन कहा परभ अगर आपकी कपा होगी तो म काम-िोध को छोड़ पाऊा गा | पजय महाराजजी न कहा भाई कपा ऐस थोड़ ही की जाती ह सतकपा क साथ तरा परषाथक और दढता भी चादहए | पहल त परततजञा कर कक त जीवनपयकनत काम और िोध स दर रहगा तो म तझ आशीवाकद दा | मन कहा महाराजजी म जीवनभर क ललए परततजञा तो करा लककन उसका पालन न कर पाऊा तो झठा माना जाऊा गा | पजय महाराजजी न कहा अचछा पहल त मर समकष आठ ददन क ललए परततजञा कर | कफर परततजञा को एक-एक ददन बढत जाना | इस परकार त उन बलाओ स बच सकगा | ह कबल मन हाथ जोड़कर कबल

ककया | पजय महाराजजी न आशीवाकद दकर दो-चार फल परसाद म ददय | पजय महाराजजी न मरी जो दो कमजोररयाा थी उन पर ही सीधा हमला ककया था | मझ आशचयक हआ कक अनय कोई भी दगकर छोड़न का न कहकर इन दो दगकरो क ललए ही उनहोन परततजञा कयो करवायी बाद म म इस राज स अवगत हआ |

दसर ददन म पसनजर रन म कानपर स आग जा रहा था | सबह क करीब नौ बज थ |

तीसरी शररी की बोगी म जाकर मन यातरतरयो क दटकट जााचन का कायक शर ककया | सबस पहल बथक पर सोय हए एक यातरी क पास जाकर मन एक यातरी क पास जाकर मन दटकट ददखान को कहा तो वह गससा होकर मझ कहन लगा अधा ह दखता नही कक म सो गया हा मझ नीद स जगान का तझ कया अचधकार ह यह कोई रीत ह दटकट क बार म पछन की ऐसी ही अकल ह तरी ऐसा कछ-का-कछ वह बोलता ही गया बोलता ही गया | म भी िोधाववषटट होन लगा ककत पजय महाराजजी क समकष ली हई परततजञा मझ याद थी अतः िोध को ऐस पी गया मानो ववष की पडड़या मन उस कहा महाशय आप ठीक ही कहत ह कक मझ बोलन की अकल नही ह भान नही ह | दखो मर य बाल धप म सफद हो गय ह | आपम बोलन की अकल अचधक ह नमरता ह तो कपा करक लसखाओ कक दटकट क ललए मझ ककस परकार आपस पछना चादहए | म लाचार हा कक डयटी क कारर मझ दटकट चक करना पड़ रहा ह इसललए म आपको कषटट द रहा हा| और कफ़र मन खब परम स हाथ जोड़कर ववनती की भया कपा करक कषटट क ललए मझ कषमा करो | मझ अपना दटकट ददखायग मरी नमरता दखकर वह ललजजत हो गया एव तरत उठ बठा | जकदी-जकदी नीच उतरकर मझस कषमा माागत हए कहन लगा मझ माफ करना | म नीद म था | मन आपको पहचाना नही था | अब आप अपन माह स मझ कह कक आपन मझ माफ़ ककया यह दखकर मझ आनद और सतोष हआ | म सोचन लगा कक सतो की आजञा मानन म ककतनी शलकत और दहत तनदहत ह सतो की कररा कसा चमसकाररक पररराम लाती ह वह वयलकत क पराकततक सवभाव को भी जड़-मल स बदल सकती ह | अनयथा मझम िोध को तनयतरर म रखन की कोई शलकत नही थी | म परकतया असहाय था कफर भी मझ महाराजजी की कपा न ही समथक बनाया | ऐस सतो क शरीचररो म कोदट-कोदट नमसकार

-शरी रीजिल

ररिायडय िीिी आई कानपर

(अनिम) पावन उदगार

जला हआ कागज प वय रप ि पवक रप म एक बार परमहस ववशदधानदजी स आनदमयी माा की तनकटता पानवाल

सपरलसदध पडडत गोपीनाथ कववराज न तनवदन ककया तररीकानत ठाकर को अलौककक लसदचध परापत हई ह | व तरबना दख या तरबना छए ही कागज म ललखी हई बात पढ लत ह | गरदव बोल तम एक कागज पर कछ ललखो और उसम आग लगाकर जला दो | कववराजजी न कागज पर कछ ललखा और परी तरह कागज जलाकर हवा म उड़ा ददया | उसक बाद गरदव न अपन तककय क नीच स वही कागज तनकालकर कववराजजी क आग रख ददया | यह दखकर उनह बड़ा आशचयक हआ कक यह कागज वही था एव जो उनहोन ललखा था वह भी उस पर उनही क सलख म ललखा था और साथ ही उसका उततर भी ललखा हआ दखा |

जड़ता पशता और ईशवरता का मल हमारा शरीर ह | जड़ शरीर को म-मरा मानन की ववतत लजतनी लमटती ह पाशवी वासनाओ की गलामी उतनी हटती ह और हमारा ईशवरीय अश लजतना अचधक ववकलसत होता ह उतना ही योग-सामथयक ईशवरीय सामथयक परकट होता ह | भारत क ऐस कई भकतो सतो और योचगयो क जीवन म ईशवरीय सामथयक दखा गया ह अनभव ककया गया ह उसक ववषय म सना गया ह | धनय ह भारतभलम म रहनवाल भारतीय ससकतत म शरदधा-ववशवास रखनवाल अपन ईशवरीय अश को जगान की सवा-साधना करनवाल सवामी ववशदधानदजी वषो की एकात साधना और वषो-वषो की गरसवा स अपना दहारधयास और पाशवी वासनाएा लमटाकर अपन ईशवरीय अश को ववकलसत करनवाल भारत क अनक महापरषो म स थ | उनक जीवन की और भी अलौककक घटनाओ का वरकन आता ह | ऐस ससपरषो क जीवन-चररतर और उनक जीवन म घदटत घटनाएा पढन-सनन स हम लोग भी अपनी जड़ता एव पशता स ऊपर उठकर ईशवरीय अश को उभारन म उससादहत होत ह | बहत ऊा चा काम ह बड़ी शरदधा बड़ी समझ बड़ा धयक चादहए ईशवरीय सामथयक को परक रप स ववकलसत करन म |

(अनिम) पावन उदगार

नदी की ारा िड़ गयी आदय शकराचायक की माता ववलशषटटा दवी अपन कलदवता कशव की पजा करन जाती थी

| व पहल नदी म सनान करती और कफ़र मददर म जाकर पजन करती | एक ददन व परातःकाल ही पजन-सामगरी लकर मददर की ओर गयी ककत सायकाल तक घर नही लौटी | शकराचायक की आय अभी सात-आठ वषक क मरधय म ही थी | व ईशवर क परम भकत और तनषटठावान थ | सायकाल

तक माता क वापस न लौटन पर आचायक को बड़ी चचनता हई और व उनह खोजन क ललए तनकल पड़ | मददर क तनकट पहाचकर उनहोन माता को मागक म ही मलचछकत पड़ दखा | उनहोन बहत दर तक माता का उपचार ककया तब व होश म आ सकी | नदी अचधक दर थी | वहाा तक पहाचन म माता को बड़ा कषटट होता था | आचायक न भगवान स मन-ही-मन पराथकना की कक परभो ककसी परकार नदी की धारा को मोड़ दो लजसस कक माता तनकट ही सनान कर सक | व इस परकार की पराथकना तनसय करन लग | एक ददन उनहोन दखा कक नदी की धारा ककनार की धरती को काटती-काटती मड़न लगी ह तथा कछ ददनो म ही वह आचायक शकर क घर क पास बहन लगी | इस घटना न आचायक का अलौककक शलकतसमपनन होना परलसदध कर ददया |

(अनिम) पावन उदगार

सदगर-िहहिा गर बबन भव तनध तर न कोई |

जौ बरधच सकर सि होई ||

-सत तलसीदासजी

हररहर आहदक जगत ि प जयदव जो कोय |

सदगर की प जा ककय सबकी प जा होय ||

-तनशचलदासजी महाराज

सहजो कारज ससार को गर बबन होत नाही |

हरर तो गर बबन कया मिल सिझ ल िन िाही ||

-सत कबीरजी सत

सरतन जो जन पर सो जन उ रनहार |

सत की तनदा नानका बहरर बहरर अवतार ||

-गर नानक दवजी

गरसवा सब भागयो की जनमभलम ह और वह शोकाकल लोगो को बरहममय कर दती ह | गररपी सयक अववदयारपी रातरतर का नाश करता ह और जञानाजञान रपी लसतारो का लोप करक बदचधमानो को आसमबोध का सददन ददखाता ह |

-सत जञानशवर महाराज

ससय क कटकमय मागक म आपको गर क लसवाय और कोई मागकदशकन नही द सकता |

- सवामी लशवानद सरसवती

ककतन ही राजा-महाराजा हो गय और होग सायजय मलकत कोई नही द सकता | सचच राजा-महाराज तो सत ही ह | जो उनकी शरर जाता ह वही सचचा सख और सायजय मलकत पाता ह |

-समथक शरी रामदास सवामी

मनषटय चाह ककतना भी जप-तप कर यम-तनयमो का पालन कर परत जब तक सदगर की कपादलषटट नही लमलती तब तक सब वयथक ह |

-सवामी रामतीथक

पलटो कहत ह कक सकरात जस गर पाकर म धनय हआ |

इमसकन न अपन गर थोरो स जो परापत ककया उसक मदहमागान म व भावववभोर हो जात थ |

शरी रामकषटर परमहस परकता का अनभव करानवाल अपन सदगरदव की परशसा करत नही अघात थ |

पजयपाद सवामी शरी लीलाशाहजी महाराज भी अपन सदगरदव की याद म सनह क आास बहाकर गदगद कठ हो जात थ |

पजय बापजी भी अपन सदगरदव की याद म कस हो जात ह यह तो दखत ही बनता ह | अब हम उनकी याद म कस होत ह यह परशन ह | बदहमकख तनगर लोग कछ भी कह साधक को अपन सदगर स कया लमलता ह इस तो साधक ही जानत ह |

(अनिम) पावन उदगार

लडी िाहियन क सहाग की रकषा करन अफगातनसतान ि परकि मशवजी

सा सग ससार ि दलयभ िनटय शरीर |

सतसग सषवत ततव ह बतरषव ताप की पीर ||

मानव-दह लमलना दलकभ ह और लमल भी जाय तो आचधदववक आचधभौततक और आरधयालसमक य तीन ताप मनषटय को तपात रहत ह | ककत मनषटय-दह म भी पववतरता हो सचचाई हो शदधता हो और साध-सग लमल जाय तो य तरतरववध ताप लमट जात ह |

सन १८७९ की बात ह | भारत म तरबरदटश शासन था उनही ददनो अगरजो न अफगातनसतान पर आिमर कर ददया | इस यदध का सचालन आगर मालवा तरबरदटश छावनी क ललफ़टनट कनकल मादटकन को सौपा गया था | कनकल मादटकन समय-समय पर यदध-कषतर स अपनी पसनी को कशलता क समाचार भजता रहता था | यदध लबा चला और अब तो सदश आन भी बद हो गय | लडी मादटकन को चचता सतान लगी कक कही कछ अनथक न हो गया हो अफगानी सतनको न मर पतत को मार न डाला हो | कदाचचत पतत यदध म शहीद हो गय तो म जीकर कया करा गी -यह सोचकर वह अनक शका-कशकाओ स तघरी रहती थी | चचनतातर बनी वह एक ददन घोड़ पर बठकर घमन जा रही थी | मागक म ककसी मददर स आती हई शख व मतर रधवतन न उस आकवषकत ककया | वह एक पड़ स अपना घोड़ा बााधकर मददर म गयी | बजनाथ महादव क इस मददर म लशवपजन म तनमगन पडडतो स उसन पछा आप लोग कया कर रह ह एक वरदध बराहमर न कहा हम भगवान लशव का पजन कर रह ह | लडी मादटकन लशवपजन की कया महतता ह

बराहमर बटी भगवान लशव तो औढरदानी ह भोलनाथ ह | अपन भकतो क सकट-तनवारर करन म व ततनक भी दर नही करत ह | भकत उनक दरबार म जो भी मनोकामना लकर क आता ह उस व शीघर परी करत ह ककत बटी तम बहत चचलनतत और उदास नजर आ रही हो कया बात ह लडी मादटकन मर पततदव यदध म गय ह और ववगत कई ददनो स उनका कोई समाचार नही आया ह | व यदध म फा स गय ह या मार गय ह कछ पता नही चल रहा | म उनकी ओर स बहत चचलनतत हा | इतना कहत हए लडी मादटकन की आाख नम हो गयी | बराहमर तम चचनता मत करो बटी लशवजी का पजन करो उनस पराथकना करो लघरिी करवाओ |

भगवान लशव तमहार पतत का रकषर अवशय करग |

पडडतो की सलाह पर उसन वहाा गयारह ददन का ॐ नमः लशवाय मतर स लघरिी अनषटठान परारभ ककया तथा परततददन भगवान लशव स अपन पतत की रकषा क ललए पराथकना करन लगी कक ह भगवान लशव ह बजनाथ महादव यदद मर पतत यदध स सकशल लौट आय तो म आपका लशखरबद मददर बनवाऊा गी | लघरिी की पराकहतत क ददन भागता हआ एक सदशवाहक लशवमददर म आया और लडी मादटकन को एक ललफाफा ददया | उसन घबरात-घबरात वह ललफाफा खोला और पढन लगी |

पतर म उसक पतत न ललखा था हम यदध म रत थ और तम तक सदश भी भजत रह लककन

आक पठानी सना न घर ललया | तरबरदटश सना कट मरती और म भी मर जाता | ऐसी ववकट पररलसथतत म हम तघर गय थ कक परार बचाकर भागना भी असयाचधक कदठन था | इतन म मन दखा कक यदधभलम म भारत क कोई एक योगी लजनकी बड़ी लमबी जटाएा ह हाथ म तीन नोकवाला एक हचथयार (तरतरशल) इतनी तीवर गतत स घम रहा था कक पठान सतनक उनह दखकर भागन लग | उनकी कपा स घर स हम तनकलकर पठानो पर वार करन का मौका लमल गया और हमारी हार की घडड़याा अचानक जीत म बदल गयी | यह सब भारत क उन बाघामबरधारी एव तीन नोकवाला हचथयार धारर ककय हए (तरतरशलधारी) योगी क कारर ही समभव हआ | उनक महातजसवी वयलकतसव क परभाव स दखत-ही-दखत अफगातनसतान की पठानी सना भाग खड़ी हई और व परम योगी मझ दहममत दत हए कहन लग | घबराओ नही | म भगवान लशव हा तथा तमहारी पसनी की पजा स परसनन होकर तमहारी रकषा करन आया हा उसक सहाग की रकषा करन आया हा |

पतर पढत हए लडी मादटकन की आाखो स अववरत अशरधारा बहती जा रही थी उसका हदय अहोभाव स भर गया और वह भगवान लशव की परततमा क सममख लसर रखकर पराथकना करत-करत रो पड़ी | कछ सपताह बाद उसका पतत कनकल मादटकन आगर छावनी लौटा | पसनी न उस सारी बात सनात हए कहा आपक सदश क अभाव म म चचलनतत हो उठी थी लककन बराहमरो की सलाह स लशवपजा म लग गयी और आपकी रकषा क ललए भगवान लशव स पराथकना करन लगी | उन दःखभजक महादव न मरी पराथकना सनी और आपको सकशल लौटा ददया | अब तो पतत-पसनी दोनो ही तनयलमत रप स बजनाथ महादव क मददर म पजा-अचकना करन लग | अपनी पसनी की इचछा पर कनकल मादटकन म सन १८८३ म पिह हजार रपय दकर बजनाथ महादव मददर का जीरोदवार करवाया लजसका लशलालख आज भी आगर मालवा क इस मददर म लगा ह | पर भारतभर म अगरजो दवार तनलमकत यह एकमातर दहनद मददर ह |

यरोप जान स पवक लडी मादटकन न पडड़तो स कहा हम अपन घर म भी भगवान लशव का मददर बनायग तथा इन दःख-तनवारक दव की आजीवन पजा करत रहग |

भगवान लशव म भगवान कषटर म माा अमबा म आसमवतता सदगर म सतता तो एक ही ह | आवशयकता ह अटल ववशवास की | एकलवय न गरमतत क म ववशवास कर वह परापत कर ललया जो

अजकन को कदठन लगा | आरखर उपमनय धरव परहलाद आदद अनय सकड़ो उदारहर हमार सामन परसयकष ह | आज भी इस परकार का सहयोग हजारो भकतो को साधको को भगवान व आसमवतता सदगरओ क दवारा तनरनतर परापत होता रहता ह | आवशयकता ह तो बस कवल ववशवास की |

(अनिम) पावन उदगार

सखप वयक परसवकारक ितर

पहला उपाय

ए ही भगवतत भगिामलतन चल चल भरािय भरािय पटप षवकासय षवकासय सवाहा |

इस मतर दवारा अलभमतरतरत दध गलभकरी सतरी को वपलाय तो सखपवकक परसव होगा |

द सरा उपाय

गलभकरी सतरी सवय परसव क समय जमभला-जमभला जप कर |

तीसरा उपाय

दशी गाय क गोबर का १२ स १५ लमली रस ॐ नमो नारायराय मतर का २१ बार जप करक पीन स भी परसव-बाधाएा दर होगी और तरबना ऑपरशन क परसव होगा |

परसतत क समय अमगल की आशका हो तो तनमन मतर का जप कर

सवयिगल िागलय मशव सवायथय साध क |

शरणय तरयमबक गौरी नारायणी निोSसतत ||

(दगायसपतशती)

(अनिम) पावन उदगार

सवागीण षवकास की कषजया यादशषकत बढ़ान हतः परततददन 15 स 20 लमली तलसी रस व एक चममच चयवनपराश

का थोड़ा सा घोल बना क सारसवसय मतर अथवा गरमतर जप कर पीय 40 ददन म चमसकाररक लाभ होगा

भोजन क बाद एक लडड चबा-चबाकर खाय

100 गराम सौफ 100 गराम बादाम 200 गराम लमशरी तीनो को कटकर लमला ल सबह यह लमशरर 3 स 5 गराम चबा-चबाकर खाय ऊपर स दध पी ल (दध क साथ भी ल सकत ह) इसस भी यादशलकत बढगी

पढ़ा हआ पाठ याद रह इस हतः अरधययन क समय पवक या उततर की ओर माह करक सीध बठ

सारसवसय मतर का जप करक कफर जीभ की नोक को ताल म लगाकर पढ

अरधययन क बीच-बीच म अत म शात हो और पढ हए का मनन कर ॐ शातत रामराम या गरमतर का समरर करक शात हो

कद बढ़ान हतः परातःकाल दौड़ लगाय पल-अपस व ताड़ासन कर तथा 2 काली लमचक क टकड़ करक मकखन म लमलाकर तनगल जाय दशी गाय का दध कदवदचध म ववशष सहायक ह

शरीरपषटि हतः भोजन क पहल हरड़ चस व भोजन क साथ भी खाय

रातरतर म एक चगलास पानी म एक नीब तनचोड़कर उसम दो ककशलमश लभगो द सबह पानी छानकर पी जाय व ककशलमश चबाकर खा ल

नतरजयोतत बढ़ान हतः सौफ व लमशरी 1-1 चममच लमलाकर रात को सोत समय खाय यह परयोग तनयलमत रप स 5-6 माह तक कर

नतररोगो स रकषा हतः परो क तलवो व अागठो की सरसो क तल स माललश कर ॐ अरणाय ह फट सवाहा इस जपत हए आाख धोन स अथाकत आाखो म धीर-धीर पानी छााटन स आाखो की असहय पीड़ा लमटती ह

डरावन बर सवपनो स बचाव हतः ॐ हरय निः मतर जपत हए सोय लसरहान आशरम की तनःशकक परसादी गरहदोष-बाधा तनवारक यतर रख द

दःख िसीबत एव गरहबा ा तनवारण हतः जनमददवस क अवसर पर महामसयञजय मतर का जप करत हए घी दध शहद और दवाक घास क लमशरर की आहततयाा डालत हए हवन कर इसस जीवन म दःख आदद का परभाव शात हो जायगा व नया उससाह परापत होगा

घर ि सख सवासथय व शातत हतः रोज परातः व साय दशी गाय क गोबर स बन कणड का एक छोटा टकड़ा जला ल उस पर दशी गौघत लमचशरत चावल क कछ दान डाल द ताकक व जल जाय इसस घर म सवासथय व शातत बनी रहती ह तथा वासतदोषो का तनवारर होता ह

आधयाषतिक उननतत हतः चलत कफरत दतनक कायक करत हए भगवननाम का जप सब म भगवननाम हर दो कायो क बीच थोड़ा शात होना सबकी भलाई म अपना भला मानना मन क ववचारो पर तनगरानी रखना आदरपवकक सससग व सवारधयाय करना आदद शीघर आरधयालसमक उननतत क उपाय ह

(अनिम) पावन उदगार

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परातः समररीय परम पजय

सत शरी आसारामजी बाप

क सससग परवचनो म स नवनीत

ईशवर की ओर

ईशवर की ओर

मोहतनशा स जागो

कवल तनचध

जञानयोग

जञानगोषटठी

दतत और लसदध का सवाद

चचनतन कखरका

पराथकना

ईशवर की ओर

(माचक 1982 म आशरम म चदटचड चत शकल दज का रधयान योग लशववर चल रहा ह परात काल म साधक भाई बहन पजय शरी क मधर और पावन सालननरधय म रधयान कर रह ह पजय शरी उनह रधयान दवारा जीवन और मसय की गहरी सतहो म उतार रह ह | जीवन क गपत रहसयो का अनभव करा रह ह साधक लोग रधयान म पजयशरी की धीर गमभीर मधर वारी क तत क सहार अपन अनतर म उतरत जा रह ह पजय शरी कह रह ह)

इलनियाथष वरागय अनहकार एव च

जनममसयजरावयाचधदखदोषानदशकनम

lsquoइलनिय ववषयो म ववरकत अहकार का अभाव जनम मसय जरा और रोग आदद म दख और दोषो को दखना (यह जञान ह) rsquo

आज तक कई जनमो क कटमब और पररवार तमन सजाय धजाय मसय क एक झटक स व सब छट गय अत अभी स कटमब का मोह मन ही मन हटा दो

यदद शरीर की इजजत आबर की इचछा ह शरीर क मान मरतब की इचछा ह तो वह आरधयालसमक राह म बड़ी रकावट हो जायगी फ क दो शरीर की ममता को तनदोष बालक जस हो जाओ

इस शरीर को बहत साभाला कई बार इसको नहलाया कई बार खखलाया वपलाया कई बार घमाया लककनhellip लककन यह शरीर सदा फररयाद करता ही रहा कभी बीमारी कभी अतनिा कभी जोड़ो म ददक कभी लसर म ददक कभी पचना कभी न पचना शरीर की गलामी बहत कर ली

मन ही मन अब शरीर की यातरा कर लो परी शरीर को कब तक म मानत रहोग बाबाhellip

अब दढतापवकक मन स ही अनभव करत चलो कक तमहारा शरीर दररया क ककनार घमन गया बच पर बठा सागर क सौनदयक को तनहार रहा ह आ गया कोई आखखरी झटका तमहारी गरदन झक गयी तम मर गयhellip

घर पर ही लसरददक हआ या पट म कछ गड़बड़ हई बखार आया और तम मर गयhellip

तम ललखत-ललखत अचानक हकक बकक हो गय हो गया हाटकफल तम मर गयhellip

तम पजा करत करत अगरबतती करत करत एकदम सो गय आवाज लगायी लमतरो को कटलमबयो को पसनी को व लोग आय पछा कया हआhellip कया हआ कछ ही लमनटो म तम चल बसhellip

तम रासत पर चल रह थ अचानक कोई घटना घटी दघकटना हई और तम मर गयhellip

तनलशचत ही कछ न कछ तनलमतत बन जायगा तमहारी मौत का तमको पता भी न चलगा अत चलन स पहल एक बार चलकर दखो मरन स पहल एक बार मरकर दखो तरबखरन स पहल एक बार तरबखरकर दखो

दढतापवकक तनशचय करो कक तमहारी जो ववशाल काया ह लजस तम नाम और रप स lsquoमrsquo करक साभाल रह हो उस काया का अपन दह का अरधयास आज तोड़ना ह साधना क आखखरी लशखर पर पाहचन क ललए यह आखखरी अड़चन ह इस दह की ममता स पार होना पड़गा जब तक यह दह की ममता रहगी तब तक ककय हए कमक तमहार ललए बधन बन रहग जब तक दह म

आसलकत बनी रहगी तब तक ववकार तमहारा पीछा न छोड़गा चाह तम लाख उपाय कर लो लककन जब तक दहारधयास बना रहगा तब तक परभ क गीत नही गाज पायग जब तक तम अपन को दह मानत रहोग तब तक बरहम-साकषासकार न हो पायगा तम अपन को हडडी मास सवचा रकत मलमतर ववषटटा का थला मानत रहोग तब तक दभाकगय स वपणड न छटगा बड़ स बड़ा दभाकगय ह जनम लना और मरना हजार हजार सववधाओ क बीच कोई जनम ल फकक कया पड़ता ह दख झलन ही पड़त ह उस बचार को

हदयपवकक ईमानदारी स परभ को पराथकना करो कक

lsquoह परभ ह दया क सागर तर दवार पर आय ह तर पास कोई कमी नही त हम बल द त हम दहममत द कक तर मागक पर कदम रख ह तो पाहचकर ही रह ह मर परभ दह की ममता को तोड़कर तर साथ अपन ददल को जोड़ ल |rsquo

आज तक अगल कई जनमो म तमहार कई वपता रह होग माताएा रही होगी कई नात ररशतवाल रह होग उसक पहल भी कोई रह होग तमहारा लगाव दह क साथ लजतना परगाढ होगा उतना य नात ररशतो का बोझ तमहार पर बना रहगा दह का लगाव लजतना कम होगा उतना बोझ हकका होगा भीतर स दह की अहता टटी तो बाहर की ममता तमह फा सान म समथक नही हो सकती

भीतर स दह की आसालकत टट गयी तो बाहर की ममता तमहार ललए खल बन जायगी तमहार जीवन स कफर जीवनमलकत क गीत तनकलग

जीवनमकत परष सबम होत हए सब करत हए भी सखपवकक जीत ह सखपवकक खात पीत ह सखपवकक आत जात ह सखपवकक सवसवरप म समात ह

कवल ममता हटाना ह दहारधयास हट गया तो ममता भी हट गई दह की अहता को हटान क ललए आज समशानयातरा कर लो जीत जी मर लो जरा सा डरना मत आज मौत को बलाओ lsquoह मौत त इस शरीर पर आज उतर rsquo

ककपना करो कक तमहार शरीर पर आज मौत उतर रही ह तमहारा शरीर ढीला हो गया ककसी तनलमतत स तमहार परार तनकल गय तमहारा शव पड़ा ह लोग लजसको आज तक lsquoफलाना भाईhellip फलाना सठhellip फलाना साहब helliprsquo कहत थ उसक परार पखर आज उड़ गय अब वह लोगो की नजरो म मदाक होकर पड़ा ह हकीम डॉकटरो न हाथ धो ललय ह लजसको तम इतना पालत पोसत थ लजसकी इजजत आबर को साबालन म वयसत थ वह शरीर आज मरा पड़ा ह सामन तम उस दख रह हो भीड़ इकठठी हो गयी कोई सचमच म आास बहा रहा ह कोई झठमठ का रो रहा ह

तम चल बस शव पड़ा ह लोग आय लमतर आय पड़ोसी आय साथी आय सनही आय टललफोन की घलणटयाा खटख़टायी जा रही ह टललगराम ददय जा रह ह मसय होन पर जो होना चादहए वह सब ककया जा रहा ह

यह आखखरी ममता ह दह की लजसको पार ककए तरबना कोई योगी लसदध नही बन सकता कोई साधक ठीक स साधना नही कर सकता ठीक स सौभागय को उपलबध नही हो सकता यह अततम अड़चन ह उस हटाओ

ि अर िोर तोर की िाया

बश कर दीनही जीवन काया

तमहारा शरीर चगर गया ढह गया हो गया lsquoरामनाम सत हrsquo तम मर गय लोग इकटठ हो गय अथी क ललए बाास मागवाय जा रह ह तमह नहलान क ललए घर क अदर ल जा रह ह लोगो न उठाया तमहारी गरदन झक गयी हाथ पर लथड़ रह ह लोग तमह साभालकर ल

जा रह ह एक बड़ थाल म शव को नहलात ह लककन hellip

लककन वह चमसकार कहााhellip वह परकाश कहााhellip वह चतना कहााhellip

लजस शरीर न ककतना ककतना कमाया ककतना ककतना खाया लजसको ककतना ककतना सजाया ककतना ककतना ददखाया वह शरीर आज शव हो गया एक शवास लना आज उसक बस की बात नही लमतर को धनयवाद दना उसक हाथ की बात नही एक सत फकीर को हाथ जोड़ना उसक बस की बात नही

आज वह पराचशरत शरीर बचारा शव बचारा चला कच करक इस जाहा स लजस पर इतन lsquoटनशन (तनाव) थ लजस जीवन क ललए इतना खखचाव तनाव था उस जीवन की यह हालत लजस शरीर क ललए इतन पाप और सनताप सह वह शरीर आज इस पररलसथतत म पड़ा ह दख लो जरा मन की आाख स अपन शरीर की हालत लाचार पड़ा ह आज तक जो lsquoम hellip म helliprsquo कर रहा था अपन को उचचत समझ रहा था सयाना समझ रहा था चतर समझ रहा था दख लो उस चतर की हालत परी चतराई खाक म लमल गई परा known unknown( जञात अजञात ) हो गया परा जञान एक झटक म समापत हो गया सब नात और ररशत टट गय धन और पररवार पराया हो गया

लजनक ललए तम रातरतरयाा जग थ लजनक ललए तमन मसतक पर बोझ उठाया था व सब अब पराय हो गय बाबाhellip लजनक ललए तमन पीड़ाएा सही व सब तमहार कछ नही रह तमहार इस पयार शरीर की यह हालत hellip

लमतरो क हाथ स तम नहलाय जा रह हो शरीर पोछा न पोछा तौललया घमाया न घमाया और तमह वसतर पहना ददय कफर उस उठाकर बाासो पर सलात ह अब तमहार शरीर की यह हालत लजसक ललए तमन बड़ी बड़ी कमाइयाा की बड़ी बड़ी ववधाएा पढी कई जगह लाचाररयाा की तचछ जीवन क ललए गलामी की कईयो को समझाया साभाला वह लाचार शरीर परार पखर क तनकल जान स पड़ा ह अथी पर

जीत जी मरन का अनभव कर लो तमहारा शरीर वस भी तो मरा हआ ह इसम रखा भी कया ह

अथी पर पड़ हए शव पर लाल कपड़ा बााधा जा रहा ह चगरती हई गरदन को साभाला जा रहा ह परो को अचछी तरह रससी बााधी जा रही ह कही रासत म मदाक चगर न जाए गरदन क इदकचगदक भी रससी क चककर लगाय जा रह ह परा शरीर लपटा जा रहा ह अथी बनानवाला बोल रहा ह lsquoत उधर स खीचrsquo दसरा बोलता ह lsquoमन खीचा ह त गााठ मार rsquo

लककन यह गााठ भी कब तक रहगी रलससयाा भी कब तक रहगी अभी जल जाएागीhellip और रलससयो स बााधा हआ शव भी जलन को ही जा रहा ह बाबा

चधककार ह इस नशवर जीवन को hellip चधककार ह इस नशवर दह की ममता कोhellip चधककार ह इस शरीर क अरधयास और अलभमान कोhellip

अथी को कसकर बााधा जा रहा ह आज तक तमहारा नाम सठ साहब की ललसट (सची) म था अब वह मद की ललसट म आ गया लोग कहत ह lsquoमद को बााधो जकदी स rsquo अब ऐसा नही कहग कक lsquoसठ को साहब को मनीम को नौकर को सत को असत को बााधोhelliprsquo पर कहग lsquoमद को बााधो rsquo

हो गया तमहार पर जीवन की उपललबधयो का अत आज तक तमन जो कमाया था वह तमहारा न रहा आज तक तमन जो जाना था वह मसय क एक झटक म छट गया तमहार lsquoइनकमटकसrsquo (आयकर) क कागजातो को तमहार परमोशन और ररटायरमनट की बातो को तमहारी उपललबध और अनपललबधयो को सदा क ललए अलववदा होना पड़ा

हाय र हाय मनषटय तरा शवास हाय र हाय तरी ककपनाएा हाय र हाय तरी नशवरता हाय र

हाय मनषटय तरी वासनाएा आज तक इचछाएा कर रहा था कक इतना पाया ह और इतना पााऊगा इतना जाना ह और इतना जानागा इतना को अपना बनाया ह और इतनो को अपना बनााऊगा इतनो को सधारा ह औरो को सधारागा

अर त अपन को मौत स तो बचा अपन को जनम मरर स तो बचा दख तरी ताकत दख तरी कारीगरी बाबा

तमहारा शव बााधा जा रहा ह तम अथी क साथ एक हो गय हो समशानयातरा की तयारी हो रही ह लोग रो रह ह चार लोगो न तमह उठाया और घर क बाहर तमह ल जा रह ह पीछ-पीछ अनय सब लोग चल रह ह

कोई सनहपवकक आया ह कोई मातर ददखावा करन आय ह कोई तनभान आय ह कक समाज म बठ ह तोhellip

दस पााच आदमी सवा क हत आय ह उन लोगो को पता नही क बट तमहारी भी यही हालत होगी अपन को कब तक अचछा ददखाओग अपन को समाज म कब तक lsquoसटrsquo करत रहोग सट करना ही ह तो अपन को परमासमा म lsquoसटrsquo कयो नही करत भया

दसरो की शवयातराओ म जान का नाटक करत हो ईमानदारी स शवयातराओ म जाया करो अपन मन को समझाया करो कक तरी भी यही हालत होनवाली ह त भी इसी परकार उठनवाला ह इसीपरकार जलनवाला ह बईमान मन त अथी म भी ईमानदारी नही रखता जकदी करवा रहा ह घड़ी दख रहा ह lsquoआकफस जाना हhellip दकान पर जाना हhelliprsquo अर आखखर म तो समशान म जाना ह ऐसा भी त समझ ल आकफस जा दकान पर जा लसनमा म जा कही भी जा लककन आखखर तो समशान म ही जाना ह त बाहर ककतना जाएगा

ऐ पागल इनसान ऐ माया क खखलौन सददयो स माया तझ नचाती आयी ह अगर त ईशवर क ललए न नाचा परमासमा क ललए न नाचा तो माया तर को नचाती रहगी त परभपरालपत क ललए न नाचा तो माया तझ न जान कसी कसी योतनयो म नचायगी कही बनदर का शरीर लमल जायगा तो कही रीछ का कही गधवक का शरीर लमल जाएगा तो कही ककननर का कफर उन शरीरो को त अपना मानगा ककसी को अपनी माा मानगा तो ककसी को बाप ककसी को बटा मानगा तो ककसी को बटी ककसी को चाचा मानगा तो ककसी को चाची उन सबको अपना बनायगा कफर वहाा भी एक झटका आयगा मौत काhellip और उन सबको भी छोड़ना पड़गा पराया बनना पड़गा त ऐसी यातराएा ककतन यगो स करता आया ह र ऐस नात ररशत त ककतन समय स बनाता आया ह

lsquoमर पतर की शादी हो जायhellip बह मर कहन म चलhellip मरा नौकर वफादार रहhellip दोसतो का पयार बना रहhelliprsquo यह सब ऐसा हो भी गया तो आखखर कब तक rsquo परमोशन हो जाएhellip हो गया कफर कया शादी हो जाएhellip हो गई शादी कफर कया बचच हो जाय hellip हो गय बचच भी कफर कया करोग आखखर म तम भी इसी परकार अथी म बााध जाओग इसी परकार कनधो पर उठाय जाओग तमहार दह की हालत जो सचमच होनवाली ह उस दख लो इस सनातन ससय स कोई बच नही सकता तमहार लाखो रपय तमहारी सहायता नही कर सकत तमहार लाखो पररचय तमह बचा नही सकत इस घटना स तमह गजरना ही होगा अनय सब घटनाओ स तम बच सकत हो लककन इस घटना स बचानवाला आज तक पथवी पर न कोई ह न हो पाएगा अत इस अतनवायक मौत को तम अभी स जञान की आाख दवारा जरा तनहार लो

तमहारी परारहीन दह को अथी म बााधकर लोग ल जा रह ह समशान की ओर लोगो की आाखो म आास ह लककन आास बहानवाल भी सब इसी परकार जानवाल ह आास बहान स जान न छटगी आास रोकन स भी जान न छटगी शव को दखकर भाग जान स भी जान न छटगी शव को ललपट जान स भी जान न छटगी जान तो तमहारी तब छटगी जब तमह आसम साकषासकार होगा जान तो तमहारी तब छटगी जब सत का कपा परसाद तमह पच जाएगा जान तमहारी तब छटगी जब ईशवर क साथ तमहारी एकता हो जाएगी

भया तम इस मौत की दघकटना स कभी नही बच सकत इस कमनसीबी स आज तक कोई

नही बच सका

आया ह सो जाएगा राजा रक फकीर

ककसीकी अथी क साथ 50 आदमी हो या 500 आदमी हो ककसीकी अथी क साथ 5000 आदमी हो या मातर मातरासमक आदमी हो इसस फकक कया पड़ता ह आखखर तो वह अथी अथी ह शव शव ही ह

तमहारा शव उठाया जा रहा ह ककसीन उस पर गलाल तछड़का ह ककसीन गद क फल रख ददय ह ककसीन उस मालााए पहना दी ह कोई तमस बहत तनभा रहा ह तो तम पर इतर तछड़क रहा ह सपर कर रहा ह परनत अब कया फकक पड़ता ह इतर स सपर तमह कया काम दगी बाबाhellip

शव पर चाह ईट पसथर डाल दो चाह सवरक की इमारत खड़ी कर दो चाह फल चढा दो चाह हीर जवाहरात नयोछावर कर दो फकक कया पड़ता ह

घर स बाहर अथी जा रही ह लोगो न अथी को घरा ह चार लोगो न उठाया ह चार लोग साथ म ह रामhellip बोलो भाई राम hellip तमहारी यातरा हो रही ह उस घर स तम ववदा हो रह हो लजसक ललए तमन ककतन ककतन पलान बनाय थ उस दवार स तम सदा क ललए जा रह हो बाबा hellip लजस घर को बनान क ललए तमन ईशवरीय घर का सयाग कर रखा था लजस घर को तनभान क ललए तमन अपन पयार क घर का ततरसकार कर रखा था उस घर स तम मद क रप म सदा क ललए ववदा हो रह हो घर की दीवार चाह रो रही हो चाह हास रही हो लककन तमको तो जाना ही पड़ता ह

समझदार लोग कह रह ह कक शव को जकदी ल जाओ रात का मरा हआ ह hellip इस जकदी ल

जाओ नही तो इसक lsquoवायबरशनrsquo hellip इसक lsquoबकटीररयाrsquo फल जायग दसरो को बीमारी हो जायगी अब तमह घड़ीभर रखन की ककसीम दहममत नही चार ददन साभालन का ककसीम साहस नही सब अपना अपना जीवन जीना चाहत ह तमह तनकालन क ललए उससक ह समझदार लोग जकदी करो समय हो गया कब पाहचोग जकदी करो जकदी करो भाईhellip

तम घर स कब तक चचपक रहोग आखखर तो लोग तमह बााध बाधकर जकदी स समशान ल जायग

दह की ममता तोड़नी पड़गी इस ममता क कारर तम जकड़ गय हो पाश म इस ममता क कारर तम जनम मरर क चककर म फा स हो यह ममता तमह तोड़नी पड़गी चाह आज तोड़ो चाह एक जनम क बाद तोड़ो चाह एक हजार जनमो क बाद तोड़ो

लोग तमह कनध पर उठाय ल जा रह ह तमन खब मकखन घी खाया ह चरबी जयादा ह तो लोगो को पररशरम जयादा ह चरबी कम ह तो लोगो को पररशरम कम ह कछ भी हो तम अब अथी पर आरढ हो गय हो

यारो हि बवफाई करग

ति पदल होग हि क चलग

हि पड़ रहग ति कलत चलोग

यारो हि बवफाई करग

तम कनधो पर चढकर जा रह हो जाहा सभी को अवशय जाना ह राम hellip बोलो भाई hellip राम राम hellipबोलो भाई hellip राम राम hellip बोलो भाई राम hellip

अथीवाल तजी स भाग जा रह ह पीछ 50-100 आदमी जा रह ह व आपस म बातचीत कर रह ह कक lsquoभाई अचछ थ मालदार थ सखी थ rsquo (अथवा) lsquoगरीब थ दखी थhellip बचार चल बसhellip

rsquo

उन मखो को पता नही कक व भी ऐस ही जायग व तम पर दया कर रह ह और अपन को शाशवत समझ रह ह नादान

अथी सड़क पर आग बढ रही ह बाजार क लोग बाजार की तरफ भाग जा रह ह नौकरीवाल नौकरी की तरफ भाग जा रह ह तमहार शव पर ककसीकी नजर पड़ती ह वह lsquoओ hellip हो helliprsquo

करक कफर अपन काम की तरफ अपन वयवहार की तरफ भागा जा रहा ह उसको याद भी नही आती कक म भी इसी परकार जानवाला हा म भी मौत को उपलबध होनवाला हा साइककल सकटर मोटर पर सवार लोग शवयातरा को दखकर lsquo आहाhellip उहhelliprsquo करत आग भाग जा रह ह उस वयवहार को साभालन क ललए लजस छोड़कर मरना ह उन मखो को कफर भी सब उधर ही जा रह ह

अब तम घर और समशान क बीच क रासत म हो घर दर सरकता जा रहा हhellip समशान पास आ रहा ह अथी समशान क नजदीक पहाची एक आदमी सकटर पर भागा और समशान म लकडड़यो क इनतजाम म लगा समशानवाल स कह रहा ह lsquoलकड़ी 8 मन तौलो 10 मन तौलो 16 मन तौलो आदमी अचछ थ इसललए लकड़ी जयादा खचक हो जाए तो कोई बात नही rsquo

जसी लजनकी हलसयत होती ह वसी लकडड़याा खरीदी जाती ह लककन अब शव 8 मन म जल या 16 मन म इसस कया फकक पड़ता ह धन जयादा ह तो 10 मन लकड़ी जयादा आ जाएगी धन कम ह तो दो-पााच मन लकड़ी कम आ जाएगी कया फकक पड़ता ह इसस तम तो बाबा हो गय पराय

अब समशान तरबककल नजदीक आ गया ह शकन करन क ललए वहाा बचचो क बाल तरबखर जा रह ह लडड लाय थ साथ म व कततो को खखलाय जा रह ह

लजसको बहत जकदी ह व लोग वही स खखसक रह ह बाकी क लोग तमह वहाा ल जात ह जहाा सभी को जाना होता ह

लकडड़याा जमानवाल लकडड़याा जमा रह ह दो-पााच मन लकडड़याा तरबछा दी गयी अब तमहारी अथी को व उन लकडड़यो पर उतार रह ह बोझा कधो स उतरकर अब लकडड़यो पर पड़ रहा ह लककन वह बोझा भी ककतनी दर वहाा रहगा

घास की गडडडयाा नाररयल की जटाय माचचस घी और बतती साभाली जा रही ह तमहारा अततम सवागत करन क ललए य चीज यहाा लायी गयी ह अततम अलववदाhellip

अपन शरीर को तमन हलवा-परी खखलाकर पाला या रखी सखी रोटी खखलाकर दटकाया इसस अब कया फकक पड़ता ह गहन पहनकर लजय या तरबना गहनो क लजय इसस कया फकक पड़ता ह आखखर तो वह अलगन क दवारा ही साभाला जायगा माचचस स तमहारा सवागत होगा

इसी शरीर क ललए तमन ताप सताप सह इसी शरीर क ललए तमन लोगो क ददल दखाय इसी शरीर क ललए तमन लोकशवर स समबनध तोड़ा लो दखो अब कया हो रहा ह चचता पर पड़ा ह वह शरीर उसक ऊपर बड़ बड़ लककड़ जमाय जा रह ह जकदी जल जाय इसललए छोटी लकडड़याा साथ म रखी जा रही ह

सब लकडड़याा रख दी गयी बीच म घास भी लमलाया गया ह ताकक कोई दहससा कचचा न रह जाय एक भी मास की लोथ बच न जाय एक आदमी दख रख करता ह lsquoमनजमनटrsquo कर रहा ह वहाा भी नताचगरी नही छटती नताचगरी की खोपड़ी उसकी चाल ह lsquoऐसा करो hellip

वसा करो hellip lsquo वह सचनाय ददय जा रहा ह

ऐ चतराई ददखानवाल तमको भी यही होनवाला ह समझ लो भया मर शव को जलान म

भी अगवानी चादहए कछ मखय ववशषतााए चादहए वहाा भी वाह hellipवाह hellip

ह अजञानी मनषटय त कया कया चाहता ह ह नादान मनषटय तन कया कया ककया ह ईशवर क लसवाय तन ककतन नाटक ककय ईशवर को छोड़कर तन बहत कछ पकड़ा मगर आज तक मसय क एक झटक स सब कछ हर बार छटता आया ह हजारो बार तझस छड़वाया गया ह और इस जनम म भी छड़वाया जायगा त जरा सावधान हो जा मर भया

अथी क ऊपर लकड़ lsquoकफटrsquo हो गय ह तमहार पतर तमहार सनही मन म कछ भाव लाकर आास बहा रह ह कछ सनदहयो क आास नही आत ह इसललए व शरलमदा हो रह ह बाकी क लोग गपशप लगान बठ गय ह कोई बीड़ी पीन लगा ह कोई सनान करन बठ गया ह कोई सकटर की सफाई कर रहा ह कोई अपन कपड़ बदलन म वयसत ह कोई दकान जान की चचनता म ह कोई बाहरगााव जान की चचनता म ह तमहारी चचनता कौन करता ह कब तक करग लोग तमहारी चचनता तमह समशान तक पाहचा ददया चचतता पर सला ददया दीया-सलाई दान म दी बात परी हो गयी

लोग अब जान को आतर ह lsquoअब चचता को आग लगाओ बहत दर हो गई जकदी करोhellip

जकदी करोhelliprsquo इशार हो रह ह व ही तो लमतर थ जो तमस कह रह थ lsquoबठ रहो तम मर साथ रहो तमहार तरबना चन नही पड़ता rsquo अब व ही कह रह ह lsquoजकदी करोhellip आग लगाओhellip

हम जायhellip जान छोड़ो हमारीhelliprsquo

वाह र वाह ससार क लमतरो वाह र वाह ससार क ररशत नात धनयवादhellip धनयवादhellip तमहारा पोल दख ललया

परभ को लमतर न बनाया तो यही हाल होनवाला ह आज तक जो लोग तमह सठ साहब कहत थ जो तमहार लगोदटया यार थ व ही जकदी कर रह ह उन लोगो को भख लगी ह खलकर तो नही बोलत लककन भीतर ही भीतर कह रह ह कक अब दर नही करो जकदी सवगक पाहचाओ

लसर की ओर स आग लगाओ ताकक जकदी सवगक म जाय

वह तो कया सवगक म जाएगा उसक कमक और मानयतााए जसी होगी ऐस सवगक म वह जायगा लककन तम रोटी रप सवगक म जाओग तमको यहाा स छटटी लमल जायगी

नाररयल की जटाओ म घी डालत ह जयोतत जलात ह तमहार बझ हए जीवन को सदा क ललए नषटट करन क हत जयोतत जलायी जा रही ह यह बरहमजञानी गर की जयोतत नही ह यह सदगर की जयोतत नही ह यह तमहार लमतरो की जयोतत ह

लजनक ललए परा जीवन तम खो रह थ व लोग तमह यह जयोतत दग लजनक पास जान क ललए तमहार पास समय न था उन सदगर की जयोतत तमन दखी भी नही ह बाबा

लोग जयोतत जलात ह लसर की तरफ लकडड़यो क बीच जो घास ह उस जयोतत का सपशक करात ह घास की गडडी को आग न घर ललया ह परो की तरफ भी एक आदमी आग लगा रहा ह भभक hellip भभक hellip अलगन शर हो गयी तमहार ऊपर ढाक हए कपड़ तक आग पाहच गयी ह लकड़ धीर धीर आग पकड़ रह ह अब तमहार बस की बात नही कक आग बझा लो तमहार लमतरो को जररत नही कक फायर तरबरगड बला ल अब डॉकटर हकीमो को बलान का मौका नही ह जररत भी नही ह अब सबको घर जाना ह तमको छोड़कर ववदा होना ह

धआा तनकल रहा ह आग की जवालाएा तनकल रही ह जो जयादा सनही और साथी थ व भी आग की तपन स दर भाग रह ह चारो और अलगन क बीच तमह अकला जलना पड़ रहा ह लमतर सनही समबनधी बचपन क दोसत सब दर खखसक रह ह

अब hellip कोई hellip ककसीकाhellip नही सार समबनध hellip ममता क समबनध ममता म जरा सी आाच सहन की ताकत कहाा ह तमहार नात ररशतो म मौत की एक चचनगारी सहन की ताकत कहाा

ह कफर भी तम सबध को पकक ककय जा रह हो तम ककतन भोल महशवर हो तम ककतन नादान हो अब दख लो जरा सा

अथी को आग न घरा ह लोगो को भख न घरा ह कछ लोग वहाा स खखसक गय कछ लोग बच ह चचमटा ललए हए समशान का एक नौकर भी ह वह साभाल करता ह कक लककड़ इधर उधर न चला जाए लककड़ चगरता ह तो कफर चढाता ह तमहार लसर पर अब आग न ठीक स घर ललया ह चारो तरफ भभक hellip भभक hellip आग जल रही ह लसर की तरफ आग hellip परो की तरफ आग hellip बाल तो ऐस जल मानो घास जला मडी को भी आग न घर ललया ह माह म घी डाला हआ था बतती डाली हई थी आाखो पर घी लगाया हआ था

ित कर र भाया गरव गिान गलाबी रग उड़ी जावलो

ित कर र भाया गरव गिान जवानीरो रग उड़ी जावलो

उड़ी जावलो र फीको पड़ी जावलो र काल िर जावलो

पाछो नही आवलोhellip ित कर र गरव hellip

जोर र जवानी थारी कफर को नी र वलाhellip

इणन जाता नही लाग वार गलाबी रग उड़ी जावलो

पतगी रग उड़ी जावलोhellip ित कर र गरव

न र दौलत थारा िाल खजाना रhellip

छोड़ी जावलो र पलिा उड़ी जावलो

पाछो नही आवलोhellip ित कर र गरव

कई र लायो न कई ल जावलो भायाhellip

कई कोनी हाल थार साथ गलाबी रग उड़ी जावलो

पतगी रग उड़ी जावलोhellip ित कर र गरव

तमहार सार शरीर को समशान की आग न घर ललया ह एक ही कषर म उसन अपन भोग का सवीकार कर ललया ह सारा शरीर काला पड़ गया कपड़ जल गय कफन जल गया चमड़ी जल गई परो का दहससा नीच लथड़ रहा ह चगर रहा ह चरबी को आग सवाहा कर रही ह मास क टकड़ जलकर नीच चगर रह ह हाथ क पज और हडडडयाा चगर रही ह खोपड़ी तड़ाका दन को उससक हो रही ह उसको भी आग न तपाया ह शव म फल हए lsquoबकटीररयाrsquo तथा बचा हआ गस था वह सब जल गया

ऐ गाकफल न सिझा था मिला था तन रतन तझको

मिलाया खाक ि तन ऐ सजन कया कह तझको

अपनी वज दी हसती ि त इतना भ ल िसताना hellip

अपनी अहता की िसती ि त इतना भ ल िसताना hellip

करना था ककया वो न लगी उलिी लगन तझको

ऐ गाकफल helliphellip

षजनहोक पयार ि हरदि िसतक दीवाना थाhellip

षजनहोक सग और साथ ि भया त सदा षविोहहत थाhellip

आरखर व ही जलात ह करग या दफन तझको

ऐ गाकफल hellip

शाही और गदाही कया कफन ककसित ि आरखर

मिल या ना खबर पखता ऐ कफन और वतन तझको

ऐ गाकफल helliphellip

पहनी हई टरीकोटन पहन हए गहन तर काम न आए तर व हाथ तर व पर सदा क ललए अलगन क गरास हो रह ह लककड़ो क बीच स चरबी चगर रही ह वहाा भी आग की लपट उस भसम कर रही ह तमहार पट की चरबी सब जल गई अब हडडडयाा पसललयाा एक एक होकर जदा हो रही ह

ओhellip होhellip ककतना साभाला था इस शरीर को ककतना पयारा था वह जरा सी ककडनी तरबगड़ गई तो अमररका तक की दौड़ थी अब तो परी दह तरबगड़ी जा रही ह कहाा तक दौड़ोग कब तक दौड़ोग जरा सा पर दखता था हाथ म चोट लगती थी तो सपशयललसटो स घर जात थ अब कौन सा सपशयललसट यहाा काम दगा ईशवर क लसवाय कोई यहाा सहाय न कर सकगा आसमजञान क लसवाय इस मौत की आग स तमह सदा क ललए बचान का सामथयक डॉकटरो सपशयललसटो क पास कहाा ह व लोग खद भी इस अवसथा म आनवाल ह भल थोकबनध फीस ल ल पर कब तक रखग भल जााच पड़ताल मातर क ललय थपपीबद नोटो क बडल ल ल पर लकर जायग कहाा उनह भी इसी अवसथा स गजरना होगा

शाही और गदाही कया कफन ककसित ि आरखर hellip

कर लो इकटठा ल लो लमबी चौड़ी फीस लककन याद रखो यह िर मौत तमह सामयवादी बनाकर छोड़ दगी सबको एक ही तरह स गजारन का सामथयक यदद ककसीम ह तो मौत म ह मौत सबस बड़ी सामयवादी ह परकतत सचची सामयवादी ह

तमहार शरीर का हाड़वपजर भी अब तरबखर रहा ह खोपड़ी टटी उसक पााच सात टकड़ हो गय चगर रह ह इधर उधर आhellip हाhellip हाhellipहडडी क टकड़ ककसक थ कोई साहब क थ या चपरासी क थ सठ क थ या नौकर क थ सखी आदमी क थ या दखी आदमी क थ भाई क थ या माई क थ कछ पता नही चलता

अब आग धीर-धीर शमन को जा रही ह अचधकाश लमतर सनान म लग ह तयाररयाा कर रह ह जान की ककतन ही लोग तरबखर गय बाकी क लोग अब तमहारी आखखरी इजाजत ल रह ह आग को जल की अजलल दकर आाखो म आास लकर ववदा हो रह ह

कह रहा ह आसिा यह सिा कछ भी नही

रोती ह शबनि कक नरग जहा कछ भी नही

षजनक िहलो ि हजारो रग क जलत थ फान स

झाड़ उनकी कबर पर ह और तनशा कछ भी नही

षजनकी नौबत स सदा ग जत थ आसिा

दि बखद ह कबर ि अब ह न हा कछ भी नही

तखतवालो का पता दत ह तखत गौर क

खोज मिलता तक नही वाद अजा कछ भी नही

समशान म अब कवल अगारो का ढर बचा तम आज तक जो थ वह समापत हो गय अब हडडडयो स मालम करना असभव ह कक व ककसकी ह कवल अगार रह गय ह तमहारी मौत हो गई हडडडयाा और खोपड़ी तरबखर गयी तमहार नात और ररशत टट गय अपन और पराय क समबनध कट गय तमहार शरीर की जातत और सापरदातयक समबनध टट गय शरीर का कालापन और गोरापन समापत हो गया तमहारी तनदरसती और बीमारी अलगन न एक कर दी

ऐ गाकफल न सिझा था hellip

आग अब धीर धीर शात हो रही ह कयोकक जलन की कोई चीज बची नही कटमबी सनही

लमतर पड़ोसी सब जा रह ह समशान क नौकर स कह रह ह lsquoहम परसो आयग फल चनन क ललए दखना ककसी दसर क फल लमचशरत न हो जाए rsquo कइयो क फल वहाा पड़ भी रह जात ह लमतर अपनवालो क फल समझकर उठा लत ह

कौन अपना कौन पराया कया फल और कया बफल lsquoफलrsquo जो था वह तो अलववदा हो गया अब हडडडयो को फल कहकर भी कया खशी मनाओग फलो का फल तो तमहारा चतनय था उस चतनय स समबनध कर लत तो तम फल ही फल थ

सब लोग घर गय एक ददन बीता दसरा ददन बीता तीसर ददन व लोग पहाच समशान म चचमट स इधर उधर ढाढकर अलसथयाा इकटठी कर ली डाल रह ह तमह एक डडबब म बाबा खोपड़ी क कछ टकड़ जोड़ो की कछ हडडडयाा लमल गई जो पककी पककी थी व लमली बाकी सब भसम हो गई

करीब एकाध ककलो फल लमल गय उनह डडबब म डालकर लमतर घर ल आए ह समझानवालो न कहा lsquoहडडडयाा घर म न लाओ बाहर रखो दर कही ककसी पड़ की डाली पर बााध दो जब हररदवार जायग तब वहाा स लकर जायग उस घर म न लाओ अपशकन ह rsquo

अब तमहारी हडडडयाा अपशकन ह घर म आना अमगल ह वाह र वाह ससार तर ललए परा जीवन खचक ककया था इन हडडडयो को कई वषक बनान म और साभालन म लग अब अपशकन हो रहा ह बोलत ह इस डडबब को बाहर रखो पड़ोसी क घर ल जात ह तो पड़ोसी नाराज होता ह कक यह कया कर रह हो तमहार लजगरी दोसत क घर ल जात ह तो वह इनकार कर दता ह कक इधर नही hellip दर hellip दर hellipदर hellip

तमहारी हडडडयाा ककसीक घर म रहन लायक नही ह ककसीक मददर म रहन लायक नही ह लोग बड़ चतर ह सोचत ह अब इसस कया मतलब ह दतनयाा क लोग तमहार साथ नाता और ररशता तब तक साभालग जब तक तमस उनको कछ लमलगा हडडडयो स लमलना कया ह

दतनयाा क लोग तमह बलायग कछ लन क ललए तमहार पास अब दन क ललए बचा भी कया ह व लोग दोसती करग कछ लन क ललए सदगर तमह पयार करग hellip परभ दन क ललए दतनयाा क लोग तमह नशवर दकर अपनी सववधा खड़ी करग लककन सदगर तमह शाशवत दकर अपनी सववधा की परवाह नही करग ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

लजसम चॉकलट पड़ी थी तरबलसकट पड़ थ उस छोट स डडबब म तमहारी अलसथयाा पड़ी ह तमहार सब पद और परततषटठा इस छोट स डडबब म पराचशरत होकर अतत तचछ होकर पड़ पर लटकाय जा रह ह जब कटलमबयो को मौका लमलगा तब जाकर गगा म परवादहत कर दग

दख लो अपन कीमती जीवन की हालत

जब तरबकली ददखती ह तब कबतर आाख बद करक मौत स बचना चाहता ह लककन तरबकली उस चट कर दती ह इसी परकार तम यदद इस ठोस ससय स बचना चाहोग lsquoमरी मौत न होगीrsquo ऐसा ववचार करोग अथवा इस सससग को भल जाओग कफर भी मौत छोड़गी नही

इस सससग को याद रखना बाबा मौत स पार करान की कजी वह दता ह तमह तमहारी अहता और ममता तोड़न क ललय यलकत ददखाता ह ताकक तम साधना म लग जाओ इस राह पर कदम रख ही ददय ह तो मलजल तक पाहच जाओ कब तक रक रहोग हजार-हजार ररशत और नात तम जोड़त आय हो हजार हजार सबचधयो को तम ररझात आय हो अब तमहारी अलसथयाा गगा म पड़ उसस पहल अपना जीवन जञान की गगा म बहा दना तमहारी अलसथयाा पड़ पर टाग उसस पहल तम अपन अहकार को टााग दना परमासमा की अनकपा म परमासमारपी पड़ पर अपना अहकार लटका दना कफर जसी उस पयार की मजी होhellip नचा ल जसी उसकी मजी होhellip दौड़ा ल

तरी िजी प रन होhellip

ऐसा करक अपन अहकार को परमासमारपी पड़ तक पाहचा दो

तीसरा ददन मनान क ललए लोग इकटठ हए ह हासनवाल शतरओ न घर बठ थोड़ा हास ललया रोनवाल सनदहयो न थोड़ा रो ललया ददखावा करनवालो न औपचाररकताएा परी कर ली

सभा म आए हए लोग तमहारी मौत क बार म कानाफसी कर रह ह

मौत कस हई लसर दखता था पानी माागा पानी ददया और पीत पीत चल बस

चककर आय और चगर पड़ वापस नही उठ

पट दखन लगा और व मर गय

सबह तो घमकर आय खब खश थ कफर जरा सा कछ हआ बोल lsquoमझ कछ हो रहा ह डॉकटर को बलाओ rsquo हम बलान गय और पीछ यह हो गया

हॉलसपटल म खब उपचार ककय बचान क ललए डॉकटरो न खब परयसन ककय लककन मर गय रासत पर चलत चलत लसधार गय कछ न कछ तनलमतत बन ही गया

तीसरा ददन मनात वकत तमहारी मौत क बार म बात हो गई थोड़ी दर कफर समय हो गया पााच स छ उठकर सब चल ददय कब तक याद करत रहग लोग लग गय अपन-अपन काम धनध म

अलसथयो का डडबबा पड़ पर लटक रहा ह ददन बीत रह ह मौका आया वह डडबबा अब हररदवार ल जाया जा रहा ह एक थली म डडबबा डालकर रन की सीट क नीच रखत ह लोग पछत ह lsquoइसम कया हrsquo तमहार लमतर बतात ह lsquoनही नही कछ नही सब ऐस ही ह अलसथयाा ह इसमhelliprsquo ऐसा कहकर व पर स डडबब को धकका लगात ह लोग चचकलात ह

lsquoयहाा नहीhellip यहाा नही hellip उधर रखो rsquo

वाह र वाह ससार तमहारी अलसथयाा लजस डडबब म ह वह डडबबा रन म सीट क नीच रखन क लायक नही रहा वाह र पयारा शरीर तर ललए हमन कया कया ककया था तझ साभालन क ललए हमन कया कया नही ककया ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

लमतर हररदवार पहाच ह पणड लोगो न उनह घर ललया लमतर आखखरी ववचध करवा रह ह अलसथयाा डाल दी गगा म परवादहत हो गयी पणड को दकषकषरा लमल गई लमतरो को आास बहान थ दो चार बहा ललय अब उनह भी भख लगी ह अब व भी अपनी हडडडयाा साभालग कयोकक उनह तो सदा रखनी ह व खात ह पीत ह गाड़ी का समय पछत ह

जकदी वापस लौटना ह कयोकक आकफस म हालजर होना ह दकान साभालनी ह व सोचत ह lsquoवह तो मर गया उस ववदा द दी म मरनवाला थोड़ हा rsquo

लमतर भोजन म जट गय ह

आज तमन अपनी मौत की यातरा दखी अपन शव की अपनी हडडडयो की लसथतत दख ली तम एक ऐसी चतना हो कक तमहारी मौत होन पर भी तम उस मौत क साकषी हो तमहारी हडडडयाा जलन पर भी तम उसस पथक रहनवाली जयोतत हो

तमहारी अथी जलन क बाद भी तम अथी स पथक चतना हो तम साकषी हो आसमा हो तमन आज अपनी मौत को भी साकषी होकर दख ललया आज तक तम हजारो-हजारो मौत की यातराओ को दखत आय हो

जो मौत की यातरा क साकषी बन जात ह उनक ललय यातरा यातरा रह जाती ह साकषी उसस पर हो जाता ह

मौत क बाद अपन सब पराय हो गय तमहारा शरीर भी पराया हो गया लककन तमहारी आसमा आज तक परायी नही हई

हजारो लमतरो न तमको छोड़ ददया लाखो कटलमबयो न तमको छोड़ ददया करोड़ो-करोड़ो शरीरो न तमको छोड़ ददया अरबो-अरबो कमो न तमको छोड़ ददया लककन तमहारा आसमदव तमको कभी नही छोड़ता

शरीर की समशानयातरा हो गयी लककन तम उसस अलग साकषी चतनय हो तमन अब जान ललया कक

lsquoम इस शरीर की अततम यातरा क बाद भी बचता हा अथी क बाद भी बचता हा जनम स पहल भी बचता हा और मौत क बाद भी बचता हा म चचदाकाश hellip जञानसवरप आसमा हा मन छोड़ ददया मोह ममता को तोड़ ददया सब परपच rsquo

इस अभयास को बढात रहना शरीर की अहता और ममता जो आखखरी ववघन ह उस इस परकार तोड़त रहना मौका लमल तो समशान म जाना ददखाना अपनको वह दशय

म भी जब घर म था तब समशान म जाया करता था कभी-कभी ददखाता था अपन मन को कक lsquoदख तरी हालत भी ऐसी होगी rsquo

समशान म वववक और वरागय होता ह तरबना वववक और वरागय क तमह बरहमाजी का उपदश भी काम न आयगा तरबना वववक और वरागय क तमह साकषासकारी परक सदगर लमल जाया कफर भी तमह इतनी गतत न करवा पायग तमहारा वववक और वरागय न जगा हो तो गर भी कया कर

वववक और वरागय जगान क ललए कभी कभी समशान म जात रहना कभी घर म बठ ही मन को समशान की यातरा करवा लना

िरो िरो सब कोई कह िरना न जान कोय

एक बार ऐसा िरो कक कफर िरना न होय

जञान की जयोतत जगन दो इस शरीर की ममता को टटन दो शरीर की ममता टटगी तो अनय नात ररशत सब भीतर स ढील हो जायग अहता ममता टटन पर तमहारा वयवहार परभ का वयवहार हो जाएगा तमहारा बोलना परभ का बोलना हो जाएगा तमहारा दखना परभ का दखना हो जाएगा तमहारा जीना परभ का जीना हो जाएगा

कवल भीतर की अहता तोड़ दना बाहर की ममता म तो रखा भी कया ह

दहामभिान गमलत षवजञात परिातितन

यतर यतर िनो यातत ततर ततर सिा य

दह छता जनी दशा वत दहातीत

त जञानीना चरणिा हो वनदन अगरणत

भीतर ही भीतर अपन आपस पछो कक

lsquoमर ऐस ददन कब आयग कक दह होत हए भी म अपन को दह स पथक अनभव करागा मर ऐस ददन कब आयग कक एकात म बठा बठा म अपन मन बदचध को पथक दखत-दखत अपनी आसमा म तपत होऊा गा मर ऐस ददन कब आयग कक म आसमाननद म मसत रहकर ससार क वयवहार म तनलशचनत रहागा मर ऐस ददन कब आयग कक शतर और लमतर क वयवहार को म खल समझागा rsquo

ऐसा न सोचो कक व ददन कब आयग कक मरा परमोशन हो जाएगाhellip म परलसडनट हो जाऊा गा hellip म पराइम लमतनसटर हो जाऊा गा

आग लग ऐस पदो की वासना को ऐसा सोचो कक म कब आसमपद पाऊा गा कब परभ क साथ एक होऊा गा

अमररका क परलसडनट लम कललज वहाइट हाउस म रहत थ एक बार व बगीच म घम रह थ ककसी आगनतक न पछा lsquoयहाा कौन रहता ह rsquo

कललज न कहा lsquoयहाा कोई रहता नही ह यह सराय ह धमकशाला ह यहाा कई आ आकर चल गय कोई रहता नही rsquo

रहन को तम थोड़ ही आय हो तम यहाा स गजरन को आय हो पसार होन को आय हो यह जगत तमहारा घर नही ह घर तो तमहारा आसमदव ह फकीरो का जो घर ह वही तमहारा घर ह जहाा फकीरो न डरा डाला ह वही तमहारा डरा सदा क ललए दटक सकता ह अनयतर नही अनय कोई भी महल चाह कसा भी मजबत हो तमह सदा क ललए रख नही सकता

ससार तरा घर नही दो चार हदन रहना यहा

कर याद अपन राजय की सवराजय तनटकिक जहा

कललज स पछा गया lsquo I have come to know that Mr Coolidge President of

America lives here rsquo

( lsquoमझ पता चला ह कक अमररका क राषटरपतत शरी कललज यहाा रहत ह rsquo)

कललज न कहा lsquoNo Coolidge doesnot live here Nobody lives here Everybody

is passing throughrsquo (lsquoनही कललज यहाा नही रहता कोई भी नही रहता सब यहाा स गजर रह ह rsquo)

चार साल पर हए लमतरो न कहा lsquoकफर स चनाव लड़ो समाज म बड़ा परभाव ह अपका कफर स चन जाओग rsquo

कललज बोला lsquoचार साल मन वहाइट हाउस म रहकर दख ललया परलसडनट का पद साभालकर दख ललया कोई सार नही अपन आपस धोखा करना ह समय बरबाद करना ह I have no

time to waste अब मर पास बरबाद करन क ललए समय नही ह rsquo

य सार पद और परततषटठा समय बरबाद कर रह ह तमहारा बड़ बड़ नात ररशत तमहारा समय बरबाद कर रह ह सवामी रामतीथक पराथकना ककया करत थ

lsquoह परभ मझ लमतरो स बचाओ मझ सखो स बचाओrsquo

सरदार परनलसह न पछा lsquoकया कह रह ह सवामीजी शतरओ स बचना होगा लमतरो स कया बचना ह rsquo

रामतीथक lsquoनही शतरओ स म तनपट लागा दखो स म तनपट लागा दख म कभी आसलकत नही होती ममता नही होती ममता आसलकत जब हई ह तब सख म हई ह लमतरो म हई ह सनदहयो म हई ह rsquo

लमतर हमारा समय खा जात ह सख हमारा समय खा जाता ह व हम बहोशी म रखत ह जो करना ह वह रह जाता ह जो नही करना ह उस साभालन म ही जीवन खप जाता ह

तथाकचथत लमतरो स हमारा समय बच जाए तथाकचथत सखो स हमारी आसलकत हट जाए सख म होत हए भी परमासमा म रह सको लमतरो क बीच रहत हए भी ईशवर म रह सको - ऐसी समझ की एक आाख रखना अपन पास

ॐ शातत शातत शातत ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

तमहार शरीर की यातरा हो गई परी मौत को भी तमन दखा मौत को दखनवाल तम दषटटा कस मर सकत हो तम साकषात चतनय हो तम आसमा हो तम तनभकय हो तम तनशक हो मौत कई बार आकर शरीर को झपट गई तमहारी कभी मसय नही हई कवल शरीर बदलत आय एक योतन स दसरी योतन म यातरा करत आय

तम तनभकयतापवकक अनभव करो कक म आसमा हा म अपनको ममता स बचाऊा गा बकार क नात और ररशतो म बहत हए अपन जीवन को बचाऊा गा पराई आशा स अपन चचतत को बचाऊा गा आशाओ का दास नही लककन आशाओ का राम होकर रहागा

ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

म तनभकय रहागा म बपरवाह रहागा जगत क सख दख म म ससार की हर पररलसथतत म तनलशचनत रहागा कयोकक म आसमा हा ऐ मौत त शरीरो को तरबगाड़ सकती ह मरा कछ नही कर सकती त कया डराती ह मझ

ऐ दतनयाा की रगीतनयाा ऐ ससार क परलोभन तम मझ अब कया फा साओग तमहारी पोल मन जान ली ह ह समाज क रीतत ररवाज तम कब तक बााधोग मझ ह सख और दख तम कब तक नचाओग मझ अब म मोहतनशा स जाग गया हा

तनभकयतापवकक दढतापवकक ईमानदारी और तनशकता स अपनी असली चतना को जगाओ कब तक तम शरीर म सोत रहोग

साधना क रासत पर हजार हजार ववघन होग लाख लाख कााट होग उन सबक ऊपर तनभकयतापवकक पर रखग

व कााट फल न बन जााए तो हमारा नाम lsquoसाधकrsquo कस

ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

हजारो हजारो उसथान और पतन क परसगो म हम अपनी जञान की आाख खोल रहग हो होकर

कया होगा इस मद शरीर का ही तो उसथान और पतन चगना जाता ह हम तो अपनी आसमा मसती म मसत ह

बबगड़ तब जब हो कोई बबगड़नवाली शय

अकाल अछघ अभघ को कौन वसत का भय

मझ चतनय को मझ आसमा को कया तरबगड़ना ह और कया लमलना ह तरबगड़ तरबगड़कर ककसका तरबगड़गा इस मद शरीर का ही न लमल लमलकर भी कया लमलगा इस मद शरीर को ही लमलगा न इसको तो म जलाकर आया हा जञान की आग म अब लसकड़न की कया जररत ह बाहर क दखो क सामन परलोभनो क सामन झकन की कया जररत ह

अब म समराट की नाई लजऊा गा hellip बपरवाह होकर लजऊा गा साधना क मागक पर कदम रखा ह तो अब चलकर ही रहागा ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip ऐस वयलकत क ललए सब सभव ह

एक िररणयो सोन भार

आखखर तो मरना ही ह तो अभी स मौत को तनमतरर द दो साधक वह ह कक जो हजार ववघन आय तो भी न रक लाख परलोभन आएा तो भी न फा स हजार भय क परसग आएा तो भी भयभीत न हो और लाख धनयवाद लमल तो भी अहकारी न हो उसका नाम साधक ह साधक का अनभव होना चादहए कक

हि रोक सक य जिान ि दि नही

हि स जिाना ह जिान स हि नही

परहलाद क वपता न रोका तो परहलाद न वपता की बात को ठकरा दी वह भगवान क रासत चल पड़ा मीरा को पतत और पररवार न रोका तो मीरा न उनकी बात को ठकरा ददया राजा बलल को तथाकचथत गर न रोका तो राजा बलल न उनकी बात को सनी अनसनी कर दी

ईशवर क रासत पर चलन म यदद गर भी रोकता ह तो गर की बात को भी ठकरा दना पर ईशवर को नही छोड़ना

ऐसा कौन गर ह जो भगवान क रासत चलन स रोकगा वह तनगरा गर ह ईशवर क रासत चलन म यदद कोई गर रोक तो तम बलल राजा को याद करक कदम आग रखना यदद पसनी रोक तो राजा भरतहरी को याद करक पसनी की ममता को ढकल दना यदद पतर और पररवार रोकता ह तो उनह ममता की जाल समझकर काट दना जञान की क ची स ईशवर क रासत आसम-साकषासकार क रासत चलन म दतनयाा का अचछ स अचछा वयलकत भी आड़ आता हो तो hellip

आहा तलसीदासजी न ककतना सनदर कहा ह

जाक षपरय न राि वदही

तषजए ताहह कोहि वरी सि यदयषप परि सनही

ऐस परसग म परम सनही को भी वरी की तरह सयाग दो अनदर की चतना का सहारा लो और ॐ की गजकना करो

दख और चचनता हताशा और परशानी असफलता और दररिता भीतर की चीज होती ह बाहर की नही जब भीतर तम अपन को असफल मानत हो तब बाहर तमह असफलता ददखती ह

भीतर स तम दीन हीन मत होना घबराहट पदा करनवाली पररलसथततयो क आग भीतर स

झकना मत ॐकार का सहारा लना मौत भी आ जाए तो एक बार मौत क लसर पर भी पर रखन की ताकत पदा करना कब तक डरत रहोग कब तक मनौततयाा मनात रहोग कब तक नताओ को साहबो को सठो को नौकरो को ररझात रहोग तम अपन आपको ररझा लो एक बार अपन आपस दोसती कर लो एक बार बाहर क दोसत कब तक बनाओग

कबीरा इह जग आय क बहत स कीन िीत

षजन हदल बा ा एक स व सोय तनषशचत

बहत सार लमतर ककय लककन लजसन एक स ददल बााधा वह धनय हो गया अपन आपस ददल बााधना ह यह lsquoएकrsquo कोई आकाश पाताल म नही बठा ह कही टललफोन क खमभ नही डालन ह वायररग नही जोड़नी ह वह lsquoएकrsquo तो तमहारा अपना आपा ह वह lsquoएकrsquo तमही हो नाहक लसकड़ रह हो lsquoयह लमलगा तो सखी होऊा गा वह लमलगा तो सखी होऊा गा helliprsquo

अर सब चला जाए तो भी ठीक ह सब आ जाए तो भी ठीक ह आखखर यह ससार सपना ह गजरन दो सपन को हो होकर कया होगा कया नौकरी नही लमलगी खाना नही लमलगा कोई बात नही आखखर तो मरना ह इस शरीर को ईशवर क मागक पर चलत हए बहत बहत तो भख पयास स पीडड़त हो मर जायग वस भी खा खाकर लोग मरत ही ह न वासतव म होता तो यह ह कक परभ परालपत क मागक पर चलनवाल भकत की रकषा ईशवर सवय करत ह तम जब तनलशचत हो जाओग तो तमहार ललए ईशवर चचलनतत होगा कक कही भखा न रह जाए बरहमवतता

सोचा ि न कही जाऊ गा यही बठकर अब खाऊ गा

षजसको गरज होगी आयगा सषटिकतताय खद लायगा

सलषटटकतताक खद भी आ सकता ह सलषटट चलान की और साभालन की उसकी लजममदारी ह तम यदद ससय म जट जात हो तो चधककार ह उन दवी दवताओ को जो तमहारी सवा क ललए लोगो को परररा न द तम यदद अपन आपम आसमारामी हो तो चधककार ह उन ककननरो और गधवो को जो तमहारा यशोगान न कर

नाहक तम दवी दवताओ क आग लसकड़त रहत हो कक lsquoआशीवाकद दोhellip कपा करो helliprsquo तम अपनी आसमा का घात करक अपनी शलकतयो का अनादर करक कब तक भीख माागत रहोग अब तमह जागना होगा इस दवार पर आय हो तो सोय सोय काम न चलगा

हजार तम यजञ करो लाख तम मतर करो लककन तमन मखकता नही छोड़ी तब तक तमहारा भला न होगा 33 करोड़ दवता तो कया 33 करोड़ कषटर आ जाय लककन जब तक तववजञान को वयवहार म उतारा नही तब तक अजकन की तरह तमह रोना पड़गा Let the lion of vedant roar

in your life वदानतरपी लसह को अपन जीवन म गजकन दो टाकार कर दो ॐ कार का कफर दखो दख चचनताएा कहाा रहत ह

चाचा लमटकर भतीज कयो होत हो आसमा होकर शरीर कयो बन जात हो कब तक इस जलनवाल को lsquoमrsquo मानत रहोग कब तक इसकी अनकलता म सख परततकलता म दख महसस करत रहोग अर सववधा क साधन तमह पाकर धनभागी हो जाय तमहार कदम पड़त ही असववधा सववधा म बदल जाए -ऐसा तमहारा जीवन हो

घन जगल म चल जाओ वहाा भी सववधा उपलबध हो जाए न भी हो तो अपनी मौज अपना आसमानद भग न हो लभकषा लमल तो खा लो न भी लमल तो वाह वाह आज उपवास हो गया

राजी ह उसि षजसि तरी रजा ह

हिारी न आरज ह न ज सतज ह

खाना या नही खाना यह मद क ललए ह लजसकी अलसथयाा भी ठकराई जाती ह उसकी चचनता भगवान का पयारा होकर टकड़ो की चचनता सतो का पयारा होकर कपड़ो की चचनता फकीरो का पयारा होकर रपयो की चचनता लसदधो का पयारा होकर नात ररशतो की चचनता

चचनता क बहत बोझ उठाय अब तनलशचनत हो जाओ फकीरो क सग आय हो तो अब फककड़ हो जाओ साधना म जट जाओ

फकीर का मतलब लभखारी नही फकीर का मतलब लाचार नही फकीर वह ह जो भगवान की छाती पर खलन का सामथयक रखता हो ईशवर की छाती पर लात मारन की शलकत लजसम ह वह फकीर भग न भगवान की छाती पर लात मार दी और भगवान परचपी कर रह ह भग फकीर थ लभखमगो को थोड़ ही फकीर कहत ह तषटरावान को थोड़ ही फकीर कहत ह

भग को भगवान क परतत दवष न था उनकी समता तनहारन क ललए लगा दी लात भगवान ववषटर न कया ककया कोप ककया नही भग क पर पकड़कर चपी की कक ह मतन तमह चोट तो नही लगी

फकीर ऐस होत ह उनक सग म आकर भी लोग रोत ह lsquoककड़ दोhellip पसथर दोhellip मरा कया होगा hellip बचचो का कया होगा कटमब का कया होगा

सब ठीक हो जायगा पहल तम अपनी मदहमा म आ जाओ अपन आपम आ जाओ

नयायाधीश कोटक म झाड लगान थोड़ ही जाता ह वादी परततवादी को असील वकील को बलान

थोड़ी ही जाता ह वह तो कोटक म आकर ववराजमान होता ह अपनी कसी पर बाकी क सब काम अपन आप होन लगत ह नयायाधीश अपनी कसी छोड़कर पानी भरन लग जाए झाड लगान लग जाए वादी परततवादी को पकारन लग जाए तो वह कया नयाय करगा

तम नयायाधीशो क भी नयायाधीश हो अपनी कसी पर बठ जाओ अपनी आसमचतना म जग जाओ

छोटी बड़ी पजाएा बहत की अब आसमपजा म आ जाओ

दखा अपन आपको िरा हदल दीवाना हो गया

ना छड़ो िझ यारो ि खद प िसताना हो गया

ऐस गीत तनकलग तमहार भीतर स तम अपनी मदहमा म आओ तम ककतन बड़ हो इनिपद तमहार आग तचछ ह अतत तचछ ह इतन तम बड़ हो कफर लसकड़ रह हो धकका मकका कर रह हो lsquoदया कर दो hellip जरा सा परमोशन द दोhellip अवल कारकन म स तहसीलदार बना दो hellip तहसीलदार म स कलकटर बना दो hellip कलकटर म स सचचव बना दो helliprsquo

लककन hellip जो तिको यह सब बनायग व तिस बड़ बन जायग ति छोि ही रह जाओग बनती हई चीज स बनानवाला बड़ा होता ह अपन स ककसको बड़ा रखोग मदो को कया बड़ा रखना अपनी आसमा को ही सबस बड़ी जान लो भया यहाा तक कक तम अपन स इनि को भी बड़ा न मानो

फकीर तो और आग की बात कहग व कहत ह lsquoबरहमा ववषटर और महश भी अपन स बढकर नही होत एक ऐसी अवसथा आती ह यह ह आसम साकषासकार rsquo

बरहमा ववषटर और महश भी तवववतता स आललगन करक लमलत ह कक यह जीव अब लशवसवरप हआ ऐस जञान म जगन क ललए तमहारा मनषटय जनम हआ ह hellip और तम लसकड़त रहत हो lsquoमझ नौकर बनाओ चाकर रखो rsquo अर तमहारी यदद तयारी ह तो अपनी मदहमा म जगना कोई कदठन बात नही ह

यह कौन सा उकदा ह जो हो नही सकता

तरा जी न चाह तो हो नही सकता

छोिा सा कीड़ा पतथर ि घर कर

और इनसान कया हदल हदलबर ि घर न कर

तमहार सब पणय कमक धमाकचरर और दव दशकन का यह फल ह कक तमह आसमजञान म रचच हई बरहमवतताओ क शरीर की मलाकात तो कई नालसतको को भी हो जाती ह अभागो को भी हो जाती ह शरदधा जब होती ह तब शरीर क पार जो बठा ह उस पहचानन क कातरबल तम बन जाओग ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

जो तवववतताओ की वारी स दर ह उस इस ससार म भटकना ही पड़गा जनम मरर लना ही पड़गा चाह वह कषटर क साथ हो जाए चाह अमबाजी क साथ हो जाए लककन जब तक तववजञान नही हआ तब तक तो बाबा hellip

गजराती भकत कवव नरलसह महता कहत ह

आतितततव चीनया षवना सवय सा ना झ ठी

सवक साधनाओ क बाद नरलसह महता यह कहत ह

तम ककतनी साधना करोग

पहल मन भी खब पजा उपासना की थी भगवान लशव की पजा क तरबना कछ खाता पीता नही था प प सदगरदव शरी लीलाशाहजी बाप क पास गया तब भी भगवान शकर का बार और पजा की सामगरी साथ म लकर गया था म लकडड़याा भी धोकर जलाऊा ऐसी पववतरता को माननवाला था कफर भी जब तक परम पववतर आसमजञान नही हआ तब तक यह सब पववतरता बस उपाचध थी अब तो hellip अब कया कहा

ननीताल म 15 डोदटयाल (कली) रहन क ललए एक मकान ककराय पर ल रह थ ककराया 32 रपय था और व लोग 15 थ लीलाशाहजी बाप न दो रपय दत हए कहा

ldquoमझ भी एक lsquoममबरrsquo बना लो 32 रपय ककराया ह हम 16 ककरायदार हो जायग rsquorsquo

य अननत बरहमाणडो क शहनशाह उन डोदटयालो क साथ वषो तक रह व तो महा पववतर हो गय थ उनह कोई अपववतरता छ नही सकती थी

एक बार जो परम पववतरता को उपलबध हो गया उस कया होगा लोह का टकड़ा लमटटी म पड़ा ह तो उस जग लगगा उस साभालकर आलमारी म रखोग तो भी हवााए वहाा जग चढा दगी उसी लोह क टकड़ को पारस का सपशक करा दो एक बार सोना बना दो कफर चाह आलमारी म रखो चाह कीचड़ म डाल दो उस जग नही लगगा

ऐस ही हमार मन को एक बार आसमसवरप का साकषासकार हो जाय कफर उस चाह समाचध म तरबठाओ पववतरता म तरबठाओ चाह नरक म ल जाओ वह जहाा होगा अपन आपम परक होगा उसीको जञानी कहत ह ऐसा जञान जब तक नही लमलगा तब तक ररदचध लसदचध आ जाए मद को फा क मारकर उठान की शलकत आ जाए कफर भी उस आसमजञान क तरबना सब वयथक ह वाक लसदचध या सककपलसदचध य कोई मलजल नही ह साधनामागक म य बीच क पड़ाव हो सकत ह

यह जञान का फल नही ह जञान का फल तो यह ह कक बरहमा और महश का ऐशवयक भी तमह अपन तनजसवरप म भालसत हो छोटा सा लग ऐसा तमहारा आसम परमासमसवरप ह उसम तम जागो ॐ hellip ॐ hellip ॐ hellip

िोहतनशा स जागो

आाखो क दवारा कानो क दवारा दतनयाा भीतर घसती ह और चचतत को चचल करती ह जप रधयान समरर शभ कमक करन स बदचध सवचछ होती ह सवचछ बदचध परमासमा म शात होती ह और मललन बदचध जगत म उलझती ह बदचध लजतनी लजतनी पववतर होती ह उतनी उतनी परम शातत स भर जाती ह बदचध लजतनी लजतनी मललन होती ह उतनी ससार की वासनाओ म ववचारो म भटकती ह

आज तक जो भी सना ह दखा ह उसम बदचध गई लककन लमला कया आज क बाद जो दखग सनग उसम बदचध को दौड़ायग लककन अनत म लमलगा कया शरीकषटर कहत ह

यदा त िोहकमलल बदध वययतततररटयतत

तदा गनतामस तनवद शरोतवयसय शरतसय च

lsquoलजस काल म तरी बदचध मोहरप दलदल को भलीभाातत पार कर जाएगी उस समय त सन हए और सनन म आनवाल इस लोक और परलोक समबनधी सभी भोगो स वरागय को परापत हो जायगा rsquo (भगवदगीता252)

दलदल म पहल आदमी का पर धास जाता ह कफर घटन कफर जााघ कफर नालभ कफर छाती कफर परा शरीर धास जाता ह ऐस ही ससार क दलदल म आदमी धासता ह lsquoथोड़ा सा यह कर ला थोड़ा सा यह दख ला थोड़ा सा यह खा ला थोड़ा सा यह सन ला rsquo परारमभ म बीड़ी पीनवाला जरा सी फा क मारता ह कफर वयसन म परा बाधता ह शराब पीनवाला पहल जरा सा घाट पीता ह कफर परा शराबी हो जाता ह

ऐस ही ममता क बनधनवाल ममता म फा स जात ह lsquoजरा शरीर का खयाल कर जरा कटलमबयो का खयाल कर hellip rsquo lsquoजरा hellip जरा helliprsquo करत करत बदचध ससार क खयालो स भर जाती ह लजस बदचध म परमासमा का जञान होना चादहए लजस बदचध म परमासमशातत भरनी चादहए उस बदचध म ससार का कचरा भरा हआ ह सोत ह तो भी ससार याद आता ह चलत ह तो भी ससार याद आता ह जीत ह तो ससार याद आता ह और मरतhellip ह hellip तो hellip भी hellip ससारhellip

हीhellip यादhellip आताhellip ह

सना हआ ह सवगक क बार म सना हआ ह नरक क बार म सना हआ ह भगवान क बार म यदद बदचध म स मोह हट जाए तो सवगक नरक का मोह नही होगा सन हए भोगय पदाथो का मोह नही होगा मोह की तनववतत होन पर बदचध परमासमा क लसवाय ककसी म भी नही ठहरगी परमासमा क लसवाय कही भी बदचध ठहरती ह तो समझ लना कक अभी अजञान जारी ह अमदावादवाला कहता ह कक मबई म सख ह मबईवाला कहता ह कक कलकतत म सख ह कलकततवाला कहता ह कक कशमीर म सख ह कशमीरवाला कहता ह कक मगरी म सख ह मगरीवाला कहता ह कक शादी म सख ह शादीवाला कहता ह कक बाल बचचो म सख ह बाल बचचोवाला कहता ह कक तनववतत म सख ह तनववततवाला कहता ह कक परववतत म सख ह मोह स भरी हई बदचध अनक रग बदलती ह अनक रग बदलन क साथ अनक अनक जनमो म भी ल जाती ह

यदा त िोहकमलल बदध वययतत hellip

lsquoलजस काल म तरी बदचध मोहरपी दलदल को भलीभाातत पार कर जाएगी उसी समय त सन हए और सनन म आनवाल इस लोक और परलोक सबधी सभी भोगो स वरागय को परापत हो जायगा rsquo

इस लोक और परलोकhellip

सात लोक ऊपर ह भ भव सव जन तप मह और ससय

सात लोक नीच ह तल अतल ववतल तलातल महातल रसातल और पाताल

इस परकार सात लोक उपर सात लोक तनच हhellipजब बलरधद म मोह होता ह तो ककसी न ककसी लोक म आदमी यातरा करत ह

वलशषटठजी महाराज क पास एक ऐसी ववदयाधरी आयी लजसका मनोबल धारराशलकत स असयनत पषटट हआ था इचछाशलकत परबल थी उसन वलशषटठजी स कहा

lsquorsquoह मनीशवर म तमहारी शरर आई हा म एक तनराली सलषटट म रहनवाली हा उस सलषटट का रचतयता मर पतत ह उनकी बदचध म सतरी भोगन की इचछा हई इसललए उनहोन मरा सजन ककया मरी उसपवतत क बाद उनको रधयान म आसमा म अचधक आनद आन लगा इसललए व मझस ववरकत हो गय अब मरी ओर आाख उठाकर दखत तक नही अब मरी यौवन अवसथा ह मर अग सदर और सकोमल ह म भताक क तरबना नही रह सकती आप कपा करक चललय मर पतत को समझाइए rsquorsquo

साध परष परोपकार क ललए सममत हो जात ह वलशषटठजी महाराज उस भि मदहला क साथ उसक पतत क यहाा जान को तयार हए वलशषटठजी भी योगी थ वह मदहला भी धारराशलकत म ववकलसत थी दोनो उड़त उड़त इस सलषटट को लााघत गय एक नय बरहमाणड म परववषटट हो गय वहाा वह ववदयाधरी एक बड़ी लशला म परववषटट हो गयी वलशषटठजी बाहर रक गय वह सतरी वापस बाहर आई तो वलशषटठजी बोल lsquolsquoतरी सलषटट म हम परववषटट नही हो सकत rsquorsquo

तब उस ववदयाधरी न कहा lsquolsquoआप मरी चचततववतत क साथ अपनी चचततववतत लमलाइए आप भी मर साथ साथ परववषटट हो सक ग rsquorsquo

एक आदमी सवपन दख रहा ह उसक सवपन म दसरा आदमी परववषटट नही हो सकता दसरा तब परववषटट हो सकगा कक जब उन दोनो क सन हय ससकार एक जस हो एक आदमी सोया ह आप उसक पास खड़ ह आप बार बार सघनता स खयाल करो उसी खयाल का बार बार पनरावतकन करो कक बाररश हो रही ह ठड लग रही ह आपक शवासोचछवास क आदोलन उस

सोय हए आदमी पर परभाव डालग उसकी चचततववतत आपकी चचततववतत क साथ तादासमय करगी और उसको सवपन आयगा कक खब बाररश हो रही ह और म भीग गया

मखक आदलमयो क साथ हम लोग जीत ह ससार क दलदल म फा स हए पसो क गलाम इलनियो क गलाम ऐस लोगो क बीच यदद साधक भी जाता ह तो वह भी सोचता ह कक चलो थोड़ रपय इकटठ कर ला नोटो की थोड़ी सी थपपी तो बना ला कयोकक मर बाप क बाप तो ल गय ह मर बाप भी ल गय ह और अब मरको भी ल जाना ह

मोह क दलदल म आदमी फा स जाता ह कीचड़ म धास हए वयलकत क साथ यदद तम तादासमय करत हो तो तम भी डबन लगत हो तमको लगता ह कक य डब ह हम नही डबत मगर तम ऐसा कहत भी जात हो और डबत भी जात हो बदचध म एक ऐसा ववचचतर भरम घस जाता ह

जस तस साधक को ही नही अजकन जस को भी यह भरम हो गया था अजकन को आसम साकषासकार नही हआ और वह बोलता ह कक lsquolsquoभगवन तमहार परसाद स अब म सब समझ गया हा अब म ठीक हो गया हा rsquorsquo

भगवान कहत ह lsquolsquoअचछा ठीक ह समझ रहा ह कफर भी दखी सखी होता ह भीतर मोह ममता ह rsquorsquo

गयारहव अरधयाय म अजकन न कहा कक मझ जञान हो गया ह म सब समझ गया मरा मोह नषटट हो गया कफर सात अरधयाय और चल ह उसको पता ही नही कक आसम साकषासकार कया होता ह

एक तलषटट नाम की भलमका आती ह जो जीव का सवभाव होता ह जीव म थोड़ी सी शातत

थोड़ा सा सामथयक थोड़ा सा हषक आ जाता ह तो समझ लता ह मन बहत कछ पा ललया जरा सा आभास होता ह झलक आती ह तो उसीको लोग आसम साकषासकार मान लत ह

जब मोहकललल को बदचध पार कर जायगी तब सना हआ और दखा हआ जो कछ होगा उसस तमहारा वरागय हो जायगा इनि आकर हाथ जोड़कर खड़ा हो जाए कबर तमहार ललए खजान की कलजयाा लकर खड़ा रह बरहमाजी कमणडल लकर खड़ रह और बोल कक lsquoचललए बरहमपरी का सख लीलजय helliprsquo कफर भी तमहार चचतत म उन पदाथो का आकषकर नही होगा तब समझना कक आसम साकषासकार हो गया

बचचो का खल नही िदान िहबबत

यहा जो भी आया मसर पर कफन बा कर आया

जीव का सवभाव ह भोग लशव का सवभाव भोग नही ह जीव का सवभाव ह वासना जीव का सवभाव ह सख क ललए दौड़ना बरहमाजी आयग तो सख दन की ही बात करग न सख क ललए यदद तम भागत हो तो पता चलता ह कक सख का दररया तमहार भीतर परा उमड़ा नही ह सख की कमी होगी तब सख लन को कही और जाओग सख लना जीव का सवभाव होता ह आसम साकषासकार क बाद जीव बाचधत हो जाता ह जीव का जीवपना नही रहता वह लशवसव म परगट हो जाता ह

कामदव रतत को साथ लकर लशवजी क आग ककतन ही नखर करन लगा लककन लशवजी को परभाववत न कर सका लशवजी इतन आसमारामी ह उनम इतना आसमानद ह कक उनक आग काम का सख अतत नीचा ह अतत तचछ ह लशवजी काम स परभाववत नही हए

योगी लोग सत लोग जब साधना करत ह तब अपसराएा आती ह नखर करती ह जो उनक नखर स आकवषकत हो जात ह व आसमतनषटठा नही पा सकत ह आसमानद क खजान को नही पा सकत ह इसीललए साधको को चतावनी दी जाती ह कक ककसी ररदचध लसदचध म ककसी परलोभन

म मत फा सना

तम मन और इलनियो का थोड़ा सा सयम करोग तो तमहारी वारी म सामथयक आ जाएगा तमहार सककप म बल आ जाएगा तमहार दवारा चमसकार होन लगग

चमसकार होना आसम साकषासकार नही ह चमसकार होना शरीर और इलनियो क सयम का फल ह आसम साकषासकारी महापरष क दवारा भी चमसकार हो जात ह व चमसकार करत नही ह हो जात ह उनक ललए यह कोई बड़ी बात नही ह वारी और सककप म सामथयक यह इचछाशलकत का ही एक दहससा ह तम जो सककप करो उसम डट रहो तम जो ववचार करत हो उन ववचारो को काटन का दसरा ववचार न उठन दो तो तमहार ववचारो म बल आ जाएगा

शरीर को इलनियो को सयत करक जप तप मौन एकागरता करो तो अतकरर शदध होगा शदध अतकरर का सककप जकदी फलता ह लककन यह आखखरी मलजल नही ह शदध अतकरर कफर अशदध भी हो सकता ह

15-16 साल पहल वाराही म मर पास एक साध आया और बहत रोया मन पछा lsquolsquoकया बात ह rsquorsquo

वह बोला lsquolsquo मरा सब कछ चला गया बाबाजी लोग मझ भगवान जसा मानत थ अब मर सामन आाख उठाकर कोई नही दखता ह rsquorsquo वह और रोन लगा मन सासवना दकर जयादा पछा तो उसन बताया

lsquolsquoबाबाजी कया बताऊा म पानी म तनहारकर वह पानी द दता तो रोता हआ आदमी हासन लगता था बीमार आदमी ठीक हो जाता था लककन बाबाजी अब मरी वह शलकत न जान कहाा चली गई अब मझ कोई पछता नही rsquorsquo

बदचध का मोह परा गया नही था बदचध का तमस थोड़ा गया बदचध का रजस थोड़ा गया लककन बदचध परी परमासमा म ठहरी नही थी परी परमासमा म नही ठहरी तो परततषटठा म ठहरी परततषटठा थी तो बदचध परसनन हई और lsquoम भगवान हाhelliprsquo ऐसा मानकर खश रहन लगी जब बदचध की शदचध चली गई एकागरता नषटट हई तो सककप का सामथयक चला गया लोगो न दखना बद कर ददया तो बोलता ह lsquoबाबाजी म परशान हा rsquo

जञानी शली पर चढ तो भी परशान नही होत परलसदचध क बदल कपरलसदचध हो जाए जहर ददया जाए शली पर चढा ददया जाए कफर भी जञानी अनदर स दखी नही होत कयोकक उनहोन जान ललया कक ससार म जो भी सना हआ दखा हआ जो कछ भी ह नही क बराबर ह सब सवपन ह भगवान शकर कहत ह

उिा कहउ ि अनभव अपना

सतय हररभजन जगत सब सपना

तसय परजञा परततषटठता उसकी परजञा बरहम म परततलषटठत हो जाती ह

उस साध क ललए थोड़ी दर म शात हो गया और कफर उसस बोला lsquolsquoतमन तराटक लसदध ककया हआ था rsquorsquo

वह बोला lsquolsquoहाा बाबाजी आपको कस पता चला गया rsquorsquo

मन कहा lsquolsquoऐस ही पता चल गया rsquorsquo

आपका हदय लसथर ह तो दसरो की चचततववतत क साथ आपका तादासमय हो जाता ह कोई कदठन बात नही ह अपन ललए वह चमसकार लगता ह सतो क ललए यह कोई चमसकार नही

तमहारा रडडयो यदद ठीक ह तो वायमणडल म बहता हआ गाना तमह सनाई पड़ता ह ऐस ही यदद तमहारा अतकरर शात होता ह बदचध लसथर होती ह तो घदटत घटना या भववषटय की घटना का पता चल जाता ह यही कारर ह कक वाकमीकक ॠवष न सौ साल पहल रामायर रच ललया रामजी स या ववषटरजी स पछन नही गय कक तम कया करोग अथवा ककसी जयोततष का दहसाब लगान नही गय थ बदचध इतनी शदध होती ह कक भत और भववषटय की ककपनाएा नही रहती ह जञानी क ललए सदा वततकमान रहता ह इसललए भत भववषटय की खबर पड़ जाती ह उनकी बदचध ववचललत नही होती ह

उस साध न तराटक लसदध ककया हआ था तराटक स एकागरता होती ह और एकागरता स इचछाशलकत ववकलसत होती ह सामथयक बढ जाता ह उसी इचछाशलकत को यदद आसमजञान म नही मोड़ा तो वह इचछाशलकत कफर ससार की तरफ ल जाती ह

एकागरता क ललए तराटक की ववचध इस परकार ह

एक फट क चौरस गतत पर एक सफद कागज लगा दो उसक कनि म एक रपय क लसकक क बराबर एक गोलाकार चचहन बनाओ इस गोलाकार चचहन क कनि म एक ततलभर तरबनद छोड़कर बाकी क भाग म काला रग भर दो बीचवाल तरबनद म पीला रग भर दो

अब उस गतत को ऐस रखो कक वह गोलाकार चचहन आपकी आाखो की सीधी रखा म रह हररोज एक ही सथान म कोई एक तनलशचत समय म उस गतत क सामन बठ जाओ पलक चगराय तरबना अपनी दलषटट उस गोलाकार चचहन क पील कनि पर दटकाओ आाख परी खली या परी बद न हो

आाख बनद होती ह तो तमहारी शलकत मनोराज म कषीर होती ह आाख यदद परी खली होती ह तो उसक दवारा तमहारी शलकत की रलशमयाा बाहर बहकर कषीर होती ह आलसमक शलकत कषीर

होती ह इसी कारर रन बस या मोटरकार की मसाकफरी म खखड़की स बाहर झााकत हो तो थोड़ी ही दर म थककर झपककयाा लन लगत हो जीवनशलकत खचक हो जाती ह

उस पील तरबनद पर दलषटट एकागर करन स आाखो दवारा तरबखरती हई जीवनशलकत बचगी और सककप की परपरा टटन लगगी सककप ववककप कम होन स आरधयालसमक बल जगगा पहल 5 लमनट 10 लमनट 15 लमनट बठो परारभ म आाख जलती हई मालम पड़गी आाखो म स पानी चगरगा रोज आधा घणटा बठन का अभयास करो कफर तो तम ऐस ऐस चमसकार कर लोग कक भगवान की तरह पज जाओग उसक साथ यहद आतिजञान नही होगा तो वह भगवान अत ि रोता हआ भगवान होगा िकत भगवान नही होगा

एकागरता सब तपसयाओ का माई बाप ह

भलकत परपरा म पजयपाद माधवाचायक परलसदध सत हो गय उनहोन कहा था lsquolsquoह परभ हम तर पयार म अब इतन गकक हो गय ह कक हमस अब न यजञ होता ह न तीथक होता ह न सरधया होती ह न तपकर होता ह न मगछाला तरबछती ह न माला घमती ह हम तर पयार म ही तरबक गय rsquorsquo

जब परमाभलकत परगट होन लगती ह तब कटलमबयो का ससाररयो का समाज का मोह तो हट जाता ह लककन कफर कमककाणड का मोह भी टट जाता ह कमककाणड का मोह तब तक ह जब तक दह म आसमबदचध होती ह ससार म आसलकत होती ह तब तक कमककाणड म परीतत होती ह ससार की आसलकत हट जाए कषटर म परम हो जाए राम म परम हो जाए तो कफर कमककाणड की नीची साधना करन को जी नही चाहता ह कषटर का अथक ह आकषकनवाला आनदसवरप आसमा राम का अथक ह सबम रमनवाला चतनय आसमा

कछ सपरदायवाल तराटक लसदध करक अपनी शलकत का दरपयोग करत ह चमगादड़ मारकर उसका काजल बनाकर उस काजल को आाखो म लगाकर ककसीस अपनी आाख क सामन तनहारन

और रधयान करन को कहत ह रधयान करनवाल वयलकत की बदचध वश हो जाए ऐसा सककप करक तराटक करत ह तो अचछ अचछ लोग उनक वश म हो जात ह

इसम उनकी अपनी भी हातन ह और सामनवाल वयलकत की भी हातन ह एकागरता तो ठीक ह लककन अगर एकागरता का उपयोग ससार ह एकागरता का उपयोग भोग ह तो वह एकागरता साधक को मार डालती ह एकागरता का उपयोग एक परमासमा की परालपत क ललए होना चादहए

रपयो म पाप नही लककन रपयो स भोग भोगना पाप ह सतता म पाप नही लककन सतता स अहकार बढाना पाप ह अकलमद होन म पाप नही लककन उस अकल स दसरो को चगराना और अपन अह को पोवषत करना पाप ह

कई लोग परशान रहत ह मढ लोग अधालमकक लोग परशान रहत ह इसम कोई आशचयक नही लककन भगत लोग भी परशान रहत ह भगत सोचता ह कक lsquoमरा मन लसथर हो जाएhellip मरी इलनियाा शात हो जाएाhelliprsquo भया मर मन शात हो जाएगा इलनियाा शात हो जाएागी तो lsquoरामनाम सत हhelliprsquo हो जाएगा तन मन इलनियो का तो सवभाव ह हरकत करना चषटटा करना लककन वह चषटटा सयोगय हो मन का सवभाव ह सककप करना लककन ऐसा सककप कर कक अपना बनधन कट बदचध का सवभाव ह तनरकय करना

लोग इचछा करत ह lsquolsquoम शात हो जाऊा पसथर की तरह hellip मरा रधयान लग जाए helliprsquorsquo लजनका रधयान लगता ह व परशान ह और लजनका रधयान नही लगता ह व भी परशान ह रधयान क रासत नही आए व भी परशान ह ही उनकी ववततयाा पल पल म उदववगन होती ह रजो तमोगर बढ जाता ह

योग म बताया गया ह कक चचतत की पााच अवसथाएा होती ह कषकषपत ववकषकषपत मढ एकागर और तनरदध चचतत परकतत का बना ह वह सदा एक अवसथा म नही रहता सदा एकागर भी नही

रह सकता और सदा चचल भी नही रह सकता ककतना भी चचल आदमी हो लककन रात को वह शात हो जाएगा ककतना भी शात वयलकत हो लककन उसका चचतत चषटटा करगा ही

भगवान शकर जसी समाचध तो ककसीकी लगी नही कफर भी शकरजी समाचध स उठत ह तो डमर लकर नाचत ह शरीर मन और ससार सदा बदलता रहता ह सख दख सदा आता जाता ह दख म तो पकड़ नही होती लककन सख म पकड़ रहती ह कक यह सदा बना रह सख म धन म सवगक म यदद पकड़ ह तो समझो कक बदचध का मोह अभी नही गया जञानी को ककसीम पकड़ नही होती भगवान कषटर जी कहत ह

यदा त िोहकमललि

मोह दलदल ह दलदल म आदमी थोड़ा धासत धासत परा नषटट हो जाता ह

लालजी महाराज एक सरल सत ह उनक पास एक साध आय जवान थ दखन म ठीक ठाक थ

एक बार एक नववध शादी क बाद तरत बाबाजी क दशकन करन आयी बाबाजी न कहा lsquolsquo

भगवान क दशकन कर लो rsquorsquo वह दशकन करन गई तो उस साध की आाख उस नववध की ओर घमती रही उसक जान क बाद लालजी महाराज न साध स कहा lsquo महाराज आप सनयासी ठहर गहसथ साधक भी अपन को बचाता ह और आप hellip यह ठीक नही लगता ह कक कोई यवती आयी और hellip इलनियो को जरा बचाना चादहए rsquorsquo

कान स और आाख स ससार अपन अनदर घस जाता ह वह साध चचढ गया उस अहकार था कक म साध हा मन गरए कपड़ पहन ह

घर छोड़ना बड़ी बात नही लककन अहकार छोड़ना बड़ी बात ह ककनही पादररयो क सग स परभाववत और उनकी बदचध स रग हए उस यवान साध न रठकर कहा lsquolsquoभगवान न आाख दी ह दखन क ललए सौनदयक ददया ह तो दखन क ललए कवल दखन म कया जाता ह मन उसस बात नही की सपशक नही ककया rsquorsquo आदमी तकक दना चाह तो कस भी द सकता ह

अर भाई पहल पहल तो ऐसा ही होता ह कक दखन म कया जाता ह शराब की एक पयाली पी लन म कया जाता ह लककन यह मोहकललल ऐसा ववचचतर दलदल ह कक उसम एक बार पर पड़ गया तो कफर जयो जयो समय बीतता जाएगा सयो सयो जयादा धासत जाओग

वह साध उस समय तो रठकर चला गया लककन वकत बादशाह ह घमत घामत छ आठ महीन क बाद वह साध दबला पतला चहर पर गडढ दीन हीन हालत म लालजी महाराज क पास आया उनहोन तो पहचाना भी नही पहल सवामी होकर आता था अब वह लभखारी की तरह पछ रहा ह

lsquolsquoम आ सकता हा rsquorsquo

लालजी महाराज lsquolsquoआओ rsquorsquo

lsquolsquoमर साथ तीन मतत कयाा और भी ह rsquorsquo

lsquolsquoउनको भी बलाओ rsquorsquo

एक सनयालसनी जसी सतरी और दो बचच भी आय साध न अपनी पहचान दी तो लालजी महाराज बोल

lsquolsquoकफर य कौन ह rsquorsquo

साध बोला lsquolsquoयह ववधवा माई थी बचारी दखी थी बचच भी थ उस दखकर मझ दया आ गई आजीववका का कोई साधन उसक पास नही था इसललए माई को लशषटया बना ललया बचचो को पढाता हा rsquorsquo

बाद म मालम करन पर पता चला कक साध न उस सतरी को पसनी बनाया ह और कमाता नही ह इसललए गरए कपड़ पहनाकर घमाता रहता ह

कया तजसवी साध था सतरी की ओर जरा सा दखा कवल और कछ नही आाख स इधर उधर कछ दखत हो या कान स सनत हो तो बदचध म जरा सा भी यदद मोह ह तो वह बढता जायगा आसमजञान नही हआ हो तो जब तक शरीर रह तब तक भगवान स पराथकना करना कक lsquoह परभ बचात रहना इस दलदल सrsquo

कईयो को भरातत हो जाती ह कक ldquoमझ आसम साकषासकार हो गया hellip मझ आसमशातत लमल गई helliprsquorsquo

भावनगर स करीब 15-20 कक मी दर गौतमशवर नामक जगह ह वहाा एक साध थ बहत सयागी थ लोगो की भीड़ को दखत तो व एकानत म भाग जात ससार स ववरकत कछ साथ म नही रखत थ एकाध कपड़ा पहनत थ सयागी थ नारायर उनका नाम था और नारायर क भकत थ बाद म व दखी होकर मर

मन कहा lsquoसयागी ह भगवान क भकत ह तो दखी होकर नही मरत लोग उनह दख द सक मगर व दखी होत नही rsquo

तब लोगो न बताया ldquoघमत घमत व चगरनार चल गय थ वहाा दखा ककसी अघोरी को सोचा जरा सा सकफा पीन म कया जाता ह एक फा क लन म कया जाता ह जरा सा चरस खीचन म कया जाता ह उनहोन सकफा भी वपया भााग भी पी चरस भी वपया लसगरट भी पीन लग कफर अशात होकर आय ववकषकषपत होकर आय और आसमघात करक मर गय rdquo

शामलाजी आददवासी कषतर म मझ समाज क लोगो न आकर कहा कक यहाा क पादरी लोग बोतल खली रखकर उसम स पयाललयाा पीत पीत लोगो को लकचर दत ह आशीवकचन दत ह ऐस शराबी लोग धमकगर होकर लोगो क लसर पर हाथ रखत ह व गरीब आददवासी बचार

धमकपररवतकन क बहान धमकभरषटट होत ह लजस कल म जनम ललया हो उस कल क मतातरबक अगर ससकमक कर तो उस पणय क परभाव स उनक पवकजो को भी सदगतत लमल जाय यहा तो शराबी लोग थोड़ स रपयो की लालच दकर भोल भाल बचार आददवालसयो को धमकभरषटट कर रह ह

पीतवा िोहियी िहदरा ससार भ तो उनित

दजकन तो दखी होत ही ह लककन सजजन भी सचची समझ क तरबना परशान हो जात ह एक वपता फररयाद करता ह कक ldquoम सबह जकदी उठता हा पजा पाठ करता हा कटमब क अनय लोग भी जकदी उठत ह लककन एक नवजवान बटा दषटट ह वह सबर जकदी नही उठता rdquo

यह मोह ह lsquoमराrsquo बटा जकदी उठ कईयो क बट नही उठत तो कोई हजक नही लककन lsquoमराrsquo बटा जकदी उठ म धालमकक हा तो lsquoमरrsquo बट को भी धालमकक होना चादहए

अपन बट म इतनी ममता होन क कारर ही दख होता ह भगवान क जो पयार भकत ह भगवत तसव को कछ समझ रह ह उनको आगरह नही होता बड़ बट को जकदी उठान का परयसन करत ह लककन बटा नही उठता ह तो चचतत म ववकषकषपत नही होत

ककसीका ववरलकत परधान परारबध होता ह ककसीका वयवहार परधान परारबध होता ह जञान होन क बाद जञानी का जीवन सवाभाववक चलता ह लककन धालमकक लोगो को इतनी चचता परशानी होती ह कक lsquoअर शकदवजी को लगोटी का भी पता नही रहता था इतन आसमानद म डब रहत थ हमारा रधयान तो ऐसा नही लगता शकदवजी जसा हमारा रधयान लग rsquo

हजारो वषक पहल का मनषटय हजारो वषक पहल का वातावरर और कई जनमो क ससकार थ उनको ऐसा हआ उनको लकषय बनाकर चलत तो जाओ लककन लकषय बनाकर ववकषकषपत नही

होना हो गया तो हो गया नही हआ तो नही हआ लककन चचतत को सदा परसननता स महकता हआ रखो ऐसा रधयान हो गया तो भी सवपन न हआ तो भी सवपन लजस परमासमा म शकदवजी आकर चल गय वलशषटठजी आकर चल गय शरीराम आकर चल गय शरीकषटर आकर चल गय वह परमासमा अभी तमहारा आसमा ह ऐसा जञान जब तक नही होता ह तब तक मोह नही जाता ह

तलसीदासजी न कहा ह

िोह सकल बयाध नह कर ि ला ततनह त पतन उपजहह बह स ला

मोह सब वयाचधयो का मल ह उसस भव का शल कफर पदा होता ह इसीललए ककसी भी वसत म ममता हई आसलकत हई मोह हआ तो समझो कक मर ककसी भी पररलसथतत म मोह ममता नही होनी चादहए

lsquoआज आरती की घणटी बजाई पराथकना की तो बहत मजा आया अहा hellip रोज ऐस आरततयाा कर घलणटयाा बजाय और मजा आता रह helliprsquo तो हररोज ऐसा होगा नही लजस समय सषमरा का दवार खला ह महतक अचछा ह बदचध म सालववकता ह उस समय आरती करत हो तो मजा आता ह लजस समय शरीर म रजो तमोगर ह कछ खाया वपया ह शरीर भारी ह परार नीच ह उस समय आरती करोग तो मजा नही आयगा

मजा आना और न आना आसमा का सवभाव नही चचदाभास का सवभाव ह जीव का सवभाव ह मजा जीव को आता ह जञानी को मजा और बमजा नही आता व तो मसतराम ह

ससारी आदमी दवषी होता ह पामर आदमी को लजतना राग होता ह उतना दवष होता ह भकत होता ह रागी भगवान म राग करता ह आरती पजा म राग करता ह मददर मतत क म राग करता ह लजजञास म होती ह लजजञासा जञानी म कछ नही होता ह जञानी गरातीत होत ह मज की बात ह कक जञानी म सब ददखगा लककन जञानी म कछ होता नही जञानी स सब

गजर जाता ह

बदचध को शदध करन क ललए आसमववचार की जररत ह रधयान की जररत ह जप की जररत ह बदचध शदध हो तो जस दसर शरीर को अपनस पथक दखत ह वस ही अपन शरीर को भी आप अपनस अलग दखग ऐसा अनभव जब तक नही होता तब तक बदचध म मोह होन की सभावना रहती ह

थोड़ा सा मोह हट जाता ह तब लगता ह कक मर को रपयो म मोह नही ह सतरी म मोह नही ह मकान म मोह नही ह आशरम म मोह नही ह ठीक ह लककन परततषटठा म मोह ह कक नही ह इस जरा ढाढो दह म मोह ह कक नही ह जरा ढाढो और मोह टट जात ह लककन दह का मोह जकदी नही टटता लोकषर (वाहवाही) का मोह जकदी नही टटता धन का मोह भी जकदी स नही टटता

lsquoरपय सद पर ददय हए ह कथा म जाना ह गरदव बाहर जानवाल ह कया कर सद पर पस लजनको ददय हए ह व कही भाग गय तो rsquo अर वह कया भागगा भाग भागकर कहाा तक जायगा समशान म ही न hellip और तम ककतना भी इकठठा करोग तो भी आखखर समशान म ही जाना ह कोई खाकर नही भागता कोई लकर नही भागता सब यही का यही पड़ा रह जाता ह कवल बदचध म ममता ह कक य मर पस ह य मर कजकदार ह यह कवल बदचध का खखलवाड़ ह बदचध क य खखलौन तब तक अचछ लगत ह जब तक परमासमा का ठीक स अनभव नही हआ ह

पकषकषयो स जरा सीख लो उनको आज खान को ह कल का कोई पता नही कफर भी पड़ की डाली पर गनगना लत ह कोलाहल कर लत ह कब कहाा जायग कोई पता नही कफर भी तनलशचतता स जी लत ह

हमार पास रहन को घर ह खान को अनन ह - महीन भर का साल भर का कफर भी द

धमाधम सामान सौ साल का पता पल का नही

लजनको बठन का दठकाना नही डाल पर बठ लत ह दसर पल कौन सी डाल पर जाना ह कोई पता नही ऐस पकषी भी आनद स जी लत ह कया खायग कहाा खायग कोई पता नही उनका कोई कायकिम नही होता कक आज वहाा lsquoडडनरrsquo (भोज) ह कफर भी जी लत ह भख क कारर नही मरत रहन का सथान नही लमलता इसक कारर नही मरत मौत जब आती ह तब मरत ह

िद को परभ दत ह कपड़ा लकड़ा आग

षजनदा नर धचनता कर ता क बड़ अभाग

चचनता यदद करनी ह तो इस बात की करो कक पााच वषक क धरव को वरागय हआ परहलाद को वरागय हआ पर मझ कयो नही होता रामतीथक को 22 साल की उमर म वरागय हआ और परमासमा को पा ललया मझ 25 साल हो गय 40 साल हो गय 45 साल हो गय कफर भी वरागय नही होता

ससार की चाह अभी भी करत हो ससार क नशवर धन की वसली करना चाहत हो

ऐसा धन पा लो कक बरहमाजी का पद कबर का धन इनि का ऐशवयक तमहार आग तचछ ददख तमम इतना सामथयक ह

वह ववदयाधरी लशला स वापस बाहर आकर वलशषटठजी स कह रही ह कक ldquoमहाराज आइए rdquo

वलशषटठजी बोल ldquoम तो नही आ सकता हाrdquo

लजसकी धारराशलकत लसदध हो गई ह वह अतवाहक शरीर स दीवार क भीतर परवश कर लगा अतवाहक शरीर की साधना न की हो तो भल लसर फट जाय लककन दीवार क भीतर स न जा सकगा सरग बनाय तरबना आदमी योग की कला स पहाड़ म स आर पार गजर सकता ह ऐसी शलकत तमहार सबक भीतर छपी हई ह वह शलकत ववकलसत नही हई सथल शरीर क साथ जड़ गय इसललए वह शलकत सथलरप हो गई ह

पानी भाप बन जाता ह तो बारीक स बारीक छद म स तनकल जाता ह लककन वह पानी यदद ठणडा होकर बफक बन जाता ह तो छोटी बड़ी खखड़की स भी नही तनकल पाता ऐस ही तमहारी चचततववतत यदद सथल होती ह तो गतत नही होती ह और सकषम हो जाती ह तो गतत होती ह

वलशषटठजी महाराज न उस ववदयाधरी की चचततववतत स अपनी चचततववतत लमला दी और लशला म परववषटट हो गय इस सलषटट स एक नयी सलषटट म पहाच गय वहाा उस मदहला न एक समाचधसथ योगी को ददखात हए कहा कक ldquoव मर पतत ह उनको ससार स वरागय हो गया ह अब मरी तरफ आाख उठाकर दखत तक नही हrdquo

जब योगी न आाख खोली तो ववघाधरी न कहा

ldquoय वलशषटठजी महाराज ह दसरी सलषटट स आय ह शरीराम क गर ह महापरषो का सवागत करना ससपरषो का सवभाव ह इनका अरधयक पादय स सवागत कीलजय rdquo

उस योगी न वलशषटठजी का सवागत ककया और कहा

ldquoह बराहमर यह सलषटट मन इचछाशलकत स बनायी थी पसनी की इचछा हई तो सककप स पसनी भी बना ली कफर दखा कक लजस परमासमा की सतता स सककप दवारा इतनी घटना घट सकती ह उस परमासमा म ही कयो न ठहर जाय अत म अपनी चचततववतत को समटकर परमानद म मगन होकर आसमशातत म ल आया अब कोई भोग भोगन की मरी इचछा नही ह और इस सलषटट को चलान की भी मरी इचछा नही ह

मरी सवा करत करत इस सतरी म भी धारराशलकत लसदध हो गई ह इचछाशलकत क अनसार घटनाएा घटन लग जाती ह लककन इसकी बदचध म स मोह अभी गया नही ह इसको भोग की इचछा ह भोग हमशा अपना नाश करन म सलगन होता ह आप इसको आशीवाकद द कक इसकी भोग की इचछा तनवतत हो जाय और परमासमा म चचततववतत लग जाय और hellip अब म इस सलषटट को धारर करन का सककप समट रहा हा आप जकदी स जकदी इस सलषटट स बाहर पधार मर सककप म यह सलषटट ठहरी ह सककप समटत ही इसका परलय हो जायगा rdquo

वलशषटठजी कहत ह ldquoम उस सलषटट स रवाना हआ और मर दखत दखत उस बरहमाजी न सककप समटा तो सलषटट का परलय होन लगा सयक तपन लगा परलयकाल की वाय चलन लगी पहाड़ टटन लग लोग मरन लग वकष सखन लग पकषी चगरन लग rdquo

तमहार अदर वही परमासमशलकत इतनी ह कक यदद वह ववकलसत हो जाय तो तम इचछाशलकत स नयी सलषटट बना सकत हो हर इनसान म ऐसी ताकत ह लककन मोह क कारर भोगवासना क कारर नयी सलषटट तो कया मामली घर बनात ह तो भी lsquoलोनrsquo (उधार) लना पड़ता ह hellip वह भी लमलता नही और धकक खान पड़त ह

कवल तनध

लजसको कवली कमभक लसदध हो जाता ह वह पजन योगय बन जाता ह यह योग की एक ऐसी कजी ह कक छ महीन क दढ अभयास स साधक कफर वह नही रहता जो पहल था उसकी मनोकामनाएा तो परक हो ही जाती ह उसका पजन करक भी लोग अपनी मनोकामना लसदध करन लगत ह

जो साधक परक एकागरता स इस परषाथक को साधगा उसक भागय का तो कहना ही कया उसकी वयापकता बढती जायगी महानता का अनभव होगा वह अपना परा जीवन बदला हआ पायगा

बहत तो कया तीन ही ददनो क अभयास स चमसकार घटगा तम जस पहल थ वस अब न रहोग काम िोध लोभ मोह आदद षडववकार पर ववजय परापत करोग

काकभशलणडजी कहत ह कक ldquoमर चचरजीवन और आसमलाभ का कारर परारकला ही ह rdquo

परारायाम की ववचध इस परकार ह

सनान शौचादद स तनपटकर एक सवचछ आसन पर पदमासन लगाकर सीध बठ जाओ मसतक गरीवा और छाती एक ही सीधी रखा म रह अब दादहन हाथ क अागठ स दायाा नथना बनद करक बााय नथन स शवास लो पररव का मानलसक जप जारी रखो यह परक हआ अब लजतन समय म शवास ललया उसस चार गना समय शवास भीतर ही रोक रखो हाथ क अागठ और उागललयो स दोनो नथन बनद कर लो यह आभयातर कमभक हआ अत म हाथ का अागठा हटाकर दाय नथन स शवास धीर धीर छोड़ो यह रचक हआ शवास लन म (परक म)

लजतना समय लगाओ उसस दगना समय शवास छोड़न म (रचक म) लगाओ और चार गना समय कमभक म लगाओ परक कमभक रचक क समय का परमार इस परकार होगा 142

दाय नथन स शवास परा बाहर तनकाल दो खाली हो जाओ अगठ और उागललयो स दोनो नथन बनद कर लो यह हआ बदहकक मभक कफर दाय नथन स शवास लकर कमभक करक बााय नथन स बाहर तनकालो यह हआ एक परारायम

परक hellip कमभक hellip रचक hellip कमभक hellip परक hellip कमभक hellip रचक

इस समगर परकिया क दौरान पररव का मानलसक जप जारी रखो

एक खास महसव की बात तो यह ह कक शवास लन स पहल गदा क सथान को अनदर लसकोड़ लो यानी ऊपर खीच लो यह ह मलबनध

अब नालभ क सथान को भी अनदर लसकोड़ लो यह हआ उडडडयान बनध

तीसरी बात यह ह कक जब शवास परा भर लो तब ठोड़ी को गल क बीच म जो खडडा ह-कठकप उसम दबा दो इसको जालनधर बनध कहत ह

इस तरतरबध क साथ यदद परारायाम होगा तो वह परा लाभदायी लसदध होगा एव पराय चमसकारपरक पररराम ददखायगा

परक करक अथाकत शवास को अदर भरकर रोक लना इसको आभयातर कमभक कहत ह रचक

करक अथाकत शवास को परकतया बाहर तनकाल ददया गया हो शरीर म तरबलकल शवास न हो तब दोनो नथनो को बद करक शवास को बाहर ही रोक दना इसको बदहकक मभक कहत ह पहल आभयानतर कमभक और कफर बदहकक मभक करना चादहए

आभयानतर कमभक लजतना समय करो उसस आधा समय बदहकक मभक करना चादहए परारायाम का फल ह बदहकक मभक वह लजतना बढगा उतना ही तमहारा जीवन चमकगा तन मन म सफततक और ताजगी बढगी मनोराजय न होगा

इस तरतरबनधयकत परारायाम की परकिया म एक सहायक एव अतत आवशयक बात यह ह कक आाख की पलक न चगर आाख की पतली एकटक रह आाख खली रखन स शलकत बाहर बहकर कषीर होती ह और आाख बनद रखन स मनोराजय होता ह इसललए इस परारायम क समय आाख अदकधोनमीललत रह आधी खली आधी बनद वह अचधक लाभ करती ह

एकागरता का दसरा परयोग ह लजहवा को बीच म रखन का लजहवा ताल म न लग और नीच भी न छए बीच म लसथर रह मन उसम लगा रहगा और मनोराजय न होगा परत इसस भी अदकधोनमीललत नतर जयादा लाभ करत ह

परारायाम क समय भगवान या गर का रधयान भी एकागरता को बढान म अचधक फलदायी लसदध होता ह परारायाम क बाद तराटक की किया करन स भी एकागरता बढती ह चचलता कम होती ह मन शात होता ह

परारायाम करक आधा घणटा या एक घणटा रधयान करो तो वह बड़ा लाभदायक लसदध होगा

एकागरता बड़ा तप ह रातभर क ककए हए पाप सबह क परारायाम स नषटट होत ह साधक तनषटपाप हो जाता ह परसननता छलकन लगती ह

जप सवाभाववक होता रह यह अतत उततम ह जप क अथक म डब रहना मतर का जप करत समय उसक अथक की भावना रखना कभी तो जप करन क भी साकषी बन जाओ lsquoवारी परार जप करत ह म चतनय शात शाशवत हा rsquo खाना पीना सोना जगना सबक साकषी बन जाओ यह अभयास बढता रहगा तो कवली कमभक होगा तमन अगर कवली कमभक लसदध ककया हो और कोई तमहारी पजा कर तो उसकी भी मनोकामना परी होगी

परारायाम करत करत लसदचध होन पर मन शात हो जाता ह मन की शातत और इलनियो की तनशचलता होन पर तरबना ककय भी कमभक होन लगता ह परार अपन आप ही बाहर या अदर लसथर हो जाता ह और कलना का उपशम हो जाता ह यह कवल तरबना परयसन क कमभक हो जान पर कवली कमभक की लसथतत मानी गई ह कवली कमभक सदगर क परसयकष मागकदशकन म करना सरकषापरक ह

मन आसमा म लीन हो जान पर शलकत बढती ह कयोकक उसको परा ववशराम लमलता ह मनोराजय होन पर बाहम किया तो बनद होती ह लककन अदर का कियाकलाप रकता नही इसीस मन शरलमत होकर थक जाता ह

रधयान क परारलभक काल म चहर पर सौमयता आाखो म तज चचतत म परसननता सवर म माधयक आदद परगट होन लगत ह रधयान करनवाल को आकाश म शवत तरसरर (शवत कर) ददखत ह यह तरसरर बड़ होत जात ह जब ऐसा ददखन लग तब समझो कक रधयान म सचची परगतत हो रही ह

कवली कमभक लसदध करन का एक तरीका और भी ह रातरतर क समय चााद की तरफ दलषटट एकागर करक एकटक दखत रहो अथवा आकाश म लजतनी दर दलषटट जाती हो लसथर दलषटट करक अपलक नतर करक बठ रहो अडोल रहना लसर नीच झकाकर खराकट लना शर मत करना सजग रहकर एकागरता स चााद पर या आकाश म दर दर दलषटट को लसथर करो

जो योगसाधना नही करता वह अभागा ह योगी तो सककप स सलषटट बना दता ह और दसरो को भी ददखा सकता ह चाराकय बड़ कटनीततजञ थ उनका सककप बड़ा जोरदार था उनक राजा क दरबार म कमाचगरर नामक एक योगी आय उनहोन चनौती क उततर म कहा ldquoम सबको भगवान का दशकन करा सकता हा rdquo

राजा न कहा ldquoकराइए rdquo

उस योगी न अपन सककपबल स सलषटट बनाई और उसम ववराटरप भगवान का दशकन सब सभासदो को कराया वहाा चचतरलखा नामक राजनतककी थी उसन कहा ldquoमझ कोई दशकन नही हएrdquo

योगी ldquoत सतरी ह इसस तझ दशकन नही हए rdquo

तब चारकय न कहा ldquoमझ भी दशकन नही हए rdquo

वह नतककी भल नाचगान करती थी कफर भी वह एक परततभासपनन नारी थी उसका मनोबल दढ था चारकय भी बड़ सककपवान थ इसस इन दोनो पर योगी क सककप का परभाव नही पड़ा योगबल स अपन मन की ककपना दसरो को ददखाई जा सकती ह मनषटय क अलावा जड़ क ऊपर भी सककप का परभाव पड़ सकता ह खटट आम का पड़ हाफस आम ददखाई दन लग यह सककप स हो सकता ह

मनोबल बढाकर आसमा म बठ जाओ आप ही बरहम बन जाओ यही सककपबल की आखखरी उपललबध ह

तनिा तनिा मनोराजय कबजी सवपनदोष यह सब योग क ववघन ह उनको जीतन क ललए सककप काम दता ह योग का सबस बड़ा ववघन ह वारी मौन स योग की रकषा होती ह तनयम स और रचचपवकक ककया हआ योगसाधन सफलता दता ह तनषटकाम सवा भी बड़ा साधन

ह ककनत सतत बदहमकखता क कारर तनषटकाम सवा भी सकाम हो जाती ह दह म जब तक आसम लसदचध ह तब तक परक तनषटकाम होना असभव ह

हम अभी गरओ का कजाक चढा रह ह उनक वचनो को सनकर अगर उन पर अमल नही करत तो उनका समय बरबाद करना ह यह कजाक चकाना हमार ललए भारी ह hellip लककन ससारी सठ क कजकदार होन क बजाय सतो क कजकदार होना अचछा ह और उनक कजकदार होन क बजाय साकषासकार करना शरषटठ ह उपदश सनकर मनन तनददरधयासन कर तो हम उस कज को चकान क लायक होत ह

जञानयोग

1) लजसको जीव और जगत लमथया लगता ह उसक ललए जञानमागक ह लजसको ससय लगता ह उसक ललए योगमागक और भलकतमागक ह

2) लजसको अतकरर म राग दवष ह वह चाह आसमा अनासमा का वववक कर चाह चचतत का तनरोध कर उसको जञानतनषटठा नही होती ह

3) सथल कामनाओ का नाश एकातसवन स होता ह सवपन म जो सकषम कामनाएा ददखती ह उनका नाश भगवदरधयान स और ससवासना क अभयास स होता ह

4) ववकषप उसपनन करनवाल कमक का सयाग सनयास ह गरए वसतर पहननमातर स कोई सनयासी नही होता गागी वयाध वलशषटठजी इसयादद न सनयासी क वसतर धारर नही ककय थ कफर भी व जञानी थ

5) वयसथान दशा म भगवद भजन क आनद म जो तनमगन रहता ह उसको दवत का सताप नही लगता

6) पराभलकत का अथक ह दवतदलषटटरदहत भावना

7) लजस धतत म स चचतत का तनरोध होता हो और एकागर अवसथा आती हो उस सालववक धतत कहत ह

8) सालववक सनयास वरागयपवकक ललया जाता ह राजलसक सनयास कायाकलश और भय स ललया जाता ह तथा तामलसक सनयास मढता स ललया जाता ह

9) जस दीपक जलान क ललए तल बतती आवशयक ह वस ही lsquoतततविमसrsquo महावाकय स उसपनन होनवाली बरहमाकार ववतत क ललए शरवर मनन रधयान शम दम आदद आवशयक ह एक बार वह बरहमाकार ववतत उसपनन हो जाए तो वह अजञान का नाश कर दती ह बरहमाकार ववतत अपन ववषय को परकालशत करन क ललए ककसी कमक या अभयास की अपकषा नही करती एक बार घट का जञान हो जाए तो उसको दढ करन क ललए घट क आकार की पनराववतत या कमक की आवशयकता नही ह

10) मगजल दखन का आनद नषटट हो जाए तो तववजञानी परष उसक ललए शोक नही करत जगत का कोई भाव तववजञ क चचतत पर परभाव नही रखता

11) आसमा तनसय होन स वह घट की तरह या कीट भरमर की तरह उसपनन नही होता नदी को सागर परापत होती ह ऐस आसमा परापत नही होती कयोकक वह सवकगत ह दध म ववकार होकर दही बनता ह वस आसमा म ववकार नही होता कयोकक वह सथार ह सवरक की

शदचध की तरह आसमा कोई ससकार की अपकषा नही करता कयोकक वह अचल ह उसपवतत परालपत ववकतत और ससकतत य चारो धमक कमक क ह

12) जस घटाकाश महाकाश क रप म तनसय ह वस आसमा परमासमा क रप म तनसय ह कठ म मखर तनसय परापत ह कफर भी ववसमरर हो जान स वह अपरापत सा लगता ह समरर आ जान मातर स वह मखर परापत हो जाता ह उसी परकार अजञान का आवरर भग होनमातर स आसमा की परालपत हो जाती ह वह तनसय परापत ही था ऐसा जञान हो जाता ह

13) अजञान दशा उपाचध को उसपनन करती ह और जञानदशा उपाचध का गरास करती ह

14) अरधयसत क ववकारी धमक स अचधषटठान म ववकार पदा नही होता मगजल स मरभलम कभी गीली नही होती

15) आसमा का सख अपनी बदचध का परसाद लमलन स बदचध तनमकल होन स रजो तमोगर क मल स रदहत होन स उसपनन होता ह आसमा का सख ववषयो क सग स उसपनन नही होता और तनिा या आलसय स नही लमलता

16) लजसका मन सवक भतो म समान बरहमभाव स लसथत और तनशचल हआ ह उसन इस जनम को जीत ललया ह

17) बरहमजञानी सवक बरहमरप दखत हए वयसथान अवसथा म भी बरहम म लसथत रहत ह

18) भगवान कहत ह कक lsquoसतत मरा भजन करनवाल को म बदचधयोग दता हाrsquo यहाा बदचधयोग का अथक ह जञानतनषटठा ऐसी तनषटठा जब आती ह तब जस नददयाा अपना नाम रप छोड़कर सागर म परवश करती ह वस ही भकत भगवससवरप म परवश करत ह

19) अलगन का सफललग अलगनरप ही ह अलगन का अश नही ह उसी परकार जीव भी बरहम ही ह बरहम का अश नही ह तनरश सवरप म अश अशी की ककपना बनती नही अश भाव कलकपत उपाचध क सवीकार करन क कारर उपचार स बोला जाता ह

20) दह क उपादानभत अववधा का नाश होन क बाद भी कछ काल तक जञानी को दहादद का भान रहता ह इस जीवनमकतावसथा को रधयान म लकर भगवान न कहा ह कक जञानी और तववदशी परष लजजञासओ को जञान दत ह

21) सोय हए आदमी को उसको नाम लकर कोई पकारता ह तो वह जाग जाता ह उसको जगान क ललए अनय ककसी किया की आवशयकता नही ह उसी परकार अजञान म सोया हआ जीव अपन तनज आसमसवरप का गरगान सनकर जाग जाता ह

22) आसम परालपत क राही क ललए महापरषो की सवा असयत ककयारकारी ह तरबना सवा क बरहमववधा लमलती या फलीभत नही होती बरहमववधा क ठहराव क ललए शदध अत करर की आवशयकता ह सवा स अत करर शदध होता ह नमरता आदद सदगर आत ह शाखाओ का झकना फलयकत होन का चचहन ह इसी तरह नमर तथा शदध अत करर म जञान का परादभाकव होता ह यही बरहमववधा की पहचान ह

23) जप परक भावसदहत करना चादहए हरदय म सत चचत आनदसवरप ववभ की टकार होनी चादहए इस समय अपन कानो को भी अपन शवासो क चलन की आवाज न आए लकषय हमशा यह रह सोS हि म वही हा इस समरर स अभय हो जाना चादहए

24) तनरीकषर करो कक ककन ककन काररो स उननतत नही हो रही ह उनह दर करो बार बार उनही दोषो की पनराववतत करना उचचत नही अगर दखभाल नही करोग तो उमर या ही बीत जायगी परत बननवाली बात नही बनगी लजतना चलना चादहए उतना चलना होगा लजतना चल सकत हो उतना नही आलशक नीद म गरसत नही होत वयाकल हरदय स तड़पत हए परततकषा करत ह सदा जागत रहत ह सदा ही सावधान रहा करत ह

25) आप लोगो की परार सगली उसी तरह चलनी चादहए जस तल की अटट धारा गरमतररपी छड़ी को हमशा अपन साथ रखो ताकक जब भी जररत पड़ ससार क काम िोधादद कततो को उसस मारकर भगा सको

26) मानव आत हए भी रोता ह और जात हए भी रोता ह जो वकत रोन का नही तब भी रोता ह कवल एक परक सदगर म ही ऐसा सामथयक ह जो इस जनम मरर क मल कारर

अजञान को काटकर मनषटय को रोन स बचा सकत ह कवल गर ही आवागमन क चककर स काल की महान ठोकरो स बचाकर लशषटय को ससार क दखो स ऊपर उठा दत ह लशषटय क चचकलान पर भी व रधयान नही दत गर क बराबर दहतषी ससार म कोई भी नही हो सकता

27) तरतरलशखी बराहमर क पछन पर आददसय न कहा ldquoकभ क समान दह म भर हए वाय को रोकन स अथाकत कमभक करन स सब नाडड़याा वाय स भर जाती ह ऐसा करन स दश वाय चलन लगत ह हरदयकमल का ववकास होता ह वहाा पापरदहत वासदव परमासमा को दख सबह दोपहर शाम और आधी रात को चार बार अससी अससी कमभक कर तो अनपम लाभ होता ह मातर एक ददन करन स ही साधक सब पापो स छट जाता ह इस परकार परारायामपरायर मनषटय तीन साल म लसदध योगी बन जाता ह वाय को जीतनवाला लजतलनिय थोड़ा भोजन करनवाला थोड़ा सोनवाला तजसवी और बलवान हो जाता ह तथा अकाल मसय का उकलघन करक दीधक आय को परापत होता ह

परारायाम तीन कोदट क होत ह उततम मरधयम और अधम पसीना उसपनन करनवाला परारायाम अधम ह लजस परारायाम म शरीर काापता ह वह मरधयम ह लजसम शरीर उठ जाता ह वह परारायाम उततम कहा गया ह

अधम परारायाम म वयाचध और पापो का नाश होता ह मरधयम म पाप रोग और महा वयाचध का नाश होता ह उततम म मल मतर अकप हो जात ह भोजन थोड़ा होता ह इलनियाा और बदचध तीवर हो जाती ह वह योगी तीनो काल को जाननवाला हो जाता ह

रचक और परक को छोड़कर जो कमभक ही करता ह उसको तीनो कालो म कछ भी दलकभ नही ह

परारायाम का अभयास करनवाला योगी नालभकद म नालसका क अगर भाग म और पर क अागठ म सदा अथवा सरधयाकाल म परार को धारर कर तो वह योगी सब रोगो स मकत होकर अशाततरदहत जीवन जीता ह

नालभकद म परार धारर करन स ककषकष क रोग नषटट होत ह नासा क अगर भाग म परार धारर करन स दीधाकय होता ह और दह हकका होता ह बरहममहतक म वाय को लजहा स खीचकर तीन मास तक वपय तो महान वालकसदचध होती ह छ मास क अभयास स महा रोग का नाश होता ह

रोगादद स दवषत लजस लजस अग म वाय धारर ककया जाता ह वह अग रोग स मकत हो जाता

हrdquo (तरतरलशखख बराहमर उपतनषद)

28) परार सब परकार क सामथयक का अचधषटठान होन स परारायाम लसदध होन पर अनतशलकत भडार क दवार खल जात ह अगर कोई साधक परारतवव का जञान परापत कर उस पर अपना अचधकार परापत कर ल तो जगत म ऐसी कोई शलकत नही ह लजस वह अपन अचधकार म न कर ल वह अपनी इचछानसार सयक और चनि को भी गद की तरह उनकी ककषा म स ववचललत कर सकता ह अर स लकर सयक तक जगत की तमाम चीजो को अपनी मजी अनसार सचाललत कर सकता ह योगाभयास परक होन पर योगी समसत ववशव पर अपना परभसव सथावपत कर सकता ह उसक सककप बल स मत परारी लजनद हो सकत ह लजनद उसकी आजञानसार कायक करन को बारधय हो जात ह दवता और वपतलोकवासी जीवासमा उसक हकम को पात ही हाथ जोड़कर उसक आग खड़ हो जात ह तमाम ररदचध लसदचधयाा उसकी दासी बन जाती ह परकतत की समगर शलकतयो का वह सवामी बन जाता ह कयोकक उस योगी न परारायाम लसदध करक समलषटट परार को अपन काब म ककया ह

जो परततभावान यगपरवतकक अदभत शलकत का सचार कर मानव समाज को ऊा ची लसथतत पर ल जात ह व अपन परार म ऐस उचच और सकषम आनदोलन उसपनन कर सकत ह कक अनय क मन पर उनका परगाढ परभाव होता ह हजारो मनषटयो का ददल उनकी और आकवषकत होता ह लाखो करोड़ो लोग उनक उपदश गरहर कर लत ह ववशव म जो भी महापरष हो गय ह उनहोन ककसी भी रीतत स परारशलकत को तनयतरतरत करक अलौककक शलकत परापत की होती ह ककसी भी कषतर म समथक वयलकत का परभाव परार क सयम स ही उसपनन हआ ह

29) यदद पवकत क समान अनक योजन ववसतारवाल पाप हो तो भी रधयानयोग स छदन हो जात ह इसक लसवाय दसर ककसी भी उपाय स कभी भी उनका छदन नही होता

(रधयान तरबनद उपतनषद)

जञानगोटठी

परo सयाग वरागय और उपरतत म कया भद ह

उo ववषय को सामन न आन दना सयाग ह ववषय सामन रहत हए उसम परम न होना वरागय ह वसत सामन रहत हए भी उसम न तो भोगबदचध हो और न दवष हो यह उपरतत ह

परo वरागय ककतन परकार का होता ह

उo सामानयतया गर- भद स वरागय तीन परकार क ह

1) जो वरागय ससार स गलातन और भगवान स परम होन पर होता ह वह सालववक ह

2) जो परलसदचध या परततषटठा की दलषटट स ववरकत होता ह वह राजस ह

3) जो सबको नीची दलषटट स दखता ह तथा अपनको बड़ा समझता ह वह तामस वरागय ह

योगदशकन म पर और अपर भद स दो परकार क वरागय बतलाय गय ह इनम अपर वरागय चार परकार क ह

1) यतमान लजसम ववषयो को छोड़न का परयसन तो रहता ह ककनत छोड़ नही पाता यह यतमान वरागय ह

2) वयततरकी शबदादद ववषयो म स कछ का राग तो हट जाय ककनत कछ का न हट तब वयततरकी वरागय समझना चादहए

3) एकलनिय मन भी एक इलनिय ह जब इलनियो क ववषयो का आकषकर तो न रह ककनत मन म उनका चचनतन हो तब एकलनिय वरागय होता ह इस अवसथा म परततजञा क बल स ही मन और इलनियो का तनगरह होता ह

4) वशीकार वशीकार वरागय होन पर मन और इलनियाा अपन अधीन हो जाती ह तथा अनक परकार क चमसकार भी होन लगत ह यहाा तक तो lsquoअपर वरागयrsquo हआ

जब गरो का कोई आकषकर नही रहता सवकजञता और चमसकारो स भी वरागय होकर सवरप म लसथतत रहती ह तब lsquoपर वरागयrsquo होता ह अथवा एकागरता स जो सख होता ह उसको भी सयाग दना गरातीत हो जाना ही lsquoपर वरागयrsquo ह

वरागय क दो भद ह दह स वरागय और गह स वरागय

शरीर स वरागय होना परथम कोदट का वरागय ह तथा अहता ममता स ऊपर उठ जाना दसर परकार का वरागय ह

लोगो को घर स तो वरागय हो जाता ह परत शरीर स वरागय होना कदठन ह इसस भी कदठन ह शरीर का असयनत अभाव अनभव करना यह तो सदगर की ववशष कपा स ककसी ककसीको ही होता ह

बालक जनम तो वह पढगा या नही वववाह करगा या नही नौकरी धधा करगा या नही इसम शका ह परत वह मरगा या नही इसम कोई शका ह हम भी इनही बालको म ह

हम धनवान होग या नही होग यशसवी होग या नही चनाव जीतग या नही इसम शका हो सकती ह परत भया हम मरग या नही इसम कोई शका ह

ववमान उड़न का समय तनलशचत होता ह बस चलन का समय तनलशचत होता ह गाड़ी छटन का समय तनलशचत होता ह परनत इस जीवन की गाड़ी क छटन का कोई तनलशचत समय ह

हम कहाा रहत ह मसयलोक म यहाा जो भी आता ह वह मरनवाला आता ह मरनवालो क साथ का समबनध कब तक hellip

मसय अतनवायक ह तरबककल तनलशचत ह इसक ललए आप कछ तयारी करत ह या नही करत ह तो दढतापवकक कर और नही करत ह तो आज स ही शर कर द

आसम साकषासकार म ईशवर साकषासकार म तीन इचछाएा हम ईशवर स अलग रखती ह हम यदद

य तीन इचछाएा न कर तो तरत अलौककक सामराजय का सवर हम सनाई पड़गा व तीन इचछाएा ह 1) जीन की इचछा 2) करन की इचछा 3) जानन की इचछा

जीन की इचछा न कर तो भी यह दह तो लजयगी ही कछ करन की इचछा न कर तो भी सहज परारबधवग स कमक हो ही जायगा जानन की इचछा न कर तो लजसस सब जाना जाता ह ऐसा अपना सवभाव परगट होन लगगा

य तीन इचछाएा ईशवर साकषासकार म बाधक बनती ह भया साहस करो लजनहोन इचछा छोड़ी ह व धनय हो गय ह अपन को दबकल मानना छोड़ दो आपम ईशवरीय सवर ईशवरीय आनद भरपर ह भया आप सवय ही वह ह कवल इन तीन बातो स सावधान रहो

ईशवर क मागक पर चलनवाल सौभागयशाली भकतो को य छ बात जीवन म अपना लनी चादहए

1) ईशवर को अपना मानो lsquoईशवर मरा ह म ईशवर का हाrsquo

2) जप रधयान पजा सवा खब परम स करो

3) जप रधयान भजन साधना को लजतना हो सक उतना गपत रखो

4) जीवन को ऐसा बनाओ कक लोगो म आपकी मााग हआ कर उनह आपकी अनपलसथतत चभ कायक म कशलता और चतराई बढाय परसयक किया कलाप बोल चाल सचार रप स कर कम समय म कम खचक म सनदर कायक कर अपनी आजीववका क ललए जीवनतनवाकह क ललए जो कायक कर उस कशलतापवकक कर रसपवकक कर इसस शलकतयो का ववकास होगा कफर वह कायक भल ही नौकरी हो कशलतापवकक करन स कोई ववशष बाहम लाभ न होता हो कफर भी इसस आपकी योगयता बढगी यही आपकी पाजी बन जाएगी नौकरी चली जाए तो भी यह पाजी आपस कोई छीन नही सकता नौकरी भी इस परकार करो कक सवामी परसनन हो जाय यह सब रपयो पसो क ललए मान बड़ाई क ललए वाहवाही क ललए नही परत अपन अत करर को तनमकल करन क ललए कर लजसस परमासमा क ललए आपका परम बढ ईशवरानराग बढान क

ललए ही परम स सवा कर उससाह स काम धधा कर

5) वयलकतगत खचक कम कर जीवन म सतोष लाएा

6) सदव शरषटठ कायक म लग रह समय बहत ही मकयवान ह समय क बराबर मकयवान अनय कोई वसत नही ह समय दन स सब लमलता ह

परत सब कछ दन स भी समय नही लमलता धन ततजोरी म सगरहीत कर सकत ह परत समय ततजोरी म नही सजोया जा सकता ऐस अमकय समय को शरषटठ कायो म लगाकर साथकक कर सबस शरषटठ कायक ह ससपरषो का सग सससग

भागवत म आता ह

ldquoभगवान क परमी परष का तनमषमातर का सग उततम ह इसक साथ सवगक की या मलकत की समानता नही की जा सकतीrdquo (11813)

तलसीदासजी कहत ह

तात सवगय अपवगय सख ररए तला एक अग

त ल न ताहह सकल मिमल जो सख लव सतसग

समय को उततम कायक म लगाएा तनरनतर सावधान रहन स ही समय साथकक होगा नही तो यह तनरथकक बीत जायगा लजनहोन समय का आदर ककया ह व शरषटठ परष बन ह अचछ महासमा बन ह ससार क भोगो स ववमख होकर भगवचचररो म परमासम तवव जानन म उनहोन समय लगाया ह

दतत और मसद का सवाद

[ अनभवपरकाश ]

एक राजा कवपल मतन का दशकन सससग ककया करता था एक बार कवपल क आशरम पर राजा क पहाचन क उपरानत ववचरत हए दतत सकनद लोमश तथा कछ लसदध भी पहाच वहाा इन सतजनो क बीच जञानगोषटठी होन लगी एक कमार लसदध बोला ldquoजब म योग करता हा तब अपन सवरप को दखता हाrdquo

दतत ldquoजब त सवरप का दखनवाला हआ तब सवरप तझस लभनन हआ योग म त जो कछ दखता ह सो दशय को ही दखता ह इसस तरा योग दशय और त दषटटा ह अरधयासम म त अभी बालक ह सससग कर लजसस तरी बदचध तनमकल होवrdquo

किार ldquoठीक कहा आपन म बालक हा कयोकक मन वारी शरीर म सवक लीला करता हआ भी म असग चतनय हषक शोक को नही परापत होता इसललए बालक हा परत योग क बल स यदद म चाहा तो इस शरीर को सयाग कर अनय शरीर म परवश कर ला ककसीको शाप या वरदान द सकता हा आय को नयन अचधक कर सकता हा इस परकार योग म सब सामथयक आता ह जञान स कया परालपत होती ह rdquo

दतत ldquoअर नादान सभा म यह बात कहत हए तझको सकोच नही होता योगी एक शरीर को सयागकर अनय शरीर को गरहर करता ह और अनक परकार क कषटट पाता ह जञानी इसी शरीर म लसथत हआ सखपवकक बरहमा स लकर चीटी पयात को अपना आपा जानकर परकता म परततलषटठत होता ह वह एक काल म ही सवक का भोकता होता ह सवक जगत पर आजञा चलानवाला चतनयसवरप होता ह सवकरप भी आप होता ह और सवक स अतीत भी आप होता ह वह सवकशलकतमान होता ह और सवक अशलकतरप भी आप होता ह सवक वयवहार करता हआ भी सवय को अकतताक जानता ह

समयक अपरोकष आसमबोध परापत जञानी लजस अवसथा को पाता ह उस अवसथा को वरदान शाप आदद सामथयक स सपनन योगी सवपन म भी नही जानता rdquo

किार ldquoयोग क बल स चाहा तो आकाश म उड़ सकता हाrdquo

दतत ldquoपकषी आकाश म उड़त कफरत ह इसस तमहारी कया लसदचध हrdquo

किार ldquoयोगी एक एक शवास म अमतपान करता ह lsquoसोSहrsquo जाप करता ह सख पाता हrdquo

दतत ldquoह बालक अपन सखसवरप आसमा स लभनन योग आदद स सख चाहता ह गड़ को भरातत होव तो अपन स पथक चरकाददको स मधरता लन जाय चचतत की एकागरतारपी योग स त सवय को सखी मानता ह और योग क तरबना दखी मानता ह जञानी योग अयोग दोनो को अपन दशय मानता ह योग अयोग सब मन क खयाल ह योगरप मन क खयाल स म चतनय पहल स ही सखरप लसदध हा जस अपन शरीर की परालपत क ललए कोई योग नही करता कयोकक योग करन स पहल ही शरीर ह उसी परकार सख क ललए मझ योग कयो करना पड़ म सवय सखसवरप हाrdquo

किार ldquoयोग का अथक ह जड़ना यह जो सनकाददक बरहमाददक सवरप म लीन होत ह सो योग स सवरप को परापत होत हrdquo

दतत ldquoलजस सवरप म बरहमाददक लीन होत ह उस सवरप को जञानी अपना आसमा जानता ह ह लसदध लमथया मत कहो जञान और योग का कया सयोग ह योग साधनारप ह और जञान उसका फलरप ह जञान म लमलना तरबछड़ना दोनो नही योग कतताक क अधीन ह और कियारप हrdquo

कषपल ldquoआसमा क समयक अपरोकष जञानरपी योग सवक पदाथो का जानना रप योग हो जाता ह

कवल कियारप योग स सवक पदाथो का जानना नही होता कयोकक अचधषटठान क जञान स ही सवक कलकपत पदाथो का जञान होता ह

आसम अचधषटठान म योग खद कलकपत ह कलकपत क जञान म अनय कलकपत का जञान होता ह सवपनपदाथक क जञान स अनय सवपनपदाथो का जञान नही परत सवपनदषटटा क जञान स ही सवक सवपनपदाथो का जञान होता ह

अत अपनको इस ससाररपी सवपन क अचधषटठानरप सवपनदषटटा जानोrdquo

लसदधो न कहा ldquoतम कौन होrdquo

दतत ldquoतमहार रधयान अरधयान का तमहारी लसदचध अलसदचध का म दषटटा हाrdquo

राजा ldquoह दतत ऐस अपन सवरप को पाना चाह तो कस पावrdquo

दतत ldquoपरथम तनषटकाम कमक स अत करर की शदचध करो कफर सगर या तनगकर उपासनादद करक अत करर की चचलता दर करो वरागय आदद साधनो स सपनन होकर शासतरोकत रीतत स सदगर क शरर जाओ उनक उपदशामत स अपन आसमा को बरहमरप और बरहम को अपना आसमारप जानो समयक अपरोकष आसमजञान को परापत करो

ह राजन अपन सवरप को पान म दहालभमान ही आवरर ह जस सयक क दशकन म बादल ही आवरर ह जागरत सवपन सषलपत म भत भववषटय वततकमान काल म मन वारीसदहत लजतना परपच ह वह तझ चतनय का दशय ह तम उसक दषटटा हो उस परपच क परकाशक चचदघन दव हो rdquo

अपन दवसव म जागो कब तक शरीर मन और अत करर स समबनध जोड़ रखोग एक ही मन शरीर अत करर को अपना कब तक मान रहोअग अनत अनत अत करर अनत अनत शरीर लजस चचदाननद म परतततरबलमबत हो रह ह वह लशवसवरप तम हो फलो म सगनध तमही हो वकषो म रस तमही हो पकषकषयो म गीत तमही हो सयक और चााद म चमक तमहारी ह अपन ldquoसवाकSहमrdquo सवरप को पहचानकर खली आाख समाचधसथ हो जाओ दर न करो काल कराल लसर पर ह

ऐ इनसान अभी तम चाहो तो सयक ढलन स पहल अपन जीवनतवव को जान सकत हो दहममत करो hellip दहममत करो hellip

ॐ ॐ ॐ

बार बार इस पसतक को पढकर जञान वरागय बढात रहना जब तक आसम साकषासकार न हो तब तक आदरसदहत इस पसतक को ववचारत रहना |

धचनतन करणका

अशोभन सतरी आदद म शोभनबदचध अससय परपच म ससय का अरधयास ससय आसमा म अससय का अरधयास इसयादद ववपरीत भावना स सलषटट का यथाथक जञान परततबदध हो जाता ह

अलगन म राग दवष नही ह उसक पास जो जाता ह उसकी ठड दर होती ह अनय की नही इसी परकार जो ईशवर क शरर जाता ह उसका बनधन कटता ह अनय का नही लजसक चचतत म राग दवष ह उसम ईशवर की ववशषता अलभवयकत नही होती

लजसको वरागय न हो शरदधा न हो वह यदद कमक का सयाग कर तो ववकषपरदहत नही हो सकता जस परमादी बदहमकख पश समान लोग लड़ाई झगड़ म राजी रहत ह वस सनयासी भी कमकदोषवाल दख जात ह इसललए तरबना वरागय क सनयास स तनषटकाम कमक का आचरर शरषटठ ह तरबना शरदधा और परमासमतवव चचनतन क ललया हआ सनयास बरहमपद की परालपत नही कराता

मरभलम का जल धीर धीर नही सखता ह उसी परकार माया भी धीर धीर नषटट नही होती मरभलम क जल को lsquoमरभलम का जलrsquo जानन मातर स उसका अभाव हो जाता ह उसी परकार माया का सवरप जानन मातर स माया का अभाव हो जाता ह

ससार की सब चीज बदल रही ह भतकाल की ओर भाग रही ह और आप उनह वततकमान म दटकाय रखना चाहत ह यही जीवन क दखो की मल गरचथ ह आप चतन होन पर भी जड़ वसत को छोड़न स इनकार करत ह दषटटा होन पर भी दशय म उलझ हए ह

जब आप चाहत ह कक lsquoहम अमक वसत अवशय लमल अथवा हमार पास जो ह वह कभी तरबगड़ नही तभी हम सखी होगrsquo तो आप अपन सवरप चतन को कही न कही बााध रखना चाहत ह

साधना क मागक म परम लकषय की परालपत म साधक क ललए दहासमबदचध दह म आसलकत एक बड़ी गरचथ ह इस गरचथ को काट तरबना मोहकललल को पार ककय तरबना कोई साधक लसदध नही बन सकता सदगर क तरबना यह गरचथ काटन म साधक समथक नही हो सकता

वदानत शासतर यह नही कहता कक lsquoअपन आपको जानो rsquo अपन आपको सभी जानत ह कोई अपन को तनधकन जानकर धनी होन का परयसन करता ह कोई अपनको रोगी जानकर तनरोग होन को इचछक ह कोई अपनको नाटा जानकर लमबा होन क ललए कसरत करता ह तो कोई अपनको काला जानकर गोरा होन क ललए लभनन लभनन नसख आजमाता ह

नही वदानत यह नही कहता वह तो कहता ह lsquoअपन आपको बरहम जानो rsquo जीवन म अनथक का मल सामानय अजञान नही अवपत अपनी आसमा क बरहमसव का अजञान ह दह और सासाररक वयवहार क जञान अजञान स कोई खास लाभ हातन नही ह परत अपन बरहमसव क अजञान स घोर हातन ह और उसक जञान स परम लाभ ह

पराथयना

ह मर परभ hellip

तम दया करना मरा मन hellip मरा चचतत तमम ही लगा रह

अब hellip म कब तक ससारी बोझो को ढोता कफरागा hellip मरा मन अब तमहारी यातरा क ललए ऊरधवकगामी हो जाय hellip ऐसा सअवसर परापत करा दो मर सवामी hellip

ह मर अतयाकमी अब मरी ओर जरा कपादलषटट करो hellip बरसती हई आपकी अमतवषाक म म भी परा भीग जाऊा hellip मरा मन मयर अब एक आसमदव क लसवाय ककसीक परतत टहाकार न कर

ह परभ हम ववकारो स मोह ममता स साचथयो स बचाओ hellipअपन आपम जगाओ

ह मर माललक अब hellip कब तक hellip म भटकता रहागा मरी सारी उमररया तरबती जा रही ह hellip

कछ तो रहमत करो कक अब hellip आपक चररो का अनरागी होकर म आसमाननद क महासागर म गोता लगाऊा

ॐ शातत ॐ आनद

सोऽहम सोऽहम सोऽहम

आखखर यह सब कब तक hellip मरा जीवन परमासमा की परालपत क ललए ह यह कयो भल जाता हा

मझ hellip अब hellip आपक ललए ही पयास रह परभ hellip

अब परभ कपा करौ एहह भातत

सब तषज भजन करौ हदन राती ||

शरी गरगीता

अनकरम

परासताविक

विवनयोग ndash नयासावि

पहला अधयाय

िसरा अधयाय

तीसरा अधयाय

परासताविक

भगिान शकर और ििी पािवती क सिाि म परकट हई यह शरीगरगीता समगर सकनदपराण का वनषकरव ह इसक हर एक शलोक म सत जी का सचोट अनभि वयकत होता ह जसः

मखसतमभकर चव गणाना च वववरधनम

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम

इस शरी गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करन िाला ह गणो की िदधि करन िाला ह िषकतो का नाश करन िाला और सतकमव म वसदधि िन िाला ह

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधिषोडशीम

ह वपरय शरीगरगीता का एक एक अकषर मतरराज ह अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही

अकालमतयरतरी च सवध सकटनावशनी

यकषराकषसभतावद चोरवयाघरववघावतनी

शरीगरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और शर आवि का घात करती ह

शवचभता जञानवतो गरगीता जपदधि य

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत

जो पवितर जञानिान परर इस शरीगरगीता का जप-पाठ करत ह उनक िशवन और सपशव स पनजवनम नही होता

इस शरीगरगीता क शलोक भिरोग-वनिारण क वलए अमोघ औरवध ह साधको क वलए परम अमत ह सवगव का अमत पीन स पणय कषीण होत ह जबवक इस गीता का अमत पीन स पाप नषट होकर परम शावत वमलती ह सवसवरप का भान होता ह

तलसीिास जी न ठीक ही कहा हः

गर विन भववनवर तरवर न कोई

जो विरवच सकर सम रोई

आतमिि को जानन क वलए यह शरीगरगीता आपक करकमलो म रखत हए

ॐॐॐ

परम शावत

विवनयोग ndash नयासावि

ॐ असय शरीगरगीतासतोतरमालामतरसय भगिान सिावशिः ऋवर विराट छनदः शरी गरपरमातमा ििता ह बीजम सः शदधकतः सोऽहम कीलकम शरीगरकपापरसािवसदधयरथ जप विवनयोगः

अरथ करनयासः

ॐ ह सा सयावतमन अगषठाभा नमः

ॐ ह सी सोमातमन तजवनीभा नमः

ॐ ह स वनरजनातमन मधयमाभा नमः

ॐ ह स वनराभासातमन अनावमकाभा नमः

ॐ ह स अतनसकषमातमन कवनवषठकाभा नमः

ॐ ह सः अवयकतातमन करतलकरपषठाभा नमः

इवत करनयासः

अरथ हियाविनयासः

ॐ ह सा सयावतमन हियाय नमः

ॐ ह सी सोमातमन वशरस सवाहा

ॐ ह स वनरजनातमन वशखाय िरट

ॐ ह स वनराभासातमन किचाय हम

ॐ ह स अतनसकषमातमन नतरतरयाय ि रट

ॐ ह सः अवयकतातमन असतराय फट

इवत हियाविनयासः

अरथ धयानम

नमावम सदगर शाि ितयकष वशवरवपणम

वशरसा योगपीठसथ मदधिकामथाधवसदधिदम 1

िाताः वशरवस शकलाबजो विनतर विभज गरम

वराभयकर शाि समरततननामपवधकम 2

िसननवदनाकष च सवधदवसवरवपणम

ततपादोदकजा रारा वनपतदधि सवमरधवन 3

तया सकषालयद दर हयाििाधहयगत मलम

ततकषणाविरजो भतवा जायत सफवटकोपमाः 4

तीथाधवन दवकषण पाद वदासतनमखरवकषतााः

पजयदवचधत त त तदवमधयानपवधकम 5

इवत धयानम

मानसोपचारः शरीगर पजवयतवा

ल पवरथवयातमन गधतनमातरा परकताननदातमन शरीगरििाय नमः पवरथवयापक गध समपवयावम ह आकाशातमन शबदतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः आकाशातमक पषप समपवयावम य िापवातमन सपशवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः िापवातमक धप आघरापयावम र तजातमन रपतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः तजातमक िीप िशवयावम ि अपातमन रसतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः अपातमक निदयक वनिियावम स सिावतमन सिवतनमातरापरकताननदातमन शरीगरििाय नमः सिावतमकान सिोपचारान समपवयावम

इवत मानसपजा

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

|| अथ िथमोऽधयायाः||

अवचनतयावयिरपाय वनगधणाय गणातमन |

समसत जगदारारमतधय बरहमण नमाः ||

पहला अधयाय

जो बरहम अवचनतय अवयकत तीनो गणो स रवहत (वफर भी िखनिालो क अजञान की उपावध स) वतरगणातमक और समसत जगत का अवधषठान रप ह ऐस बरहम को नमसकार हो | (1)

ऋषयाः ऊचाः

सत सत मरािाजञ वनगमागमपारग |

गरसवरपमसमाक बरवर सवधमलापरम ||

ऋवरयो न कहा ह महाजञानी ह िि-ििागो क वनषणात पयार सत जी सिव पापो का नाश करनिाल गर का सवरप हम सनाओ | (2)

यसय शरवणमातरण दरी दाःखाविमचयत |

यन मागण मनयाः सवधजञतव िपवदर ||

यतपरापय न पनयाधवत नराः ससारिनधनम |

तथाववर पर ततव विवयमरना तवया ||

वजसको सनन मातर स मनषय िःख स विमकत हो जाता ह | वजस उपाय स मवनयो न सिवजञता परापत की ह वजसको परापत करक मनषय विर स ससार बनधन म बाधता नही ह ऐस परम ततव का करथन आप कर | (3 4)

गहयादगहयतम सार गरगीता ववशषताः |

तवतपरसादाचच शरोतवया ततसव बरवर सत नाः ||

जो ततव परम रहसयमय एि शरषठ सारभत ह और विशर कर जो गरगीता ह िह आपकी कपा स हम सनना चाहत ह | पयार सतजी ि सब हम सनाइय | (5)

इवत सिावथताः सतो मवनसघमधहमधहाः |

कतरलन मरता िोवाच मरर वचाः ||

इस परकार बार-बार पररथवना वकय जान पर सतजी बहत परसनन होकर मवनयो क समह स मधर िचन बोल | (6)

सत उवाच

शरणधव मनयाः सव शरिया परया मदा |

वदावम भवरोगघी गीता मातसवरवपणीम ||

सतजी न कहा ह सिव मवनयो ससाररपी रोग का नाश करनिाली मातसवरवपणी (माता क समान धयान रखन िाली) गरगीता कहता हा | उसको आप अतत शरिा और परसननता स सवनय | (7)

परा कलासवशखर वसिगनधवधसववत|

ततर कलपलतापषपमदधिरऽतयिसिर ||

वयाघरावजन समावसन शकावदमवनवदधितम |

िोरयि पर ततव मधयमवनगणकववचत ||

िणमरवदना शशवननमसकवधिमादरात |

दषटवा ववसमयमापनना पावधती पररपचछवत ||

पराचीन काल म वसिो और गनधिो क आिास रप कलास पिवत क वशखर पर कलपिकष क फलो स बन हए अतत सनदर मविर म मवनयो क बीच वयाघरचमव पर बठ हए शक आवि मवनयो दवारा िनदन वकय जानिाल और परम ततव का बोध ित हए भगिान शकर को बार-बार नमसकार करत िखकर अवतशय नमर मखिाली पािववत न आशचयवचवकत होकर पछा |

पावधतयवाच

ॐ नमो दव दवश परातपर जगदगरो |

तवा नमसकवधत भकतया सरासरनरााः सदा ||

पािवती न कहा ह ॐकार क अरथवसवरप ििो क िि शरषठो क शरषठ ह जगिगरो आपको परणाम हो | िि िानि और मानि सब आपको सिा भदधकतपिवक परणाम करत ह | (11)

वववरववषणमरनदरादयवधनददयाः खल सदा भवान |

नमसकरोवष कसम तव नमसकाराशरयाः वकलाः ||

आप बरहमा विषण इनदर आवि क नमसकार क योगय ह | ऐस नमसकार क आशरयरप होन पर भी आप वकसको नमसकार करत ह | (12)

भगवन सवधरमधजञ वरताना वरतनायकम |

बरवर म कपया शमभो गरमारातमयमततमम ||

ह भगिान ह सिव धमो क जञाता ह शमभो जो वरत सब वरतो म शरषठ ह ऐसा उततम गर-माहातमय कपा करक मझ कह | (13)

इवत सिावथधताः शशवनमरादवो मरशवराः |

आनदभररताः सवाि पावधतीवमदमबरवीत ||

इस परकार (पािवती ििी दवारा) बार-बार परारथवना वकय जान पर महािि न अतर स खब परसनन होत हए पािवती स इस परकार कहा | (14)

मरादव उवाच

न विवयवमद दवव ररसयावतररसयकम |

न कसयावप परा िोि तवदभकतयथ वदावम तत ||

शरी महािि जी न कहा ह ििी यह ततव रहसयो का भी रहसय ह इसवलए कहना उवचत नही | पहल वकसी स भी नही कहा | वफर भी तमहारी भदधकत िखकर िह रहसय कहता हा |

मम रपावस दवव तवमतसततकथयावम त |

लोकोपकारकाः िशनो न कनावप कताः परा ||

ह ििी तम मरा ही सवरप हो इसवलए (यह रहसय) तमको कहता हा | तमहारा यह परशन लोक का कलयाणकारक ह | ऐसा परशन पहल कभी वकसीन नही वकया |

यसय दव परा भदधि यथा दव तथा गरौ |

तसयत कवथता हयथाधाः िकाशि मरातमनाः ||

वजसको ईशवर म उततम भदधकत होती ह जसी ईशवर म िसी ही भदधकत वजसको गर म होती ह ऐस महातमाओ को ही यहाा कही हई बात समझ म आयगी |

यो गर स वशवाः िोिो याः वशवाः स गरसमताः |

ववकलप यसत कवीत स नरो गरतलपगाः ||

जो गर ह ि ही वशि ह जो वशि ह ि ही गर ह | िोनो म जो अनतर मानता ह िह गरपतनीगमन करनिाल क समान पापी ह |

वदशासतरपराणावन चवतरासावदकावन च |

मतरयतरववदयावदवनमोरनोचचाटनावदकम ||

शवशािागमावदवन हयनय च िरवो मतााः |

अपभरशााः समसताना जीवाना भरातचतसाम ||

जपसतपोवरत तीथ यजञो दान तथव च |

गर ततव अववजञाय सव वयथ भवत विय ||

ह वपरय िि शासतर पराण इवतहास आवि मतर यतर मोहन उचचाटन आवि विदया शि शाकत आगम और अनय सिव मत मतानतर य सब बात गरततव को जान वबना भरानत वचततिाल जीिो को परथभरषट करनिाली ह और जप तप वरत तीरथव यजञ िान य सब वयरथव हो जात ह | (19 20 21)

गरिधयातमनो नानयत सतय सतय वरानन |

तललभाथ ियतनसत कततधवयशच मनीवषवभाः ||

ह समखी आतमा म गर बदधि क वसिा अनय कछ भी सत नही ह सत नही ह | इसवलय इस आतमजञान को परापत करन क वलय बदधिमानो को परयतन करना चावहय | (22)

गढाववदया जगनमाया दरशचाजञानसमभवाः |

ववजञान यतपरसादन गरशबदन कथयत ||

जगत गढ़ अविदयातमक मायारप ह और शरीर अजञान स उतपनन हआ ह | इनका विशलरणातमक जञान वजनकी कपा स होता ह उस जञान को गर कहत ह |

दरी बरहम भवदयसमात तवतकपाथवदावम तत |

सवधपापववशिातमा शरीगरोाः पादसवनात ||

वजस गरिि क पािसिन स मनषय सिव पापो स विशिातमा होकर बरहमरप हो जाता ह िह तम पर कपा करन क वलय कहता हा | (24)

शोषण पापपकसय दीपन जञानतजसाः |

गरोाः पादोदक समयक ससाराणधवतारकम ||

शरी गरिि का चरणामत पापरपी कीचड़ का समयक शोरक ह जञानतज का समयक उदयीपक ह और ससारसागर का समयक तारक ह | (25)

अजञानमलररण जनमकमधवनवारकम |

जञानवरागयवसदधयथ गरपादोदक वपित ||

अजञान की जड़ को उखाड़निाल अनक जनमो क कमो को वनिारनिाल जञान और िरागय को वसि करनिाल शरीगरिि क चरणामत का पान करना चावहय | (26)

सवदवशकसयव च नामकीतधनम

भवदनिसयवशवसय कीतधनम |

सवदवशकसयव च नामवचिनम

भवदनिसयवशवसय नामवचिनम ||

अपन गरिि क नाम का कीतवन अनत सवरप भगिान वशि का ही कीतवन ह | अपन गरिि क नाम का वचतन अनत सवरप भगिान वशि का ही वचतन ह | (27)

काशीकषतर वनवासशच जाहनवी चरणोदकम |

गरववधशवशवराः साकषात तारक बरहमवनशचयाः ||

गरिि का वनिाससरथान काशी कषतर ह | शरी गरिि का पािोिक गगाजी ह | गरिि भगिान विशवनारथ और वनशचय ही साकषात तारक बरहम ह | (28)

गरसवा गया िोिा दराः सयादकषयो वटाः |

ततपाद ववषणपाद सयात ततरदततमनसततम ||

गरिि की सिा ही तीरथवराज गया ह | गरिि का शरीर अकषय िटिकष ह | गरिि क शरीचरण भगिान विषण क शरीचरण ह | िहाा लगाया हआ मन तिाकार हो जाता ह | (29)

गरवकतर दधसथत बरहम िापयत ततपरसादताः |

गरोधयाधन सदा कयाधत परष सवररणी यथा ||

बरहम शरीगरिि क मखारविनद (िचनामत) म दधसरथत ह | िह बरहम उनकी कपा स परापत हो जाता ह | इसवलय वजस परकार सवचछाचारी सतरी अपन परमी परर का सिा वचतन करती ह उसी परकार सिा गरिि का धयान करना चावहय | (30)

सवाशरम च सवजावत च सवकीवतध पविवरधनम |

एततसव पररतयजय गरमव समाशरयत ||

अपन आशरम (बरहमचयावशरमावि) जावत कीवतव (पिपरवतषठा) पालन-पोरण य सब छोड़ कर गरिि का

ही समयक आशरय लना चावहय | (31)

गरवकतर दधसथता ववदया गरभकतया च लभयत |

तरलोकय सफ़टविारो दववषधवपतमानवााः ||

विदया गरिि क मख म रहती ह और िह गरिि की भदधकत स ही परापत होती ह | यह बात तीनो लोको म िि ॠवर वपत और मानिो दवारा सपषट रप स कही गई ह | (32)

गकारशचानधकारो वर रकारसतज उचयत |

अजञानगरासक बरहम गररव न सशयाः ||

lsquoगrsquo शबद का अरथव ह अधकार (अजञान) और lsquoरrsquo शबद का अरथव ह परकाश (जञान) | अजञान को नषट करनिाल जो बरहमरप परकाश ह िह गर ह | इसम कोई सशय नही ह | (33)

गकारशचानधकारसत रकारसतवननरोरकत |

अनधकारववनावशतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार अधकार ह और उसको िर करनिाल lsquoरrsquo कार ह | अजञानरपी अनधकार को नषट करन क कारण ही गर कहलात ह | (34)

गकारशच गणातीतो रपातीतो रकारकाः |

गणरपववरीनतवात गरररतयवभरीयत ||

lsquoगrsquo कार स गणातीत कहा जता ह lsquoरrsquo कार स रपातीत कहा जता ह | गण और रप स पर होन क कारण ही गर कहलात ह | (35)

गकाराः िथमो वणो मायावद गणभासकाः |

रकारोऽदधसत पर बरहम मायाभरादधिववमोचकम ||

गर शबद का पररथम अकषर ग माया आवि गणो का परकाशक ह और िसरा अकषर र कार माया की भरादधनत स मदधकत िनिाला परबरहम ह | (36)

सवधशरवतवशरोरतनववरावजतपदािजम |

वदािाथधिविार तसमातसपजयद गरम ||

गर सिव शरवतरप शरषठ रतनो स सशोवभत चरणकमलिाल ह और ििानत क अरथव क परिकता ह | इसवलय शरी गरिि की पजा करनी चावहय | (37)

यसयसमरणमातरण जञानमतपदयत सवयम |

साः एव सवधसमपवतताः तसमातसपजयद गरम ||

वजनक समरण मातर स जञान अपन आप परकट होन लगता ह और ि ही सिव (शमिमवि) समपिारप ह | अतः शरी गरिि की पजा करनी चावहय | (38)

ससारवकषमारढ़ााः पतदधि नरकाणधव |

यसतानिरत सवाधन तसम शरीगरव नमाः ||

ससाररपी िकष पर चढ़ हए लोग नरकरपी सागर म वगरत ह | उन सबका उिार करनिाल शरी गरिि को नमसकार हो | (39)

एक एव परो िनधववधषम समपदधसथत |

गराः सकलरमाधतमा तसम शरीगरव नमाः ||

जब विकट पररदधसरथवत उपदधसरथत होती ह तब ि ही एकमातर परम बाधि ह और सब धमो क आतमसवरप ह | ऐस शरीगरिि को नमसकार हो | (40)

भवारणयिवविसय वदडमोरभरािचतसाः |

यन सिवशधताः पनााः तसम शरीगरव नमाः ||

ससार रपी अरणय म परिश करन क बाि विगमढ़ की दधसरथवत म (जब कोई मागव नही विखाई िता ह) वचतत भरवमत हो जाता ह उस समय वजसन मागव विखाया उन शरी गरिि को नमसकार हो | (41)

तापतरयावितपताना अशाििाणीना भवव |

गररव परा गगा तसम शरीगरव नमाः ||

इस पथवी पर वतरविध ताप (आवध-वयावध-उपावध) रपी अगनी स जलन क कारण अशात हए परावणयो क वलए गरिि ही एकमातर उततम गगाजी ह | ऐस शरी गरििजी को नमसकार हो | (42)

सपतसागरपयधि तीथधसनानफल त यत |

गरपादपयोवििोाः सरसाशन ततफलम ||

सात समदर पयवनत क सिव तीरथो म सनान करन स वजतना फल वमलता ह िह फल शरीगरिि क चरणामत क एक वबनि क फल का हजारिाा वहससा ह | (43)

वशव रि गरसतराता गरौ रि न कशचन |

लबधवा कलगर समयगगरमव समाशरयत ||

यवि वशिजी नारज़ हो जाय तो गरिि बचानिाल ह वकनत यवि गरिि नाराज़ हो जाय तो बचानिाला कोई नही | अतः गरिि को सपरापत करक सिा उनकी शरण म रहना चावहए | (44)

गकार च गणातीत रकार रपववजधतम |

गणातीतमरप च यो ददयात स गराः समताः ||

गर शबद का ग अकषर गणातीत अरथव का बोधक ह और र अकषर रपरवहत दधसरथवत का बोधक ह | य िोनो (गणातीत और रपातीत) दधसरथवतयाा जो ित ह उनको गर कहत ह | (45)

अवतरनतराः वशवाः साकषात वििाहशच ररराः समताः |

योऽचतवधदनो बरहमा शरीगराः कवथताः विय ||

ह वपरय गर ही वतरनतररवहत (िो नतर िाल) साकषात वशि ह िो हारथ िाल भगिान विषण ह और एक मखिाल बरहमाजी ह | (46)

दववकननरगनधवाधाः वपतयकषासत तमबराः |

मनयोऽवप न जानदधि गरशशरषण वववरम ||

िि वकननर गधिव वपत यकष तमबर (गधिव का एक परकार) और मवन लोग भी गरसिा की विवध नही जानत | (47)

तावकध काशछािसाशचव दवजञााः कमधठाः विय |

लौवककासत न जानदधि गरततव वनराकलम ||

ह वपरय तावकव क िविक जयोवतवर कमवकाडी तरथा लोवककजन वनमवल गरततव को नही जानत | (48)

यवजञनोऽवप न मिााः सयाः न मिााः योवगनसतथा |

तापसा अवप नो मि गरततवातपराडमखााः ||

यवि गरततव स पराडमख हो जाय तो यावजञक मदधकत नही पा सकत योगी मकत नही हो सकत और तपसवी भी मकत नही हो सकत | (49)

न मिासत गनधवधाः वपतयकषासत चारणााः |

ॠषयाः वसिदवादयााः गरसवापराडमखााः ||

गरसिा स विमख गधिव वपत यकष चारण ॠवर वसि और ििता आवि भी मकत नही होग |

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया िथमोऽधयायाः ||

|| अथ वितीयोऽधयायाः ||

बरहमानि परमसखद कवल जञानमवत

िनदिातीत गगनसदश ततवमसयावदलकषयम |

एक वनतय ववमलमचल सवधरीसावकषभतम

भावतीत वतरगणरवरत सदगर त नमावम ||

दसरा अधयाय

जो बरहमानिसवरप ह परम सख िनिाल ह जो किल जञानसवरप ह (सख िःख शीत-उषण आवि) दवनदवो स रवहत ह आकाश क समान सकषम और सिववयापक ह ततवमवस आवि महािाको क लकषयारथव ह एक ह वनत ह मलरवहत ह अचल ह सिव बदधियो क साकषी ह भािना स पर ह

सतव रज और तम तीनो गणो स रवहत ह ऐस शरी सिगरिि को म नमसकार करता हा | (52)

गरपवदिमागण मनाः वशदधि त कारयत |

अवनतय खणडयतसव यदधतकवचदातमगोचरम ||

शरी गरिि क दवारा उपविषट मागव स मन की शदधि करनी चावहए | जो कछ भी अवनत िसत अपनी इदधनदरयो की विरय हो जाय उनका खणडन (वनराकरण) करना चावहए | (53)

वकमतर िहनोिन शासतरकोवटशतरवप |

दलधभा वचततववशरादधिाः ववना गरकपा पराम ||

यहाा जयािा कहन स का लाभ शरी गरिि की परम कपा क वबना करोड़ो शासतरो स भी वचतत की विशरावत िलवभ ह | (54)

करणाखडगपातन विततवा पाशािक वशशोाः |

समयगानिजनकाः सदगर सोऽवभरीयत ||

एव शरतवा मरादवव गरवनिा करोवत याः |

स यावत नरकान घोरान यावचचनदरवदवाकरौ ||

करणारपी तलिार क परहार स वशषय क आठो पाशो (सशय िया भय सकोच वननदा परवतषठा

कलावभमान और सपवतत ) को काटकर वनमवल आनि िनिाल को सिगर कहत ह | ऐसा सनन पर भी जो मनषय गरवननदा करता ह िह (मनषय) जब तक सयवचनदर का अदधसततव रहता ह तब तक घोर नरक म रहता ह | (55 56)

यावतकलपािको दरसतावददवव गर समरत |

गरलोपो न कततधवयाः सवचछिो यवद वा भवत ||

ह ििी िह कलप क अनत तक रह तब तक शरी गरिि का समरण करना चावहए और आतमजञानी होन क बाि भी (सवचछनद अरथावत सवरप का छनद वमलन पर भी ) वशषय को गरिि की शरण नही छोड़नी चावहए | (57)

हकारण न विवय िाजञवशषय कदाचन |

गररागर न विवयमसतय त कदाचन ||

शरी गरिि क समकष परजञािान वशषय को कभी हाकार शबद स (मन ऐस वकया िसा वकया ) नही बोलना चावहए और कभी असत नही बोलना चावहए | (58)

गर तवकतय हकतय गरसावननधयभाषणाः |

अरणय वनजधल दश सभवद बरहमराकषसाः ||

गरिि क समकष जो हाकार शबद स बोलता ह अरथिा गरिि को त कहकर जो बोलता ह िह वनजवन मरभवम म बरहमराकषस होता ह | (59)

अित भावयवननतय सवाधवसथास सवधदा |

कदावचदवप नो कयाधदित गरसवननरौ ||

सिा और सिव अिसरथाओ म अदवत की भािना करनी चावहए परनत गरिि क सारथ अदवत की भािना किावप नही करनी चावहए | (60)

दशयववसमवतपयधि कयाधद गरपदाचधनम |

तादशसयव कवलय न च तदवयवतरवकणाः ||

जब तक दशय परपच की विसमवत न हो जाय तब तक गरिि क पािन चरणारविनद की पजा-अचवना करनी चावहए | ऐसा करनिाल को ही किलयपि की परदधपत होती ह इसक विपरीत करनिाल को नही होती | (61)

अवप सपणधतततवजञो गरतयागी भवदददा |

भवतयव वर तसयािकाल ववकषपमतकटम ||

सपणव तततवजञ भी यवि गर का ताग कर ि तो मत क समय उस महान विकषप अिशय हो जाता ह | (62)

गरौ सवत सवय दवी परषा त कदाचन |

उपदश न व कयाधत तदा चदराकषसो भवत ||

ह ििी गर क रहन पर अपन आप कभी वकसी को उपिश नही िना चावहए | इस परकार उपिश िनिाला बरहमराकषस होता ह | (63)

न गरराशरम कयाधत दषपान पररसपधणम |

दीकषा वयाखया िभतवावद गरोराजञा न कारयत ||

गर क आशरम म नशा नही करना चावहए टहलना नही चावहए | िीकषा िना वयाखयान करना

परभतव विखाना और गर को आजञा करना य सब वनवरि ह | (64)

नोपाशरम च पयक न च पादिसारणम |

नागभोगावदक कयाधनन लीलामपरामवप ||

गर क आशरम म अपना छपपर और पलग नही बनाना चावहए (गरिि क सममख) पर नही पसारना शरीर क भोग नही भोगन चावहए और अनय लीलाएा नही करनी चावहए | (65)

गरणा सदसिावप यदि तनन लघयत |

कवधननाजञा वदवारातरौ दासववननवसद गरौ ||

गरओ की बात सचची हो या झठी परनत उसका कभी उललघन नही करना चावहए | रात और विन गरिि की आजञा का पालन करत हए उनक सावननधय म िास बन कर रहना चावहए | (66)

अदतत न गरोदरधवयमपभजीत कवरवचधत |

दतत च रकवद गराहय िाणोपयतन लभयत ||

जो दरवय गरिि न नही विया हो उसका उपयोग कभी नही करना चावहए | गरिि क विय हए दरवय को भी गरीब की तरह गरहण करना चावहए | उसस पराण भी परापत हो सकत ह | (67)

पादकासनशययावद गरणा यदवभवितम |

नमसकवीत ततसव पादाभया न सपशत कववचत ||

पािका आसन वबसतर आवि जो कछ भी गरिि क उपयोग म आत हो उन सिव को नमसकार करन चावहए और उनको पर स कभी नही छना चावहए | (68)

गचछताः पषठतो गचछत गरचछाया न लघयत |

नोलबण रारयिष नालकारासततोलबणान ||

चलत हए गरिि क पीछ चलना चावहए उनकी परछाई का भी उललघन नही करना चावहए |

गरिि क समकष कीमती िशभरा आभरण आवि धारण नही करन चावहए | (69)

गरवनिाकर दषटवा रावयदथ वासयत |

सथान वा ततपररतयाजय वजहवाचछदाकषमो यवद ||

गरिि की वननदा करनिाल को िखकर यवि उसकी वजहवा काट डालन म समरथव न हो तो उस अपन सरथान स भगा िना चावहए | यवि िह ठहर तो सवय उस सरथान का पररताग करना चावहए | (70)

मवनवभाः पननगवाधवप सरवा शावपतो यवद |

कालमतयभयािावप गराः सतरावत पावधवत ||

ह पिवती मवनयो पननगो और ििताओ क शाप स तरथा यरथा काल आय हए मत क भय स भी वशषय को गरिि बचा सकत ह | (71)

ववजानदधि मरावाकय गरोशचरणसवया |

त व सनयावसनाः िोिा इतर वषराररणाः ||

गरिि क शरीचरणो की सिा करक महािाक क अरथव को जो समझत ह ि ही सचच सनयासी ह

अनय तो मातर िशधारी ह | (72)

वनतय बरहम वनराकार वनगधण िोरयत परम |

भासयन बरहमभाव च दीपो दीपािर यथा ||

गर ि ह जो वनत वनगवण वनराकार परम बरहम का बोध ित हए जस एक िीपक िसर िीपक को परजजववलत करता ह िस वशषय म बरहमभाि को परकटात ह | (73)

गरिादताः सवातमनयातमारामवनररकषणात |

समता मदधिमगण सवातमजञान िवतधत ||

शरी गरिि की कपा स अपन भीतर ही आतमानि परापत करक समता और मदधकत क मागव दवार वशषय आतमजञान को उपलबध होता ह | (74)

सफ़वटक सफ़ावटक रप दपधण दपधणो यथा |

तथातमवन वचदाकारमानि सोऽरवमतयत ||

जस सिवटक मवण म सिवटक मवण तरथा िपवण म िपवण विख सकता ह उसी परकार आतमा म जो वचत और आनिमय विखाई िता ह िह म हा | (75)

अगषठमातर परष धयायचच वचनमय हवद |

ततर सफ़रवत यो भावाः शरण ततकथयावम त ||

हिय म अगषठ मातर पररणाम िाल चतनय परर का धयान करना चावहए | िहाा जो भाि सिररत होता ह िह म तमह कहता हा सनो | (76)

अजोऽरममरोऽर च हयनावदवनरनोहयरम |

अववकारवशचदानिो हयवणयान मरतो मरान ||

म अजनमा हा म अमर हा मरा आवि नही ह मरी मत नही ह | म वनविवकार हा म वचिाननद हा

म अण स भी छोटा हा और महान स भी महान हा | (77)

अपवधमपर वनतय सवय जयोवतवनधरामयम |

ववरज परमाकाश धरवमानिमवययम ||

अगोचर तथाऽगमय नामरपववववजधतम |

वनाःशबद त ववजानीयातसवाभावाद बरहम पवधवत ||

ह पिवती बरहम को सवभाि स ही अपिव (वजसस पिव कोई नही ऐसा) अवदवतीय वनत

जयोवतसवरप वनरोग वनमवल परम आकाशसवरप अचल आननदसवरप अविनाशी अगमय

अगोचर नाम-रप स रवहत तरथा वनःशबद जानना चावहए | (78 79)

यथा गनधसवभावतव कपधरकसमावदष |

शीतोषणसवभावतव तथा बरहमवण शाशवतम ||

वजस परकार कपर िल इतावि म गनधतव (अवगन म) उषणता और (जल म) शीतलता सवभाि स ही होत ह उसी परकार बरहम म शशवतता भी सवभािवसि ह | (80)

यथा वनजसवभावन कडलकटकादयाः |

सवणधतवन वतषठदधि तथाऽर बरहम शाशवतम ||

वजस परकार कटक कणडल आवि आभरण सवभाि स ही सिणव ह उसी परकार म सवभाि स ही शाशवत बरहम हा | (81)

सवय तथाववरो भतवा सथातवय यतरकतरवचत |

कीटो भग इव धयानात यथा भववत तादशाः ||

सवय िसा होकर वकसी-न-वकसी सरथान म रहना | जस कीडा भरमर का वचनतन करत-करत भरमर हो जाता ह िस ही जीि बरहम का धयान करत-करत बरहमसवरप हो जाता ह | (82)

गरोधयाधननव वनतय दरी बरहममयो भवत |

दधसथतशच यतरकतरावप मिोऽसौ नातर सशयाः ||

सिा गरिि का धयान करन स जीि बरहममय हो जाता ह | िह वकसी भी सरथान म रहता हो विर भी मकत ही ह | इसम कोई सशय नही ह | (83)

जञान वरागयमशवय यशाः शरी समदाहतम |

षडगणशवयधयिो वर भगवान शरी गराः विय ||

ह वपरय भगितसवरप शरी गरिि जञान िरागय ऐशवयव यश लकषमी और मधरिाणी य छः गणरप ऐशवयव स सपनन होत ह | (84)

गराः वशवो गरदवो गरिधनधाः शरीररणाम |

गररातमा गरजीवो गरोरनयनन ववदयत ||

मनषय क वलए गर ही वशि ह गर ही िि ह गर ही बाधि ह गर ही आतमा ह और गर ही जीि ह | (सचमच) गर क वसिा अनय कछ भी नही ह | (85)

एकाकी वनसपराः शािाः वचतासयावदववजधताः |

िालयभावन यो भावत बरहमजञानी स उचयत ||

अकला कामनारवहत शात वचनतारवहत ईषयावरवहत और बालक की तरह जो शोभता ह िह बरहमजञानी कहलाता ह | (86)

न सख वदशासतरष न सख मतरयतरक |

गरोाः िसादादनयतर सख नादधसत मरीतल ||

ििो और शासतरो म सख नही ह मतर और यतर म सख नही ह | इस पथवी पर गरिि क कपापरसाि क वसिा अनयतर कही भी सख नही ह | (87)

चावाकध वषणवमत सख िभाकर न वर |

गरोाः पादादधिक यितसख वदािसममतम ||

गरिि क शरी चरणो म जो ििानतवनविवषट सख ह िह सख न चािाकव मत म न िषणि मत म और न परभाकर (साखय) मत म ह | (88)

न ततसख सरनदरसय न सख चकरववतधनाम |

यतसख वीतरागसय मनरकािवावसनाः ||

एकानतिासी िीतराग मवन को जो सख वमलता ह िह सख न इनदर को और न चकरिती राजाओ को वमलता ह | (89)

वनतय बरहमरस पीतवा तपतो याः परमातमवन |

इनदर च मनयत रक नपाणा ततर का कथा ||

हमशा बरहमरस का पान करक जो परमातमा म तपत हो गया ह िह (मवन) इनदर को भी गरीब मानता ह तो राजाओ की तो बात ही का (90)

यताः परमकवलय गरमागण व भवत |

गरभदधिरवताः कायाध सवधदा मोकषकावकषवभाः ||

मोकष की आकाकषा करनिालो को गरभदधकत खब करनी चावहए कोवक गरिि क दवारा ही परम मोकष की परादधपत होती ह | (91)

एक एवावितीयोऽर गरवाकयन वनवशचताः ||

एवमभयासता वनतय न सवय व वनािरम ||

अभयासावननवमषणव समावरमवरगचछवत |

आजनमजवनत पाप ततकषणादव नशयवत ||

गरिि क िाक की सहायता स वजसन ऐसा वनशचय कर वलया ह वक म एक और अवदवतीय हा और उसी अभास म जो रत ह उसक वलए अनय िनिास का सिन आिशयक नही ह कोवक अभास स ही एक कषण म समावध लग जाती ह और उसी कषण इस जनम तक क सब पाप नषट हो जात ह | (92 93)

गरववधषणाः सततवमयो राजसशचतराननाः |

तामसो रदररपण सजतयववत रदधि च ||

गरिि ही सतवगणी होकर विषणरप स जगत का पालन करत ह रजोगणी होकर बरहमारप स जगत का सजवन करत ह और तमोगणी होकर शकर रप स जगत का सहार करत ह | (94)

तसयावलोकन िापय सवधसगववववजधताः |

एकाकी वनाःसपराः शािाः सथातवय ततपरसादताः ||

उनका (गरिि का) िशवन पाकर उनक कपापरसाि स सिव परकार की आसदधकत छोड़कर एकाकी

वनःसपह और शानत होकर रहना चावहए | (95)

सवधजञपदवमतयाहदरी सवधमयो भवव |

सदाऽनिाः सदा शािो रमत यतर कतरवचत ||

जो जीि इस जगत म सिवमय आनिमय और शानत होकर सिवतर विचरता ह उस जीि को सिवजञ कहत ह | (96)

यतरव वतषठत सोऽवप स दशाः पणयभाजनाः |

मिसय लकषण दवी तवागर कवथत मया ||

ऐसा परर जहाा रहता ह िह सरथान पणयतीरथव ह | ह ििी तमहार सामन मन मकत परर का लकषण कहा | (97)

यदयपयरीता वनगमााः षडगा आगमााः विय |

आधयामावदवन शासतरावण जञान नादधसत गर ववना ||

ह वपरय मनषय चाह चारो िि पढ़ ल िि क छः अग पढ़ ल आधयातमशासतर आवि अनय सिव शासतर पढ़ ल विर भी गर क वबना जञान नही वमलता | (98)

वशवपजारतो वावप ववषणपजारतोऽथवा |

गरततवववरीनशचतततसव वयथधमव वर ||

वशिजी की पजा म रत हो या विषण की पजा म रत हो परनत गरततव क जञान स रवहत हो तो िह सब वयरथव ह | (99)

सव सयातसफल कमध गरदीकषािभावताः |

गरलाभातसवधलाभो गररीनसत िावलशाः ||

गरिि की िीकषा क परभाि स सब कमव सफल होत ह | गरिि की सपरादधपत रपी परम लाभ स अनय सिवलाभ वमलत ह | वजसका गर नही िह मखव ह | (100)

तसमातसवधियतनन सवधसगववववजधताः |

ववराय शासतरजालावन गरमव समाशरयत ||

इसवलए सब परकार क परयतन स अनासकत होकर शासतर की मायाजाल छोड़कर गरिि की ही शरण लनी चावहए | (101)

जञानरीनो गरतयाजयो वमथयावादी ववडिकाः |

सवववशरादधि न जानावत परशादधि करोवत वकम ||

जञानरवहत वमथया बोलनिाल और विखािट करनिाल गर का ताग कर िना चावहए कोवक जो अपनी ही शावत पाना नही जानता िह िसरो को का शावत ि सकगा | (102)

वशलायााः वक पर जञान वशलासघितारण |

सवय तत न जानावत पर वनसतारयतकथम ||

पतथरो क समह को तरान का जञान पतथर म कहाा स हो सकता ह जो खि तरना नही जानता िह िसरो को का तरायगा | (103)

न विनीयासत कि दशधनाद भरादधिकारकाः |

वजधयतान गरन दर रीरानव समाशरयत ||

जो गर अपन िशवन स (विखाि स) वशषय को भरादधनत म ड़ालता ह ऐस गर को परणाम नही करना चावहए | इतना ही नही िर स ही उसका ताग करना चावहए | ऐसी दधसरथवत म धयविान गर का ही आशरय लना चावहए | (104)

पाखदधणडनाः पापरता नादधसतका भदिियाः |

सतरीलमपटा दराचारााः कतघा िकवतयाः ||

कमधभरिााः कषमानिााः वननददयतकशच वावदनाः |

कावमनाः करोवरनशचव वरसाशचड़ााः शठसतथा ||

जञानलपता न कतधवया मरापापासतथा विय |

एभयो वभननो गराः सवय एकभकतया ववचायध च ||

भिबदधि उततनन करनिाल सतरीलमपट िराचारी नमकहराम बगल की तरह ठगनिाल कषमा रवहत वननदनीय तको स वितडािाि करनिाल कामी करोधी वहसक उगर शठ तरथा अजञानी और महापापी परर को गर नही करना चावहए | ऐसा विचार करक ऊपर विय लकषणो स वभनन लकषणोिाल गर की एकवनषठ भदधकत स सिा करनी चावहए | (105 106 107 )

सतय सतय पनाः सतय रमधसार मयोवदतम |

गरगीता सम सतोतर नादधसत ततव गरोाः परम ||

गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | गर क समान अनय कोई ततव नही ह | समगर धमव का यह सार मन कहा ह यह सत ह सत ह और बार-बार सत ह | (108)

अनन यद भवद काय तिदावम तव विय |

लोकोपकारक दवव लौवकक त वववजधयत ||

ह वपरय इस गरगीता का पाठ करन स जो कायव वसि होता ह अब िह कहता हा | ह ििी लोगो क वलए यह उपकारक ह | मातर ल वकक का ताग करना चावहए | (109)

लौवककािमधतो यावत जञानरीनो भवाणधव |

जञानभाव च यतसव कमध वनषकमध शामयवत ||

जो कोई इसका उपयोग ल वकक कायव क वलए करगा िह जञानहीन होकर ससाररपी सागर म वगरगा | जञान भाि स वजस कमव म इसका उपयोग वकया जाएगा िह कमव वनषकमव म पररणत होकर शात हो जाएगा | (110)

इमा त भदधिभावन पठि शणयादवप |

वलदधखतवा यतपरसादन ततसव फलमशनत ||

भदधकत भाि स इस गरगीता का पाठ करन स सनन स और वलखन स िह (भकत) सब फल भोगता ह | (111)

गरगीतावममा दवव हवद वनतय ववभावय |

मरावयावरगतदाःखाः सवधदा िजपनमदा ||

ह ििी इस गरगीता को वनत भािपिवक हिय म धारण करो | महावयावधिाल िःखी लोगो को सिा आनि स इसका जप करना चावहए | (112)

गरगीताकषरकक मतरराजवमद विय |

अनय च ववववरा मतरााः कला नारधदधि षोडशीम ||

ह वपरय गरगीता का एक-एक अकषर मतरराज ह | अनय जो विविध मतर ह ि इसका सोलहिाा भाग भी नही | (113)

अनिफलमापनोवत गरगीताजपन त |

सवधपापररा दवव सवधदाररदरयनावशनी ||

ह ििी गरगीता क जप स अनत फल वमलता ह | गरगीता सिव पाप को हरन िाली और सिव िाररदरय का नाश करन िाली ह | (114)

अकालमतयरतरी च सवधसकटनावशनी |

यकषराकषसभतावदचोरवयाघरववघावतनी ||

गरगीता अकाल मत को रोकती ह सब सकटो का नाश करती ह यकष राकषस भत चोर और बाघ आवि का घात करती ह | (115)

सवोपदरवकषठवददिदोषवनवाररणी |

यतफल गरसावननधयातततफल पठनाद भवत ||

गरगीता सब परकार क उपदरिो कषठ और िषट रोगो और िोरो का वनिारण करनिाली ह | शरी गरिि क सावननधय स जो फल वमलता ह िह फल इस गरगीता का पाठ करन स वमलता ह | (116)

मरावयावरररा सवधववभताः वसदधिदा भवत |

अथवा मोरन वशय सवयमव जपतसदा ||

इस गरगीता का पाठ करन स महावयावध िर होती ह सिव ऐशवयव और वसदधियो की परादधपत होती ह | मोहन म अरथिा िशीकरण म इसका पाठ सवय ही करना चावहए | (117)

मोरन सवधभताना िनधमोकषकर परम |

दवराजञा वियकर राजान वशमानयत ||

इस गरगीता का पाठ करनिाल पर सिव पराणी मोवहत हो जात ह बनधन म स परम मदधकत वमलती ह ििराज इनदर को िह वपरय होता ह और राजा उसक िश होता ह | (118)

मखसतमभकर चव गणाणा च वववरधनम |

दषकमधनाशन चव तथा सतकमधवसदधिदम ||

इस गरगीता का पाठ शतर का मख बनद करनिाला ह गणो की िदधि करनिाला ह िषकतो का नाश करनिाला और सतकमव म वसदधि िनिाला ह | (119)

अवसि सारयतकाय नवगररभयापरम |

दाःसवपननाशन चव ससवपनफलदायकम ||

इसका पाठ असाधय कायो की वसदधि कराता ह नि गरहो का भय हरता ह िःसवपन का नाश करता ह और ससवपन क फल की परादधपत कराता ह | (120)

मोरशादधिकर चव िनधमोकषकर परम |

सवरपजञानवनलय गीतशासतरवमद वशव ||

ह वशि यह गरगीतारपी शासतर मोह को शानत करनिाला बनधन म स परम मकत करनिाला और सवरपजञान का भणडार ह | (121)

य य वचियत काम त त िापनोवत वनशचयम |

वनतय सौभागयद पणय तापतरयकलापरम ||

वयदधकत जो-जो अवभलारा करक इस गरगीता का पठन-वचनतन करता ह उस िह वनशचय ही परापत होता ह | यह गरगीता वनत स भागय और पणय परिान करनिाली तरथा तीनो तापो (आवध-वयावध-उपावध) का शमन करनिाली ह | (122)

सवधशादधिकर वनतय तथा वनधयासपतरदम |

अवरवयकर सतरीणा सौभागयसय वववरधनम ||

यह गरगीता सब परकार की शावत करनिाली िनधया सतरी को सपतर िनिाली सधिा सतरी क िधववय

का वनिारण करनिाली और स भागय की िदधि करनिाली ह | (123)

आयरारोगमशवय पतरपौतरिवरधनम |

वनषकामजापी ववरवा पठनमोकषमवापनयात ||

यह गरगीता आयषय आरोगय ऐशवयव और पतर-प तर की िदधि करनिाली ह | कोई विधिा वनषकाम भाि स इसका जप-पाठ कर तो मोकष की परादधपत होती ह | (124)

अवरवय सकामा त लभत चानयजनमवन |

सवधदाःखभय ववघ नाशयततापरारकम ||

यवि िह (विधिा) सकाम होकर जप कर तो अगल जनम म उसको सताप हरनिाल अिधववय (स भागय) परापत होता ह | उसक सब िःख भय विघन और सताप का नाश होता ह | (125)

सवधपापिशमन रमधकामाथधमोकषदम |

य य वचियत काम त त िापनोवत वनवशचतम ||

इस गरगीता का पाठ सब पापो का शमन करता ह धमव अरथव और मोकष की परादधपत कराता ह |

इसक पाठ स जो-जो आकाकषा की जाती ह िह अिशय वसि होती ह | (126)

वलदधखतवा पजयदयसत मोकषवशरयमवापनयात |

गरभदधिववधशषण जायत हवद सवधदा ||

यवि कोई इस गरगीता को वलखकर उसकी पजा कर तो उस लकषमी और मोकष की परादधपत होती ह और विशर कर उसक हिय म सिविा गरभदधकत उतपनन होती रहती ह | (127)

जपदधि शािााः सौराशच गाणपतयाशच वषणवााः |

शवााः पाशपतााः सव सतय सतय न सशयाः ||

शदधकत क सयव क गणपवत क वशि क और पशपवत क मतिािी इसका (गरगीता का) पाठ करत ह यह सत ह सत ह इसम कोई सिह नही ह | (128)

जप रीनासन कवधन रीनकमाधफलिदम |

गरगीता ियाण वा सगराम ररपसकट ||

जपन जयमवापनोवत मरण मदधिदावयका |

सवधकमावण वसियदधि गरपतर न सशयाः ||

वबना आसन वकया हआ जप नीच कमव हो जाता ह और वनषफल हो जाता ह | यातरा म यि म

शतरओ क उपदरि म गरगीता का जप-पाठ करन स विजय वमलता ह | मरणकाल म जप करन स मोकष वमलता ह | गरपतर क (वशषय क) सिव कायव वसि होत ह इसम सिह नही ह | (129

130)

गरमतरो मख यसय तसय वसियदधि नानयथा |

दीकषया सवधकमाधवण वसियदधि गरपतरक ||

वजसक मख म गरमतर ह उसक सब कायव वसि होत ह िसर क नही | िीकषा क कारण वशषय क सिव कायव वसि हो जात ह | (131)

भवमलववनाशाय चािपाशवनवतय |

गरगीतामभवस सनान ततवजञ करत सदा ||

सवधशिाः पववतरोऽसौ सवभावादयतर वतषठवत |

ततर दवगणााः सव कषतरपीठ चरदधि च ||

ततवजञ परर ससारपी िकष की जड़ नषट करन क वलए और आठो परकार क बनधन (सशय िया

भय सकोच वननदा परवतषठा कलावभमान और सपवतत) की वनिवत करन क वलए गरगीता रपी गगा म सिा सनान करत रहत ह | सवभाि स ही सिवरथा शि और पवितर ऐस ि महापरर जहाा रहत ह उस तीरथव म ििता विचरण करत ह | (132 133)

आसनसथा शयाना वा गचछिदधषटतषठिोऽवप वा |

अशवरढ़ा गजारढ़ा सषपता जागरतोऽवप वा ||

शवचभता जञानविो गरगीता जपदधि य |

तषा दशधनससपशाधत पनजधनम न ववदयत ||

आसन पर बठ हए या लट हए खड़ रहत या चलत हए हारथी या घोड़ पर सिार जागरतिसरथा म या सरपतािसरथा म जो पवितर जञानिान परर इस गरगीता का जप-पाठ करत ह उनक िशवन और सपशव स पनजवनम नही होता | (134 135)

कशदवाधसन दवव हयासन शभरकमबल |

उपववशय ततो दवव जपदकागरमानसाः ||

ह ििी कश और ििाव क आसन पर सिि कमबल वबछाकर उसक ऊपर बठकर एकागर मन स इसका (गरगीता का) जप करना चावहए (136)

शकल सवधतर व िोि वशय रिासन विय |

पदमासन जपवननतय शादधिवशयकर परम ||

सामनयतया सिि आसन उवचत ह परत िशीकरण म लाल आसन आिशयक ह | ह वपरय शावत परादधपत क वलए या िशीकरण म वनत पदमासन म बठकर जप करना चावहए | (137)

वसतरासन च दाररदरय पाषाण रोगसभवाः |

मवदनया दाःखमापनोवत काषठ भववत वनषफलम ||

कपड़ क आसन पर बठकर जप करन स िाररदरय आता ह पतथर क आसन पर रोग भवम पर बठकर जप करन स िःख आता ह और लकड़ी क आसन पर वकय हए जप वनषफल होत ह | (138)

कषणावजन जञानवसदधिाः मोकषशरी वयाघरचमधवण |

कशासन जञानवसदधिाः सवधवसदधिसत कमबल ||

काल मगचमव और िभावसन पर बठकर जप करन स जञानवसदधि होती ह वयागरचमव पर जप करन

स मदधकत परापत होती ह परनत कमबल क आसन पर सिव वसदधि परापत होती ह | (139)

आियया कषधण चव वयवया शतरनाशनम |

नरतया दशधन चव ईशानया जञानमव च ||

अवगन कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स आकरवण िायवय कोण की तरि शतरओ का नाश नरत कोण की तरफ िशवन और ईशान कोण की तरफ मख करक जप-पाठ करन स जञान की परदधपत ह | (140)

उदमखाः शादधिजापय वशय पवधमखतथा |

यामय त मारण िोि पवशचम च रनागमाः ||

उततर विशा की ओर मख करक पाठ करन स शावत पिव विशा की ओर िशीकरण िवकषण विशा की ओर मारण वसि होता ह तरथा पवशचम विशा की ओर मख करक जप-पाठ करन स धन परादधपत होती ह | (141)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया वितीयोऽधयायाः ||

|| अथ ततीयोऽधयायाः ||

अथ कामयजपसथान कथयावम वरानन |

सागराि सररततीर तीथ रररररालय ||

शदधिदवालय गोषठ सवधदवालय शभ |

वटसय रातरया मल व मठ विावन तथा ||

पववतर वनमधल दश वनतयानषठानोऽवप वा |

वनवदनन मौनन जपमतत समारभत ||

तीसरा अधयाय

ह समखी अब सकावमयो क वलए जप करन क सरथानो का िणवन करता हा | सागर या निी क तट पर तीरथव म वशिालय म विषण क या ििी क मविर म ग शाला म सभी शभ ििालयो म

िटिकष क या आािल क िकष क नीच मठ म तलसीिन म पवितर वनमवल सरथान म वनतानषठान क रप म अनासकत रहकर म नपिवक इसक जप का आरभ करना चावहए |

जापयन जयमापनोवत जपवसदधि फल तथा |

रीनकमध तयजतसव गवरधतसथानमव च ||

जप स जय परापत होता ह तरथा जप की वसदधि रप फल वमलता ह | जपानषठान क काल म सब नीच कमव और वनदधनदत सरथान का ताग करना चावहए | (145)

समशान विलवमल वा वटमलादधिक तथा |

वसियदधि कानक मल चतवकषसय सवननरौ ||

समशान म वबलव िटिकष या कनकिकष क नीच और आमरिकष क पास जप करन स स वसदधि जलदी होती ह | (146)

आकलपजनमकोटीना यजञवरततपाः वकरयााः |

तााः सवाधाः सफला दवव गरसतोषमातरताः ||

ह ििी कलप पयवनत क करोड़ो जनमो क यजञ वरत तप और शासतरोकत वकरयाएा य सब गरिि क सतोरमातर स सफल हो जात ह | (147)

मदभागया हयशिाशच य जना नानमनवत |

गरसवास ववमखााः पचयि नरकऽशचौ ||

भागयहीन शदधकतहीन और गरसिा स विमख जो लोग इस उपिश को नही मानत ि घोर नरक म पड़त ह | (148)

ववदया रन िल चव तषा भागय वनरथधकम |

यषा गरकपा नादधसत अरो गचछदधि पावधवत ||

वजसक ऊपर शरी गरिि की कपा नही ह उसकी विदया धन बल और भागय वनररथवक ह| ह पािवती उसका अधःपतन होता ह | (149)

रनया माता वपता रनयो गोतर रनय कलोदभवाः|

रनया च वसरा दवव यतर सयाद गरभिता ||

वजसक अिर गरभदधकत हो उसकी माता धनय ह उसका वपता धनय ह उसका िश धनय ह उसक िश म जनम लनिाल धनय ह समगर धरती माता धनय ह | (150)

शरीरवमदधनदरय िाणचचाथधाः सवजनिनधता |

मातकल वपतकल गररव न सशयाः ||

शरीर इदधनदरयाा पराण धन सवजन बनध-बानधि माता का कल वपता का कल य सब गरिि ही ह | इसम सशय नही ह | (151)

गरदवो गररधमो गरौ वनषठा पर तपाः |

गरोाः परतर नादधसत वतरवार कथयावम त ||

गर ही िि ह गर ही धमव ह गर म वनषठा ही परम तप ह | गर स अवधक और कछ नही ह यह म तीन बार कहता हा | (152)

समदर व यथा तोय कषीर कषीर घत घतम |

वभनन कभ यथाऽऽकाश तथाऽऽतमा परमातमवन ||

वजस परकार सागर म पानी िध म िध घी म घी अलग-अलग घटो म आकाश एक और अवभनन ह उसी परकार परमातमा म जीिातमा एक और अवभनन ह | (153)

तथव जञानवान जीव परमातमवन सवधदा |

ऐकयन रमत जञानी यतर कतर वदवावनशम ||

इसी परकार जञानी सिा परमातमा क सारथ अवभनन होकर रात-विन आनिविभोर होकर सिवतर विचरत ह | (154)

गरसिोषणादव मिो भववत पावधवत |

अवणमावदष भोितव कपया दवव जायत ||

ह पािववत गरिि को सतषट करन स वशषय मकत हो जाता ह | ह ििी गरिि की कपा स िह अवणमावि वसदधियो का भोग परापत करता ह| (155)

सामयन रमत जञानी वदवा वा यवद वा वनवश |

एव ववरौ मरामौनी तरलोकयसमता वरजत ||

जञानी विन म या रात म सिा सिविा समतव म रमण करत ह | इस परकार क महाम नी अरथावत बरहमवनषठ महातमा तीनो लोको म समान भाि स गवत करत ह | (156)

गरभावाः पर तीथधमनयतीथ वनरथधकम |

सवधतीथधमय दवव शरीगरोशचरणामबजम ||

गरभदधकत ही सबस शरषठ तीरथव ह | अनय तीरथव वनररथवक ह | ह ििी गरिि क चरणकमल सिवतीरथवमय ह | (157)

कनयाभोगरतामिााः सवकािायााः पराडमखााः |

अताः पर मया दवव कवथतनन मम विय ||

ह ििी ह वपरय कनया क भोग म रत सवसतरी स विमख (परसतरीगामी) ऐस बदधिशनय लोगो को मरा यह आतमवपरय परमबोध मन नही कहा | (158)

अभि वचक रत पाखड नादधसतकावदष |

मनसाऽवप न विवया गरगीता कदाचन ||

अभकत कपटी धतव पाखणडी नादधसतक इतावि को यह गरगीता कहन का मन म सोचना तक नही | (159)

गरवो िरवाः सदधि वशषयववततापरारकााः |

तमक दलधभ मनय वशषयहयततापरारकम ||

वशषय क धन को अपहरण करनिाल गर तो बहत ह लवकन वशषय क हिय का सताप हरनिाला एक गर भी िलवभ ह ऐसा म मानता हा | (160)

चातयधवादधनववकी च अधयातमजञानवान शवचाः |

मानस वनमधल यसय गरतव तसय शोभत ||

जो चतर हो वििकी हो अधयातम क जञाता हो पवितर हो तरथा वनमवल मानसिाल हो उनम गरतव शोभा पाता ह | (161)

गरवो वनमधलााः शािााः सारवो वमतभावषणाः |

कामकरोरवववनमधिााः सदाचारा वजतदधनदरयााः ||

गर वनमवल शात साध सवभाि क वमतभारी काम-करोध स अतत रवहत सिाचारी और वजतदधनदरय होत ह | (162)

सचकावद िभदन गरवो िहरा समतााः |

सवय समयक परीकषयाथ ततववनषठ भजतसरीाः ||

सचक आवि भि स अनक गर कह गय ह | वबदधिमान मनषय को सवय योगय विचार करक ततववनषठ सिगर की शरण लनी चावहए| (163)

वणधजालवमद तिदबाहयशासतर त लौवककम |

यदधसमन दवव समभयसत स गराः सचकाः समताः ||

ह ििी िणव और अकषरो स वसि करनिाल बाहय ल वकक शासतरो का वजसको अभास हो िह गर सचक गर कहलाता ह| (164)

वणाधशरमोवचता ववदया रमाधरमधववरावयनीम |

िविार गर ववदधि वाचकसतववत पावधवत ||

ह पािवती धमावधमव का विधान करनिाली िणव और आशरम क अनसार विदया का परिचन करनिाल गर को तम िाचक गर जानो | (165)

पचाकषयाधवदमतराणामपदिा त पावधवत |

स गरिोरको भयादभयोरमततमाः ||

पचाकषरी आवि मतरो का उपिश िनिाल गर बोधक गर कहलात ह | ह पािवती पररथम िो परकार क गरओ स यह गर उततम ह | (166)

मोरमारणवशयावदतचछमतरोपदवशधनम |

वनवषिगरररतयाहाः पदधणडतसततवदवशधनाः ||

मोहन मारण िशीकरण आवि तचछ मतरो को बतानिाल गर को ततविशी पवडत वनवरि गर कहत ह | (167)

अवनतयवमवत वनवदधशय ससार सकटालयम |

वरागयपथदशी याः स गरववधवरताः विय ||

ह वपरय ससार अवनत और िःखो का घर ह ऐसा समझाकर जो गर िरागय का मागव बतात ह ि विवहत गर कहलात ह | (168)

ततवमसयावदवाकयानामपदिा त पावधवत |

कारणाखयो गराः िोिो भवरोगवनवारकाः ||

ह पािवती ततवमवस आवि महािाको का उपिश िनिाल तरथा ससाररपी रोगो का वनिारण करनिाल गर कारणाखय गर कहलात ह | (169)

सवधसिरसिोरवनमधलनववचकषणाः |

जनममतयभयघो याः स गराः परमो मताः ||

सिव परकार क सनदहो का जड़ स नाश करन म जो चतर ह जनम मत तरथा भय का जो विनाश करत ह ि परम गर कहलात ह सिगर कहलात ह | (170)

िहजनमकतात पणयाललभयतऽसौ मरागराः |

लबधवाऽम न पनयाधवत वशषयाः ससारिनधनम ||

अनक जनमो क वकय हए पणयो स ऐस महागर परापत होत ह | उनको परापत कर वशषय पनः ससारबनधन म नही बाधता अरथावत मकत हो जाता ह | (171)

एव िहववरालोक गरवाः सदधि पावधवत |

तष सवधितनन सवयो वर परमो गराः ||

ह पिवती इस परकार ससार म अनक परकार क गर होत ह | इन सबम एक परम गर का ही सिन सिव परयतनो स करना चावहए | (172)

पावधतयवाच

सवय मढा मतयभीतााः सकताविरवत गतााः |

दववननवषिगरगा यवद तषा त का गवताः ||

पवधती न करा

परकवत स ही मढ मत स भयभीत सतकमव स विमख लोग यवि िियोग स वनवरि गर का सिन कर तो उनकी का गवत होती ह | (173)

शरीमरादव उवाच

वनवषिगरवशषयसत दिसकलपदवषताः |

बरहमिलयपयधि न पनयाधवत मतयताम ||

शरी मरादवजी िोल

वनवरि गर का वशषय िषट सकलपो स िवरत होन क कारण बरहमपरलय तक मनषय नही होता

पशयोवन म ही रहता ह | (174)

शरण ततववमद दवव यदा सयाविरतो नराः |

तदाऽसाववरकारीवत िोचयत शरतमसतकाः ||

ह ििी इस ततव को धयान स सनो | मनषय जब विरकत होता ह तभी िह अवधकारी कहलाता ह ऐसा उपवनरि कहत ह | अरथावत िि योग स गर परापत होन की बात अलग ह और विचार स गर चनन की बात अलग ह | (175)

अखणडकरस बरहम वनतयमि वनरामयम |

सवदधसमन सदवशधत यन स भवदसय दवशकाः ||

अखणड एकरस वनतमकत और वनरामय बरहम जो अपन अिर ही विखात ह ि ही गर होन चावहए | (176)

जलाना सागरो राजा यथा भववत पावधवत |

गरणा ततर सवषा राजाय परमो गराः ||

ह पािवती वजस परकार जलाशयो म सागर राजा ह उसी परकार सब गरओ म स य परम गर राजा ह | (177)

मोरावदरवरताः शािो वनतयतपतो वनराशरयाः |

तणीकतबरहमववषणवभवाः परमो गराः ||

मोहावि िोरो स रवहत शात वनत तपत वकसीक आशरयरवहत अरथावत सवाशरयी बरहमा और विषण क िभि को भी तणित समझनिाल गर ही परम गर ह | (178)

सवधकालववदशष सवततरो वनशचलससखी |

अखणडकरसासवादतपतो वर परमो गराः ||

सिव काल और िश म सवततर वनशचल सखी अखणड एक रस क आननद स तपत ही सचमच परम गर ह | (179)

िताितवववनमधिाः सवानभवतिकाशवान |

अजञानानधमशछतता सवधजञ परमो गराः ||

दवत और अदवत स मकत अपन अनभिरप परकाशिाल अजञानरपी अधकार को छिनिाल और सिवजञ ही परम गर ह | (180)

यसय दशधनमातरण मनसाः सयात िसननता |

सवय भयात रवतशशादधिाः स भवत परमो गराः ||

वजनक िशवनमातर स मन परसनन होता ह अपन आप धयव और शावत आ जाती ह ि परम गर ह | (181)

सवशरीर शव पशयन तथा सवातमानमियम |

याः सतरीकनकमोरघाः स भवत परमो गराः ||

जो अपन शरीर को शि समान समझत ह अपन आतमा को अदवय जानत ह जो कावमनी और कचन क मोह का नाशकताव ह ि परम गर ह | (182)

मौनी वागमीवत ततवजञो विराभचछण पावधवत |

न कवशचनमौवनना लाभो लोकऽदधसमनदभववत विय ||

वागमी ततकटससारसागरोततारणकषमाः |

यतोऽसौ सशयचछतता शासतरयकतयनभवतवभाः ||

ह पािवती सनो | ततवजञ िो परकार क होत ह | म नी और िकता | ह वपरय इन िोनो म स म नी गर दवारा लोगो को कोई लाभ नही होता परनत िकता गर भयकर ससारसागर को पार करान म समरथव होत ह | कोवक शासतर यदधकत (तकव ) और अनभवत स ि सिव सशयो का छिन करत ह | (183 184)

गरनामजपादयवव िहजनमावजधतानयवप |

पापावन ववलय यादधि नादधसत सिरमणववप ||

ह ििी गरनाम क जप स अनक जनमो क इकठठ हए पाप भी नषट होत ह इसम अणमातर सशय नही ह | (185)

कल रन िल शासतर िानधवाससोदरा इम |

मरण नोपयजयि गररको वर तारकाः ||

अपना कल धन बल शासतर नात-ररशतिार भाई य सब मत क अिसर पर काम नही आत | एकमातर गरिि ही उस समय तारणहार ह | (186)

कलमव पववतर सयात सतय सवगरसवया |

तपतााः सयससकला दवा बरहमादया गरतपधणात ||

सचमच अपन गरिि की सिा करन स अपना कल भी पवितर होता ह | गरिि क तपवण स बरहमा आवि सब िि तपत होत ह | (187)

सवरपजञानशनयन कतमपयकत भवत |

तपो जपावदक दवव सकल िालजलपवत ||

ह ििी सवरप क जञान क वबना वकय हए जप-तपावि सब कछ नही वकय हए क बराबर ह

बालक क बकिाि क समान (वयरथव) ह | (188)

न जानदधि पर ततव गरदीकषापराडमखााः |

भरािााः पशसमा हयत सवपररजञानववजधतााः ||

गरिीकषा स विमख रह हए लोग भरात ह अपन िासतविक जञान स रवहत ह | ि सचमच पश क समान ह | परम ततव को ि नही जानत | (189)

तसमातकवलयवसियथ गरमव भजदधतपरय |

गर ववना न जानदधि मढासततपरम पदम ||

इसवलय ह वपरय किलय की वसदधि क वलए गर का ही भजन करना चावहए | गर क वबना मढ लोग उस परम पि को नही जान सकत | (190)

वभदयत हदयगरदधनदधशछदयि सवधसशयााः |

कषीयि सवधकमाधवण गरोाः करणया वशव ||

ह वशि गरिि की कपा स हिय की गरदधि वछनन हो जाती ह सब सशय कट जात ह और सिव कमव नषट हो जात ह | (191)

कताया गरभिसत वदशासतरनसारताः |

मचयत पातकाद घोराद गरभिो ववशषताः ||

िि और शासतर क अनसार विशर रप स गर की भदधकत करन स गरभकत घोर पाप स भी मकत हो जाता ह | (192)

दाःसग च पररतयजय पापकमध पररतयजत |

वचततवचहनवमद यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

िजवनो का सग तागकर पापकमव छोड़ िन चावहए | वजसक वचतत म ऐसा वचहन िखा जाता ह उसक वलए गरिीकषा का विधान ह | (193)

वचतततयागवनयिशच करोरगवधववववजधताः |

ितभावपररतयागी तसय दीकषा ववरीयत ||

वचतत का ताग करन म जो परयतनशील ह करोध और गिव स रवहत ह दवतभाि का वजसन ताग वकया ह उसक वलए गरिीकषा का विधान ह | (194)

एतललकषणसयि सवधभतवरत रतम |

वनमधल जीववत यसय तसय दीकषा ववरीयत ||

वजसका जीिन इन लकषणो स यकत हो वनमवल हो जो सब जीिो क कलयाण म रत हो उसक वलए गरिीकषा का विधान ह | (195)

अतयिवचततपकवसय शरिाभदधियतसय च |

िविवयवमद दवव ममातमिीतय सदा ||

ह ििी वजसका वचतत अतनत पररपकव हो शरिा और भदधकत स यकत हो उस यह ततव सिा मरी परसननता क वलए कहना चावहए | (196)

सतकमधपररपाकाचच वचततशिसय रीमताः |

सारकसयव विवया गरगीता ियतनताः ||

सतकमव क पररपाक स शि हए वचततिाल बदधिमान साधक को ही गरगीता परयतनपिवक कहनी चावहए | (197)

नादधसतकाय कतघाय दावभकाय शठाय च |

अभिाय ववभिाय न वाचयय कदाचन ||

नादधसतक कतघन िभी शठ अभकत और विरोधी को यह गरगीता किावप नही कहनी चावहए | (198)

सतरीलोलपाय मखाधय कामोपरतचतस |

वनिकाय न विवया गरगीतासवभावताः ||

सतरीलमपट मखव कामिासना स गरसत वचततिाल तरथा वनिक को गरगीता वबलकल नही कहनी चावहए | (199)

एकाकषरिदातार यो गरनव मनयत |

शवनयोवनशत गतवा चाणडालषववप जायत ||

एकाकषर मतर का उपिश करनिाल को जो गर नही मानता िह स जनमो म कतता होकर वफर चाणडाल की योवन म जनम लता ह | (200)

गरतयागाद भवनमतयमधनतरतयागादयररदरता |

गरमतरपररतयागी रौरव नरक वरजत ||

गर का ताग करन स मत होती ह | मतर को छोड़न स िररदरता आती ह और गर एि मतर िोनो का ताग करन स र रि नरक वमलता ह | (201)

वशवकरोराद गरसतराता गरकरोरादधचछवो न वर |

तसमातसवधियतनन गरोराजञा न लघयत ||

वशि क करोध स गरिि रकषण करत ह लवकन गरिि क करोध स वशिजी रकषण नही करत | अतः सब परयतन स गरिि की आजञा का उललघन नही करना चावहए | (202)

सपतकोवटमरामतरावशचततववभरशकारकााः |

एक एव मरामतरो गरररतयकषरियम ||

सात करोड़ महामतर विदयमान ह | ि सब वचतत को भरवमत करनिाल ह | गर नाम का िो अकषरिाला मतर एक ही महामतर ह | (203)

न मषा सयावदय दवव मददधिाः सतयरवपवण |

गरगीतासम सतोतर नादधसत नादधसत मरीतल ||

ह ििी मरा यह करथन कभी वमथया नही होगा | िह सतसवरप ह | इस पथवी पर गरगीता क समान अनय कोई सतोतर नही ह | (204)

गरगीतावममा दवव भवदाःखववनावशनीम |

गरदीकषाववरीनसय परतो न पठतकववचत ||

भििःख का नाश करनिाली इस गरगीता का पाठ गरिीकषाविहीन मनषय क आग कभी नही करना चावहए | (205)

ररसयमतयिररसयमतनन पावपना लभयवमद मरशवरर |

अनकजनमावजधतपणयपाकाद गरोसत ततव लभत मनषयाः ||

ह महशवरी यह रहसय अतत गपत रहसय ह | पावपयो को िह नही वमलता | अनक जनमो क वकय हए पणय क पररपाक स ही मनषय गरततव को परापत कर सकता ह | (206)

सवधतीथधवगारसय सिापनोवत फल नराः |

गरोाः पादोदक पीतवा शष वशरवस रारयन ||

शरी सिगर क चरणामत का पान करन स और उस मसतक पर धारण करन स मनषय सिव तीरथो म सनान करन का फल परापत करता ह | (207)

गरपादोदक पान गरोरदधचछिभोजनम |

गरमधत सदा धयान गरोनाधमनाः सदा जपाः ||

गरिि क चरणामत का पान करना चावहए गरिि क भोजन म स बचा हआ खाना गरिि की मवतव का धयान करना और गरनाम का जप करना चावहए | (208)

गररको जगतसव बरहमववषणवशवातमकम |

गरोाः परतर नादधसत तसमातसपजयद गरम ||

बरहमा विषण वशि सवहत समगर जगत गरिि म समाविषट ह | गरिि स अवधक और कछ भी नही ह इसवलए गरिि की पजा करनी चावहए | (209)

जञान ववना मदधिपद लभयत गरभदधिताः |

गरोाः समानतो नानयत सारन गरमावगधणाम ||

गरिि क परवत (अननय) भदधकत स जञान क वबना भी मोकषपि वमलता ह | गर क मागव पर चलनिालो क वलए गरिि क समान अनय कोई साधन नही ह | (210)

गरोाः कपािसादन बरहमववषणवशवादयाः |

सामथयधमभजन सव सविदधसथतयतकमधवण ||

गर क कपापरसाि स ही बरहमा विषण और वशि यरथाकरम जगत की सवषट दधसरथवत और लय करन का सामथयव परापत करत ह | (211)

मतरराजवमद दवव गरररतयकषरियम |

समवतवदपराणाना सारमव न सशयाः ||

ह ििी गर यह िो अकषरिाला मतर सब मतरो म राजा ह शरषठ ह | समवतयाा िि और पराणो का िह सार ही ह इसम सशय नही ह | (212)

यसय िसादादरमव सव मययव सव पररकदधलपत च |

इतथ ववजानावम सदातमरप तसयावघरपदम िणतोऽदधसम वनतयम ||

म ही सब हा मझम ही सब कदधलपत ह ऐसा जञान वजनकी कपा स हआ ह ऐस आतमसवरप शरी सिगरिि क चरणकमलो म म वनत परणाम करता हा | (213)

अजञानवतवमरानधसय ववषयाकरािचतसाः |

जञानिभािदानन िसाद कर म िभो ||

ह परभो अजञानरपी अधकार म अध बन हए और विरयो स आकरानत वचततिाल मझको जञान का परकाश िकर कपा करो | (214)

|| इवत शरी सकािोततरखणड उमामरशवरसवाद शरी गरगीताया ततीयोऽधयायाः ||

परातः समररीय परम पजय

सत शरी आसारामजी बाप

क सससग परवचनो म स नवनीत

जीवन-रसायन

परसतावना

जीवन रसायन

गर भलकत एक अमोघ साधना

शरी राम-वलशषटठ सवाद

आसमबल का आवाहन

आसमबल कस जगाय

परसतावना इस पलसतका का एक-एक वाकय ऐसा सफललग ह कक वह हजार वषो क घनघोर अधकार को एक पल म ही घास की तरह जला कर भसम कर सकता ह | इसका हर एक वचन आसमजञानी महापरषो क अनतसतल स परकट हआ ह |

सामानय मनषटय को ऊपर उठाकर दवसव की उचचतम भलमका म पहाचान का सामथयक इसम तनदहत ह | पराचीन भारत की आरधयालसमक परमपरा म पोवषत महापरषो न समाचध दवारा अपन अलसतसव की गहराईयो म गोत लगाकर जो अगमय अगोचर अमत का खजाना पाया ह उस अमत क खजान को इस छोटी सी पलसतका म भरन का परयास ककया गया ह | गागर म सागर भरन का यह एक नमर परयास ह | उसक एक-एक वचन को सोपान बनाकर आप अपन लकषय तक पहाच सकत ह |

इसक सवन स मद क ददल म भी परार का सचार हो सकता ह | हताश तनराश दःखी चचलनतत होकर बठ हए मनषटय क ललय यह पलसतका अमत-सजीवनी क समान ह |

इस पलसतका को दतनक lsquoटॉतनकrsquo समझकर शरदधाभाव स धयक स इसका पठन चचनतन एव मनन करन स तो अवशय लाभ होगा ही लककन ककसी आसमवतता महापरष क शरीचररो म रहकर इसका शरवर-चचनतन एव मनन करन का सौभागय लमल जाय तब तो पछना( या कहना) ही कया

दतनक जीवन-वयवहार की थकान स ववशरातत पान क ललय चाल कायक स दो लमनट उपराम होकर इस पलसतका की दो-चार सवरक-कखरकाएा पढकर आसमसवरप म गोता लगाओ तन-मन-जीवन को आरधयालसमक तरगो स झकत होन दो जीवन-लसतार क तार पर परमासमा को खलन दो |

आपक शारीररक मानलसक व आरधयालसमक ताप-सताप शात होन लगग | जीवन म परम तलपत की तरग लहरा उठगी |

lsquoजीवन रसायनrsquo का यह ददवय कटोरा आसमरस क वपपासओ क हाथ म रखत हए सलमतत असयनत आननद का अनभव करती ह | ववशवास ह की अरधयासम क लजजञासओ क जीवन को ददवयामत स सरोबार करन म यह पलसतका उपयोगी लसदध होगी |

- शरी योग वदानत सवा सलमतत

अमदावाद आशरम

जीवन रसायन

1) जो मनषटय इसी जनम म मलकत परापत करना चाहता ह उस एक ही जनम म हजारो वषो का कम कर लना होगा | उस इस यग की रफ़तार स बहत आग तनकलना होगा | जस सवपन म मान-अपमान मरा-तरा अचछा-बरा ददखता ह और जागन क बाद उसकी ससयता नही रहती वस ही इस जागरत जगत म भी अनभव करना होगा | बसhellipहो गया हजारो वषो का काम परा | जञान की यह बात हदय म ठीक स जमा दनवाल कोई महापरष लमल जाय तो हजारो वषो क ससकार मर-तर क भरम को दो पल म ही तनवत कर द और कायक परा हो जाय |

2) यदद त तनज सवरप का परमी बन जाय तो आजीववका की चचनता रमखरयो शरवर-मनन और शतरओ का दखद समरर यह सब छट जाय |

उदर-धचनता षपरय चचाय

षवरही को जस खल |

तनज सवरप ि तनटठा हो तो

य सभी सहज िल ||

3) सवय को अनय लोगो की आाखो स दखना अपन वासतववक सवरप को न दखकर अपना तनरीकषर अनय लोगो की दलषटट स करना यह जो सवभाव ह वही हमार सब दःखो का कारर ह | अनय लोगो की दलषटट म खब अचछा ददखन की इचछा करना- यही हमारा सामालजक दोष ह |

4) लोग कयो दःखी ह कयोकक अजञान क कारर व अपन ससयसवरप को भल गय ह और अनय लोग जसा कहत ह वसा ही अपन को मान बठत ह | यह दःख तब तक दर नही होगा जब तक मनषटय आसम-साकषासकार नही कर लगा |

5) शारीररक मानलसक नततक व आरधयालसमक य सब पीड़ाएा वदानत का अनभव करन स तरत दर होती ह औरhellipकोई आसमतनषटठ महापरष का सग लमल जाय तो वदानत का अनभव करना

कदठन कायक नही ह |

6) अपन अनदर क परमशवर को परसनन करन का परयास करो | जनता एव बहमतत को आप ककसी परकार स सतषटट नही कर सकत | जब आपक आसमदवता परसनन होग तो जनता आपस अवशय सतषटट होगी |

7) सब वसतओ म बरहमदशकन करन म यदद आप सफल न हो सको तो लजनको आप सबस अचधक परम करत हो ऐस कम-स-कम एक वयलकत म बरहम परमासमा का दशकन करन का परयास करो | ऐस ककसी तसवजञानी महापरष की शरर पा लो लजनम बरहमानद छलकता हो | उनका दलषटटपात होत ही आपम भी बरहम का परादभाकव होन की समभावना पनपगी | जस एकस-र मशीन की ककरर कपड़ चमड़ी मास को चीरकर हडडडयो का फोटो खीच लाती ह वस ही जञानी की दलषटट आपक चचतत म रहन वाली दहारधयास की परत चीरकर आपम ईशवर को तनहारती ह |

उनकी दलषटट स चीरी हई परतो को चीरना अपक ललय भी सरल हो जायगा | आप भी सवय म ईशवर को दख सक ग | अतः अपन चचतत पर जञानी महापरष की दलषटट पड़न दो | पलक चगराय तरबना अहोभाव स उनक समकष बठो तो आपक चचतत पर उनकी दलषटट पड़गी |

8) जस मछललयाा जलतनचध म रहती ह पकषी वायमडल म ही रहत ह वस आप भी जञानरप परकाशपज म ही रहो परकाश म चलो परकाश म ववचरो परकाश म ही अपना अलसतसव रखो |

कफर दखो खान-पीन का मजा घमन-कफरन का मजा जीन-मरन का मजा |

9) ओ तफान उठ जोर-शोर स आाधी और पानी की वषाक कर द | ओ आननद क महासागर पथवी और आकाश को तोड़ द | ओ मानव गहर स गहरा गोता लगा लजसस ववचार एव चचनताएा तछनन-लभनन हो जाय | आओ अपन हदय स दवत की भावना को चन-चनकर बाहर तनकाल द लजसस आननद का महासागर परसयकष लहरान लग |

ओ परम की मादकता त जकदी आ | ओ आसमरधयान की आसमरस की मददरा त हम पर जकदी आचछाददत हो जा | हमको तरनत डबो द | ववलमब करन का कया परयोजन मरा मन अब एक पल भी दतनयादारी म फा सना नही चाहता | अतः इस मन को पयार परभ म डबो द | lsquoम और मरा hellipत और तराrsquo क ढर को आग लगा द | आशका और आशाओ क चीथड़ो को उतार फ क | टकड़-टकड़ करक वपघला द | दवत की भावना को जड़ स उखाड़ द | रोटी नही लमलगी कोई परवाह नही | आशरय और ववशराम नही लमलगा कोई कफकर नही | लककन मझ चादहय परम की उस ददवय परम की पयास और तड़प |

िझ वद पराण करान स कया

िझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

िझ िहदर िषसजद जाना नही |

िझ परि का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊ च या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो िहदर िषसजद चचय जहा |

न हो प जा निाज ि फकय कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

रर वार मसगार हो तयाग जहा ||

जहा परि ही परि की सषटि मिल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा ||

10) सवपनावसथा म दषटटा सवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की ककपना क आधार पर लसह लसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सलषटट का सजकन कर लता ह |

उस सलषटट म सवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल सवपन म ससय का भान न होन स दःखी होता ह | सवपन स जाग जाय तो पता चल कक सवय क लसवाय और कोई था ही नही | सारा परपच ककपना स रचा गया था | इसी परकार यह जगत जागरत क दवारा कलकपत ह वासतववक नही ह | यदद जागरत का दषटटा अपन आसमसवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दाररिय पल भर म अदशय हो जाय |

11) सवगक का सामराजय आपक भीतर ही ह | पसतको म मददरो म तीथो म पहाड़ो म जगलो म आनद की खोज करना वयथक ह | खोज करना ही हो तो उस अनतसथ आसमानद का खजाना खोल दनवाल ककसी तसववतता महापरष की खोज करो |

12) जब तक आप अपन अतःकरर क अनधकार को दर करन क ललए कदटबदध नही होग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कषटर अवतार ल ल कफर भी आपको परम लाभ नही होगा |

13) शरीर अनदर क आसमा का वसतर ह | वसतर को उसक पहनन वाल स अचधक पयार मत करो |

14) लजस कषर आप सासाररक पदाथो म सख की खोज करना छोड़ दग और सवाधीन हो जायग अपन अनदर की वासतववकता का अनभव करग उसी कषर आपको ईशवर क पास जाना नही पड़गा | ईशवर सवय आपक पास आयग | यही दवी ववधान ह |

15) िोधी यदद आपको शाप द और आप समसव म लसथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवाकद म बदल जायगा |

16) जब हम ईशवर स ववमख होत ह तब हम कोई मागक नही ददखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ईशवर म तनमय होत ह तब योगय उपाय योगय परवतत योगय परवाह अपन-आप हमार हदय म उठन लगता ह |

17) जब तक मनषटय चचनताओ स उदववगन रहता ह इचछा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बदचध का चमसकार परकट नही होता | जजीरो स जकड़ी हई बदचध दहलडल नही सकती | चचनताएा इचछाएा और वासनाएा शात होन स सवततर वायमडल का अववभाकव होता ह |

उसम बदचध को ववकलसत होन का अवकाश लमलता ह | पचभौततक बनधन कट जात ह और शदध आसमा अपन परक परकाश म चमकन लगता ह |

18) ओ सजा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सजा का हकम ललखन क ललय कलम लकर तसपर हो उस समय यदद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना तनरकय भल तरबना नही रह सकता | कफ़र उसकी कलम स वही ललखा जायगा जो परमासमा क साथ तरी नतन लसथतत क अनकल होगा |

19) पववतरता और सचचाई ववशवास और भलाई स भरा हआ मनषटय उननतत का झणडा हाथ म लकर जब आग बढता ह तब ककसकी मजाल कक बीच म खड़ा रह यदद आपक ददल म पववतरता सचचाई और ववशवास ह तो आपकी दलषटट लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक ववचारो की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाहो आग स हट जाओ | यह ददल का बादशाह पधार रहा ह |

20) यदद आप ससार क परलोभनो एव धमककयो स न दहल तो ससार को अवशय दहला दग |

इसम जो सनदह करता ह वह मदमतत ह मखक ह |

21) वदानत का यह लसदधात ह कक हम बदध नही ह बलकक तनसय मकत ह | इतना ही नही lsquoबदध हrsquo यह सोचना भी अतनषटटकारी ह भरम ह | जयो ही आपन सोचा कक lsquoम बदध हाhellip दबकल हाhellip असहाय हाhelliprsquo सयो ही अपना दभाकगय शर हआ समझो | आपन अपन परो म एक जजीर और बााध दी | अतः सदा मकत होन का ववचार करो और मलकत का अनभव करो |

22) रासत चलत जब ककसी परततलषटठत वयलकत को दखो चाह वह इगलड़ का सवाकधीश हो चाह अमररका का lsquoपरलसड़टrsquo हो रस का सवसवाक हो चाह चीन का lsquoडड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म ककसी परकार की ईषटयाक या भय क ववचार मत आन दो | उनकी शाही नजर को अपनी ही नजर समझकर मजा लटो कक lsquoम ही वह हा |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की चषटटा करग तब आपका अनभव ही लसदध कर दगा कक सब एक ही ह |

23) यदद हमारा मन ईषटयाक-दवष स रदहत तरबककल शदध हो तो जगत की कोई वसत हम नकसान नही पहाचा सकती | आनद और शातत स भरपर ऐस महासमाओ क पास िोध की मतत क जसा मनषटय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महासमाओ को दख कर जगल क लसह और भड़ भी परमववहवल हो जात ह | साप-तरबचछ भी अपना दषटट सवभाव भल जात ह |

24) अववशवास और धोख स भरा ससार वासतव म सदाचारी और ससयतनषटठ साधक का कछ तरबगाड़ नही सकता |

25) lsquoसमपरक ववशव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स मकत ह |

वह तो अननत ह | कफ़र कहाा स आयगा और कहाा जायगा सारा बरहमाणड़ उसी म ह |

26) ककसी भी परसग को मन म लाकर हषक-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हाhellip अमर हाhellip मरा जनम नहीhellip मरी मसय नहीhellip म तनललकपत आसमा हाhelliprsquo यह भाव दढता स हदय म धारर करक जीवन जीयो | इसी भाव का तनरनतर सवन करो | इसीम सदा तकलीन रहो |

27) बाहय सदभो क बार म सोचकर अपनी मानलसक शातत को भग कभी न होन दो |

28) जब इलनियाा ववषयो की ओर जान क ललय जबरदसती करन लग तब उनह लाल आाख ददखाकर चप कर दो | जो आसमानद क आसवादन की इचछा स आसमचचतन म लगा रह वही सचचा धीर ह |

29) ककसी भी चीज को ईशवर स अचधक मकयवान मत समझो |

30) यदद हम दहालभमान को सयागकर साकषात ईशवर को अपन शरीर म कायक करन द तो भगवान बदध या जीसस िाईसट हो जाना इतना सरल ह लजतना तनधकन पाल (Poor Paul) होना |

31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर सवय को उसका परभ मानो |

हम अपन नौकर मन की उपकषा करग तो कछ ही ददनो म वह हमार वश म हो जायगा | मन क चचल भावो को ना दखकर अपन शानत सवरप की ओर रधयान दग तो कछ ही ददनो म मन नषटट होन लगगा | इस परकार साधक अपन आनदसवरप म मगन हो सकता ह |

32) समगर ससार क तसवजञान ववजञान गखरत कावय और कला आपकी आसमा म स तनकलत ह और तनकलत रहग |

33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को लपत कर ददया ह | परयसनरपी तरगो म अनत सामथयकरपी समि को छपा ददया ह |

34) परमासमा की शालनत को भग करन का सामथयक भला ककसम ह यदद आप सचमच परमासम-शालनत म लसथत हो जाओ तो समगर ससार उलटा होकर टग जाय कफ़र भी आपकी शालनत भग नही हो सकती |

35) महासमा वही ह जो चचतत को ड़ावाड़ोल करनवाल परसग आय कफ़र भी चचतत को वश म रख

िोध और शोक को परववषटट न होन द |

36) वतत यदद आसमसवरप म लीन होती ह तो उस सससग सवारधयाय या अनय ककसी भी काम क ललय बाहर नही लाना चदहय |

37) सदढ अचल सककप शलकत क आग मसीबत इस परकार भागती ह जस आाधी-तफ़ान स बादल तरबखर जात ह |

38) सषलपत (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह कक जागरत का जगत चाह ककतना ही पयारा और सदर लगता हो पर उस भल तरबना शालनत नही लमलती | सषलपत म बलात ववसमरर हो उसकी ससयता भल जाय तो छः घट तनिा की शालनत लमल | जागरत म उसकी ससयता का अभाव लगन लग तो परम शालनत को परापत पराजञ परष बन जाय | तनिा रोजाना सीख दती ह कक यह ठोस जगत जो आपक चचतत को भरलमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा

रहा ह | घबराओ नही चचलनतत मत हो तम बातो म चचतत को भरलमत मत करो | सब कछ सवपन म सरकता जा रहा ह | जगत की ससयता क भरम को भगा दो |

ओ शलकतमान आसमा अपन अतरतम को तनहार ॐ का गजन कर दबकल ववचारो एव चचताओ को कचल ड़ाल दबकल एव तचछ ववचारो तथा जगत को ससय मानन क कारर तन बहत-बहत सहन ककया ह | अब उसका अत कर द |

39) जञान क कदठनमागक पर चलत वकत आपक सामन जब भारी कषटट एव दख आय तब आप उस सख समझो कयोकक इस मागक म कषटट एव दख ही तनसयानद परापत करन म तनलमतत बनत ह | अतः उन कषटटो दखो और आघातो स ककसी भी परकार साहसहीन मत बनो तनराश मत बनो |

सदव आग बढत रहो | जब तक अपन ससयसवरप को यथाथक रप स न जान लो तब तक रको नही |

40) सवपनावसथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह कक वह आपको खा जायगा | परत आप लजसको दखत ह वह शर नही आप सवय ह | शर आपकी ककपना क अततररकत और कछ नही |

इस परकार जागरतावसथा म भी आपका घोर-स-घोर शतर भी सवय आप ही ह दसरा कोई नही |

परथकसव अलगाव क ववचार को अपन हदय स दर हटा दो | आपस लभनन कोई लमतर या शतर होना कवल सवपन-भरम ह |

41) अशभ का ववरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका सवागत करो चाह आपकी इचछा की धारा स ववपरीत भी हो | तब आप दखग कक परसयकष बराई भलाई म बदल जायगी |

42) रातरतर म तनिाधीन होन स पहल तरबसतर पर सीध सखपवकक बठ जाओ | आाख बद करो |

नाक स शवास लकर फ़फ़ड़ो को भरपर भर दो | कफ़र उचच सवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उचचारर करो | कफ़र स गहरा सवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उचचारर करो | इस परकार दस लमनट तक करो |

कछ ही ददनो क तनयलमत परयोग क बाद इसक चमसकार का अनभव होगा | रातरतर की नीद साधना म परररत हो जायगी | ददल-ददमाग म शातत एव आनद की वषाक होगी | आपकी लौककक तनिा योगतनिा म बदल जयगी |

43) हट जाओ ओ सककप और इचछाओ हट जाओ तम ससार की कषरभगर परशसा एव धन-समपवतत क साथ समबध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह |

44) ककसी भी तरह समय तरबतान क ललय मजदर की भातत काम मत करो | आनद क ललय

उपयोगी कसरत समझकर सख िीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भातत काम करो | दब हए कचल हए ददल स कभी कोई काम हाथ म मत लो |

45) समगर ससार को जो अपना शरीर समझत ह परसयक वयलकत को जो अपना आसमसवरप समझत ह ऐस जञानी ककसस अपरसनन होग उनक ललय ववकषप कहाा रहा

46) ससार की तमाम वसतऐ सखद हो या भयानक वासतव म तो तमहारी परफ़लता और आनद क ललय ही परकतत न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ तमहारी नादानी ही तमह चककर म ड़ालती ह | अनयथा तमह नीचा ददखान वाला कोई नही | पकका तनशचय रखो कक यह जगत तमहार ककसी शतर न नही बनाया | तमहार ही आसमदव का यह सब ववलास ह |

47) महासमा व ह लजनकी ववशाल सहानभतत एव लजनका मातवत हदय सब पावपयो को दीन-दखखयो को परम स अपनी गोद म सथान दता ह |

48) यह तनयम ह कक भयभीत परारी ही दसरो को भयभीत करता ह | भयरदहत हए तरबना अलभननता आ नही सकती अलभननता क तरबना वासनाओ का अत समभव नही ह और तनवाकसतनकता क तरबना तनवरता समता मददता आदद ददवय गर परकट नही होत | जो बल दसरो की दबकलता को दर ना कर सक वह वासतव म बल नही |

49) रधयान म बठन स पहल अपना समगर मानलसक चचतन तथा बाहर की तमाम समपवतत ईशवर क या सदगर क चररो म अपकर करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हातन नही होगी |

ईशवर आपकी समपवतत दह परार और मन की रकषा करग | ईशवर अपकर बदचध स कभी हातन नही होती | इतना ही नही दह परार म नवजीवन का लसचन होता ह | इसस आप शातत व आनद का सतरोत बनकर जीवन को साथकक कर सक ग | आपकी और पर ववशव की वासतववक उननतत होगी |

50) परकतत परसननचचतत एव उदयोगी कायककताक को हर परकार स सहायता करती ह |

51) परसननमख रहना यह मोततयो का खजाना दन स भी उततम ह |

52) चाह करोड़ो सयक का परलय हो जाय चाह असखय चनिमा वपघलकर नषटट हो जाय परत जञानी महापरष अटल एव अचल रहत ह |

53) भौततक पदाथो को ससय समझना उनम आसलकत रखना दख-ददक व चचताओ को आमतरर

दन क समान ह | अतः बाहय नाम-रप पर अपनी शलकत व समय को नषटट करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन वयलकतसव ववषयक ववचारो का सवकथा सयाग कर ददया जाता ह तब उसक समान अनय कोई सख नही उसक समान शरषटठ अनय कोई अवसथा नही |

55) जो लोग आपको सबस अचधक हातन पहाचान का परयास करत ह उन पर कपापरक होकर परममय चचतन कर | व आपक ही आसमसवरप ह |

56) ससार म कवल एक ही रोग ह | बरहि सतय जगषनिथया - इस वदाततक तनयम का भग ही सवक वयाचधयो का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवक वयाचधयो की एक ही दवा ह अपन वासतववक सवरप बरहमसव म जाग जाना |

57) बदध रधयानसथ बठ थ | पहाड़ पर स एक लशलाखड़ लढकता हआ आ रहा था | बदध पर चगर इसस पहल ही वह एक दसर लशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज क साथ उसक दो भाग हो गय | उसन अपना मागक बदल ललया | रधयानसथ बदध की दोनो तरफ़ स दोनो भाग गजर गय | बदध बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | बदध सवसथता स उठ खड़ हए और लशषटयो स कहा

ldquoभीकषओ समयक समाचध का यह जवलत परमार ह | म यदद रधयान-समाचध म ना होता तो लशलाखड़ न मझ कचल ददया होता | लककन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स लसफ़क एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा जखम हआ ह वह रधयान की परकता म रही हई कछ नयनता का पररराम ह | यदद रधयान परक होता तो इतना भी ना लगता |rdquo

58) कहाा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहाा ह वह शसतर जो मझ घायल कर सक कहाा ह वह ववपवतत जो मरी परसननता को तरबगाड़ सक कहाा ह वह दख जो मर सख म ववघन ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा ववजय-परालपत का ददन आ पहाचा ह | कोई ससाररक तरग मर तनशछल चचतत को आदोललत नही कर सकती | इन तरगो स मझ ना कोई लाभ ह ना हातन ह | मझ शतर स दवष नही लमतर स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इचछा नही और दख स दवष नही कयोकक यह सब मन म रहता ह और मन लमथया ककपना ह |

59) समपरक सवासथय की अजीब यलकत रोज सबह तलसी क पााच पतत चबाकर एक गलास बासी पानी पी लो | कफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पजो क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर सवसथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर शवास लो | आग-पीछ क कतकवयो स तनलशचत हो जाओ | आरोगयता आनद सख शालनत परदान करनवाली ववचारधारा को चचतत म बहन दो | तरबमारी क ववचार को हटाकर इस परकार की भावना पर मन को दढता स एकागर करो कक

मर अदर आरोगयता व आनद का अनत सतरोत परवादहत हो रहा हhellip मर अतराल म ददवयामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा हा कक समगर सख आरोगयता शलकत मर भीतर ह | मर मन म अननत शलकत और सामथयक ह | म सवसथ हा | परक परसनन हा | मर अदर-बाहर सवकतर परमासमा का परकाश फ़ला हआ ह | म ववकषप रदहत हा | सब दवनदो स मकत हा | सवगीय सख मर अदर ह | मरा हदय परमासमा का गपत परदश ह | कफ़र रोग-शोक वहाा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म परववषटट हो चका हा | वह मर सवासथय का परदश ह | म तज का पाज हा | आरोगयता का अवतार हा |

याद रखो आपक अतःकरर म सवासथय सख आनद और शालनत ईशवरीय वरदान क रप म ववदयमान ह | अपन अतःकरर की आवाज सनकर तनशक जीवन वयतीत करो | मन म स कलकपत रोग क ववचारो को तनकाल दो | परसयक ववचार भाव शबद और कायक को ईशवरीय शलकत स पररपरक रखो | ॐकार का सतत गजन करो |

सबह-शाम उपरोकत ववचारो का चचतन-मनन करन स ववशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाततhellip

परक सवसथhellip परक परसननhellip

60) भय कवल अजञान की छाया ह दोषो की काया ह मनषटय को धमकमागक स चगरान वाली आसरी माया ह |

61) याद रखो चाह समगर ससार क तमाम पतरकार तननदक एकतरतरत होकर आपक ववरध आलोचन कर कफ़र भी आपका कछ तरबगाड़ नही सकत | ह अमर आसमा सवसथ रहो |

62) लोग परायः लजनस घरा करत ह ऐस तनधकन रोगी इसयादद को साकषात ईशवर समझकर उनकी सवा करना यह अननय भलकत एव आसमजञान का वासतववक सवरप ह |

63) रोज परातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स चचतत को सराबोर कर दो कक lsquoम शरीर नही हा | सब परारी कीट पतग गनधवक म मरा ही आसमा ववलास कर रहा ह | अर

उनक रप म म ही ववलास कर रहा हा | rsquo भया हर रोज ऐसा अभयास करन स यह लसदधात हदय म लसथर हो जायगा |

64) परमी आग-पीछ का चचनतन नही करता | वह न तो ककसी आशका स भयभीत होता ह और न वततकमान पररलसथतत म परमासपद म परीतत क लसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक परतततरबमब क आशरयभत दपकर की ओर रधयान न दकर परतततरबमब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समगर सथल परपच क आशरयभत आकाश की ओर रधयान न दकर कवल सथल परपच की ओर रधयान दत ह वस ही नाम-रप क भकत सथल दलषटट क लोग अपन दभाकगय क कारर समगर ससार क आशरय सलचचदाननद परमासमा का रधयान न करक ससार क पीछ पागल होकर भटकत रहत ह |

66) इस समपरक जगत को पानी क बलबल की तरह कषरभगर जानकर तम आसमा म लसथर हो जाओ | तम अदवत दलषटटवाल को शोक और मोह कस

67) एक आदमी आपको दजकन कहकर पररलचछनन करता ह तो दसरा आपको सजजन कहकर भी पररलचछनन ही करता ह | कोई आपकी सततत करक फला दता ह तो कोई तननदा करक लसकड़ा दता ह | य दोनो आपको पररलचछनन बनात ह | भागयवान तो वह परष ह जो तमाम बनधनो क ववरदध खड़ा होकर अपन दवसव की अपन ईशवरसव की घोषरा करता ह अपन आसमसवरप का अनभव करता ह | जो परष ईशवर क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदकचगदक क लोगो क समकष समगर ससार क समकष तनडर होकर ईशवरसव का तनरपर कर सकता ह उस परष को ईशवर मानन क ललय सारा ससार बारधय हो जाता ह | परी सलषटट उस अवशय परमासमा मानती ह |

68) यह सथल भौततक पदाथक इलनियो की भरातत क लसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही लमलती | सकषम लसदधात अथाकत ससय आसम-तसव पर तनभकर रहना ही सफलता की कजी ह | उस गरहर करो उसका मनन करो और वयवहार करो |

कफर नाम-रप आपको खोजत कफरग |

69) सख का रहसय यह ह आप जयो-जयो पदाथो को खोजत-कफरत हो सयो-सयो उनको खोत जात हो | आप लजतन कामना स पर होत हो उतन आवशयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथक भी आपका पीछा करत हए आत ह |

70) आननद स ही सबकी उसपवतत आननद म ही सबकी लसथतत एव आननद म ही सबकी लीनता

दखन स आननद की परकता का अनभव होता ह |

71) हम बोलना चहत ह तभी शबदोचचारर होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का दशय ददखता ह नतर बद कर ल तो नही ददखता | हम जानना चाह तभी पदाथक का जञान होता ह जानना नही चाह तो जञान नही होता | अतः जो कोई पदाथक दखन सनन या जानन म आता ह उसको बाचधत करक बाचधत करनवाली जञानरपी बदचध की ववतत को भी बाचधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह जञाता ह | जञातसव धमकरदहत शदधसवरप जञाता ही तनसय सलचचदाननद बरहम ह | तनरतर ऐसा वववक करत हए जञान व जञयरदहत कवल चचनमय

तनसय ववजञानाननदघनरप म लसथर रहो |

72) यदद आप सवाागपरक जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की चचनता छोड़ो | अपन चारो ओर जीवन क बीज बोओ | भववषटय म सनहर सवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क ललय मन म यह बात पककी बठा दो कक आपका आनवाला कल असयनत परकाशमय

आननदमय एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अचधक भागयवान पायग | आपका मन सजकनासमक शलकत स भर जायगा | जीवन ऐशवयकपरक हो जायगा | आपम इतनी शलकत ह कक ववघन आपस भयभीत होकर भाग खड़ होग | ऐसी ववचारधारा स तनलशचत रप स ककयार होगा | आपक सशय लमट जायग |

73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वसतओ को आकषकक बना दता ह | अपनी पयार भरी दलषटट उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ जाती ह औरhellipकफर त ही उनक पयार म फ़ा स जाता ह |

74) मन ववचचतर एव अटपट मागो दवारा ऐस तसवो की खोज की जो मझ परमासमा तक पहाचा सक | लककन म लजस-लजस नय मागक पर चला उन सब मागो स पता चला कक म परमासमा स दर चला गया | कफर मन बदचधमतता एव ववदया स परमासमा की खोज की कफर भी परमासमा स अलग रहा | गरनथालयो एव ववदयालयो न मर ववचारो म उकटी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | तनसतबध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका रधयान ककया तो उस अनतदकलषटट स मझ सवकसव लमला लजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आसमसवरप सवकतर वयापत हो रहा ह |

75) जस सामानय मनषटय को पसथर गाय भस सवाभाववक रीतत स दलषटटगोचर होत ह वस ही जञानी को तनजाननद का सवाभाववक अनभव होता ह |

76) वदानत का यह अनभव ह कक नीच नराधम वपशाच शतर कोई ह ही नही | पववतर सवरप

ही सवक रपो म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अतनषटट नही करता | मर लसवा और कछ ह ही नही तो मरा अतनषटट करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा

77) यह चराचर सलषटटरपी दवत तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह | मन शात होत ही दवत की गध तक नही रहती |

78) लजस परकार एक धाग म उततम मरधयम और कतनषटठ फल वपरोय हए ह उसी परकार मर आसमसवरप म उततम मरधयम और कतनषटठ शरीर वपरोय हए ह | जस फलो की गरवतता का परभाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीरो की गरवतता का परभाव मरी सवकवयापकता नही पड़ता |

जस सब फलो क ववनाश स धाग को कोई हातन नही वस शरीरो क ववनाश स मझ सवकगत आसमा को कोई हातन नही होती |

79) म तनमकल तनशचल अननत शदध अजर अमर हा | म अससयसवरप दह नही | लसदध परष इसीको lsquoजञानrsquo कहत ह |

80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | साकषात आननद स पररपरक कवल तनरनतर और सवकतर एक बरहम ही ह | उदवग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो |

81) जब आप जान लग कक दसरो का दहत अपना ही दहत करन क बराबर ह और दसरो का अदहत करना अपना ही अदहत करन क बराबर ह तब आपको धमक क सवरप का साकषसकार हो जायगा |

82) आप आसम-परततषटठा दलबनदी और ईषटयाक को सदा क ललए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदमो म नयोछावर होन का इतजार कर रहा ह |

83) म तनगकर तनलषटिय तनसय मकत और अचयत हा | म अससयसवरप दह नही हा | लसदध परष इसीको lsquoजञानrsquo कहत ह |

84) जो दसरो का सहारा खोजता ह वह ससयसवरप ईशवर की सवा नही कर सकता |

85) ससयसवरप महापरष का परम सख-दःख म समान रहता ह सब अवसथाओ म हमार अनकल रहता ह | हदय का एकमातर ववशरामसथल वह परम ह | वदधावसथा उस आसमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई ववरला भागयवान ही ऐस ददवय परम का भाजन बन सकता ह |

86) शोक और मोह का कारर ह पराखरयो म ववलभनन भावो का अरधयारोप करना | मनषटय जब एक को सख दनवाला पयारा सहद समझता ह और दसर को दःख दनवाला शतर समझकर उसस दवष करता ह तब उसक हदय म शोक और मोह का उदय होना अतनवायक ह | वह जब सवक पराखरयो म एक अखणड सतता का अनभव करन लगगा पराखरमातर को परभ का पतर समझकर उस आसमभाव स पयार करगा तब उस साधक क हदय म शोक और मोह का नामोतनशान नही रह जायगा | वह सदा परसनन रहगा | ससार म उसक ललय न ही कोई शतर रहगा और न ही कोई लमतर | उसको कोई कलश नही पहाचायगा | उसक सामन ववषधर नाग भी अपना सवभाव भल जायगा |

87) लजसको अपन परारो की परवाह नही मसय का नाम सनकर ववचललत न होकर उसका सवागत करन क ललए जो सदा तसपर ह उसक ललए ससार म कोई कायक असारधय नही | उस ककसी बाहय शसतरो की जररत नही साहस ही उसका शसतर ह | उस शसतर स वह अनयाय का पकष लनवालो को परालजत कर दता ह कफर भी उनक ललए बर ववचारो का सवन नही करता |

88) चचनता ही आननद व उकलास का ववरधवस करनवाली राकषसी ह |

89) कभी-कभी मरधयरातरतर को जाग जाओ | उस समय इलनियाा अपन ववषयो क परतत चचल नही रहती | बदहमकख सफरर की गतत मनद होती ह | इस अवसथा का लाभ लकर इलनियातीत अपन चचदाकाश सवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इलनियो क अभाव म भी अपन अखणड अलसतसव को जानो |

90) दशय म परीतत नही रहना ही असली वरागय ह |

91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार ववचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की तनवतत करनी चदहए | लककन जो ववचारवान परष ह वह कवल रोगतनवतत क पीछ ही नही लग जाता |

वह तो यह तनगरानी रखता ह कक भयकर दःख क समय भी अपना ववचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक परार नही सयागता कयोकक वह जानता ह कक रोग उसका दास ह |

रोग कसा भी भय ददखाय लककन ववचारवान परष इसस परभाववत नही होता |

92) लजस साधक क पास धाररा की दढता एव उदयशय की पववतरता य दो गर होग वह अवशय ववजता होगा | इन दो शासतरो स ससलजजत साधक समसत ववघन-बाधाओ का सामना करक आखखर म ववजयपताका फहरायगा |

93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका तनशचय नही होगा कक सलषटट शभ ह तब तक

मन एकागर नही होगा | जब तक हम समझत रहग कक सलषटट तरबगड़ी हई ह तब तक मन सशक दलषटट स चारो ओर दौड़ता रहगा | सवकतर मगलमय दलषटट रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा |

94) आसन लसथर करन क ललए सककप कर कक जस पथवी को धारर करत हए भी शषजी तरबककल अचल रहत ह वस म भी अचल रहागा | म शरीर और परार का दषटटा हा |

95) lsquoससार लमथया हrsquo - यह मद जञानी की धाररा ह | lsquoससार सवपनवत हrsquo - यह मरधयम जञानी की धाररा ह | lsquoससार का असयनत अभाव ह ससार की उसपवतत कभी हई ही नहीrsquo - यह उततम जञानी की धाररा ह |

96) आप यदद भलकतमागक म हो तो सारी सलषटट भगवान की ह इसललए ककसीकी भी तननदा करना ठीक नही | आप यदद जञानमागक म हो तो यह सलषटट अपना ही सवरप ह | आप अपनी ही तननदा कस कर सकत ह इस परकार दोनो मागो म परतननदा का अवकाश ही नही ह |

97) दशय म दषटटा का भान एव दषटटा म दशय का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अवववक या अजञान ह | दषटटा को दषटटा तथा दशय को दशय समझना ही वववक या जञान ह |

98) आसन व परार लसथर होन स शरीर म ववदयत पदा होती ह | शरीर क दवारा जब भी किया की जाती ह तब वह ववदयत बाहर तनकल जाती ह | इस ववदयत को शरीर म रोक लन स शरीर तनरोगी बन जाता ह |

99) सवपन की सलषटट अकपकालीन और ववचचतर होती ह | मनषटय जब जागता ह तब जानता ह कक म पलग पर सोया हा | मझ सवपन आया | सवपन म पदाथक दश काल किया इसयादद परी सलषटट का सजकन हआ | लककन मर लसवाय और कछ भी न था | सवपन की सलषटट झठी थी |

इसी परकार तसवजञानी परष अजञानरपी तनिा स जञानरपी जागरत अवसथा को परापत हए ह | व कहत ह कक एक बरहम क लसवा अनय कछ ह ही नही | जस सवपन स जागन क बाद हम सवपन की सलषटट लमथया लगती ह वस ही जञानवान को यह जगत लमथया लगता ह |

100) शारीररक कषटट पड़ तब ऐसी भावना हो जाय कक lsquoयह कषटट मर पयार परभ की ओर स हhelliprsquo तो वह कषटट तप का फल दता ह |

101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय हो भख वयाकल कर रही हो बदचध ववचार करन म लशचथल हो गई हो ककसी पड़ क नीच पड़ हो जीवन असमभव हो रहा हो मसय का आगमन

हो रहा हो तब भी अनदर स वही तनभकय रधवतन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मसय नहीhellipमझ भख नहीhellipपयास नहीhellip परकतत की कोई भी वयथा मझ नषटट नही कर सकतीhellipम वही हाhellipवही हाhelliprsquo

102) लजनक आग वपरय-अवपरय अनकल-परततकल सख-दःख और भत-भववषटय एक समान ह ऐस जञानी आसमवतता महापरष ही सचच धनवान ह |

103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल रसन जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही सचच समराट ह |

104) सवपन स जाग कर जस सवपन को भल जात ह वस जागरत स जागकर थोड़ी दर क ललए जागरत को भल जाओ | रोज परातः काल म पनिह लमनट इस परकार ससार को भल जान की आदत डालन स आसमा का अनसधान हो सकगा | इस परयोग स सहजावसथा परापत होगी |

105) सयाग और परम स यथाथक जञान होता ह | दःखी परारी म सयाग व परम ववचार स आत ह | सखी परारी म सयाग व परम सवा स आत ह कयोकक जो सवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर ववचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आसकत होन क कारर उसम ववचार का उदय नही हो सकता लककन वह सवा कर सकता ह |

106) लोगो की पजा व परराम स जसी परसननता होती ह वसी ही परसननता जब मार पड़ तब भी होती हो तो ही मनषटय लभकषानन गरहर करन का सचचा अचधकारी माना जाता ह |

107) हरक साधक को तरबककल नय अनभव की ददशा म आग बढना ह | इसक ललय बरहमजञानी महासमा की असयनत आवशयकता होती ह | लजसको सचची लजजञासा हो उस ऐस महासमा लमल ही जात ह | दढ लजजञासा स लशषटय को गर क पास जान की इचछा होती ह |

योगय लजजञास को समथक गर सवय दशकन दत ह |

108) बीत हए समय को याद न करना भववषटय की चचनता न करना और वततकमान म परापत सख-दःखादद म सम रहना य जीवनमकत परष क लकषर ह |

109) जब बदचध एव हदय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बदचधमान परष ससार की चचनता नही करत लककन अपनी मलकत क बार म सोचत

ह | मलकत का ववचार ही सयागी दानी सवापरायर बनाता ह | मोकष की इचछा स सब सदगर आ जात ह | ससार की इचछा स सब दगकर आ जात ह |

111) पररलसथतत लजतनी कदठन होती ह वातावरर लजतना पीड़ाकारक होता ह उसस गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बाहय कषटटो और चचनताओ का सवागत करो | ऐसी पररलसथतत म भी वदानत को आचरर म लाओ | जब आप वदानती जीवन वयतीत करग तब दखग कक समसत वातावरर और पररलसथततयाा आपक वश म हो रही ह आपक ललय उपयोगी लसदध हो रही ह |

112) हरक पदाथक पर स अपन मोह को हटा लो और एक ससय पर एक तथय पर अपन ईशवर पर समगर रधयान को कलनित करो | तरनत आपको आसम-साकषासकार होगा |

113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आसमाननद का उपभोग करना चादहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आसम-चचनतन का तनरनतर सवन करना चादहय | भोजन ठीक स होता ह तो तलपत की डकार आती ह वस ही यथाथक आसमचचनतन होत ही आसमानभव की डकार आयगी आसमाननद म मसत होग |

आसमजञान क लसवा शातत का कोई उपाय नही |

114) आसमजञानी क हकम स सयक परकाशता ह | उनक ललय इनि पानी बरसाता ह | उनही क ललय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना लसर रगड़ता ह |

115) यदद आप अपन आसमसवरप को परमासमा समझो और अनभव करो तो आपक सब ववचार व मनोरथ सफल होग उसी कषर परक होग |

116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-परार आदद जो कछ ह व आसमदशी क सककपमातर ह

117) जो लोग परततकलता को अपनात ह ईशवर उनक सममख रहत ह | ईशवर लजनह अपन स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पररलसथततयाा दत ह | लजसको सब वसतएा अनकल एव पववतर सब घटनाएा लाभकारी सब ददन शभ सब मनषटय दवता क रप म ददखत ह वही परष तसवदशी ह |

118) समता क ववचार स चचतत जकदी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोगो स समबनध रखो कक लजसस आपकी सहनशलकत बढ समझ की शलकत बढ

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरगो का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ जीवन तजसवी बन |

120) लोग बोलत ह कक रधयान व आसमचचनतन क ललए हम फरसत नही लमलती | लककन भल मनषटय जब नीद आती ह तब सब महसवपरक काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह कक नही जस नीद को महसव दत हो वस ही चौबीस घनटो म स कछ समय रधयान व आसमचचनतन म भी तरबताओ | तभी जीवन साथकक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा |

121) भल जाओ कक तम मनषटय हो अमक जातत हो अमक उमर हो अमक डड़गरीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम तनगकर तनराकार साकषीरप हो ऐसा दढ तनशचय करो | इसीम तमाम परकार की साधनाएा कियाएा योगादद समाववषटट हो जात ह | आप सवकवयापक अखणड चतनय हो |

सार जञान का यह मल ह |

122) दोष तभी ददखता जब हमार लोचन परम क अभावरप पीललया रोग स गरसत होत ह |

123) साधक यदद अभयास क मागक पर उसी परकार आग बढता जाय लजस परकार परारमभ म इस मागक पर चलन क ललए उससाहपवकक कदम रखा था तो आयरपी सयक असत होन स पहल जीवनरपी ददन रहत ही अवशय सोऽहम लसदचध क सथान तक पहाच जाय |

124) लोग जकदी स उननतत कयो नही करत कयोकक बाहर क अलभपराय एव ववचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ दहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह |

125) अपन परतत होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकताक को यदद कषमा कर ददया जाय तो दवष परम म परररत हो जाता ह |

126) साधना की शरआत शरदधा स होती ह लककन समालपत जञान स होनी चादहय | जञान मान सवयसदहत सवक बरहमसवरप ह ऐसा अपरोकष अनभव |

127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उचचारर करो | पहल धीम सवर म परारमभ करो | शर म रधवतन गल स तनकलगी कफर छाती स कफर नालभ स और अनत म रीढ की हडडी क आखखरी छोर स तनकलगी | तब ववदयत क धकक स सषमना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटारसदहत तमाम रोग भाग खड़ होग | तनभकयता दहममत और आननद का फववारा छटगा | हर रोज परातःकाल म सनानादद करक सयोदय क समय ककसी एक तनयत सथान म आसन पर

पवाकलभमख बठकर कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो |

128) आप जगत क परभ बनो अनयथा जगत आप पर परभसव जमा लगा | जञान क मतातरबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतातरबक जञान हो जायगा | कफर यगो की यातरा स भी दःखो का अनत नही आयगा |

129) वासतववक लशकषर का परारभ तो तभी होता ह जब मनषटय सब परकार की सहायताओ स ववमख होकर अपन भीतर क अननत सरोत की तरफ अगरसर होता ह |

130) दशय परपच की तनवतत क ललए अनतःकरर को आननद म सरोबार रखन क ललए कोई भी कायक करत समय ववचार करो म कौन हा और कायक कौन कर रहा ह भीतर स जवाब लमलगा मन और शरीर कायक करत ह | म साकषीसवरप हा | ऐसा करन स कताकपन का अह वपघलगा सख-दःख क आघात मनद होग |

131) राग-दवष की तनवतत का कया उपाय ह उपाय यही ह कक सार जगत-परपच को मनोराजय समझो | तननदा-सततत स राग-दवष स परपच म ससयता दढ होती ह |

132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई शसतरधारी आपको कसल करन क ललए तसपर हो जाय तब यदद आप उसक ललए परसननता स तयार रह हदय म ककसी परकार का भय या ववषाद उसपनन न हो तो समझना कक आपन राग-दवष पर ववजय परापत कर ललया ह |

जब आपकी दलषटट पड़त ही लसहादद दहसक जीवो की दहसावतत गायब हो जाय तब समझना कक अब राग-दवष का अभाव हआ ह |

133) आसमा क लसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आसमतनषटठा ह |

134) आप सवपनदषटटा ह और यह जगत आपका ही सवपन ह | बस लजस कषर यह जञान हो जायगा उसी कषर आप मकत हो जाएाग |

135) ददन क चौबीसो घणटो को साधनामय बनान क ललय तनकममा होकर वयथक ववचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आसमचचतन म लगाओ | ससार म सलगन मन को वहाा स उठा कर आसमा म लगात रहो |

136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की कषिता पर हासन लगी | बलबल न कहा ओ तरग म तो छोटा हा कफर भी बहत सखी हा | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी

तरबखर जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊा गा | वामन लमटकर ववराट बन जाऊा गा | मरी मलकत बहत नजदीक ह | मझ आपकी लसथतत पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो |

आपका छटकारा जकदी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली चटटान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरगो म ववभकत हो जाओगी | उन असखय तरगो म स अननत-अननत बलबलो क रप म पररवततकत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़पपन का गवक कयो करती हो जगत की उपललबधयो का अलभमान करक परमासमा स दर मत जाओ |

बलबल की तरह सरल रहकर परमासमा क साथ एकता का अनभव करो |

137) जब आप ईषटयाक दवष तछिानवषर दोषारोपर घरा और तननदा क ववचार ककसीक परतत भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही ववचारो को आमतरतरत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आाख म ततनका भोकत ह तब अपनी आाख म भी आप ताड़ भोक रह ह |

138) शरीर अनक ह आसमा एक ह | वह आसमा-परमासमा मझस अलग नही | म ही कताक साकषी व नयायधीश हा | म ही ककक श आलोचक हा और म ही मधर परशसक हा | मर ललय परसयक वयलकत सवततर व सवचछनद ह | बनधन पररलचछननता और दोष मरी दलषटट म आत ही नही | म मकत हापरम मकत हा और अनय लोग भी सवततर ह | ईशवर म ही हा | आप भी वही हो |

139) लजस परकार बालक अपनी परछाई म बताल की ककपना कर भय पाता ह उसी परकार जीव अपन ही सककप स भयभीत होता ह और कषटट पाता ह |

140) कभी-कभी ऐसी भावना करो कक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक ककनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समसत पररलसथतत को दखन वाल आप साकषी आसमा शष रहत ह | इस परकार साकषी रप म अपना अनभव करो |

141) यदद हम चाहत हो कक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक ललए सगम साधना यही ह कक हम भी अपन सबचधत सब लोगो क सब अपराध माफ कर द | कभी ककसी क दोष या अपराध पर दलषटट न डाल कयोकक वासतव म सब रपो म हमारा पयारा ईषटटदव ही िीड़ा कर रहा ह |

142) परक पववतरता का अथक ह बाहय परभावो स परभाववत न होना | सासाररक मनोहरता एव घरा स पर रहना राजी-नाराजगी स अववचल ककसी म भद न दखना और आसमानभव क दवारा आकषकरो व सयागो स अललपत रहना | यही वदानत का उपतनषदो का रहसय ह |

143) ईशवर साकषासकार तभी होगा जब ससार की दलषटट स परतीत होन वाल बड़-स-बड़ वररयो को भी कषमा करन का आपका सवभाव बन जायगा |

144) चाल वयवहार म स एकदम उपराम होकर दो लमनट क ललए ववराम लो | सोचो कक lsquo म कौन हा सदी-गमी शरीर को लगती ह | भख-पयास परारो को लगती ह | अनकलता-परततकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-पणय का तनरकय बदचध करती ह | म न शरीर हा न परार हा न मन हा न बदचध हा | म तो हा इन सबको सतता दन वाला इन सबस नयारा तनलप आसमा |rsquo

145) जो मनषटय तनरतर lsquoम मकत हाhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह मकत ही ह और lsquoम बदध हाhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला बदध ही ह |

146) आप तनभकय ह तनभकय ह तनभकय ह | भय ही मसय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकक ह | भय ही अधमक ह | भय ही वयलभचार ह | जगत म लजतन असत या लमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह |

147) परदहत क ललए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शलकतयाा जागत होती ह | दसरो क ककयार क ववचारमातर स हदय म एक लसह क समान बल आ जाता ह |

148) हम यदद तनभकय होग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यदद डरग तो कतता भी हम फ़ाड़ खायगा |

149) परसयक किया परसयक वयवहार परसयक परारी बरहमसवरप ददख यही सहज समाचध ह |

150) जब कदठनाईयाा आय तब ऐसा मानना कक मझ म सहन शलकत बढान क ललए ईशवर न य सयोग भज ह | कदठन सयोगो म दहममत रहगी तो सयोग बदलन लगग | ववषयो म राग-दवष रह गया होगा तो वह ववषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा |

151) तसवदलषटट स न तो आपन जनम ललया न कभी लग | आप तो अनत ह सवकवयापी ह तनसयमकत अजर-अमर अववनाशी ह | जनम-मसय का परशन ही गलत ह महा-मखकतापरक ह |

जहाा जनम ही नही हआ वहाा मसय हो ही कस सकती ह

152) आप ही इस जगत क ईशवर हो | आपको कौन दबकल बना सकता ह जगत म आप ही एकमातर सतता हो | आपको ककसका भय खड़ हो जाओ | मकत हो जाओ | ठीक स समझ

लो कक जो कोई ववचार या शबद आपको दबकल बनाता ह वही एकमातर अशभ ह | मनषटय को दबकल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह |

153) आप अपना कायक या कतकवय करो लककन न उसक ललए कोई चचनता रह न ही कोई इचछा | अपन कायक म सख का अनभव करो कयोकक आपका कायक सवय सख या ववशराम ह |

आपका कायक आसमानभव का ही दसरा नाम ह | कायक म लग रहो | कायक आपको आसमानभव कराता ह | ककसी अनय हत स कायक न करो | सवततर ववतत स अपन कायक पर डट जाओ | अपन को सवततर समझो ककसीक कदी नही |

154) यदद आप ससय क मागक स नही हटत तो शलकत का परवाह आपक साथ ह समय आपक साथ ह कषतर आपक साथ ह | लोगो को उनक भतकाल की मदहमा पर फलन दो भववषटयकाल की समपरक मदहमा आपक हाथ म ह |

155) जब आप ददवय परम क साथ चाणडाल म चोर म पापी म अभयागत म और सबम परभ क दशकन करग तब आप भगवान शरी कषटर क परमपातर बन जायग |

156) आचायक गौड़पाद न सपषटट कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लककन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आसमसवरप स सवकवयापत हा |

157) मनषटय सभी पराखरयो म शरषटठ ह सब दवताओ स भी शरषटठ ह | दवताओ को भी कफर स धरती पर आना पड़गा और मनषटय शरीर परापत करक मलकत परापत करनी होगी |

158) तनलशचनतता क दो सतर जो कायक करना जररी ह उस परा कर दो | जो तरबनजररी ह उस भल जाओ |

159) सवा-परम-सयाग ही मनषटय क ववकास का मल मतर ह | अगर यह मतर आपको जाच जाय तो सभी क परतत सदभाव रखो और शरीर स ककसी-न-ककसी वयलकत को तरबना ककसी मतलब क सहयोग दत रहो | यह नही कक जब मरी बात मानग तब म सवा करा गा | अगर परबनधक मरी बात नही मानत तो म सवा नही करा गा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही करोग |

160) जस सवपन लमथया ह वस ही यह जागरत अवसथा भी सवपनवत ही ह लमथया ह |

हरक को अपन इस सवपन स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लककन जाग कर वापस सो न जाएा ऐसा परषाथक तो हम ही करना होगा |

161) सदा परसननमख रहो | मख को कभी मललन मत करो | तनशचय कर लो कक आपक ललय शोक न इस जगत म जनम नही ललया ह | आननदसवरप म चचनता का सथान ही कहाा ह

162) समगर बरहमाणड एक शरीर ह | समगर ससार एक शरीर ह | जब तक आप परसयक क साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पररलसथततयाा और आस-पास की चीज हवा और समि की लहर भी आपक पकष म रहगी |

163) आपको जो कछ शरीर स बदचध स या आसमा स कमजोर बनाय उसको ववष की तरह तसकाल सयाग दो | वह कभी ससय नही हो सकता | ससय तो बलपरद होता ह पावन होता ह जञानसवरप होता ह | ससय वह ह जो शलकत द |

164) साधना म हमारी अलभरचच होनी चादहय साधना की तीवर मााग होनी चादहय |

165) दसरो क दोषो की चचाक मत करो चाह व ककतन भी बड़ हो | ककसी क दोषो की चचाक करक आप उसका ककसी भी परकार भला नही करत बलकक उस आघात पहाचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी |

166) इस ससार को ससय समझना ही मौत ह | आपका असली सवरप तो आननदसवरप आसमा ह | आसमा क लसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनषटय सवपन म अपनी एकता नही जानता अवपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदसवरप आसमा जागरत सवपन और सषलपत- इन तीन सवरपो को दखत हए अपनी एकता अदववतीयता का अनभव नही करता |

167) मनोजय का उपाय ह अभयास और वरागय | अभयास मान परयसनपवकक मन को बार-बार परमासम-चचतन म लगाना और वरागय मान मन को ससार क पदाथो की ओर स वापस लौटाना |

168) ककसी स कछ मत माागो | दन क ललय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही चाहोग तो मान लमलगा | सवगक नही चाहोग तो सवगक क दत आपक ललय ववमान लकर आयग |

उसको भी सवीकार नही करोग तो ईशवर आपको अपन हदय स लगायग |

169) कभी-कभी उदय या असत होत हए सयक की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट पर अकल घमन जाओ | ऐस सथानो की मलाकात लो जहाा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहाा परमासमा क साथ एकसवर होन की समभावना क दवार खलत ह |

170) आप जयो-ही इचछा स ऊपर उठत हो सयो-ही आपका इलचछत पदाथक आपको खोजन लगता ह | अतः पदाथक स ऊपर उठो | यही तनयम ह | जयो-जयो आप इचछक लभकषक याचक का भाव धारर करत हो सयो-सयो आप ठकराय जात हो |

171) परकतत क परसयक पदाथक को दखन क ललय परकाश जररी ह | इसी परकार मन बदचध

इलनियो को अपन-अपन कायक करन क ललय आसम-परकाश की आवशयकता ह कयोकक बाहर का कोई परकाश मन बदचध इलनिय परारादद को चतन करन म समथक नही |

172) जस सवपनदषटटा परष को जागन क बाद सवपन क सख-दःख जनम-मरर पाप-पणय

धमक-अधमक आदद सपशक नही करत कयोकक वह सब खद ही ह | खद क लसवाय सवपन म दसरा कछ था ही नही | वस ही जीवनमकत जञानवान परष को सख-दःख जनम-मरर पाप-पणय धमक-अधमक सपशक नही करत कयोकक व सब आसमसवरप ही ह |

173) वही भमा नामक आसमजयोतत कततो म रह कर भौक रही ह सअर म रह कर घर रही ह गधो म रह कर रक रही ह लककन मखक लोग शरीरो पर ही दलषटट रखत ह चतनय तसव पर नही |

174) मनषटय लजस कषर भत-भववषटय की चचनता का सयाग कर दता ह दह को सीलमत और उसपवतत-ववनाशशील जानकर दहालभमान को सयाग दता ह उसी कषर वह एक उचचतर अवसथा म पहाच जाता ह | वपजर स छटकर गगनववहार करत हए पकषी की तरह मलकत का अनभव करता ह |

175) समसत भय एव चचनताएा आपकी इचछाओ का परराम ह | आपको भय कयो लगता ह कयोकक आपको आशका रहती ह कक अमक चीज कही चली न जाय | लोगो क हासय स आप डरत ह कयोकक आपको यश की अलभलाषा ह कीततक म आसलकत ह | इचछाओ को ततलाजलल द दो | कफर दखो मजा कोई लजममदारी नहीकोई भय नही |

176) दखन म असयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज सवभाव का मनषटय भी आपका ही सवरप ह | आप इस तथय स मकत नही | कफर घरा कसी कोई लावणयमयी सदरी सलषटट की शोभा क समान अतत ववलासभरी अपसरा भी आपका ही सवरप ह | कफर आसलकत ककसकी

आपकी जञानलनियाा उनको आपस अलग करक ददखाती ह | य इलनियाा झठ बोलनवाली ह |

उनका कभी ववशवास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो |

177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात ससय को सवीकर करना हमारा सवधमक ह | ससय यही ह कक बल दसरो क ललय ह जञान अपन ललय ह और ववशवास परमासमा स समबनध जोड़न क ललय ह |

178) अपनी आसमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह |

179) आप सदव मकत ह ऐसा ववशवास दढ करो तो आप ववशव क उदधारक हो जात हो |

आप यदद वदानत क सवर क साथ सवर लमलाकर तनशचय करो आप कभी शरीर न थ | आप तनसय शदध बदध आसमा हो तो अखखल बरहमाणड क मोकषदाता हो जात हो |

180) कपा करक उन सवाथकमय उपायो और अलभपरायो को दर फ क दो जो आपको पररलचछनन रखत ह | सब वासनाएा राग ह | वयलकतगत या शरीरगत परम आसलकत ह | उस फ क दो | सवय पववतर हो जाओ | आपका शरीर सवसथ और बदचध परकसवरप हो जायगी |

181) यदद ससार क सख व पदाथक परापत हो तो आपको कहना चादहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चादहय | तब दखो कक आप कस सखी हो जात हो परमासमा-परापत ककसी महापरष पर ववशवास रखकर अपनी जीवनडोरी तनःशक बन उनक चररो म सदा क ललय रख दो | तनभकयता आपक चररो की दासी बन जायगी |

182) लजसन एक बार ठीक स जान ललया कक जगत लमथया ह और भरालनत स इसकी परतीतत हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसलकत नही होती | जगत क लमथयासव क तनशचय का नाम ही जगत का नाश ह |

183) अपन सवरप म लीन होन मातर स आप ससार क समराट बन जायग | यह समराटपद कवल इस ससार का ही नही समसत लोक-परलोक का समराटपद होगा |

184) ह जनक चाह दवाचधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान ववषटर आकर उपदश द अथवा बरहमाजी आकर उपदश द लककन आपको कदावप सख न होगा | जब ववषयो का सयाग करोग तभी सचची शातत व आनद परापत होग |

185) लजस परभ न हम मानव जीवन दकर सवाधीनता दी कक हम जब चाह तब धमाकसमा

होकर भकत होकर जीवनमकत होकर कतकसय हो सकत ह- उस परभ की मदहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो सवीकार कर लो |

186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ साकषात मसय का मकाबला करना पड़ अपन आसमपरालपत क उददशय की पतत क क ललय अडडग रहो | उठो साहसी बनो शलकतमान बनो | आपको जो बल व सहायता चादहय वह आपक भीतर ही ह |

187) जब-जब जीवन समबनधी शोक और चचनता घरन लग तब-तब अपन आननदसवरप का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो |

188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म जखम हो तब म आकाशवत आकाशरदहत चतन हा ऐसा दढ तनशचय करक पीड़ा को भल जाओ |

189) जब दतनया क ककसी चककर म फा स जाओ तब म तनलप तनसय मकत हा ऐसा दढ तनशचय करक उस चककर स तनकल जाओ |

190) जब घर-बार समबनधी कोई कदठन समसया वयाकल कर तब उस मदारी का खल समझकर सवय को तनःसग जानकर उस बोझ को हकका कर दो |

191) जब िोध क आवश म आकर कोई अपमानयकत वचन कह तब अपन शाततमय सवरप म लसथर होकर मन म ककसी भी कषोभ को पदा न होन दो |

192) उततम अचधकारी लजजञास को चादहय कक वह बरहमवतता सदगर क पास जाकर शरदधा पवकक महावाकय सन | उसका मनन व तनददरधयासन करक अपन आसमसवरप को जान | जब आसमसवरप का साकषासकार होता ह तब ही परम ववशरालनत लमल सकती ह अनयथा नही | जब तक बरहमवतता महापरष स महावाकय परापत न हो तब तक वह मनद अचधकारी ह | वह अपन हदयकमल म परमासमा का रधयान कर समरर कर जप कर | इस रधयान-जपादद क परसाद स उस बरहमवतता सदगर परापत होग |

193) मन बदचध चचतत अहकार छाया की तरह जड़ ह कषरभगर ह कयोकक व उसपनन होत ह और लीन भी हो जात ह | लजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आसमा ह | मन बदचध चचतत अहकार का अभाव हो जाता ह लककन उसका अनभव करनवाल का अभाव कदावप नही होता |

194) आप अपनी शलकत को उचचाततउचच ववषयो की ओर बहन दो | इसस आपक पास व बात सोचन का समय ही नही लमलगा लजसस कामकता की गध आती हो |

195) अपराधो क अनक नाम ह बालहसया नरहसया मातहसया गौहसया इसयादद | परनत परसयक परारी म ईशवर का अनभव न करक आप ईशवरहसया का सबस बड़ा अपराध करत ह |

196) सवा करन की सवाधीनता मनषटयमातर को परापत ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथक ह मन-वारी-कमक स बराईरदहत हो जाना यह ववशव की सवा हो गई | यथाशलकत भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई | परभ को अपना मानकर समतत और परम जगा लो यह परभ की सवा हो गई | इस परकार मनषटय अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह ववशव की सवा भी कर सकता ह और ववशवशवर की सवा भी कर सकता ह |

197) आसमा स बाहर मत भटको अपन कनि म लसथर रहो अनयथा चगर पड़ोग | अपन-आपम परक ववशवास रखो | आसम-कनि पर अचल रहो | कफर कोई भी चीज आपको ववचललत नही कर सकती |

198) सदा शात तनववककार और सम रहो | जगत को खलमातर समझो | जगत स परभाववत मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | कफर कछ बढान की इचछा नही होगी और कछ कम होन स दःख नही होगा |

199) समथक सदगर क समकष सदा फल क भाातत खखल हए रहो | इसस उनक अनदर सककप होगा कक यह तो बहत उससाही साधक ह सदा परसनन रहता ह | उनक सामथयकवान सककप स आपकी वह कतरतरम परसननता भी वासतववक परसननता म बदल जायगी |

200) यदद रोग को भी ईशवर का ददया मानो तो परारबध-भोग भी हो जाता ह और कषटट तप का फल दता ह | इसस ईशवर-कपा की परालपत होती ह | वयाकल मत हो | कपसल और इनजकशन आधीन मत हो |

201) साधक को चादहय कक अपन लकषय को दलषटट म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | दलषटट यदद इधर-उधर जाती हो तो समझना कक तनषटठा लसथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजारो सवपन दख होग लककन व आपक जीवन क अश नही

बन जात | इसी परकार य जागरत जगत क आडमबर आपकी आसमा क समकष कोई महवव नही रखत |

203) एक आसमा को ही जानो अनय बातो को छोड़ो | धीर साधक को चादहय कक वह सावधान होकर आसमतनषटठा बढाय अनक शबदो का चचनतन व भाषर न कर कयोकक वह तो कवल मन-वारी को पररशरम दनवाला ह असली साधना नही ह |

204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस सााप स डरता ह सममान स ऐस डर जस नकक स डरता ह लसतरयो स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागर बराहमर मानत ह |

205) जस अपन शरीर क अगो पर िोध नही आता वस शतर लमतर व अपनी दह म एक ही आसमा को दखनवाल वववकी परष को कदावप िोध नही आता |

206) मन तो शरीर को ईशवरापकर कर ददया ह | अब उसकी भख-पयास स मझ कया

समवपकत वसत म आसकत होना महा पाप ह |

207) आप यदद ददवय दलषटट पाना चहत हो तो आपको इलनियो क कषतर का सयाग करना होगा |

208) परलयकाल क मघ की गजकना हो समि उमड़ पड बारहो सयक तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी जञानी क तनशचय म दवत नही भासता कयोकक दवत ह ही नही | दवत तो अजञानी को भासता ह |

209) ससय को सवीकार करन स शातत लमलगी | कछ लोग योगयता क आधार पर शातत खरीदना चाहत ह | योगयता स शातत नही लमलगी योगयता क सदपयोग स शातत लमलगी | कछ लोग समपवतत क आधार पर शातत सरकषकषत रखना चाहत ह | समपवतत स शातत नही लमलगी समपवतत क सदपयोग स शातत लमलगी वस ही ववपवतत क सदपयोग स शातत लमलगी |

210) तचछ हातन-लाभ पर आपका रधयान इतना कयो रहता ह लजसस अनत आननदसवरप आसमा पर स रधयान हट जाता ह |

211) अपन अनदर ही आननद परापत करना यदयवप कदठन ह परनत बाहय ववषयो स आननद परापत करना तो असमभव ही ह |

212) म ससार का परकाश हा | परकाश क रप म म ही सब वसतओ म वयापत हा | तनसय

इन ववचारो का चचनतन करत रहो | य पववतर ववचार आपको परम पववतर बना दग |

213) जो वसत कमक स परापत होती ह उसक ललय ससार की सहायता तथा भववषटय की आशा की आवशयकता होती ह परनत जो वसत सयाग स परापत होती ह उसक ललय न ससार की सहायता चादहय न भववषटय की आशा |

214) आपको जब तक बाहर चोर ददखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग बरहम स लभनन अयोगय खराब सधारन योगय ददखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी चचककससा कर |

215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमसतक एव परसननमख रहत ह | चचनतातर-शोकातर लोगो की उननतत नही हो सकती | परसयक कायक को दहममत व शातत स करो | कफर दखो कक यह कायक शरीर मन और बदचध स हआ | म उन सबको सतता दनवाला चतनयसवरप हा | ॐ ॐ का पावन गान करो |

216) ककसी भी पररलसथतत म मन को वयचथत न होन दो | आसमा पर ववशवास करक आसमतनषटठ बन जाओ | तनभकयता आपकी दासी बन कर रहगी |

217) सससग स मनषटय को साधना परापत होती ह चाह वह शातत क रप म हो चाह मलकत क रप म चाह सवा क रप म हो परम क रप म हो चाह सयाग क रप म हो |

218) भला-बरा वही दखता ह लजसक अनदर भला-बरा ह | दसरो क शरीरो को वही दखता ह जो खद को शरीर मानता ह |

219) खबरदार आपन यदद अपन शरीर क ललय ऐश-आराम की इचछा की ववलालसता एव इलनिय-सख म अपना समय बरबाद ककया तो आपकी खर नही | ठीक स कायक करत रहन की नीतत अपनाओ | सफलता का पहला लसदधात ह कायकववशरामरदहत कायकसाकषी भाव स कायक |

इस लसदधात को जीवन म चररताथक करोग तो पता चलगा कक छोटा होना लजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह |

220) भतकाल पर खखनन हए तरबना भववषटय की चचनता ककय तरबना वततकमान म कायक करो |

यह भाव आपको हर अवसथा म परसनन रखगा हम जो कछ परापत ह उसका सदपयोग ही अचधक परकाश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पररराम की चचनता का सयाग कर दत हो सममख आय हए कततकवय पर अपनी उदयोगशलकत एकागर करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी |

222) ववतत तब तक एकागर नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह लजस कोई कततकवय या आवशयकता घसीट न रही हो | अतः परम शातत पान क ललय जीवन की आशा भी सयाग कर मन बरहमाननद म डबो दो | आज स समझ लो कक यह शरीर ह ही नही | कवल बरहमाननद का सागर लहरा रहा ह |

223) लजसकी पककी तनषटठा ह कक म आसमा हाrsquo उसक ललय ऐसी कौन सी गरचथ ह जो खल न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक ववरदध जा सक |

224) मर भागय म नही थाईशवर की मजीआजकल सससग परापत नही होताजगत खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरर की मललनता क कारर तनकलत ह | अतः नकारासमक सवभाव और दसरो पर दोषारोपर करन की ववतत स बचो |

225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप भीतर अनतयाकमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म कफर गड़बड़ कसी

226) लजस कषर हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी कषर हम ससार को तरबगाड़नवाल बन जात ह | शदध परमासमा को दखन क बजाय जगत को तरबगड़ा हआ दखन की दलषटट बनती ह | सधारक लोग मानत ह कक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह तरबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारको अपन ददल को सधारो पहल |

सवकतर तनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपलसथतत मातर स आपकी दलषटट मातर स अर पयार आपको छकर बहती हवा मातर स अननत जीवो को शातत लमलगी और अननत सधार होगा |

नानक कबीर महावीर बदध और लीलाशाह बाप जस महापरषो न यही कजी अपनायी थी |

227) वदानत म हमशा कमक का अथक होता ह वासतववक आसमा क साथ एक होकर चषटटा करना अखखल ववशव क साथ एकसवर हो जाना | उस अदववतीय परम तसव क साथ तनःसवाथक सयोग परापत करना ही एकमातर सचचा कमक ह बाकी सब बोझ की गठररयाा उठाना ह |

228) अपनी वततकमान अवसथा चाह कसी भी हो उसको सवोचच मानन स ही आपक हदय म आसमजञान बरहमजञान का अनायास उदय होन लगगा | आसम-साकषासकार को मीलो दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह चचलनतत होना नही ह | चचनता की गठरी उठाकर

वयचथत होन की जररत नही ह | लजस कषर आप तनलशचनतता म गोता मारोग उसी कषर आपका आसमसवरप परगट हो जायगा | अर परगट कया होगा आप सवय आसमसवरप हो ही | अनासमा को छोड़ दो तो आसमसवरप तो हो ही |

229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व चचनता क ववचार आय तब ककसी मसत सत-फकीर महासमा क सालननरधय का समरर करो | जब तननदा-परशसा क परसग आय तब महापरषो क जीवन का अवलोकन करो |

230) लजनको आप भयानक घटनाएा एव भयकर आघात समझ बठ हो वासतव म व आपक वपरयतम आसमदव की ही करतत ह | समसत भयजनक तथा परारनाशक घटनाओ क नाम-रप तो ववष क ह लककन व बनी ह अमत स |

231) मन म यदद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की सामगरी उपलसथत हो जाय आपका कछ तरबगाड़ नही सकती | मन म यदद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पररलसथयाा न होत हए भी उपलसथत हो जायगी | वकष क तन म भी भत ददखन लगगा |

232) ककसी भी पररलसथतत म ददखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चादहए | कषटटो क काल बादलो क पीछ परक परकाशमय एकरस परम सतता सयक की तरह सदा ववदयमान ह |

233) आप अपन पर कदावप अववशवास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबकल मत मानो | आपक अनदर तमाम शलकतयाा छपी हई ह |

234) यदद कोई मनषटय आपकी कोई चीज को चरा लता ह तो ड़रत कयो हो वह मनषटय और आप एक ह | लजस चीज को वह चराता ह वह चीज आपकी और उसकी दोनो की ह |

235) जो खद क लसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क लसवाय और ककसी वसत का भान होता ह वह वसत सचची लगती ह तब तक आप सीलमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह समपरक आनद मर भीतर स आया ह | म ही समपरक आननद हा समपरक मदहमा एव समपरक सख हा |

237) जीवन की समसत आवशयकताएा जीवन म उपलसथत ह परनत जीवन को जब हम

बाहय रगो म रग दत ह तब जीवन का वासतववक रप हम नही जान पात |

238) तननदको की तननदा स म कयो मरझाऊा परशसको की परशसा स म कयो फला

तननदा स म घटता नही और परशसा स म बढता नही | जसा हा वसा ही रहता हा | कफर तननदा-सततत स खटक कसी

239) ससार व ससार की समसयाओ म जो सबस अचधक फा स हए ह उनही को वदानत की सबस अचधक आवशयकता ह | बीमार को ही औषचध की जयादा आवशयकता ह | कयो जी ठीक ह न

240) जगत क पाप व असयाचार की बात मत करो लककन अब भी आपको जगत म पाप ददखता ह इसललय रोओ |

241) हम यदद जान ल कक जगत म आसमा क लसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ ददखता ह वह सवपनमातर ह तो इस जगत क दःख-दाररिय पाप-पणय कछ भी हम अशात नही कर सकत |

242) ववदवानो दाशकतनको व आचायो की धमकी तथा अनगरह आलोचना या अनमतत बरहमजञानी पर कोई परभाव नही ड़ाल सकती |

243) ह वयलषटटरप अननत आप अपन परो पर खड़ रहन का साहस करो समसत ववशव का बोझ आप खखलौन की तरह उठा लोग |

244) लसह की गजकना व नरलसह की ललकार तलवार की धार व सााप की फफकार तपसवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही परकाश चमक रहा ह | आप इनस भयभीत कयो होत हो उलझन कयो महसस करत हो मरी तरबकली मझको मयाऊा वाली बात कयो होन दत हो

245) ससार हमारा लसफ़क खखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही खखलौनो स भयभीत होता ह आसलकत करता ह ववचारशील वयलकत नही |

246) जब तक अववदया दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार वयलभचार कभी बद न होग चाह लाख कोलशश करो |

247) आप हमशा अदर का रधयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बाहय पतन

तो इसका पररराम मातर ह |

248) सयाग स हमशा आनद लमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज बाकी ह तब तक आप उस चीज क बधन म बध रहोग | आघात व परसयाघात हमशा समान ववरोधी होत ह |

249) तनलशचतता ही आरोगयता की सबस बड़ी दवाई ह |

250) सख अपन लसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस दख को भी सवीकार करना पड़गा |

251) म (आसमा) सबका दषटटा हा | मरा दषटटा कोई नही |

252) हजारो म स कोई एक परष भीतर स शात चचततवाला रहकर बाहर स ससारी जसा वयवहार कर सकता ह |

253) ससय क ललए यदद शरीर का सयाग करना पड़ तो कर दना | यही आखखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी |

254) भय चचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको जञान का अनभव होगा |

255) आपको कोई भी हातन नही पहाचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह |

256) परम का अथक ह अपन पड़ोसी तथा सपकक म आनवालो क साथ अपनी वासतववक अभदता का अनभव करना |

257) ओ पयार अपन खोय हए आसमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो |

258) सदव सम और परसनन रहना ईशवर की सवोपरर भलकत ह |

259) जब तक चचतत म दढता न आ जाय कक शासतर की ववचधयो का पालन छोड़ दन स भी हदय का यथाथक भलकतभाव नषटट नही होगा तब तक शासतर की ववचधयो को पालत रहो |

गर भषकत एक अिोघ सा ना

1 जनम मरर क ववषचि स मकत होन का कोई मागक नही ह कया सख-दःख हषक-शोक लाभ-हातन मान-अपमान की थपपड़ो स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवशय ह | ह वपरय आसमन नाशवान पदाथो स अपना मन वावपस लाकर सदगर क चररकमलो म लगाओ | गरभलकतयोग का आशरय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह लजसस वततकमान जीवन आननदमय बनता ह और शाशवत सख क दवार खलत ह |

गर सवत त नर नय यहा |

ततनक नही दःख यहा न वहा ||

2 सचच सदगर की की हई भलकत लशषटय म सासाररक पदाथो क वरागय एव अनासलकत जगाती ह परमासमा क परतत परम क पषटप महकाती ह |

3 परसयक लशषटय सदगर की सवा करना चाहता ह लककन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स सवा करन को कोई तसपर नही |

जो ववरला साधक गर चाह उस ढग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

बरहमतनषटठ सदगर की सवा स उनकी कपा परापत होती ह और उस कपा स न लमल सक ऐसा तीनो लोको म कछ भी नही ह |

4 गर लशषटय का समबनध पववतरतम समबनध ह | ससार क तमाम बनधनो स छड़ाकर वह मलकत क मागक पर परसथान कराता ह | यह समबनध जीवनपयकनत का समबनध ह | यह बात अपन हदय की डायरी म सवरक-अकषरो स ललख लो |

5 उकल सयक क परकाश क अलसतसव को मान या न मान कफर भी सयक हमशा परकाशता ह |

चचल मन का मनषटय मान या न मान लककन सदगर की परमककयारकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह |

6 सदगर की चरररज म सनान ककय तरबना कवल कदठन तपशचयाक करन स या वदो का अरधयन करन स वदानत का रहसय परकट नही होता आसमानद का अमत नही लमलता |

7 दशकन शासतर क चाह ककतन गरनथ पढो हजारो वषो तक दहमालय की गफा म तप करो वषो तक परारायाम करो जीवनपयकनत शीषाकसन करो समगर ववशव म परवास करक वयाखान दो कफर भी सदगर की कपा क तरबना आसमजञान नही होता | अतः तनरालभमानी सरल तनजाननद म

मसत दयाल सवभाव क आसम-साकषासकारी सदगर क चररो म जाओ | जीवन को धनय बनाओ |

8 सदगर की सवा ककय तरबना शासतरो का अरधयन करना ममकष साधक क ललय समय बरबाद करन क बराबर ह |

9 लजसको सदगर परापत हए ह ऐस लशषटय क ललय इस ववशव म कछ भी अपरापय नही ह |

सदगर लशषटय को लमली हई परमासमा की अमकय भट ह | अर नहीhellipनही व तो लशषटय क समकष साकार रप म परकट हए परमासमा सवय ह |

10 सदगर क साथ एक कषर ककया हआ सससग लाखो वषो क तप स अननत गना शरषटठ ह |

आाख क तनमषमातर म सदगर की अमतवषी दलषटट लशषटय क जनम-जनम क पापो को जला सकती ह |

11 सदगर जसा परमपरक कपाल दहतचचनतक ववशवभर म दसरा कोई नही ह |

12 बाढ क समय यातरी यदद तफानी नदी को तरबना नाव क पार कर सक तो साधक भी तरबना सदगर क अपन जीवन क आखखरी लकषय को लसदध कर सकता ह | यानी य दोनो बात समभव ह |

अतः पयार साधक मनमखी साधना की लजदद करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह |

13 सदगर क चररकमलो का आशरय लन स लजस आननद का अनभव होता ह उसक आग तरतरलोकी का सामराजय तचछ ह |

14 आसम-साकषासकार क मागक म सबस महान शतर अहभाव का नाश करन क ललए सदगर की आजञा का पालन अमोघ शसतर ह |

15 रसोई सीखन क ललय कोई लसखानवाला चादहय ववजञान और गखरत सीखन क ललय अरधयापक चादहय तो कया बरहमववदया सदगर क तरबना ही सीख लोग

16 सदगरकपा की समपवतत जसा दसरा कोई खजाना ववशवभर म नही |

17 सदगर की आजञा का उकलघन करना यह अपनी कबर खोदन क बराबर ह |

18 सदगर क कायक को शका की दलषटट स दखना महापातक ह |

19 गरभलकत व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स लशषटय ससारसागर को पार कर सकता ह |

20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक वववकाननद ही दसर वववकाननद को पहचान सकत ह | बदध को जानन क ललय दसर बदध की आवशयकता रहती ह | एक रामतीथक का रहसय दसर रामतीथक ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की चषटटा छोड़कर उनको पररपरक परबरहम परमासमा मानो | तभी जीवन म वासतववक लाभ होगा |

21 गरभलकतयोग का आशरय लकर आप अपनी खोई हई ददवयता को पनः परापत करो सख-दःख जनम-मसय आदद सब दवनदवो स पार हो जाओ |

22 गरभलकतयोग मान गर की सवा क दवारा मन और ववकारो पर तनयतरर एव पनः ससकरर |

23 लशषटय अपन गर क चररकमल म परराम करता ह | उन पर शरषटठ फलो की वषाक करक उनकी सततत करता ह

ldquoह परम पजय पववतर गरदव मझ सवोचच सख परापत हआ ह | म बरहमतनषटठा स जनम-मसय की परमपरा स मकत हआ हा | म तनववकककप समाचध का शदध सख भोग रहा हा | जगत क ककसी भी कोन म म मकतता स ववचरर कर सकता हा | सब पर मरी समदलषटट ह |

मन पराकत मन का सयाग ककया ह | मन सब सककपो एव रचच-अरचच का सयाग ककया ह | अब म अखणड शातत म ववशरातत पा रहा हा hellip आननदमय हो रहा हा | म इस परक अवसथा का वरकन नही कर पाता |

ह पजय गरदव म आवाक बन गया हा | इस दसतर भवसागर को पार करन म आपन मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही समपरक ववशवास था | मन ववलभनन योतनयो म असखय जनम ललय | ऐसी सवोचच तनभकय अवसथा मझ कौन स पववतर कमो क कारर परापत हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलकभ भागय ह | यह एक महान उसकषटट लाभ ह |

अब म आननद स नाचता हा | मर सब दःख नषटट हो गय | मर सब मनोरथ परक हए ह | मर कायक समपनन हए ह | मन सब वातछत वसतएा परापत की ह | मरी इचछा पररपरक हई ह |

आप मर सचच माता-वपता हो | मरी वततकमान लसथतत म म दसरो क समकष ककस परकार परकट कर सका सवकतर सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ ददख रहा ह |

मर अतःचकष लजसस खल गय वह महावाकय lsquoतततविमसrsquo ह | उपतनषदो एव वदानतसतरो को भी धनयवाद | लजनहोन बरहमतनषटठ गर का एव उपतनषदो क महावाकयो का रप धारर ककया ह |

ऐस शरी वयासजी को परराम शरी शकराचायक को परराम

सासाररक मनषटय क लसर पर गर क चररामत का एक तरबनद भी चगर तो भी उसक सब दःखो का नाश होता ह | यदद एक बरहमतनषटठ परष को वसतर पहनाय जाय तो सार ववशव को वसतर पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कयोकक बरहमतनषटठ परष सचराचर ववशव म वयापत ह |

सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

सवामी लशवानद जी

शरी राि-वमशटठ सवाद

शरी वलशषटठ जी कहत ह

ldquoह रघकलभषर शरी राम अनथक सवरप लजतन सासाररक पदाथक ह व सब जल म तरग क समान ववववध रप धारर करक चमसकार उसपनन करत ह अथाकत ईचछाएा उसपनन करक जीव को मोह म फा सात ह | परत जस सभी तरग जल सवरप ही ह उसी परकार सभी पदाथक वसततः नशवर सवभाव वाल ह |

बालक की ककपना स आकाश म यकष और वपशाच ददखन लगत ह परनत बदचधमान मनषटय क ललए उन यकषो और वपशाचो का कोई अथक नही | इसी परकार अजञानी क चचतत म यह जगत ससय हो ऐसा लगता ह जबकक हमार जस जञातनयो क ललय यह जगत कछ भी नही |

यह समगर ववशव पसथर पर बनी हई पतललयो की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बाहय ववषयो स शनय ह | इसम ससयता कसी परनत अजञातनयो को यह ववशव ससय लगता ह

|rdquo

वलशषटठ जी बोल ldquoशरी राम जगत को ससय सवरप म जानना यह भरातत ह मढता ह |

उस लमथया अथाकत कलकपत समझना यही उचचत समझ ह |

ह राघव सवतता अहता आदद सब ववभरम-ववलास शात लशवसवरप शदध बरहमसवरप ही ह | इसललय मझ तो बरहम क अततररकत और कछ भी नही ददखता | आकाश म जस जगल नही वस ही बरहम म जगत नही ह |

ह राम परारबध वश परापत कमो स लजस परष की चषटटा कठपतली की तरह ईचछाशनय और वयाकलतारदहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनमकत मतन ह | ऐस जीवनमकत जञानी को इस जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रदहत लगता ह |

इस दशय परपच म लजस रचच नही हदय म चचनमातर अदशय बरहम ही अचछा लगता ह ऐस परष न भीतर तथा बाहर शालनत परापत कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह |

रघनदन शसतरवतता कहत ह कक मन का ईचछारदहत होना यही समाचध ह कयोकक ईचछाओ का सयाग करन स मन को जसी शालनत लमलती ह ऐसी शालनत सकड़ो उपदशो स भी नही लमलती |

ईचछा की उसपवतत स जसा दःख परापत होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ईचछाओ की शालनत स जसा सख होता ह ऐसा सख सवगक तो कया बरहमलोक म भी नही होता |

अतः समसत शासतर तपसया यम और तनयमो का तनचोड़ यही ह कक ईचछामातर दःखदायी ह और ईचछा का शमन मोकष ह |

परारी क हदय म जसी-जसी और लजतनी-लजतनी ईचछाय उसपनन होती ह उतना ही दखो स वह ड़रता रहता ह | वववक-ववचार दवारा ईचछाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी लमटती जाती ह |

आसलकत क कारर सासाररक ववषयो की ईचछाय जयो-जयो गहनीभत होती जाती ह सयो-सयो दःखो की ववषली तरग बढती जाती ह | अपन परषाथक क बल स इस ईचछारपी वयाचध का उपचार यदद नही ककया जाय तो इस वयाचध स छटन क ललय अनय कोई औषचध नही ह ऐसा म दढतापवकक मानता हा |

एक साथ सभी ईचछाओ का समपरक सयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ईचछाओ का धीर-धीर सयाग करना चादहय परत रहना चादहय ईचछा क सयाग म रत कयोकक सनमागक का पचथक दखी नही

होता |

जो नराधम अपनी वासना और अहकार को कषीर करन का परयसन नही करता वह ददनो-ददन अपन को रावर की तरह अधर का ऐ म ढकल रहा ह |

ईचछा ही दखो की जनमदातरी इस ससाररपी बल का बीज ह | यदद इस बीज को आसमजञानरपी अलगन स ठीक-ठीक जला ददया तो पनः यह अकररत नही होता |

रघकलभषर राम ईचछामातर ससार ह और ईचछाओ का अभाव ही तनवाकर ह | अतः अनक परकार की माथापचची म ना पड़कर कवल ऐसा परयसन करना चादहय कक ईचछा उसपनन ना हो |

अपनी बदचध स ईचछा का ववनाश करन को जो तसपर नही ऐस अभाग को शासतर और गर का उपदश भी कया करगा

जस अपनी जनमभमी जगल म दहररी की मसय तनलशचत ह उसी परकार अनकववध दखो का ववसतार कारनवाल ईचछारपी ववषय-ववकार स यकत इस जगत म मनषटयो की मसय तनलशचत ह |

यदद मानव ईचछाओ क कारर बचचो-सा मढ ना बन तो उस आसमजञान क ललय अकप परयसन ही करना पड़ | इसललय सभी परकार स ईचछाओ को शानत करना चादहय |

ईचछा क शमन स परम पद की परालपत होती ह | ईचछारदहत हो जाना यही तनवाकर ह और ईचछायकत होना ही बधन ह | अतः यथाशलकत ईचछा को जीतना चादहय | भला इतना करन म कया कदठनाई ह

जनम जरा वयाचध और मसयरपी कटीली झाडड़यो और खर क वकष - समहो की जड़ भी ईचछा ही ह | अतः शमरपी अलगन स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चादहय| जहाा ईचछाओ का अभाव ह वहाा मलकत तनलशचत ह |

वववक वरागय आदद साधनो स ईचछा का सवकथा ववनाश करना चादहय | ईचछा का सबध जहाा-जहाा ह वहाा-वहाा पाप पणय दखरालशयाा और लमबी पीड़ाओ स यकत बधन को हालजर ही समझो |

परष की आतररक ईचछा जयो-जयो शानत होती जाती ह सयो-सयो मोकष क ललय उसका ककयारकारक साधन बढता जाता ह | वववकहीन ईचछा को पोसना उस परक करना यह तो ससाररपी ववष वकष को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- शरीयोगवलशषटट महारामायर

आतिबल का आवाहन

कया आप अपन-आपको दबकल मानत हो लघतागरथी म उलझ कर पररलसतचथयो स वपस रह हो अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो

hellipतो अपन भीतर सषपत आसमबल को जगाओ | शरीर चाह सतरी का हो चाह परष का परकतत क सामराजय म जो जीत ह व सब सतरी ह और परकतत क बनधन स पार अपन सवरप की पहचान लजनहोन कर ली ह अपन मन की गलामी की बडड़याा तोड़कर लजनहोन फ क दी ह व परष ह | सतरी या परष शरीर एव मानयताएा होती ह | तम तो तन-मन स पार तनमकल आसमा हो |

जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय तनशचयबल को जगाओ | सवकदश सवककाल म सवोततम आसमबल को ववकलसत करो |

आसमा म अथाह सामथयक ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो ववशव म ऐसी कोई सतता नही जो तमह ऊपर उठा सक | अपन आसमसवरप म परततलषटठत हो गय तो तरतरलोकी म ऐसी कोई हसती नही जो तमह दबा सक |

भौततक जगत म वाषटप की शलकत ईलकरोतनक शलकत ववदयत की शलकत गरसवाकषकर की शलकत बड़ी मानी जाती ह लककन आसमबल उन सब शलकतयो का सचालक बल ह |

आसमबल क सालननरधय म आकर पग परारबध को पर लमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह परततकल पररलसतचथयाा अनकल हो जाती ह | आसमबल सवक ररदचध-लसदचधयो का वपता ह |

आतिबल कस जगाय

हररोज परतःकाल जकदी उठकर सयोदय स पवक सनानादद स तनवत हो जाओ | सवचछ पववतर सथान म आसन तरबछाकर पवाकलभमख होकर पदमासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और परसनन ववतत धारर करो |

मन म दढ भावना करो कक म परकतत-तनलमकत इस शरीर क सब अभावो को पार करक सब

मललनताओ-दबकलताओ स वपणड़ छड़ाकर आसमा की मदहमा म जागकर ही रहागा |

आाख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ो म खब शवास भरो और भावना करो की शवास क साथ म सयक का ददवय ओज भीतर भर रहा हा | शवास को यथाशलकत अनदर दटकाय रखो | कफ़र lsquoॐhelliprsquo का लमबा उचचारर करत हए शवास को धीर-धीर छोड़त जाओ | शवास क खाली होन क बाद तरत शवास ना लो | यथाशलकत तरबना शवास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहरर ॐhelliprsquo lsquoहरर ॐhelliprsquo

का मानलसक जाप करो | कफ़र स फ़फ़ड़ो म शवास भरो | पवोकत रीतत स शवास यथाशलकत अनदर दटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो |

दस-पिह लमनट ऐस परारायाम सदहत उचच सवर स lsquoॐhelliprsquo की रधवतन करक शानत हो जाओ | सब परयास छोड़ दो | ववततयो को आकाश की ओर फ़लन दो |

आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर दशय को आप मानलसक आाख स भावना स दखत रहो |

आप शरीर नही हो बलकक अनक शरीर दश सागर पथवी गरह नकषतर सयक चनि एव पर बरहमाणड़ क दषटटा हो साकषी हो | इस साकषी भाव म जाग जाओ |

थोड़ी दर क बाद कफ़र स परारायाम सदहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन ववचारो को दखत रहो |

इस अवसथा म दढ तनशचय करो कक lsquoम जसा चहता हा वसा होकर रहागा |rsquo ववषयसख सतता धन-दौलत इसयादद की इचछा न करो कयोकक तनशचयबल या आसमबलरपी हाथी क पदचचहन म और सभी क पदचचहन समाववषटठ हो ही जायग |

आसमानदरपी सयक क उदय होन क बाद लमटटी क तल क दीय क पराकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

ककसी भी भावना को साकार करन क ललय हदय को करद ड़ाल ऐसी तनशचयासमक बललषटट ववतत होनी आवशयक ह | अनतःकरर क गहर-स-गहर परदश म चोट कर ऐसा परार भरक तनशचयबल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल ड़ालन क ललय |

सदा समरर रह की इधर-उधर भटकती ववततयो क साथ तमहारी शलकत भी तरबखरती रहती ह |

अतः ववततयो को बहकाओ नही | तमाम ववततयो को एकतरतरत करक साधनाकाल म आसमचचनतन म लगाओ और वयवहारकाल म जो कायक करत हो उसम लगाओ |

दततचचतत होकर हरक कायक करो | अपन सवभाव म स आवश को सवकथा तनमकल कर दो | आवश म आकर कोई तनरकय मत लो कोई किया मत करो | सदा शानत ववतत धारर करन का अभयास करो | ववचारशील एव परसनन रहो | सवय अचल रहकर सागर की तरह सब ववततयो की तरगो को अपन भीतर समालो | जीवमातर को अपना सवरप समझो | सबस सनह रखो | ददल को वयापक रखो | सकचचततता का तनवारर करत रहो | खणड़ातमक ववतत का सवकथा सयाग करो |

लजनको बरहमजञानी महापरष का सससग और अरधयासमववदया का लाभ लमल जाता ह उसक जीवन स दःख ववदा होन लगत ह | ॐ आननद

आसमतनषटठा म जाग हए महापरषो क सससग एव सससादहसय स जीवन को भलकत और वदात स पषटट एव पलककत करो | कछ ही ददनो क इस सघन परयोग क बाद अनभव होन लगगा कक भतकाल क नकारसमक सवभाव सशयासमक-हातनकारक ककपनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था ववषला कर ददया था | अब तनशचयबल क चमसकार का पता चला | अततकम म आववरभत ददवय खजाना अब लमला | परारबध की बडड़याा अब टटन लगी |

ठीक ह न करोग ना दहममत पढकर रख मत दना इस पलसतका को | जीवन म इसको बार-बार पढत रहो | एक ददन म यह परक ना होगा | बार-बार अभयास करो | तमहार ललय यह एक ही पलसतका काफ़ी ह | अनय कचरापटटी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनकरि

गर भलकत योग

(Guru Bhakti Yog) लखक

शरी सवािी मशवाननद सरसवती समपादक

शरी सवािी सषचचदानद

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आककपजनमकोटीना यजञवरततपः कियाः

ताः सवाकः सफला दवव गरसतोषमातरतः

ह दवी कलपपययनत क करोड़ो जनिो क यजञ वरत तप और शासतरोकत ककरयाए य सब गरदव क सतोि िातर स सफल हो जात ह

(भगवान शकर) अमानमससरो दकषो तनमकमो दढसौहदः

अससवरोऽथक लजजञासः अनसयः अमोघवाक

सषतशटय िान और ितसर स रहहत अपन कायय ि दकष ििता रहहत गर ि दढ़ परीततवाला तनशचलधचतत परिाथय का षजजञास ईटयाय स रहहत और सतयवादी होता ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनिम तनवदन

आिख

गरभषकतयोग की िहतता पप सत शरी आसाराि जी बाप एक अदभत षवभ तत

गरभषकतयोग

गर और मशटय

गरभषकत का षवकास

गरभषकत की मशकषा गर की िहतता गरभषकत का अभयास

सा क क सचच पथपरदशयक

गरभषकत का षववरण

गरभषकत की नीव

गरभषकत का सषव ान

गर और दीकषा ितरदीकषा क तनयि

जप क तनयि

िनटय क चार षवभाग

गरकपा हह कवल ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

तनवदन

गर की आवशयकता गर क परतत मशटय की भषकत कसी होनी चाहहए एव गर क िागयदशयन क दवारा सा क मशटय ककस परकार आति-साकषातकार कर सकता ह इस षविय ि प जय शरी सवािी मशवाननदजी िहाराज न अपनी कई पसतको ि मलखा ह शरी गरदव क अगरगणय मशटय एव उनक तनजी रहसयितरी शरी सवािी सषचचदानदजी न सोचा कक सवािी जी िहाराज की पसतको ि स गर एव गरभषकत क षविय ि जो जो मलखा गया ह वह सब सकमलत करक अलग पसतक क रप ि परकामशत करना अतयत आवशयक ह अतः उनहोन यह गरभषकतयोग पसतक का समपादन ककया

आधयाषतिक िागय ि षवचरन वाल सा को क मलए यह पसतक बहत ही उपयोगी ह इतना ही नही एक आशीवायद क सिान ह

सदगरदव क कपा-परसादरप यह पसतक आपको अिरतव परि सख और शाषनत परदान कर यही अभयथयना

अनकरि

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आमख

सवामी लशवाननद

किय और कतताय पदाथय और वयषकत क समबन स जञान होता ह वह एक परककरया ह चतना नही ह बाहय पदाथय और आनतररक षसथतत की परततककरया क दवारा ही सब परककरया परकि होती ह िनटय ि जञान का उदभव यह ऐसी ही परततककरया क दवारा घहित एक रहसयिय परककरया ह ि लतः जञान सावयबतरक ह और उसक मलए कोई परककरया आवशयक नही ह परनत जञान का उदय िान भावातीत चतना नही अषपत समबषन त वयषकत ि जञान का उदय सवोचच जञान को सवरपजञान अपन सतय अषसततव क बो षवियक जञान कहा जाता ह जीव ि इस सवरपजञान का उदय िन की वषततयो क दवारा अमभवयषकत की सापकष परककरया स होता ह इस परकार उदय की परककरया क दौरान जञान वषततजञान क रप ि होता और वषततजञान तनषशचत रप स चतना की दश एव काल स बद अवसथा ह

िानसशासतर षजस जञान कहता ह वह वषततजञान ह उसकी परबलता वयापकता और गहनता अलग-अलग हो सकती ह वषततजञान बाहय किय और कतताय पदाथय और वयषकत क समबन क मसवाय उतपनन नही हो सकता इस षवशव ि कोई भी घिना दो घिना या षसथततयो क सयोग स ही घहित हो सकती ह और तभी वषततजञान उतपनन हो सकता ह आधयाषतिक जञान क करिशः आषवटकार क मलए आधयाषतिक िागय का सा क कतताय या वयषकत क रप ि िाना जा सकता ह अब द सरी वसत या वयषकत किय क रप ि आवशयक ह

जब ऐषचछक अनशासन और एकागरता क दवारा अपन िन की तनियलता बढ़ती ह तब भावातीत चतना क परततबबमब क रप ि जञान का आषवटकार होता ह जञान क आषवटकार की िातरा फकय िन की तनियलता क फकय क कारण होता ह ककसी भी परकार क जञान क उदभव क मलए

बाहय सा न किय या ककरया आवशयक ह अतः सा क ि जञान का आषवभायव करन क मलए गर की आवशयकता होती ह परसपर परभाषवत करन की सावयबतरक परककरया क मलए एक द सर क प रक दो भाग क रप ि गर-मशटय ह मशटय ि जञान का उदय मशटय की पातरता और गर की चतनाशषकत पर अवलषमबत ह मशटय की िानमसक षसथतत अगर गर की चतना क आगिन क अनरप पयायपत िातरा ि तयार नही होती तो जञान का आदान-परदान नही हो सकता इस बरहिाणड ि कोई भी घिना घहित होन क मलए यह प वयशतय ह जब तक सावयबतरक परककरया क एक द सर क प रक ऐस दो भाग या दो अवसथाए इकटठी नही होती तब तक कही भी कोई भी घिना घहित नही हो सकती

आति-तनरीकषण क दवारा जञान का उदय सवतः हो सकता ह और इसमलए बाहय गर की बबलकल आवशयकता नही ह यह ित सवयसवीकत नही बन सकता इततहास बताता ह कक जञान की हर एक शाखा ि मशकषण की परककरया क मलए मशकषक की सघन परवषतत अतयत आवशयक ह यहद ककसी भी वयषकत ि ककसी भी सहायता क मसवाय सहज रीतत स जञान का उदय सभव होता तो सक ल कॉलज एव य तनवमसयहियो की कोई आवशयकता नही रहती जो लोग मशकषक की सहायता क बबना ही सवततर रीतत स कोई वयषकत कशल बन सकता ह ऐस गलत िागय पर ल जान वाल ित का परचार परसार करत ह व लोग सवय तो ककसी मशकषक क दवारा ही मशकषकषत होत ह हा जञान क उदय क मलए मशटय या षवदयाथी क परयास का िहततव कि नही ह मशकषक क उपदश षजतना ही उसका भी िहततव ह

इस बरहिाणड ि कतताय एव किय सतय क एक ही सतर पर षसथत ह कयोकक इसक मसवाय उनक बीच पारसपररक आदान-परदान सभव नही हो

सकता अलग सतर पर षसथत चतना शषकत क बीच परततककरया नही हो सकती हालाकक मशटय षजस सतर पर होता ह उस सतर को िाधयि बनाकर गर अपनी उचच चतना को मशटय पर कषनरत कर सकत ह इसस मशटय क िन का योगय रपातर हो सकता ह गर की चतना क इस कायय को शषकत सचार कहा जाता ह इस परककरया ि गर की शषकत मशटय ि परषवटि होती ह ऐस उदाहरण भी मिल जात ह कक मशटय क बदल ि गर न सवय ही सा ना की हो और उचच चतना की परतयकष सहायता क दवारा मशटय क िन की शदध करक उसका ऊधवीकरण ककया हो

दोिदषटिवाल लोग कहत ह अनतरातिा की सलाह लकर सतय-असतय अचछा-बरा हि पहचान सकत ह अतः बाहय गर की आवशयकता नही ह

ककनत यह बात धयान ि रह कक जब तक सा क शधच और इचछा-वासनारहहतता क मशखर पर नही पहच जाता तब तक योगय तनणयय करन ि अनतरातिा उस सहायरप नही बन सकती

पाशवी अनतरातिा ककसी वयषकत को आधयाषतिक जञान नही द सकती िनटय क षववक और बौदध क ित ह परायः सभी िनटयो की बदध सिपत इचछाओ तथा वासनाओ का एक सा न बन जाती ह िनटय की अनतरातिा उसक अमभगि झकाव रधच मशकषा आदत वषततया और अपन सिाज क अनरप बात ही कहती ह अफरीका क जगली आहदवासी समशकषकषत यरोषपयन और सदाचार की नीव पर सषवकमसत बन हए योगी की अनतरातिा की आवाज मभनन-मभनन होती ह बचपन स अलग-अलग ढग स बड़ हए दस अलग-अलग वयषकतयो की दस अलग-अलग अनतरातिा होती ह षवरोचन न सवय ही िनन

ककया अपनी अनतरातिा का िागयदशयन मलया एव ि कौन ह इस सिसया का आतितनरीकषण ककया और तनशचय ककया कक यह दह ही ि लभ त तततव ह

याद रखना चाहहए कक िनटय की अनतरातिा पाशवी वषततयो भावनाओ तथा पराकत वासनाओ की जाल ि फ सी हई ह िनटय क िन की वषतत षविय और अह की ओर ही जायगी आधयाषतिक िागय ि नही िड़गी आति-साकषातकार की सवोचच भ मिका ि षसथत गर ि मशटय अगर अपन वयषकततव का समप णय सिपयण कर द तो सा ना-िागय क ऐस भयसथानो स बच सकता ह ऐसा सा क ससार स पर हदवय परकाश को परापत कर सकता ह िनटय की बदध एव अनतरातिा को षजस परकार तनमियत ककया जाता ह अभयसत ककया जाता ह उसी परकार व कायय करत ह सािानयतः व दशयिान िायाजगत तथा षविय वसत की आकाकषा एव अह की आकाकषा प णय करन क मलए काययरत रहत ह सजग परयतन क बबना आधयाषतिक जञान क उचच सतय को परापत करन क मलए काययरत नही होत

गर की आवशयकता नही ह और हरएक को अपनी षववक-बदध तथा अनतरातिा का अनसरण करना चाहहए ऐस ित का परचार परसार करन वाल भ ल जात ह कक ऐस ित का परचार करक व सवय गर की तरह परसतत हो रह ह ककसी की मशकषक का आवशयकता नही ह ऐसा मसखान वालो को उनक मशटय िानपान और भषकतभाव अषपयत करत ह भगवान बद न अपन मशटयो को बो हदया कक ति सवय ही ताककय क षवशलिण करक िर मसद ानत की योगयता-अयोगयता और सतयता की जाच करो बद कहत ह इसमलए मसद ानत को सतय िानकर सवीकार कर लो ऐसा नही ककसी भी भगवान की प जा करना

ऐसा उनहोन मसखाया लककन इसका पररणाि यह आया कक िहान गर एव भगवान क रप ि उनकी प जा शर हो गई इस परकार सवय ही धचनतन करना चाहहए और गर की आवशयकता नही ह इस ित की मशकषा स सवाभाषवक ही सीखनवाल क मलए गर की आवशयकता का इनकार नही हो सकता िनटय क अनभव कतताय किय क परसपर समबन की परककरया पर आ ाररत ह

पषशचि ि कछ लोग िानत ह कक गर पर मशटय का अवलबन एक िानमसक बन न ह िानस-धचककतसा क िताबबक ऐस बन न स िकत होना जररी ह यहा सपटिता करना अतयनत आवशयक ह कक िानस-धचककतसा वाल िानमसक परावलमबन स गर-मशटय का समबन बबलकल मभनन ह गर की उचच चतना क आशरय ि मशटय अपना वयषकततव सिषपयत करता ह गर की उचच चतना मशटय की चतना को आवतत कर लती और उसका ऊधवीकरण मशटय का गर पर अवलमबन कवल परारभ ि ही होता ह बाद ि तो वह परबरहि की शरणागतत बन जाती ह गर सनातन शषकत क परतीक बनत ह ककसी ददी क िानस-धचककतसक परतत परावलमबन का समबन तोड़ना अतनवायय ह कयोकक यह समबन ददी का िानमसक तनाव कि करन क मलए असथायी समबन ह जब धचककतसा प री हो जाती ह तब यह परावलमबन तोड़ हदया जाता ह और ददी प वय की भातत अलग और सवततर हो जाता ह ककनत गर-मशटय क समबन ि परारभ ि या अनत ि कभी भी अतनचछनीय परावलमबन नही होता यह तो कवल पराशषकत पर ही अवलमबन होता ह गर को दह सवरप ि यह एक वयषकत क सवरप ि नही िाना जाता ह गर पर अवलमबन मशटय क पकष ि दखा जाय तो

आतिशदध की तनरतर परककरया ह षजसक दवारा मशटय ईशवरीय परि तततव का अतति लकषय परापत कर सकता ह

कछ लोग उदाहरण दत ह कक पराचीन सिय ि भी याजञवलकय न अपन गर वशपायन स अलग होकर ककसी भी अनय गर की सहाय क बबना ही सवततर रीतत स आधयाषतिक षवकास ककया था परनत याजञवालकय गर स अलग हो गय इसका अथय यह नही ह कक व गर क वफादार नही थ गर न करोध त होकर कहा था कक उनहोन दी हई षवदया लौिाकर आशरि छोड़कर चल जाओ फलतः याजञवलकय ि िानव-गर क परतत अशरद ा का परादभायव हआ लककन उनहोन गर की खोज करना छोड़ नही हदया उनहोन गर की आवशयकता का असवीकार नही ककया ह और आधयाषतिक िागय ि सवततर रीतत स आग बढ़ा जा सकता ह ऐसा भी नही िाना ह उनहोन उचचतर गर स ययनारायण का आशरय मलया जब उनहोन कफर स जञान परापत ककया तब स यय की कपा परापत करन क मलए याजञवलकय क दढ़ सकलप बल एव हहमित पर परसनन होकर परान गर न अपन अनय मशटयो को जञान दन क मलए पराथयना की तब याजञवलकय न अनय मशटयो को भी जञान हदया था

परकतत क षवमभनन सवरपो क दवारा अमभवयकत ईशवर ही सवोचच गर ह हिार इदयधगदय जो षवशव ह वह हिार जीवन ि बो दन वाला मशकषक ह हि अगर परकतत की लीला क परतत सजग रह तो हिार सिकष होन वाली हरएक घिना ि गहन रहसय एव बो पाठ मिल जाता ह यह षवशव ईशवर का साकार सवरप ह उसकी लीला ग ढ़ और रहसयिय ह यह लीला आनतर एव बाहय वयषकतलकषी एव वसतलकषी हर परकार क जीवन क अनभवो को सिाषवटि कर लती ह उसको जानन स सिझन स हिार अनभव भावना एव सिझ का योगय

षवकास होता ह परबरहि क परतत हिार षवकास क मलए पररवतयन सभव बनता ह

अगर हि परकतत की उतकराषनत की परककरया क साथ वयषकतगत षवकास को नही जोड़ग तो कवल याबतरक षवकास होगा उसि वयषकत अतनवाययतः घसीिा जाता ह उस पर ककसी वयषकत का तनयतरण नही होता ककनत षवकास जब परि चतना क अश सवरप होता ह और वयषकत की अपनी चतना ि घलमिल जाता ह तब योग की परककरया घहित होती ह वयषकत की चतना अपन अषसततव को आतिा क साथ पहचानकर अपन आतिा ि वषशवक उतकराषनत का अनभव कर यह परककरया योग ह अनय दषटि स दख तो बरहिाणड की लीला का लघ सवरप ि अपनी आतिा ि अनभव करना योग ह जब यह षसथतत परापत होती ह तब वयषकत ईशवरचछा को समप णयतः शरण हो जाता ह अथवा पराशषकत क तनयि उसको इतन तादश बन जात ह कक परकतत की घिनाओ एव िनटय की इचछाओ क बीच सघिो का प णयतः लोप हो जाता ह उस वयषकत की अमभलािाए दवी इचछा या परकतत की घिनाओ स अमभनन बन जाती ह

गर की यह सवोचच षवभावना ह और हर सा क को यह परापत करना ह वयषकतगत गर का सवीकार करना यानी सा क की परबरहि ि षवलीन होन की तयारी और उस हदशा ि एक सोपान गर की षवभावना क षवकास क मलए तथा वयषकत की गर क परतत शरणागतत षवमभनन सोपान ह कफर भी सा ना क ककसी भी सोपान पर गर की आवशयकता का इनकार नही हो सकता कयोकक आति-साकषातकार क मलए तड़पत हए सा क को होन वाली परबरहि की अनभ तत का नाि गर ह

अनकरि

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गरभलकतयोग की महतता बरहमलीन सवामी लशवाननदजी

षजस परकार शीघर ईशवरदशयन क मलए कमलयग-सा ना क रप कीतयन-सा ना ह उसी परकार इस सशय नाषसतकता अमभिान और अहकार क यग ि योग की एक नई पद तत यहा परसतत हगरभषकतयोग यह योग अदभत ह इसकी शषकत असीि ह इसका परभाव अिोघ ह इसकी िहतता अवणयनीय ह इस यग क मलए उपयोगी इस षवशि योग-पद तत क दवारा आप इस हाड़-चाि क पाधथयव दह ि रहत हए ईशवर क परतयकष दशयन कर सकत ह इसी जीवन ि आप उनह आपक साथ षवचरण करत हए तनहार सकत ह

सा ना का बड़ा दशिन रजोगणी अहकार ह अमभिान को तनि यल करन क मलए एव षवििय अहकार को षपघलान क मलए गरभषकतयोग उतति और सबस अध क सचोि सा निागय ह षजस परकार ककसी रोग क षविाण तनि यल करन क मलए कोई षवशि परकार की जनतनाशक दवाई आवशयक ह उसी परकार अषवदया और अहकार क नाश क मलए गरभषकतयोग सबस अध क परभावशाली अि लय और तनषशचत परकार का उपचार ह वह सबस अध क परभावशाली िायानाशक और अहकार नाशक ह गरभषकतयोग की भावना ि जो सदभागी मशटय तनटठाप वयक सराबोर होत ह उन पर िाया और अहकार क रोग की कोई कसर नही होती इस योग का आशरय लन वाला वयषकत सचिछ भागयशाली ह

कयोकक वह योग क अनय परकारो ि भी सवोचच सफलता हामसल करगा उसको किय भषकत धयान और जञानयोग क फल प णयतः परापत होग

इस योग ि सलगन होन क मलए तीन गणो की आवशयकता हः तनटठा शरद ा और आजञापालन प णयता क धयय ि सतनटठ रहो सशयी और ढील ढाल ित रहना अपन सवीकत गर ि समप णय शरद ा रखो आपक िन ि सशय की छाया को भी फिकन ित दना एक बार गर ि समप णय शरद ा दढ़ कर लन क बाद आप सिझन लगग कक उनका उपदश आपकी शरटठ भलाई क मलए ही होता ह अतः उनक शबद का अनतःकरणप वयक पालन करो उनक उपदश का अकषरशः अनसरण करो आप हदयप वयक इस परकार करग तो ि षवशवास हदलाता ह कक आप प णयता को परापत करग ही ि पनः दढ़ताप वयक षवशवास हदलाता ह

अनकरि

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पप सत शरी आसारामजी बापः एक अदभत ववभतत

धयान और योग क अनभव कस परापत ककय जाए प जा पाठ जप-तप धयान करन पर भी जीवन ि वयापत अतषपत का कस तनवारण कर ईशवर ि कस िन लगाय अपन अदर ही तनहहत आतिानद क खजान को कस खोल वयावहाररक जीवन ि परशान करन वाल भय धचनता तनराशा हताशा आहद को जीवन स द र कस भगाय तनषशचतता तनभययता तनरनतर परसननता परापत करक जीवन को आननद स कस िहकाय अपन पराचीन शासतरो ि वरणयत आननद-सवरप ईशवर

क अषसततव की झाकी हि अपन हदय ि कस पाय कया आज भी यह सब समभव ह

हा समभव ह अवशयिव िानव को धचततत बनान वाल इन परशनो का सिा ान सा ना क तनषशचत पररणािो क दवारा कराक षपपास सा को क जीवन को ईशवरामभिख करक उस ि रता परदान करन वाल ऋषि-िहषिय और सत-िहापरि आज भी सिाज ि वतयिान ह बहरसना वसनधरा इस सत िहापरिो की सगध त हारिाला ि प जयपाद सत शरी आसारािजी बाप एक प णय षवकमसत सि र पटप ह

अहिदाबाद शहर ि ककनत शहरी वातावरण स द र साबरितत की िनिोहक पराकततक गोद ि तवररत गतत स षवकमसत हए उनक पावन आशरि क अधयातिपोिक वातावरण ि आज हजारो सा क जाकर भषकतयोग नादानस ानयोग जञानयोग एव कणडमलनी योग की शषकतपात विाय का लाभ उठा-उठाकर अपन वयषकतगत पारिाधथयक जीवन को अध काध क उननत एव आननदिय बना रह ह धचतत ि सिता का परसाद पाकर व वयावहाररक जीवन-नौका को बड़ ही उतसाह स ख-खकर तनहाल होत जा रह ह

पराचीन ऋषि कलो का सिरण करान वाल इस पावन आशरि ि कणडमलनी योग की सचची अनभ तत कराक आषतिक परिसागर ि डबकी लगवाकर िानव सिदाय को ईशवरीय आननद ि सराबोर करक अगितनगि क औमलया हजारो तपत हदयवाल ससारयाबतरयो क आशरयदाता वि-वकषतलय परिप णय हदयवाल सहज साषननधय और सतसग िातर स वदानत क अित-रस का सवाद चखा रह ह

सत शरी क नाि को सनकर उनकी पसतक पढ़कर अनक सजजन उनक दशयन और िलाकात क मलए कत हलवश एक बार उनक आशरि ि

आत ह कफर तो व तनयमित आन वाल सा क बनकर योग और वदानत क रमसक बन जात ह व अपन जीवन-परवाह को अितिय आननद-मसन की तरफ बहत हए दखकर हदय ि गदगहदत हो जात ह आननद ि सराबोर हो जात ह

एक अजब योगी आशरि ि जाकर प जयशरी क दशयन और आधयाषतिक तज स

उददीपत नयनाित स मसकत एक सपरमसद लखक वकता ततरी सजजन न मलखा हः

कोई िझस प छ की अहिदाबाद क आसपास कौन सचचा योगी ह ि तरनत सत शरी आसारािजी बाप का नाि द गा साबरति षसथत एक भवय एव षवशाल आशरि ि षवराजिान इन हदवयातिा िहापरि का दशयन करना वासतव ि जीवन की एक उपलषब ह उनक तनकि ि पहचना तनषशचत ही अहोभागय की सीिा पर पहचना ह

योधगयो की खोज ि ि काफी भिका ह पवयत और गफाओ क चककर कािन ि कभी पीछ िड़कर दखा तक नही परनत परभतवशाली वयषकत क िहा नी ऐस सत शरी आसारािजी बाप स मिलत ही िर अनतर ि परतीतत सी हो गई कक यहा तो शद ति सवणय ही सवणय ह

परम और परजञा क सागर

सत शरी की आखो ि ऐसा हदवय तज जगिगाया करता ह कक उनक अनदर की गहरी अतल हदवयता ि ड ब जान की कािना करन वाला कषणभर ि ही उसि ड ब जाता ह िानो उन आखो ि परि और परकाश का असीि सागर हहलौर ल रहा ह

व सरल भी इतन कक छोि-छोि बालको की तरह वयवहार करन लग उनि जञान भी ऐसा अदभत कक षवकि पहली को पलभर ि

सलझा कर रख द उनकी वाणी की बनकार ऐसी कक सजगता क ति पर सोनवाल को कषणभर ि जगाकर जञान-सागर की िसती ि लीन कर द

अनक शलकतयो क सवामी अनयतर कही दखी न गई हो ऐसी योगमसदध िन अनक बार उनि

दखी ह अनक दररहरयो को उनहोन सख और सिदध क सागर ि सर करन वाल बना हदय ह उनक चमबकीय शषकत-समपनन पावन साषननधय ि असखय सा को दवारा सवानभ त चितकारो और हदवय अनभवो का आलखन करन लग तो एक षवराि भागवत कथा तयार हो जाय आगत वयषकत क िन को जान लन की शषकत तो उनि इतनी तीवरता स सककरय रहती ह िानो सिसत नभिणडल को व अपन हाथो ि लकर दख रह हो

ऐस परि मसद परि क साषननधय ि उनकी पररक पावन अितवाणी ि स तमहारी जीवन-सिसयाओ का सागोपाग हल तमह अवशय मिल जायगा

साबरति पर षसथत चतनय लोक तलय सत शरी आसारािजी आशरि ि परषवटि होत ही एक अदभत शाषनत की अनभ तत होन लगती ह परतयक रषववार और ब वार को दोपहर 11 बज स हररोज शाि 6 बज स एव धयानयोग मशषवरो क दौरान आशरि ि जञानगगा उिड़ती रहती ह आधयाषतिक अनभ ततयो क उपवन लहलहात ह आशरि का समप णय वातावरण िानो एक चतनय षवदयततज स छलछलाता ह परि चतनय िानो सवय ही ि ततय सवरप ारण करक परि और परकाश का सागर लहराता ह षवदयाधथययो क मलए आयोषजत योग मशषवरो ि अनक

षवदयाधथययो क मलए आयोषजत योग मशषवरो ि अनक षवदयाधथययो एव अधयापको न अपन जीवन-षवकास का अनोखा पथ पा मलया ह

प जय बाप का षवदयनिय वयषकततव अनतसतल की गहराई ि स उिड़ती हई वाणी की गग ारा और आशरि क सिगर वातावरण ि फलती हई हदवयता का आसवाद एक बार भी षजस ककसी को मिल जाता ह वह कदाषप उस भ ल नही सकता जो अपन उर क आगन ि अित गरहण करन क मलए ततपर हो उस अित का आसवाद अवशय मिल जाता ह

बरहितनटठ योगमसद िा यय क िहामसन सिान सत शरी आसाराि जी बाप का साषननधय सवन करन वाल का और अितविाय को सगरहहत करन वाल का अलप परिाथय भी वयथय नही जायगा ऐसा अनको का अनभव बोल रहा ह

गरतवव

षजस परकार षपता या षपतािह की सवा करन स पतर या पौतर खश होता ह इसी परकार गर की सवा करन स ितर परसनन होता ह गर ितर एव इटिदव ि कोई भद नही िानना गर ही ईशवर ह उनको कवल िानव ही नही िानना षजस सथान ि गर तनवास कर रह ह वह सथान कलास ह षजस घर ि व रहत ह वह काशी या वाराणसी ह उनक पावन चरणो का पानी गगाजी सवय ह उनको पावन िख स उचचाररत ितर रकषणकतताय बरहिा सवय ही ह

गर की ि ततय धयान का ि ल ह गर क चरणकिल प जा का ि ल ह गर का वचन िोकष का ि ल ह

गर तीथयसथान ह गर अषगन ह गर स यय ह गर सिसत जगत ह सिसत षवशव क तीथय ाि गर क चरणकिलो ि बस रह ह बरहिा

षवटण मशव पावयती इनर आहद सब दव और सब पषवतर नहदया शाशवत काल स गर की दह ि षसथत ह कवल मशव ही गर ह

गर और इटिदव ि कोई भद नही ह जो सा ना एव योग क षवमभनन परकार मसखात ह व मशकषागर ह सबि सवोचच गर व ह षजनस इटिदव का ितर शरवण ककया जाता ह और सीखा जाता ह उनक दवारा ही मसदध परापत की जा सकती ह

अगर गर परसनन हो तो भगवान परसनन होत ह गर नाराज हो तो भगवान नाराज होत ह गर इटिदवता क षपतािह ह

जो िन वचन किय स पषवतर ह इषनरयो पर षजनका सयि ह षजनको शासतरो का जञान ह जो सतयवरती एव परशात ह षजनको ईशवर-साकषातकार हआ ह व गर ह

बर चररतरवाला वयषकत गर नही हो सकता शषकतशाली मशटयो को कभी शषकतशाली गरओ की किी नही रहती मशटय को षजतनी-षजतनी गर ि शरद ा होती ह उतन फल की उस पराषपत होती ह ककसी आदिी क पास य तनवमसयिी की उपाध या हो इसस वह गर की कसौिी करन की योगयतावाला नही बन जाता गर क आधयाषतिक जञान की कसौिी करना यह ककसी भी िनटय क मलए ि खयता एव उददणडता की पराकाटठा ह ऐसा वयषकत दनयावी जञान क मिथयामभिान स अन बना हआ ह

अनकरि

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परकरर 1

गरभलकतयोग

गरभलकतयोग क अश

गरभषकतयोग िाना सदगर को समप णय आतिसिपयण करना

गरभषकतयोग क आठ िहततवप णय अग इस परकार ह- (अ) गर भषकतयोगक अभयास क मलए सचच हदय की षसथर िहचछा (ब) सदगर क षवचार वाणी और कायो ि समप णय शरद ा (क) गर क नाि का उचचारण और गर को नमरताप वयक साटिाग परणाि (ड) समप णय आजञाकाररता क साथ गर क आदशो का पालन (प) बबना फलपराषपत की अपकषा सदगर की सवा (फ) भषकतभावप वयक हररोज सदगर क चरणकिलो की प जा (भ) सदगर क दवी कायय क मलए आति-सिपयण तन िन न सिपयण (ि) गर की कलयाणकारी कपा परापत करन क मलए एव उनका पषवतर उपदश सनकर उसका आचरण करन क मलए सदगर क पषवतर चरणो का धयान

गरभषकतयोग योग का एक सवततर परकार ह

ििकष जब तक गरभषकतयोग का अभयास नही करता तब तक ईशवर क साथ एकरपता होन क मलए आधयाषतिक िागय ि परवश करना उसक मलए समभव नही ह

जो वयषकत गरभषकतयोग की कफलासफी सिझता ह वही गर को बबनशरती आति-सिपयण कर सकता ह

जीवन क परि धयय अथायत आति-साकषातकार की पराषपत गरभषकतयोग क अभयास दवारा ही हो सकती ह

गरभषकत का योग सचचा एव सरकषकषत योग ह षजसका अभयास करन ि ककसी भी परकार का भय नही ह

आजञाकारी बनकर गर क आदशो का पालन करना उनक उपदशो को जीवन ि उतारना यही गरभषकतयोग का सार ह

गरभलकतयोग का हत

िनटय को पदाथय एव परकतत क बन नो स िषकत हदलाना और गर को समप णय आतिसिपयण करक सव क अबाधय सवततर सवभाव का भान कराना यह गरभषकतयोग का हत ह

जो वयषकत गरभषकतयोग का अभयास करता ह वह बबना ककसी षवपषतत स अहभाव को तनि यल कर सकता ह ससार क िमलन जल को बहत सरलता स पार कर जाता ह और अिरतव एव शाशवत सख परापत करता ह

गरभषकतयोग िन को शानत और तनशचल बनान वाला ह गरभषकतयोग हदवय सख क दवार खोलन की अिोघ क जी ह

गरभषकतयोग क दवारा सदगर की कलयाणकारी कपा परापत करना जीवन का लकषय ह

गरभलकतयोग क लसदधानत

नमरताप वयक प जयशरी सदगर क पदारषवनद क पास जाओ सदगर क जीवनदायी चरणो ि साटिाग परणाि करो सदगर क चरणकिल की शरण ि जाओ सदगर क पावन चरणो की प जा करो सदगर क पावन चरणो का धयान करो सदगर क पावन चरणो ि ि लयवान अघयय अपयण करो सदगर क यशःकारी चरणो की सवा ि जीवन अपयण करो सदगर क दवी चरणो की मल बन जाओ ऐसा गरभकत हठयोगी लययोगी और राजयोधगयो स जयादा सरलताप वयक एव सलाित रीतत स सतय सवरप का साकषातकार करक नय हो जाता ह

सदगर क दवी पावन चरणो ि आतिसिपयण करन वाल को तनषशचनतता तनभययता और आननद सहजता स परापत होता ह वह लाभाषनवत हो जाता ह

आपको गरभषकतयोग क िागय दवारा सचच हदय स ततपरताप वयक परयास करना चाहहए

गर क परतत भषकत इस योग का सबस िहततवप णय अग ह

पषवतर शासतरो क षवशिजञ बरहितनटठ गर क षवचार वाणी और कायो ि समप णय शरद ा गरभषकतयोग का सार ह

गरभलकतयोग एक ववजञान क रप म इस यग ि आचरण ककया जा सक ऐसा सबस ऊ चा और सबस

सरल योग गरभषकतयोग ह

गरभषकतयोग की कफलासफी ि सबस बड़ी बात गर को परिशवर क साथ एकरप िानना ह

गरभषकतयोग की कफलासफी का वयावहाररक सवरप यह ह कक गर को अपन इटिदवता स अमभनन िान

गरभषकतयोग ऐसी कफलासफी नही ह जो पतर-वयवहार या वयाखयानो क दवारा मसखाई जा सक इसि तो मशटय को कई विय तक गर क पास रहकर मशसत एव सयिप णय जीवन बबताना चाहहए बरहिचयय का पालन करना चाहहए एव गहरा धयान करना चाहहए

गरभषकतयोग सवोतति षवजञान ह

गरभलकतयोग का फल

गरभषकतयोग अिरतव परि सख िषकत समप णयता शाशवत आननद और धचरतन शाषनत परदान करता ह

गरभषकतयोग का अभयास सासाररक पदाथो क परतत तनःसपहता और वरागय परररत करता ह तथा तटणा का छदन करता ह एव कवलय िोकष दता ह

गरभषकतयोग का अभयास भावनाओ एव तटणाओ पर षवजय पान ि मशटय को सहायरप बनता ह परलोभनो क साथ िककर लन ि तथा िन को कषब करन वाल तततवो का नाश करन ि सहाय करता ह अन कार को पार करक परकाश की ओर ल जान वाली गरकपा करन क मलए मशटय को योगय बनाता ह

गरभषकतयोग का अभयास आपको भय अजञान तनराशा सशय रोग धचनता आहद स िकत होन क मलए शषकतिान बनाता ह और िोकष परि शाषनत और शाशवत आननद परदान करता ह

गरभलकतयोग की साधना गरभषकतयोग का अथय ह वयषकतगत भावनाओ इचछाओ सिझ-

बदध एव तनशचयातिक बदध क पररवतयन दवारा अहोभाव को अनत चतना सवरप ि पररणत करना

गरभषकतयोग गरकपा क दवारा परापत सचोि सनदर अनशासन का िागय ह

गरभलकतयोग का महवव

किययोग भषकतयोग हठयोग राजयोग आहद सब योगो की नीव गरभषकतयोग ह

जो िनटय गरभषकतयोग क िागय स षविख ह वह अजञान अन कार एव ितय की परमपरा को परापत होता ह

गरभषकतयोग का अभयास जीवन क परि धयय की पराषपत का िागय हदखाता ह

गरभषकतयोग का अभयास सबक मलए खलला ह सब िहातिा एव षवदवान परिो न गरभषकतयोग क अभयास दवारा ही िहान कायय ककय

ह जस एकनाथ िहाराज प रणपोड़ा तोिकाचायय एकलवय शबरी सहजोबाई आहद

गरभषकतयोग ि सब योग सिाषवटि हो जात ह गरभषकतयोग क आशरय क बबना अनय कई योग षजनका आचरण अतत कहठन ह उनका समप णय अभयास ककसी स नही हो सकता

गरभषकतयोग ि आचायय की उपासना क दवारा गरकपा की पराषपत को ख ब िहततव हदया जाता ह

गरभषकतयोग वद एव उपतनिद क सिय षजतना पराचीन ह गरभषकतयोग जीवन क सब दःख एव ददो को द र करन का िागय

हदखाता ह

गरभषकतयोग का िागय कवल योगय मशटय को ही ततकाल फल दनवाला ह

गरभषकतयोग अहभाव क नाश एव शाशवत सख की पराषपत ि पररणत होता ह

गरभषकतयोग सवोतति योग ह

इस मागक क भयसथान

गर क पावन चरणो ि साटिाग परणाि करन ि सकोच होना यह गरभषकतयोग क अभयास ि बड़ा अवरो ह

आति-बड़पपन आति-नयायीपन मिथयामभिान आतिवचना दपय सवचछनदीपना दीघयस तरता हठागरह तछरनविी कसग बईिानी अमभिान षविय-वासना करो लोभ अहभाव य सब गरभषकतयोग क िागय ि आनवाल षवघन ह

गरभषकतयोग क सतत अभयास क दवारा िन की चचल परकतत का नाश करो

जब िन की बबखरी हई शषकत क ककरण एकबतरत होत ह तब चितकाररक कायय कर सकत ह

गरभषकतयोग का शासतर सिाध एव आति-साकषातकार करन हत हदयशदध परापत करन क मलए गरसवा पर ख ब जोर दता ह

सचचा मशटय गरभषकतयोग क अभयास ि लगा रहता ह

पहल गरभकतोयोग की कफलासफी सिझो कफर उसका आचरण करो आपको सफलता अवशय मिलगी

तिाि दगयणो को तनि यल करन का एकिातर असरकारक उपाय ह गरभषकतयोग का आचरण

गरभलकतयोग क मल लसदधानत

गर ि अखणड शरद ा गरभषकतयोग रपी वकष का ि ल ह

उततरोततर व यिान भषकतभावना नमरता आजञा-पालन आहद इस वकष की शाखाए ह सवा फ ल ह गर को आतिसिपयण करना अिर फल ह

अगर आपको गर क जीवनदायक चरणो ि दढ़ शरद ा एव भषकतभाव हो तो आपको गरभषकतयोग क अभयास ि सफलता अवशय मिलगी

सचच हदयप वयक गर की शरण ि जाना ही गरभषकतयोग का सार ह

गरभषकतयोग का अभयास िान गर क परतत शद उतकि परि

ईिानदारी क मसवाय गरभषकतयोग ि बबलकल परगतत नही हो सकती

िहान योगी गर क आशरय ि उचच आधयाषतिक सपननदनोवाल शानत सथान ि रहो कफर उनकी तनगरानी ि गरभषकतयोग का अभयास करो तभी आपको गरभषकतयोग ि सफलता मिलगी

गरभषकतयोग का िखय मसद ानत बरहितनटठ गर क चरणकिल ि बबनशरती आतिसिपयण करना ही ह

गरभलकतयोग क मखय लसदधानत

गरभषकतयोग की कफलासफी क िताबबक गर एव ईशवर एकरप ह अतः गर क परतत समप णय आतिसिपयण करना अतयत आवशयक ह

गर क परतत समप णय आति-सिपयण करना यह गरभषकत का सवोचच सोपान ह

गरभषकतयोग क अभयास ि गरसवा सवयसव ह

गरकपा गरभषकतयोग का आरखरी धयय ह

िोिी बदध का मशटय गरभषकतयोग क अभयास ि कोई तनषशचत परगतत नही कर सकता

जो मशटय गरभषकतयोग का अभयास करना चाहता ह उसक मलए कसग शतर क सिान ह

अगर आपको गरभषकतयोग का अभयास करना हो तो षवियी जीवन का तयाग करो

शाशवत सख का मागक जो वयषकत दःख को पार करक जीवन ि सख एव आननद परापत

करना चाहता ह उस अनतःकरणप वयक गरभषकतयोग का अभयास करना जररी ह

सचचा एव शाशवत सख तो गरसवायोग का आशरय लन स ही मिल सकता ह नाशवान पदाथो स नही

जनि-ितय क लगातार चलन वाल चककर स छ िन का कोई उपाय नही ह कया सख-दःख हिय-शोक क दवनदवो ि स िषकत नही मिल सकती कया सन ह मशटय इसका एक तनषशचत उपाय ह नाशवान

षवियी पदाथो ि स अपना िन वापस खीच ल और गरभषकतयोग का आशरय ल इसस त सख-दःख हिय-शोक जनि-ितय क दवनदवो स पार हो जायगा

िनटय जब गरभषकतयोग का आशरय लता ह तभी उसका सचचा जीवन शर होता ह जो वयषकत गरभषकतयोग का अभयास करता ह उस इस लोक ि एव परलोक ि धचरनतन सख परापत होता ह

गरभषकतयोग उसक अभयास को धचराय एव शाशवत सख परदान करता ह

िन ही इस ससार एव उसकी परककरया का ि ल ह िन ही बन न और िोकष सख और दःख का ि ल ह इस िन को कवल गरभषकतयोग क दवारा ही सयि ि रखा जा सकता ह

गरभषकतयोग अिरतव शाशवत सख िषकत प णयता अख ि आननद और धचरतन शाषनत दनवाला ह

गरभलकतयोग की महतता परि शाषनत का राजिागय गरभषकतयोग क अभयास स शर होता

जो जो मसदध या सनयास तयाग अनय योग दान एव शभ कायय आहद स परापत की जा सकती ह व सब मसदध या गरभषकतयोग क अभयास क शीघर परापत हो सकती ह

गरभषकतयोग एक शद षवजञान ह जो तनमन परकतत को वश ि लाकर परि सख परापत करन की पद तत हि मसखाता ह

कछ लोग िानत ह कक गरसवायोग तनमन कोहि का योग ह आधयाषतिक रहसय क बार ि यह उनकी बड़ी गलतफहिी ह

गरभषकतयोग गरसवायोग गरशरणयोग आहद सिानाथी शबद ह उनि कोई अथयभद नही ह

गरभषकतयोग सब योगो का राजा ह गरभषकतयोग ईशवरजञान क मलए सबस सरल सबस तनषशचत

सबस शीघरगािी सबस ससता भयरहहत िागय ह आप सब इसी जनि ि गरभषकतयोग क दवारा ईशवरजञान परापत करो यही शभ कािना ह

लशषटय को सचनाएा गरभषकतयोग का आशरय लकर आप अपनी खोयी हई हदवयता को

पनः परापत करो सख-दःख जनि-ितय आहद सब दवनदवो स पार हो जाओ

जगली बाघ शर या हाथी को पालना बहत सरल ह पानी या आग क ऊपर चलना बहत सरल ह लककन जब तक िनटय को गरभषकतयोग क अभयास क मलए हदय की तिनना नही जागती तब तक सदगर क चरणकिलो की शरण ि जाना बहत िषशकल ह

गरभषकतयोग िान गर की सवा क दवारा िन और उसक षवकारो पर तनयतरण एव पनःससकरण

गर को समप णय बबनशरती शरणागतत करना गरभषकत परापत करन क मलए तनषशचत िागय ह

गरभषकतयोग की नीव गर क ऊपर अखणड शरद ा ि तनहहत ह

अगर आपको सचिच ईशवर की आवशयकता हो तो सासाररक सखभोगो स द र रहो और गरभषकतयोग का आशरय लो

ककसी भी परकार की रकावि क बबना गरभषकतयोग का अभयास जारी रखो

गरभषकतयोग का अभयास ही िनटय को जीवन क हर कषतर ि तनभयय एव सदा सखी बना सकता ह

गरभषकतयोग क दवारा अपन भीतर ही अिर आतिा की खोज करो

गरभषकतयोग को जीवन का एकिातर हत उददशय एव सचच रस का षविय बनाओ इसस आपको परि सख की पराषपत होगी

गरभषकतयोग जञानपराषपत ि सहायक ह

गरभषकतयोग का िखय हत तफानी इषनरयो पर एव भिकत हए िन पर तनयतरण पाना ह

गरभषकतयोग हहनद ससकतत की एक पराचीन शाखा ह जो िनटय को शाशवत सख क िागय ि ल जाती ह और ईशवर क साथ सखद सिनवय करा दती ह

गरभषकतयोग आधयाषतिक और िानमसक आति-षवकास का शासतर ह

गरभषकतयोग का हत िनटय को षवियो क बन न स िकत करक उस शाशवत सख और दवी शषकत की ि ल षसथतत की पनः पराषपत करान का ह

गरभषकतयोग िनटय को दःख जरा और वयाध स िकत करता ह उस धचराय बनाता ह शाशवत सख परदान करता ह

गरभषकतयोग ि शारीररक िानमसक नततक और आधयाषतिक हर परकार क अनशासन का सिावश हो जाता ह इसस िनटय आतपपरभतव एव आति-साकषातकार पा सकता ह

गरभषकतयोग िन की शषकतयो पर षवजय परापत करन क मलए षवजञान एव कला ह

अनकरि

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परकरर-2

गर और लशषटय

गर की महतता जो आख गर क चरणकिलो का सौनदयय नही दख सकती व आख

सचिच अन ह जो कान गर की लीला की िहहिा नही सनत व कान सचिच

बहर ह गर रहहत जीवन ितय क सिान ह

गर कपा की समपषतत जसा और कोई खजाना नही ह भवसागर को पार करन क मलए गर क सतसग जसी और कोई

सरकषकषत नौका नही ह आधयाषतिक गर जसा और कोई मितर नही ह

गर क चरणकिल जसा और कोई आशरय नही ह

सदव गर की रि लगाओ

गर क परतत भलकतभावना शरद ा भषकत और ततपरता क फ लो स गर की प जा करो

आति-साकषातकार क िषनदर ि गर का सतसग परथि सतमभ ह

ईशवरकपा गर का सवरप ारण करती ह गर क दशयन करना ईशवर क दशयन करन क बराबर ह

षजसन सदगर क दशयन नही ककय वह िनटय अन ा ही ह िय कवल एक ही ह और वह ह गर क परतत भषकत एव परि का

िय

जब आपको दनयावी अपकषा नही रहती तब गर क परतत भषकतभाव जागता ह

आतिवतता गर क सग क परभाव स आपका जीवनसगराि सरल बन जायगा

गर का आशरय लो और सतय का अनसरण करो

आपक गर की कपा ि शरद ा रखो और अपन कततयवय का पालन करो गर की आजञा का अततकरिण िान खद ही अपनी कबर खोदन क बराबर ह सदगर मशटय पर सतत आशीवायद बरसात ह आतिसाकषातकारी गर जगदगर ह परि गर ह

जगदगर का हदय सौनदयय का ाि ह

गर की सवा जीवन का धयय गर की सवा करन का बनाओ

जीवन का हरएक कि अनभव गर क परतत आपकी शरद ा की कसौिी ह

मशटय कायय की धगनती करता ह जबकक गर उसक पीछ तनहहत हत और इराद की तलना करत ह

गर क कायय को सनदहप वयक दखना सबस बड़ा पाप ह गर क सिकष अपना दमभप णय हदखावा करन की कभी कोमशश ित

करना मशटय क मलए तो गरआजञापालन जीवन का कान न ह

आपक हदवय गर की सवा करन का कोई भी िौका चकना नही

जब आप अपन हदवय गर की सवा करो तब एकतनटठ और वफादार रहना

गर पर परि रखना आजञापालन करना यानी गर की सवा करना

गर की आजञा का पालन करना उनक समिान करन स भी बढ़कर ह

गर आजञा का पालन तयाग स भी बढ़कर ह

हर ककसी पररषसथतत ि अपन गर को तिाि परकार स अनक ल हो जाओ

अपन गर की उपषसथतत ि अध क बातचीत ित करो

गर क परतत शद परि यह गर आजञापालन का सचचा सवरप ह अपनी उततिोतति वसत परथि अपन गर को सिषपयत करो इसस

आसषकत सहज ि मििगी

मशटय ईटयाय डाह एव अमभिान रहहत तनःसपह और गर क परतत दढ़ भषकतभाववाला होना चाहहए वह ययवान और सतय को जानन क मलए तनशचयवाला होना चाहहए

मशटय को अपन गर क दोि नही दखना चाहहए मशटय को गर क सिकष अनावशयक एव अयोगय परलाप नही करना

चाहहए गर क दवारा जो सदजञान परापत होता ह वह िाया अथवा अधयास

का नाश करता ह

एक ही ईशवर अनक रप ि िाया क कारण हदखता ह ऐसा षजसको गरकपा स जञान होता ह वह सतय को जानता ह और वदो को सिझता ह

गरसवा और प जा क दवारा परापत तनरनतर भषकत स तीकषण ार वाल जञान क कलहाड़ स त ीर- ीर पर दढ़ताप वयक इस ससार रपी वकष को काि द

गर जीवन नौका का सकान ह और ईशवर उस नौका को चलान वाला अनक ल पवन ह

जब िनटय को ससार क परतत घणा उपजती ह उस वरागय आता ह और गर क हदय हए उपदश का धचनतन करन क मलए शषकतिान होता ह तब धयान ि बार-बार अभयासक कारण उसक िन की अतनटि परकतत द र होती ह

गर स भली परकार जान मलया जाय तभी ितर क दवारा शद पदा होती ह

लशषटयववतत क लसदधानत

िनटय अनाहद काल स अजञान क परभाव ि होन क कारण गर क बबना उस आति-साकषातकार नही हो सकता जो बरहि को जानता ह वही द सर को बरहिजञान द सकता ह

सयान िनटय को चाहहए कक वह अपन गर को आतिा-परिातिारप जानकर अषवरत भषकतभावप वयक उनकी प जा कर अथायत उनक साथ तदाकार बन

मशटय को गर एव ईशवर क परतत सतनटठ भषकतभाव होना चाहहए मशटय को आजञाकारी बनकर साव ान िन स एव तनटठाप वयक गर

की सवा करनी चाहहए और उनस भगवद भकत क कततयवय अथवा भगवद िय जानना चाहहए

मशटय को ईशवर क रप ि गर की सवा करना चाहहए षवशव क नाथ को परसनन करन का एव उनकी कपा क योगय बनन का सतनषशचत उपाय ह

मशटय को वरागय का अभयास करना चाहहए और अपन आधयाषतिक गर का सतसग करना चाहहए

मशटय को परथि तो अपन गर की कपा परापत करना चाहहए और उनक बताय हए िागय ि चलना चाहहए

मशटय को अपनी इषनरयो को सयि ि रखकर गर क आशरय ि रहना चाहहए सवा सा ना एव शासतराभयास करना चाहहए

मशटय को गर क दवार स जो कछ अचछा या बरा कि या जयादा सादा या सवाद खाना मिल वह गरभाई को अनक ल होकर खाना चाहहए

गर का रधयान

गर क चरणकिलो का धयान करना यह िोकष एव शाशवत सख की पराषपत का कवल एक ही िागय ह

जो िनटय गर क चरणकिलो का धयान नही करत व आतिा का घात करन वाल ह व सचिच षजनद शव क सिान कगल िवाली ह व अतत दररर लोग ह ऐस तनगर लोग बाहर स नवान हदखत हए भी आधयाषतिक जगत ि अतयत दररर ह

सयान सजजन अपन गर क चरणकिल क तनरनतर धयान रपी रसपान स अपन जीवन को रसिय बनात ह और गर क जञान रपी तलवार को साथ ि रखकर िोहिाया क बन नो को काि डालत ह

गर क चरणकिल का धयान करना यह शाशवत सख क दवार खोलन क मलए अिोघ चाबी ह

गर का धयान करना यह आरखरी सतय की पराषपत का कवल एक ही सचचा राजिागय ह

गर का धयान करन स सब दःख ददय एव शोक का नाश होता ह

गर का धयान करन स शोक व दःख क तिाि कारण नटि हो जात ह

गर का धयान आपक इटि दवता क दशयन कराता ह गरतव ि षसथतत कराता ह

गर का धयान एक परकार का वाययान ह षजसकी सहायता स मशटय शाशवत सख धचरतन शाषनत एव अख ि आननद क उचच लोक ि उड़ सकता ह

गर का धयान हदवयता की पराषपत क मलए राजिागय ह जो मशटय को हदवय जीवन क धयय तक सी ा ल जाता ह

गर का धयान एक रहसयिय सीड़ी ह जो मशटय को पथवी पर स सवगय ि ल जाती ह

गर क चरणकिल का धयान ककय बबना मशटय क मलए आधयाषतिक परगतत सभव नही ह

गर का तनयमित धयान करन स आतिजञान क परदश खल जात ह िन शात सवसथ एव षसथर बनता ह और अनतरातिा जागत होती ह

सख की ववजय

मशटय जब गर क चरणकिल का धयान करता ह तब सब सशय अपन आप नटि हो जात ह

मशटय जब गर की सरकषा ि होता ह तब कोई भी वसत उसक िन को कषमभत नही कर सकती

आप अगर अपन िन को बाहय पदाथो ि स खीचकर सतत धयान क दवारा गर क चरणकिल ि लगाओग तो आपक तिाि दःख नटि हो जाएग

गर का धयान करना यह तिाि िानवीय दःखो का नाश करन का एकिातर उपाय ह

जो मशटय अपन गर क चरणकिल ि अपना धचतत नही लगा सकता उस आतिजञान नही मिल सकता

जो मशटय गर का धयान बबलकल नही करता उस िन की शाषनत नही मिल सकती

अगर आपको इस ससार क दःख एव ददय द र करन हो तो आपको आति-साकषातकारी गर का धयान करन की आदत डालना चाहहए ठीक ही कहा हः

रधयानमल गरोमकतत कः पजामल गरोः पदम

मतरमल गरोवाककय मोकषमल गरोः कपा

गरकपा की आवशयकता गर की सहाय क बबना कोई आतिजञान पा नही सकता

गरकपा क बबना हदवय जीवन ि कोई परगतत नही कर सकता गरकपा क बबना आप िानमसक षवकारो स िकत नही हो सकत एव िोकष नही पा सकत

अगर आप अपन गर की ि ततय का धयान करन की आदत नही डालो तो आतिा का भवय वभव एव सनातन जयोतत आपस सदा क मलए अदशय रहगी

गर क सवरप का तनयमित एव वयवषसथत धयान करन की आदत डालकर आतिा को ढाकन वाल आवरण को चीर डालो

गर क सवरप का धयान करना यह तिाि रोगो क मलए शषकतशाली औि ह

गर का धयान करन स अनतरातिा क जञान क एव अनय कई ि ढ़ शषकतया परापत करन क मलए िन क दवार खल जात ह

गर का धयान करन स जीवन क तिाि दःख द र हो जात ह

शालनत और शलकत का मागक गर क सवरप का धयान करो तभी आपको सचची शाषनत और

आननद की पराषपत होगी

आधयाषतिक गर का धयान करन स बहत ही आधयाषतिक शषकत शाषनत नया जोि और नया बल मिलता ह

पषवतर गर का धयान करन स शद शषकतशाली षवचारो का षवकास होता ह

गर क सवरप का तनयमित धचनतन करन स िन इ र उ र भिकना ीर- ीर बनद कर दता ह

गर क सवरप का धयान करन स आधयाषतिक िागय ि स तिाि अड़चन द र हो जाती ह

गर का धयान करन स िन की उततजना द र होती ह और िन की शाषनत ि बहत ही वदध होती ह

हदवय गर क चरणकिलो का धयान करन क मलए बराहििह तय सबस जयादा अनक ल सिय ह चाल वयवहार ि भी कभी-कभी गर का धयान करक आप शषकत सफ ततय और पररणा परापत करत रहो

आप जयो ही बबसतर ि जागो कक तरनत गरितर का जाप करो यह बात बहत ही िहततवप णय ह

एकानत एव गर क सवरप का गहरा धचनतनय दो चीज आति-साकषातकार क मलए िहततवप णय आवशयकताए ह

रधयान क ललए पराथलमक तयाररयाा गर का धयान करन क मलए हरएक वसत को साषततवक बनाना

चाहहए सथान भोजन वसतर सग पसतक आहद सब साषततवक होना चाहहए

गर का धयान करना ककसी भी पररषसथतत ि छोड़ना नही चाहहए कवलल सदाचारी जीवन जीना ही ईशवर-साकषातकार क मलए पयायपत

नही ह गर का तनरनतर एव गहरा धयान करना अतनवायय ह अगर आपको ससार क दःख ददय एव जनि-ितय की िसीबतो स

सदा क मलए िकत होना हो तो आपको गर क सवरप का गहरा धयान करन की आदत डालना चाहहए

गर का धयान करना यह अननय अनभव या सी आतिजञान क मलए राजिागय ह

अनन वसतर तनवास आहद शारीररक आवशयकताओ क मलए मशटय को धचनता नही करना चाहहए गरकपा स उसक मलय सब चीजो का इनतजाि हो जाता ह

गर का धयान मशटय क मलए एकिातर ि लयवान प जी ह

भकतो क मलए भगवान हिशा गर क रप ि पथपरदशयक बनत ह

िनटय को गर की सवा करना चाहहए और गर जो जो आजञा कर उन सबका पालन करना चाहहए इसि उस बबलकल लापरवाही या बड़बड़ नही करना चाहहए अपनी बदध का भी उपयोग नही करना चाहहए

गर जब कोई भी चीज करन की आजञा कर तब मशटय को हदयप वयक उनकी आजञा का पालन करना चाहहए

गर क परतत इस परकार की आजञाकाररता आवशयक ह यह तनटकाि किय की भावना ह इस परकार का किय ककसी भी फल की आशा क मलए नही ककया जाता अषपत गर की पषवतर आजञा क मलए ही ककया जाता ह तभी िन की अशदध या जस कक काि करो और लोभ नटि होत ह

जो मशटय चार परकार क सा नो स सजजग ह वही ईशवर स अमभनन बरहितनटठ गर क सिकष बठन क एव उनस िहावाकय सनन क मलए लायक ह

चार परकार क सा न यानी सा नचतटिय इस परकार ह- षववक = आतिा-अनातिा तनतय-अतनतय किय-अकिय आहद का भद

सिझन की शषकत

वरागय = इषनरयजनय सख और सासाररक षवियो स षवरषकत

िटसपषतत = शि (वासनाओ एव कािनाओ स िकत तनियल िन की शाषनत) दि (इषनरयो पर काब ) उपरतत (षविय-षवकारी जीवन स उपरािता) ततततकषा = हरएक षसथतत ि षसथरता एव यय क साथ सहनशषकत) शरद ा और सिा ान (बाहय आकियणो स अमलपत िन की एकागर षसथतत)

ििकषतव = िोकष अथवा आति-साकषातकार क मलए तीवर आकाकषा

अनकरि

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परकररः 3

गरभलकत का ववकास

पववतरता ही पवकतयारी षजसक िन स तिाि अशदध या द र की गई हो ऐस मशटय को ही

गर क ग ढ़ रहसयो की दीकषा दी जाय तो उसका िन समप णय षसथरता परापत कर सकगा और वह तनषवयकलप सिाध की अवसथा ि परषवटि हो सकगा

जो मसद आतियोगी हो ऐस गर की तनगरानी क नीच योग सीखो

षवियषवकार क रग हए आपक िन को एकागरता गर क उपदश एव उपतनिदो क वाकयो क िनन धयान एव जप स पषवतर बनाना होगा

आपको िागयदशयन दन क मलए आति-साकषातकारी सदगर होन चाहहए

एक ही सथान एक ही आधयाषतिक गर और एक ही योग पद तत ि लग रहो यही तनषशचत सफलता की रीतत ह

योग की साधना गर अथवा मसद योगी की तनगरानी ि ही पराणायाि का अभयास

करना चाहहए

आप अपन गर क अथवा ककसी भी सत क धचतर पर एकागरता कर सकत ह

षवियो स िन को वापस खीच लो और अपन गर क उपदश क िताबबक आग बढ़ो

कशिीर ि षसथत सा क (मशटय) भी अगर हहिालय क उततरकाशी ि षसथत अपन गर का अपन आधयाषतिक िागयदशयक का धयान कर तो भी गर एव मशटय क बीच एक तनषशचत गहरा समबन सथाषपत होता ह मशटय क षवचारो क परतयततर ि गर शषकत शाषनत आननद सख क सपनदन परसाररत करत ह मशटय लोहचमबक क परचणड परवाह ि सनान करता ह षजस परकार एक बतयन स द सर बतयन ि तल बहता ह उसी परकार गर और मशटय क बीच आधयाषतिक षवदयत शषकत का झरना ीर- ीर तनरनतर बहता ह जहा जहा मशटय सचच हदय स अपन गर का धयान करता ह वहा गर को भी िाल ि पड़ता ह कक अपन मशटय की ओर स पराथयना या उननत षवचार ारा का परवाह बहता ह और अपन हदय

को सपशय करता ह षजनक पास आनतरचकष होत ह व गर-मशटय क बीच हलका सा उजजवल परकाश सपटितः दख सकत ह धचततरपी सागर ि साषततवक षवचारो क सपनदन स गतत पदा होती ह

गर का सपशक आधयाषतिक गर अपनी आधयाषतिक शषकत अपन मशटय को परदान

करत ह सदगर क अि लय सपननदन मशटय क िन की ओर भज जात ह शरीरािकटण परिहस न अपनी आधयाषतिक शषकत षववकाननद को दी थी यह गर का दवी सपशय कहा जाता ह सिथय रािदास सवािी क मशटय न अपनी ऐसी शषकत नतयकी की पतरी को दी थी जो उसक परतत अतयत कािक थी मशटय न उसकी ओर दषटिपात ककया और उस सिाध परापत कराई उसकी कािकता नटि हो गई तब स वह बहत ामियक एव आधयाषतिक सवभाववाली बन गई िकनदबाई नािक िहाराटर की एक साधवी न बादशाह को सिाध परदान की थी

आप जप और धयान शर कर उसस पहल कछ दवी सतोतर या ितरो का अथवा गरसतोतर का उचचारण करो अथवा बारह दफा ॐ का ितरोचचार करो अथवा पाच मिनि तक कीतयन करो

िन को एक सथान ि एक सा ना ि एक गर ि और एक ही योगिागय ि लगाकर उसकी चचल वषतत को वश ि करना चाहहए

योगवामशटठ ि गर वमशटठ जी कहत ह - ह राि पाव भाग का िन परारमभक धयान ि लगाओ पाव भाग का खलक द ि पाव भाग का अभयास ि और पाव भाग का िन गरसवा ि लगाओ

ईशवर न आपको तिाि परकार की सषव ाए अचछा सवासथय एव िागय हदखान क मलए गर हदय ह इसस अध क और कया चाहहए

अतः षवकास करो उतकरानत बनो सतय का साकषातकार करो और सवयतर उसका परचार करो

गर एव शासतर आपको िागय हदखा सकत ह और आपक सशय द र कर सकत ह अपरोकष का अनभव (सी ा आनतरजञान) करना आप पर तनभयर रखा गया ह भ ख वयषकत को सवय ही खाना चाहहए षजसको सखत खजली आती हो उस खद ही खजलाना चाहहए

मन को सयम म रखन की रीतत

िन क साथ कभी िठभड़ ित करो एकागरताक मलए जलद परयासो का उपयोग ित करो सब सनाय और नस नाडड़यो को मशधथल करो िषसतटक को ढीला छोड़ दो ीर- ीर अपन गरितर का उचचारण करो खदबदात हए िन को सवसथ करो षवचारो को शानत करो

यहद िन ि अह क सब सकलप हो तो गर स दीकषा लन क बाद आतिा का धयान करक एव वद का सचचा रहसय जानकर िन को षवमभनन दःखो स वापस खीच सकत ह और सखदायक आतिा ि पनः सथाषपत कर सकत ह

कछ विय तक अपन गर की परतयकष तनगरानी ि और उनक सी एव तनकि क समपकय ि रहो आप ीरी और तनयमित परगतत कर सक ग

चचल िन एक सा ना स द सरी सा ना की ओर एक गर स द सर गर की ओर भषकतयोग स वदानत की ओर एव हषिकश स वनदावन की ओर क दता ह सा ना क मलए यह अतयनत हातनकतताय ह एक ही गर स एक ही सथान स लग रहो

आपक मलए ककस परकार का योगिागय योगय ह यह आपको ही खोज लना होगा आप अगर यह नही कर सको तो षजनहोन आति-

साकषातकार ककया हो ऐस गर या आचायय की सलाह आपको लनी होगी व आपक िन की परकतत जानकर आपको उधचत योग की पद तत बतायग

आधयाषतिक गर का सतसग और अचछा िाहौल िन की उननतत ि परचणड परभाव डालता ह यहद अचछा सतसग न मिल सक तो षजनहोन आति-साकषातकार ककया हो ऐस िहापरिो क गरनथो का सतसग करना चाहहए उदाहरणाथयः शरी शकराचायय क गरनथ योगवामशटठ शरी दततातरय की अव त गीता इतयाहद

आरधयालसमक मागक म परगतत

आपक हदय की गहि बात आपक गर क सिकष खलली कर दो इस परकार षजतना अध क करोग उतनी अध क सहानभ तत आपको मिलगी इसस आपको पाप एव परलोभनो क साथ लड़न ि शषकत परापत होगी

मितर पसद करन ि धयान रख अतनचछनीय लोग आपकी शरद ा एव िानयताओ को सरलता स चमलत कर दग आपन शर की हई सा ना ि एव अपन गर समप णय शरद ा रख अपनी िानयताओ को कदाषप चमलत होन ित द आपकी सा ना उिग और उतसाह क साथ चाल रख आप तवररत आधयाषतिक परगतत कर सक ग आधयाषतिक सीड़ी क सोपान एक क बाद एक चढ़त जाएग और आरखर आपक धयय को हामसल कर लग

पकषी िछली और कछए की तरह सपशय दषटि एव इचछा या षवचारो क दवारा गर अपनी आधयाषतिक शषकतयो का परसारण कर सकत ह कभी कभी गर मशटय क भौततक शरीर ि परषवटि होकर अपनी शषकत स मशटय क िन को उननत बना सकत ह

कभी कभी आधयाषतिक गर को बाहयतः अपना करो हदखाना पड़ता ह ककनत वह मशटय की गषलतया हदखान क मलए ही होता ह यह बात खराब नही ह

कछ लोग कछ विय तक सवततर रीतत स धयान करत ह ककनत बाद ि उनको गर की आवशयकता िहस स होती ह उनको सा ना क िागय ि अवरो आत ह इन अवरो ो और भयसथानो को कस हिाय जाय यह व नही जानत तब व गर की खोज करन लगत ह छः सात बार आन जान क बाद भी ककसी बड़ शहर ि ककसी अनजान आदिी को छोिी गली ि षसथत अपन तनवास सथान ि वापस आन ि हदन क सिय ि भी तकलीफ िहस स होती ह सड़को और िहललो ि िागय खोजन ि भी तकलीफ होती ह तो बनद आख स अकल चलन वाल को उसतर की ार जस आधयाषतिकता क िागय ि आन वाल षवघनो की तो बात ही कया

पररवतकन

िन क पराकत सवभाव का समप णयतः नवसजयन करना ही चाहहए सा क अपन गर स कहता हः िझ योग का अभयास करना ह तनषवयकलप सिाध ि परषवटि होन की िरी आकाकषा ह ि आपक चरणो ि बठना चाहता ह ि आपकी शरण ि आया ह ककनत वह अपन पराकत सवभाव को आदतो को चाररतरय को वतयन को चालढाल को बदलना नही चाहता

पराकत सवभाव ि ऐसा पररवतयन करना सरल नही ह ससकारो की शषकत दढ़ और बलवान होती ह उनक पररवतयन क मलए काफी िनोबल की आवशयकता होती ह परान ससकारो की शषकत क आग सा क कई बार तनरपाय हो जाता ह उस तनयमित जप कीतयन धयान अथक

तनःसवाथय सवा और सतसग स अपन सततव और सकलप का असीि षवकास करना पड़गा उस अनतियख होकर अपनी कमिया और दबयलताए खोज लनी पड़गी उस गर क िागयदशयन ि रहना होगा गर उसकी गलततया खोज तनकालत ह और उनह द र करन क मलए योगय रीतत बतात ह

आपको िोकष क चार सा नो क मलए तयारी करक बरहितनटठ एव बरहिशरोबतरय गर क पास जाना चाहहए आपको अपन सनदह द र करना चाहहए अपन गर स परापत ककय हए आधयाषतिक परकाश की सहायता स आधयाषतिक िागय ि चलना चाहहए आपका ठीक परकार जीवन-तनिायण हो जाय तब तक अह और ससार का आकियण छोड़कर आपको गर क दवार पर रहना चाहहए ठीक ही कहा ह ककः समराि क साथ राजय करना भी बरा ह न जान कब रला द गर क साथ भीख िागकर रहना भी अचछा ह न जान कब मिला द आति-साकषातकार मसद ककय हए परि का वयषकतगत समपकय बहत उननतत कारक होता ह यहद आप सतनटठ एव उतसक होग यहद आपको िोकष क मलए तीवर आकाकषा होगी यहद आप अपन गर की स चनाओ का चसतता स पालन करग यहद आप अखणड और तनरनतर योग करग तो आप छः िहीन ि सवोचच लकषय मसद कर सक ग ऐसा ही होगा यह िरा वचन ह

जगत परलोभनो स भरप र ह अतः नय सा को को धयानप वयक उनस बचन की आवशयकता ह जब तक उनकी घड़ाई प णय न हो जाय तब तक उनह गर क चरणकिलो ि बठना चाहहए जो िनिख सा क परारभ स ही सवचछनदी बनकर बतायव करत ह अपन गर क वचनो पर धयान नही दत व बबलकल तनटफल हो जात ह व लकषयहीन जीवन बबतात ह और नदी ि तरत हए लकड़ की भातत इ र िकरात ह

गर क परतत आरधयालसमक अलभगम

ह प जय गर ह िर अषवदया क षवदारक आपको िर निसकार आपकी कपा स ि बरहि का शाशवत सख भोगता ह अब ि प णयतः तनभयय बन चका ह िर सब सशय और भरि नटि हो गय ह

उपरोकत ितर ि मशटय अपन अनतरातिा क अनभव गर क सिकष वयकत करता ह मशटय अपन गर क चरणकिल ि साटिाग परणाि करता ह उन पर शरटठ फ लो की विाय करक उनकी सततत करता ह ह प जय पषवतर गर िझ सवोचच सख परापत हआ ह ि बरहितनटठा स जनि-ितय की परमपरा स िकत हआ ह ि तनषवयकलप सिाध का शद सख भोग रहा ह जगत क ककसी भी कोन ि ि िकतता स षवचरण कर सकता ह सब िरी सतटिी ह िन पराकत िन का तयाग ककया ह िन सब सकलप एव रधच-अरधच का तयाग ककया ह अब ि अखणड शाषनत का अनभव करता ह िर आननद क अततरक क कारण ि प णय अवसथा का वणयन नही कर पाता ह प जय गरदव ि अवाक बन गया ह इस दसतर भवसागर को पार करन ि आपन िझ सहाय की ह

अब तक िझ कवल िर शरीर ि ही समप णय षवशवास था िन षवमभनन योतनयो ि असखय जनि मलय ऐसी सवोचच तनभयय अवसथा िझ कौन स पषवतर किो क कारण परापत हई यह ि नही जानता सचिच यह एक दलयभ भागय ह यह एक िहान अदटि लाभ ह अब ि आननद स नाचता ह िर सब दःख नटि हो गय ह िर सब िनोरथ प णय हए ह िर कायय समपनन हए ह िन सब वातछत वसतए परापत की ह िरी इचछा पररप णय हई ह

आप िर सचच िाता-षपता हो िरी वततयिान षसथतत ि द सरो क सिकष ककस परकार परकि कर सक सवयतर सख और आननद का अननत सागर लहराता हआ िझ हदख रहा ह षजसस िर अनतःचकष खल गय वह िहावाकय तततविमस ह उपतनिदो वदानतस तरो एव वदानतशासतरो का भी आभार षजनहोन बरहितनटठ गर का एव उपतनिदो क िहावाकयो का रप ारण ककया ह ऐस शरी वयास जी को परणाि शरी शकराचायय जी को परणाि बरहिषवद गरओ को परणाि भगवान मशव को परणाि भगवान नारायण को परणाि सासाररक िनटय क मसर पर गर क चरणाित का एक बबनद धगर तो भी उसक सब दःखो का नाश होता ह यहद एक बरहितनटठ परि को वसतर पहनाय जाय तथा भोजन कराया जाय तो सार षवशव को वसतर पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कयोकक बरहितनटठ परि सचराचर षवशव ि वयापत ह सबि व ही ह ॐॐॐ

दरागरही लशषटय

दरागरही मशटय अपनी परानी आदतो को धचपका रहता ह वह भगवान की या साकार गर की शरण ि नही जाता

यहद मशटय सचिच अपन आपको स ारना चाहता ह तो उस अपन आप क साथ तनखामलस और गर क परतत ईिानदार बनना चाहहए

जो आजञाकारी नही ह जो मशसत का भग करता ह जो गर क परतत ईिानदार नही ह जो अपन गर क सिकष अपना हदय खोल नही सकता उस गर की सहाय स लाभ नही हो सकता वह अपन दवारा ही सषजयत कादव कीचड़ ि फ सा रहता ह वह अधयाति-िागय ि परगतत नही कर सकता कसी दयाजनक षसथतत उसका भागय सचिच अतयत शोचनीय ह

मशटय को भगवान अथवा गर क परतत समप णय अखणड और सकोचरहहत होकर आति-सिपयण करना चाहहए

गर तो कवल अपन मशटय को सतय जानन की अथवा षजस रीतत स उसकी आतिा की शषकतया रखल उठ वह रीतत बता सकत ह

गर की आवशयकता अधयातििागय ि हर एक सा क को गर की आवशयकता पड़ती ह कवल गर ही वासतषवक जीवन का अथय एव उसका रहसय परकि

कर सकत ह तथा परभ क साकषातकार का िागय हदखा सकत ह

कवल गर ही मशटय को सा ना का रहसय बता सकत ह

षजनहोन परभ का साकषातकार ककया ह व ही आदशय गर ह

ऐस गर िन वचन और किय स पषवतर ह

ऐस गर अपन िन एव इषनरयो पर परभतव रखत ह व सब शासतरो का रहसय सिझत ह व सरल दयाल सतयषपरय एव आतिारािी होत ह

मशटय क हदय क अनतसतल ि सिपत दवी शषकत को गर जागत कर सकत ह

मशटय न अगर प वयजनि ि शभ किय ककय होग वतयिान जीवन ि भी अगर वह शभ किय करता होगा अगर वह सतनटठ हदयवाला तथा ईशवर-पराषपत की तड़पवाला होगा तो उस सदगर अवशय परापत होग

गर स प रा लाभ उठान क मलए उनक परतत मशटय ि दढ़ शरद ा एव सचची भषकत होना चाहहए

मशटय गर क परतत षजतनी िातरा ि भषकतभाव होगा उतनी िातरा ि उस फल की पराषपत होगी

कवल आधयाषतिक गर ही िागय हदखाकर मशटय को परभ क परतत ल जाएग

गर िनटय क रप ि साकषात ईशवर ही ह लशषटय क कततकवय

मशटय को गर की आजञा का पालन अनतःकरणप वयक करना चाहहए गर क दवारा तनहदयटि पद तत कभी कभी मशटय की रधच को

ततकाल अनक ल न भी हो कफर भी उस शरद ा रखना चाहहए कक वह उसक हहत क मलए ही ह लाभदायक ही ह

गर मिलन स जो लाभ होत ह और जो िानमसक शाषनत का अनभव होता ह वह असीि होता ह

अपनी सवोचच हदवय परकतत का भान होत हए भी भगवान शरीकटण न अपन गर सादीपनी की कसी सवा की और उनक पास अभयास ककया यह तो आप जानत ही ह

षजस मशटय को अपन गर ि शरद ा होती ह वह जञान परापत करता ह

प र हदय स सकोचरहहत होकर समप णयतया अपन गर की शरण ि जाओ

गर पथवी पर साकषात ईशवर ह अतः उनकी प जा करो

गरभषकत एव गरसवा क फलसवरप आरखर आति-साकषातकार होता ह

मशटय को गर की सवा करत रहना चाहहए जब उसका आति-सिपयण प णयतः हो जायगा तब गर उस सतय का सपटि दशयन कराएग

कछ भरात मशटय कछ सिय क मलए अपन गर की सवा करत ह कफर िन धचततशदध परापत की ह ऐसी ि खय कलपना करक गर की सवा छोड़ दत ह उनको सवोतति जञान परापत नही होता उनको धययमसदध नही होती

उनको थोड़ा बहत पणय अवशय मिलता ह लककन आति-साकषातकार नही होता सचिच यह एक बड़ा नकसान ह उनकी यह गभीर भ ल ह

गरभलकत और गरसवा गरभषकत और गरसवा सा ना रपी नौका की दो पतवार ह जो

मशटय को ससारसररता क उस पार ल जाती ह

जो गर की शरण ि गया ह जो सचच िन स गर की सवा करता ह षजसकी गरभषकत अदभत ह उस शोक षविाद भय पीड़ा दःख या अजञान की असर नही होती उस ततकाल ईशवर-साकषातकार होता ह

परभ और गर एक ही ह अतः गर की प जा करो

षजनहोन जानन योगय जाना ह षजनहोन परापत करन योगय परापत ककया ह जो िागय हदखान क मलए सिथय ह ऐस गर क चरणकिलो का आशरय लन वाल मशटय को यो िानना चाहहए कक ि तीन गना कताथय हआ ह

सवाथय का तयाग करना अतत कहठन ह यहद मशटय सवय सवाथय को तनि यल करन का दढ़ तनशचय कर और सतत अभयास क दवारा उस पटि कर तो गरकपा स सवाथय षवदा होता ह

मशटय अगर षजतनी सभव हो सक उतनी वयवहार रीतत स ततपरता स एव तनशचयप वयक गर क आदशो का पालन करन का परयास करगा तो उस परभ का साकषातकार होगा

मशटय ि जो गण होन चाहहए उन सबि गर की आजञा का पालन सवयशरटठ गण ह

आजञापालन का मकय

आजञापालन अि लय गण ह कयोकक अगर आप आजञापालन का गण जीवन ि लान का परयास करग तो िनिखता और अहभाव ीर ीर तनि यल हो जाएग

गर की आजञा का समप णयतः पालन करन का कायय कहठन ह ककनत अनतःकरण स परयतन ककया जाय तो वह सरल हो जाता ह गर की आजञा का पालन षवशव की तिाि कहठनाइयो पर षवजय परापत करन का अिोघ शसतर ह

हरएक सािानय कायय ि बहत ही पररशरि की आवशयकता होती ह अतः सािानय कायय ि बहत ही पररशरि की आवशयकता होती ह अतः अधयाति क िागय ि िनटय को अपन आप पर ककसी भी परकार का सयि रखन क मलए तयार रहना चाहहए और गर क परतत आजञापालन का भाव जगाना चाहहए

आनतररक भाव की अमभवयषकत क रप ि प जा पटपोपहार और भषकत एव प जा क बाहयोपचार की अपकषा गर की आजञापालन का भाव अध क िहततवप णय ह

सिझो ककसी को ऐसा लग कक अिक परकार स आचरण करन स गर को अचछा नही लगगा तो उस ऐसा आचरण नही करना चाहहए यह भी आजञापालन ही ह

यहद ककसी भी िनटय क पास षवशव ि अतत ि लयवान िानी जाय ऐसी सब चीज को लककन उसका िन अगर गर क चरणकिल ि न लगा हो तो सिझो उसक पास कछ भी नही ह

बशक सतय अदवत ह ककनत दवत क षवशाल अनभव क दवारा ही िनटय को आरखर अदवत की उचचति चतना ि पहचना ह वहा

पहचन की परककरया ि गर क चरणकिलो क परतत भषकतभाव सबस िहततवप णय ह वह एक सवयशरटठ सा ना ह

अपन आपको बार-बार गरभषकत ि सथाषपत करन क मलए मशटय को षवमभनन पद ततया काि ि लान का परयतन करना चाहहए

हर एक गर षजस परकार मशटय गरहण कर सक उसी परकार उपदश का औि दत ह

गर क चरणकिलो स लग रहो उसि सा ना का रहसय तनहहत ह

गर को अघयक पराचीन काल ि मशटय को हाथ ि समि लकर गर क पास जाना

होता था समि गर क चरणकिल को आतिसिपयण और शरणागतत करन का परतीक ह

यह हिार किो की गठरी ह आप उस जला दो मशटय हाथ ि समि लकर गर क पास जाता ह इसका अथय यह होता ह इसका बाहय अथय ऐसा ह कक ऋषि उस सिय अषगनहोतर करत थ उनक यजञ क मलए काटठ लान क रप ि गर की सवा का यह परतीक ह

आधयाषतिक साकषातकार गर की परि सवा का फल ह िनसितत ि कहा गया ह कक मशटयो को सदा वदाधययन ि

तनिगन रहना चाहहए परि शरद ा एव भषकतभावप वयक आचायय की सवा क दौरान मशटय को िहदरा िास तल इतर सतरी सवाद भोजन चतन परारणयो को हातन पहचाना काि करो लोभ नतय गान करीड़ा वाषजनतर बजाना रग गपशप लगाना तननदा करना अतत तनरा लना आहद स अमलपत रहना चाहहए उस असतय नही बोलना चाहहए

गण एव जञान क भणडार सिान गर की तनगरानी ि मशटय को अपन चाररतरय का योगय तनिायण करना चाहहए

अनकरि

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परकररः 4

गरभलकत की लशकषा भलकत क तनयम

फल की आसषकत रहहत शद हदय की गरभषकत स िषकत परापत होती ह

शोक एव भय स िषकत हो ऐस गर क चरणकिल क साषननधय ि जाओ

अपन दवी गर क चरणकिलो ि अपना हदय रख दो अपन गरदवार को गरआशरि को साफ करक सजान ि अपन

हाथ को काि ि लगाओ

गर मशटय क बीच का समबन बहत ही पषवतर ह जो गर की सवा करता ह वह सब गणो को परापत करता ह

अपनी आखो का उपयोग अपन हदवय गर की छवी (फोिो) को तनहारन ि करो

अपन िसतक का उपयोग सदगर क पावन चरणो ि झकान क मलए करो

ह िनटय गर क चरणकिलो का आशरय ल काि आसषकत अमभिान आहद को तयाग द कयोकक व गरसवा ि िखय षवघन ह

कोई भी तटणा स रहहत भषकतभावप वयक गर की भषकत करो तो आपको उनकी कपा परापत होगी

अपनी समपषतत अपन शभ किय अपना तप आहद अपन पावन गर को अपयण कर दो तदननतर ही उनकी कपा परापत करन क मलए आपका हदय शद होगा

गर एव सतो क चरणो की मल स आपक हदय को शद करो तभी आपका हदय पषवतर होगा तभी आप भषकत कर सकोग

परि एव आदर स अपन गर एव सतो की सवा करो उनका साकषात परभ िानो तभी आप भषकत कर सकोग

गरसवा का योग

गरसवायोग का अथय ह गर की तनःसवाथय सवा गर की सवा िान िानव जातत की सवा गरसवा क िन की अशदध नटि होती ह गरसवा हदयशदध क

मलए एक बलवान चीज ह अतः भावनाप वयक गर की सवा करो

गर की सवा हदवय परकाश जञान और कपा को गरहण करन क मलए िन को तयार करती ह

गरसवा हदय को षवशाल बनाती ह सब षवघनो को हिाती ह गरसवा हदयशदध क मलए एक असरकारक सा ना ह

गर क सवा िन को सदा परगततशील और चपल रखती ह

गर की सवा क कारण दवी गण जस कक दया नमरता आजञापालन परि शरद ा भषकत यय आतितयाग आहद का षवकास होता ह

गरसवा स ईटयाय ध ककार एव द सरो स बड़ा होन का भाव नटि होता ह

जो गर की सवा करता ह वह अहभाव और ििता को जीत सकता ह

जो मशटय गर की सवा करता ह वह सचिच तो अपन आपकी ही सवा करता ह

गरसवायोग क अभयास स अवणयनीय आननद और शाषनत परापत होती ह

मशटय जब गर क घर रहता हो तब उस सतोिी जीवन बबताना चाहहए उस प णयतः आतिसयि करना चाहहए

अपन गर क सिकष मशटय को ीर स ि रता स एव सतय बोलना चाहहए उस कठोर एव गलीच शबदो का उपयोग नही करना चाहहए गर क दवार पर रहकर गर का अनन खाकर गर क सिकष झ ठ बोलना अथवा गरभाइयो क साथ वर रखना यह मशटय क रप ि असर होन का धचनह ह मशटय क रप ि तनहहत ऐसा असर गर-मशटय परमपरा को कलककत करता ह गर क हदय को ठस पहच ऐसा आचरण करन वाला मशटय अपना ही सतयानाश करता ह जो गर का षवरो करता ह वह सचिच हतभागी ह

कबीरा तननदक न लमलो पापी लमलो हजार

एक तननदक क माथ पर लाख पापीन को भार

गर की एव गर क कायय की तननदा करन वाला तननदक हजारो जनिो तक िढक होकर पड़ा रहता ह

तलसीदास जी न ठीक ही कहा हः हररगर तननदा सनदह ज काना

होवदह पाप गौघात समाना

हरर गर तननदक दादर होवदह

जनम सहसर नर पावदह सो दह

गरभकतो को मशटयो को एव सषतशटयो को चाहहए कक व ऐस आसरी वषततवाल शरद ा डडगान वाल अथवा अपन हलक वयवहार स गर क नाि को गर क ाि को कषतत पहचान वाल असरो को साव ान कर द एव सवय भी उनस साव ान रह

परमसद गर क दवार पर ऐस आसरी वषतत क लोग मशटय क रप ि घस जात ह मशटय तो उस कहा जा सकता ह जो अपना हलका सवभाव छोड़न क मलए ततपर हो गर क मसद ानत क िताबबक चलन क मलए सतत सजाग हो गर को या गर क दवार को लाछन लग ऐसा आचरण कोई भी मशटय कर ही नही सकता अगर करता हआ हदख तो वह मशटय क रप ि असर ह सषतशटयो को ऐस कपिी मशटय स साव ान रहना चाहहए

मशटय को अपन गर की तननदा नही करना चाहहए

जो गर की तननदा करता ह वह रौरव नकय ि धगरता ह

जो खान क मलए ही जीता ह वह पापी ह जो गर की सवा करन क मलए ही खाता ह वह सचचा मशटय ह

जो गर का धयान करता ह उस बहत कि भोजन की आवशयकता रह जाती ह

गर की कपा कवल गर की कपा स ही आप अपन िन को तनयतरण ि रख

सकत ह आप गर की कपा स ही सिाध या अततचतना ि षसथत हो सकत

ह षवराग अनासषकत इषनरय-षवियक भोगषवलासो क परतत उदासीन

हए बबना ककसी को गरकपा नही पच सकती

िन क सहकार क मसवाय इषनरयो स कछ नही हो सकता िन को गरकपा स वश ि ककया जा सकता ह

मशटय जब गर की तनगरानी ि रहता ह तब उसका िन इषनरय-षवियक भोगषवलासो स षविख बनन लगता ह

गरओ एव सतो क सिागि स ामियक गरथो क अभयास क साषततवक भोजन स परभ क नाि आहद स साषततवक वषतत ि वदध होती ह

राजसी परकतत का िनटय अपन प र हदय स एव अनतःकरण स गर की सवा नही कर सकता

पराणायाि और गर क नाि का जप करन स िन अनतियख होता ह

बरहिशरोबतरय एव बरहितनटठ गर क पास शासतरो का अभयास करो तभी आपको िोकष परापत होगा

बरहिचारी का िखय कततयवय अपन गर की सवा करना ह

गर का रधयान करना चादहए

परातःकाल ि 4 स 6 क बीच गर क सवरप का धयान करो तो उनकी कपा का अनभव कर सकोग

अपन गर को फोिो अपन सािन रखो धयान क आसन ि बठो ीर- ीर फोिो पर िन को एकागर करो िन को उनक चरणकिल हाथ छाती गल मसर िख आखो आहद पर घिाओ आख की पतली न हहल इस परकार सतत पाच मिनि तक तनहारो कफर आख बनद करक उसी परकार भीतर फोिो को तनहारन का परयास करो इस ककरया का पनरावतयन करो कफर अचछी तरह धयान कर सकोग

गर क सवरप का धयान करो धयान क दौरान आपको हदवय आषतिक आननद रोिाच शाषनत आहद का अनभव होगा कणडमलनी शषकत जागत होगी हदय भाव-षवभोर होगा रोिाच शाषनत आहद का अनभव होगा रोिाच हदय रदन आहद अटिसाषततवक भाव ि आपका िन षवचरण करन लगगा मशटय को गरिखता की यह तनशानी ह कफर आपको सा ना करनी नही पड़गी सा ना अपन आप होन लगगी

सासाररक लोगो का सग अध क खाना अमभिानी एव राजसी परकतत तनरा काि करो लोभ ndash य सब गरकपा करन ि षवघन ह

गर क सवरप का धचनतन करन ि तनरा िन की चचलता सिपत इचछाए जागना हवाई ककलल बा ना आलसय रोग एव आधयाषतिक अमभिान षवघन ह

गर सब शभ गणो का ाि ह मशटय क मलए गर जीवन का सवयसव ह गरभषकत जनि ितय एव जरा को नटि करती ह

गरभषकत ईशवरकपा परापत करन का एकिातर सा न ह

गरः एक महान पथपरदशकक

जो आतिजञान का िागय हदखात ह व पथवी पर क सचच दव ह गर क मसवाय यह िागय कौन हदखा सकता ह

गर परभ पराषपत का िागय हदखात ह और मशटय को सदा क मलए सखी करत ह

जो प णयता का िागय हदखात ह व गर ह

ससकत ि ग शबद का अथय अन कार या अजञान ह और र का अथय द र करन वाला ह अन कार या आवरणरपी अजञान का नाश करन क कारण व गर कहलात ह

आधयाषतिक गर तनरनतर उपदश स सा क को तालीि दत ह

गर सचच मशटय को परभ की ओर स परापत भि ह

तिाि शासतर जोर दकर गर की आवशयकता िानत ह

शरीराि जस दवी अवतार न भी शरी वमशटठजी को अपन गर िान थ और उनकी आजञाओ का पालन ककया था

मशटय दनयावी दषटि स चाह ककतना भी िहान हो कफर भी गर की सहाय क बबना वह तनवायणसख का सवाद नही चख सकता

गर क चरणकिल की मल ि सनान ककय बबना कवल तपशचयाय करन स या दान स या वदो क अधययन स जञान परापत नही हो सकता

मशटय को सदा अपन गर की ि ततय का प जन करना चाहहए और उनक पषवतर नाि का जप करना चाहहए

सा क को अपन गर का या ककसी भी सतो का बरा बोलना या चाहना नही चाहहए

सा क चाह ककतना भी िहान हो कफर भी उस गर क सिकष कफज ल बात नही करना चाहहए

गर पथवी पर दवद त ह नही नही दव ही ह गर को मशटय की सवा या सहाय का आवशयकता नही ह ककनत

सवा क दवारा षवकास करन क मलए व मशटय को एक िौका दत ह

महापरषो का मागक ककतन भी िहान होन क बजाय भी तिाि सतो ऋषियो

पयगमबरो जगदगरओ अवतारो एव िहापरिो को अपन गर थ गर सब सदगण एव शभ वसतओ की खान ह गर क साषननधय स सब सशय भय धचनता और दःख का नाश

होता ह

गर ि अचल शरद ा और गर क परतत दढ़ भषकतभाव स मशटय सब कायो ि मसदध एव भौततक आबादी परापत कर सकता ह

भवसागर ि ड बत हए मशटय क मलए गर जीवन सरकषक नौका ह

अगर आपको कोई भी कला सीखना हो तो उस कला क षवशिजञ गर क पास जाना चाहहए

सा ारण परकार क भौततक जञान की बाबत ि अगर ऐसा हो तो आधयाषतिक िागय ि गर की आवशयकता ककतनी सारी होनी चाहहए

गर की सहाय क बबना िन को सयि ि लान की कोमशश जो करत ह व ऐस वयापारी जस ह षजनको अपन जहाज क मलए अचछा सचालक नही मिला ह

अधयातििागय कािोवाला और सी ी चड़ाई वाला िागय ह परलोभन आपक ऊपर हिला करग उसि पतन की सभावना ह अतः ऐस गर क पास जाय जो इस िागय क जानकार हो

गर का धचनतन करन स सख भीतरी शषकत िन की शाषनत एव आननद परापत होता ह गरधचनतन स गरचचाय स उनक दवी सवभाव का सचार हिार जीवन ि होता ह

गर की परशषसत िान ईशवर की परशषसत

गर स हमारा समबनध

इस कमलयग ि आति-साकषातकारी सदगर की भषकत क दवारा ही ईशवर-साकषातकार करना ह सतयसवरप ईशवर का साकषातकार ककय हए गर कमलयग ि तारणहार ह

गर स दीकषा परापत हो जाय यह बड़ भागय की बात ह

ितरचतनय यान ितर की ग ढ़ शषकत गर की दीकषा क दवारा ही जागत होती ह

आज स ही समप णय भषकतभावप वयक गर की सवा करन का तनशचय करो

आधयाषतिकता की खान क सिान गर की सहाय क बबना आधयाषतिक परगतत सभव नही ह

गर सा को क आग स िाया का आवरण एव अनय षवकषप द र करत ह और उनक िागय ि परकाश करत ह

िाता को दव सिान जानो षपता को दव सिान जानो गर को दव सिान जानो अततधथ को दव सिान जानो

गर की सवा क बबना पषवतर शासतरो का अधययन करना यह सिय का दवययय ह

गरदकषकषणा हदय बबना गर क पास पषवतर शासतरो का अधययन करना यह सिय का दवययय ह

गर की इचछाओ को पररप णय ककय बबना वदानत क पसतको का उपतनिदो का एव बरहिस तरो का अभयास ककया जाय तो उसस कलयाण नही होता जञान नही मिलता

लमब सिय की गरसवा क बाद आपका शद एव शानत िन आपका गर बनता ह जस पारस क सग स लोह सवणय बनता ह वस गर की धचरकाल पययनत सवा स आपि भी गरतव परकि होता ह

गरकपा की अतनवायकता चाह ककतन ही कफलासफी क गरथ पढ़ो सार षवशव का परवास करक

वयाखयान करो हजारो विय तक हहिालय की गफा ि रहो विो तक पराणायाि करो जीवनपययनत शीिायसन करो कफर भी गर की कपा क बबना आपको िोकष की पराषपत नही हो सकती रािायण ि कहा हः

गरतरबन भवतनचध तरदह न कोई

चाह ववरचच शकर सम होई

आधयाषतिक गर यह नही हदखा सकत कक बरहि ऐसा ह या वसा ह परतयकष अनभव होन स पहल मशटय सिझ नही पाता कक बरहि कसा ह ककनत गरकपा मशटय को अपनी हदय गहा ि ही बरहि का परतयकष अनभव ग ढ़ रीतत स करा सकगी

अपन िाता षपता एव बजगो को िान दो

अगर गर इजाजत द तो उनकी परचपी करो

हर एक को अपन जञान स गर की सहाय स वदानत गरथो का सचचा रहसय परापत करक अपन भीतर बरहि का अनभव करना चाहहए

सा क को गर अथवा आधयाषतिक पथदशयक मिल हो कफर भी उस अपन परयासो स ही सब तटणाओ वासनाओ एव अहभाव का नाश करना चाहहए और आति-साकषातकार करना चाहहए

गर कपा स परापत होन वाली परसननता गर क चरणकिलो का आशरय लन स जो परि आननद का

अनभव होता ह उसकी तलना ि तीनो लोको का सख भी नही आ सकता

अपन गर क साथ कभी लड़ो ित उनको कभी कोिय ित ल जाओ

गर की आजञा का उललघन करन स सी नरक ि पहचत ह गररोही खद तो ड बता ह अपन कल को भी कलककत करता ह

सत सताय तीनो जायी तज बल और वश

एड़ा एड़ा कई गया रावर कौरव करो कस

पातकी एव सवाथी लोग सदगर क मलए चाह कसी भी अफवाह फलाय कफर भी सजञ सिाज एव मशटयगण सदगर क पावन साषननधय और उनकी ि र याद स अपना हदय पावन रखत ह

गर एव जञानी परिो का साषननधय िनटय जीवन ि कभी-कभी ही मिल सक ऐसा दलयभ िौका ह

ककसी भी परकार क जञान की पराषपत षवशितः आतिा षवियक ि लयवान जञान की पराषपत गर स ही हो सकती ह

गर की परोपकारी कपा मशटय क मलए सवयसव ह आतिजञान क दवार खोलन वाली गर की कपा ही ह

आतिसिपयण का अथय ह अपन आपको समप णयतः गर क शरण ि छोड़ दना

तटणा एव अहभाव आतिसिपयण ि कदि कदि पर षवघनरप बनत ह

भगवान शरीकटण न अपन गर सादीपनी क चरणो का सवन ककया था उनहोन अपन गर की सवा की थी व अपन गर क मलए लकडड़या लात थ भगवान शरीराि क गर वमशटठजी थ षजनहोन उनको उपदश हदया दवो क गर बहसपतत ह दवी आतिाओ ि सबस िहान सनतकिार दकषकषणाि ततय क चरणो ि बठ थ

सा ना का रहसयिय िागय गर की कपा क दवारा ही जाना जा सकता ह

अगर आप सचच हदय स आतरताप वयक पराथयना करग तो ईशवर गर क सवरप ि आपक पास आयग

पवक अभयास की आवशयकता

अगर आपको पराथमिक धचककतसा का जञान पाना हो तो कवल उसक षवियो की चचाय करक पा सकत ह ककनत आप अगर एिबीबीएस कहलाना चाहत ह कफजीमशयन या सजयन क रप ि काि करना चाहत ह तो आपको तनयमित रप ि छः विय का अभयास करना चाहहए इसी परकार आप उपासना पराथयना आहद क दवारा दवताओ को परसनन करक उनकी कपा परापत कर सकत ह ककनत परतयकष आधयाषतिक साकषातकार क मलए आपको तीन चीज चाहहएः गरसवा गरभषकत और गरकपा

गर को मशटय का आतिसिपयण और गर की कपा य दो चीज आपस ि जड़ी हई ह

शरणागतत गरकपा को खीच लाती ह और गरकपा स शरणागतत समप णय बनती ह

मशटय ससारसागर को पार कर सक इसक मलए बरहिवतता गर आतिजञान दकर उसका अि लय हहत करत ह यह काि गर क मसवाय और कोई नही कर सकता

षजसक ऊपर सदव गर की कपा रहती ह ऐस मशटय को नयवाद ह

हहनद ओ क पराणो ि एव अनय पषवतर गरथो ि गरभषकत की िहतता गान वाल सकड़ो उदाहरण भर हए ह

षजसको सचच गर परापत हए ह ऐस मशटय क मलए कोई भी वसत अपरापय नही रहती

आप अपन इटि दवता को गरकपा क दवारा ही परतयकष मिल सकत ह

गर एक परकार का िाधयि ह षजनक दवारा ईशवर की कपा भकत क परतत बहती ह

सचच गर की अपकषा अचधक परम बरसान वाल अचधक दहतकारी अचधक कपाल और अचधक वपरय वयलकत इस ववशव म लमलना दलकभ ह

मशटय क मलए तो गर स उचचतर दवता कोई नही ह सचिच गर क सतसग षजतनी उननततकारक द सरी एक भी वसत

नही ह गर की आवशयकता क समबन ि पराचीन काल क तिाि सा -सनयामसयो का एक सिान ही अमभपराय था

गर क बबना सा क अपन लकषय पर पहच सकता ह ऐसा कहन का अथय होता ह कक परवासी बाढ़ ि उफनती हई तफानी नदी को नौका की सहायता क बबना ही पार कर सकता ह

सतसग िान गर का सहवास उस सतसग क बबना िन ईशवर की ओर िड़ नही सकता

आसमवतता गर क साथ एक कषर का सससग भी लाखो वषो क तप की अपकषा कही उचचतर ह

ह सा को िनिखी सा ना कभी करना नही प णय शरद ा और भषकतभाव स गरिखी सा ना करो

षजसन गर ककय ह वह उपतनिदो ि वरणयत बरहि को जानता ह

गर सा क जगत क परकाशक दीप ह

तनटठावान मशटय क मलए जो गर सख शाषनत आननद और अिरतव का ि ल एव रवतारक ह ऐस गर की जयजयकार हो

आपक गर अथवा योग मसखान वाल आचायय आपको परणाि कर उसक पहल आप उनह परणाि करो

योग क सा क को अपन गर ि एव ईशवर ि शरद ा और भषकतभाव होना जररी ह

उस गर क उपदश ि एव पषवतर शासतरो ि शरद ा होना जररी ह

अनकरि

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परकररः 5

गर की महतता गर ही एक मातर आशरय

रसोई सीखन क मलए आपको मसखान वाल की आवशयकता पड़ती ह षवजञान सीखन क मलए आपको पराधयापक की आवशयकता पड़ती ह कोई भी कला सीखन क मलए आपको गर चाहहए तो कया आतिषवदया सीखन क मलए गर की आवशयकता नही ह

ससारसागर स उस पार जान क मलए सचिच गर ही एकिातर शरण ह

सतय क किकिय िागय ि आपको गर क मसवाय और कोई िागयदशयन नही द सकता

गरकपा क पररणाि अदभत होत ह

आपक दतनक जीवन क सगराि ि गर आपको िागयदशयन दग और आपका रकषण करग

गर जञान क पथपरदशयक ह

गर ईशवर बरहि आचायय उपदशक दवी गर आहद सब सिानाथी शबद ह

ईशवर को परणाि करो उसस पहल गर को परणाि करो कयोकक व आपको ईशवर क पास ल जात ह

आपक गर स ितर की दीकषा लो उसस आपको पररणा मिलगी और आप उचच षसथतत पर पहच सक ग

आपक बदल ि गर का सा ना नही करग सा ना तो आपको ही करना होगा

गर आपको सचची राह हदखाएग गर मशटय क मलए सचचा योग पसद कर सकत ह

गर की कपा स मशटय अपन िागय ि षसथत षवघनो एव सशयो को पार कर सकता ह

गर मशटय को भयसथानो ि स एव बन नो ि स उठा लग

अपन गर की सवा करन क मलए अपन पराण एव शरीर का बमलदान दन की तयारी रखो तब व आपकी आतिा की सभाल लग

आपको उठाकर सिाध ि रख दग ऐसा चितकार कर हदखान की अपकषा आपक गर स रखना नही आप सवय कहठन सा ना करो भ ख आदिी को खद ही खाना चाहहए

अगर आपको सदगर परापत नही होग तो आप आधयाषतिक िागय ि आग नही बढ़ सक ग

अपन गर की पसनदगी सोच-षवचार कर एव यय स करो कयोकक बाद ि आप गर स अलग नही हो सकत अलग होन ि बड़ ि बड़ा पाप ह

गर-मशटय का समबन पषवतर एव जीवन पययनत का ह यह बात ठीक स सिझ लना

साधना का रहसय

प र अनतःकरण स हदयप वयक गर की सवा करो ककसी भी परकार की अपकषा स रहतत होकर आपक गर क परतत परि रखो अपनी आय

का दसवा हहससा आपक गर को सिषपयत करो गर क चरणकिलो का धयान करो इसी जनि ि आपको आति-साकषातकार होगा यह सा ना का रहसय ह

गर की प जा करन क मलए मशटय क मलए गरवार पषवतर हदन ह

षजनको आतिा षवियक जञान ह शासतरो ि जो पारगत ह जो तिाि उतकटि गणो स यकत ह व सदगर ह

षजसको आति-साकषातकार मसद ककय हए गर मिलत ह वह सचिच तीन गना भागयशाली ह

अपन गर की कषततया न दखो अपनी कषततया दखो और उनह द र करन क मलए ईशवर स पराथयना करो

गर की कसौिी करना िषशकल ह एक कबीर ही द सर कबीर को पहचान सकता ह अपन गर ि ईशवर क गणो का आरोपण करो तभी आपको लाभ होगा

षजनक साषननधय ि आपको आधयाषतिक उननतत िहस स हो षजनक वकतवय स आपको पररणा मिल जो आपक सशयो को द र कर सक जो काि करो लोभ स िकत हो जो तनःसवाथय हो परि बरसान वाल हो जो अहपद स िकत हो षजनक वयवहार ि गीता भागवत उपतनिदो का जञान छलकता हो षजनहोन परभनाि की पयाऊ लगाई हो उनह आप गर करना ऐस जागत परि क शरण की खोज करना

गरभलकत क ललय योगयता गर क पास जान क मलए आप योगय अध कारी होन चाहहए

आपि वरागय की भावना षववक गाभीयय आतिसयि एव सदाचार जस गण होन चाहहए

अगर आप ऐसा कहग कक अचछा गर कोई ह ही नही तो गर भी कहग कक कोई अचछा मशटय ह ही नही आप मशटय की योगयता परापत कर तो आपको सदगर की योगयता िहतता हदखगी और सिझ ि आयगी

गर आपक उद ारक एव सरकषक ह सदव उनकी प जा करो उनका आदर करो

गरपद भयकर शाप ह जो सत धचत और परिाननद सवरप ह ऐस गर को सदा साटिाग

परणाि करो

मशटय को अपन गर की ि ततय सदा सिरण ि रखना चाहहए गर क पषवतर नाि का सदा जप करना चाहहए उनकी आजञा का पालन करना चाहहए इसी ि सा ना का रहसय तनहहत ह

मशटय को गर की प जा करना चाहहए कयोकक गर स बड़ा और कोई नही ह

गर क चरणाित स ससारसागर स ख जाता ह और िनटय आवशयक आतिसमपषतत परापत कर सकता ह

गर का चरणाित मशटय की तिा शानत कर सकता ह

आप जब धयान करन बठ तब अपन गर का एव प वयकालीन सब सतो का सिरण कर आपको उनक आशीवायद परापत होग

िहातिाओ क जञान क शबद सन और उनका अनसरण कर

शासतर एव गर क दवारा तनहदयटि शभ किय कर

शाषनत का िागय हदखान क मलए गर अतनवायय ह

वाह गर या गर नानक क अनयाइयो का गरितर ह गरनथ साहब पढ़ो तो आपको गर की िहतता का पररचय होगा

गर की प जा करक सदा उनका सिरण करो इसस आपको सख परापत होगा

शरद ा िान शासतरो ि गर क शबदो ि ईशवर ि और अपन आप ि षवशवास

ककसी भी परकार क फल की अपकषा स रहहत होकर गर की सवा करना यह सवोचच सा ना ह

शरवण िान गर क चरणकिलो ि बठकर वद का शरवण करना

गरसवा िहान शदध करन वाली ह आति-साकषातकार क गर की कपा आवशयक ह

षजतनी भषकतभावना परभ क परतत रखनी चाहहए उतनी ही गर क परतत रखो तभी सतय की अनभ तत होगी

सदव एक ही गर स लग रहो

ईशवर आहद गर ह षजनको सथान एव सिय (दश-काल) की सीिा नही होती एक शाशवत यग तक व सिगर िनटय जातत क गर ह

कणडमलनी शषकत को उसकी सिपत अवसथा ि स जागत करन क मलए गर की अतनवायय आवशयकता रहती ह

गर क परकाश का अनसरर करो अजञान का नाश करन वाल तथा जञान दन वाल सदगर क

चरणकिलो ि कोहि परणाि सिदशी सत-िहातिा और गर क सतसग का एक भी िौका च कना

नही

आपक सथ ल िन क कह अनसार कभी चलना नही आपक गर क वचनो का अनसरण कर

उचच आतिाओ एव गर क सिरण िातर स भौततक िनटयो की नाषसतक वषततयो का नाश होता ह और अषनति िषकत हत परयास करन क मलए उनको पररणा मिलती ह तो कफर गरसवा की िहहिा का तो प छना ही कया

षजस परकार दो खरगोशो क पीछ दौड़न वाला िनटय दो ि स एक को भी पकड़ नही सकता उसी परकार जो मशटय दो गरओ क पीछ दौड़ता ह वह अपन आधयाषतिक िागय ि सफलता नही परापत कर सकता

अहभाव का नाश करन स मशटयतव की शरआत होती ह

लशषटयसव की कजी ह बरहमचयक और गरसवा

मशटयतव की पहचान िान गरभषकत गर क चरणकिलो ि आजीवन आति-सिपयण करना यह मशटयतव

की तनशानी ह गरदव की ि ततय का तनयमित धयान करना यह मशटयतव की नीव

गर स मिलन की उतकि इचछा और उनकी सवा करन की तीवर आकाकषा ििकषतव की तनशानी ह

दव दषवज आधयाषतिक गर एव जञानी परिो की प जा पषवतरता सरलता बरहिचयय और अहहसा शरीर का तप ह

बराहिणो पषवतर आचायो एव जञानी परिो को परणाि करना बरहिचयय और अहहसा य शारीररक तपशचयायए ह

िा बाप और आचायो की सवा गरीब और रोधगयो की सवा भी शारीररक तपशचयाय ह

गर दवारा बरहम का जञान

बरहिषवियक जञान अतत स कषि ह शकाए पदा होती ह और उनको द र करन क मलए एव िागय हदखान क मलए बरहिजञानी आधयाषतिक गर की आवशयकता रहती ह सतय क सचच खोजी को सहायभ त होन क मलए गर अतयनत िहततवप णय भ मिका तनभात ह

आधयाषतिक गर सा क को अपनी परिप णय एव षववकप णय तनगरानी ि रखत ह तथा आधयाषतिक षवकास क षवमभनन सतरो ि स उस आग बढ़ात ह

आधयाषतिक गर सा क को अपनी परिप णय एव षववकप णय तनगरानी ि रखत ह तथा आधयाषतिक षवकास क षवमभनन सतरो ि स उस आग बढ़ात ह

सचच गर सदव मशटय क अजञान का नाश करन ि तथा उस उपतनिदो का जञान दन ि सलगन रहत ह

वद भी जञानिागय क पथपरदशयक गर की परशषसत गाना च कत नही ह

सा क ककतना भी बदध िान हो कफर भी गर अथवा आधयाषतिक आचायय की सहाय क बबना वदो की गहनता परापत करना या उनका अभयास करना उसक मलए सभव नही ह

गर अपन मशटय की दवी शषकतयो को जागत करत ह

परथि को अपन गर को आधयाषतिक आचायय को खोज लो जो आपको अननत तततव अथवा शाशवत चतनपरवाह क साथ एकतव सा न ि सहाय कर सक

अधयातििागय ि सलाितीप वयक तथा िककिता स आग बढ़न क मलए अपन गर क दवारा ही मशटय को स चनाए मिल सकती ह

अपन गर की इचछा क शरण हो जाओ उनको आतिसिपयण करो तभी आपका उद ार होगा

गर ही ईशवर

ईशवर ही गर क रप ि हदखत ह

सचच गर एव सचच सा क बहत कि होत ह

योगय मशटयो को यशसवी गर परापत होत ह

ईशवर की कपा गर का रप लती ह गर अपन मशटय को अपन जसा बनात ह अतः व पारस स भी

िहान ह ससारसागर को पार करन क मलए गर जसी कोई नौका नही ह ह राि तमहार तन िन न अपन सदगर क चरणो ि

सिषपयत कर दो षजनहोन तमह परि सख या िोकष का िागय हदखाया ह अपन गर या आचायय क सिकष हररोज अपन दोि कब ल कर तभी

आप इस दनयावी तनबयलताओ स ऊपर उठ सक ग

गर दषटि सपशय षवचार या शबद क दवारा मशटय का पररवतयन कर सकत ह

गर और ईशवर सचिच एकरप ह गर इस दतनया ि ईशवर क सचच परतततनध ह गर आपक मलए इलषकरक मलफि ह व आपको प णयता क मशखर

पर पहचाएग

गर क परतत तनःसवाथय एव भषकतभावप वयक सवा यह प जा भषकत पराथयना और धयान ह

ह राि षजसस आति-साकषातकार को गतत मिलती ह षजसस चतना की जागतत होती ह उस गरदीकषा कहत ह

यहद आप गर ि ईशवर को नही दख सकत तो कफर और ककसि दख सक ग

जब ति िर सिकष तनखामलस होकर अपना हदय खोलोग तभी ि तमह सहाय कर सक गा

आपक मितरो आदशो तथा गर या आधयाषतिक आचायय क परतत वफादार एव सषननटठ रह

अनकरि

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परकररः 6

गरभलकत का अभयास

अनकल होन का लसदधानत

अनक ल होन का षवरल गण बहत कि लोगो ि होता ह और वह एक उतति गण ह उसक दवारा मशटय अपना कसा भी सवभाव हो कफर भी वह अपन गर क परतत अनक ल बनता ह

आजकल परायः सभी सा क अपन गरभाइयो को अनक ल होना नही जानत

मशटय को अपन गर क अनक ल होना और उनस हहलमिल जाना चाहहए

गरभषकत जगान क मलए नमरता और आजञापालन क गण जररी ह

मशटय जब एक ही गर क साषननधय ि रहत हए अपन गरभाइयो क साथ अनक ल होना नही जानता तब घियण होता ह और वह अपन गर को नाराज करता ह

जहाज का कपतान सदव साव ान रहता ह िचछीिार भी सदव साव ान रहता ह ऑपरशन थीएिर ि सजयन सदव साव ान रहता ह इसी परकार भ ख-पयास मशटय को भी गरसवा ि सदव साव ान रहना चाहहए

लशषटयसव क मल तवव

अतत नीद करन वाला जड़ सथ लकाय तनषटकरय आलसी एव ि खय िन का मशटय गर सतटि हो इस परकार उनकी सवा नही कर सकता

षजस मशटय ि उपदश क आचरण का गण होता ह वह अपन गर की सवा ि सफल होता ह आबादी एव अिरतव उसको आ मिलत ह

गर की सवा करन की उतकणठा एव लगन मशटय ि होनी चाहहए गर क परतत भषकतभाव तिाि योगय िानविहचछाओ का एकिातर

धयय ह

मशटय जब गर क पास रहकर अभयास करता हो तब उसक कान शरवण क मलए ततपर होन चाहहए वह जब गर की सवा करता हो तब उसकी दषटि साव ान होनी चाहहए

मशटय को अपन गर िा-बाप बजगय सब योगी एव सतो क साथ अचछी तरह बरताव करना चाहहए

अचछी तरह बरताव करना िान अपन गर क परतत अचछा आचरण करना

गर मशटय क आचरण पर स उसका सवभाव तथा उसक िन की पद तत जान सकत ह

अपन पषवतर गर क परतत अचछा आचरण परि सख क ाि का पासपोिय ह

मशटय जब गर की सवा करता हो तब उस तरगी नही बनना चाहहए

आचरण अपन गर की सवा करक परापत ककय हए वयवहार जञान की अमभवयषकत ह

दवी एव उतति गण दकान स खरीद करन की चीज नही ह व गण तो लमब सिय तक की हई गर सवा शरद ा एव भषकतभाव दवारा ही परापत ककय जा सकत ह

गर को आसमसमपकर

जञानाजयन क बाद गर को राजी-खशी स शीघर बबना रझझक स एव बहत रामश ि गरदकषकषणा दो

गरदकषकषणा स असखय पापो का नाश होता ह गर को दी हई दकषकषणा हदयशदध करन वाली िहान वसत ह

जो दकषकषणा गर को दी जाती ह वह वयवहार परि का परतीक ह

तिाि गरभाइयो क कलयाण क मलए उदार भावना षवकमसत करो

दान का परारमभ अपन गर स ही होता ह गर को दकषकषणा दन की आदत डालनी चाहहए मशटय क पास जो कछ हो वह गर को सपरि भि चढ़ा दना

चाहहए गर क दवारा चाह जसा भोजन कपड़ एव तनवास परापत हो उसस

मशटय को सनतोि िानना चाहहए अपन सचच िन एव हदय स गर की सवा ि ततपर रहना चाहहए

गर की सवा क दौरान कसी भी पररषसथततयो ि सा क को मिलन वाला सतोि सदा आननद और शषकत दता ह

जो कछ घिना घहित हो उसि सदा सतोि रखना चाहहए सदव याद रखोः उचचातिा गर को जो अचछा लगता ह वह आपकी पसनदगी की अपकषा अध क होता ह

सतोि जस परि गण स यकत मशटय पर ही गर की कपा उतरती ह

गर की सवा क दौरान मशटय को अपनी सा ारण बदध का उपयोग करना चाहहए

वववक का घटक

उचचातिा गर की कपा क दवारा मशटय क हदय ि षववकबदध का उदय होता ह

षजसको नसधगयक षववकबदध परापत हई ह उस अवशय गरकपा मिलती ह

ककसी भी चीज की सपहा क बबना अपन गर क परतत फजय अदा करो

मशटय का कततयवय गर क आदशो का वफादारी-प वयक एव अषवलमब पालन करना ह

गर क परतत अपन छोि छोि कततयवय तनभान ि भी सतकय रहो आपको बहत आननद एव शाषनत की पराषपत होगी

गर की सवा ि दासतव जसी कोई चीज नही ह गर की सवा िान गर को आति-सिपयण सब परकार की सवा पषवतर एव उतति ह

गर क परतत अपना कततयवय अदा करना िान सतय िय का आचरण करना

अपन गर क परतत अदा की हई सवा नततक फजय ह आधयाषतिक िॉतनक ह उसस िन एव हदय दवी गणो स भरप र बनत ह पटि बनत ह

समपरक शररागतत

ततपर एव सषननटठ मशटय अपन आचायय की सवा ि अपन समप णय िन एव हदय को लगा दता ह

ततपर मशटय ककसी भी पररषसथतत ि अपन गर की सवा करन का सा न खोज लता ह

अपन गर की सवा करत हए जो सा क सब आपषततयो को सह लता ह वह अपन पराकत सवभाव को जीत सकता ह

शाषनत का िागय हदखान वाल गर क परतत मशटय को सदव कतजञ रहना चाहहए

कतघन बवफा मशटय इस दतनया ि हीनभाग एव दःखी ह उसका भागय दयनीय शोचनीय एव अफसोस-जनक ह

गर की परततषटठा पषवतर वदो क रहसयोदघािक आहद एव प णय बरहिरप िहान गर

को ि निसकार करता ह जो जञानषवजञान रप वदो क सार को भरिर की तरह च सकर अपन भकतो को दत ह

सचच मशटय को अपन हदय क कोन ि अपन समिाननीय गर क चरणकिलो की परततटठा करना चाहहए

मशटय जब अपन गर स मिल तब उसका सबस परथि फजय ह ख ब नमर भाव स अपन गर को परणाि करना

भागवत ि अव त की एक कथा आती ह षजनको चौबीस उपगर थ जस कक पचिहाभ त स यय चनर सिर पराणी आहद य नगणय होत हए भी अपन अपन ढग स उनको सवोचच जञान हदया था

अनय ककसी का षवचार ककय बबना एकागर िन स कवल अपन गर की ही प जा करता ह वह शरटठ मशटय ह

जब सा क ि सततव की वदध होती ह तब वह सदाचारी बनता ह और उसि गर क परतत भषकतभाव षवकमसत होता ह

गर सिदषटि क परतीक ह अतः व अपन तिाि मशटयो क परतत सिभाव रखत ह

शरीकटण उद वजी स कहत ह- ि परोहहतो ि वमशटठ ह गरओ ि बहसपतत ह सा ओ ि ि नारायण ह एव बरहिचाररयो ि सनतकिार ह

मशटय जब अपन गर की सवा करता हो तब उस द सरो की सवा कभी लना नही चाहहए आधयाषतिक षवकास ि उसक मलए यह एक िहान अवरो ह

द सरो को गरभाई बनाकर अपन गर का यश बढ़ाओ गरभषकत षवकमसत करन का यह राजिागय ह

ववदवता स नमरता बढकर ह

आप िहान षवदवान एव नवान हो कफर भी गर एव िहातिाओ क सिकष आपको बहत ही नमर होना चाहहए

मशटय अध क षवदवान न हो लककन वह ि ततयित नमरता का सवरप हो तो उसक गर को उस पर अतयत परि होता ह

अगर आपको नल स पानी पीना हो तो आपको सवय नीच झकना पड़गा इसी परकार अगर आपको गर करना हो तो आपको षवनमरता क परतीक बनना पड़गा

जो िनटय वफादार एव बबलकल नमर बनत ह उनक ऊपर ही गर ही कपा उतरती ह

गर क चरणकिलो की प जा क मलए नमरता क पटप क अलावा और कोई शरटठ पटप नही ह

शरदधा का अथक शरद ा िान गर का षवशवास

शरद ा िान अपन पषवतर आचायय एव िहातिाओ क कथन वाणी कायो लखन एव उपदशो ि षवशवास

आचायय परिाण क रप ि जो कह उसि अनय कोई परिाण या साबबततयो की परवाह ककय बबना दढ़ षवशवास रखना उसका नाि ह शरद ा

गर ि समप णय शरद ा रख और अपन आपको प णयतः गर क शरण ि ल जाय व आपकी तनगरानी करग इसस सब भय अवरो एव कटि प णयतः नटि होग

सदगर ि दढ़ शरद ा आतिा की उननतत करती ह हदय को शद करती ह एव आति-साकषातकार की ओर ल जाती ह

गर क उपदश ि समप णय शरद ा रखना यह मशटयो का मसद ानत होना चाहहए

आजञापालन का परकार

आजञापालन िान गर एव बजगो क आदशो को पालन की इचछा

जो मशटय अपन गर की आजञा िानता ह वही अपनी सथ ल परकतत पर तनयतरण पा सकता ह

नमरता भषकतभाव तनरहकारीपना आहद सब हदवय गण गर की आजञा का पालन करन स ही परकि होत ह

गर क आदशो ि शका नही करना या उनक पालन ि आलसय नही करना यही गर क परतत सचची आजञाकाररता ह

गर की आजञा का पालन सब कायो ि सफलता की जननी ह

ग र जो आजञा कर वह काि करना और िना कर वह काि न करना यही गर क परतत सचची आजञाकाररता ह

दभी मशटय गर की आजञा भय क कारण िानता ह सचचा मशटय परि क खाततर शद परि स गर की आजञा का पालन करता ह

मशटय का परथि पाठ ह गर क परतत आजञाकाररता

भलाई की एक नदी ह जो ईशवर क चरणकिलो ि स तनकलती ह और गर क आजञापालन क िागय स बहती ह

यहद मशटय क हदय ि सतोि न हो तो यह बताता ह कक मशटय ि गर क परतत आजञापालन का भाव प रा नही ह

आपि भाव एव ततपरता होगी तो गर आपकी भि स परसनन होग भि क परकारो स नही

मशटय को अतयनत ततपरताप वयक एव धयानप वयक अपन गर की सवा करना चाहहए

आरधयालसमक नीतत-रीतत

अपन आपको आचायय की सवा ि सौप दो तन िन एव आतिा को ख ब ततपरता स अपयण कर दो

गरशरद ा का सककरय सवरप िान गर क चरण किलो ि समप णय आतिसिपयण करना

गर सवा क तनतयकरि ि ख ब तनयमित रहो

अपन आचायय की दतनक तनजी सवा ि घड़ी क सिान तनयमित रहो

आचायय एव हरएक सत का आदर करना यह नमरता का धचहन ह

आचायय एव आदरणीय वयषकतयो की उपषसथतत ि ऊ ची आवाज स बोलो नही

गर क वचनो ि षवशवास रखना यह अिरतव क दवार खोलन क मलए गर चाबी ह

जब आप ककसी िहान गर क मशटय हो तब अनय ककसी को आप अपन मशटय बनाओ नही एव खद गर बनन का परयास करो नही उनको अपन गरभाई िानो

गर करना और बाद ि उनको ोखा दकर उनका तयाग कर दना इसकी अपकषा गर नही करना और भवािवी ि भिकना बहतर ह

जो िनटय षवियवासना का दास ह वह गर की सवा नही कर सकता गर को आतिसिपयण नही कर सकता फलतः वह ससार क कीचड़ स अपन आपको बचा नही सकता

लमलन की शलकत

गर स ोखा करना यह अपनी ही कबर खोदन का सा न ह

गर और मशटय क बीच जो शषकत जोड़न का काि करती ह वह शद परि होना चाहहए

गर का कपा-परसाद और मशटय की कोमशस मिलती ह तब अिरतव रपी बालक का जनि होता ह

मशटय को जञान हदय बबना ही गर को उसक पास स गरदकषकषणा नही लना चाहहए

मशटय को अपन सिगर जीवन क दौरान गर क यश की पताका लहराना चाहहए

गर क चरणकिल ि आतिसिपयण करना यह मशटय का आदशय होना चाहहए

गर िहान ह षवपषततयो स डरना नही ह वीर मशटयो आग बढ़ो

गरकपा अणशषकत स अध क शषकतशाली ह

मशटय क ऊपर जो आपषततया आती ह व छप वश ि गर क आशीवायद क सिान होती ह

गर क चरणकिलो ि आतिसिपयण करना यह सचच मशटय का जीवनितर होना चाहहए

गर की सवा साकषात परि एव आननदसवरप अपन गर की सवा करन का

सौभागय परापत हो जाय तो सवा ि असीि आननद एव परि सख मिलगा

नमरताप वयक सवचछाप वयक सशयरहहत होकर बाहय आडमबर क बबना दवि रहहत बनकर असीि परि स अपन गर की सवा कर

पथवी पर क साकषात ईशवर सवरप गर क चरणकिलो ि आतिसिपयण करग तो व भयसथानो स आपका रकषण करग आपकी सा ना ि आपको पररणा दग तथा अषनति धयय तक आपक पथपरदशयक बनग

गर की कपा अख ि असीि और अवणयनीय ह

गर का उषचछटि परसाद लन स असाधय रोग मिित ह

गर पर शरद ा एक ऐसी चीज ह जो परापत करन क बाद और कछ परापत करना शि नही रहता

इस शरद ा क दवारा तनिि िातर ि आप परि पदाथय पा लग गर क वचन एव किय ि शरद ा रखो शरद ा रखो शरद ा रखो

यही गरभषकत षवकमसत करन का िागय ह अनकरि

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परकररः 7

साधक क सचच पथपरदशकक

लशषटयसव क मल लसदधानत

सा क अगर शरद ा एव भषकतभाव स अपन गर की सवा नही करगा तो उसक तिाि वरत तप कचच घड़ ि स पानी की तरह िपककर बह जाएग

िन एव इषनरयो का सयि गरभगवान का धयान गर की सवा ि यय सहन शषकत आचायय क परतत भषकतभाव सतोि दया सवचछता सतयवाहदता सरलता गर की आजञा का पालन य सब अचछ मशटय क लकषण ह

सतय क सा क को िन एव इषनरयो पर सयि रखकर अपन आचायय क घर रहना चाहहए और ख ब शरद ा एव आदरप वयक गर की तनगरानी ि शासतरो का अभयास करना चाहहए

उस चसतता स बरहिचयय का पालन करना चाहहए और आचायय की प जा करना चाहहए

मशटय को चाहहए कक वह आचायय को साकषात ईशवर क रप ि िान िनटय क रप ि कदाषप नही

मशटय को आचायय क दोि नही दखना चाहहए कयोकक व तिाि दवो क परतततनध ह

मशटय को गर क मलए मभकषा िागकर लाना चाहहए एव ख ब शरद ा तथा भषकतभावप वयक उनह भोजन कराना चाहहए

मशटय को सब सखवभव का षवि की तयाग कर दना चाहहए और अपना शरीर गर की सवा ि सौप दना चाहहए

शासतरो का अभयास प रा करक मशटय को चाहहए कक वह गर को दकषकषणा द और उनकी आजञा लकर अपन घर वापस लौि

जो गरपद का उपयोग आजीषवका क सा न क रप ि करता ह वह िय का नाश करन वाला ह

बरहिचारी का िखय कततयवय प र हदय स अपन आचायय की सवा करना ह

गर की कपा परापत करन क मलए उनकी तनषज सवा और उनकी आजञा का पालन षजतना सहायरप ह उतना सहायरप तप यातरा भि दान आहद नही ह

वद परतयकष जञान गरवचन और अनिान य चार जञान क परिाण ह

हरएक किय ि दःख क बीज सिाषवटि ह ककनत गर की सवा क षविय ि ऐसा नही ह

गर क आदशो का पालन करन क मलए मशटय को कभी भी न भोगषवलास सखवभव और अपन शरीर का भी तयाग करन क मलए तयार रहना चाहहए

गर समबनधी धमक

जो तन िन और न को गर क चरणो ि अपयण कर दता ह वह गरभषकत का षवकास कर लता ह

षजसस गरचरणो क परतत भषकतभाव बढ़ वह परि िय ह तनयि िान गरितर का जप गरसवा क दौरान तपशचयाय गरवचन

ि शरद ा आचायय-सवन सतोि पषवतरता शासतर का अधययन और गरभषकत अथवा गर का शरण

ततततकषा िान गर क आदशो का पालन करत हए दःख सहन करना

तयाग िान गर का तनि हो ऐस किो का तयाग करना जो अपन गर की आजञा का पालन नही करता तथा गर की सवा

नही करता वह ि खय ह

भगवान शरीकटण उद वजी स कहत ह- दटपरापय िनटयदह िजब त नौका जसी ह गर उस नौका क कणय ार ह व नौका को सभालत ह उस नौका को चलान वाला ि (कटण) अनक ल पवन ह जो िनटय ऐसी नौका और ऐस सा न स भवसागर पार करन का परयतन नही करता वह सचिच आतिघातक ह

िनटय अनाहद अजञान क परभाव ि होन क कारण गर की सहाय क बबना आति-साकषातकार नही कर सकता

गर जो कहत ह उसि कछ गलत हो सकता ह उसक मलए कारण होगा ही िनटयबदध वहा पहच नही पाती

गर की तनजी सवा सवोचच परकार का योग ह

गर की तनजी सवा करन स मशटय अपन िन को वश ि कर सकता ह

परकतत क तीन गर

करो लोभ असतय कर रता याचना दभ झगड़ा भरि तनराशा शोक दःख तनरा भय आलसय य सब तिोगण ह जो अनक जनिो क बावज द भी जीत जी नही जा सकत ककनत शरद ा एव भषकत स गर की की हई तनजी सवा इन सब दगयणो का नाश करती ह

गर क वचन ि और ईशवर ि शरद ा रखना सततवगण ह गर क भोजन क बाद जो खराक बचा हो वह बहत साषततवक होता

कामवासना का तरबककल सयाग

सा क को षवजातीय वयषकत का सहवास नही करना चाहहए जो लोग ऐस सहवास क शौकीन हो उनका सग भी नही करना चाहहए कयोकक उसस िन कषब होता ह तब मशटय भषकतभाव और शरद ाप वयक अपन गर की सवा नही कर सकता

मशटय अगर अपन आचायय की आजञा का पालन नही करता ह तो उसकी सा ना वयथय ह

बदध िान सा क को तिाि परकार क खराब सग स द र रहना चाह उस सतो एव गर का सग करना चाहहए उनक सग स वरागय षवकमसत होता ह तिाि वासनाए द र होकर िन शद बनता ह

जस अषगन क पास बठन स ठणड भय अन कार द र होता ह वस ही जो मशटय गर क पास रहता ह उसक अजञान ितय का भय तथा सब अतनटिो का नाश होता ह

जो इस ससार-सागर ि इ र उ र ड बत उतरत ह उनक मलए बदध िान गर का आशरय शरटठ ह

स यय क पास स कवल एक बाहय दषटि ही परापत होती ह ककनत गर क पास स जञान परापत करन क मलए कई परकार की कई दषटिया परापत होती ह

गर मान साकषात दवता गर इस पथवी पर साकषात ईशवर ह सचच मितर एव षवशवासपातर

बन ह ह भगवान ह भगवान ि आपक आशरय ि आया ह िझ पर

दया करो िझ जनि-ितय क सागर स बचाओ ऐसा कहकर मशटय को अपन गर को दणडवत परणाि करना चाहहए

तनरपकष भषकतभावप वयक जो गर क चरणो की प जा करता ह उस सी ी गर कपा परापत होती ह

आचायय स परापत की हई तथा सवा स तीकषण बनी हई जञानरप तलवार एव धयान की सहायता स मशटय िन वचन पराण और दह क अहकार को काि दता ह तथा सब रागदवि स िकत होकर इस ससार ि सवचछाप वयक षवहार करता ह

तीवर गरभषकत क शषकतशाली शसतर स िन को द षित करन वाली आसषकत को ि ल सहहत काि हदया जाय तब तक षवियो का सग तयाग दना चाहहए

गर का आशरय लकर जो योग का अभयास करता ह वह षवषव अवरो ो स पीछ नही हिता

सचच मशटय को अपन गर क पषवतर चरणो ि ककसी भी परकार की हहचककचाहि या शिय क बबना साटिाग दडवत परणाि करना चाहहए यह उसक समप णय आतिसिपयण की तनशानी ह

ककसी भी फल की आशा स रहहत होकर जो गरसवा और गरप जा ि लगा रहता ह वह उलि िागय ि नही जाएगा उस सवा प जा का परकाश अवशय परापत होगा

जञान का परकाश फलान वाली पषवतर गरगीता का जो हररोज अभयास करता ह वही सचिच षवशद ह उस ही िोकष की पराषपत होती ह

जो अपन गर क यश ि आनषनदत होता ह और द सरो क सिकष अपन गर क यश का वणयन करन ि आननद का अनभव करता ह उस सचिच गर कपा परापत होती ह

परिातिा और परबरहिसवरप गर की अजञाननाशक उपषसथतत ि आपक सब सशयो का नाश होगा जस स योदय होत ही ओस की ब द नटि होती ह

ह िहान परि समिाननीय गर ि आदरप वयक आपको निसकार करता ह ि आपक चरणकिलो क परतत अच क भषकतभावव कस परापत कर सक और आपक दयाल चरणो ि िरा िन हिशा भषकतभावप वयक कस सराबोर रह यह कपा करक िझ कह इस परकार कहकर ख ब नमरताप वयक एव आतिसिपयण की भावना स मशटय को चाहहए कक वह गर को दणडवत परणाि कर और उनक आग धगड़धगड़ाए

साकषात ईशवर जस सवोचच पद परापत ककय हए गर की जय हो गर का यश गान वाल ियशासतरो की जय हो षजसन कवल ऐस गर का ही आशरय मलया ह ऐस सचच मशटय की जय हो

गर कपा स ईशवर-साकषासकार

वादषववाद बदध गहन अभयास दान या तप स ईशवर-साकषातकार नही होता वह तो षजसन गरकपा परापत की हो उसको ही होता ह

गरकपा का छोि स छोिा बबनद भी इस ससार क कटिो स िनटय को िकत करन ि पयायपत ह

कवल गरकपा क दवारा ही सा क आधयाषतिक िागय ि लगा रह सकता ह एव तिाि परकार क बन नो एव आसषकतयो को तोड़ सकता ह

जो मशटय अहकार स भरा हआ ह जो गर क वचनो को सनता नही ह उसका आरखर नाश होता ह

षजन गर को आति-साकषातकार हआ ह ऐस गर ि और ईशवर ि कोई फकय नही ह दोनो सिान ह और एकरप ह

गर क सतसग की सहाय क बबना नय नय सा क क कससकारो ि ि लतः पररवतयन करन की बबलकल आशा नही ह

गर का सहवास सा क क मलए एक सरकषकषत नौका ह जो उस अन कार क उस पार तनभययता क ककनार पर पहचाती ह

शासतरो म गर की परशसा भागवत रािायण िहाभारत योगवामशटठ आहद ि गरभषकत की

िहहिा सनदर ढग स गायी गई ह हररोज उन गरनथो का अभयास करो आपको उनि स पररणा मिलगी

आति-साकषातकारी गर क मलख हए गरनथ परोकष सतसग जस ह आप जब सप णय शरद ा और भषकत स उनका अधययन करत ह तब आपक पावन गर क साथ आपका प णय सायजय होता ह

जो अपन सा नापथ ि सचच हदय स परयतन करता ह और जो ईशवर-साकषातकार क मलए तड़पता ह ऐस योगय मशटय पर ही गर की कपा उतरती ह

आजकल मशटय लोग ऐश-आरािवाला जीवन जीत ह और गर की आजञा का पालन ककय बबना ही उनकी कपा की आशा रखत ह

गर एव िहातिाओ क सतसग की िहहिा षवियक गर नानक तलसीदास शकराचायय वयास और वालिीकक न गरथ मलख ह

परदरदास तनशचलदास सहजोबाई िीराबाई जञानशवर एकनाथ आहद न गरकपा की िहहिा गाई ह

जो लोग तनयमित सतसग करत ह उनि ईशवर और शासतरो ि शरद ा गर एव ईशवर क परतत परि और भषकत का ीर ीर षवकास होता ह

गर का सग िाग और प ततय का परशन ह अगर सचच हदय की िाग हो तो प तत य तरनत हो जाएगी कदरत का यह अिल तनयि ह

आपको अगर सचिच ईशवर-साकषातकार की तड़प होगी तो आपक आधयाषतिक गर को आप अपन घर क दवार पर खड़ पाएग

आति-साकषातकारी िहान गर का सग परापत करना िषशकल ह ककनत वह सग बहत ही लाभकारी ह आप अगर भषकतभावप वयक इिानदारी स पराथयना करग तो व सवय आपक पास आयग

इस दतनया ि उतति वसतए अतयत अलप िातरा ि होती ह जस की कसत री कसर रडडयि चनदन षवदवान सदाचारी परि तथा परोपकारी सवभाव क लोग बहत कि होत ह अगर ऐसा ही ह तो सतो भकतो योधगयो पयगमबरो दटिाओ तथा आति-साकषातकारी गर क षविय ि तो कहना ही कया

आप अगर आति-साकषातकारी गर की सवा करग तो आपक िोकष की सिसया हल हो जाएगी

िहातिाओ का सग ईशवरकपा स ही परापत होता ह

गर की सवा करक आशीवायद परापत करन की इचछक सा को को कसग स अवशयद र रहना चाहहए

इस िाया का रहसय कौन जान सकता ह जो कसग का तयाग करत ह जो उदार हदयवाल गर की सवा करत ह जो अहभाव स िकत ह और जो ििता रहहत ह व इस िाया का रहसय जान सकत ह

राग-दवि स िकत ऐस गर का सग करन स िनटय आसषकत रहहत बनता ह उस वरागय परापत होता ह

उसि गर क चरणकिलो क परतत भषकत जागती ह

जो भषकतभावप वयक गर की सवा करता ह वह जीवन क परि तततव को परापत करता ह

सा क का िन ककसी भी परकार क परयतन बबना ही गर की सवा स अपन आप एकागर बनता ह

गर गरथसाहब कहत ह कक गर क बबना ईशवरपराषपत का िागय नही मिल सकता गर सवय ईशवर सवरप होन क कारण व सा क को ईशवर पराषपत क िागय ि ल जात ह उस िागय ि व पथपरदशयक बनत ह गर ही मशटय को ऐसा अनभव करा सकत ह कक वह सवय ही ईशवर ह

गर का महान परम

दवी गणो का षवकास करन वाला िहान रहसय गरभषकत ि तनहहत ह

जो मशटय अपन गर क चरणकिलो ि समप णय आति-सिपयण करता ह उस गर सवय ही सब दवी गण परदान करत ह

जो अपन िन पर सयि रखकर धयान नही कर सकत उनक मलए तो गरभषकत जगाकर गरसवा करना ही एक उपाय ह

गर मशटय की िषशकमलयो एव अवरो ो को जानत ह कयोकक व बतरकालजञानी ह अतः िन ि ही उनकी पराथयना कर व आपक अवरो ो को द र करग

गर क दशयन अन कार का सवयथा नाश करत ह और असीि आननद दत ह

भगवान आपका कलयाण कर और आप सब गरभषकत जस दलयभ दवी गण का षवकास करो

भगवान सवय ही आचायय क रप ि दीखत ह व परतयकष िानव क सवरप ि दशयन दत ह अथवा बरहितनटठ िहान जञानी क रप ि दशयन दत ह

जनि स लकर ितयपययनत जीवन का एक िातर हत िहान गर की सवा करना ह

गर क साथ तादासमय

कवल बदध िान वयषकत क रप ि एक वयषकत की कोई सतता नही ह उसि वासतषवकता का जञान नही ह ककनत जब वयषकत गर क समपकय ि आता ह तब उसि सचचा जञान सचची शषकत और सचचा आननद परकि होता ह व गर भी ऐस हो षजनहोन परिातिा क साथ तादातमय सथाषपत ककया हो

मशटय घास क ततनक स भी अध क नमर होना चाहहए तभी गर की कपा उस पर उतरगी

जब मशटय धयान नही कर सकता हो जब आधयाषतिक जीवन का िागय नही जान सकता हो तब उस गर की सवा करना चाहहए उनक आशीवायद परापत करना चाहहए उसक मलए कवल यही उपाय ह

िन जब परशानत और षसथर हो तब आप धयान कर सकत ह िन अगर कषब हो तो जप कर पसतक पढ़ और शरद ा-भषकतप वयक गर की सवा कर गर क साथ िानमसक समबन सथाषपत कर तभी आपका जलदी षवकास हो सकगा

जनि स लकर ितय तक सारा जीवन षवदयाथी अवसथा का सिय ह तभी षवदयाथी िोकषदायक आधयाषतिक जञान परापत कर सकता ह

जो मशटय गरकल ि रहत हो उनह इस नाशवत दतनया की ककसी भी चीज की तटणा न रह इसक मलए हो सक उतना परयास करना चाहहए

षजसन गर परापत ककय ह ऐस मशटय क मलए ही अिरतव क दवार पर खलत ह

सा को को इतना धयान ि रखना चाहहए कक कवल पसतको का अभयास करन स या वाकय रिन स अिरतव नही मिलता उसस तो व अमभिानी बन जात ह षजसक दवारा जीवन का क िपरशन हल हो सक ऐसा सचचा जञान तो गरकपा स ही परापत हो सकता ह

षजनहोन ईशवर क दशयन ककय ह ऐस गर का सग और सहवास ही मशटय पर गहरा परभाव डालता ह तिाि परकार क अभयास की अपकषा गर का सग शरटठ ह

गर का सतसग मशटय का पनजीवन करन वाला िखय तततव ह वह उस हदवय परकाश दता ह और उसक मलए सवगय क दवार खोल दता ह

गर का सग ही सा क को उसक चाररतरय क तनिायण ि उसकी चतना को जागत करक अपन सवरप का सचचा दशयन करन ि सहाय कर सकता ह

लशषटय को मागकदशकन

गर की सवा गर की आजञा का पालन गर की प जा और गर का धयान य चीज बहत िहततवप णय ह मशटय क मलए आचरण करन योगय उतति चीज ह

मशटय को बार-बार दवी सरसवती की षजनहोन आशीवायद हदय हो ऐस गर की एव सवोचच षपता परिशवर की पराथयना करना चाहहए

गर क पास अभयास प रा करन क बाद भी सिगर जीवनपययनत मशटय को अपन आचायय क परतत कतजञता का भाव बनाय रखना चाहहए

गर की कपा तो सदा रहती ह िहततवप णय बात यह ह कक मशटय को गर क वचनो ि शरद ा रखना चाहहए और उनक आदशो का पालन करना चाहहए

बदध को तजसवी रखन क मलए सवाधयाय की आवशयकता ह षजसस बदध उलि िागय ि न जाय या उसका दरपयोग न हो उसस भी अध क िहततवप णय चीज ह िहातिाओ का सतसग अथायत हि गर करना चाहहए षजसस हि तनरनतर िागयदशयन परापत होता रह व हि िागय ि आन वाल भयसथान हदखात रह कफर गर स परापत जञान की सहायता स मशटय योगय पथ पर आग बढ़न ि शषकतिान होगा

आसम-साकषासकार का रहसय

जीवन क परितततव रपी वासतषवकता क समपकय का रहसय गरभषकत ह

सचच मशटय क मलए तो गरवचन िान कान न

गर का दास बनना िान ईशवर का सवक बनना

षजनहोन परभ को तनहारा ह और जो योगय मशटय को परभ क दशयन करवात ह व ही सचच गर ह

बनाविी गर स साव ान रहना ऐस गर प र क प र शासतर रि लत ह और मशटयो को उनि स दटिानत दत ह लककन व जो उपदश दत ह उसका आचरण व खद नही कर सकत

आलसी मशटय को गरसवा नही मिल सकती

राजसी सवभाव क मशटय को लोकसगरह करन वाल गर क कायय सिझ ि नही आत

ककसी भी कायय का परारभ करन स पहल मशटय को गर की सलाह लना चाहहए

अनकरि

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परकररः 8

गरभलकत का वववरर

आरधयालसमक लशकषा का अथक िकतातिा गर की सवा उनहोन मलख हए पसतको का अभयास

और उनकी पषवतर ि ततय का धयान यह गरभलकत ववकलसत करन का सनहरा मागक ह

जो मशटय नाि कीततय सतता न और षवियवासना क पीछ दौड़ता ह वह सदगर क चरणकिलो क परतत सचचा भषकतभाव नही रख सकता

मशकषा का कषतर बहत ही षवशाल ह और जञानपराषपत की सभावनाए अपार ह अतः गर की आवशयकता अतनवायय ह

तततीरीय उपतनिद कहती हः अब जञान क षविय ि बात करत ह आचायय परथि सवरप ह मशटय आरखरी सवरप ह जञान इन दोनो क

बीच की कड़ी ह और उपदश वह िाधयि ह जो सिनवय कराता ह यह जञान का कषतर ह

कठोपतनिद कहती हः षजस आतिा क षविय ि मभनन-मभनन परकार स उपदश हदया जाता ह उस आतिा षवियक जब तनमन सतर की बदध वाल वयषकत क दवारा उपदश हदया जाता ह तब सरलता स सिझ ि नही आता ककनत जब वही आतिा क षविय ि बरहितनटठ गर उपदश दत ह तब बबलकल सनदह नही रहता अथायत भली परकार सिझ ि आ जाता ह आतिा तो स कषि स भी स कषि ह कवल बौदध क कसती स उस परापत नही ककया जा सकता कवल गर कपा स ही जञान परापत हो सकता ह

गर लशषटय का समबनध

मशटय को आचायय क घर रहना चाहहए बारह विय तक समप णय बरहिचयय का पालन करना चाहहए तथा कहठन तप करना चाहहए उस गर की सवा करना चाहहए तथा उनक िागयदशयन ि पषवतर शासतरो का अधययन करना चाहहए

जो मशटय को मशकषा द सक और सवय जो मशकषा द उसको अपन आचरण ि भी ला सक व ही गर हो सकत ह

िनटय को षजस ककसी को भी गर क रप ि सवीकार नही कर लना चाहहए एक बार गर क रप ि सवीकार कर लन क बाद ककसी भी पररषसथतत ि उनका तयाग नही करना चाहहए

आति-साकषातकारी गर इस जिान ि सचिच बहत दलयभ ह

सचिच आधयाषतिक षवकास कर लन वाल वयषकत जब तक परिातिा की आजञा नही होती तब तक गर क रप ि फजय अपन मसर पर नही लत

जब योगय सा क आधयाषतिक पथ की दीकषा लन क मलए गर की खोज ि जाता ह तब उसक सिकष ईशवर गर क सवरप ि हदखत ह और उस दीकषा दत ह

जो िकतातिा गर ह व एक तनराली जागरत अवसथा ि रहत ह षजस तरीयावसथा कहा जाता ह जो मशटय गर क साथ एकता सथाषपत करना चाहता हो उस ससार की कषणभगर चीजो क परतत समप णय वरागय का गण षवकमसत करना चाहहए

उचचतर जञान का मल

जो उचचतर जञान धचत ि स तनटपनन होता ह वह षवचारो क रप ि नही अषपत शषकत क रप ि होता ह वह जञान गर को मशटय क परतत सी सी ा सकरमित करना पड़ता ह ऐस गर धचतशषकत क साथ एक रप होत ह

ईशवर-साकषातकार कवल सवपरयतन स ही नही हो सकता उसक मलए गर कपा अतयनत आवशयक ह

मशटय जब उचचतर दीकषा क मलए योगय बनता ह तब गर सवय ही उस योग क रहसयो की दीकषा दत ह

गरशरद ा पवयतो को हहला सकती ह गरकपा चितकार कर सकती ह ह वीर तनःसशय बनकर आग बढ़ो

परिातिा क साथ एकरप बन हए िहान आधयाषतिक परि की जो सवा करता ह वह ससार क कीचड़ को पार कर जाता ह

अगर आप सासाररक िनोवषततवाल लोगो की सवा करग तो आपको सासाररक लोगो क गण मिलग उसस षवपरीत जो सदव परि सख ि तनिगन रहत ह जो सवय गणो क ाि ह जो साकषात परिसवरप ह ऐस

गर क चरणकिलो की सवा करग तो आपको उनक गण परापत होग अतः उनकी सवा करो बस सवा करो

आचरर क लसदधानत

अपन गर की सवा करन वाल मशटय को द सरो क सिकष लषजजत नही होना चाहहए सकोच िहस स नही करना चाहहए

गर न भोजन न ककया हो तब तक आप कभी भोजन ित कर

गर का उषचछटि परसाद (गर की थाली ि बचा हआ परसाद) जो गरहण करता ह वह गर क साथ एकतव का अनभव करगा गरकपा स वह उनक साथ एकरप हो जायगा

अतनवायय पररषसथततयो ि भी जब गर तनरा ीन हो या आराि करत हो तब उनह जगाना नही चाहहए षवघन नही डालना चाहहए

गर क साथ हसी िजाक कभी ित कर अगर ऐसा करग तो ीर- ीर उनक परतत आदर कि होता जायगा और आपको लगगा कक ि उनक बराबर हो गया ह

बनाविी गर स साव ान रहना उनहोन अपनी बरबादी तो की ह लककन व आपकी भी बरबादी कर दग

गर होना अचछी बात ह लककन गर का तयाग करना बहत खराब बात ह

गर होना अचछी बात ह और गहरी शरद ा स उनकी सवा करना यह उसस भी अचछी बात ह

गर की आजञा का पालन करना ईशवर की आजञा का पालन करन क बराबर ह

अनक गर करना खराब बात ह गर स ोखा करना और उनकी आजञा का उललघन करना बहत खराब बात ह

गर की सवा करन क मलय सदव ततपर रहो

गर की अथक सवा करक उनकी कपा परापत करो षजसन गर कपा परापत की ह वही सा ना का रहसय जानता ह

गर होना अचछी बात ह उनकी आजञा का पालन करना उसस भी अध क अचछी बात ह और उनक आशीवायद परापत करना शरटठ ह

जो अपन गर की सवा करता ह वही परि सतय क समपकय ि आन की कला जानता ह

जो िोह स िकत बनता ह वह कभी भी गर का रोह नही करगा

गर िहाराज क जीषवत होत हए जो उनकी गददी पर बठन की इचछा करता ह उस सी ा नकय का पासपोिय मिल जाता ह यिराज भी ऐस आदिी स डरत रहत ह कक शायद वह आदिी िरी गददी भी छीन लगा

गरप रणयिा क हदन जो अपन गर की पादप जा करता ह उस सार विय क दौरान सार किो ि सफलता मिलती ह

गरभाई पर परि रखना यह गरदव क परतत परि रखन क बराबर ह गरभाई को सहाय करना यह गरदव की सवा करन क बराबर ह

गर की सवा करना िान आतिोद ार करना गर की सवा करना िा-बाप की सवा करना

ककसी भी चीज ि अन शरद ा होना यह अचछी बात नही ह ककनत ईशवर क साथ एकतव सथाषपत ककय हए गर क वचनो ि अन शरद ा रखना यह िोकष का राजिागय ह

आप कछ ही सिय ि एक िहान षवदवान बन सकत ह ककनत आसानी स सचच मशटय नही बन सकत

योगय गर की खोज

आजकल कई बनाविी गर तथा मशटय हदखाई दत ह आपको गर की पसनदगी करना हो तब धयान रखना

मशटय का कततयवय ह गर क पषवतर िख स जो आजञाए तनकल उनका पालन करना

गर क तनवास एव आशरि क आसपास क सथान सवचछ एव वयवषसथत रखो

गर और मशटय क बीच परिी और परमिका जसा समबन ह कभी कभी गर अपन मशटय की कसौिी कर या उस परलोभन ि

डाल तो मशटय को गर क परतत अपनी शरद ा क दवारा उसका सािना करना चाहहए

मशटय को कोई भी चीज गर स तछपाना नही चाहहए उस सपटिवकता और परािारणक बनना चाहहए

रागदवि स िकत गर क चरणकिलो की मल बनना यह तो िहान सौभागय ह दलयभ अध कार ह

परिातिा क साथ एकतव सथाषपत ककय हए आचायय क पषवतर चरणो की मल तो मशटय क मलए अलौककक अलकार ह

गरसवा का एक भी हदन च कना नही ककसी भी परकार क पग बहान बनाना नही

जो अपन को गरचरण की मल िानता ह ऐस िनटय को नय ह

जो मशटय नमर सादा आजञाकारी तथा गर क चरणकिलो क परतत भषकतभाव रखनवाला ह उस पर गरकपा उतरती ह

गर क कायय का एक सा न बनो

गर जब आपकी गलततया बताव तब अपन कायय उधचत ह ऐसा बचाव ित कर कवल उनका कहा िान

जो गर षवशिजञ हो उनक िागयदशयन ि आसन पराणायाि धयान सीखो

षजसकी तनरा तथा आहार आवशयकता स अध क ह वह गर की रधच क िताबबक उनकी सवा नही कर सकता

गर क पदचचहनो पर

जो अध क वाचाल ह और शरीर की िीपिाप करना चाहता ह वह गर की इचछा क अनसार सवा नही कर सकता

हररोज भषकतभाव एव भषकत स गर क चरणकिलो की प जा करो

अगर अलौककक भाव स अपन गर की सवा करना चाहत हो तो षसतरयो स एव सासाररक िनोवषततवाल लोगो स हहलोमिलो नही

गर क आशीवायद का खजाना खोलन क मलए गर सवा गर चाबी ह

जहा गर ह वहा ईशवर ह यह बात सदव याद रखो

जो गर की खोज करता ह वह ईशवर की खोज करता ह जो ईशवर की खोज करता ह उस गर मिलत ह

मशटय को अपन गर क कदि का अनसरण करना चाहहए

गर की पतनी को अपनी िाता सिझकर उनको इस परकार िान दना चाहहए

अपन गर स कषणभगर पाधथयव सखो की याचना ित करना अिरतव क मलए याचना करो

अपन गर स सासाररक आवशयकताओ की भीख नही िागना

सचच मशटय क मलए आचायय क चरणकिल ही एकिातर आशरय ह

जो कोई अपन गर की भावप वयक अहतनयश अथक सवा करता ह उस काि करो और लोभ कभी सता नही सकत

गर क चररो म जो दवी गर क चरणो ि आशरय लता ह वह गर की कपा स

आधयाषतिक िागय ि आन वाल तिाि षवघनो को पार कर जाएगा

योग क मलए शरटठ एकानत सथान गर का तनवास सथान ह

मशटय क साथ गर रहत नही हो तो ऐसा एकानत सचचा एकानत नही ह ऐसा एकानत काि और तिस का आशरयसथान बन जाता ह

षजस मशटय को अपन गर क परतत भषकतभाव ह उसक मलय तो आहद स अनत तक गर सवा िीठ शहद जसी बन जाती ह

गर क पषवतर िख स बहत हए अित का जो पान करता ह वह िनटय नय ह

जो समप णय भाव स अपन गर की अथक सवा करता ह उस दतनयादारी क षवचार नही आत इस दतनया ि वह सबस अध क भागयवान ह

बस अपन गर की सवा करो सवा करो सवा करो गरभषकत षवकमसत करन का यह राजिागय ह

गर िान सषचचदानद परिातिा

गर की पजा प जय आचायय की सवा जसी हहतकारी और आतिोननतत करन वाली

और कोई सवा नही ह

सचचा आराि दवी गर की सवा ि ही तनहहत ह ऐसा द सरा कोई सचचा आराि नही ह

गरकपा स जीवन का ििय सिझ ि आता ह

ककसी भी परकार क सवाथी हत क बबना आचायय की पषवतर सवा जीवन को तनषशचत आकार दती ह

वदानत क थोड़ बहत पसतक सवततर रीतत स पढ़ लन क बाद यो कहना कक न गरः न मशटयः यह सतय क खोजी क मलए िहान भ ल ह

कभी कभी मशटय क पापो को हर लन स गर को शारीररक पीड़ा भगतनी पड़ती ह वासतव ि गर कोई भी शारीररक रोग या पीड़ा नही भोगत ककनत बहत भषकतभाव और ततपरता स गर की सवा करक हदय को पषवतर बनान क मलए मशटय को परापत एक षवरल िौका ह

पणयशाली आचायय का उतति षवचार मशटय को पाधथयवता और इषनरयषवियक जीवन स ऊपर उठन ि सहायरप ह

उप िान पास तन िान नीच िद िान बठना उपतनिद िान आचायय क पास नीच बठना मशटयो का सि ह बरहि क मसद ानत का रहसय जानन क मलए आचायय क पास बठता ह

रहसय-ववदया का दान

पषवतर शासतरो का ग ढ़ रहसय और पराचीन मसद ानतो का अथय कवल पसतक पढ़न स या पाषणडतयप णय भािण सनन स सिझ ि नही आता जो भागयशाली मशटय आजीवन गर क साथ रहकर उनकी सवा करत ह और गर क परतत आदर तथा भषकतभाव रखत ह उनको तततविमस अह बरहिाषसि सव खषलवद बरहि आहद उपतनिदो क कथन अचछी तरह सिझ ि आत ह और उनक अथय का साकषातकार होता ह

गरकपा आतिा का आनतरदशयन कराती ह

अनकबार की बबनती और कहठन कसौिी क बाद ही सदगर अपन षवशवसनीय मशटय को उपतनिद की रहसय षवदया परदान करत ह

उपतनिद की परमपरा क िताबबक आचायय बरहि-षवदया का रहसय अपन योगय पतर अथवा तो षवशवसनीय मशटय को ही द सकत ह और ककसी को भी नही कफर वह चाह कोई भी हो और चारो ओर स पानी स आवतत वभव स सिद सारी पथवी गर को दन क मलए तयार हो

पावनकारी गर को दणडवत परणाि करन क बाद उनकी ओर पीठ करक मशटय को जाना चाहहए

आचायय यहद वदानत को सचचा अथय जानत हो और जीवन की षवमभनन अवसथाओ को वह ककस परकार लाग ककया जा सकता ह वह सिझत हो तो एक बालक को भी व वदानत मसखा सकत ह

जो वयषकत पस क पीछ दौड़ता ह वह गर की समपषतत चरान ि भी रझझकता नही ह

गर की समपषतत क परतत लोलप ित बनो

जो िकतातिा पावनकारी गर ह व शाषनत और आननदसवरप ह व सिदषटिवाल और षसथतपरजञ ह उनक मलए िान-अपिान सततत-तननदा सख-दःख सिान ह व काि करो लोभ िद और ितसर स िकत ह उनको रधच अरधच नही होती उनह कोई आसषकत नही होती व बालक जस तनदोि कफर भी जञान क भणडार ह व अपनी उपषसथतत िातर स या कपादषटि स ही मशटय क सशय द र करत ह

गरीब और बबिार की सशरिा करना गर और िा-बाप की सवा करना दया क उतति कायय करना गरकपा स आतिजञान पाना यह सब सचिच सवयशरटठ पणय ह

गर की तनजी सवा जसी पावनकारी और कोई चीज नही ह िोकष क शरिजनक िागय ि गरकपा सचिच षवशवसनीय साथी ह

आसमववजय का शसतर

कवल गर की शरण ि जान स ही जीवन जीता जा सकता ह

गरभषकतयोग क अभयास स िन को सयि ि लान स कािवासना की शाषनत हो सकती ह

गरसवा आपको बबलकल सवसथ और तनदरसत रखती ह गरभषकतयोग का अभयास आपको अिाप एव अनहद आननद दता

गरसवा अदवतभाव या एकरपता पदा करती ह

गरभषकतयोग सा क को धचराय और अननत सख दता ह गरसवा क बबना वदानत का अभयास वयषकत को तोत जसा

वदानती बनाता ह अतः अपन प जय आचायय की सवा करो सवा करो सवा करो

अपन दतनक जीवन ि िागयदशयन क मलए परतयक कषण प जय गर की पराथयना करो

जो पराथयना मशटय क तनखामलस पषवतर हदय स तनकलती ह उस गर की ओर स ततकाल परतयततर मिलता ह

जो सा -सत प जय गर ह उनक पास शरद ा भषकत और नमरताप वयक जाओ जञानरपी औि लो समप णय आजञाकाररता पथय ह तभी अजञानरपी रोग प णयतः तनि यल होगा और आप सवोचच सख का अनभव कर सक ग

अनकरि

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परकररः 9

गरभलकत की नीव

शरदधा का महवव

गर ि शरद ा गरभषकतयोग की सीड़ी का परथि सोपान ह गर ि शरद ा दवी कपा परापत करन क मलए मशटय को आशा एव

पररणा दती ह

गर ि समप णय षवशवास रखो तिाि भय धचनता और जजाल का तयाग कर दो बबलकल धचनतािकत रहो

गरवचन ि शरद ा अख ि बल शषकत एव सतता दती ह सशय ित कर ह मशटय आग बढ़

जञानीजनो क सिागि स तथा पराण और पषवतर शासतरो क अधययन स गर पर शरद ा दढ़ करो

गर क उपदशो ि गहरी शरद ा रखो सदगर क सवभाव और िहहिा को सपटि रीतत स सिझो गर की सवा करक हदवय जीवन बबताओ तभी ईशवर की जीवनत ि ततय क सिान सदगर क पषवतर चरणो ि समप णय आतिसिपयण कर सकोग

गर को षवघनरप बनन स तो िरना बहतर ह

गर पर भषकतभाव सब हीन वषततयो और आवगो को दबा दता ह तथा सब अवरो ो को द र करता ह

गरभषकतयोग ि गर क परतत भषकतभाव सबस िहान चीज ह भलकत क सवरप

गर की अचल भषकत ईशवर-साकषातकार करन क मलए बहत असरकारक पद तत िानी जाती ह

गर की िहहिा का सतत सिरण और उनक हदवय सनदश को सवयतर फलाना या गर क परतत सचचा भषकतभाव ह

आचायय क पषवतर चरणो की भषकत फ ल ह और उनक आशीवायद अिर फल ह

जीवन का धयय ह पररणाि ि दःख दनवाली कसगतत का तयाग करना और अिरतव दन वाल पषवतर आचायय क चरणकिलो की सवा करना

सा क जब इहलोक और परलोक ि धचरतन सख दन वाल गरभषकतयोग का आशरय लता ह तभी उसका सचचा जीवन शर होता ह

जनि-ितय सख-दःख हिय-शोक क अषवरत चकर स िषकत नही होगी कया ह मशटय साव ान होकर सन उसक मलए एक तनषशचत उपाय ह नाशवत इषनरयषवियक पदाथो ि स अपना िन हिा ल और इन दवनदवो स पार ल जान वाल गरभषकतयोग का आशरय ल

सचचा सथायी सख बाहर क नाशवत पदाथो स नही अषपत गरशरणयोग का आशरय लन स मिल सकता ह

गरसवायोग गरशरणयोग आहद गरभषकतयोग क सिानाथी शबद ह व सब एक ही ह

गरभषकतयोग का अभयास िान गर क परतत गहरा पषवतर परि

आचायय क पावनकारी चरणकिलो क परतत पषवतर परि ीर- ीर षवकमसत करना चाहहए उसक मलए कोई ि का िागय नही ह

गरभषकतयोग सब षवजञानो ि शरटठ षवजञान ह सचच मशटय क मलए पावनकारी आचायय क चरणकिल धयान का

िखय षविय ह गरभषकतयोग सब योगो का राजा ह

गरभषकत क अभयास स जब िन की बबखरी हई शषकत की ककरण एकबतरत होती ह तब यह रोग चितकार कर दता ह

सब िहातिाओ तथा आचायो न गरभषकतयोग क अभयास दवारा िहान कायय ककय ह जनादयन सवािी क मशटय एकनाथजी गरभषकत स

िहान हो गय और उनका मशटय प रणपोड़ा अषवदवान होत हए गर का अप णय गरनथ प णय कर सका शकराचायय क मशटय तोिकाचायय न गरभषकत स चितकार कर हदखाया एकलवय और सहजोबाई गर-भषकतयोग क परतयकष परिाण ह और भी असखय गरभकतो न गर क दवी धचनतन स ि र सितत स अथवा गर क दवी कायय ि सवा करक हदय की ऐसी शीतलता िन की ि रता िहस स की ह कक ककताब पढ़कर कथा करन वाल या सनन वाल षजसकी कलपना भी नही कर सकत ऐसी ह गरभषकत की िहहिा

गरभषकतयोग की कफलासफी क िताबबक गर और ईशवर अमभनन एक ही ह अतः गर को समप णय आतिसिपयण करना अतनवायय ह

गरभषकतयोग ि अनय सब योग सिाषवटि हो जात ह गरभषकतयोग का आशरय मलए बबना कोई भी वयषकत अनय कहठन योगो का अभयास नही कर सकता

गरभषकतयोगकी कफलासफी आचायय की उपासना क दवारा गरकपा करन क मलए िखय दटिानत आग रखती ह

गरभषकतयोग वद और उपतनिदो क सिय षजतना पराचीन ह

हदय की पषवतरता परापत करन क मलए धयान क मलए और आति-साकषातकार क मलए गरभषकतयोग की कफलासफी गरसवा पर काफी जोर दती ह

जो अपन गर की आरोगयता क मलए लगा रहता ह वह िनटय नय ह

कपा का कायक गरकपा एक पररवतयनकारी बल ह

जहा गरकपा ह वहा षवजय ह

आचायय क पावन चरणो की प जा करन ि और उनक हदवय आदशो का पालन करन ि ही सचचा जीवन ह

गरभषकतयोग क तनरनतर अभयास दवारा िन की चचल वषतत को तनि यल करो

इस लोक क आपक जीवन का परि धयय और लकषय अिरतव परदान करन वाली गरकपा परापत करना ह

गर की सवा करत सिय शरद ा आजञापालन और आतिसिपयण इन तीनो को याद रखो

गरसवा क आदशय को अपन हदय ि गहरा उतर जान दो कसग ि स अपन िन को अलग करो और जो प णयता क परतीक

ह सतयवतता ह सावयबतरक परि क कनर और िनटय जातत क नमर सवक ह ऐस गर क पावन चरणो ि अपन िन को लगा दो

जञानी गर की सहायता स सतत आधयाषतिक अभयास जारी रखो

सचचा सा क गरभषकतयोग क अभयास ि लगा रहता ह

हो सक उतनी िातरा ि आचायय क परतत भषकतभाव जगाओ तभी उनक सवयशरटठ आशीवायद का सख भोग सकोग

पावनकारी आचायय क पषवतर चरणो को तनहारत तनहारत सचच आननद की कोई सीिा नही रहती

एक भी कषण गवाओ नही जीवन थोड़ा ह सिय जलदी स सरक जाता ह ितय कब आ जाय कोई पता नही उठो जागो ततपरताप वयक आचायय की सवा ि लग जाओ

आचायय की सवा ि ड ब जाओ

गर पर शरद ा और उनक जञान क वचनो स सजज बनो

आरधयालसमक मागक और जीवन

आधयाषतिक िागय तीकषण ारवाली तलवार का िागय ह षजनको इस िागय का अनभव ह ऐस गर की अतनवायय आवशयकता ह

आपक सब अहभाव का तयाग करो और गर क चरणकिलो ि अपन आपको सौप दो

गर आपको िागय हदखाएग और पररणा दग िागय ि आपको सवय ही चलना होगा

जीवन अलप ह सिय जलदी स सरक रहा ह उठो जागो आचायय क पावन चरणो ि पहच जाओ

जीवन थोड़ा ह ितय कब आयगी तनषशचत नही ह अतः गभीरता स गर सवा ि लग जाओ

हररोज आधयाषतिक दतनकी मलखो उसि अपनी परगतत और तनटफलता की सचची नोि मलखो और हर िहीन अपन गर क पास भजो

अपन गर स ऐसी मशकायत नही करना कक आपक अध क काि क कारण सा ना क मलए सिय नही बचता नीद क तथा गपशप लगान क सिय ि किौती करो और कि खाओ तो आपको सा ना क मलए काफी सिय मिलगा आचायय की सवा ही सवोचच सा ना ह

गर की सवा और गर क ही षवचारो स दतनया षवियक षवचारो को द र रखो

अपन आधयाषतिक आचायय क आग अपनी शषकत की बड़ाई नही करना या परिाण नही दना नमर और साद बनो इसस आधयाषतिक िागय ि शीघर परगतत कर सकोग

आचायय क कायो की तननदा आलोचना एव दोिदशयन छोड़ दना उनक परतयाघातो स साव ान रहना

आचायय की सवा करत सिय चाह ककतन भी दःख आ जाए उनह सह लन की तयारी रखना

परि एव अनकपा की साकषात ि ततय रप अपन गर क सिकष अपन दोिो को परकि करक एकरार करो

आपक गर आपस अपकषा रख उसस भी अध क सवा करो

गर क मसवाय और ककसी स गाढ़ समबन ित रखो और लोगो स कि हहलोमिलो

गर का परि उनको दयादषटि मशटय की सथ ल परकतत का पररवतयन करक शद ीकरण कर सकती ह

लशषटय की भावना गर की िहहिा को पहचान कर उसका अनभव करो और उनका

परि-सनदश िनटय जातत ि फलाओ ऐसा करन स गर की कपा आप पर उतरगी

आचायय क परतत कततयवयो ि स कभी भी षवचमलत ित बनो

शरद ा षवनय एव भषकतभावप वयक गर को ख ब ि लयवान भि दनी चाहहए

गर को शरटठ दान दो गर को लापरवाही ि दी हई भि भी मशटय को वापस नही लना चाहहए

गर की सवा करत सिय अपन भीतर क हतओ पर तनगरानी रखो ककसी भी परकार क फल नाि कीततय सतता न आहद की आशा क बबना ही गर की सवा करनी चाहहए

आप अपन गर क साथ वयवहार कर तब सचचाई एव तनटठा रखना

गरभषकतयोग ि ईिानदारी क बबना आधयाषतिक परगतत सभव नही ह

षजस परकार चातक पकषी कवल विाय क पानी की आशा ि ही जीता ह उसी परकार कवल गर कपा की आशा स ही मशटय आधयाषतिक िागय ि आग बढ़ सकता ह

गर क परतत आततथयभाव हदखाना यह सवोचच यजञ ह गरसवा रपी यजञ क पास अशवमध और अनय महान यजञो की भी कोई कीमत नही ह

ईशवर-साकषासकार का सबस सरल मागक गरचरण ि आशरय लकर पररणा पाओ

परि यह गर क चरणकिलो क साथ मशटयो क हदय को बा न वाली सवणय की कड़ी ह

ईशवर का अनभव करन क मलए गरभषकतयोग सबस सरल सचोि तवररत और सलाित िागय ह आप सब गरभषकतयोग क अभयास क इसी जनि ि ईशवर-अनभव परापत कर

गर क नाि का शरण लो सदव गर का नाि रिन करो कमलयग ि गर की िहहिा गाओ और उनका धयान करो ईशवर-साकषातकार क मलए यह शरटठ और सरल िागय ह

िोकष अथवा सनातन सख क दवार खोलन की गरचाबी गरभषकत ह

जीवन ि र फ ल ह षजसि गरभषकत िीठा शहद ह

गर क चरणो की भकत सचच मशटय क मलए शवासोचछवास क बराबर ह

गरभषकतयोग क अभयास स अिरतव सवोतति शाषनत और शाशवत आननद परापत होता ह

गर परि और करणा की ि ततय ह आपको अगर उनक आशीवायद परापत करन हो तो आपको भी परि और करणा की ि ततय बनना चाहहए

गर क परतत भषकत अख ि और सथायी होनी चाहहए गर सवा क मलए प र हदय की इचछा ही गरभषकत का सार ह

शरीर या चिड़ी का परि वासना कहलाती ह जबकक गर क परतत परि गरभषकत कहलाता ह ऐसा परि परि क खाततर होता ह

गर क परतत भषकतभाव ईशवर क परतत भषकतभाव का िाधयि ह

जप कीतयन पराथयना धयान सा सवा अधययन और सा सिागि क दवारा अपन हदयक ज ि शद गरभषकत का फ ल षवकमसत करो

गर की सवा आपक जीवन का एकिातर लकषय और धयय होना चाहहए

अपन आपकी अपकषा गर पर अध क परि रखो

ववशवपरम का ववकास

अपन शतरओ पर परि रखो अपन स तनमन कोहि क लोगो पर परि रखो परारणयो क परतत परि रखो अपन गर पर परि रखो सब सा सतो पर परि रखो

गर की तनःसवाथय सवा िहातिाओ का सतसग पराथयना और गरितर क जप दवारा ीर ीर षवशवपरि का षवकास करो

अनय लोगो न जो चीज िहापरयतन स मसद की हो वह चीज आप गर कपा स परापत कर सकत ह

नय ह षवनमर लोगो को कयोकक उनह तरनत गर कपा मिल जाती ह षजनहोन गर की शरण ली ह ऐस पषवतर आतिाओ को नयवाद ह कयोकक उनको परि सख अवशय परापत होता ह

गरकपा की पराषपत क मलए नमरता राजिागय ह

आधयाषतिक आचायय अथवा सचच िहापरि की परथि कसौिी उनकी नमरता ह यह उनका ि ल सदगण ह

गर क साथ तादासमय

सई क छद स ऊ ि गजर सक इसस भी अतयनत अध क िषशकल बात ह गर कपा क बबना ईशवरकपा परापत करना

जस पानी को द ि डाला जाए तो वह द ि मिल जाता ह और अपना वयषकततव गवा दता ह वस सचच मशटय को चाहहए कक वह अपन आपको समप णयतः गर को सौप द उनक साथ एकरप हो जाय

जस छोि छोि झरन एव नहदया िहान पषवतर नदी गगा स मिल जान क कारण खद भी पषवतर होकर प ज जात ह और अषनति लकषय सिर को परापत होत ह इसी परकार सचचा मशटय गर क पषवतर चरणो का आशरय लकर तथा गर क साथ एकरप बनकर शाशवत सख को परापत होता ह

बालक बोलना-चलना कया एक ही हदन ि सीखता ह बोलना-चलना सीखन क मलए बालक को आवशयक ऐस िा-बाप क लमब सहवास एव योगय तनगरानी तथा रस की आवशयकता नही पड़ती कया पड़ती ही ह इसी परकार सचच और ईिानदार मशटय को गर क साथ लमब सिय तक रहना चाहहए और तन िन स सब सवा करना चाहहए इस प र सिय क दौरान सवोचच षवदया सीखन क मलए हदयप वयक धयान

दना चाहहए और उसि रस लना चाहहए इस परकार उस परि जञान परापत होगा और ककसी परकार स नही

सब वरदान दन वाल

कलपवकष काि न और धचनतािरण िागन वाल को उसका िनोवातछत वरदान अवशय दत ही ह इसी परकार गर भी िागन वाल को इटि वसत अवशय दत ह अतः सचचा मशटय तो कवल िोकष परापत करन क मलए उपतनिद की िहाषवदया ही िागता ह

षजस परकार बालक जब ीर ीर कदि रखता ह और सवततर रीतत स चलन की कोमशश करता ह तब कभी कभी धगर पड़ता ह और खड़ा होता ह िा की सहायता की आवशयकता पड़न पर उसकी सहायता िागता ह इसी परकार सा ना क परारभ क सतरो ि मशटय को करणािय गर की सहायता एव िागयदशयन की आवशयकता पड़ती ह अतः उस वह िागना चाहहए

एक बालक की तरह सचच मशटय को िोकष क मलए तीवर आकाकषा होनी चाहहए तथा सभव हो उतनी तिाि रीततयो स वह आकाकषा परकि करनी चाहहए तभी उसकी इचछा की प तत य करन ि गर उस सहायभ त हो सकत ह इस आकाकषा को परयतन कह सकत ह और गर की करणािय सहाय को िाता की वातसालिय कपा कह सकत ह

सनदर ढग स तनमियत ि ततय क मलए दो चीज आवशयक ह- एक ह अखणड किीरहहत अचछा सगिरिर का िकड़ा और द सरी चीज कशल मशलपी सगिरिर का िकड़ा मशलपी क हाथ ि रहना अतनवायय ह षजसस छीनी क दवारा उस करदकर सनदर ि ततय बनाया जाय इसी परकार मशटय को भी चाहहए की वह अपन आपको सवचछ और शद करक बबलकल कषततरहहत सगिरिर क िकड़ जसा बनाए और गर क

कशल िागयदशयन ि रख द षजसस गर छीनी स उस करदकर परभ की हदवय ि ततय ि पररवततयत कर सक

जस स योदय होत ही तिाि अन कार का तरनत नाश होता ह वस ही गरकपा उतरत ही मशटय क िन ि आवरण और अषवदया का तरनत नाश होता ह

षजस परकार स यय की परखर ककरणो स जला हआ िनटय वकष की शीतल छाया ि और हदन भर की गिी क बाद शीतल चादनी ि असीि आननद की अनभ तत करता ह उसी परकार ससार की परखर ककरणो स जला हआ और शाषनत क मलए वयाकल बना हआ िनटय बरहितनटठ गर क चरणो ि इषचछत शाषनत और आननद की अनभ तत करता ह

षजस परकार चातक पकषी लमब सिय तक इनतजार करन क बाद विाय क कवल एक ही जलबबनद स अपनी पयास बझाता ह उसी परकार सचच मशटय को अपन गर की सवा करनी चाहहए और उपदश वचन का इनतजार करना चाहहए इसस उसकी तिाि वयथाए शानत होगी और वह सदा क मलए िकत हो जाएगा

जस अषगन का सवभाव ही ऐसा ह कक उसक तनकि आनवाली परतयक वसत को जलाकर भसि कर दती ह वस ही जो िनटय कपाल गर की पराषपत कर लता ह उसक ककसी भी गण दोिो को दख बबना बरहितनटठ गर की कपा उसक तिाि पापो को जलाकर भसि कर दती ह

आरधयालसमक परववतत की आवशयकता जो कोई िनटय दःखो स पार होकर सख एव आननद परापत करना

चाहता हो उस सचच अनतःकरण स गरभषकतयोग का अभयास करना चाहहए

गर क पषवतर चरणो क परतत भषकतभाव सवोतति गण ह इस गण को ततपरता एव पररशरिप वयक षवकमसत ककया जाए तो इस ससार क दःख और अजञान क कीचड़ स िकत होकर मशटय अख ि आननद और परि सख क सवगय को परापत करता ह

परारभ ि तरग क रप ि हदखन वाली षविय वषततया कसग क कारण िहासागर का रप ारण कर लती ह अतः कसग का तयाग करक आचायय क जीवनरकषक चरणो का आशरय लो

अगर आप गरसवा ि रििाण रहत ह तो आप धचनताओ को जीत सकत ह सब धचनताओ का यह अच क िारण ह

उतति मशटय को अपन गर पर ककसी भी पररषसथतत ि सनदह नही लाना चाहहए या उनकी उपकषा नही करनी चाहहए

आदरणीय गर क पषवतर चरणो ि साटिाग दणडवत परणाि करन ि लषजजत होना यह गरभषकतयोग क अभयास ि बड़ा अवरो ह

सवावलमबन आतिनयायीपन की भावना मिथयामभिान आतिामभिान अपनी बात ही सतय ह ऐसा िानना आलसय हठागरह क थली कसग बईिानी उददणडता काि करो लोभ और ि पना य चीज गरभषकतयोग क िागय ि िहान भयसथान ह

किययोग भषकतयोग राजयोग हठयोग जञानयोग आहद सब योगो की नीव गरभषकतयोग ह जो मशटय िानता ह कक ि सब कछ जानता ह कक वह ि पन की भावना क कारण अपन गर स कछ भी नही सीख सकगा

वह खद सचचा ह ऐसा गर क सिकष हदखाना यह मशटय क मलए बहत ही खतरनाक आदत ह

आप जब गर की सवा करत हो तब नमर ि रभािी िद और षववकी बनो इसस गर का हदय जीत सकोग गर क सिकष वाणी या वतयन ि कभी उददणडता ित हदखाओ

िोिी बदध का षवदयाथी गरभषकतयोग क अभयास ि ककसी भी परकार की ठोस परगतत नही कर सकता

मशटय को आदरणीय आचायय क जीवन की उजजवल बात ही दखनी चाहहए

िन ि अगर गर क षविय ि कषवचार आय तो सवय ही अपन को दणड दो

आपक मलए कवल इतना ही आवशयक ह कक गरभषकतयोग क िागय ि अनतःकरणप वयक परािारणक परयतन करना ह

अपना गरितर अथवा गर का पषवतर नाि हररोज एक घणि तक सवचछ नोिबक ि मलखो

चलत हए खात हए कायायलय ि काि करत हए भी सदव अपन गरितर का जप करत रहो

गर का उननततकारक सालननरधय

िहान गर ि षसथत चितकाररक आधयाषतिक शषकत क दवारा मशटय ि जो अदभत पररवतयन ककया जाता ह उस उपकार क िहान ऋण का प रा वणयन करन की शषकत वाणी ि नही ह

सदगर साकषात ईशवर ह ऐसा जो कहा गया ह वह सतय ही ह उनकी िहानता शबदातीत ह

गर का साषननधय परबल आधयाषतिक सपनदनो क दवारा मशटय को ऊ ची भ मिका पर ल जाता ह और उस पररणा दता ह गर की िहहिा मशटय की सथ ल परकतत का पररवतयन करन ि तनहहत ह

सदगर क चरणो ि आशरय लना ही सचचा जीवन ह जीवन जीन की सही रीतत ह

गर की शरणागतत की सवीकार करना यही आतिसाकषातकार का िागय ह

गर ि अषवचल शरद ा न हो तब तक ककसी को भी परि सख भोगन को नही मिलता

हि अयोगय लगता हो कफर भी गर जो करत ह वह योगय ही ह

गर क उपदश ि अषवचल और अषवरत शरद ा सचची गरभषकत का ि ल ह

गर सदव अपन मशटय क हदय ि बसत ह

कबीर जी कहत ह- गर और गोषवनद दोनो िर सिकष खड़ ह तो ि ककसको परणाि कर नय ह व गरदव षजनहोन िझ गोषवनद क दशयन करवाय

कवल गर ही अपन योगय मशटय को हदवय परकाश हदखा सकत ह

गर अपन मशटय को असत ि स सत ि ितय ि स अिरतव ि अन कार ि स परकाश ि और भौततक ि स आधयाषतिक ि ल जात ह

जगदहतकारी गर

सचच गर मशटय का परारब बदल सकत ह

सदगर पयगबर और दवद त ह षवशव क मितर और जगत क मलए कलयाणिय ह पीडड़त िानवजातत क रवतारक ह

सचच गर की सवा करन स काल का शसतर बटठा बन जाता ह गर क जञान क पषवतर शबद मशटय क हदय ि परवश करत ह गरकपा क बबना बन निषकत नही ह

जो गरभषकतिागय स षविख बना ह वह ितय अन कार और अजञान क भवर ि घ िता रहता ह

सतरी एव परि अपनी आनवमशक शषकत क िताबबक िानवता क पथ का अनसरण करन की कोमशश कर सकत ह उनको िहान गर का उपदश स यय की परखर ककरण की तरह जगत क भरातत रपी अन कार को षवदीणय करक परकामशत करता ह

गरकपा स ही िनटय को जीवन का सचचा उददशय सिझ ि आता ह और आति-साकषातकार करन की परबल आकाकषा उतपनन होती ह

मशटय क हदय क तिाि दगयण रपी रोग पर गरकपा सबस अध क असरकारक परततरो क एव सावयबतरक औि ह

यहद कोई िनटय गर क साथ अखणड और अषवषचछनन समबन बा ल तो षजतनी सरलता स एक घि ि स द सर घि ि पानी बहता ह उतनी ही सरलता स गरकपा बहन लगती ह

कवल यतरवत दणडवत परणाि करन स गरकपा परापत नही की जा सकती वह तो गर क उपदश को जीवन ि उतारन स ही परापत हो सकती ह

राबतर को तनरा ीन होन स पहल अनतियख होकर मशटय को तनरीकषण करना चाहहए कक गर की आजञा का पालन ककतनी िातरा ि ककया ह

हररोज गर की सवा का परारभ करन स पहल मशटय को िन ि तनशचय करना चाहहए कक प वय की अपकषा अब अध क भषकतभाव स एव अध क आजञाकाररता स गर की सवा कर गा

गर ि तथा शासतरो ि थोड़ी बहत शरद ा होती ह वह भी कसग स शीघर नटि हो जाती ह

नततक परकता की आवशयकता जो गर क पषवतर चरणो क परतत सचचा भषकतभाव षवकमसत करना

चाहत हो उनह सब परकार की खराब आदतो का तयाग कर दना चाहहए जस कक मरपान करना पान खाना नास स घना िदयपान करना जआ खलना मसनिा दखना अखबार-नोवल पढ़ना फशन करना िास खाना चोरी करना हदन ि सोना गाली बोलना तननदा-आलोचना करना आहद

जो गरभषकतयोग का अभयास करना चाहत ह उनह सब हदवय गणो का षवकास करना चाहहए जस कक सतय बोलना नयायपरायणता अहहसा इचछाशषकत सहहटणता सहानभ तत सवाशरय आतिशरद ा आतिसयि तयाग आतितनरीकषण ततपरता सहनशषकत सिता तनशचय षववक वरागय सनयास हहमित आननदी सवभाव हरएक वसत ि ियायदा रखना आहद

आननद क मलए बाहर कयो वयथय खोज करत हो सदगर क चरणो क सिीप जाओ और शाशवत सख का उपभोग करो

सदगर क चरणो ि शरद ा और भषकतभाव य दो पख ह षजनकी सहायता स मशटय प णयता क मशखर पर पहचन ि शषकतिान बनता ह

अनकरि

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परकररः 10

गरभलकत का सववधान

योगय वयवहार क तनयम

गर क कायय की अषवचारी आलोचना नही करनी चाहहए

गर को अषवचारी सलाह नही दना चाहहए हिशा चप रहो जान अनजान गर की भावना को ठस ित पहचाओ

सदग र क चरणकिल की मल अिरतव परदान करन वाली ह गर क पावनकारी चरणो की पषवतर मल मशटय क मलए सचिच

वरदान सवरप ह

आचायय क पषवतर चरणो की मल ललाि पर लगाना सबस िहान भागय की बात ह

जीवन का सबस िहान और दलयभ सौभागय गर क चरणकिल का सपशय ह

गरकपा और सतरी का िख (काि) व दोनो परसपर षवरद चीज ह अगर आपको एक की आवशयकता हो तो द सरी का तयाग करो

गर क पावन चरणो की पषवतर मल मशटय को ररदध -मसदध हदलाती ह

सदगर क जीवनदायी चरणो की मल प जन योगय ह

मशटय की सबस िहान सपषतत अपन सदगर क चरणकिल की पषवतर मल ह

जो वयषकत अपन गर क चरणकिल की पषवतर मल को अपन ललाि पर लगाता ह उसका हदय शीघर पषवतर बनता ह

गर क चरणकिल की मल की िहहिा अवणयनीय ह

इस पथवी पर हिारा जीवन अनतःकरणप वयक सदगर क परतत हदनोहदन व यिान भषकतभाव स अध क स अध क उनकी सवा करन क मलए उनकी आजञा ि रहन क मलए एक उतति िौका ह

गरभषकतयोग की नीव गर क परतत अखणड शरद ा ि तनहहत ह

मशटय को सिझ ि आता ह कक हहिालय की एकानत गफा ि सिाध लगान की अपकषा गर की तनजी सवा करन स वह उनक जयादा

सयोग ि आ सकता ह गर क साथ अध क एकता सथाषपत कर सकता ह

गर को समप णय बबनशरती आति-सिपयण करन स अच क गरभषकत परापत होती ह

जीवनजजाल स पर

जब आप िषशकमलयो एव िसीबतो ि आ जाय तब गर की कपा क मलए पराथयना कर अपन सचच हदय स बार-बार पराथयना कर सब सरल बन जाएगा

परातःकाल ि जगन क तरनत बाद और राबतर क सिय सोन स पहल गर का धचनतन करो प णयतः उनकी शरण ि जाओ

सोन स पहल हदन क दौरान अगर गर की सवा क बार ि आजञापालन ि तनटठा का अभाव या ऐसी कोई भ ल हई हो तो उसका षवचार करो

अपनी आवशयकताए कि करो पस बचाओ और गर क चरणकिलो ि अपयण करो इसि आपकी गरभषकत की कसौिी ह

बरहितनटठ गर क चरणकिलो क साषननधय ि जान क मलए कला षवजञान या षवदवता कछ भी आवशयक नही ह आवशयक ह कवल उनक परतत उनक परतत परि और भषकत स प णय हदय जो फल की अपकषा स रहहत कवल उनि ही तनरत रहन क सकलपवाला होना चाहहए कवल उनक ही कायय ि लगा हआ कवल उनक ही परि ि िगन रहन वाला होना चाहहए

िानमसक शाषनत और आननद गर को ककय हए आतिसिपयण का फल ह

गर क परतत सचच भषकतभाव की कसौिी आनतररक शाषनत और उनक आदशो का पालन करन की ततपरता ि तनहहत ह

गरसवा क दवारा जञान ि वदध करो और िषकत पाओ

गरकपा स षजनको षववक और वरागय परापत हए ह उनको नयवाद ह व सवोतति शाषनत और सनातन सख का भोग करग

मशटय गर को जब तक योगय गरदकषकषणा नही दगा तब तक गर क हदय हए जञान का फल मिलगा नही

गरभषकतयोग िन का सयि और गर की सवा दवारा उसि होन वाला पररवतयन ह

लशषटयो क परकार

उतति मशटय परोल जसा ह काफी द र होत हए भी गर उपदश की धचगारी को तरत पकड़ लता ह

द सरी ककषा का मशटय कप र जसा ह गर क सपशय स उसकी अनतरातिा जागरत होती ह और वह उसि आधयाषतिकता की अषगन को परजजवमलत करता ह

तीसरी ककषा का मशटय कोयल जसा ह उसकी अनतरातिा को जागरत करन ि गर को बहत तकलीफ उठानी पड़ती ह

चौथी ककषा का मशटय कल क तन जसा ह उसक मलए ककय गय कोई भी परयास काि नही लगत गर ककतना भी कर कफर भी वह ठणडा और तनषटकरय रहता ह

ह मशटय सन त कल क तन जसा ित होना त परोल जसा मशटय बनन का परयास करना अथवा तो कि-स-कि कप र जसा तो अवशय बनना

आप जब अपन गर क पषवतर चरणो की शरण ि जाए तब उनस दनयावी आवशयकताए या और कोई चीज िागना नही ककनत उनकी कपा ही िागना षजसक कारण आपि उनक परतत सचचा भषकतभाव और सथायी शरद ा जग

गर ही िागय ह जीवन ह और आरखरी धयय ह गरकपा क बबना ककसी को भी सवोतति सख परापत नही हो सकता

गर ही िोकषदवार ह गर ही ि ततयिनत कपा ह

जीन क मलए िरो अपन गर क चरणकिलो ि िरो अहभाव का तयाग करक िरो षजसस पनः सचचा हदवय जीवन जी सको षजस जीवन ि गरकपा क पराणो की ड़कन नही ह जो जीवन गरकपा स हदवय सवरप को परापत नही हआ ह वह सचचा जीवन नही ह

गर और मशटय क बीच जो वासतषवक समबन ह उसका वणयन नही हो सकता वह मलखा नही जा सकता वह सिझाया नही जा सकता सतय क सचच खोजी को करणासवरप बरहितनटठ गर क पास शरद ा और भषकतभाव स आना चाहहए उनक साथ धचरकाल तक रहकर सवा करना चाहहए

गरभषकतयोग एक सवततर योग ह

मशटय की कसौिी करन क मलए गर जब षवघन डाल तब यय रखना चाहहए

गर सवा क कायय ि आतिभोग दना यह गर क पषवतर चरणो क परतत भषकतभाव षवकमसत करन का उतति सा न ह

पराथयना जप कीतयन सिाध गरसवा ऊ च भवय षवचार और सिझ ि स िन की शाषनत उतपनन होती ह

गर क आशरय म

गर की सवा क दौरान मशटय को बहत ही तनयमित रहना चाहहए गर क हदवय कायय हत मशटय को िन वचन और किय ि बहत ही

पषवतर रहना चाहहए

आपक हदय रपी उदयान ि तनटठा सादगी शाषनत सहानभ तत आतिसयि और आतितयाग जस पटप सषवकमसत करो और व पटप अपन गर को अघयय क रप ि अपयण करो

बरहितनटठ गर की कपा स परापत न हो सक ऐसा तीनो लोको ि कछ भी नही ह

गरभषकतयोग का अभयास ककय बबना सा क क मलए ईशवर-साकषातकार की ओर ल जान वाल आधयाषतिक िागय ि परषवटि होना सभव नही ह

गरभषकतयोग हदवय सख क दवार खोलन क मलए गरचाबी ह गरभषकतयोग क अभयास स सवोचच शाषनत क राजिागय का परारभ

होता ह

सदगर क पषवतर चरणो ि आतिसिपयण करना ही गरभषकतयोग की नीव ह

अगर आपको सदगर क जीवनदायक चरणो ि दढ़ शरद ा एव भषकतभाव होगा तो आपको गरभषकतयोग क अभयास ि अवशय सफलता मिलगी

कवल िनटय का परिाथय ही योगाभयास क मलए पयायपत नही ह लककन गरकपा अतनवाययतः आवशयक ह

बाघ मसह या हाथी जस जगली परारणयो को पालना बहत ही आसान ह पानी या आग पर चलना बहत आसान ह लककन िनटय ि

अगर गरभषकतयोग क अभयास क मलए तिनना न हो तो गर क चरणकिलो ि आतिसिपयण करना बहत कहठन ह

गरभषकतयोग क अभयास स मशटय को सवोतति शाषनत आननद और अिरता परापत होती ह

जीवन का धयय गरभषकतयोग का अभयास करक सदगर की कलयाणकारी कपा परापत करना ह

गरभषकतयोग क अभयास स जनि-ितय क चककर स िषकत मिलती ह

गरभषकतयोग अिरता सनातन सख िषकत प णयता अख ि आननद एव धचरतन शाषनत दता ह

ससार या सासाररक परककरया क ि ल ि िन ह बन न और िषकत सख और दःख का कारण िन ह इस िन को गरभषकतयोग क अभयास स ही तनयबतरत ककया जा सकता ह

सदगर क हदवय कायय क वासत आतिसिपयण करना अथवा तन िन न अपयण करना चाहहए सदगर की कलयाणकारी कपा परापत करन क मलए उनक पषवतर चरणो का धयान करना चाहहए गर क पषवतर उपदश को सनकर तनटठाप वयक उसक िताबबक चलना चाहहए

उलल स ययपरकाश क अषसततव ि िान या न िान कफर भी स यय तो सदा परकामशत रहता ह उसी परकार अजञानी और चचल िनवाला मशटय िान या न िान कफर भी गर की कलयाणकारी कपा तो चितकारी पररणाि दती ह

अपन गर को ईशवर िानकर उनि षवशवास रखो उनका आशरय लो जञान की दीकषा लो

कवल शद भषकत स ही गर परसनन होत ह गरभषकतयोग क अभयास क िन की शाषनत और षसथरता परापत

होती ह

षजसन सदगर क पषवतर चरणो ि आशरय मलया ह ऐस मशटय क पास स ितय पलायन हो जाती ह

गरभषकतयोग का अभयास सासाररक पदाथो क परतत वरागय और अनासषकत पदा करता ह और अिरता परदान करता ह

सदगर क जीवनपरदायक चरणो की भषकत िहापापी का भी उद ार कर दती ह

षजसन सदगर क पषवतर चरणो ि आशरय मलया ह ऐस पषवतर हदयवाल मशटय क मलए कोई भी वसत अपरापत नही ह

सा तव और सनयास स अनय योगो स एव दान स िगल कायय करन आहद स जो कछ भी परापत होता ह वह सब गरभषकतयोग क अभयास स शीघर परापत होता ह

गरभषकतयोग शद षवजञान ह वह तनमन परकतत को वश ि लान की एव परि आननद परापत करन की रीतत मसखाता ह

गरदव की कलयाणकारी कपा परापत करन क मलए आपक अनतःकरण की गहराई स उनको पराथयना करो ऐसी पराथयना चितकार कर सकती ह

षजस मशटय को गरभषकतयोग का अभयास करना ह उसक मलए कसग एक िहान शतर ह

जो नततक प णयता गर की भषकत आहद क बबना ही गरभषकतयोग का अभयास करता ह उस गरकपा नही मिल सकती

गरभलकत क लाभ

गर ि अषवचल शरद ा मशटय को कसी भी िसीबत स पार होन की ग ढ़ शषकत दती ह

गर ि दढ़ शरद ा सा क को अननत ईशवर क साथ एकरप बनाती ह

षजस मशटय को गर ि शरद ा ह वह दलील नही करता षवचार नही करता तकय नही करता वह तो कवल आजञा ही िानता ह

मशटय जब गर ि शरद ा खो दता ह तब उसका जीवन उजाड़ िरभ मि जसा बन जाता ह साधक जब गर म शरदधा खो बठता ह तब उसक जीवन का वभव नषटट हो जाता ह

जीवन का पानी गर ि दढ़ शरद ा ह

सदव याद रखोः िनटय जब पषवतर गर क शबदो ि शरद ा खो दता ह तब वह सब कछ खो बठता ह अतः गर ि प णय शरद ा रखो

गर क चरणकिलो की पराथयना मशटय क हदय को परफलल बनाती ह उसक िन को शषकत शाषनत एव शदध स भर दती ह

गरदव क पावन चरणो का भावप वयक परकषालन करक उस चरणोदक को अपन मसर पर तछड़को यह िहान शदध करन वाला ह

हदवय गर क पषवतर चरणो की मल बनना यह जीवन का अि लय लाभ ह

आधयाषतिक गर क पषवतर चरणो की पराथयना सबह की चाबी और शाि का ताला ह अथायत सबह होन स पहल एव शाि होन क बाद पराथयना करना चाहहए

सदगर क चरणो क परतत शरद ा एव भषकतभाव रहहत जीवन िरभ मि ि खड़ हए रसहीन वकष जसा ह

गर क पषवतर चरणो की पराथयना मशटय क हदय की गहराई ि स तनकलनी चाहहए

मशटय क शद तनखामलस हदय स तनकली हई आजयवप णय पराथयना बरहितनटठ गर तरनत सनत ह

दःख स िषकत पान क मलए नही अषपत दःख सहन करन की शषकत एव ततततकषा परापत करन क मलए पराथयना करो

सब दोिो स पार होन की शषकत क मलए सदगर क चरणकिलो की पराथयना करो

हर एक अपन ढग स गर की सवा करना चाहता ह लककन गर चाह उस परकार गर की सवा करना कोई नही चाहता

मशटय अपन गर की सवा करना तो चाहता ह पर ककसी परकार का कटि सहना नही चाहता

सचच सख का मल

सचचा सख सदगर की सवा ि तनहहत ह

मशटय गरसवा क दवारा ही दहाधयास स छ िकर ऊ ची ककषा परापत कर सकता ह

अपन गर ि गर की िहहिा ि और गर क नािजप क परभाव ि सचची प णय जीवनत और अषवचल शरद ा रखो

गर की समप णयतः शरणागतत लना गरभषकत की अतनवायय शतय ह

जब तक आपको गर ि अखणड शरद ा न जग तब तक गर की कपा आप उतरगी ऐसी आशा ित करना

जो गर िकतातिा ह उनक कायय अशरद ा स या सनदह स नही दखना चाहहए

ईशवर िनटय एव बरहिाणड क षविय ि सचचा जञान गर स मलया जाता ह

गर सा ना रपी नाव का सकान ह लककन पतवार तो सा क को ही चलानी होगी

गरभषकत तिाि आधयाषतिक परवषततयो का ि ल ह

गर क परतत भषकतभाव ईशवरपराषपत का सरल एव आननददायक िागय ह

गर भषकत िय का सार ह

गर क चरणकिलो क परतत भषकतभाव जीवन को सचिच साथयक बनाता ह

गरभषकत का आहद िधय और अनत ि र एव सखदायक ह

गरपरि एव ससारपरि दोनो एक साथ नही रह सकत

गर की एव लकषिी की एक साथ सवा नही हो सकती

गररोह ईशवररोह क बराबर ह

भलकत का अथक गर पर भषकतभाव होना आधयाषतिक तनिायण कायय की नीव ह भावना की उफान या उततजना गरभषकत नही कहलाती

शरीरपरि यानी गर परि का इनकार मशटय अगर अपन शरीर की अध क दखभाल करता ह तो वह गर की सवा नही कर पाता

सा क क दटि सवभाव का एकिातर उपाय गरसवा ह गर बबलकल हहचककचाहि स रहहत तनःशि एव समप णय

आतिसिपयण क मसवाय और कछ नही चाहत जस परायः आजकल क मशटय करत ह वस आतिसिपयण कवल शबदो की बात ही नही होना चाहहए

गर को षजतनी अध क िातरा ि आतिसिपयण करोग उतनी अध क गरकपा परापत करोग

ककतनी िातरा ि गरकपा उतरगी इसका आ ार ककतनी िातरा ि आतिसिपयण हआ ह इस पर ह

मशटय का कततयवय गर क परतत परि रखन का एव गर की सवा करन का ह

गर की कपा गरभषकतयोग का आरखरी लकषय ह

गरभषकतयोग का अभयास जीवन क परि लकषय क साकषातकार का सचोि िागय परसतत करता ह

जहा गरकपा ह वहा योगय वयवहार ह और जहा योगय वयवहार ह वहा ररदध -मसदध और अिरता ह

िाया रपी नाधगन क दवारा डस हए लोगो क मलए गर का नाि एक शषकतशाली रािबाण औिध ह

पषवतरता भषकतभाव परकाश एव जञान क मलए गर की पराथयना करो

गरसवा की भावना आपकी रग-रग ि नस-नस ि परतयक हडडी ि एव शरीर क तिाि कोिो ि गहरी उतर जानी चाहहए गर सवा की भावना को उगर बनाओ उसका बदला अि लय ह

गरभषकतयोग ही सवयतति योग ह

कछ मशटय गर क िहान मशटय होन का आडमबर करत ह लककन उनको गरवचन ि या कायय ि षवशवास और शरद ा नही होती

जो अदषवतीय ह ऐस सवयशषकतिान गर की समप णय शरण ि जाओ

गरभषकतयोग आपको इसी जनि ि ीर- ीर दढ़ताप वयक तनषशचतताप वयक एव अषवचलताप वयक ईशवर क परतत ल जाता ह

अहभाव क षवनाश स गरभषकतयोग का परारभ होता ह और शाशवत सख की पराषपत ि पररणत होता ह

गरभषकतयोग का अभयास आपको भय अजञान तनराशावादी सवभाव िानमसक अशाषनत रोग तनराशा धचनता आहद स िकत होन ि सहायभ त होता ह

गरभषकतयोग जीवन क अतनटिो का एकिातर उपाय ह

गरभषकतयोग क अभयास स सवयसखिय अषवनाशी आतिा को भीतर ही खोजो

एक अन ा द सर अन का िागयदशयन नही कर सकता एक कदी द सर कदी को नही छड़ा सकता इसी परकार जो खद दतनयादारी क कीचड़ ि फ सा हआ हो वह द सरो को िषकत नही करा सकता इसीमलए गरभषकतयोग क अभयास क मलए गर की अतनवायय आवशयकता ह

गरभषकतयोग को जीवन का एकिातर हत धयय एव वासतषवक रस का षविय बनाओ आप सवोचच सख परापत करोग

गर क परतत भषकतभाव क बबना आधयाषतिकता नही आ सकती

यहद आपको गरभषकतयोग का अभयास करना हो तो कािवासनावाला जीवन जीना छोड़ दो

अगर आपको सचिच ईशवरपराषपत की कािना हो तो दनयावी भोगषवलासो स षविख बनो और गरभषकतयोग का आशरय लो

गरकपा स मशटय क हदय ि षववक वरागय का उदय होता ह

धयान क सिय मशटय को सदगर स पराथयना करना चाहहए कक उनक चरणकिलो की भषकत उततरोततर बढ़ती जाय और वह अषवचल शरद ा परदान कर

जो गर क नाि का जप करता ह उसको कवल िोकष ही नही लककन सासाररक सिदध आरोगयता दीघायय एव हदवय ऐशवयय की पराषपत होती ह

मशटय को अपन गरदव का जनिहदन बड़ी भवयता स िनाना चाहहए

अनकरि

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गर और दीकषा योग का अभयास गर क साषननधय ि करना चाहहए षवशितः

ततरयोग क बार ि यह बात अतयत आवशयक ह सा क कौन सी ककषा का यह तनषशचत करना एव उसक मलए योगय सा ना पसनद करना गर का कायय ह

आजकल सा को ि एक ऐसा खतरनाक एव गलत खयाल परवतयिान ह कक व सा ना क परारभ ि ही उचच परकार का योग सा न क मलए काफी योगयता रखत ह परायः सब सा को का जलदी पतन होता ह इसका यही कारण ह इसी स मसद होता ह कक अभी वह योगसा ना क मलए तयार नही ह सचिच ि योगयतावाला मशटय नमरताप वयक गर क पास आता ह गर को आतिसिपयण करता ह गर की सवा करता ह और गर क साषननधय ि योग सीखता ह

गर और कोई नही ह अषपत सा क की उननतत क मलए षवशव ि अवतररत परातपर जगजजननी हदवय िाता सवय ही ह गर को दव िानो तभी आपको वासतषवक लाभ होगा गर की अथक सवा करो व सवय ही आपर पर दीकषा क सवयशरटठ आशीवायद बरसाएग

गर ितर परदान करत ह यह दीकषा कहलाती ह दीकषा क दवारा आधयाषतिक जञान परापत होता ह पापो का षवनाश होता ह षजस परकार एक जयोतत स द सरी जयोतत परजजवमलत होती ह उसी परकार गर ितर क रप ि अपनी हदवय शषकत मशटय ि सकरमित करत ह मशटय उपवास करता ह बरहिचयय का पालन करता ह और गर स ितर गरहण करता ह

दीकषा स रहसय का पदाय हि जाता ह और मशटय वदशासतरो क ग ढ़ रहसय सिझन ि शषकतिान बन जाता ह सािानयतः य रहसय ग ढ़ भािा ि छप हए होत ह खद ही अभयास करन स व रहसय परकि नही होत खद ही अभयास करन स तो िनटय अध क अजञान ि गकय होता ह कवल गर ही आपको शासतराभयास क मलय योगय दषटि दीकषा क दवारा परदान करत ह गर अपनी आति-साकषातकार की जयोतत का परकाश उन शासतरो क सतय पर डालग और व सतय आपको शीघर ही सिझ ि आ जाएग

जप क ललए मतर

ॐ गरभयो निः

ॐ शरी सदगर परिातिन निः

ॐ शरी गरव निः ॐ शरी सषचचदाननद गरव निः

ॐ शरी गर शरण िि

अनकरि

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मतरदीकषा क ललए तनयम

गर ि समप णय शरद ा तथा षवशवास रखना चाहहए तथा मशटय को प णयरपण उनक परतत आतिसिपयण करना चाहहए

दीकषाकाल ि गर क दवारा हदय गय तिाि तनदशो का प णय रप स पालन करना चाहहए यहद गर न षवशि तनयिो की चचाय न की हो तो तनमनमलरखत सवय सािानय तनयिो का पालन करना चाहहए

ितरजप स कमलयग ि ईशवर-साकषातकार मसद होता ह इस बात पर षवशवास रखना चाहहए

ितरदीकषा की ककरया एक अतयनत पषवतर ककरया ह उस िनोरजन का सा न नही िानना चाहहए अनय की दखादखी दीकषा गरहण करना उधचत नही अपन िन को षसथर और सदढ़ करन क पशचात गर की शरण ि जाना चाहहए

ितर को ही भगवान सिझना चाहहए तथा गर ि ईशवर का परतयकष दशयन करना चाहहए

ितरदीकषा को सासाररक सख-पराषपत का िाधयि नही बनाना चाहहए भगवतपराषपत का िाधयि बनाना चाहहए

ितरदीकषा क अननतर ितरजप को छोड़ दना घोर अपरा ह इसस ितर का घोर अपिान होता तथा सा क को हातन होन की सभावना भी रहती ह

सा क को आसरी परवषततया ndash काि करो लोभ िोह ईटयाय दवि आहद का तयाग करक दवी समपषतत सवा तयाग दान परि कषिा षवनमरता आहद गणो को ारण करन का परयतन करत रहना चाहहए

गहसथ को वयवहार की दषटि स अपना कततयवय आवशयक िानकर प रा करना चाहहए परनत उस गौण कायय सिझना चाहहए सिगर पररवार क जीवन को आधयाषतिक बनान का परयतन करना चाहहए िन वचन तथा किय स सतय अहहसा तथा बरहिचयय का पालन करना चाहहए

परतत सपताह ितरदीकषा गरहण ककय गय हदन एक वकत फलाहार पर रहना चाहहए और विय क अत ि उस हदन उपवास रखना चाहहए

भगवान को तनराकार-तनगयण और साकार-सगण दोनो सवरपो ि दखना चाहहए ईशवर को अनक रपो ि जानकर शरीराि शरीकटण शकरजी गणशजी षवटण भगवान दगाय लकषिी इतयाहद ककसी भी दवी-दवता ि षवभद नही करना चाहहए सभी क इटिदव सवयवयापक सवयजञ सभी दवता क परतत षवरो भाव परकि नही करना चाहहए हा आप अपन इटिदव पर अध क षवशवास रख सकत हो उस अध क परि कर सकत हो परनत उसका परभाव द सर क इटि पर नही पड़ना चाहहए भगवद गीता ि कहा भी हः

यो मा पशयतत सवकतर सवा च मतय पशयतत

तसयाह न पररशयालम स च म न पररशयतत

जो परि समप णय भ तो ि सबक आतिरप िझ वासदव को ही वयापक दखता ह और समप णय भ तो को िझ वासदव क अनतगयत दखता ह उसक मलए ि अदशय नही होता और वह िर मलय अदशय नही होता (6 30)

इस परकार गोसवािी जी न भी मलखा ह ककः लसया राम मय सब जग जानी

करहा परनाम जोरर जग पानी

अपना इटि ितर गपत रखना चाहहए

पतत पतनी यहद एक ही गर की दीकषा ल तो यह अतत उतति ह परनत अतनवायय नही ह

मलरखत ितरजप करना चाहहए तथा उस ककसी पषवतर सथान ि सरकषकषत रखना चाहहए इसस वातावरण शद रहता ह

ितरजप क मलए प जा का एक किरा अथवा कोई सथान अलग रखना सभव हो तो उतति ह उस सथान को अपषवतर नही होन दना चाहहए

परतयक सिय अपन गर तथा इटिदव की उपषसथतत का अनभव करत रहना चाहहए

परतयक दीकषकषत दमपतत को एक पतनीवरत तथा पततवरता िय का पालन करना चाहहए

अपन घर क िामलक क रप ि गर तथा इटिदव को िानकर सवय अपन को उनक परतततनध क रप ि कायय करना चाहहए

ितर की शषकत पर षवशवास रखना चाहहए उसस सार षवघनो का तनवारण हो जाता ह

परततहदन कि स कि 11 िाला का जप करना चाहहए परातः और सनधयाकाल को तनयिानसार जप करना चाहहए

िाला कफरात सिय तजयनी अग ठ क पास की तथा कतनषटठका (छोिी) उगली का उपयोग नही करना चाहहए िाला नामभ क नीच जाकर लिकती हई नही रखनी चाहहए यहद समभव हो तो ककसी वसतर (गौिखी) ि रखकर िाला कफराना चाहहए सिर क िनक को (िखय िनक को) पार करक िाला नही फरना चाहहए िाला फरत सिय सिर तक पहचकर पनः िाला घिाकर ही द सरी िाला का परारमभ करना चाहहए

अनत ि तो ऐसी षसथतत आ जानी चाहहए कक तनरनतर उठत बठत खात-पीत चलत काि करत तथा सोत सिय भी जप चलत रहना चाहहए

आप सभी को गर दव का अनगरह परापत हो यह हाहदयक कािना ह आप सभी ितरजप क दवारा अपना ऐषचछक लकषय परापत करन ि समप णयतः सफल हो ईशवर आपको शाषनत आननद सिदध तथा आधयाषतिक परगतत परदान कर आप सदा उननतत करत रह और इसी जीवन ि भगवतसाकषातकार कर हरर ॐ ततसत

अनकरि

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जप क तनयम

सवामी लशवाननद सरसवती जहा तक समभव हो वहा तक गर दवारा परापत ितर की अथवा

ककसी भी ितर की अथवा परिातिा क ककसी भी एक नाि की 1 स 200 िाला जप करो

रराकष अथवा तलसी की िाला का उपयोग करो

िाला कफरान क मलए दाए हाथ क अग ठ और बबचली (िधयिा) या अनामिका उगली का ही उपयोग करो

िाला नामभ क नीच नही लिकनी चाहहए िालायकत दाया हाथ हदय क पास अथवा नाक क पास रखो

िाला ढक रखो षजसस वह तमह या अनय क दखन ि न आय गौिखी अथवा सवचछ वसतर का उपयोग करो

एक िाला का जप प रा हो कफर िाला को घिा दो सिर क िनक को लाघना नही चाहहए

जहा तक समभव हो वहा तक िानमसक जप करो यहद िन चचल हो जाय तो जप षजतन जलदी हो सक परारमभ कर दो

परातः काल जप क मलए बठन क प वय या तो सनान कर लो अथवा हाथ पर िह ो डालो िधयानह अथवा सनधया काल ि यह कायय जररी नही परनत सभव हो तो हाथ पर अवशय ो लना चाहहए जब कभी सिय मिल जप करत रहो िखयतः परातःकाल िधयानह तथा सनधयाकाल और राबतर ि सोन क पहल जप अवशय करना चाहहए

जप क साथ या तो अपन आराधय दव का धयान करो अथवा तो पराणायाि करो अपन आराधयदव का धचतर अथवा परततिा अपन समिख रखो

जब ति जप कर रह हो उस सिय ितर क अथय पर षवचार करत रहो

ितर क परतयक अकषर का बराबर सचच रप ि उचचारण करो

ितरजप न तो बहत जलदी और न तो बहत ीर करो जब तमहारा िन चचल बन जाय तब अपन जप की गतत बढ़ा दी

जप क सिय िौन ारण करो और उस सिय अपन सासाररक कायो क साथ समबन न रखो

प वय अथवा उततर हदशा की ओर िह रखो जब तक हो सक तब तक परततहदन एक ही सथान पर एक ही सिय जप क मलए आसनसथ होकर बठो िहदर नदी का ककनारा अथवा बरगद पीपल क वकष क नीच की जगह जप करन क मलए योगय सथान ह

भगवान क पास ककसी सासाररक वसत की याचना न करो

जब ति जप कर रह हो उस सिय ऐसा अनभव करो कक भगवान की करणा स तमहारा हदय तनियल होता जा रहा ह और धचतत सदढ़ बन रहा ह

अपन गरितर को सबक सािन परकि न करो

जप क सिय एक ही आसन पर हहल-डल बबना ही षसथर बठन का अभयास करो

जप का तनयमित हहसाब रखो उसकी सखया को करिशः ीर- ीर बढ़ान का परयतन करो

िानमसक जप को सदा जारी रखन का परयतन करो जब ति अपना कायय कर रह हो उस सिय भी िन स जप करत रहो

अनकरि

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मनषटय क चार ववभाग

सा ारण ससारी िनटय द जसा ह वह जब दटि जनो क समपकय ि आता ह तब उलि िागय ि चला जाता ह और कफर कभी वापस नही लौिता उसी द ि अगर थोड़ी सी छाछ डाली जाती ह तो वह द दही बन जाता ह ससारी िनटय को गर दीकषा दत ह अतः जो सवय मसद ह ऐस गर दही जस ह

छाछ डालन क बाद द को कछ सिय तक रख हदया जाता ह इसी परकार दीकषकषत मशटय को एकानत का आशरय लकर दीकषा का ििय सिझना चाहहए तभी द का दही बनगा अथायत मशटय का पररवतयन होगा और वह जञानी बनगा

अब दही सरलता स पानी क साथ मिलजल नही जाएगा अगर दही ि पानी डाला जाएगा तो वह तल ि बठ जाएगा अगर दही को जोर स बबलोया जाएगा तो ही वह पानी क साथ मिधशरत होगा इसी परकार षवववकवाला िनटय जब बरी सगत ि आता ह तब दराचारी लोगो क साथ सरलता क मिलता जलता नही ह लककन सगत अतयत परगाढ़ होगी तो वह भी उलि िागय ि जाएगा जब दही को स योदय स पहल बराहििह तय ि अचछी तरह बबलोया जाएगा तब उसि स िकखन मिलगा इसी परकार षववकी सा क बराहििह तय ि ईशवर का गहन धचनतन करता ह तो उस आतिजञान रपी नवनीत परापत होता ह कफर वह आति-साकषातकारी सा रप बन जाता ह

इस िकखन (नवनीत) को अब पानी ि डाल सकत ह वह पानी ि मिधशरत नही होगा पानी ि ड बगा नही अषपत तरता रहगा आति-साकषातकार मसद ककय हए सा अगर दजयनो क समपकय ि आयग तो भी उलि िागय ि नही जाएग दनयावी बातो स अमलपत रहकर आननद स ससार ि तरत रहग अगर इस नवनीत को षपघलाकर घी बनाया जाय और बाद ि उस पानी ि डाला जाय तो वह सार पानी को अपनी सवास स सवामसत कर दगा इस परकार सा को तनःसवाथय परि की आग स षपघलाया जाय तो वह दवी चतना रप घी बनकर अपन सग स सबको पावन करगा सबकी उननतत करगा उसक समपकय ि आन वालो क जीवन ि अपन जञान िहहिा एव हदवयता का मसचन करगा

अनकरि

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गरकपा दह कवल

सा क क जीवन ि सदगर-कपा का कया िहततव ह इस षविय ि प जयपाद सत शरी आसारािजी बाप अपन सदगरदव की अपार कपा का सिरण करत हए कहत ह-

िन तीन विय की आय स लकर बाईस विय की आय तक अनको सा नाए की दस विय की आय ि अनजान ही ररदध -मसदध यो क अनभव हए भयानक वनो पवयतो गफाओ ि यतर-ततर तपशचयाय करक जो परापत ककया वह सब सदगरदव की कपा स जो मिला उसक आग तचछ ह सदगरदव न अपन घर ि ही घर बता हदया जनिो की सा ना प री हो गई उनक दवारा परापत हए आधयाषतिक खजान क आग बतरलोकी का सामराजय भी तचछ ह

हम न हासकर सीख ह न रोकर सीख ह

जो कछ भी सीख ह सदगर क होकर सीख ह

अनकरि

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प जय सत शरी आशाराि जी बाप की पदयिय सकषकषपत जीवनगाथा

तनवदन

तववजञ महापरषो का सालननरधय बड़ा दलकभ ह सत कबीर जी कहत ह- सख दव दःख को हर कर पाप का अत

कह कबीर व कब मिल परि सनही सत सत मिल यह सब मिि काल जाल जि चोि

सीस निावत ढही पड़ सब पापन की पोि

बरहमजञानी महापरष क आग लजनह अपन शीश को अहकार को झकान का सौभागय लमल जाता ह व धनय हो उठत ह सथल दह धारर कर अवतररत हए ऐस परमासम-परष को भागयशाली ही पहचान पात ह लोग परमासमा को ढाढन जात ह परत परमासमा इन आाखो स कही नजर नही आता कयोकक वह अगमय ह तनराश मनषटय कफर कया कर उस अलख को कस जान कस दख सत कबीर जी न कहा ह-

अलख परि की आरसी सा का ही दह

लखा जो चाह अलख को इनही ि त लख लह ह मानव यदद तझ उस अलख को लखना हो जो जानन स पर ह उस जानना हो जो

दखन स पर ह उस दखना हो तो त ककनही आसमानभव स सतपत सत-महापरष को दख ल कयोकक उनही म वह अपन परक वभव क साथ परकट हआ ह

ऐस महापरष ससाररपी मरसथल म तरतरववध तापो स तपत मानव क ललए ववशाल वटवकष ह शीतल जल क झरन ह उनकी पावन दह को सपशक करक आन वाली हवा भी जीव की जनम-जनमातरो की थकान को उतारकर उसक हदय को आलसमक शीतलता स भर दती ह ऐस महापरष की मदहमा गात-गात तो वद और परार भी थककर कहत ह- नतत नतत हमन बहत वरकन ककया कफर भी बहत कछ बाकी रह जाता ह

ऐस ही एक जीवत महापरष की पदयमय सकषकषपत जीवनगाथा को यहाा लजजञास-हदयो क समकष परसतत ककया गया ह

इस ददवय शीतल अमतमय सररता म नहाय अपन जनम-जनमातरो क पापो को धोय थकान को उतार और अपन परमासम-परालपत क लकषय क पथ पर अगरसर हो

गर बबन भव तनध तरइ न कोई जौ षवरधच सकर सि होई सत तलसीदास

परकाशक एव ववतरकः मदहला उसथान रसट

सत शरी आशाराम जी आशरम साबरमती अहमदाबाद-380005 (गजरात) मिकः हरर ॐ मनयफकचरसक कजा मतराललयो पोटा सादहब (दहमाचल परदश)

शरी आशारामायर गर चरण रज शीि रर हदय रप षवचार शरी आशारािायण कहौ वदात को सार

िय कािाथय िोकष द रोग शोक सहार भज जो भषकत भाव स शीघर हो बड़ा पार

भारत लसध नदी बखानी नवाब लजल म गााव बरारी

रहत एक सठ गर खातन नाम थाउमल लसरमलानी

आजञा म रहती मगीबा पततपरायर नाम मगीबा

चत वद छः1 उननीस चौरानव आसमल अवतररत आागन

(1 दहनदी पचाग अनसार वशाख कषटर पकष की षषटठी) माा मन म उमड़ा सख सागर दवार प आया एक सौदागर

लाया एक अतत सदर झला दख वपता मन हषक स फला

सभी चककत ईशवर की माया उचचत समय पर कस आया

ईशवर की य लीला भारी बालक ह कोई चमसकारी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ सत सवा औ शरतत शरवण िात षपता उपकारी िय परि जनिा कोई पणयो का फल भारी

सरत थी बालक की सलोनी आत ही कर दी अनहोनी समाज म थी मानयता जसी परचललत एक कहावत ऐसी तीन बहन क बाद जो आता पतर वह तरखन कहलाता होता अशभ अमगलकारी दररिता लाता ह भारी

ववपरीत ककत ददया ददखायी घर म जस लकषमी आयी ततरलोकी का आसन डोला कबर न भडार ही खोला

मान परततषटठा और बढायी सबक मन सख शातत छायी हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ

तजोिय बालक बड़ा आनद बड़ा अपार

शील शातत का आति न करन लगा षवसतार एक ददन थाउमल दवार कलगर परशराम पधार

जय ही व बालक को तनहार अनायास ही सहसा पकार

यह नही बालक साधारर दवी लकषर तज ह कारर

नतरो म ह सालववक लकषर इसक कायक बड़ ववलकषर

यह तो महान सत बनगा लोगो का उदधार करगा

सनी गर की भववषटयवारी गदगद हो गय लसरमलानी

माता न भी माथा चमा हर कोई लकर क घमा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ जञानी वरागी प वय का तर घर ि आय

जनि मलया ह योगी न पतर तरा कहलाय पावन तरा कल हआ जननी कोख कताथय

नाि अिर तरा हआ प णय चार परिाथय

सतालीस म दश ववभाजन लसध म छोड़ा भ पश औ धन

भारत अमदावाद म आय मखरनगर म लशकषा पाय

बड़ी ववलकषर समरर शलकत आसमल की आश यलकत

तीवर बदचध एकागर नमरता सवररत कायक औ सहनशीलता

आसमल परसननमख रहत लशकषक हासमखभाई कहत

द द मकखन लमशरी कजा माा न लसखाया रधयान औ पजा

रधयान का सवाद लगा तब ऐस रहन न मछली जल तरबन जस

हए बरहमववदया स यकत व वही ह ववदया या ववमकतय

बहत दर तक पर दबात भर कठ वपत आलशष पात

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ पतर तमहारा जगत ि सदा रहगा नाि

लोगो क तिस सदा प रण होग काि लसर स हटी वपता की छाया तब माया न जाल फलाया

बड़ भाई का हआ कशासन वयथक हए माा क आशवासन

गय लसदधपर साधना करन कषटर क आग बहाय झरन

सवक सखा भाव स रीझ गोववद माधव तब ह रीझ

एक ददना एक माई आयी बोली ह भगवन सखदायी

पड़ पतर दःख मझ झलन खन कस दो बट जल म

बोल आस सख पावग तनदोष छट जकदी आवग

बट घर आय माा भागी आसमल क पाावो लागी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ आसिल का पटि हआ अलौककक परभाव

वाकमसदध की शषकत का हो गया परादभायव

बरस लसदधपर तीन तरबताय लौट अमदावाद म आय

करन लगी लकषमी नतकन ककया भाई का ददल पररवतकन

लसनमा उनह कभी न भाय बलात ल गय रोत आय

लजस माा न था रधयान लसखाया उसको ही अब रोना आया

माा करना चाहती थी शादी आसमल का मन वरागी

कफर भी सबन शलकत लगाई जबरन कर दी उनकी सगाई

शादी को जब हआ उनका मन आसमल कर गय पलायन

करत खोज म तनकल गया दम लमल भरच म अशोक आशरम

कदठनाई स लमला रासता परततषटठा का ददया वासता

घर म लाय आजमाय गर बारात ल पहाच आददपर

वववाह हआ पर मन दढाया भगत न पसनी को समझाया

सासाररक वयौहार तब होगा जब मझ साकषासकार होगा

साथ रह जया आसमा-काया साथ रह वरागी माया

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ अनशवर ह ि जानता सत धचत ह आनद

षसथतत ि जीन लग होव परिानद

मल गरथ अरधययन क हत ससकत भाषा ह एक सत

ससकत की लशकषा पायी गतत और साधना बढायी

एक शलोक हदय म पठा वरागय सोया उठ बठा

आशा छोड़ नराशयवललमबत उसकी लशकषा परक अनलषटठत

लकषमी दवी को समझाया ईशपरालपत रधयय बताया

छोड़ क घर म अब जाऊा गा लकषय परापत कर लौट आऊा गा

कदारनाथ क दशकन पाय गर खोजत पग आग बढाय

आय कषटर लीलासथली म वदावन की कज गललन म

कषटर न मन म ऐसा ढाला व जा पहाच नतनताला

वहाा थ शरोतरतरय बरहमतनलषटठत सवामी लीलाशाह परततलषटठत

भीतर तरल थ बाहर कठोरा तनववकककप जया कागज कोरा

परक सवततर परम उपकारी बरहमलसथत आसमसाकषासकारी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ ईशकपा बबन गर नही गर बबना नही जञान

जञान बबना आतिा नही गावहह वद परान

जानन को साधक की कोदट सततर ददन तक हई कसौटी

कचन को अलगन म तपाया गर न आसमल बलवाया

कहा गहसथ हो कमक करना रधयान भजन घर पर ही करना

आजञा मानी घर पर आय पकष म मोटी कोरल धाय

नमकदा तट पर रधयान लगाय लाल जी महाराज अतत हरषाय

भगवसपरीतत दख मन भाय दतत कटीर म सादर लाय

उमड़ा परभ परम का चसका अनषटठान चालीस ददवस का

मर छः शतर लसथतत पायी बरहमतनषटठता सहज समायी

शभाशभ सम रोना गाना गरीषटम ठड मान औ अपमाना

तपत हो खाना भख अर पयास महल औ कदटया आसतनरास

भलकतयोग जञान अभयासी हए समान मगहर औ कासी

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ

भाव ही कारण ईश ह न सवणय काठ पािान

सत धचत आनदरप ह वयापक ह भगवान बरहिशान जनादयन सारद सस गणश

तनराकार साकार ह ह सवयतर भवश

हए आसमल बरहमाभयासी जनम अनको लाग बासी

दर हो गयी आचध वयाचध लसदध हो गयी सहज समाचध

इक रात नदी तक मन आकषाक आयी जोर स आाधी वषाक

बद मकान बरामदा खाली बठ वही समाचध लगा ली

दखा ककसी न सोचा डाक लाय लाठी भाला चाक

दौड़ चीख शोर मच गया टटी समाचध रधयान खखच गया

साधक उठा थ तरबखर कशा राग दवष न ककचचत लशा

सरल लोगो न साध माना हसयारो न काल ही जाना

भरव दख दषटट घबराय पहलवान जया मकल ही पाय

कामीजनो न आलशक माना साधजन कीनह परनामा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ एक दषटि दख सभी चल शात गमभीर सशसतरो की भीड़ को सहज गय व चीर

माता आयी धमक की सवी साथ म पसनी लकषमी दवी

दोनो फट-फट क रोयी रदन दख कररा भी रोयी

सत लाल जी हदय पसीजा हर दशकन आास म भीजा

कहा सभी न आप जाइयो आसमल बोल कक भाइयो

चालीस ददवस हआ न परा अनषटठान ह मरा अधरा

आसमल की तीवर ततततकषा माा-पसनी न की परतीकषा

लजस ददन गााव स हई ववदाई जार-जार रोय लोग लगाई

अमदावाद को हए रवाना लमयाागााव स ककया पयाना

मबई गय गर की चाह लमल वही प लीलाशाह

परम वपता न पतर को दखा सयक न घटजल म पखा

घटक तोड़ जल जल म लमलाया जल परकाश आकाश समाया

तनज सवरप का जञान दढाया ढाई ददवस बरहमानद छाया

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ आसोज सद दो हदवस सवत बीस इककीस िधयाहन ढाई बज मिला ईस स ईस

दह सभी मिथया हई जगत हआ तनससार हआ आतिा स तभी अपना साकषातकार

परम सवततर परष दशाकया जीव गया और लशव को पाया

जान ललया हा शात तनरजन लाग मझ न कोई बधन

यह जगत सारा ह नशवर म ही शाशवत एक अनशवर

नयन ह दो पर दलषटट एक ह लघ गर म वही एक ह

सवकतर एक ककस बतलाय सवकवयापत कहाा आय जाय

अनत शलकतवाला अववनाशी ररदचध लसदचध उसकी दासी

यदद वह सककप चलाय मदाक भी जीववत हो जाय

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ बराहिी षसथतत परापत कर कायय रह न शि िोह कभी न ठग सक इचछा नही लवलश प णय गर ककरपा मिली प णय गर का जञान

आसिल स हो गय साई आशाराि जागरत सवपन सषलपत चत बरहमानद का आनद लत

खात पीत मौन या कहत बरहमानद मसती म रहत

रहो गहसथ गर का आदश गहसथ साध करो उपदश

ककय गर न वार नयार गजरात डीसा गााव पधार

मत गाय ददया जीवन दाना तब स लोगो न पहचाना

दवार प कहत नारायर हरर लन जात कभी मधकरी

तब स व सससग सनात सभी आती शातत पात

जो आया उदधार कर ददया भकत का बड़ा पार कर ददया

ककतन मररासनन लजलाय वयसन मास और मदय छड़ाय

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ एक हदन िन उकता गया ककया डीसा स क च

आयी िौज फकीर की हदया झौपड़ा फ क

व नारशवर धाम पधार जा पहाच नमकदा ककनार

मीलो पीछ छोड़ा मदर गय घोर जगल क अदर

घन वकष तल पसथर पर बठ रधयान तनरजन का धर

रात गयी परभात हो आयी बाल रवव न सरत ददखायी

परातः पकषी कोयल ककता छटा रधयान उठ तब सता

परातववकचध तनवतत हो आय तब आभास कषधा का पाय

सोचा म न कही जाऊा गा यही बठकर अब खाऊा गा

लजसको गरज होगी आयगा सलषटटकताक खद लायगा

जया ही मन ववचार व लाय सया ही दो ककसान वहाा आय

दोनो लसर पर बााध साफा खादय पय ललए दोनो हाथा

बोल जीवन सफल ह आज अघयक सवीकारो महाराज

बोल सत और प जाओ जो ह तमहारा उस खखलाओ

बोल ककसान आपको दखा सवपन म मागक रात को दखा

हमारा न कोई सत ह दजा आओ गााव कर तमहरी पजा

आशाराम जी मन म धार तनराकार आधार हमार

वपया पय थोड़ा फल खाया नदी ककनार जोगी धाया

इक ददन साबरमती तट आय ऋवष भलम क सपदन पाय

बन गया मोकष कटीर वहाा पर तीरथ बना सत को पाकर

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ अिदावाद गजरात ि ह िोिरा गराि

बरहितनटठ शरी सत का यही ह पावन ाि आतिानद ि िसत ह कर वदाती खल

भषकत योग और जञान का सदगर करत िल

साध काओ का अलग आशरि नारी उतथान नारी शषकत जागत सदा षजसका नही बयान

वट वकष पर डाली दलषटट कर दी अपनी कपा की वलषटट

पररिमा इसकी जो करत मनोकामना कारज फलत

गरदर पर ह सब कछ लमलता शरदधा स जीवन ह खखलता

बरहमजञानी की मदहमा भारी शरर पड़ उनकी बललहारी

गस काड ववकराल घटा जब कााप उठा भोपाल नगर तब

जहरी गस की फली हवाएा हजारो न परार गावाए

आशाराम जी क जो साधक बच सभी सदगर थ रकषक

गरमतर जो तनशददन जपत व न अकाल मसय स मरत

कहर सनामी न हो ढाया बाढ अकाल भकमप हो आया

जब भी कोई आपदा आयी गरवर न सवा पहाचायी

आशाओ क राम हमार कहलात ह बाप पयार

बाप ह योगी बरहमवतता कपालभलाषी जन गर नता

अटल जी न जब आशीष पाया परधानमतरी पद शोभाया

ववपतकाल म अजी लगायी सतता परक काल तक पायी

दहनद मलसलम लसकख ईसाई बाप चाह सबकी भलाई

ककतनो को सनमागक ददखाया परभ परम आनद बरसाया

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ गरतनदक क सग स होता सतयानाश

गरतनदा जो कर सन पड़ वो यि की फास

गरआजञा पालन कर अनय भावना तयाग

बरहिजञान का लकषय रह मशटय वही बड़भाग गरितर जपता रह करता जो तनत धयान गरसवा ि लगा रह तनषशचत हो कलयाण

घटना ह गोधरा की नयारी दतनया म चचचकत हई भारी

आशाराम जी का हललकॉपटर चगरा गोधरा की धरती पर

पज चकनाचर हो गय और गगन म दर उड़ गय

हजारो की भीड़ थी आयी कफर भी ककसी को खरोच न आयी

शवत इधन की फटी टकी लगी आग बझ गयी सवय ही

हादसा जब भी ऐसा हआ ह ना कोई जीववत सवसथ बचा ह

बाप तरत पडाल पधार ककया नसय हवषकत हए सार

चमसकार था अजब अनोखा दतनया न घर बठ दखा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ

लोगो न यशगान ककया लख-लख ककया बखान

दस सकड का हादसा चितकार य िहान िहाकाल को काल न शत शत ककया परणाि सवयसिथय ह सदगर सिरथ ह परभनाि

बालक वदध और नर नारी सभी परररा पाय भारी

एक बार जो दशकन पाय शातत का अनभव हो जाय

तनसय ववववध परयोग कराय नादानसधान बताय

नालभ स व ओम कहलाय हदय स व राम कहलाय

सामानय रधयान जो लगाय उनह व गहर म ल जाय

सबको तनभकय योग लसखाय सबका आसमोसथान कराय

लाखो क ह रोग लमटाय शोक करोड़ो क ह छड़ाय

अमतमय परसाद जब दत भकत का रोग शोक हर लत

लजसन नाम का दान ललया ह गर अमत का पान ककया ह

उनका योगकषम व रखत व न तीन तापो स तपत

धमक कामाथक मोकष व पात आपद रोगो स बच जात

सभी लशषटय रकषा ह पात सवकवयापत सदगर बचात

सचमच गर ह दीनदयाल सहज ही कर दत तनहाल

व चाहत सब झोली भर ल तनज आसमा का दशकन कर ल

एक सौ आठ जो पाठ करग उनक सार काज सरग

रह न चचता दःख तनराशा होगी परक सभी अलभलाषा

हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ हरर ॐ वराभयदाता सदगर परि हह भकत कपाल तनशछल परि स जो भज साई कर तनहाल िन ि नाि तरा रह िख प रह सगीत हिको इतना दीषजय रह चरण ि परीत

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शरी गर - िहहिा गर तरबन जञान न उपज गर तरबन लमट न भद

गर तरबन सशय न लमट जय जय जय गरदव

तीरथ का ह एक फल सत लमल फल चार

सदगर लमल अनत फल कहत कबीर ववचार

भव भरमर ससार दःख ता का वार न पार

तनलोभी सदगर तरबना कौन उतार पार

परा सदगर सवता अतर परगट आप

मनसा वाचा कमकरा लमट जनम क ताप

समदलषटट सदगर ककया मटा भरम ववकार

जहा दखो तहा एक ही सादहब का दीदार

आसमभरातत सम रोग नही सदगर वदय सजान

गर आजञा सम पथय नही औषध ववचार रधयान

सदगर पद म समात ह अररहतादद पद सब

तात सदगर चरर को उपासो तलज गवक

तरबना नयन पाव नही तरबना नयन की बात

सव सदगर क चरर सो पाव साकषात

नर - जनि ककसका ह सफल

दःसग म जाता नही सससग करता तनसय ह

दगराथ न पढता कभी सदगरथ पढता तनसय ह

शभ गर बढाता ह सदा अवगर घटान म कशल

मन शदध ह वश इलनियाा नर जनम उसका ह सफल

धन का कमाना जानता धन खचक करना जानता

सजजन तथा दजकन तरत मख दखत पदहचानता

हो परशन कसा ही कदठन झट ही समझ कर दय हल

धमकजञ भी ममकजञ भी न जनम उसका ह सफल

चचता न आग की कर न सोच पीछ की कर

जो परापत हो सो लय कर मन म उस नाही धर

जयो सवचछ दपकर चचतत अपना तनसय सयो रकख ववमल

चढन न उस पर दय मल नर जनम उसका ह सफल

लाया न था कछ साथ म ना साथ कछ ल जायगा

मटठी बाधा आया यहाा खोल यहाा स जायगा

रोता हआ जनमा यहाा हासता हआ जाय तनकाल

रोत हए सब छोड़कर नर जनम उसका ह सफल

बाधव न जात साथ म सब रह यहाा ही जाय ह

नाता तनभाया बहत मघकट माादह पहाचा आय ह

ऐसा समझकर वयवहार उनस धीर जो करता सरल

न परीतत ही ना बर ही नर जनम उसका ह सफल

मम दह ह त मानता तब दह स त अनय ह

ह माल स माललक अलग यह बात सबको मनय ह

जब दह स त लभनन ह कयो कफर बन ह दह-मल

जो आपको जान अमल नर जनम उसका ह सफल

त जागन को सवपन को अर नीदद को ह जानता

य ह अवसथा दह की कयो आसम इनको मानता

ना जनम तरा ना मरर त तो सदा ही ह अटल

जो जानता आसमा अचल नर जनम उसका ह सफल

कारर बना ह जब तलक ना कायक तब तक जायगा

भोला बना ह चचतत तब तक चसय ना छट पायगा

पाता वही सामराजय अकषय चचतत लजसका जाय गल

इस चचतत को दव गला नर जनम उसका ह सफल

ह दःख कवल ि ढ़ता यदद पतर होता दषटट तो वरागय ह लसखलावता

पतरचछ पाता दःख ह ह दःख कवल मढता

सवक न दत दःख ह दत सभी आराम ह

आजञानसारी होय ह करत समय पर काम ह

नतरादद सवक साथ कफर भी मढ सवक चाहता

पाता उसी स दःख ह ह दःख कवल मढता

आसमा कभी मरती नही मरती सदा ही दह ह

ना दह हो सकती अमर इसम नही सदह ह

पर दह भी नाही मर नर मढ आशा राखता

पाता इसी स दःख ह ह दःख कवल मढता

सदगर

छड़वाय कर सब कामना कर दय ह तनषटकामना

सब कामनाओ का बता घर परक करत कामना

लमथया ववषय सख स हटा सख लसध दत ह बता

सख लसध जल स परक अपना आप दत ह जता

इक तचछ वसत छीनकर आपवततयाा सब मटकर

पयाला वपलाकर अमत का मर को बनात ह अमर

सब भाातत स कतकसय कर परततर को तनज ततर कर

अचधपतत स रदहत दत बना भय स छड़ा करत तनडर

सदगर लजस लमल जाया सो ही धनय ह जग मनय ह

सर लसदध उसको पजत ता सम न कोऊ अनय ह

अचधकारी हो गरदव स उपदश जो नर पाय ह

भोला तर ससार स नदह गभक म कफर आय ह

ईशवरकपा स गरकपा स ममक मन पा ललया

जञानालगन म अजञान कड़ा भसम सब ह कर ददया

अब हो गया ह सवसथ समयक लश नही भरात ह

शका हई तनमकल सब अब चचतत मरा शात ह

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सारखया गर को लसर पर राखखय चललय आजञा माादह

कह कबीर ता दास को तीन लोक डर नादह

गर मानष करर जानत त नर कदहय अध

महा दःखी ससार म आग जम क बध

नाम रतन धन मजझ म खान खली घट माादह

सत-मत (मफत) ही दत हौ गाहक कोई नादह

नाम तरबना बकाम ह छपपन कोदट तरबलास

का इनिासन बदठबो का बकठ तनवास

सलमरन स सख होत ह सलमरन स दःख जाय

कह कबीर सलमरन ककय सााई माादह समाय

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पराथयना गरबरकहमा गरववकषटरः गरदवो महशवरः

गरसाककषासपरबरहम तसम शरीगरव नमः

रधयानमल गरोमकतत कः पजामल गरोः पदम

मतरमल गरोवाककय मोकषमल गरोः कपा

अखणडमणडलाकार वयापत यन चराचरम

तसपद दलशकत यन तसम शरीगरव नमः

सवमव माता च वपता सवमव सवमव बनधशच सखा सवमव

सवमव ववदया िववर सवमव सवमव सवा मम दव दव

बरहमानद परमसखद कवल जञानमतता

दवनदवातीत गगनसदश तववमसयाददलकषयम

एक तनसय ववमलमचल सवकधीसाकषकषभत

भावातीत तरतरगररदहत सदगर त नमालम

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गर-वदना

जय सदगर दवन दव वर तनज भकतन रकषर दह धर

पर दःख हर सख शातत कर तनरपाचध तनरामय ददवय पर1

जय काल अबाचधत शाततमय जन पोषक शोषक ताप तरय

भय भजन दत परम अभय मन रजन भाववक भाव वपरय2

ममताददक दोष नशावत ह शम आददक भाव लसखावत ह

जग जीवन पाप तनवारत ह भवसागर पार उतारत ह3

कहा धमक बतावत रधयान कही कहा भलकत लसखावत जञान कही

उपदशत नम अर परम तमही करत परभ योग अर कषम तमही4

मन इलनिय जाही न जान सक नही बदचध लजस पहचान सक

नही शबद जहाा पर जाय सक तरबन सदगर कौन लखाय सक5

नही रधयान न रधयात न रधयय जहाा नही जञात न जञान न जञय जहाा

नही दश न काल न वसत तहाा तरबन सदगर को पहाचाय वहाा6

नही रप न लकषर ही लजसका नही नाम न धाम कही लजसका

नही ससय अससय कहाय सक गरदव ही ताही जनाय सक7

गर कीन कपा भव तरास गयी लमट भख गयी छट पयास गयी

नही काम रहा नही कमक रहा नही मसय रहा नही जनम रहा8

भग राग गया हट दवष गया अघ चरक भय अर परक भया

नही दवत रहा सम एक भया भरम भद लमटा मम तोर गया9

नही म नही त नही अनय रहा गर शाशवत आप अननय रहा

गर सवत त नर धनय यहाा ततनको नही दःख यहाा न वहाा10

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गर मशटय सब ः जीवन का िहानति सब ndash सवािी षववकानद

लशषटय को अपन गर म ववशवास होना चादहए गर क साथ जो सबध ह वह जीवन म महानतम ह जीवन म मर वपरयतम और तनकटतम सबधी मर गर ह उसक बाद मरी माता कफर मर वपता मरा परथम आदर गर क ललए ह यदद मर वपता कह यह करो और मर गर कह इस मत करो तो म वह नही करा गा वपता और माता मझ शरीर दत ह पर गर मझ आसमा म नया जनम दत ह

गर का सपशक आरधयालसमक शलकत का सचरर तमहार हदय म जान फा क दगा तब ववकास आरमभ होगा तम आग और आग बढत जात हो

गर ऐसा मनषटय होना चादहए लजसन जान ललया ह दवी ससय को वासतव म अनभव कर ललया ह मर समान एक वाचाल मखक बात बहत बना सकता ह पर गर नही हो सकता

मन सब धमकगरथ पढ ह व अदभत ह पर जीवत शलकत तमको पसतको म नही लमल सकती वह शलकत जो एक कषर म जीवन को पररवततकत कर द कवल उन जीवत परकाशवान आसमाओ स ही परापत हो सकती ह जो समय-समय पर हमार बीच म परकट होत रहत ह

लशषटय को गर की पजा सवय ईशवर क समान करनी चादहए जब तक मनषटय ईशवर का साकषासकार सवय ही न कर ल वह अचधक स अचधक सजीव ईशवर को मनषटय क रप म ईशवर को जान सकता ह इसक अततररकत वह ईशवर को कस जानगा गर ईशवर ह उसस ततनक भी कम नही म गर को नमसकार करता हा जो दवी आनद की मतत क ह उचचतम जञान क ववगरह ह और महानतम दवी आनद क दाता ह जो शदध परक अदववतीय सनातन सब सख-

दःखो स पर सवकगरातीत और सवोचच ह वासतव म गर ऐस होत ह इसम आशचयक की कोई बात नही कक लशषटय उनह ईशवर समझता ह और उनम ववशवास रखता ह शरदधा रखता ह उनकी आजञा पालता ह और तरबना शका ककय उनक पीछ चलता ह गर और लशषटय क बीच का सबध ऐसा ही ह

(सवामी वववकानद सादहसय खड 3 पषटठः 195-200 स सकललत) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अित-बबद

ककसी भी परकार क फल की आकाकषा न रखत हए सवा करना यह सवोततम साधना ह

गरदव की सवा और गरदव की आजञा का पालन करत वकत आन वाली तमाम आपवततयो को सहन करन की दहममत जो रखता ह वही अपन पराकत सवभाव को जीत सकता ह

कतघन लशषटय इस ववशव म अभागा व दःखी ह उसका भागय दयाजनक कगाल और असयत शोकजनक ह

अपन गरदव म कलमयाा मत खोजो अपनी कलमयाा खोजो और उनक दर करन का परयसन करो व शीघर दर हो जाय इसललए ईशवर स पराथकना करो (सवामी लशवानद सरसवती)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शरद ाप वायः सवय िाय िनोरथ फल परदाः शरद या साधयत सव शरद या तटयत हररः सनक जी कहत ह- नारद शरदधापवकक आचरर म लाय हए सब धमक मनोवातछत फल

दन वाल होत ह शरदधा स सब कछ लसदध होता ह और शरदधा स ही भगवान शरीहरर सतषटट होत ह (नारद परारः 41)

कथा कीतयन जो घर भय सत भय िहिान वा घर परभ वासा कीनहा वो घर ह वकठ सिान

कथा कीतयन जा घर नही सत नही िहिान वा घर डरा जिड़ा दीनहा साझ पड़ शिशान अलख परि की आरसी सा का ही दह

लखा जो चाह अलख को इनही ि त लख लह (सत कबीर) दढ़ शरद ा और अथाह यय वाल क िनोरथ अवशय प णय होत ह ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

तनभयय बनो अपन-आपको पररषसथततयो क गलाि कभी ित सिझो ति सवय अपन भागय क आप

षव ाता हो (प जय सत शरी आशाराि जी बाप )

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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